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Sunday, August 12, 2012

वोट बैंक की राजनीति से रंगा है असम


नई दिल्ली, [सुमन अग्रवाल]। देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में लगभग एक माह से जारी हिंसा ने अब तक 78 लोगों की जान ले ली हैं और लाखों को बेघर कर दिया है। असम में जल रही यह आग उस विनाश की ओर इशारा कर रही है जो अभी तो सिर्फ असम को जला रही है, लेकिन आने वाले दिनों में यह आग कई और राज्यों तक फैलने की उम्मीद है। जहां एक तरफ हम देश का 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं असम के स्थानीय लोग अपने ही मूल अधिकारों से वंचित होकर अपने को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं।
असम में फैली हिंसा को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है, लेकिन हिंसा फैलने का कोई ठोस कारण अब तक सामने नहीं आ पा रहा है। सीबीआई भी हिंसा ग्रस्त इलाकों का दौरा कर चुकी है। लेकिन अब तक कोई कारण सामने नहीं आया है। लेकिन अब माना जा रहा कि इसके पीछे बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ सबसे बड़ा कारण है। इस वजह से असम के स्थानीय लोग अपने को अधिकारों से वंचित होता महसूस कर रहे हैं।
घुसपैठ एक बड़ा कारण
असम सरकार के मुताबिक असम के कोकराझाड़ व धुबड़ी जिलों में फैली यह हिंसा वहां के बोडो जनजाति व बांग्लादेश से लगातार हो रही घुसपैठ का नतीजा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि बाग्लादेशी घुसपैठिये एक व्यापक साजिश के तहत धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर उत्तर-पूर्व में अपनी तादाद बढ़ाते जा रहे हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम राजनीतिक गलियारे में इन्हें वोट बैंक के रूप में देख कर इनका इस्तेमाल करते हैं।
क्या कहते हैं सरकारी आंकडे़
भारत सरकार के बोर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बाग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाग्लादेश से गैर हिंदू घुसपैठियों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में 54 लाख, असम में 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं। वर्तमान आकलनों के अनुसार भारत में करीब तीन करोड़ से अधिक बाग्लादेशी गैर हिंदू घुसपैठिए हैं जिसमें से 50 लाख असम में हो सकते हैं।
हिंसाग्रस्त जिलों में असमान्य जनसंख्या
असम में जिन तीन जिलों में यह संघर्ष चल रहा है, अगर उन जिलों की जनगणना विश्लेषण पर एक नजर डाली जाए तो स्थिति अपने आप ही साफ हो जाएगी। सबसे पहले कोकराझाड़ जिले पर नजर डाले तो वर्ष 2001-2011 में यहां की जनसंख्या में 5.19 फीसद का इजाफा हुआ है। 2001 के जनगणना के अनुसार इस जिले में मुस्लिमों की संख्या बढकर लगभग 20 फीसद हो गई है। अगर हम असम मुस्लिम जनसख्या में वृद्धि दर को देखें तो बांग्लादेश से लगे जिलों में यह सबसे अधिक है जिसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ मुख्य कारण है। धुबड़ी जिला भी बांग्लादेश के सीमा से सटा हुआ है। 1971 में यहा मुस्लिम जनसंख्या 64.46 फीसद थी जो 1991 में बढकर 70.45 फीसद हो गई। 2001 के जनगणना के अनुसार जनसंख्या बढ़कर लगभग 75 फीसद हो गई। कमोबेश यही हाल 2004 में बने चिराग जिले का भी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह सब वही जिले है जहां पर असम में हिंसा की वारदातें हुई हैं। चिरांग और कोकराझाड़ हिंसा का सबसे ज्यादा प्रभावित जिला रहा है।
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक असम में पिछले तीस वर्षो में जनसंख्या में बेइंतहा वृद्धि देखने को मिली है। गौर करने वाली बात यह है कि यह वृद्धि असमान्य है। असम में 1971-1991 में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि का अनुपात 42.89 था, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में इससे 35 फीसद अधिक 77.42 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत संपूर्ण भारत में दोनों के बीच में अंतर 19.79 फीसद का रहा है। 1991-2001 में हिंदू जनसंख्या बढ़ोतरी दर 14.95 फीसद रही, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में यहा भी 14.35 फीसद अधिक, 29.3 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई थी।
1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42 फीसद थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढ़ कर 30.92 फीसद हो गई। मालूम हो कि बाग्लादेशी घुसपैठिए बड़े पैमाने पर असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, नागालैंड, दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक लगातार फैलते जा रहे हैं। जिनके कारण जनसंख्या का असंतुलन बढ़ा है। सबसे गंभीर स्थिति यह है कि बाग्लादेशी घुसपैठियों का इस्तेमाल आतंक की बेल के रूप में किया जा रहा है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई और कट्टरपंथियों के निर्देश पर बड़े पैमाने पर हुई बाग्लादेशी घुसपैठ का लक्ष्य ग्रेटर बाग्लादेश का निर्माण करना है। इसके साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए भी इनका प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए भारत के सामाजिक ढाचे का नुकसान व आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है।
वोटबैंक की राजनीति
असम में स्थानीय लोगों की जगह प्रवासियों का प्रभुत्व स्थापित हो रहा है और स्थानीय जन जाती अपने अधिकारों से वंचित होती नजर आ रही है। यहां जारी विरोध मुस्लमानों से नहीं है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते जब भी इस ओर कोई आवाज उठाई जाती है इसे साप्रदायिकता के रंग में रंग दिया जाता है। बाग्लादेशी घुसपैठ खुद भारतीय मुसलमानों के लिए ज्यादा नुकसान देह है। इनसे जनसंख्या में जो भारी असंतुलन हो रहा है उससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा जो सुविधाएं भारत सरकार भारत के अल्पसंख्यकों को देती है उसमें में भी वह धीरे-धीरे हिस्सेदार बनते जा रहे हैं।
इस बात से केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों ही भलीभांति अवगत हैं, लेकिन वोट बैंक व तुष्टीकरण के राजनीतिक कारणों की वजह से हमेशा से इन पर पर्दा ही डाला जाता है। हाल के असम संघर्ष ने इस साजिश का चेहरा सभी के सामने रख दिया है।
विपक्ष के निशाने सरकार
गौरतलब है कि मानसून सत्र में लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी ने असम हिंसा के मुद्दे पर चर्चा करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि प्रदेश सरकार के पास असम के प्रवासियों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं हैं। यही नहीं उन्होंने तो इस हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा करार देने की बात से भी इन्कार किया था। लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
असम हिंसा कहीं न कहीं हमारी आंतरिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। इस मामले में राजनीतिक इच्छा शक्ति को बढ़ाना होगा ताकि हम वोट बैंक की राजनीति व धर्म के दायरे से बाहर निकलकर देश की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द कोई फैसला ले पाएं।

http://www.jagran.com/news/national-votebank-politics-spreads-in-assam-9558682.html

Friday, August 10, 2012

असम में हिंसा जारी, अब तक 73 की मौत

गुवाहाटी।। निचले असम के जिलों में हिंसा की ताजा घटना होने की खबरें हैं। असम में अब तक जारी जातीय हिंसा में 73 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार पहले ही इन दंगों की सीबीआई से जांच की बात कह चुकी है। मुख्य मंत्री ने बिगड़े हालात के लिए अंदरूनी और बाहरी दोनों तरह की ताकतों को जिम्मेदार बताया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15394176.cms

त्रासदी पर विचित्र खामोशी

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय खबरों के क्रम में पूर्वोत्तर भारत को सबसे निचला दर्जा हासिल है। जबानी जमाखर्च में तो खूब जोर दिया जाता है कि भारत के इस उपेक्षित भाग को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए, किंतु क्षेत्र की विलक्षण जटिलता और पहुंच में अपेक्षाकृत कठिनाई से यह सुनिश्चित हो जाता है कि यह तीसरी दुनिया में चौथी दुनिया है। पिछले दिनों असम के कोकराझाड़ और धुबड़ी जिलों में हुई हिंसा में पचास से अधिक लोग मारे गए तथा चार लाख से अधिक घर-द्वार छोड़ने को विवश हुए हैं। इस मुद्दे पर मीडिया का गढ़ा हुआ नया जुमला-मानवता पर संकट टीवी पर चर्चाओं में छा जाना चाहिए था और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ मच जानी चाहिए थी। ओडिशा के कंधमाल जिले में 2009 का संकट इससे हल्का होते हुए भी कहीं अधिक ध्यान खींच ले गया था। 2002 के गुजरात दंगों के बारे में तो कुछ कहना ही बेकार है, जो अब तक मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। दुर्भाग्य से ब्रंापुत्र नदी के उत्तरी किनारे के हालात इतने जटिल हैं कि यहां अच्छे और बुरे के बीच भेद करना मुश्किल है। क्या यह हिंदू बोडो और मुस्लिम घुसपैठियों के बीच टकराव है, जो बांग्लादेश से आकर यहां बस गए हैं? या फिर यह मूल निवासी बोडो और बंगाली भाषी अप्रवासियों के बीच संघर्ष है? अहम बात यह है कि सांप्रदायिक दंगे अस्वीकार्य हैं और जातीय संघर्ष इतनी भ?र्त्सना के काबिल नहीं है। धीरे-धीरे टीवी चैनलों पर कुछ सवाल उभरने शुरू हुए। क्या दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई में असम सरकार ने देरी की? छह जुलाई को कोकराझाड़ में दो मुसलमानों की हत्या और 20 जुलाई को बदले की कार्रवाई में चार बोडो कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद तरुण गोगोई सरकार ने हालात को काबू करने के त्वरित उपाय क्यों नहीं किए? क्या तरुण गोगोई के इस बयान में सच्चाई है कि सेना ने रक्षामंत्री एके एंटनी की अनुमति मिलने से पहले कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया था और इस कारण कार्रवाई में दो दिन की देरी हुई? क्या बोडो ट्राइबल काउंसिल के प्रमुख के इस कथन का कोई आधार है कि अंतरराष्ट्रीय सीमापार से आकर हथियारबंद बांग्लादेशियों ने हिंसा को भड़काया? इनमें से अधिकांश सवाल आधिकारिक जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भी अनुत्तरित रह जाएंगे। हालांकि यह स्पष्ट है कि इस पूर्वनियोजित हिंसा पर प्रशासन की दोषसिद्धि पर मीडिया और राजनीतिक तबका लीपापोती पर उतर आया है। कोकराझाड़ और धुबड़ी में हुई जातीय-सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ा एक असहज पहलू यह है कि निर्णायक शक्तियां इस त्रासदी पर कुछ नहीं करेंगी, उनके पास पेशकश के लिए कुछ है ही नहीं। असम में हिंसा की जड़ पिछले सौ वर्षो से निरंतर जारी जनसांख्यिकीय बदलाव में निहित है। बांग्लादेश से अप्रवासियों के रेले यहां बसते रहे और 1901 में 32.9 लाख की आबादी वाले असम की जनसंख्या 1971 में 1.46 करोड़ हो गई। इस कालखंड में असम की जनसंख्या 343.7 फीसदी बढ़ गई, जबकि इस दौरान भारत में जनसंख्या वृद्धि मात्र 150 फीसदी हुई। इसमें भी मुस्लिम आबादी बढ़ने की रफ्तार स्थानीय मूल निवासियों की वृद्धि दर से कहीं अधिक रही। पिछले सप्ताह चुनाव आयुक्त एमएस ब्रंा ने कहा कि 2011 की जनगणना से पता चल सकता है कि असम के 27 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बाहुल्य वाले हो गए हैं। बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ ब्रंापुत्र घाटी के असमभाषी हिंदुओं में चर्चा का विषय बन गई है, जबकि अविभाजित गोलपाड़ा जिले के बोडो भाषी अल्पसंख्यकों के लिए तो यह मुद्दा जीवन-मरण का सवाल बन गया है। बोडो भाषी अल्पसंख्यकों की आबादी असम की कुल आबादी का महज पांच प्रतिशत है। उन्हें असमभाषी बहुसंख्यक आबादी से सांस्कृतिक चुनौती मिल रही है, जबकि बांग्लादेशी मुसलमानों से उन्हें अपने अस्तित्व पर संकट नजर आ रहा है। नब्बे के दशक में हिंसक बोडो आंदोलन इस दोहरी चुनौती से निपटने का प्रयास था। इस आंदोलन के कारण ही 1993 में बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की अ?र्द्ध स्वायत्ताता स्थापित हुई। हालांकि इस हिंसक आंदोलन से हासिल अधिकांश लाभ मुस्लिम समुदाय के फैलाव से अब हाथ से फिसल गए हैं। मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन और असमिया परिषद के उदय के कारण बोडो-मुस्लिम टकराव शुरू हो गया। एआइयूडीएफ की इस मांग से तनाव और बढ़ गया कि बोडो टेरिटोरियल काउंसिल द्वारा शासित अधिकांश भागों में अब बोडो का बहुमत नहीं रह जाने के कारण इसे भंग कर दिया जाना चाहिए। पिछले सप्ताह तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि अब असम में विभिन्न समुदायों के लोग रह रहे हैं। इन सबको शांति के साथ रहना सीखना होगा। उन्होंने सीमा पर बाड़ लगाने अथवा अवैध घुसपैठ के खिलाफ बनाए गए लचर कानून में संशोधन पर एक शब्द नहीं बोला। दिसपुर में बोडो समर्थन और पूरे देश में मुस्लिम समर्थन को लेकर दुविधाग्रस्त कांग्रेस के पास बोडो गुत्थी सुलझाने के लिए अधिक उपाय नहीं हैं। अतीत में भारत के उदारवादी बुद्धिजीवी तथाकथित सांप्रदायिक सवाल पर बहुत मुखर थे, खासतौर पर अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना पर। असम में हिंसक घटनाओं पर इस तबके ने आश्चर्यचकित करने वाली चुप्पी ओढ़ रखी है। इसके कारण स्पष्ट हैं। बहुसंख्यकों की कथित बर्बरता तथा अल्पसंख्यकों की कमजोरी का चिरपरिचित फार्मूला धुबड़ी और कोकराझाड़ में फिट नहीं बैठता। असम में बोडो जाति चारो तरफ से घिर गई है। यहां बोडो एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता का शिकार है, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूती का लाभ क्षेत्रीय स्तर पर उठा रहा है। 2004 में, जब 2001 की जनगणना में असम में जनसांख्यिकीय बदलाव दृष्टिगोचर हुए तो खुफिया विभाग ने अपना सिर रेत में धंसा लिया और सुनिश्चित किया कि इस मुद्दे पर कोई सार्थक चर्चा न हो। एक बार फिर असम में यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। 1947 में मुस्लिम डरा-सहमा समुदाय था। 2012 में भारतीय पंथनिरपेक्षता ने अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं और उसने पंथिक अल्पसंख्यकों की गरिमा व राजनीतिक सशक्तीकरण सुनिश्चित किया है। हालांकि इससे एक समस्या उठती नजर आ रही है कि अल्पसंख्यकों का सशक्तीकरण कहीं अन्य लोगों के लिए अन्यायपूर्ण न हो जाए। असम के बोडो अल्पसंख्यकों के लिए पंथनिरपेक्ष राजनीति में उनकी पहचान और अस्तित्व का संकट निहित है। [लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9542584.html

असम में फिर भड़की हिंसा, पाच की मौत

कोकराझाड़ [जागरण संवाददाता]। असम में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। कोकराझाड़ में करीब दस दिन की शांति के बाद बीती रात फिर से माहौल गर्म हो गया। कोकराझाड़ में दो और चिरांग जिले में तीन लोगों की मारे जाने व छह घरों को जला देने की खबर है। मृतकों को गोली मोरी गई थी। इस सांप्रदायिक हिंसा में अब तक कुल 61 लोगों की मौत हो चुकी है। कोकराझाड़ से एक व्यक्ति लापता भी बताया जा रहा है।
http://www.jagran.com/news/national-assam-5-killed-in-fresh-violence-in-kokrajhar-9541017.html

Wednesday, August 1, 2012

अफगानिस्तान में घटी अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों की आबादी : अमेरिका

वाशिंगटन: अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों की आबादी घट रही है और इन समुदायों को अपने मृत लोगों का दाह संस्कार करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित एक अमेरिकी रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है।
http://khabar.ndtv.com/news/show/minority-hindus-and-sikhs-are-decreasing-in-afghanistan-us-24560?cp


आग में झुलसता असम

पिछले दिनों की असम में हिंसक घटनाएं और आगजनी तथाकथित सेक्युलर दलों की कुत्सित राजनीति का परिणाम है। असम की वर्तमान हिंसा जातीय न होकर सीमा पार से आए मुस्लिम घुसपैठियों के हाथों स्थानीय जनजाति के लोगों की अपनी पहचान, सम्मान और संपत्ति की रक्षा का संघर्ष है। विगत 19 जुलाई से भड़की हिंसा में अब तक जहां 58 लोग अकाल मृत्यु के शिकार हुए वहीं करीब तीन लाख लोग अपने घरों से उजड़कर राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। इन शिविरों में खाने-पीने, सोने और दवा की व्यवस्था तक नहीं है। हिंसा के खौफ से गांव के गांव खाली हो गए। दंगाइयों ने इन गांवों के वीरान घरों और खेतों में लगी फसल को आग के हवाले कर दिया। मीडिया की खबरों के अनुसार सरकार को अंदेशा है कि दंगाइयों का अगला निशाना अब कोकराझाड़ के पड़ोसी जिले बन सकते हैं, इसलिए वह उन्हें खाली कराने पर विचार कर रही है। इस खबर में एक सेवानिवृत्त स्टेशन मास्टर बासुमतारी का उल्लेख है, जिसने बताया कि उन्होंने स्थानीय विधायक प्रदीप से रक्षा की गुहार लगाई तो उन्होंने पर्याप्त पुलिस बल नहीं होने की लाचारी दिखाई। गांव वालों के अनुसार टकराव की स्थिति तब बनी जब घुसपैठियों ने कोकराझाड़ के बेडलंगमारी के वनक्षेत्र में अतिक्त्रमण कर वहां ईदगाह होने का साइनबोर्ड लगा दिया। वन विभाग के अधिकारियों ने बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ मिलकर यह अतिक्त्रमण हटा दिया। इसके विरोध में ऑल बोडोलैंड माइनारिटी स्टूडेंट यूनियन ने कोकराझाड़ जिले में बंद का आ ान किया था। 6 जुलाई को अंथिपारा में अज्ञात हमलावरों ने एबीएमएसयू के दो सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी। 19 जुलाई को एमबीएसयू के पूर्व प्रमुख और उनके सहयोगी की हत्या हो गई। अगले दिन घुसपैठियों की भीड़ ने बीएलटी के चार सदस्यों की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी। इसके बाद ही बासुमतारी और अन्य गांव वाले हिंसा की आशंका में राहत शिविरों में चले गए। दूसरे दिन बांग्लादेशियों ने उनके घर और खेत जला दिए। कोकराझाड़, चिरांग, बंगाईगांव, धुबरी और ग्वालपाड़ा से स्थानीय बोडो आदिवासियों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिनके कारण न केवल असम के जनसांख्यिक स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है, बल्कि देश के कई अन्य भागों में भी बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। हुजी जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इन्हीं घुसपैठियों की मदद से चलने की खुफिया जानकारी होने के बावजूद कुछ सेक्युलर दल बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की थी कि ये अवैध घुसपैठिए राज्य में किंगमेकर बन गए हैं। असम को पाकिस्तान का अंग बनाने का सपना फखरुद्दीन अली अहमद ने देखा था। जनसांख्यिक स्वरूप में बदलाव लाने के लिए असम में पूर्वी बंगाली मुसलमानों की घुसपैठ 1937 से शुरू हुई। पश्चिम बंगाल से चलते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में अब इन अवैध घुसपैठियों के कारण एक स्पष्ट भूमि विकसित हो गई है, जो मुस्लिम बहुल है। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलमानों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हो गया। इस दशक में असम के अनेक इलाकों में मुसलमानों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह तेजी से बढ़ रही है। बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए वर्ष 1979 में असम में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। इसी कारण 1983 के चुनावों का बहिष्कार भी किया गया, क्योंकि बिना किसी पहचान के लाखों बांग्लादेशियों का नाम मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया था। चुनाव बहिष्कार के कारण केवल 10 प्रतिशत मतदान ही दर्ज हो सका। विडंबना यह है कि शुचिता की नसीहत देने वाली कांग्रेस पार्टी ने इसे ही पूर्ण जनादेश माना और राज्य में चुनी हुई सरकार का गठन कर लिया गया। यह अनुमान करना कठिन नहीं कि 10 प्रतिशत मतदान करने वाले इन्हीं अवैध घुसपैठिओं के संरक्षण के लिए कांग्रेस सरकार ने जो कानून बनाया वह असम के बहुलतावादी स्वरूप के लिए अब नासूर बन चुका है। 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस द्वारा 1983 में लागू किए गए अवैध आव्रजन अधिनियम को निरस्त कर अवैध बांग्लादेशियों को राज्य से निकाल बाहर करने का आदेश पारित किया था, किंतु कांग्रेसी सरकार इस कानून को लागू रखने पर आमादा है। इस अधिनियम में अवैध घुसपैठिया उसे माना गया जो 25 दिसंबर, 1971 (बांग्लादेश के सृजन की तिथि) को या उसके बाद भारत आया हो। इससे स्वत: उन लाखों मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता मिल गई जो पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। तब से सेक्युलरवाद की आड़ में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ जारी है और उन्हें देश से बाहर निकालने की राष्ट्रवादी मांग को फौरन सांप्रदायिक रंग देने की कुत्सित राजनीति भी अपने चरम पर है। बोडो आदिवासियों के साथ हिंसा एक सुनियोजित साजिश है। जिस तरह कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाया गया, हिंदू बोडो आदिवासियों के साथ भी पिछले कुछ सालों से इस्लामी जिहादी यही प्रयोग कर रहे हैं। 2008 में भी पांच सौ से अधिक बोडो आदिवासियों के घर जलाए गए थे, करीब सौ लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए थे। तब असम के उदलगिरी जिले के सोनारीपाड़ा और बाखलपुरा गांवों में बोडो आदिवासियों के घरों को जलाने के बाद बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा पाकिस्तानी झंडे लहराए गए थे। इससे पूर्व कोकराझाड़ जिले के भंडारचारा गांव में अलगाववादियों ने स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगे की जगह काला झंडा लहराने की कोशिश की थी। सेक्युलर मीडिया और राजनीतिक दल वर्तमान हिंसा को जातीय संघर्ष के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कटु सत्य यह है कि यह हिंसा जिहादी इस्लाम से प्रेरित है, जिसमें गैर मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है। बोडो आदिवासी पहले मेघालय की सीमा से सटे ग्वालपाड़ा और कामरूप जिले तक फैले थे। अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की भारी बसावट के कारण वे तेजी से सिमटते गए। अब तो संकट उनकी पहचान और अस्तित्व बचाए रखने का है। दूसरी ओर इस्लामी चरमपंथी इस बात पर तुले हैं कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के इलाके के जिन गांवों में बोडो समुदाय की आबादी आधी से कम है उन्हें बीटीसी से बाहर किया जाए। सच यह है कि असम के जिन क्षेत्रों में मुस्लिम धर्मावलंबी बहुमत प्राप्त कर चुके हैं वहां से इस्लामी कट्टरपंथी अब गैर मुस्लिमों को पलायन के लिए विवश कर रहे हैं। [लेखक: बलबीर पुंज, राज्यसभा सदस्य हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-9523930.html

असम में हिंसा के लिए आडवाणी ने अवैध प्रवास को दोषी बताया

गुवाहाटी।। निचले असम में टकराव के लिए बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन पर दोष मढ़ते हुए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि घुसपैठियों की समस्या को लेकर सरकार के उदासीन रवैये की वजह से मूल निवासी समुदाय खुद को खतरे में महसूस कर रहे हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15291774.cms

असम सरकार को जिम्मेदार मान रहीं सुरक्षा एजेंसियां

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भले ही कोकराझाड़ में ताजा जातीय दंगों के लिए केंद्रीय बलों के समय पर नहीं पहुंचने को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसके लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार मान रही हैं।
http://www.jagran.com/news/national-assam-government-responsible-for-riots-9519104.html

Saturday, July 28, 2012

बीजेपी ने लगाया केन्द्र पर बोडो समुदाय से भेदभाव का आरोप

पटना।। बीजेपी ने केंद्र सरकार पर बोडो समुदाय के साथ लगातार भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए पूरे देश से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाले जाने और बोडो समुदाय के सुरक्षा की गारंटी की आवश्यकता जताई है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15207766.cms

Friday, July 27, 2012

असम में हिंसा और फैली, 25 की मौत

असम के कोकराझाड़ इलाक़े की हिंसा और फैल गई है. मंगलवार को हिंसा बोंगई गाँव जिले में भी फैल गई.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/07/120724_asam_violence_update_jk.shtml

असम में सेना पहुंची गांवों तक

कोकराझाड़। असम के बोडो आदिवासी बहुल इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा का तांडव लगातार सातवें दिन बुधवार को भी जारी रहा। प्रभावित इलाकों से आठ और शव मिलने से हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या बढ़कर 40 हो गई है। सेना और अ‌र्द्धसैनिक बल गांवों तक पहुंच गए हैं, उन्होंने वहां पर तलाशी अभियान छेड़ दिया है। कोकराझाड़ में अनिश्चितकालीन क‌र्फ्यू जारी है। सुरक्षा बलों के साये में बुधवार दोपहर कम दूरी की पैसेंजर गाड़ियां और मालगाड़ियां चलाई गईं।
http://www.jagran.com/news/national-uncontroled-violence-in-assam-9504361.html

असम में हिंसा जारी, जज पर हमला

कोकराझाड़ [जागरण न्यूज नेटवर्क]। असम में सांप्रदायिक हिंसा का दौर जारी है। गुरुवार को पुलिस गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई और चार अन्य घायल हो गए। तीन शव और मिलने से हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है। कोकराझाड़ में विशेष न्यायाधीश पर हमला हुआ, वह घायल हो गए हैं। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कोकराझाड़ के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके हालात का जायजा लिया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह शनिवार को असम जाएंगे
http://www.jagran.com/news/national-assam-on-the-path-of-kashmir-9507860.html

असम में हिंसा जारी, अब तक 41 मरे

गुवाहाटी।। असम का बोडो बहुल इलाका सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा है। बोडो आदिवासियों और आदिवासी इलाकों में बसे मुस्लिम समुदाय के बीच बुधवार को सातवें दिन भी जमकर हिंसा हुई और प्रभावित इलाकों से नौ और शव बरामद किए गए। इस तरह सांप्रदायिक दंगों में अब तक 41 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि करीब दो लाख लोग बेघर हुए हैं।

Wednesday, July 25, 2012

असम में हिंसा और फैली, 25 की मौ

असम के कोकराझाड़ इलाक़े की हिंसा और फैल गई है. मंगलवार को हिंसा बोंगई गाँव जिले में भी फैल गई.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/07/120724_asam_violence_update_jk.shtml

असम में हिंसा बेकाबू, 32 मरे; 1.70 लाख बेघर

कोकराझाड़। असम में सांप्रदायिक हिंसा की आग फैलती जा रही है। मंगलवार को कोकराझाड़ में हिंसा पर उतारू भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें चार लोग मारे गए। वहां पर क‌र्फ्यू लगाने के साथ ही प्रशासन ने देखते ही गोली मारने का आदेश सुरक्षा बलों को दे दिया है। बोडो व अल्पसंख्यक समुदाय की ताजा झड़पों में मरने वालों की संख्या बढ़कर 32 हो गई है। हिंसा राज्य के 11 जिलों के करीब 500 गांवों में पहुंच गई है। वहीं, प्रदेश में अब तक 1.70 लाख लोग घर छोड़कर भाग चुके हैं। कोकराझाड़ से शुरू हुई हिंसा पड़ोसी जिले धुबड़ी से होते हुए मंगलवार को चिरांग और सोणितपुर जिलों में भी फैल गई। बोंगईगांव और उदालगुड़ी जिलों में भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। बांग्लादेश सीमा के नजदीक बनी अशांत स्थिति पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चिंता जतायी है और उससे कड़ाई से निपटने का निर्देश दिया है।
http://www.jagran.com/news/national-uncontroled-violence-in-assam-9504361.html