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Monday, September 8, 2008

उड़ीसा में इटली का दखल

उड़ीसा की हिंसक घटनाओं के पीछे मतांतरण की भूमिका देख रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण ,१ सितम्बर २००८ , उड़ीसा के कंधमाल जिले की हिंसा पर इटली सरकार द्वारा विगत गुरुवार को व्यक्त की गई आपत्ति न केवल राजनयिक मर्यादा का अतिक्रमण है, बल्कि ईसाइयत का साम्राज्यवादी चेहरा भी बेनकाब करती है। 80 वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके सहयोगियों की हत्या एवं उसकी प्रतिक्रिया में जो हिंसा हुई वह निंदनीय है, किंतु इसके पीछे चर्च की दशकों पुरानी मतांतरण गतिविधियां जनाक्रोश का सबसे बड़ा कारण हैं। ये हिंसक घटनाएं भारत का आंतरिक मसला हैं और किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा पोषित नहीं हैं। विगत गुरुवार को इटली सरकार ने कैबिनेट की बैठक के बाद भारतीय राजदूत को तलब कर भारत में मजहबी हिंसा रोकने का निर्देश देने का फैसला लेने संबंधी बयान जारी किया है। इसके एक दिन पूर्व पोप ने भी हिंसा की कड़ी निंदा की थी।

वस्तुत: इटली सरकार की निराधार प्रतिक्रिया उसके राजनीतिक पतन और गिरते सामाजिक मापदंडों को ही रेखांकित करती है। इटली की सरकार नवफासीवादियों पर आश्रित है, जिनका मुख्य एजेंडा विदेशी द्वेष और अप्रवास विरोधी है। आश्चर्य नहीं कि रोम के नए मेयर का स्वागत मुसोलिनी की तरह होता है। नवफासीवादी युवा इटली रोमन कैथोलिक के अनुयायी हैं और उन्हें मुस्लिम-यहूदियों सहित प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की उपस्थिति से भी नफरत है। इसके विपरीत ईसाई मत में दीक्षित और इटली में जन्मी-पलीं सोनिया गांधी सत्तापक्ष की सर्वोच्च नेता हैं। इस पृष्ठभूमि में इटली सरकार द्वारा भारत को सहिष्णुता का उपदेश देना शैतान के मंत्रोच्चार करने जैसा है। इटली की सरकार ने जो अनावश्यक हस्तक्षेप करने की कोशिश की है उसका भारतीय सत्ता अधिष्ठान की ओर से कड़ा प्रतिवाद किया जाना चाहिए। क्या इस सेकुलर सरकार से देश के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए किसी पहल की अपेक्षा की जा सकती है? पोप दुनियाभर के इसाइयों के संरक्षक माने जाते हैं, इसलिए कुछ हद तक उनकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, किंतु भारत के संदर्भ में उन्होंने एकपक्षीय तथ्यों के आधार पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर चर्च की मतांतरण गतिविधियों को ढकने का प्रयास किया है। चर्च भारत में वैसे इलाकों में ज्यादा सक्रिय है जहां आर्थिक व शैक्षिक पिछड़ापन है। बहुधा चर्च स्थानीय मान्यताओं, परंपराओं व प्रचलित आस्थाओं पर भी आघात कर अपना प्रसार करने की कोशिश करता रहा है। यह हिंदूनिष्ठ संगठनों का मिथ्या आरोप नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मतांतरण की ऐसी शिकायतें मिलने पर मध्य प्रदेश की कांग्रेसी सरकार द्वारा 14 अप्रैल 1955 में गठित 'नियोगी समिति' ने इस कटु सत्य को रेखांकित किया था। समिति की प्रमुख संस्तुतियां थीं-मतांतरण के उद्देश्य से आए विदेशी मिशनरियों को बाहर निकाला जाए, चिकित्सा व अन्य सेवाओं के माध्यम से मतांतरण को कानून बनाकर रोका जाए, बल प्रयोग, लालच, धोखाधड़ी, अनुभवहीनता, मानसिक दुर्बलता का उपयोग मतांतरण के लिए नहीं हो, किसी भी निजी संस्था को सरकारी स्त्रोतों के अलावा विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति नहीं मिले।

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती 1966 में कंधमाल आए और तब से वह अशिक्षित-पिछड़े वनवासियों के उत्थान में संलग्न थे। उन्होंने पिछड़े आदिवासियों के मतांतरण के मिशनरी प्रयासों का प्रखर विरोध किया। उन्होंने गोवध के खिलाफ भी मुहिम छेड़ रखी थी। 1970 के बाद से वह चर्च के निशाने पर थे। विगत दिसंबर माह में भी उन पर कातिलाना हमला हुआ था। उसकी प्रतिक्रिया में हिंसक वारदातें भी हुईं। तब दिल्ली से जांच के लिए उड़ीसा गए मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधियों ने हिंसा के लिए केवल हिंदू संगठनों को कसूरवार ठहराया। केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल का दौरा केवल ईसाई गांवों तक ही सीमित रहा। उन्होंने ब्राह्मणदेई, जलेसपेटा, तुमुड़ीबंध, बालीगुडा और बाराखंबा गांवों का दौरा नहीं किया, जहां ईसाई हमलावरों द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। ईसाई हमलावरों के डर से कटिंगिया व आसपास के दस गांवों के हिंदू ग्रामीण जंगलों में जा छिपे थे। उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने की चिंता शिवराज पाटिल को नहीं हुई। सेकुलर मीडिया में भी चर्चों पर हुए हमलों की तो खूब चर्चा हुई थी, किंतु मंदिरों और हिंदुओं पर किए गए हमलों की खबर गायब ही रही। यदि तब तटस्थतापूर्वक जांच की जाती और चर्च पर कड़ी कार्रवाई की जाती तो संभवत: आज यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। यह कहना कि हत्या के पीछे नक्सलियों-माओवादियों का हाथ है, सत्य से आंख मूंदना है। उड़ीसा में सक्रिय अधिकांश माओवादी-नक्सली नवमतांतरित ईसाई ही हैं। त्रिपुरा में अगस्त 2000 में स्वामी शांतिकाली जी महाराज की भी हत्या की गई थी। शांतिजी भी वनवासी इलाकों में चलाए जा रहे मतांतरण कार्यक्रमों के प्रखर आलोचक थे। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हत्या में बैप्टिस्ट चर्च के शामिल होने की बात स्वीकारी थी। पूर्वोत्तार के ईसाई बहुल क्षेत्र हों या अन्यत्र, जहां कहीं भी अलगाववाद की समस्या है उसके पीछे मतांतरण एक बड़ा कारक है।

मतांतरण के संबंध में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''जब हिंदू समाज का एक सदस्य मतांतरण करता है तो समाज की संख्या कम नहीं होती, बल्कि समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है।'' आज कश्मीर में जो हो रहा है वह इस कटु सत्य को रेखांकित करता है। आश्चर्य नहीं कि वैदिक हिंदू दर्शन के साक्षी कश्मीर में आज पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं और भारत की मौत की कामना की जा रही है।

लक्ष्मणानंदजी की हत्या में चर्च शामिल हो या नक्सली-माओवादी, मैं मतांतरण से पैदा होने वाली विषाक्त मानसिकता को मुख्य कसूरवार मानता हूं, जो बहुलतावादी संस्कृति की धुर विरोधी है। कंधमाल की हिंसा में जहां चर्च की बड़ी भूमिका है वहीं सेकुलरवादियों की कुत्सित नीतियों का भी बड़ा योगदान है। उड़ीसा की दो आदिवासी जातियों-कंध और पण में पिछले कुछ समय से आरक्षण को लेकर संघर्ष चरम पर है। कंध जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और आस्था के प्रति खासे जागरूक हैं, जबकि अधिकांश पण आदिवासियों ने ईसाइयत स्वीकार कर ली है। मतांतरण के बाद अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण से वंचित हो जाने के बाद पण समुदाय कंध की तरह अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने की मांग कर रहा है, जिसका समर्थन चर्च कर रहा है। विदेशी धन से पोषित फूलबनी कुई जनकल्याण संघ इस फसाद का सूत्रधार है। संप्रग सरकार द्वारा गठित रंगनाथ मिश्रा आयोग द्वारा सभी मतांतरितों को आरक्षण देने की संस्तुति के बाद कंध सहित अन्य हिंदू अनुसूचित जाति-जनजाति को यह भय सताने लगा है कि उनके हक का आरक्षण लाभ पण उड़ा ले जाएंगे। स्वयं पण भी चर्च की शरण में आने के बावजूद ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चर्च की शरण में आने के बावजूद उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। उड़ीसा की हाल की हिंसक घटनाओं की तह में छल-कपट और फरेब के बल पर चर्च द्वारा चलाया जा रहा मतांतरण अभियान है, जिसे सेकुलरिस्टों का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन प्राप्त है।



उड़ीसा: विहिप नेता समेत चार की हत्या

24 अगस्त २००८ वार्ता भुवनेश्वर। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के प्रमुख नेता स्वामी लक्ष्मनन्दा सरस्वती और चार अन्य की शनिवार रात अज्ञात हमलावरों ने उड़ीसा में कालाहांडी-फुलबनी सीमा पर जलेसपाटा आश्रम स्कूल में गोली मारकर हत्या कर दी।

फुलबनी स्थित चकपाड़ा आश्रम के संस्थापक स्वामी सरस्वती आश्रम में गए थे, तभी हमलावरों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिससे चार अन्य सहित उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। राज्य के पुलिस महानिदेशक गोपाल नन्दा ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि मारे गए चार अन्य की पहचान अभी नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा कि यह घटना संदिग्ध नक्सलियों की हो सकती है और इसका पता लगाया जा रहा है।

स्वामी सरस्वती ने हाल ही में प्रेस को जारी एक बयान में आरोप लगाया था कि आदिवासी बहुल फुलबनी जिले में माओवादियों के ईसाई मिशनरियों के साथ मिल जाने से उनके जीवन को खतरा है।

जम्मू विवाद हल: मंदिर बोर्ड को जमीन मिली

1 अगस्त 2008 वार्ता, जम्मू। जम्मू कश्मीर सरकार और श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के बीच अमरनाथ जमीन विवाद को लेकर चार दौर की बातचीत के बाद आखिरकार आज समझौता हो गया जिसके तहत श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रा की अवधि के दौरान जमीन दी जायेगी।


सरकारी पैनल के प्रमुख एस.एस.ब्लोएरिया ने तड़के पांच बजे यहां एक संवाददाता सम्मेलन में श्राइन बोर्ड को यात्रा के दौरान जमीन बहाल किये जाने की घोषणा की।

बातचीत का चौथा दौर कल रात नौ बजकर पांच मिनट पर शुरू हुआ था जो आज तड़के चार बजकर 45 मिनट तक चला। इस फैसले के बाद लगभग दो महीनों से संघर्षरत और 39 दिनों से पूर्ण बंद का सामना कर रहे जम्मू के लोगों के चेहरो पर खुशी लौट आई।

श्री बेलोरिया ने बताया कि श्राइन बोर्ड को वापस की गई जगह पर विभिन्न तरह की सामग्री इस्तेमाल करके ढांचा तैयार किया जायेगा। इसमें शौचालय, स्थानीय निवासियों को दुकानें बनाने की अनुमति, चिकित्सीय सुविधाओं के साथ ही हेलीकाप्टर और वाहन प्रबंधन जैसी सुविधाएं मुख्य होंगी।

श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति (एसएवाईएसएस) के समन्वयक लीलाकरन शर्मा ने बताया कि बैठक में स्वीकार किया गया है कि यात्रा के लिये बोर्ड ही जिम्मेदार होगा और बोर्ड के अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल होंगे।
उन्होंने बताया कि वापस दी गई भूमि पर पूर्ण रूप से बोर्ड का अधिकार होगा और यात्रा के दौरान किसी श्रद्धालु से कोई पैसा नहीं लिया जायेगा।

श्री शर्मा ने कहा –“ हमने कुछ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लागू जन सुरक्षा अधिनियम हटाने, अपराधिक मामलों को वापस लेने, संघर्ष में मारे गये लोगों के परिजनों को मुआवजा दिये जाने, बागवानों एवं कृषकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू बंद खत्म करने का निर्णय लिया है।”

इस मामले में सहयोग के लिए उन्होंने जम्मूवासियों और सारे देश के लोगों धन्यवाद दिया है।

Friday, August 22, 2008

जम्मू के जज्बे को सलाम

अमरनाथ श्राइन बोर्ड मामले में कश्मीरी अलगाववादियों का असली चेहरा बेनकाब होता देख रहे है ए. सूर्यप्रकाश

दैनिक जागरण , अगस्त २१, २००८। कुछ समय पहले तीखे तेवर वाले सज्जाद लोन जैसे कश्मीरी अलगाववादी नेता अपने आंदोलन के दौरान बार-बार घोषणा कर रहे थे कि वे अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। भारत के उन अनेक नौजवानों को कश्मीर के अलगाववादियों के इस चुनौतीपूर्ण अंदाज से जबरदस्त धक्का लगा है जो अब तक उनसे अपरिचित रहे हैं। उन्हें नहीं पता था कि हुर्रियत कांफ्रेंस और ऐसे ही अन्य संगठनों के नेताओं के मन में भारत के स्वतंत्र, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे के प्रति नफरत भरी है। लोग उस स्तब्धकारी भेदभाव से भी पहली बार परिचित हो रहे हैं जो राष्ट्रवादी बहुल जम्मू क्षेत्र और अलगाववादी एवं सांप्रदायिक कश्मीर क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है। जम्मू के हिंदू, सिख और मुस्लिम प्रदर्शनकारी तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन करते हैं और भारत माता की जय जैसे नारे लगाते हैं, जबकि कश्मीर के प्रदर्शनकारी हुर्रियत या पाकिस्तान का हरा झंडा लेकर भारत विरोधी नारे लगाते हुए प्रदर्शन में भाग लेते हैं। पिछले साठ साल से भारतीय गणतंत्र का अंग होने के बावजूद कश्मीरी मुसलमानों का बड़ा वर्ग पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र के दायरे से बाहर है। मीडिया में सामने आई विरोध प्रदर्शन की तस्वीरों से यह साफ हो जाता है कि घाटी के अधिकांश मुसलमानों पर भारतीय पंथनिरपेक्षता का रंग नहीं चढ़ा है। दूसरी तरफ वहां छह सौ साल पहले का वही माहौल नजर आता है, जिसमें सुल्तान सिकंदर ने हिंदुओं पर कुठाराघात करते हुए उन्हें कश्मीर छोड़ने या मुसलमान बनने को मजबूर कर दिया था। हिंदू समुदाय पर दूसरा बड़ा कुठाराघात 1989-90 में मुस्लिम आतंकवादियों ने किया, जिन्हें स्थानीय मुसलमानों का समर्थन हासिल था। उन्होंने हिंदुओं की हत्याएं शुरू कर दीं। इस नरसंहार के कारण तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने पलायन कर जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में शरण ली।

हाल के वर्र्षो में आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाया और अस्थायी शिविरों में निवास करने वाले यात्रियों को मौत के घाट उतारा। इसके बावजूद सज्जाद लोन कहते हैं कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि मुसलमान हिंदू तीर्थयात्रियों का 'ध्यान' रख रहे हैं। इससे भी हास्यास्पद बयान हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीर वाइज फारुख का है। उनका दावा है कि वह पंथनिरपेक्षता में यकीन रखते हैं। सांप्रदायिक तो हिंदू हैं, जो श्राइन बोर्ड की जमीन के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि घाटी से हिंदुत्व की विशिष्ट संस्कृति के सफाए पर कोई भी अलगाववादी नेता शर्रि्मदगी महसूस नहीं करता। यह इस क्षेत्र में किसी भी पंथिक अल्पसंख्यक समुदाय पर सबसे बड़ा हमला है। हालिया वर्र्षो में टीवी शो में अनेक कश्मीरी अलगाववादी नेता हाजिर हुए हैं। ये विद्रोही, अड़ियल, सांप्रदायिक और भारत विरोधी थे, फिर भी कुछ अंग्रेजी समाचार चैनलों ने उन्हें पर्याप्त समय दिया। भारतीय मीडिया का एक वर्ग यह मानता है कि अलगाववाद की भाषा बोलने वाले कश्मीरी मुसलमानों से संजीदगी और पंथनिरपेक्षता की उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए। सज्जाद लोन, बिलाल लोन और मीर वाइज फारुख जैसे लोगों के जहर उगलने वाले बयान और उनके दावों में बेइमानी के निशान इन मीडिया संगठनों के लचर रवैये से साफ झलकते हैं। ये उन्मत्त कश्मीरी मुस्लिम सांप्रदायिकता के प्रति रुझान रखते हैं। इनमें कश्मीरी मुस्लिम दृष्टिकोण की तरफदारी की इच्छा इतनी तीव्र है कि साफ-साफ सांप्रदायिक नारेबाजी और प्रदर्शनों के बावजूद वे इसे सांप्रदायिक बताने से गुरेज करते हैं। मूर्खतावश अलगाववादियों को मंच प्रदान करके कुछ मीडिया संगठन भारत की एकता व अखंडता तथा संवैधानिक मूल्यों को छिन्न-भिन्न करने के खतरनाक अंजाम के करीब पहुंच गए हैं। यह नि:संदेह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।

सज्जाद लोन कहते हैं कि 'हम' हिंदुओं को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। एक चैनल पर एक कश्मीरी पंडित ने लोन से पूछा कि 'हम' से क्या मतलब है? क्या इसमें कश्मीरी पंडित शामिल नहीं हैं, जो कश्मीर के मूल निवासी हैं? इस सवाल पर लोन और वहां मौजूद अन्य लोगों की बोलती बंद हो गई। जाहिर है कि लोन ने जिस 'हम' का उल्लेख किया था उसमें केवल मुस्लिम समुदाय शामिल है। लोन को बताना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा और अगर सीमा पार के आकाओं से आपका इतना ही लगाव है तो मुजफ्फराबाद पुल पार करके वहां जाओ और वहीं जाकर बस जाओ। कश्मीर नाम के भौगोलिक टुकड़े से हम भावनात्मक बंधन में बंधे हैं और यह बंधन हमेशा कायम रहेगा। लोन के पूर्ववर्ती भी नियंत्रण रेखा के पार ऐसा ही झुकाव रखते थे। कश्मीरी मुसलमानों की सांप्रदायिकता सबसे पहले 1947 में खुलकर सामने आई थी। तब कश्मीर सेना में तैनात मुसलमान सैनिकों ने फौजी अफसरों की हुक्मअदूली करते हुए बगावत कर दी थी और हमलावर पाकिस्तान सेना में शामिल हो गए थे। उन्होंने अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह, बिग्रेडियर राजिंदर सिंह और अन्य अधिकारियों को मौत के घाट उतारने के बाद श्रीनगर की तरफ कूच किया।

इस धोखे की गूंज आज जम्मू-कश्मीर राज्य में सुनाई पड़ रही है। कश्मीरी मुस्लिम समुदाय सीमा पार से पड़े प्रभाव के कारण घाटी में हिंदुओं के अधिकारों को रौंदना अपना अधिकार समझ बैठा है। अगर हम जम्मू-कश्मीर को भारत के अभिन्न अंग के रूप में कायम रखना चाहते हैं तो देश की एकता, अखंडता, आजादी, पंथनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध भारत के प्रत्येक नागरिक को ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह जैसे बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। जम्मू की जुझारू जनता हमारे सामने उदाहरण पेश कर रही है। आइए हम सब उन्हें सलाम करें।


Thursday, August 21, 2008

जम्मूः प्रदर्शन जारी, ताजा हिंसा में 50 घायल

20 अगस्त 2008 CNN IBN, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर और इसके आस-पास के कई इलाकों में आज बेकाबू भीड़ ने उपद्रव मचाते हुए पुलिस पोस्ट के साथ ही कुछ सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। आज जम्मू में अंतिम दिन गिरफ्तारियां देते हुए ये प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों से भी जा भिड़ें, जिसमें 50 लोग घायल हो गए।प्रदर्शनकारियों ने सरवाल पुलिस पोस्ट के एक हिस्से और जम्मू में गांधी नगर पुलिस थाने के ठीक विपरीत बने सरकारी आवासीय इमारत में आग लगा दी। साथ ही उन्होंने जानीपुरा इलाके में जेएंडके बैंक के एटीएम को भी जला डाला। कई इलाकों में तो अभिभावक अपने बच्चों के साथ गिरफ्तारियां देने के लिए जबरन पुलिस थाने में घुस आए।दूसरी तरफ, ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ राज्यपाल एन.एन.वोहरा के साथ दूसरे दौर की बातचीत के लिए सहमत हो गई है। ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ ने चार सदस्यों की एक टीम गठित की है जो अपने पांच-सूत्रीय एजेंडे पर आगे बातचीत करेगी। इस एजेंडे में श्राइन बोर्ड के पुर्नगठन और ऐसी व्यवस्था की मांग है कि जिसके द्वारा बोर्ड संबंधित भूमि से जुड़े नहरों को अस्थाई तौर पर इस्तेमाल कर सके। इस बीच, श्रीनगर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम।के.नारायण ने हालात का जायजा लेने के लिए एक उच्च-स्तरीय बैठक भी बुलाई। हालांकि, प्रशासन ने कल ही लोगों को चेतावनी दी थी कि वे गिरफ्तारियां देने के लिए बच्चों को अपने साथ नहीं लाए। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन की इस चेतावनी को अनसुना कर दिया। कुछ जगहों पर तो प्रदर्शनकारी खुलेआम घूमते नजर आए, और कई जगह उन्हें रोकने के लिए पुलिस को आंसूगैस छोड़ने पड़े। ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ के प्रवक्ता ने दावा किया है कि लगभग 3,50,000 लोग गिरफ्तारी के लिए सामने आए, जबकि अधिकारियों के मुताबिक, ये तादाद करीब 100,000 तक गई। इसके साथ ही, समिति ने 25अगस्त तक जम्मू बंद बढ़ा दिया है।

Wednesday, August 20, 2008

जम्मू में महिलाओं ने दी गिरफ्तारियां

19 अगस्त २००८, इंडो-एशियन न्यूज सर्विस जम्मू । में आठ दिनों के प्रदर्शनों के बाद हालात भले ही सामान्य हो गए हों, लेकिन अभी जम्मू में शांत नहीं हुआ है और जेल भरो आंदोलन के दूसरे मंगलवार को हजारों महिलाओं ने गिरफ्तारियां दी।जम्मू के सभी हिस्सों में महिलाओं ने सैंकड़ों के जत्थों में गिरफ्तारियां । पक्का डांगा और गांधी नगर पुलिस स्टेशनों में महिलाएं जबरन दाखिल हो गईं, जबकि वहां तैनात कर्मी उनके सामने बेबस दिखे।तालियां बजाती और जयकारे लगाती इन महिलाओं ने कहा कि जब तक श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन लौटा नहीं दी जाती, तबतक वे आंदोलन जारी रखेंगी। गौरतलब है कि सोमवार को हजारों पुरूषों ने गिरफ्तारियां दी थीं। सरकारी अनुमान के मुताबिक 75 हजार लोगों ने गिरफ्तारियां दी हैं, जबकि श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष संघर्ष समिति ने यह संख्या तीन लाख बताई है।

Tuesday, August 19, 2008

जम्मू में डेढ़ लाख लोगों ने गिरफ्तारी दी

१९ अगस्त २००८ वार्ता जम्मू। ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ के ‘जेल भरो आन्दोलन’ के आह्वान पर कल लगभग 40 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठनों के डेढ़ लाख से अधिक कार्यकर्ताओं ने श्राइन बोर्ड को भूमि वापस दिए जाने के लिए आंदोलन तेज करते हुए गिरफ्तारियां दीं।समिति के संयोजक लीला करण शर्मा ने यहां संवाददाताओं को बताया कि जम्मू क्षेत्र में महिलाओं सहित डेढ़ लाख से अधिक लोगों ने गिरफ्तारी दी।शर्मा ने बताया कि लाखों लोग श्राइन बोर्ड को भूमि वापस दिए जाने की मांग करते हुए घरों से निकल पड़े और गिरफ्तारी दी। वे हाथों में तिरंगा झंडा लिए ‘बम-बम भोले’ के नारे लगा रहे थे। प्रदर्शनकारी गिरफ्तारियां देने के लिए थानों के बाहर जमा हो गए थे।गांधी नगर, त्रिकुटा नगर, सतवारी और सिटी पुलिस थाना क्षेत्रों के निवासी भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन के लिए निकले और गिरफ्तारी देने थाने पहुंचे। गिरफ्तारी देने वालों की संख्या बढ़ रही थी, लेकिन भारी भीड़ को संभालने में पुलिस अधिकारी नाकाम रहे।बुधवार को बच्चे गिरफ्तारी देंगे।शर्मा ने कहा कि पुलिस ने ऊधमपुर में गिरफ्तारियां देने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से थाने की ओर बढ़ रहे लोगों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े गए।शर्मा ने दो राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर हमले की निंदा करते हुए कहा, “मीडिया तथ्यों को प्रस्तुत करने में सकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है, लेकिन सभी पर कुछ खास घटनाओं को कवर करने की पाबंदी है। प्रदर्शनकारियों को मीडिया कार्यालयों पर पथराव नहीं करना चाहिए, यह निंदनीय है”।इस बीच हजारों प्रदर्शनकारियों ने जम्मू नगर में रैलियां निकालीं और राज्य सड़क परिवहन निगम की तीन बसों और परिवहन चौकियों को नुकसान पहुंचाया।जेल भरो आन्दोलन की भारी सफलता से उत्साहित शर्मा ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को श्राइन बोर्ड को भूमि वापस करने के आंदोलन को जनांदोलन बन जाने को महसूस करना चाहिए।जम्मू में चल रहे आंदोलन में अब तक नौ लोगों की जानें गई हैं।संघर्ष समिति ने जम्मू बंद 20 अगस्त तक बढ़ा दिया है। समिति श्राइन बोर्ड को भूमि वापस दिए जाने और राज्यपाल एनएन. वोहरा को हटाए जाने की मांग कर रही है।

Thursday, August 14, 2008

देशव्यापी चक्काजाम से जनजीवन प्रभावित

नई दिल्ली। श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड भूमि मामले पर भाजपा व विहिप द्वारा बुलाए गए राष्ट्रव्यापी चक्काजाम के चलते बुधवार को कई शहरों में सड़क व रेल यातायात का बुरा हाल रहा और लोगों को अपने काम पर पहुंचने के लिए घंटों परेशान होना पड़ा। इस दौरान हरियाणा के अंबाला में चक्का जाम में फंसे एक वृद्ध की समय पर अस्पताल न पहुंचने पर मौत हो गई।
राजधानी दिल्ली में चक्काजाम करीब दो घंटे तक चला जिसके चलते कई महत्वपूर्ण चौराहों और मार्गो पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह रुक गई। प्रदर्शन के कारण दिल्ली-जयपुर रेलमार्ग भी कुछ समय के लिए प्रभावित रहा। दैनिक यात्रियों और काम पर जाने वाले लोग जहां जाम में फंसे रहे वहीं राजधानी में आज सुबह से हो रही बारिश ने भी उनकी परेशानियों में इजाफा किया। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक विकास मार्ग, आईटीओ, अक्षरधाम रोड, दीपाली चौक, वजीरपुर, आश्रम, मूलचंद, दिल्ली-गाजियाबाद रोड, दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग, दिल्ली-नोएडा एक्सप्रेस हाइवे, दिल्ली छावनी, उत्ताम नगर, धौलाकुआं और घिटोरनी आदि स्थानों पर चक्काजाम के चलते घंटों जाम लगा रहा। भाजपा और विहिप के झंडे थामे प्रदर्शनकारी अपने दो घंटे के चक्काजाम के ऐलान के मुताबिक आज सुबह नौ बजे से ही दिल्ली के प्रमुख चौराहों पर जमा होने लगे। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे। प्रदर्शनकारियों में संघ परिवार के अन्य संगठनों की महिला कार्यकर्ता भी शामिल थीं। प्रदर्शनकारियों ने हालांकि स्कूल बसों, चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं तथा एंबुलेंस सेवाओं को चक्काजाम से छूट दे रखी थी। सड़कों पर काफी देर तक वाहनों की काफी लंबी कतारें देखीं गई। भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन ने पूर्वी दिल्ली में लक्ष्मीनगर के निकट नोएडा मोड़ पर जाम लगाकर विरोध प्रदर्शन किया। इसके अलावा विकास मार्ग पर भी भारी जाम लगा रहा।
इधर, गुड़गांव में भी प्रदर्शनकारियों ने हीरोहोंडा चौक और इफको चौक पर जाम लगाया, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया। प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर टायर भी जलाए। दफ्तर पहुंचने में विलंब होने से परेशान एक कर्मचारी नीलेश कपूर ने कहा कि हरिनगर से कनाटप्लेस तक पहुंचने में उन्हें लगभग तीन घंटे लग गए। वाहनों की आवाजाही बहुत खराब रही। छावनी और धौलाकुआं के बीच बुरी तरह जाम लगा रहा।
फरीदाबाद में प्रदर्शनकारियों ने वाईएमसीए चौक के निकट घंटे भर तक राष्ट्रीय राजमार्ग दो को जाम लगा रखा। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि प्रदर्शन को देखते हुए सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। विहिप के महासचिव प्रवीण तोगडि़या ने कहा कि श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि देने के मुद्दे पर चल रहा उनका प्रदर्शन चलो अयोध्या आंदोलन की तरह राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन सकता है।
वहीं, आंदोलनकारियों ने हिमाचल प्रदेश में दिल्ली-धर्मशाला मार्ग को जाम कर दिया।
मप्र में व्यापक असर
भोपाल। विहिप द्वारा आज आयोजित दो घंटे के राष्ट्रव्यापी चक्काजाम आंदोलन का मध्यप्रदेश में व्यापक असर देखने को मिला। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार प्रदेश में सुबह नौ बजे से 11 बजे तक दो घंटे का यह चक्काजाम आमतौर पर शांतिपूर्ण रहा। लेकिन इससे दफ्तरों और अन्य कामकाज पर जा रहे लोगों को खासी परेशानी हुई। हालांकि स्कूली बसों एवं आवश्यक सेवाओं को चक्काजाम से छूट दी गई थी, लेकिन उत्साहित विहिप कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर इन्हें भी जाम में फंसाए रखा। ऐसी सूचनाएं भी मिली हैं कि कई स्थानों पर निर्धारित समय बीतने के बावजूद चक्काजाम समाप्त नहीं किया गया। लगभग आधा दर्जन स्थानों पर रेल रोकने का भी प्रयास किया गया। नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी एक्सप्रेस को ललितपुर के निकट कहीं रोका गया जिससे वह काफी विलंब से चल रही है। ग्वालियर में जाम समर्थकों ने एक आटो में आग लगा दी जिस पर समय रहते काबू पा लिया गया। भोपाल में 11, इंदौर में 40, जबलपुर में 30, रीवा में 10 एवं ग्वालियर में 12 से अधिक स्थानों पर चक्काजाम की खबरें हैं। मध्यप्रदेश से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गो पर विहिप कार्यकर्ताओं ने चक्काजाम किया, जिससे वहां ट्रकों बसों एवं अन्य वाहनों की लंबी कतारें लग गई।
सूत्रों के अनुसार इंदौर में गड़बड़ी की आशंका के चलते चक्काजाम की खासतौर पर वीडियोग्राफी करायी गई, ताकि जरूरत पड़ने पर हुडदंगियों को आसानी से पहचान कर पकड़ा जा सके। चक्काजाम के दौरान शहर के कुछ इलाकों से हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा काम पर जा रहे लोगों से हुज्जत और हाथापाई की खबरें आई। हालांकि पुलिस के आला अफसरों के मुताबिक इस दौरान किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है।
गौरतलब है कि तीन जुलाई को विश्व हिंदू परिषद और भाजपा द्वारा इसी मुद्दे पर बुलाए गए भारत बंद के दौरान इंदौर में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। हिंसा में आठ लोग मारे गए थे, जबकि तीस से ज्यादा व्यक्ति घायल हो गए थे।
बाघ एक्सप्रेस रोकी
लखनऊ। अमरनाथ भूमि विवाद को लेकर विहिप कार्यकर्ताओं ने उत्तार प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बादशाह नगर रेलवे स्टेशन पर कुछ देर के लिए बाघ एक्सप्रेस ट्रेन को रोका और हुसैनगंज क्षेत्र में कुछ देर चक्काजाम कर विरोध व्यक्त करते हुए नारेबाजी की। पुलिस ने विहिप के लगभग एक दर्जन कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया है।
पटना में सड़क व रेल यातायात प्रभावित
पटना। पटना में आज सुबह नौ बजे सगुना मोड़ पर केसरिया कपड़े पहने और हाथों में डंडे लिए विहिप, बजरंग दल व भाजपा के कार्यकर्ताओं ने चक्का जाम कर दिया जिससे मार्ग पर वाहनों का आवागमन प्रभावित हुआ। आंदोलनकारियों ने पटना हवाईअड्डे से कुछ दूरी पर स्थित आशियाना मोड़ पर भी चक्का जाम कर दिया। इससे पटना-दानापुर मुख्य मार्ग पर यातायात बाधित हो गया और वाहनों की लंबी कतार लग गई। सरकारी सूत्रों के मुताबिक पटना के फुलवारीशरीफ रेलवे स्टेशन पर प्रदर्शनकारियों के रेलवे पटरी पर धरना देने से ट्रेनों का करीब 20 मिनट तक परिचालन बाधित रहा। बाद में पुलिस के हस्तक्षेप से स्थिति सामान्य हुई।
मुंबई में यातायात बाधित
मुंबई। अमरनाथ भूमि स्थानांतरण विवाद को लेकर विहिप तथा बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने महानगर मुंबई तथा नवी मुंबई में कुछ स्थानों पर यातायात को बाधित किया। नवी मुंबई में विहिप तथा बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने वाहनों का रास्ता रोकने के लिए सड़कों पर पुराने टायर डाल दिए और उनमें आग लगा दी।
जालंधर में रेल व सड़क यातायात अवरुद्ध
जालंधर। राष्ट्रव्यापी चक्का जाम के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग सहित जिले के अनेक स्थानों पर आज सड़क और रेल यातायात दो घंटे तक रुका रहा। प्रदर्शनकारी पीएपी चौक और रामा मंडी चौक में इकट्ठे हुए तथा उन्होंने भारी बारिश में भी यातायात अवरुद्ध किया। इससे आनेजाने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। लोग अपने वाहनों में दो घंटे तक फंसे रहे।
(दैनिक जागरण , 14 August 2008)

Monday, August 11, 2008

जम्मू के साथ सौतेलापन

अमरनाथ मामले में आंदोलनरत जम्मू की जनता का दर्द बयान कर रहे हैं संजय गुप्त

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा के निर्देश पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थाई रूप से दी गई भूमि का आवंटन रद्द होने के बाद से जम्मू संभाग की जनता द्वारा शुरू किया गया आंदोलन अभी भी थमता नजर नहीं आ रहा। चूंकि जिस समय यह आवंटन रद्द किया गया उस समय केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था और संप्रग सरकार खुद को बचाने में लगी हुई थी इसलिए जम्मू के उग्र आंदोलन की ओर ध्यान नहीं दिया गया। विडंबना यह रही कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने और इस तरह राज्य की कमान केंद्रीय सत्ता के हाथों में आने के बाद भी जम्मू की अनदेखी की गई। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन इसलिए लगाना पड़ा, क्योंकि गुलाम नबी आजाद सरकार द्वारा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन के सवाल पर सत्ता में साझीदार पीडीपी ने समर्थन वापस ले लिया था। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन का कश्मीर घाटी में जैसा विरोध हुआ उससे देश का हिंदू समाज पहले ही आहत था। रही-सही कसर भूमि आवंटन का फैसला रद्द होने से पूरी हो गई। इस घटनाक्रम पर केंद्र सरकार या तो मौन धारण किए रही या फिर गुलाम नबी आजाद और एनएन वोहरा के फैसलों पर सहमति जताती रही। चूंकि जम्मू की जनता पिछले 60 वर्षो से राज्य और केंद्र सरकार की उपेक्षा से त्रस्त थी इसलिए भूमि आवंटन को रद्द करने के अनुचित फैसले ने उसके संयम का बांध तोड़ दिया। वहां पिछले लगभग 40 दिनों से धरना-प्रदर्शन और बंद का सिलसिला कायम है। जम्मू के लोग इतना अधिक कुपित है कि वे क‌र्फ्यू और सेना की भी परवाह नहीं कर रहे है।
केंद्र सरकार के लिए यह आवश्यक था कि वह जम्मू की नाराजगी दूर करने के लिए आगे आती, लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। इससे वहां के लोगों का गुस्सा और बढ़ता चला गया। इस गुस्से को पुलिस के दमनकारी रवैये ने भी बढ़ावा दिया। इस दमनचक्र के चलते वहां अनेक लोग मारे गए। इन मौतों ने लोगों के गुस्से को भड़काया और उन्होंने श्रीनगर राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया। केंद्र की नींद तब खुली जब जम्मू के आंदोलन की प्रतिक्रिया कश्मीर घाटी में भी होने लगी और वहां के व्यापारी मुजफ्फराबाद कूच की धमकी देने लगे। समस्या समाधान के नाम पर केंद्र सरकार ने एक माह बाद सर्वदलीय बैठक तो बुलाई, लेकिन ऐसा कुछ भी करने से इनकार किया जिससे जम्मू की जनता का आक्रोश कम होता। चूंकि जम्मू के लोगों को बिना कोई आश्वासन दिए वहां एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का निर्णय लिया गया इसलिएउसका विरोध होना स्वाभाविक है और उसके माध्यम से कोई नतीजा निकलने के आसार भी कम हैं।
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद से ही जम्मू संभाग के लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। कश्मीर घाटी को खुश करने के लिए अनुच्छेद 370 का प्रावधान तो बनाया ही गया, उसे अन्य अनेक विशेष सुविधाएं भी प्रदान की गई। केंद्रीय सहायता का अधिकांश हिस्सा कश्मीर घाटी पर खर्च होता है। इसकी एक वजह जम्मू-कश्मीर शासन और प्रशासन में घाटी के लोगों का वर्चस्व होना है। 1980 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद ने सिर उठाया तो वहां के कश्मीरी पंडितों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। वे अभी भी जम्मू संभाग के विभिन्न इलाकों में शरणार्थी जीवन बिताने के लिए विवश है। उनकी घर वापसी की परवाह न तो राज्य सरकार कर रही है और न ही केंद्र सरकार।
कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद कश्मीरियत का चेहरा ही बदल गया। घाटी का न केवल मुस्लिमकरण हो गया है, बल्कि वह मुस्लिम वर्चस्व वाली भी हो गई है। अब स्थिति यह है कि घाटी के इस्लामिक चरित्र की दुहाई देकर ही नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और हुर्रियत कांफ्रेंस सरीखे संगठन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन न देने की वकालत कर रहे है। यह तब है जब जमीन का आवंटन अस्थाई रूप से होना है और उसका इस्तेमाल वर्ष में महज दो माह के लिए किया जाना है। यह वन विभाग की बंजर जमीन है, जिसे न तो कोई इस्तेमाल करता है और न वहां कुछ पैदा होता है। इस जमीन पर अमरनाथ तीर्थ यात्रियों के लिए अस्थाई शिविर बनाने की योजना थी, ताकि उन्हे मौसम की मार से बचाया जा सके। घाटी के लोगों को यह भी मंजूर नहीं। इस नामंजूरी के खिलाफ ही जम्मू के लोग असंतोष से भर उठे है। वे इसलिए और गुस्से में है, क्योंकि केंद्र सरकार के साथ-साथ देश के ज्यादातर राजनीतिक दल भी उनकी भावनाओं की उपेक्षा कर रहे है।
केंद्रीय सत्ता जानबूझकर इस तथ्य की अनदेखी कर रही है कि जम्मू का आंदोलन केवल अमरनाथ संघर्ष समिति का आयोजन नहीं है और न ही यह भाजपा के नेतृत्व में चल रहा है। यह आंदोलन तो जम्मू की जनता का है। शायद इसी कारण कांग्रेस के सांसद भी एनएन वोहरा को हटाने की मांग कर रहे है। दरअसल अब जम्मू की जनता ने केंद्र सरकार से अपनी अनवरत उपेक्षा का हिसाब लेने का निश्चय कर लिया है। ये वही लोग है जो आतंकवाद के चरम दौर में भी शांत बने रहे, लेकिन अब और अधिक उपेक्षा सहन करने के लिए तैयार नहीं। जम्मू की जनता को राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार पर भी भरोसा नहीं। आज जो सवाल जम्मू की जनता का है वही शेष देश का भी है कि आखिर कश्मीर घाटी के अलगाववादियों का तुष्टिकरण कब तक और किस हद तक किया जाएगा? क्या पंथनिरपेक्षता का मतलब सिर्फ हिंदुओं की उपेक्षा करना है? कुछ बुद्धिजीवियों ने यह तर्क दिया है कि जब जम्मू-कश्मीर सरकार अमरनाथ तीर्थ यात्रियों की देखभाल खुद करने के लिए तैयार है तो फिर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन की जरूरत ही क्या रह जाती है? इन बुद्धिजीवियों को यह बताना होगा कि यदि महज सौ एकड़ भूमि दो महीने के लिए श्राइन बोर्ड के पास बनी रहे तो उससे कौन सा पहाड़ टूट जाएगा? उन्हे यह पता होना चाहिए कि जब तक वैष्णो देवी जाने वाले तीर्थ यात्रियों की देखरेख का काम राज्य सरकार के हाथों में रहा तब तक वहां कैसी अराजकता और अव्यवस्था रहा करती थी? क्या ये बुद्धिजीवी यह चाहते है कि अमरनाथ तीर्थयात्री पहले की तरह अव्यवस्था भोगते रहे?
यदि केंद्र सरकार शिवराज पाटिल के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू भेजने के पहले यह संकेत भर दे देती कि वह अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन वापस सौंपने पर विचार करेगी तो इससे जम्मू के साथ-साथ शेष देश के हिंदुओं की आहत भावनाओं पर मरहम लगता, लेकिन उसने इस पर विचार करने से साफ इनकार कर दिया। लगता है कि उसे यदि किसी की परवाह है तो सिर्फ घाटी के अलगाववादियों की। अगर ऐसा नहीं है तो वह ऐसे संकेत क्यों दे रही है कि जम्मू और शेष देश के लोग यह भूल जाएं कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को कभी कोई जमीन देने का फैसला किया गया था। इस फैसले पर कश्मीर घाटी का नेतृत्व करने वाले लोगों ने जिस छोटी मानसिकता का परिचय दिया, जिसमें महबूबा मुफ्ती से लेकर फारुख अब्दुल्ला तक शामिल है उससे आम हिंदू कुपित भी है और आहत भी। वे स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे है। जम्मू के लोग इस अपमान को सहने के लिए तैयार नहीं। हो सकता है कि जम्मू के लोगों का आंदोलन पुलिस और सेना की सख्ती के कारण थोड़ा धीमा पड़ जाए, लेकिन उनकी आहत भावनाएं राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर गहरा असर डालेंगी।( देनिक जागरण, ११ अगस्त २००८)

Friday, August 8, 2008

देश को झकझोरता जम्मू

जम्मू के आंदोलन को राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने वाला बता रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित

जम्मू जल रहा है। जम्मू आग की आंच से दिल्ली में दहशत है। प्रधानमंत्री ने सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक की। तय हुआ कि सर्वदलीय टीम जम्मू जाएगी, जायजा लेगी, लेकिन इससे होगा क्या? हिंदू भावना के अपमान का लावा अर्से से पूरे देश में सुलग रहा है। पहले प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय संपदा पर मुसलमानों का पहला अधिकार बताया, हिंदू आहत हुए। फिर केंद्र ने श्रीराम को कल्पना बताया, पूरा देश भभक उठा। सरकारें आस्था प्रतीकों का इतिहास बताने का अधिकार नहीं रखतीं। मनमोहन सरकार ने अनाधिकार चेष्टा की। उसने रामसेतु को तोड़ने का आरोप भी राम पर मढ़ दिया गया। हिंदू मन की आग फिर भभकी। हज यात्रियों को ढेर सारी सुविधांए हैं, लेकिन अमरनाथ यात्रियों के विश्राम के लिए दी गई 40 हेक्टेयर जमीन भी अलगाववादियों के बर्दास्त के बाहर हो गई। वे आंदोलन पर उतारू हुए। उनकी बेजा मांग और आंदोलन के विरूद्ध सेना नहीं बुलाई गई। उल्टे केंद्र और राज्य ने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन जायज मांग वाले जनआंदोलन को कुचलने के लिए सेना भी बुलाई गई। पुलिस बल टूट पड़ा है। क‌र्फ्यू है, देखते ही गोली मारने के आदेश हैं, पुलिस और सेना की फायरिंग है। मीडिया पर पाबंदी है। मौलिक अधिकार रसातल में हैं। अघोषित आपातकाल है बावजूद इसके जनसंघर्ष जारी है।
सर्वदलीय बैठक ने समस्या का सांप्रदायिकीकरण न करने की अपेक्षा की है। सांप्रदायिक तुष्टीकरण की राजनीति ही सारे फसाद की जड़ है। बुनियादी सवाल यह है कि पंथनिरपेक्ष संविधान की पंथनिरपेक्ष सरकारें हज जैसी मजहबी यात्रा पर राजकोष लुटाती हैं तो अमरनाथ यात्रियों को मात्र 40 हेक्टेयर जमीन भी अस्थाई रूप से देने में अलगाववादियों के साथ क्यों खड़ी हो जाती हैं? जम्मू कश्मीर मंत्रिपरिषद ने ही सर्वसम्मति से जमीन देने का निर्णय लिया था। बैठक में कांग्रेस और पीडीपी के मंत्री भी शामिल थे। जमीन का एलाटमेंट अस्थाई था। यात्रा के बाद जमीन वन विभाग को लौट जानी थी। श्राइन बोर्ड वहां अस्थाई विश्राम ढांचा ही बना सकता था, लेकिन अलगाववादियों, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस आदि ने दुष्प्रचार किया कि बोर्ड कश्मीर के बाहरी 'भारतीयों' के लिए आवास बना रहा है। यह भी कि कश्मीरी लोगों को खत्म करने के लिए यहां इसराइल बनाया जा रहा है। जम्मू कश्मीर विधानसभा में तद्विषयक विधेयक पर कोई विरोध नहीं हुआ। इसलिए सरकारी आदेश की वापसी आसान नहीं थी। केंद्र ने नए राज्यपाल वोहरा को मोहरा बनाया। उन्होंने बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत से जमीन वापस की। उन्होंने बोर्ड का संविधान नहीं माना। संविधान के मुताबिक किसी निर्णय के लिए 5 सदस्यों के कोरम की जरूरत थी। वोहरा ने सारा फैसला अकेले लिया।
भाजपा और आंदोलनकारी राज्यपाल वोहरा की वापसी चाहते हैं। केंद्र ने वोहरा को हटाने की मांग ठुकरा दी है। उसने जमीन वापसी का कोई वादा नहीं किया। केंद्र तुष्टीकरण नीति पर अडिग है। प्रधानमंत्री ने दलीय संवाद बढ़ाया है,लेकिन यह मसला दलीय असहमति या सहमति का राजनीतिक मुद्दा नहीं है। राजनाथ सिंह ने अमरनाथ जनसंघर्ष समिति से सीधी वार्ता का आग्रह किया। उन्होंने इसी मुद्दे पर 11 अगस्त से प्रस्तावित पार्टी के आंदोलन को रोकने की मांग ठुकरा दी। यह मसला समूचे विश्व के हिंदुओं, एशिया महाद्वीप और यूरोप में फैले शिव श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है। शिव विश्व आस्था हैं। लंदन विश्वविद्यालय के इतिहासविद् एएल बाशम ने दि वंडर दैट वाज इंडिया में शिव को शांति, संहार और नृत्य का देवता बताया है। गांधार से प्राप्त सिक्कों में शिव प्रतीक वृषभ पाया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी शिव परंपरा की चर्चा की है। सीरिया के शिल्प में वे विद्युत-देवता है। इस सबके हजारों वर्ष पहले वे ऋग्वेद में हैं, यजुर्वेद में हैं, अथर्ववेद में भी हैं।
केंद्र समग्रता में नहीं सोचता। वोट बैंक बाधा है। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन अस्थाई अनुच्छेद 370 के जरिये कश्मीरी अलगाववाद को संवैधानिक मान्यता है। नेहरू ने इस राज्य का अलग प्रधान अलग निशान (ध्वज) और अलग विधान भी माना था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी के खिलाफ शहीद हो गये। इसके पहले आजादी (15 अगस्त 1947) के ढाई माह बाद ही पाकिस्तानी कबाइली आक्रमण हुआ। जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ। पाकिस्तानी फौजें भीतर तक घुस आर्इं। भारतीय फौजों ने दौड़ाया, पीटा। नेहरू ने युद्धविराम माना। संयुक्त राष्ट्र को मिमियाती अर्जी दी गई। तबसे ही जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय समस्या है। पाप कांग्रेस ने किया, सजा पूरे राष्ट्र को मिली। घाटी रक्त रंजित रहती है। पाकिस्तानी सिक्के चलाने के प्रस्ताव आते हैं। पाकिस्तान जिंदाबाद होता है। बावजूद इसके फौज को हुक्म नहीं मिलता, लेकिन अमरनाथ मसले पर आंदोलित हिंदुओं के खिलाफ फौज लगी है। जम्मू का सुख और दुख भारत का सुखदुख है। जम्मू में वैष्णव देवी हैं, अमरनाथ हैं। जम्मू कश्मीर में ही पिप्पलाद हुए। विश्वविख्यात दर्शन ग्रंथ प्रश्नोपनिषद इन्हीं के आश्रम में हुई अखिल भारतीय बहस से पैदा हुआ। जम्मू का संघर्ष राष्ट्रीय उत्ताप है। समस्या को समग्रता में विचार करने की जरूरत है। यही समय है कि अलगाववादी अनुच्छेद 370 के खात्मे पर भी विचार होना चाहिए। जम्मू जनसंघर्ष को व्यापक राष्ट्रीय समर्थन मिला है। सेना और पुलिस की गोलियों से निहत्थों का टकराना ऐतिहासिक कार्रवाई है। बार-बार के अपमान से आहत हिंदू इस दफा टकरा गए हैं। जम्मू निवासी बहुत पहले से उपेक्षित और सरकार पीड़ित हैं। घाटी के अलगाववादी सरकार और प्रशासन पर भारी पड़ते हैं। सरकार उनकी हर बात मान लेती है। जम्मू और लेह के निवासी दोयम दर्जे के नागरिक हैं। निर्वासित कश्मीरी पंडित बिलख रहे हैं। इसलिए इस दफा 'लड़ो और मरो' जैसी स्थिति है। निहत्थे आंदोलनकारी लगभग एक माह से लड़ रहे हैं। आंसूगैस, सरकारी बर्बरता, गोलीबारी, क‌र्फ्यू और सेना की गोली उनमें खौफ नहीं पैदा करते। यहां मनोविज्ञान और वैज्ञानिक भौतिकवाद काम नहीं करता। सबका मन अमरनाथ हो गया है। केंद्र तुष्टिकरण के रास्ते पर है। हिंसक दमन के बावजूद निर्भीक पत्रकार मोर्चे पर हैं। केंद्र दुस्सह दमन और हिंसा को राष्ट्रीय सत्य बनने से रोक रहा है।
मुसलमान भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं। उनके ईद, अजान और कुरान हिंदुओं में सम्मानित हैं लेकिन हिंदुओं की अयोध्या, काशी, मथुरा और वैष्णो देवी तथा अमरनाथ कट्टरपंथियों को अखरते हैं। अमरनाथ यात्रियों पर राकेट तनते हैं? हिंदू बुतपरस्त ही सही, लेकिन अपने सीने में कुरान और पुराण का सम्मान एक साथ लेकर चलते हैं। मलाल है कि मनमोहन सिंह औरंगजेब हो रहे हैं। हिंदू मानस की प्रकृति कुचालक है। समाज के एक हिस्से का संवेदन दूसरे हिस्से तक आसानी से नहीं पहुंचता। यहां राष्ट्रवाद की करेंट है, लेकिन छद्म सेकुलरवाद की बाधाएं हैं। दुनिया के मुसलमान डेनमार्क के कार्टूनिस्ट से खफा थे, भारत के भी हुए। अमरनाथ मामले को लेकर राष्ट्र खफा है, लेकिन गुस्सा यहां फुटकर और वैयक्तिक रहता है। चूंकि बर्दाश्त की हद होती है इसीलिए इस दफा का आंदोलन ऐतिहासिक है और पूरे देश में रोष है। बहुसंख्यक वोटों के धु्रवीकरण के खतरे हैं, पर यह आंदोलन वोटवादी नहीं है। आंदोलनकारियों ने राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने का काम पूरा किया है। (दैनिक जागरण, ८ अगस्त २००८)

Thursday, August 7, 2008

जम्मू: महिलाओं-बच्चों ने भी कर्फ्यू तोड़ा,अबतक 8 मृत


जम्मू। जम्मू-कश्मीर में ‘श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड’ (एसएएसबी) को आवंटित भूमि पुन: दिए जाने की मांग को लेकर जारी प्रदर्शनों के दौरान कठुआ जिले में कल भी प्रदर्शनकारियों पर सेना द्वारा चलाई गई गोली से एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसी के साथ इस विवाद में मारे गए लोगों की संख्या बढ़कर अब आठ हो गई है।

सूत्रों ने बताया कि सेना की गोलीबारी से नाराज प्रदर्शनकारियों ने मृतक का शव सड़क पर रखकर जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम लगा दिया और वहां धरना देकर बैठ गए जिससे सेना के 50 वाहन वहां फंस गए।

रक्षा प्रवक्ता एसडी. गोस्वामी ने सेना की ओर से की गई गोलीबारी की पुष्टि करते हुए कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात किए गए कार्यकारी मजिस्ट्रेट के आदेश पर सेना ने गैर कानूनी रुप से पल्ली मोर्च पर एकत्र हुए लोगों पर गोली चलाई, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गया।

गोस्वामी ने कहा कि बेकाबू भीड़ ने जम्मू-पठानकोट मार्ग को जाम कर दिया था और पथराव शुर कर दिया, जिससे मजबूर होकर सेना को गोली चलानी पड़ी। मृतक नरेन्द्र सिंह पास के ही गांव का निवासी था तथा उसके पेट में गोली लगी।

इस बीच श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि पुन: देने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों द्वारा जम्मू के कई स्थानों पर कर्फ्यू के उल्लंघन का सिलसिला कल भी जारी रहा। यहां से 13 किलोमीटर दूर नगरोठा में सरकारी कार्यालय को आग लगा रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई के दौरान घायल हुए एक युवक को भी गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

सांबा से प्राप्त रिपोर्टों में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व विधायक मंजीत सिंह के आवास पर भी हमला किया। जबकि रायपुर सतवारी क्षेत्र में कर्फ्यू की अवहेलना करते हुए हजारों लोगों ने पुल पर से होकर शहर की तरफ बढ़ने की कोशिश की और जब उन्हें रोका गया तो वे तवी नदी को पार करके शहर में जाने लगे।

इसी तरह महिलाओं और बच्चों सहित हजारों लोगों के अलग-अलग समूहों ने कर्फ्यू का उल्लंघन कर शहर के गांधीनगर, त्रिकुटा नगर, गंगयाल, डिगयाना, बंतलाब और मुठी क्षेत्रों में जुलूस निकाले और बम-बम भोले के नारे लगाए। (वार्ता, अगस्त २००८)

जम्मू: सेना की फायरिंग में एक की मौत

जम्मू। अमरनाथ भूमि स्थानांतरण मुद्दे पर जम्मू क्षेत्र में अशांति बुधवार को और बढ़ गई तथा प्रदर्शनकारियों द्वार सेना के काफिले को निशाना बनाने के कारण सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक व्यक्ति मारा गया जबकि तहसीलदार के कार्यालय को फूंक दिया गया।

जम्मू में भूमि स्थानांतरण मुद्दे पर जारी विवाद के बीच अमरनाथ श्राइन बोर्ड के आठ सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया ताकि बोर्ड को पुनगर्ठित कर गतिरोध का समाधान निकालने में मदद की जा सके। प्रदर्शनकारियों ने जम्मू क्षेत्र की विभिन्न जगहों पर र्फ्यू का उल्लंघन किया जबकि कई प्रदर्शनकारी तवी नदी को पार कर जम्मू के उन संवेदनशील इलाकों में पहुंच गए जहां सेना को तैनात किया गया है।

जम्मू और कठुआ जिलों में हिंसा की ताजा घटनाओं में 18 लोग घायल हो गए। मौजूदा आंदोलन का नेतृत्व कर रही अमरनाथ संघर्ष समिति ने अपने रुख से हटने से इनकार करते हुए हुए कहा कि श्राइन बोर्ड को करीब 100 एकड़ जमीन का स्थानांतरण रोकने के सरकार के आदेश वापस लिए जाने तक वह किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है।

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि जम्मू पठानकोट राजमार्ग पर कठुआ कस्बे से करीब दस किलोमीटर दूर पाली मोड़ पर प्रदर्शनकारियों ने घाटी के लिए जा रहे सामान की आपूर्ति की सुरक्षा कर रहे सेना के काफिले को रोका। प्रदर्शनकारियों ने वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया जिसके बाद सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी। सेना की गोलियों से एक व्यक्ति मारा गया और कई अन्य घायल हो गए।

सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में 12 लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है। प्रदर्शनकारियों ने आज जम्मू क्षेत्र के खोउर, बिस्नाह, गंज्ञाल, मुथी और उधमपुर में र्फ्यू का उल्लंघन किया और अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन वापस दिलवाने की मांग की। उधमपुर नगर में चार सौ आंदोलनकारियों ने र्फ्यू में दी गई तीन घंटे की ढील के दौरान रैली निकाली। प्रदर्शनकारियों ने कल रात नगर में मशाल जुलूस निकाला था।

सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में दर्जनों लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है।(दैनिक जागरण, ७ अगस्त २००८)

Wednesday, August 6, 2008

जम्मू: युवक आत्मघाती दस्ते बनाएंगे

जम्मू। दक्षिणी कश्मीर में ‘श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड’ को जमीन वापस किए जाने के मुद्दे पर प्रदर्शनकारी युवकों की हत्या का बदला लेने के लिए सांबा के करीब 24 युवकों ने आत्मघाती दस्तों के गठन का निर्णय लिया है।

पुलिस फायरिंग में अपने दो साथियों के मारे पर गुस्से का इजहार करते हुए करीब 24 स्थानीय युवकों ने तिरंगा झंडा थामे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बरता का बदला लेने का संकल्प व्यक्त किया।

सांबा में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी में दो स्थानीय युवक संजीव सिंह तथा सन्नी पाधा मारे गए थे तथा करीब चौबीस लोग घायल हो गए थे। (IBN7, 6 August 2008)

जम्मू को हल्के में लेना हलक में फंसा

नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाले हालात में फंस गई है। पहले राज्यपाल व खुफिया रिपोर्टो पर भरोसा कर जम्मू के आंदोलन को हल्के में लेना अब उसके हलक में अटक गया है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुला तो ली है, लेकिन मंगलवार तक सरकार के पास कोई पुख्ता फार्मूला नहीं था। जम्मू-कश्मीर से लौटकर गृह सचिव मधुकर गुप्ता और रक्षा सचिव विजय सिंह ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल के साथ प्रधानमंत्री को हालात का पूरा ब्यौरा दिया।

सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बीच बढ़ती जा रही खाई से तो केंद्र सरकार चिंतित है ही साथ में उसे आशंका है कि इन हालात का फायदा उठाकर आईएसआई अपने मंसूबों को अंजाम न दे जाए। सीमा सुरक्षा बल के पुलिस महानिदेशक एके मित्रा ने अभी सोमवार को ही आशंका जताई थी कि आईएसआई भारतीय सीमा में 800 लोगों की घुसपैठ कराने की कोशिश कर रही है। वैसे भी यही समय है जबकि घुसपैठ में बढ़ोत्तरी होती है।

जम्मू में भड़के आंदोलन पर राज्यपाल एनएन वोहरा, उनके प्रशासन और राज्य में मौजूद खुफिया तंत्र की रिपोर्टो से केंद्र का भरोसा अब पूरी तरह उठ चुका है। यही कारण है कि सर्वदलीय बैठक में समस्या के निदान पर चर्चा से पहले प्रधानमंत्री बिल्कुल सटीक हालात से वाकिफ रहना चाहते हैं। इसके मद्देनजर ही उन्होंने दो शीर्ष अधिकारियों गृह सचिव और रक्षा सचिव को जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने भेजा।

मंगलवार को दोनों अधिकारियों ने लौटकर गृह मंत्री की मौजूदगी में प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। दरअसल, राज्यपाल वोहरा व उनके प्रशासन ने जो रिपोर्ट दी थी कि जम्मू में आंदोलन राजनीतिक है और ज्यादा नहीं खिंच सकेगा।

अब जम्मू और उसके बाहर तो हालात न सिर्फ उग्र हो गए हैं, बल्कि आंच पंजाब के कुछ हिस्सों में भी पहुंच रही है। केंद्र की चिंता है कि जम्मू में रास्ता बंद होने के साथ-साथ अगर पंजाब से भी उन्हें सहयोग मिला तो हालात और खराब होंगे। उधर कश्मीर क्षेत्र में भी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है। इन पूरे हालात में सेना से लेकर अ‌र्द्धसैनिक बलों का ध्यान आंदोलन से निपटने में लगा है। केंद्र को चिंता है कि इन हालात का फायदा उठाकर पाकिस्तान घुसपैठ बढ़ा सकता है जो और भी ज्यादा घातक होगी। सरकार की चिंता यह भी है कि घाटी में हालात सामान्य करने की उसकी सालों की कमाई एक महीने के आंदोलन में कहीं वह गंवा न बैठे।

उधर जम्मू में तात्कालिक तौर पर शांति के लिए राज्यपाल एनएन वोहरा को हटाना एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है, लेकिन केंद्र दूसरी चिंता में घुला जा रहा है। घाटी में अलगाववादियों के बीच वोहरा की अच्छी छवि है और वह उन्हें पसंद भी करते हैं। सूत्रों के अनुसार पूर्व राज्यपाल एसके सिन्हा के बाद वोहरा को राज्यपाल बनाने की पैरवी तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और पीडीपी प्रमुख मुफ्ती मुहम्मद सईद समेत कश्मीर के कई अलगाववादी नेताओं ने भी की थी। ऐसे में केंद्र को चिंता है कि जम्मू को शांत करने के चक्कर में कहीं घाटी में गड़बड़ न हो जाए। हालांकि, केंद्र भी मान रहा है कि जम्मू में हालात काबू करने का सबसे आसान तरीका वोहरा की विदाई ही है।(दैनिक जागरण , ६ अगस्त २००८)

जम्मू में केंद्र की तटस्थता

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड जमीन मामले के प्रति केंद्र की उदासीनता को घातक मान रहे हैं निशिकान्त ठाकुर

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी निर्माण के लिए भूमि के आवंटन और फिर अलगाववादी एवं सांप्रदायिक ताकतों के दबाव में उसके निरस्तीकरण के मसले पर जम्मू में अब हालात विस्फोटक हो चुके है। आने वाले दिनों में क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ध्यान रहे, इसी मसले पर इंदौर में उग्र प्रदर्शन हो चुके है। यहां तक कि क‌र्फ्यू लगाने की नौबत भी वहां आ चुकी है। देश के दूसरे शहरों में भी इस पर शांतिपूर्ण तरीके से असंतोष जताया जा चुका है। यह अलग बात है कि शांतिपूर्ण ढंग से विरोध जताने का अब किसी सरकार के लिए कोई मतलब नहीं रह गया है। शायद यही वजह है कि जम्मू में इस मामले ने इतना तूल पकड़ा और आखिरकार यह भयावह रूप लिया। हालांकि शुरुआती दौर में वहां भी जनता शांतिपूर्ण ढंग से ही विरोध प्रदर्शन कर रही थी, पर जब पुलिस ने बल प्रयोग किया और श्री अमरनाथ संघर्ष समिति के शहीद कार्यकर्ता कुलदीप वर्मा के शव के साथ बदसलूकी की तो जनता इसे बर्दाश्त नहीं कर सकी। अब अगर लोग यह सवाल उठा रहे है कि क्या बार-बार और हर तरह से अपमानित किए जाना ही जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं की नियति है, तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता है।

एक मामूली भूखंड, जो साल में नौ-दस महीने तो बर्फ से ढके रहने के कारण किसी काम लायक नहीं रहता, को लेकर शुरू हुआ यह मसला अब जम्मू के लोगों की अस्मिता का सवाल बन चुका है। इस पूरे मामले और जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक-सामाजिक इतिहास पर नजर डालें तो जाहिर हो जाता है कि श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन व निरस्तीकरण तथा कुलदीप के शव के अपमान के मसले ने इसमें सिर्फ घी या पेट्रोल का काम किया है। असल आग बहुत पहले से सुलगती आ रही है। तबसे जबसे जम्मू संभाग ने यह महसूस किया कि राजनीतिक तौर पर उसके साथ लगातार पक्षपात होता चला आ रहा है। यह पक्षपात उसके साथ केवल इसलिए हो रहा है कि जम्मू संभाग हिंदू बहुल है और वहां की सरकार को वहां हिंदुओं का होना ही खटक रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि दो राजनीतिक दलों द्वारा वहां के संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द बाकायदा अभियान चला कर हटवाया गया। राज्य में शरीयत कानून लागू करने संबंधी विधेयक को मंजूरी भी इन्हीं राजनीतिक दलों के कारण मिली थी। हद तो यह है कि ये दोनों दल इसके बाद भी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते है।

आज जम्मू की जनता बार-बार सवाल उठा रही है कि श्राइन बोर्ड को अस्थायी तौर पर भूमि आवंटन को लेकर कश्मीर में अलगाववादियों ने तोड़फोड़ से लेकर आगजनी तक सब कुछ कर डाला और तब भी वहां क‌र्फ्यू नहीं लगाया गया। जबकि यहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन को उग्र होने के लिए मजबूर पुलिस ने किया और क‌र्फ्यू भी लगा दिया। इंसाफ का यह कौन सा तरीका है? क्या इससे अलग-अलग संभागों के बीच फर्क करने की सरकारी नीति उजागर नहीं होती है? जम्मू के लोगों का आरोप है कि आवंटित जमीन सिर्फ इसलिए वापस ली गई ताकि कश्मीर के अलगाववादी और पाकिस्तानपरस्त ताकतों को संतुष्ट किया जा सके। जम्मू के प्रदर्शनकारियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार भी इसीलिए किया गया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुलिस ऐसा बर्बरतापूर्ण दमन तब तक कर ही नहीं सकती जब तक कि उसे सरकार की ओर से इसके लिए शह न मिली हो। अब यह बात सिर्फ जम्मू ही नहीं, पूरे देश के लोग कह रहे है और यह घटना पूरे देश में असंतोष का कारण बन रही है। इस मामले में राज्यपाल एन.एन. वोहरा की भूमिका को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसीलिए जनता में उनके खिलाफ बेहद आक्रोश है।

सच तो यह है कि जायज मांगों को लेकर उठे जनाक्रोश को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकता है। अभी भले ही वहां गईं उमा भारती व ऋतंभरा जैसी नेताओं को बोलने भी नहीं दिया गया, पर जनता को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकेगा। इसके लिए संघर्ष में रोज कई लोग घायल भी हो रहे है। लोगों के आक्रोश का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक सात लोग इस आंदोलन में शहीद हो चुके हैं, फिर भी लोग क‌र्फ्यू तोड़ कर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस किस हद तक जा रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पत्रकारों को भी काम के लिए आने-जाने नहीं दिया जा रहा है और प्रेस फोटोग्राफरों के कैमरे तक तोड़ दिए जा रहे है। कुल मिलाकर इमरजेंसी जैसे हालात बना दिए गए है। इसके बावजूद जनता की शक्ति और जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे समय में जबकि दुकानें नहीं खुल रहीं है और लोगों को खाने-पीने की चीजें भी नहीं मिल पा रही है, तो भी भारी भीड़ प्रदर्शन के लिए निकल रही है और इसमें बच्चे-बूढ़े व स्त्रियां सभी बेधड़क शामिल हो रहे है। आम जनता की दृढ़ इच्छाशक्ति का अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य काफी है। हैरत की बात है कि इस पर भी केंद्र सरकार इसे राजनीतिक शिगूफेबाजी मान रही है और ऐसा सोच रही है कि थोड़े दिन चल कर यह आंदोलन अपने आप थम जाएगा।

दरअसल जम्मू की जनता यह बात लंबे अरसे से महसूस करती आ रही है कि कश्मीर के लोग अपनी मांगें मनवाने के मामले में हमेशा उन पर भारी पड़ते रहे है। इसका कारण कुछ और नहीं, केवल वहां अलगाववादियों की बहुलता और उनका उग्र होना है। उग्र न होने के ही कारण कश्मीर संभाग से अधिकतम हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। अपने घर-खेत छोड़ कर अब वे दर-दर की ठोकरे खा रहे है और शरणार्थी बनने को विवश है। अब दूसरे राज्यों से आए मजदूर भी वहां से खदेड़े जा रहे है। हिंदू तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर भी अब वहां हमले किए जा रहे है। यह सब सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है।

जम्मू की जनता यह मानती है यह साजिश राजनीतिक स्तर पर भी की गई है। आखिर क्या कारण है कि क्षेत्रफल और आबादी में कश्मीर से काफी बड़ा होने के बावजूद जम्मू संभाग को लोकसभा में सिर्फ दो और विधानसभा में 37 सीटे मिली हुई है। जबकि छोटे होने के बावजूद कश्मीर संभाग को लोकसभा की तीन और विधानसभा की 46 सीटे प्राप्त है। उस पर तुर्रा यह कि यहां 2026 तक परिसीमन पर भी रोक लगा दी गई है। जम्मूवासी इसे अपने साथ राजनीतिक अन्याय का ज्वलंत उदाहरण ही नहीं, किसी बड़ी साजिश का हिस्सा भी मानते है।

सच तो यह है कि जम्मूवासियों का यह असंतोष अब बहुत गंभीर रूप लेता जा रहा है। यह स्थिति ज्यादा गंभीर इसलिए भी है कि इसी राज्य के एक और संभाग लद्दाख की जनता की सहानुभूति भी जम्मू के लोगों के साथ है। देश के बाकी हिस्सों के लोगों की भी पूरी सहानुभूति जम्मू की आम जनता के साथ है। यह और ज्यादा उग्र हो, इसके पहले बेहतर यह होगा कि केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप करे और पूरे मामले को नए सिरे से देखते हुए सही फैसला करे। वोटबैंक और तुष्टीकरण की चिंता छोड़कर इसे भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप और राष्ट्रीय अस्मिता के सवाल के रूप में देखने की कोशिश करे। अन्यथा इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले दिनों में केंद्र की इस भयावह तटस्थता को पक्षपात से ज्यादा खतरनाक माना जाएगा।(दैनिक जागरण, ५ अगस्त २००८)

उपेक्षित और असहाय जम्मू

जम्मू के साथ नीतिगत स्तर पर किए जाने वाले भेदभाव को रेखांकित कर रहे हैं तरुण विजय

एक माह से जम्मू दहक रहा है। सेना की गश्त, गोलीबारी, क‌र्फ्य के बीच गूंजते असंतोष के स्वर। आखिर भारत में देशभक्ति की कीमत घर से उजड़ना या जान देना क्यों हैं? पहले कश्मीरी पंडितों को सिर्फ इसलिए घर से निकाल बाहर किया गया, क्योंकि वे तिरंगे के प्रति निष्ठावान थे। इससे पहले जून 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर शासन के अंतर्गत रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु घोषित कर दी गई, क्योंकि वे कश्मीर में देशभक्ति का जज्बा बुलंद कर रहे थे। वे कहते थे कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ तिरंगा रहेगा और कोई झंडा नहीं। इस साल 23 जुलाई को 35 वर्र्षीय कुलदीप कुमार डोगरा ने देशभक्ति की आवाज बुलंद करते हुए अपनी जान दे दी। इस तरह जान देना अस्वीकार्य है, लेकिन कुलदीप के आत्मोसर्ग ने हिंदू हनन में सेक्युलर भूमिका को उजागर किया और जम्मू में एक अभूतपूर्व विरोध की लहर पैदा कर दी।

कुलदीप डोगरा की देह जम्मू कश्मीर पुलिस जबरदस्ती उठा ले गई और सुबह ढाई बजे शराब तथा टायर डालकर जलाने का प्रयास किया तो उसके गांव के लोग आ गए। आखिरकार कुलदीप की देह घरवालों को सौंपी गई। क्या मानवाधिकार वाले सिर्फ आतंकियों के अधिकारों पर बोलने का ठेका लिए हैं? जम्मू कश्मीर सरकार भारत की है या अन्य देश की? आखिर शेष देश में इसकी क्या प्रतिध्वनि हुई? ऐसा लगता है हमारी भारतीयता का समग्र फलक ही चटकने लगा है। कश्मीर के पांच लाख शरणार्थी अभी भी अपने देश में बेघर और अनाथ जैसे घूम रहे हैं। जम्मू का दृश्य बयान करना बहुत कठिन है। जो सड़कें तीर्थ यात्रियों और स्थानीय नागरिकों के आवागमन और काम-काज से भरी हुआ करती थीं आज वहां मीलों दूर तक भांय-भांय करता दहशत भरा सन्नाटा पसरा हुआ है। सैनिकों के बूटों की खट-खट आवाज कहीं-कहीं सन्नाटे को तोड़ती है। घरों में आटा नहीं है, चावल नहीं है, पानी नहीं है। खाना बनाना तक मुश्किल हो गया है। रोजमर्रा का सामान नहीं मिल रहा है। मुहल्लों के भीतर जाने पर सिर्फ फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं। जम्मू के नागरिक अब घर में भी जोर से बोलना मानो भूल गए हैं। बाजार बंद हैं, दिलों में मातम है। सब एक सवाल पूछ रहे हैं कि जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान का है या नहीं? अगर है तो वहां आज भी दो झंडे क्यों लहराए जाते हैं? आखिर क्यों भारतीय तीर्थ यात्रियों के लिए वह जमीन नहीं दी गई जो बंजर थी और जहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता। इसे स्वयं जम्मू कश्मीर सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को स्थानांतरित किया था। इस जमीन पर कोई स्थायी रूप से रहने वाला नहीं था। इस जमीन का उपयोग वर्ष में सिर्फ दो महीने के लिए होने वाला था और इसका लाभ स्थानीय कश्मीरी नागरिकों को मिलने वाला था? जम्मू कश्मीर में हिंदुओं के दो बड़े तीर्थ स्थान हैं-माता वैष्णो देवी और अमरनाथजी। इन दोनों यात्राओं पर हर वर्ष करीब 70 लाख से अधिक तीर्थ यात्री जाते हैं। वे रास्ते में करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। इसका पूरा लाभ जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को होता है। जिहादियों के कारण जम्मू कश्मीर में पर्यटक आने वैसे ही कम हो गए हैं। अगर हिंदू तीर्थ यात्री जम्मू कश्मीर न आएं तो वहां की सारी अर्थव्यवस्था ठप्प हो सकती है। अभी भी जम्मू-कश्मीर को शेष देश को मिलने वाले अनुदानों से औसतन दस गुना ज्यादा अनुदान और सहायता मिलती है। अपनी हर गलती का दोष वह भारत सरकार पर थोपते हैं यानी खाना भी हमारा और गुर्राना भी हम पर। पूरी रियासत के तीन हिस्से हैं-जम्मू, घाटी और लद्दाख। श्रीनगर के राजनेता न केवल अनुदान का अधिकांश हिस्सा सबसे छोटे भाग और सबसे कम जनसंख्या पर खर्च करते हैं,बल्कि जम्मू और लद्दाख के नागरिकों के साथ भेदभाव भी करते हैं। जम्मू कश्मीर का कुल वैधानिक क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 78114 वर्ग किमी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है और 37555 वर्ग किमी चीन ने कब्जाया हुआ है। लद्दाख का क्षेत्रफल 59211 वर्ग किमी और जम्मू का 26293 वर्ग किमी है। घाटी का क्षेत्रफल है 15833 वर्ग किमी। 1963 में पाकिस्तान ने अवैध कब्जे के कश्मीर में से 5180 वर्ग किमी चीन को भेंट दे दिया था। क्या आपने कभी सुना है कि कश्मीर के उन जाबांज नेताओं ने जो हिंदू तीर्थ यात्रियों को एक इंच जमीन भी न देने के लिए अराजकता फैला देते हैं, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने के लिए धरना या प्रदर्शन दिया हो? हजारों वर्ग किमी जमीन पाकिस्तान के कब्जे में चली जाए तो उस पर खामोश रहना और हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए जमीन देने पर जान की बाजी लगाने की धमकियां देना किस मानसिकता का द्योतक है?

जम्मू और कश्मीर घाटी में लगभग बराबर की संख्या में मतदाता हैं, लेकिन जम्मू को सिर्फ दो लोकसभा सीट दी गई हैं और घाटी को तीन। पूरे राज्य की आय का 70 प्रतिशत से अधिक जम्मू से मिलने वाले राजस्व से प्राप्त होता है और घाटी से लगभग 30 प्रतिशत, लेकिन खर्च करते समय जम्मू पर कुल राजस्व का 30 प्रतिशत खर्च किया जाता है और घाटी पर 70 प्रतिशत। लद्दाख के साथ श्रीनगर के शासकों का भेदभाव सीमातिक्रमण कर गया है। लद्दाख बौद्ध संघ ने केंद्र को ऐसे दर्जनों ज्ञापन दिए जिनमें लद्दाख के बौद्ध युवकों को परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी कश्मीरी प्रशासनिक सेवा में न लेने, मेडिकल, इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला न देने जैसे भेदभाव के अनेक आरोप लगाए। सच यह है कि योजनाबद्ध तरीके से लेह के बौद्ध समाज को अल्पमत में किए जाने का षड्यंत्र चल रहा है। वास्तव में पूरे प्रदेश में ही भारत लगातार सिकुड़ता गया है। यह परिस्थिति दिल्ली के रीढ़हीन शासकों द्वारा पनपाई और बढ़ाई गई है। जम्मू कश्मीर भारत मा का भाल है। वहां का दर्द भारत का दर्द है। यदि हम वहां का दर्द नहींमहसूस करेंगे तो शेष भारत में भी बंटवारे के बीज फैलेंगे।(दैनिक जागरण ६ अगस्त २००८)


दमनकारी रवैया

एक महीने से अधिक समय से असंतोष से उबल रहे जम्मू में यदि सेना बुलाए जाने के बाद भी हालात नहीं सुधर रहे तो इसका मतलब है कि केंद्रीय सत्ता को बिना किसी देरी के वहां हस्तक्षेप करना चाहिए और वह भी पूरी संवेदनशीलता के साथ। यह क्षोभजनक है कि जब केंद्रीय सत्ता से ऐसे किसी आचरण की अपेक्षा की जा रही है तब वह ठीक उल्टा व्यवहार कर रही है। यदि केंद्र सरकार और उसके रणनीतिकार यह समझ रहे हैं कि आक्रोश से भरी हुई जम्मू की जनता को बलपूर्वक दबाया जा सकता है तो यह उनकी एक ऐसी भूल है जो महंगी पड़ सकती है। आखिर इसका क्या औचित्य कि अब मीडिया के साथ भी सख्ती का व्यवहार किया जा रहा है? न केवल स्थानीय केबल नेटवर्क को बंद कर दिया गया है, बल्कि मीडियाकर्मियों को सामान्य कार्य भी नहीं करने दिया जा रहा। आखिर यह क्या हो रहा है? स्थानीय प्रशासन जिस तरह लोकल न्यूज नेटवर्क को ठप करने के साथ-साथ समाचार पत्रों को अपना कामकाज करने से रोक रहा है वह तो एक तरह का अघोषित आपातकाल है। क्या यह रवैया विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली कहावत को चरितार्थ नहीं करता? इसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है कि जम्मू की जनता की भावनाओं के प्रति पहले तत्कालीन राज्य सरकार ने असहिष्णुता का प्रदर्शन किया और अब केंद्र सरकार भी ऐसा ही कर रही है। आखिर यह कहां का न्याय है कि कश्मीर घाटी के अलगाववादियों के समक्ष तो दंडवत हो जाया जाए, लेकिन जम्मू संभाग के लोगों के वाजिब गुस्से की भी अनदेखी की जाए? दुर्भाग्य से पिछले कुछ दिनों से यही हो रहा है।

केंद्रीय सत्ता को यह समझना होगा कि जम्मू की जनता के आक्रोश में शेष देश की भी किसी न किसी रूप में सहभागिता है। समस्या सिर्फ यही नहीं है कि जम्मू की जनता की उपेक्षा और अनदेखी की जा रही है, बल्कि यह भी है कि वहां के स्वत: स्फूर्त विरोध प्रदर्शनों के बारे में दुष्प्रचार भी किया जा रहा है। हैरत की बात यह है कि इस दुष्प्रचार में केंद्रीय सत्ता के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। जम्मू के आंदोलन को कभी चंद दिनों का विरोध प्रदर्शन बताया जा रहा है और कभी उसके पीछे भाजपा की शरारत रेखांकित की जा रही है। यदि केंद्र सरकार और उसके प्रतिनिधि, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एन एन वोहरा यह नहीं देख पा रहे हैं कि जम्मू तो उनकी भेदभावपरक नीतियों के कारण असंतोष से उबल पड़ा है तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपने हाथों से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है। यह घोर निराशाजनक है कि राज्यपाल एन एन वोहरा ऐसी कहीं कोई प्रतीति नहीं करा पा रहे हैं कि उन्हें जम्मू और आसपास के लोगों की थोड़ी सी भी परवाह है। अलगाववादियों का आगे बढ़कर तुष्टीकरण और राष्ट्रवादियों की घनघोर उपेक्षा करके भारत सरकार अपने दायित्वों से मुंह मोड़ने के साथ-साथ अपयश की भी भागीदार बन रही है। उसके पास अभी भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई भूमि का आवंटन क्यों रद किया गया? चूंकि वह भविष्य में भी इस सवाल का जवाब देने में सक्षम नहीं होगी इसलिए उसे इस पर विचार करना ही होगा कि भूल सुधार कैसे की जाए?(दैनिक जागरण ४ अगस्त २००८)

Monday, August 4, 2008

जम्मू में हालात बदतर, 5 शहरों में कर्फ्यू

जम्मू। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वन्यभूमि हस्तांतरित किए जाने पर गहराते विवाद के बाद जम्मू के पांच कस्बों में कर्फ्यू लगा दिया गया है, वहीं आज हुर्रियत कांफ्रेंस से अलग हुई एक शाखा द्वारा बुलाए गए हड़ताल से निपटने के लिए भी सुरक्षा बल पूरी तरह तैयार है।लगभग एक महीने से प्रदर्शनकारियों द्वारा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वन्यभूमि हस्तांतरित किए जाने की मांग को लेकर कल भी विरोध जारी रहने पर भद्रवाह कस्बे में कर्फ्यू लगा दिया गया। वहीं जम्मू, साम्बा, राजौरी और उधमपुर में पहले से ही कर्फ्यू लगा हुआ है।एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, इस विरोध प्रदर्शन का फायदा उठाते हुए कुछ असामाजिक तत्व इस पर साम्प्रदायिकता का रंग चढ़ाने की कोशिश कर रहे है। लेकिन उन्होंने कहा कि, “सरकार किसी भी हालत में यहां साम्प्रदायिकता को पनपने नहीं देगी। इन कस्बों में कर्फ्यू और सेना के फ्लैग मार्च की वजह से फिलहाल हालात काबू में है।”हालांकि पूरे जम्मू में सेना की भारी तादाद में तैनाती के बावूजद भी भीड़ द्वारा भगवान शिव की तस्वीर और भारतीय तिरंगे को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन का दौर जारी है, साथ ही ये लोग पुलिस तथा राज्यपाल एन.एन.वोहरा के खिलाफ नारे भी लगा रहे हैं।उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने 26 मई को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड (एसएएसबी) को उत्तरी कश्मीर में 40 हेक्टेयर वन्यभूमि हस्तांतरित किए जाने का ऐलान किया था। लेकिन 01 जुलाई को सरकार द्वारा अपने इस फैसले को वापस लिए जाने के बाद से पिछले एक महीने के ज्यादा अरसे से जम्मू में विरोध किया जा रहा है।इस विरोध-प्रदर्शन के चलते जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर भी सेवाएं बाधित हुई है, लेकिन सेना की मौजूदगी की वजह से करीब 600 ट्रकें कश्मीर घाटी तक आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने में कामयाब रही।
इस बीच सरकार ने जम्मू के दो स्थानीय टेलीविजन चैनलों के प्रबंधन से बातचीत के बाद उनपर से प्रतिबंध हटा दिया है। इससे पहले अधिकारियों ने दो टेलीविजन चैनल ‘टेक1’ और ‘जेके चैनल’ पर लोगों को भड़काने वाले ‘उत्तेजक सामग्री’ के प्रसारण को लेकर प्रतिबंध लगा दिया था।(CNBC , ४ जुलाई २००८)

Saturday, August 2, 2008

अमरनाथ विवाद: जम्मू में सेना तैनात

जम्मू। जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन दिये जाने की मांग को लेकर पिछले कई दिनों से चल रहे प्रदर्शन के मद्देनजर लगाए गए कर्फ्यू के उल्लंघन से उपजे तनाव के हालात को काबू में करने के लिए सेना ने आज यहां फ्लैगमार्च किया। सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल एस। डी. गोस्वामी ने बताया कि स्थिति से निबटने के लिए स्थानीय प्रशासन के सहयोग के आग्रह पर नौवीं कमान की ‘टाइगर फोर्स’ को जम्मू में तैनात किया गया पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कल हुई ताजा झडपों में दो लोगों की मौत हो गयी थी और कई अन्य घायल हो गये थे और जम्मू और सांबा जिलों में फिर से कर्फ्यू लागू कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि ‘श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड’ संघर्ष समिति के बैनर तले जम्मू क्षेत्र के लोग एसएएसबी अमरनाथ यात्रियों को अस्थायी आवास बनाने के लिए वन भूमि का आंवटन बहाल करने की मांग को लेकर आंदोलनरत है। (CNBC,२ अगस्त २००८)

जमीन की जंग में दो और कुर्बान

सांबा: श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जमीन के लिए जारी जंग ने दो और लोगों की कुर्बानी ले ली है। शुक्रवार को आंदोलनकारियों पर हुई पुलिस फायरिंग में जिले के दो लोगों की मौत हो गई। इससे जमीन के लिए शहादत देने वालों की संख्या अब पांच हो गई है। शुक्रवार को बोर्ड की भूमि छीनने के खिलाफ जारी प्रदर्शन उग्र हो जाने के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी। इसमें दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि तीन दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। घायलों को उपचार के लिए सांबा जिला अस्पताल ले जाया गया जहां गंभीर रूप से घायल छह लोगों को जीएमसी जम्मू रेफर कर दिया गया। वहीं जीएमसी में लाए गए दो आंदोलनकारियों को मृत घोषित कर दिया गया। चार लोग इस अस्पताल में उपचाराधीन हैं। गोलीबारी में मारे गए लोगों की पहचान जुगल किशोर पुत्र हरबंस संब्याल और सुनील सिंह पुत्र भारत सिंह के रूप में हुई है जबकि जीएमसी लाए गए घायलों में पवन पुत्र सतपाल, जतिंद्र सिंह पुत्र जयपाल, संदीप सिंह पुत्र पराग सिंह और मोहन सिंह पुत्र नानक सिंह शामिल हैं।
सांबा में प्रदर्शनकारियों पर हुई फायरिंग से भड़ककर लोगों ने तहसील मुख्यालय को जला दिया। रात को प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाई गई आग में पहले दरवाजे जले और फिर आग मुख्यालय के भीतर रखे रिकार्ड तक पहुंच गई जिससे काफी रिकार्ड राख हो गया। इसके बाद डीसी ने क‌र्फ्यू लगा दिया। इसके बावजूद हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी रात को सड़कों पर उतर आए। राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित मेन चौक पर उन्होंने टायर जलाकर प्रदर्शन किए और बम-बम भोले के जयकारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने डीसी के खिलाफ नारेबाजी भी की।
आईजी जम्मू के राजेंद्रा ने इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस का हाथ होने से इंकार करते हुए कहा कि जिस समय यह घटना घटी पुलिस उस समय मौके पर मौजूद नहीं थी। गोलीबारी सांबा में शुक्रवार शाम उस समय हुई जब प्रशासन ने क्षेत्र में क‌र्फ्यू लगाए जाने की घोषणा की। क‌र्फ्यू की सूचना मिलते ही सांबा के मेन चौक पर धरने पर बैठे लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया और वहां पुलिस व रैपिड एक्शन फोर्स के जवान भी पहुंच गए। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव करना शुरू कर दिया। पुलिस ने भी पहले हवा में गोलियां चलाई और बाद में उनपर आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिए। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस पर भी जब वे पीछे हटने को तैयार न हुए तो पुलिस ने उनपर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं जिसमें दो लोगों की मौके पर ही मौत हो गई जबकि 35 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। बाद में घायलों को सांबा के जिला अस्पताल ले जाया गया जहां गंभीर रूप से घायल छह लोगों को जीएमसी अस्पताल रेफर कर दिया गया। इनमें दो लोगों को जीएमसी में मृत लाया घोषित कर दिया गया जबकि बाकी चार लोगों का उपचार जीएमसी में चल रहा है। तनाव को देखते हुए जीएमसी में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
इस बीच प्रदर्शनकारियों ने डीसी सांबा सौरभ भगत के आवास का घेराव किया। उन्होंने पहले गेट पर लगी नेमप्लेट तोड़ दी और फिर गेट पर टायर जलाकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी डीसी के घर में घुसने का प्रयास कर रहे थे कि इतने में ही वहां सेना के जवान आ गए और उन्होंने प्रदर्शनकारियों को रोका। प्रदर्शनकारियों ने डीसी आवास के बगल में स्थित रेस्ट हाउस का सामान सड़क पर फेंककर उसे आग लगा दिया। इस झड़प के दौरान प्रदर्शनकारियों के हत्थे चढ़े पुलिसकर्मियों पीटा गया। एक सीआरपीएफ का जवान भी प्रदर्शनकारियों के हत्थे चढ़ गया जिसे चेतावनी देकर छोड़ दिया गया कि फिर कभी सांबा के शूरवीरों पर हाथ न उठाना। इस घटना के बाद प्रदर्शनकारियों ने सांबा पुलिस स्टेशन को भी जलाने का प्रयास किया। वहां भी कुछ गोलियां हवा में चलाई गई जिसके बाद प्रदर्शनकारी पीछे हट गए। इस घटना के बाद सांबा के मुख्य चौक पर एकत्र होकर प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाना शुरू कर दिए। डीसी सांबा को सेना ने सुरक्षित वहां से निकाल लिया।(दैनिक जागरण , २ अगस्त २००८ )