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Sunday, March 23, 2014

हिंदू धर्म में कट्टरता बनाम उदारवाद

http://www.prabhatkhabar.com/news/100374-story.html
भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई, हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है और उसका अंत अभी भी दिखायी नहीं पड़ता. ऐसा क्यों नहीं हो सका, इसका पता लगाने की कोशिश करने के पहले, जो बुनियादी दृष्टिभेद हमेशा रहा है, उस पर नजर डालनी जरूरी है. चार बड़े और ठोस सवालों, वर्ण, स्त्री, संपत्ति और सहनशीलता के बारे में हिंदू धर्म बराबर उदारवाद और कट्टरता का रुख बारी-बारी से लेता रहा है.
 

Saturday, March 15, 2014

भागवत ने कहा, भारत तब तक सुरक्षित है जब तक हिंदू समाज

http://www.prabhatkhabar.com/news/98408-story.html
रांची: भारत व भारतीयता तभी तक सुरक्षित है, जब तक हिंदू समाज व संस्कृति सुरक्षित है. इसी सुरक्षित व शुद्ध स्वरूप में वनों में रहने वाले 30 करोड़ वनवासियों को हमें जगाना है. हमें सबको जोड़ना है, हम सबको जोड़ेंगे. बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम, मोरहाबादी में आयोजित एकल संगम में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ये बातें कहीं.

Friday, August 24, 2012

खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर की जनजातियां

पूर्वोत्तर की जिन जनजातियों को शेष भारत में चिंकी और चीनी कहकर चिढ़ाया जाता है, वे खांटी भारतीय हैं। ये अपने आप को न सिर्फ रामायण-महाभारत के पात्रों का वंशज मानती हैं, बल्कि अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित भी रखे हुए हैं।
http://www.jagran.com/news/national-north-east-people-are-typical-indian-9594068.html

Thursday, June 7, 2012

बेकार नहीं गई फई की दावतें



बेकार नहीं गई फई की दावतें

कश्मीर पर तो सन 1947 से सैकड़ों किस्म की राय, सलाह और रूपरेखाएं दी जाती रही हैं। लॉर्ड माउंटबेटन से लेकर गुलाम नबी फई और श्रीअरविंद से लेकर पनुन कश्मीर तक की अनगिनत सलाहें पुस्तकालयों से लेकर मंत्रालयों की फाइलों में उपलब्ध हैं। तब कश्मीर समस्या पर इस नवीनतम त्रि-सदस्यीय कमेटी द्वारा सुझाए गए समाधान की रूपरेखा किस बात में भिन्न है? इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक एक पुराने, प्रचलन से बाहर के अंग्रेजी शब्द के सहारे दिया है, ए कॉम्पैक्ट विद द पीपल ऑफ जम्मू एंड कश्मीर। यहां कॉम्पैक्ट शब्द रहस्यमय है, क्योंकि इसका अर्थ शब्दकोष और सामान्य प्रयोग से नहीं निकलेगा। मगर रिपोर्ट पढ़कर समझ में आ जाता है कि कॉम्पैक्ट की आड़ में पैक्ट यानी समझौता कहा जा रहा है। तब इस छोटे, स्पष्ट शब्द के बदले अस्पष्ट शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? क्या इसमें बिना साफ कहे कुछ अकथ कहने की कोशिश या कुछ कहकर उससे मुकरने का रास्ता खुला रखने की चतुराई बरती गई है? जिस अर्थ में इस कमेटी ने कॉम्पैक्ट शब्द का प्रयोग किया है, वैसा प्रयोग सदियों पहले शेक्सपीयर ने अपने नाटक जूलियस सीजर में किया था, ाट कॉम्पैक्ट मीन यू टु हैव विद अस? दिलचस्प बात यह है कि ठीक यही प्रश्न इस कमेटी से भारतीय जनता पूछ सकती है कि हमारे साथ तुम्हारा कौन सा करार रखने का इरादा है? क्या तुम हमारे मित्रों में गिने जाओगे या हम तुम पर कोई भरोसा न रखें? यानी वही जो शेक्सपीयर के पात्र ने अपने संदिग्ध मित्र से पूछा था। यह प्रश्न निराधार नहीं होगा। यह रिपोर्ट आरंभ से ही कटु सच्चाइयों से सायास बचने की कोशिश करती है। कश्मीर समस्या के जन्म से ही उसमें एक मजहबी तत्व रहा है, जिसकी अनदेखी कर रिपोर्ट में केवल सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर विविध बातें एकत्र की गई हैं। फिर, रिपोर्ट के अनुसार कमेटी ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित वृहत साहित्य का भी अध्ययन किया, लेकिन उन पुस्तकों की सूची परिशिष्ट में नहीं दी गई है, जबकि अनेक अनावश्यक चीजें वहां हैं। इससे पता चलता कि कितना महत्वपूर्ण साहित्य कमेटी सदस्यों ने नहीं पढ़ा अथवा यदि पढ़ा तो उसकी बातें पूरी तरह उपेक्षित कीं। उदाहरण के लिए, कश्मीर घाटी से भगाए गए कश्मीरी हिंदुओं द्वारा हर विधा में लिखा गया विस्थापन साहित्य। इसमें वर्तमान से लेकर पीछे पीढि़यों तक के लंबे जीवंत कश्मीरी अनुभव हैं। सामाजिक-आर्थिक से लेकर राजनीतिक-सांस्कृतिक और मजहबी, मनोवैज्ञानिक तक। आजकल के कवियों की भाषा में कहें, तो स्वयं का भोगा हुआ यथार्थ। समाज विज्ञान की भाषा में कहें तो प्राथमिक श्चोतों के तथ्य और प्रमाण। इस रिपोर्ट में वह कहीं नहीं झलकता। कश्मीरी हिंदुओं के बारे में रिपोर्ट लगभग चुप है। रिपोर्ट के कुल 176 पृष्ठों में कुल दो पेज भर सामग्री भी कश्मीरी हिंदुओं को नहीं दी गई है। जो कहा भी गया है, वह नेशनल कांफ्रेंस द्वारा समय-समय पर कही जाने वाली इक्का-दुक्का रस्मी उक्तियों से कुछ भिन्न नहीं है। सच तो यह है कि कमेटी की रिपोर्ट उन लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सही-सही पहचानने से भी इंकार करती है। सच से बचने वाली अपनी राजनीति संगत भाषा में उन्हें जड़ से उखड़े लोग कहती है। मगर इन उखड़े हुए लोगों की कही गई कोई बुनियादी बात रिपोर्ट में नहीं झलकती। कारण शायद यह है कि रिपोर्ट के शब्दों में, हमने इस राज्य को परेशान करने वाली अनगिनत समस्याओं को किसी एक क्षेत्र या जाति या मजहबी समुदाय की दृष्टि से देखने की गलती से बचने की कोशिश की है। ऊपर से सुंदर लगने वाली इस बात का वास्तविक, व्यवहारिक अर्थ यह भी हो सकता है कि कमेटी ने पहले से ही किसी भी क्षेत्र, समुदाय या मजहब को दोष न देना तय कर लिया था। जैसे, यह बुनियादी तथ्य कि कश्मीर-समस्या पाकिस्तान-समस्या से जन्मी और आज भी अभिन्न रूप से जुड़ी है। अब जिसने तय कर लिया हो कि उसे किसी एक मजहब को चर्चा में लाना ही नहीं, वह बुनियादी बात भी नहीं उठाएगा। मगर ऐसी समदर्शी दृष्टि जो अलगाववादी और समन्वयवादी के बीच, उत्पीड़ित और उत्पीड़क के बीच भेद न करने पर आमादा हो, वह सभी असुविधानक सच्चाइयों से बचने की कोशिश करेगी ही। इसीलिए इस रिपोर्ट में हर कदम पर, बार-बार अधूरी संज्ञाएं और विशेषण मिलते हैं, जिनसे कोई बात स्पष्ट होने की बजाए धुंधलके में रह जाती है। ऐसी रिपोर्ट लिखने वाली कमेटी कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी हिंदुओं के बीच के बरायनाम संबंध से ऊपर, अलगाववादियों और समन्वयवादियों के विपरीत मनोभावों से ऊपर, इस्लाम और हिंदू धर्म के किसी भेद से ऊपर, भारत-पाकिस्तान के झगड़े से ऊपर उठी हुई है! रिपोर्ट पढ़कर लगता है कि अमेरिका में आइएसआइ के कश्मीरी एजेंट गुलाम नबी फई की दावतें बेकार नहीं गईं। एक जरूरी प्रश्न यह भी उठता है कि ऐसी समदर्शिता के साथ यह कमेटी किस का प्रतिनिधित्व कर रही थी? क्या कमेटी ने खुद उसी के शब्दों में राष्ट्रीय हित का प्रतिनिधित्व किया? ऐसा लगता नहीं, क्योंकि रिपोर्ट की पूरी भाषा नेशनल कांफेंस के मानवाधिकारी संगठनों, एक्टिविस्ट समूहों की भाषा से ही मिलती है। यह भारतीय राष्ट्रीय हितों की चिंता करने वाली भाषा से मेल नहीं खाती। यदि इन्हीं दृष्टियों से कश्मीर समस्या को देखना हो, तब याद रखें कि अमेरिकी सरकार, यूरोपीय संघ से लेकर सीआइए, आइएसआइ जैसी कई अंतरराष्ट्रीय सत्ताओं, एजेंसियों और उनके मुखौटे मानवाधिकारियों, एनजीओ की भी कश्मीर पर अपनी-अपनी स्थापित दृष्टि है। क्या इन दृष्टियों और इस कमेटी की दृष्टि में कोई भेद है? इस प्रश्न का उत्तर रिपोर्ट में ढूंढ़ना एक रोचक कार्य होगा।

हिंदू राष्ट्र की स्थापना को गोवा में जुटेंगे हिंदूवादी

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए गोवा में 10 से 14 जून तक एक सम्मेलन होने वाला है। इसमें देश के 20 राज्यों के 50 से अधिक हिंदू संगठनों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। सम्मेलन का आयोजन कर रही हिंदू जनजागृति समिति का तर्क है कि जब विश्व में 153 ईसाई राष्ट्र, 52 इस्लामी राष्ट्र और 12 बौद्ध राष्ट्र हैं, यहूदियों का भी एक राष्ट्र है, तो 100 करोड़ की आबादी वाले हिंदुओं का अपना राष्ट्र क्यों न हो?
http://www.jagran.com/news/national-9343356.html

Saturday, June 2, 2012

नेपाल को फिर दिलाएंगे हिंदू राष्ट्र का दर्जा

नेपाल के कपिलवस्तु जिले के बुटहनिया में विश्व हिंदू महासंघ की बैठक हुई। इसमें कार्यकर्ताओं ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र यथावत रखने और राजसत्ता पुन: देश में लागू करने के लिए नेपाल के अंतरिम संविधान 2047 फिर से लाने के लिए पूरे राष्ट्र में अभियान चलाना शुरू कर दिया है।
http://www.amarujala.com/international/South%20Asia/Status-of-the-Hindu-kingdom-of-Nepal-administer-12143-8.html

Thursday, May 31, 2012

अल्पसंख्यक कोटे के लिए संविधान संशोधन की तैयारी

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 4.5 फीसद अल्पसंख्यक कोटे को खारिज करने के बावजूद केंद्र सरकार कदम पीछे खींचने को तैयार नहीं है। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अगले सोमवार या मंगलवार तक सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारियों में जुटी सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिलाने के लिए संविधान संशोधन के स्तर तक जा सकती है।
http://www.jagran.com/news/national-preparation-for-amendment-9318519.html

Monday, May 21, 2012

पाकिस्तान के सफल हिंदू -1


पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को हमेशा से ही समस्याओं का सामना रहा है और वह समस्याएँ कम नहीं हुई हैं, लेकिन कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने इन सब दिक्कतों के बावजूद समाज में अपना स्थान बनाए रखा है.
उनके योगदान को पूरे देश में कदर की निगाह से देखा जा रहा है. पाकिस्तान स्थित बीबीसी हिंदी संवाददाता हफ़ीज़ चाचड़ ने कुछ ऐसी ही खास शख्सियतों से बातचीत की है. इस शृंखला की पहली कड़ी में स्वात निवासी सीनेटर अमरजीत मल्होत्रा.

http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2012/05/120519_pak_hindus_amajeet_hc.shtml

Saturday, May 19, 2012

नेपाल को हिंदू राज्य घोषित करने की मांग

नेपाल में राजशाही समर्थक पार्टी की हड़ताल के चलते काठमांडू वैली में शुक्रवार को जनजीवन अस्तव्यस्त रहा। पार्टी ने संघीय ढांचे को स्वीकार किए जाने के विरोध में हड़ताल की अपील की थी। पार्टी देश को फिर से हिंदू राज्य घोषित करने की मांग कर रही है। 
http://www.amarujala.com/international/South%20Asia/Seeking-to-declare-Nepal-a-Hindu-state-11897-8.html

Wednesday, May 2, 2012

सपा मुस्लिम राष्ट्रपति के पक्ष में

नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने कहा कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति पद के लिए एक मुस्लिम उम्मीदवार के पक्ष में है। लेकिन साथ ही, यह भी कहा कि पार्टी इस शीर्ष संवैधानिक पद के लिए चुनावों को सांप्रदायिक रंग देने के खिलाफ है।
http://www.jagran.com/news/national-sp-says-his-party-prefers-a-muslim-for-prez-post-9202886.html

मुसलमानों से किए वायदे पूरे करे सरकार

जमियत उलमा के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि मरकजी और रियासती सरकारें आजादी के बाद से मुसलमानों को सिर्फ झूठी तसल्ली दे रही हैं।
http://www.amarujala.com/National/SP-fulfilling-all-promise-of-Muslims-26759.html

Sunday, April 15, 2012

दंगों के फैसलों से दरक रहा हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण

अहमदाबाद [शत्रुघ्न शर्मा]। गुजरात दंगों के बाद भाजपा के पक्ष में हुआ हिंदू वोटों का ध्रवीकरण अब अदालती फैसलों के कारण दरकने लगा है। दंगा मामलों में अब तक पटेल समाज के 50 से अधिक लोगों को सजा हो चुकी है। माणसा उपचुनाव में भाजपा की हार को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। मोदी अगला चुनाव भी विकास के मुद्दे पर लड़ने वाले हैं, लेकिन उनका जातीय समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है। कांग्रेस इस बार दंगा के मुद्दे को ताक पर रखकर खुद को सरकार के भ्रष्टाचार पर केंद्रित कर रखा है।
http://www.jagran.com/news/national-shadow-of-the-gujarat-riots-effects-narendra-modi-9139071.html