Friday, October 31, 2008

हसनपुर में पशुओं की खाल, मांस समेत दो धरे

दैनिक जागरण, २५ अक्टूबर २००८, हसनपुर(ज्योतिबाफूलेनगर) : तहसील क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक गोवंशीय पशुओं की खाल, मांस व छह जानवरों समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मुखबिर की सूचना पर हसनपुर कोतवाली प्रभारी ने ग्राम जयतौली में अशरफ के घर पर पुलिस बल के साथ छापा मारा। इसमें एक दर्जन से अधिक गोवंशीय पशुओं की खाल तथा दो पशुओं का मांस बरामद हुआ। पुलिस को देख कारोबारी भाग निकले। पुलिस ने दो जीवित बछड़े़ भी आरोपियों के घर से बरामद किए हैं।
उधर रहरा चौकी पुलिस ने भी क्षेत्र के ग्राम बुरावली में हसीन के घर पर छापा मारकर गोवंशीय पशु का मांस, एक छुरी, कुल्हाड़ी, दाव सहित रशीद निवासी बांसका खुर्द को मौके से गिरफ्तार किया है। हसीन निवासी बुरावली, मुस्तकीम व जमील निवासी मोहल्ला कोर्ट पूर्वी हसनपुर घर की दीवार फांदकर भाग निकले।
आदमपुर : पुलिस ने चार गोवंशीय पशुओं सहित ग्रामीण को गिरफ्तार कर जेल भेजा है। गिरफ्तार आरोपी ग्राम खरपड़ी का रफीक है।

यूपीडेस्क::बिना नंबर की बुलेरो से बारह कुंतल मांस पकड़ा

दैनिक जागरण , २५ अक्टूबर २००८, अमरोहा(ज्योतिबाफूलेनगर):गांव अम्बरपुर तिराहे पर पुलिस ने घेराबंदी कर बगैर नंबर की बुलेरो पर सवार तीन तस्करों को गाय के बारह कुंतल मांस के साथ धर दबोचा। मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को पुलिस ने जेल भेज दिया है।
मुखबिर की सूचना पर देहात थाना पुलिस ने अमरोहा-पाकबड़ा मार्ग पर बगैर नंबर की बुलेरो पकड़ कर वाहन चालक डिडौली कोतवाली क्षेत्र के गांव पायंतीकलां निवासी बादशाह पुत्र शब्बीर ,साजिद पुत्र शाहिद एवं भूरा पुत्र मोहम्मद उमर को हिरासत में ले लिया। तलाशी में वाहन में बोरों में भरा बारह कुंतल गाय का मांस तथा दो छुरी भी मिलीं।
पुलिस उपाधीक्षक संजय रॉय ने बताया कि तस्करों ने अपने घर ही गाय काटीं थीं व थाना क्षेत्र के गांव अम्बरपुर मांस लेकर जा रहे थे कि इस बीच हत्थे चढ़ गए। उन्होंने बताया कि वाहन के संबंध में कोई जानकारी आरोपी नहीं दे पाए। उसके असली मालिक तक पहुंचने के लिए टीम लगा दी गई है। आरोपियों के खिलाफ गौ वध अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें सुनवाई के बाद जेल भेज दिया।

नजीबुद्दौला के किले पर थले की झोपड़ी फूंकी, तनाव

दैनिक जागरण,३१ अक्टूबर २००८, नजीबाबाद(बिजनौर)। नजीबाबाद गांव महावतपुर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की नापाक कोशिश की गई। नवाब नजीबुद्दौला के किले की एक छोर की दीवार पर बने थले की झोपड़ी फूंकने से गांव में तनाव पैदा हो गया। महावतपुर के ग्रामीणों ने झोपड़ी फूंकने के एक आरोपी को रंगे हाथों धर दबोचा। जूते-चप्पल से पिटाई के बाद ग्रामीणों ने आरोपी को पुलिस को सौंप दिया। ग्रामीणों ने बताया कि झोपड़ी फूंकने के महिला सहित तीन अन्य आरोपी फरार हो गए। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई।

गुरुवार की शाम को नवाब नजीबुद्दौला के किले के एक छोर पर बने थले की झोपड़ी धू-धू कर जल उठी, जिससे उसमें रखा सामान जल गया। किले में खेल रहे समीपवर्ती गांव महावतपुर के कुछ युवक झोपड़ी को जलता देख दौड़कर मौके पर पहुंचे। युवकों को आते देख झोपड़ी के पास मौजूद एक व्यक्ति भागने लगा, जिसे युवकों ने पकड़ लिया। युवक आरोपी को महावपतपुर गांव में ले गए। गुस्साए ग्रामीणों ने उक्त आरोपी की जमकर धुनाई की। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि उक्त व्यक्ति ने झोपड़ी में आग लगाई है। ग्रामीणों के अनुसार उसके साथ महिला सहित तीन अन्य लोग भी थे, जो मौके से फरार हो गए।

ग्रामीणों ने बताया कि बालकिशनपुर शेरकोट निवासी थम्मनदास ने उक्त स्थान पर चालीस दिनों तक तपस्या की थी। जहां ग्रामीणों की मदद से झोपड़ी डाली गयी थी। थम्मन दास दीपावली से पहले कुछ दिनों के लिए वे घर चले गए हैं। घटना को लेकर गांव में तनाव व्याप्त है। झोपड़ी फूंकने की सूचना मिलते ही कोतवाल एमपी अशोक पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए। पुलिस ने सबसे पहले आरोपी को हिरासत में ले लिया। पुलिस पूछताछ में आरोपी ने अपना नाम जाफर अली निवासी सब्नीग्रान बताया। पुलिस के सामने उसने झोपड़ी फूंकने की बात स्वीकार की। उसने बताया कि वह किले में बनी मजार पर दुआ मांगने गया था।

कोतवाल एमपी अशोक ने बताया कि उक्त आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कोतवाल ने घटना में अन्य लोगों के शामिल होने से इनकार किया।

मलेशिया: योग पर बैन को लेकर बहस

दैनिक जागरण, ३१ अक्टूबर २००८, कुआलालंपुर। मलेशिया में योग पर प्रतिबंध को लेकर विभिन्न धर्मो के विद्वानों में बहस छिड़ गई है। इस बहस में चिकित्सक और योगकर्मी भी शामिल हो चुके है।
संभावना इस बात की है मलेशिया की 'नेशनल फतवा काउंसिल' मुसलमानों के योग करने पर प्रतिबंध लगा सकती है। हालांकि इस संबंध में अब तक कोई ऐलान नहीं हुआ है।
केबांगसान विश्वविद्यालय में इस्लामिक अध्ययन केंद्र के प्राध्यापक जकारिया स्तपा के मुताबिक योग का मूल संबंध हिंदू धर्म से है इसलिए इसका अभ्यास करने से मुसलमान इस्लाम की शिक्षा से विमुख हो सकते हैं।
हिंदू विद्वानों का कहना है कि योग को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए। इसके साथ ही चिकित्सक और योगकर्मी भी योग को धर्म से जोड़े जाने को उचित नहीं मानते।
'मलेशियन मुस्लिम सोलिडेरिटी मूवमेंट' के अध्यक्ष जुल्किफली मोहम्मद का कहना है कि योग एक व्यायाम है और इससे दिमाग को शांति मिलती है। इसमें इस्लाम से विमुख करने वाली कोई बात नहीं है।
समाचार पत्र 'न्यू स्ट्रेट्स टाइम्स' में सुलेहा मेरिकवन नामक एक मुस्लिम महिला ने कहा है कि जब उनका इस्लाम में गहरा यकीन है तो वह योग से कैसे खत्म हो सकता है। वह कई वर्षो से योगाभ्यास कर रही है। 'मलेशिया हिंदू संगम' के अध्यक्ष ए. वैथलिंगम का कहना है कि योग को कई देशों में धर्म और संस्कृति से अलग स्वीकार किया गया है।

फिर खून से लाल हुआ असम, 66 मरे

दैनिक जागरण, ३० अक्टूबर २००८ । एक बार फिर असम खून से लाल हो गया। यहां लगभग 13 जगहों पर हुए सीरियल ब्लास्टों में कम से कम 66 लोगों की मौत हो गई और दो सौ से अधिक लोग घायल हो गए। सभी विस्फोट बृहस्पतिवार सुबह ११:३० से ११:४० बजे के बीच हुए। कोकराझाड़ में तीन जगहों पर, गुवाहाटी में पांच जगहों पर और बोंगाईगांव तीन व बरपेटा में दो जगहों में धमाके हुए। इसे लेकर असम में रेड अलर्ट घोषित कर दिया गया है और लोगों को घरों से नहीं निकले के लिए कहा गया है। वहीं, गणेशगुड़ी में धमाके के बाद गुस्साएं लोग पुलिस से भिड़ गए, जिसमें कई लोग घायल हो गए। जिसके बाद दिसपुर, गणेशगुड़ी व गुवाहाटी में क‌र्फ्यू लगा दिया गया।

वहीं, केंद्रीय गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने कहा कि असम में हुए सिलसिलेवार धमाकों में बाह्य संपर्को वाले पूर्वोत्तार के उग्रवादी गुटों को हाथ हो सकता है। इस बीच, उल्फा इन विस्फोटों की जिम्मेदार लेने से इनकार कर दिया। उधर, केंद्र ने मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपये की सहायता दिए जाने की मंजूरी दी। इधर, मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इन धमाकों की कड़ी निंदा की। इस बीच, केंद्र का एक उच्चस्तरीय दल स्थिति का जायजा लेने के लिए असम आएगा। दल में गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल होंगे।

जानकारी के अनुसार आज सुबह 11.30 बजे कोकराझाड़ में बड़ाबाजार, रेलवे गेट व एक होटल के पास नाले में विस्फोट हुआ। यहां तीनों धमाकोंमें लगभग 15 लोगों की मरने व बीस से अधिक लोगों के घायल होने की सूचना है। यहां विस्फोट एक से दो मिनट के अंतराल पर हुए। बड़ाबाजार व रेलवे गेट इलाके में मोटरसाइकिल में ग्रेनेड बम रखा गया था। इन विस्फोटों से इलाके में अफरा-तफरी मच गई है। पुलिस प्रशासन व सुरक्षाकर्मी राहत कार्य में जुटे हैं। उधर, गुवाहाटी सीजेएम कोर्ट परिसर, फैंसी बाजार, पान बाजार, गणेशगुड़ी स्थित सचिवालय जनता भवन के समीप व एक फ्लाईओवर के नीचे आटोस्टैंड में विस्फोट हुए। यहां एक कार व आटो में बम छिपाकर रखे गए थे।

यहां धमाके सुबह 11.30 बजे के आसपास हुए। उल्लेखनीय है कि गुवाहाटी सीजेएम कोर्ट परिसर में ही डीसी कार्यालय भी है। यहां विस्फोट में छह लोगों की और गणेशगुड़ी में दोनों स्थानों पर लगभग 29 लोगों की मौत हुई है और काफी संख्या में लोग घायल हुए हैं। गणेशगुड़ी फ्लाईओवर के नीचे का विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि वहां खड़ी कारें खाक हो गई। इतना ही नहीं, आसपास 500 मीटर के दायरे में स्थिति इमारतों के शीशे चटक गए। घायलों को गुवाहाटी कालेज में भर्ती कराया गया है। कई लोगों की हालत गंभीर बताई गई है।

उल्लेखनीय है कि आतंकियों ने सभी भीड़भाड़ वाले इलाके को ही अपना निशाना बनाया है। कोकराझाड़ में आज बाजार का दिन था और भइयादूज को लेकर काफी भीड़ भाड़ थी, क्योंकि दीपावली को लेकर दो दिन की बंदी के बाद बाजार आज ही खुले थे। यही आलम गुवाहाटी के फैंसी बाजार व पान बाजार में भी था। उधर बोंगाईगांव में तीन स्थानों पर विस्फोट में मरने वालों की सूचना नहीं मिली है, जबकि बरपेटा में दो स्थानों पर विस्फोट हुए, जिसमें 11 लोगों की मौत हुई। घायलों को स्थानीय अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। बरपेटा में कई स्थानों से बम भी बरामद किए गए हैं, जिसे निष्क्रिय कर दिया गया है।

वहीं, गणेशगुड़ी फ्लाईओवर के नीचे विस्फोट से आक्रोशित जनता व पुलिस के बीच जबरदस्त झड़प हुई, जिसमें चार पुलिसकर्मी समेत कई लोग घायल हो गया। स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग करनी पड़ी। लोगों के आक्रोश को देखते हुए दिसपुर व गणेशगुड़ी, गुवाहाटी में क‌र्फ्यू लगाया दिया गया है। इलाके में जवान गश्त लगा रहे हैं और लोगों को घरों से नहीं निकले को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि विस्फोट के बाद यहां प्रशासन की लेटलतीफी के कारण स्थानीय जनता आक्रोशित होकर सड़क पर उतर आई और विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। आरोप है कि विस्फोट के काफी समय बाद फायरबिग्रेड के इंजन मौके पर पहुंचे। इससे स्थानीय लोगों ने पुलिस व फायरबिग्रेड कर्मियों पर पर हमला कर दिया और दमकल व पुलिस वाहनों को फूंक दिया। स्थिति से निपटने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग की। इलाके में भीड़ को हटाने के लिए अनिश्चितकाल के लिए क‌र्फ्यू लगा दिया गया है। इलाके में तनाव है। उधर, दमकल के विभाग सूत्रों ने बताया कि धमाके के कारण सड़क जाम हो गई, जिससे मौके पर पहुंचने में समय अधिक लगा।

उधर, पुलिस ने हमलों के पीछे उग्रवादी गुट उल्फा के हाथ होने की आशंका जताई है, लेकिन कुछ पुलिस अधिकारियों ने कट्टर इस्लामिक गुटों का हाथ होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया है। पुलिस ने विस्फोट में आरडीएक्स के इस्तेमाल करने का भी अनुमान लगाया है।

इस बीच, नई दिल्ली में केंद्रीय गृह सचिव मधुकर गुप्ता ने बताया कि विस्फोटों के स्थलों पर एनएसजी का एक दल भी भेजा जाएगा। विस्फोट की प्रवृत्तिके बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अपराध विज्ञान विशेषज्ञ विस्फोट स्थलों पर जांच कर रहे हैं। क्या अतिरिक्त अ‌र्द्धसैनिक बल राज्य में भेजे जाएंगे इस पर उन्होंने कहा कि वहां पहले ही काफी बल तैनात है। गुप्ता ने कहा कि हम उन्हें कुछ समय तक वहीं रखेंगे और शायद चुनाव की ड्यूटी में [छह राज्यों में] उन्हें नहीं लगाया जाएगा। विस्फोट के पीछे किसका हाथ हो सकता है इस पर उन्होंने कहा कि समूह की पहचान करना अभी जल्दबाजी होगी।

इधर, असम में सिलसिलेवार बम विस्फोटों के बाद मुंबई सहित महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों में सुरक्षा बलों को सतर्क कर दिया गया है। विस्फोट के बाद समूचे मेघालय में हाई एलर्ट घोषित कर दिया गया है।

इस बीच, उल्फा की ओर से जारी एक ई-मेल वक्तव्य में विस्फोटों में किसी तरह की भागीदारी से इनकार करते हुए आरोप लगाया है कि सरकार के अधिकारियों द्वारा जानबूझकर शांति प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए गुट पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं।

Friday, October 24, 2008

मलेशिया: हिंड्राफ के 12 कार्यकर्ता गिरफ्तार

दैनिक जागरण, २४ अक्टूबर २००८, कुआलालंपुर। मलेशिया में पुलिस ने हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स [हिंड्राफ] के 12 सदस्यों को गिरफ्तार किया है।

मलेशियाई मीडिया के अनुसार पुलिस ने प्रतिबंधित हिंदू संगठन हिंड्राफ के 12 सदस्यों को उस समय गिरफ्तार किया जब वे प्रधानमंत्री कार्यालय में जेल में बंद हिंड्राफ कार्यकर्ताओं को रिहा करने की याचिका दाखिल करने जा रहे थे। गिरफ्तार कार्यकर्ताओं में हिंड्राफ के निर्वासित अध्यक्ष पी वायथा मूर्ति की पत्नी और उनकी सात वर्षीय बेटी भी है।

हिंड्राफ कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हे गैर कानूनी तरीके से एकत्र होने के आरोप में गिरफ्तार किया है। जबकि वे तो केवल प्रधानमंत्री कार्यालय में याचिका दाखिल करने जा रहे थे।

गौरतलब है कि मलेशिया में गत वर्ष हिंड्राफ पर सरकार विरोधी रैली करने का आरोप लगाकर सरकार ने उसके छह कार्यकर्ताओं पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाकर जेल में बंद कर दिया था। हिंड्राफ ने मलेशिया सरकार द्वारा हिंदू मंदिर तोड़ने का आरोप लगाकर रैली आयोजित की थी।

Wednesday, October 22, 2008

प्रतिमा विसर्जन के दौरान माहौल बिगड़ा, संघर्ष में कई जख्मी

दैनिक जागरण , १० अक्तूबर २००८, रायबरेली/कानपुर देहात/लखनऊ। देवी प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान शुक्रवार को रायबरेली, कानपुर देहात, श्रावस्ती और बहराइच में साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की गई जिसमें दो समुदायों के बीच हुए संघर्ष में कई लोग घायल हो गये। रायबरेली के जायस कस्बे में कुछ अराजक तत्वों ने हड्डी फेंककर विसर्जन को जाती देवी प्रतिमाओं को अपवित्र करने का प्रयास किया। विरोध में देवी भक्तों और हिंदू संगठनों ने मौके पर जमकर नारेबाजी करते हुए मूर्तियों के साथ धरना शुरू कर दिया। डीएम-एसपी ने मौके पर पहुंचकर स्थिति संभाली तथा भारी पुलिस बल तैनात कर दिया है।

दूसरी ओर कानपुर देहात में सिकंदरा से प्रतिमा विसर्जन को यमुना के बैजामऊ घाट जा रहे युवकों का हरिहरपुर गांव के पास दूसरे समुदाय के लोगों से विवाद होने पर दोनों पक्ष आमने सामने आ गए और उत्तेजक नारेबाजी के बाद संघर्ष हो गया जिसमें महिला सहित आठ लोग घायल हो गये। गांव सहित कस्बे में तनाव का महौल है। एसपी ने मारपीट की पुष्टि करते हुये स्थिति नियंत्रण में होने की बात कही है। जबकि श्रावस्ती जिले के नासिरगंज कस्बे में मार्ग-विवाद को लेकर ग्रामीणों तथा प्रशासन के बीच जमकर संघर्ष हुआ। ग्रामीणों ने पुलिस व प्रशासन के आधा दर्जन वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया और एक में आग लगा दी। उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए पुलिस ने हवा में गोलियां चलाईं। इस दौरान पथराव व लाठीचार्ज में चार अधिकारियों समेत सवा सौ लोग जख्मी हो गए। दुर्गा प्रतिमाओं को विसर्जन के लिए भेजने के बाद नासिरगंज व आसपास के इलाके में क‌र्फ्यू लगा दिया गया है। बहराइच में भी तनाव है।

शुक्रवार को देवी प्रतिमाओं का विसर्जन करने के लिए देवी भक्त नाचते-गाते वहाबगंज से सैदाना व कजियाना होकर कंचाना मोहल्ले में पहुंचे। वहां बस स्टैंड के पास मुस्लिम कमेटी के लोग विसर्जन यात्रा का स्वागत करने के लिए खड़े थे। यात्रा यहां पहुंचती, इससे पहले कुरेशी परिवार के कुछ लड़के देवी प्रतिमाओं की ओर हड्डी फेंककर भाग निकले। इस घटना से आवाक भक्तों ने मौके पर नारेबाजी करते हुए प्रतिमाओं को सड़क पर रखकर जाम लगा दिया। कुछ लोगों ने सांप्रदायिक बवाल की अफवाह फैलायी तो रायबरेली सदर तक सनसनी फैल गयी। हिंदू संगठनों के नेता भी घटनास्थल पर पहुंचने लगे और मामला तूल पकड़ने लगा। स्थिति विस्फोटक होती, इससे पहले मौके पर पहुंचे डीएम और एसपी के साथ जायस के बुद्धिजीवियों ने उग्र लोगों को शांत कराया। आला अफसरों ने हड्डी फेंकने वालों की शिनाख्त कराने के बाद गिरफ्तारी का आश्वासन देकर प्रतिमा विसर्जन कराना चाहा, लेकिन देवी भक्त पहले कार्रवाई की मांग पर अड़े रहे। तनाव को देखते हुए कई थानों की फोर्स तथा पीएसी को तैनात कर दिया गया है।

उधर पुलिस के अनुसार पटेल चौक सिकंदरा से दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिये ट्रैक्टरों व मोटरसाइकिलों से लोग बैजामऊ स्थित यमुना नदी घाट जा रहे थे। थानाध्यक्ष जयकरन सिंह ने बताया कि बाइकसवार युवकों का हरिहरपुर गांव में धार्मिक स्थल के पास लघुशंका करने को लेकर दूसरे समुदाय के लोगों से विवाद हाने के बाद दोनों पक्षों में मारपीट हो गयी। इस बीच शोर सुनकर गांव के अन्य लोग यहां पहुंच गए इधर विसर्जन जुलूस में शामिल लोग भी घटना स्थल पर पहुंच गए। दोनों तरफ से जुटी भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने उत्तेजक नारेबाजी कर दी। राजपुर अंप्र के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर ईट पत्थर व लाठी डंडों से हमला कर दिया। करीब आधा घंटे तक हुए पथवार व संघर्ष में ढिकची के अनिल, नसीरपुर के राहुल व सिकंदरा के जितेंद्र, सतेंद्र व राजीव तथा हरिहरपुर गांव के मुश्ताक, मुस्तकीम व मुबीना गंभीर रूप से जख्मी हो गये। हरिहरपुर व सिकंदरा में तनाव की स्थिति बन गई है। सीओ डीके सिंह, सिकंदरा थानाध्यक्ष जयकरन सिंह, अमराहट थानाध्यक्ष राकेश तिवारी, राजपुर थानाध्यक्ष आरबी सिंह परिहार पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए थे। इधर माती मुख्यालय पर मौजूद एसडीएम सुभाष चौधरी घटना स्थल के लिये रवाना हो गये। पुलिस ने घायलों को अस्पताल भिजवाया। एसपी एन. रविंदर ने बताया कि घटना युवकों के बीच साधारण मारपीट की है। जुलूस के साथ सीओ डीके सिंह, राजपुर सिकंदरा, अमराहट के थानाध्यक्ष पुलिस बल के साथ मौजूद थे। एसपी ने तनाव की बात से इनकार कर स्थिति नियंत्रण में बताया।

अपर पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था बृजलाल ने बताया कि श्रावस्ती के नासिरगंज कस्बे के लिए गोंडा से एक कंपनी पीएसी रवाना कर दी गयी है। उन्होंने बताया कि वादे के बाद भी प्रतिबंधित मार्ग से जुलूस ले जाने से रोकने पर लोगों ने उपद्रव किया जिसके बाद पुलिस ने बल प्रयोग किया। बताया जाता है कि खलीफतपुर में न्यायालय के आदेश पर मूर्ति रखी गई थी जिसका विसर्जन जिला प्रशासन गांव के ही तालाब पर कराना चाहता था लेकिन लोग इसे नासिरगंज के जुलूस में शामिल करना चाहते थे। प्रशासन दुर्गापूजा समिति को समझाने की कोशिश में था कि नासिरगंज से लगभग दस हजार लोगों की भीड़ पहुंची और पुलिस की चौकसी को धता बताते हुए दुर्गा प्रतिमाएं उठाकर नासिरगंज ले आयी। पुलिस के रोकने पर लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया जिससे दर्जनों लोग घायल हो गए। इससे आक्रोशित भीड़ ने सरकारी वाहनों को क्षतिग्रस्त करना शुरू कर दिया जिसपर पुलिस ने गोलियां चला दीं। जिलाधिकारी एनजी रवि कुमार के मुताबिक स्थिति को नियंत्रित करने के लिये हवा में पांच राउंड गोलियां चलानी पड़ी और हल्का बल प्रयोग किया गया। उनके मुताबिक अपर पुलिस अधीक्षक लल्लन राय, एसडीएम कलीमुल्ला, एसओ सोनवा पलटूराम व पुलिस उपाधीक्षक के अलावा छह पुलिसकर्मी गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। उन्होंने भीड़ पर सीधी फायरिंग की बात से इनकार किया लेकिन लोगों का आरोप है कि पुलिस ने निशाना लेकर गोलियां चलायीं, जिससे धनदेई नामक महिला व एक बालक जख्मी हो गये। तीन अन्य लोगों को भी गोली लगी है जिन्हें पुलिस ने मौके से हटा दिया। जिलाधिकारी ने बताया कि क‌र्फ्यूग्रस्त क्षेत्र में उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिये गए हैं। इधर बहराइच के फखरपुर कस्बे में मार्ग विवाद को लेकर विसर्जन रोक दिया गया है। विवाद के चलते फखरपुर से भिलौरा बांसू तक 37 दुर्गा प्रतिमाओं की कतार लगी हुई है।

लौह पुरुष के प्रति अपमानजनक टिप्पणी से उबाल

दैनिक जागरण, २२ अक्टूबर २००८, मऊ । आजमगढ़ में बीते दिनों आयोजित आतंक विरोधी जलसे में एक वक्ता द्वारा देश के प्रथम उपप्रधानमंत्री एवं भारत रत्‍‌न से विभूषित लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल को आतंकवादी कहे जाने की खबर से यहां के लोगों का गुस्सा भड़क उठा है। मंगलवार को विभिन्न स्थानों पर मसले को लेकर हुई बैठक में कड़ी प्रतिक्रिया जतायी गयी और देश के एकीकरण में अहम भूमिका अदा करने वाले वाले लौह पुरुष के विरुद्ध ऐसी टिप्पणी करने वाले को देशद्रोही की संज्ञा देते हुए उसकी गिरफ्तारी की मांग की गयी।

स्थानीय जीवन राम इंटर कालेज में दोपहर एक बजे अध्यापकों की हुई बैठक में निंदा प्रस्ताव पास किया गया और सरदार पटेल को आतंकी बताने वाले मजहबी नेता को विक्षिप्त मानसिकता का राष्ट्रविरोधी करार दिया गया। शिक्षकों ने ऐसे तत्वों को तत्काल गिरफ्तार कर देशद्रोह के आरोप में जेल भेजे जाने की भी मांग उठायी। साथ ही ऐसे तत्वों का मुखर या मौन समर्थन करने वालों को भी हवालात की हवा खिलाते हुए कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की। अध्यक्षता प्रधानाचार्य स्वामीनाथ पाण्डेय ने की।

उधर चिरैयाकोट बाजार में भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष अविनाश लाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी सरकार पटेल को आतंकी बताये जाने पर कड़ी नाराजगी जतायी गयी। अध्यक्षीय भाषण में श्री लाल ने कहा कि देश का एकीकरण करने वाले महापुरुष किसी देशद्रोही की नजर में ही आतंकी हो सकते है। ऐसे देशद्रोही तत्वों को गिरफ्तार कर उन्हे सजा देनी चाहिये। इस मौके पर आशुतोष मिश्र, अभिमन्यु पाण्डेय, मनीष सोनी, मोनू वर्मा, महेन्द्र, रणंजय सिंह आदि उपस्थित थे।

Tuesday, October 21, 2008

पक्षपातपूर्ण बौद्धिकता

एस.शंकर
दैनिक जागरण, 20 अक्टूबर 2008। जामिया मिलिया के कुलपति प्रो. मुशीर उल हसन उदारवादी मुसलमानों के बड़े प्रतिनिधि माने जाते रहे है, लेकिन संदिग्ध आतंकियों को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सरकारी धन से सहायता देने की उत्कंठा दिखाने पर उनकी यह छवि धूमिल हो गई है। यह अकारण नहीं कि हिंदू लोग मुस्लिम बंधुओं से बातचीत करने में ध्यान रखते है कि विषय इस्लाम या मुस्लिम राजनीति की ओर न मुड़े। इससे असहज स्थिति पैदा हो सकती है। मुस्लिम भी हिंदू सहकर्मियों से तमाम विषय पर चर्चा करते है, पर इस्लाम पर नहीं। उन्हे भी डर रहता है कि हिंदू किसी बिंदु पर स्वाभाविक ही इस्लाम से असहमति व्यक्त कर सकता है। आखिर किसी विषय पर इस्लाम की आलोचना स्वीकार करना या सुनना मुसलमानों के लिए सहज नहीं होगा। जिन्हे यह सत्य न लगे वे इस सवाल पर विचार कर सकते हैं कि क्या कारण है कि बुद्धिजीवी कभी इस्लाम से जुड़े मुद्दे पर कोई सम्मेलन, व्याख्यान, प्रदर्शनी, अभियान या बहस नहीं करते?
दिल्ली के बुद्धिजीवी वर्ग ने इस्लाम और इस्लाम से जुड़े सभी असुविधाजनक प्रश्नों को सदैव पर्दे में रखा। क्यों? ये कैसे बुद्धिजीवी है, जो दस वर्ष से सारी दुनिया में चर्चित विषय-इस्लामी आतंकवाद पर सीधी गोष्ठी करने से भी बचते है? राजनीति या भय, कारण जो भी हो, एक बात तो स्पष्ट है कि हिंदू या मुस्लिम प्रगतिशील इस्लाम से जुड़े किसी प्रसंग के सामने छुई-मुई हो जाते है। उनका सारा आक्रोश व उत्साह हिंदुत्व, संघ परिवार अथवा 'सरकारी आतंकवाद' की लानत-मलानत करने में ही दिखता है। इसीलिए उन्होंने कभी जेहाद, द्विराष्ट्र सिद्धांत, शरीयत कोर्ट, फतवे, तीन तलाक, सलमान रुश्दी, अयातुल्ला खुमैनी, ओसामा बिन लादेन, इब्न बराक, तालिबान, देवबंद, इंतिफादा, अलकायदा, जमाते इस्लामी, सिमी, दीनदार अंजुमन, कश्मीरी हिंदुओं का विस्थापन, पूर्वी तिमोर, शिया-सुन्नी संघर्ष, जबरन मतांतरण, हज सब्सिडी, इस्लाम में स्त्री आदि विषयों पर कोई सभा-सम्मेलन नहीं किया, जबकि ये सब विषय लोगों को उद्वेलित करते रहे है। इमराना, पैगंबर मोहम्मद के कार्टून, डेनमार्क विरोधी मुस्लिम हिंसा, तस्लीमा नसरीन का प्रकरण या सिमी के कारनामे हाल के उदाहरण है। इन विषयों पर दिल्ली में सेमिनार क्यों नहीं होते, यह हिंदू और मुस्लिम बुद्धिजीवी जानते है। कारण यह है कि इन बिंदुओं पर सच कहने का साहस नहीं है। इससे या तो इस्लाम की अवमानना होने का डर रहता है या फिर मुस्लिम नेता धमकियां देने लगते हैं। बहस से इसलिए बचा जाता है, क्योंकि सारे बुद्धिजीवियों की असलियत सामने आ जाएगी। जाहिर हो जाएगा कि इनकी बौद्धिकता हिंदू विरोधी और एक हद तक राष्ट्र विरोधी भी है। इसीलिए चाहे विषय पूरे देश को मथ रहा हो,यदि इसमें इस्लाम की दुर्बलता या आलोचना की संभावना हो तब उस पर हमारे प्रगल्भ वामपंथी-पंथनिरपेक्षवादी गोष्ठी करने के बजाय सामूहिक छुट्टी पर चले जाते है, किंतु यदि मौन रहना संभव न रहे तब उनकी नीति भटकाने की होती है। यदि इस्लामी आतंक की घटना हुई हो तो पहले उसके बारे में संदेह जताया जाता है। बड़ी संख्या में दुनिया भर के मुस्लिम कहते है कि 11 सितंबर को अमेरिका पर आतंकी हमले अलकायदा ने नहीं, बल्कि अमेरिका ने खुद ही करवाए थे। अभी दिल्ली के जामियानगर में आतंकवादियों के साथ पुलिस मुठभेड़ को फर्जी कहना वही अदा है, पर जब संदेह करना कठिन हो तो कहा जाता है कि मुस्लिमों के साथ लंबे समय से अन्याय हो रहा है। आक्रोश में कुछ भटके हुए मुस्लिम हिंसा करते है तो आक्रोश का 'मूल कारण' समझने की कोशिश करनी चाहिए। एक तरह से यह इस्लामपंथियों का श्रम-विभाजन है। कुछ जेहाद करते है तो दूसरे उनका वैचारिक बचाव।
छद्म बुद्धिजीवी पहले तो इस्लामी आतंकवाद के अस्तित्व से ही इनकार करते हैं। वे कहते हैं कि इस्लाम में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। फिर भारत, इंग्लैंड जैसे देशों में मुस्लिम नेता विशेषाधिकारों की मांग करते है। इसकी तुलना मुस्लिम देशों में गैर-मुस्लिमों की दुर्दशा से करने पर वे बौखला जाते हैं और रटा-रटाया फिकरा कहते हैं कि यह 'इस्लाम-विरोधी प्रचार' है। तीसरे, किसी भी प्रसंग में हिंदू संगठनों की निंदा अनिवार्य रस्म है। किसी भी सूरत में उदारवादी मुस्लिम आत्म-चिंतन करने या अपने समुदाय की गलती को ईमानदारी से स्वीकार करने का कष्ट नहीं करते। यही कारण है कि जब कई वर्षो से विश्व के बौद्धिक पटल पर इस्लाम की सीमाएं और आधुनिकता संबंधी बहस चल रही है तो उसमें भारतीय मुस्लिम कहीं नहीं दिखते। कारण उनमें सच्चाई को नकारने और दूसरों को दोष देने का स्थायी भाव घर कर चुका है। अंतत: इससे मुसलमानों का ही नुकसान होगा। बीमारी को छिपा कर उसका इलाज नहीं किया जा सकता।

Monday, October 20, 2008

Right wing organisations call for Goa Bandh

19 October 2008 Panaji (PTI): The Hindu right wing organisations in the state have given a call for Goa bandh on Monday to protest the recent incidence of desecration of idols in the state.

Grouped under the banner of Mandir Suraksha Samiti, the organisations including Bajrang Dal and Hindu Jangaruti Samiti have flayed the state government for its failure to arrest people behind such acts.

Over 500 places places of religious significance were desecrated in the recent past.

"We appeal to the people to participate wholeheartedly in the bandh and make it successful," the organisers had said earlier this week during a press conference.

Goa government has taken the strike call seriously and promulgated Section 144 of CrPc prohibiting processions, demonstrations, bandh, strikes, road closures and forcible closure of shops and other establishments on October 20 between 6 am and 6 pm.

"We appeal people to desist from participating in the bandh. Government will provide adequate security to all the shops and establishments, which would not respond to the bandh," Goa Chief Minister Digamber Kamat told a press conference yesterday.

"These shrines are in the isolated places. There is a systematic effort to tamper communal harmony in the state," Kamat said.

अल्पसंख्यक युवकों को कोचिंग करायेगी प्रदेश सरकार

दैनिक जागरण, २० अक्तूबर २००८, लखनऊ: अल्पसंख्यक युवकों को नौकरी के लिए प्रदेश सरकार कोचिंग करायेगी। मुख्यमंत्री मायावती ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को निर्देश दिये हैं कि कोचिंग की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिये जिससे वे पुलिस, सुरक्षा बल, पब्लिक सेक्टर, रेलवे, बैंक, बीमा कम्पनियों और स्वायत्तशासी संस्थाओं में ज्यादा से ज्यादा संख्या में नौकरी पा सकें। मुख्यमंत्री ने निर्देशों में कहा है कि इंटरमीडिएट, डिग्री अथवा पीजी की शिक्षा पूरी करने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के युवकों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए कोचिंग की जरूरत होती है, पर फीस अत्यधिक होने के कारण गरीब बच्चे इसे हासिल नहीं कर पाते। ऐसे में सरकार का दायित्व है कि वह इन बच्चों को यह सुविधा उपलब्ध कराये। मुख्यमंत्री ने निर्देशों में कहा है कि अल्पसंख्यक बच्चों को इंजीनियरिंग, लॉ, मेडिकल, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और आईटी कालेजों में प्रवेश दिलाने के लिए भी कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाय। कहा गया है कि अल्पसंख्यक युवकों को उनके ही जिलों में उस कोचिंग से परीक्षा की तैयारी करने की सुविधा दी जायेगी जिसके माध्यम से लगातार तीन वर्षो तक 15 प्रतिशत सफलता रिकार्ड रहा हो। अल्पसंख्यक छात्रों को कोचिंग की सुविधा दिये जाने में सहयोग देने के लिए मंडलायुक्त की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जायेगी, जिसमें जिलाधिकारी, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्था के प्रतिनिधि विश्र्वविद्यालय अथवा महाविद्यालय के प्रोफेसर या प्रधानाचार्य प्रतिष्ठित समाजसेवी तथा शिक्षाविद शामिल होंगे। कोचिंग संस्थाओं के चयन हेतु शासन स्तर पर समिति का गठन किया गया है, जिसके अध्यक्ष, सचिव अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ होंगे। इस योजना के तहत ऐसी कोचिंग संस्थाएं जो राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तर पर प्रतिष्ठा पा चुकी हैं, चाहे वे अन्य राज्यों में हों, इस योजना में आच्छादित मानी जायेंगी। अल्पसंख्यक छात्रों को इन कोचिंग में भेजा जायेगा और अनुदान भी दिया जायेगा।

Sunday, October 19, 2008

जामिया मुठभेड़: प्रधानमंत्री से मिले नेता

18 अक्टूबर 2008 ,वार्ता , नई दिल्ली। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर उन्हें जामिया नगर के बाटला हाउस मुठभेड़ कांड को लेकर उठ रही शंकाओं से अवगत कराया तथा इन्हें दूर करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की मांग की।

कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के एक प्रतिनिधिमंडल में शामिल इन नेताओं ने डॉ. सिंह को ताजा हालत की जानकारी दी और उनसे आग्रह किया कि गत 19 सितंबर को हुई इस मुठभेड़ को लेकर मुसलमानों में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं, उनका जवाब दिया जाना चाहिए।

प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस महासचिव मोहसिना किदवई, पूर्व केंद्रीय मंत्री सीके. जाफर शरीफ और सलमान खुर्शीद, राज्यसभा के उपसभापति के रहमान खान, अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष इमरान किदवई तथा अनीस दुर्रानी शामिल थे।

दुर्रानी ने बताया कि हमने इस मुठभेड़ की न्यायिक जांच कराने की मांग नहीं की लेकिन हम चाहते हैं कि सरकार की ओर से शंकाओं को दूर करने का जल्द से जल्द प्रयास किया जाना चाहिए।

आधा घंटे से अधिक समय तक चली इस बैठक में नेताओं ने सांप्रदायिक आधार पर समाज को बांटने के चल रहे प्रयासों तथा देश के विभिन्न हिस्सों विशेषकर उड़ीसा और कर्नाटक में इसाइयों पर हो रहे हमलों पर गहरी चिंता जताई।

नेताओं ने कहा कि ऐसी घटनाओं से अल्पसंख्यकों में दहशत और अविश्वास की भावना पैदा हो रही है, जो देश के लिये बहुत खतरनाक है।

इन नेताओं ने मुसलमानों की स्थिति सुधारने के लिए सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने की कार्यवाही में तेजी लाने का भी आग्रह किया।

दुर्रानी ने बैठक के बाद बताया कि प्रधानमंत्री ने हमारी बातों को ध्यान से सुना है और कहा है कि अल्पसंख्यकों में विश्वास पैदा करने के लिए जरुरी कदम उठाए जाएंगे।

उल्लेखनीय है कि सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने बाटला मुठभेड कांड की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।

कांग्रेस ने इस मांग का समर्थन तो नहीं किया है लेकिन उसने साफतौर पर कहा कि इस मुठभेड के बारे में स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।

पार्टी ने इसके लिए सरकार पर दवाब बनाना भी शुरु कर दिया है। पार्टी के कई नेताओं ने शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर इसी तरह की मांग की थी। पार्टी के अल्पसंख्यक विभाग की सलाहकार परिषद की पिछले दिनों हुई बैठक में यही मुद्दा छाया रहा।

क्रिमिनल की गिरफ्तारी पर पब्लिक ने किया बवाल

दैनिक जागरण, १८ अक्तूबर २००८, मऊ। नगर में शुक्रवार की आधी रात को प्रशासनिक तत्परता ने स्थिति को विस्फोटक होने से बचा लिया। मामला था दक्षिण टोला थाना क्षेत्र के डोमनपुरा निवासी एक युवक की गिरफ्तारी के विरोध का। दरअसल जमशेद नामक युवक को पिस्टल एवं 16 कारतूस के साथ एसओजी ने भीड़भाड़ वाले मिर्जाहादीपुरा क्षेत्र से उठा लिया। इससे आक्रोशित होकर काफी संख्या में इकट्ठे हुए लोगों ने थाने का घेराव कर अभियुक्त को छोड़े जाने की मांग की। सफल न होने पर पथराव शुरू कर दिया गया। इसमें थानाध्यक्ष आरडी शुक्ल घायल हो गये। पुलिस द्वारा इस घटना में डेढ़ सौ लोगों के विरुद्ध भादंसं के तहत 147, 148, 149, 332, 352, 353, 7 क्रिमिनल ला अमेंडमेंट के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी है।

पुलिस के अनुसार दक्षिण टोला थाना क्षेत्र के डोमनपुरा मुहल्ला निवासी जमशेद के पास पिस्टल एवं 16 कारतूस होने की सूचना पर एसओजी टीम के सदस्यों ने उसे गिरफ्तार कर लिया। चूंकि पुलिस टीम के सदस्य सादे वेश में थे इसलिये आसपास के लोगों को गलतफहमी हो गयी। लोग थाने पर सूचना देने पहुंच गये कि बदमाशों ने जमदेश का अपहरण कर लिया है। पुलिस के सेट भी घनघनाने लगे। थोड़ी ही देर में नगर की नाकेबंदी भी कर दी गयी लेकिन जब पुलिस अधिकारियों को वास्तविकता मालूम हुई तो उन्होंने लोगों को जानकारी दी कि जमशेद को बदमाश नहीं पुलिस ने गिरफ्तार किया है। लोग इस जानकारी से संतुष्ट नहीं हुए और बड़ी संख्या में दक्षिण टोला थाना पहुंचकर घेराव प्रारंभ कर दिया। सूचना पाकर सीओ सीटी विद्या सागर मिश्र व प्रभारी निरीक्षक जेपी तिवारी भारी फोर्स लेकर मौके पर पहुंच गये। उधर पुलिस द्वारा अभियुक्त को न छोड़े जाने को लेकर उग्र भीड़ द्वारा थाना भवन पर पथराव शुरू कर दिया गया। पुलिस ने उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिये हल्का बल प्रयोग करते हुए लोगों को खदेड़ दिया। इस संबंध में जहां गिरफ्तार जमशेद का 25 आ‌र्म्स एक्ट के तहत चालान कर दिया गया वहीं डेढ़ सौ अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज की गयी है।

Friday, October 17, 2008

Historic Hindu temple burnt

17-Oct-2008 , FIJI DAILY POST। A HINDU temple built in 1905 by Indian indenture labourers has burnt in what is alleged by some to be another act of sacrilege which is becoming common in the country।

The Kendrit Sanatan Dharm Shiv Mandhir at the premises of the Nadi Primary School in Narewa was set ablaze by some unknown people early yesterday morning.

The temple was one the oldest in the country and was a popular spot for many Hindu devotees from Fiji and abroad.

According to temple manager Prem Sharma at around 3am yesterday some people noticed smoke coming out of the temple and the National Fire Authority (NFA) Nadi was alerted.

Sharma said that by the time the firefighters arrived on the scene the corrugated iron, timber and concrete building was completely ablaze.

“All belongings inside the temple was completely burnt along with extensive damage done to the temple exterior,” he said.

“We believe someone entered the temple with the intention of burning it as fire started from a wooden box inside the temple.”

“Also this is a sure case of sacrilege because the idol of Lord Shiva was damaged prior to the temple being set alight,” said Sharma.

He added that those people who had committed the crime were “religious fanatics and have no love for other religions.”

Sharma has urged the authorities teach people to respect each other’s religions.

“It’s very sad that only the Hindu places of worship are being targeted while we hardly see any Indians showing any form of disrespect or damaging churches or other places of worship.

The Shree Sanatan Dharm Brahman Purohit Sabha of Fiji also strongly condemned the action.

Sabha national secretary Umeshwar Ram Sharma said such acts were only carried out by “cowards”.

Sharma who used to perform the Holy Ramayan at the temple every Monday said they would work hard to rebuild it soon with the help of members of the temple and the community there.

Meanwhile, Deputy Divisional Crime Officer Western ASP Waisea Kadawa said yesterday that police were still investigating the case and no arrests were made.

ममता करेंगी बाटला हाउस का दौरा

5 अक्टूबर २००८, वार्ता, नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी आगामी 17 अक्टूबर को राजधानी के जामियानगर इलाके के ‘बाटला हाउस’ का दौरा करेंगी, जहां पिछले दिनों आतंकवादियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गए थे तथा दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर शहीद हो गए थे।

पार्टी सूत्रों ने बुधवार को बताया कि बनर्जी सहित पार्टी के 21 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल के बाटला हाउस दौरे का मकसद अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति सहानुभूति एवं हमदर्दी जताना है। तृणमूल नेता मुठभेड़ की घटना की न्यायिक जांच की भी मांग कर सकती हैं।

सूत्रों के मुताबिक इस प्रतिनिधिमंडल में कोलकाता के टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम भी शामिल होंगे।

गौरतलब है कि कई संगठन इस मुठभेड़ को फर्जी ठहराते हुए इसकी जांच की मांग कर चुके हैं। इस क्षेत्र के अधिकतर लोगों का कहना था कि मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादी नहीं बल्कि छात्र थे।

Thursday, October 16, 2008

मलेशिया ने हिंदू संगठन पर प्रतिबंध लगाया

15 अक्टूबर 2008 , रॉयटर्स , कुआलालम्पुर। मलेशिया सरकार ने देश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ कथित भेदभाव को लेकर पिछले वर्ष विरोध का झंडा बुलंद करने वाले हिंदू संगठन हिंदू राइट ऐक्शन ग्रुप (हिंद्राफ) पर आज प्रतिबंध लगा दिया।

गृह मंत्री सैयद हामिद अलबर ने कहा “हिंद्राफ को गैर कानूनी संगठन घोषित करने का फैसला इसकी एक या दो गतिविधियों के आधार पर नहीं बल्कि इस बात के पुख्ता सबूत के बाद लिया गया कि संगठन कानून और नैतिकता के लिए खतरा बन गया है।”

उन्होंने कहा कि अपनी मांगों के सामने सरकार को झुकने के लिए विवश करने के वास्ते उसने बाहरी देशो से भी समर्थन हासिल करने की कोशिश की थी।

विपक्षी डेमोक्रेटिक ऐक्शन पार्टी ने प्रतिबंध की यह कहकर निन्दा की कि हिंद्राफ पर प्रतिबंध लगाने के लिए गृह मंत्रालय की कड़े से कड़े शब्दों में आलोचना की जानी चाहिए। डीएपी के नेता लिम किट सियांग ने कहा “इससे भारतीय मूल के समुदाय में असंतोष और बढेगा।”

मलेशिया ने हिंद्राफ के पांच कार्यकर्ताओं को पिछले वर्ष नवंबर से ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत हिरासत मे ले रखा है जिसमें बिना सुनवाई के आरोपी को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखने का प्रावधान है।

देश की करीब दो करोड 70 लाख की आबादी में सात प्रतिशत भारतीय मूल के लोग हैं। चीनी मूल के मलेशियाई लोगों के साथ भारतीय मूल के लोगों ने भी मलेशिया सरकार की स्थानीय मुसलमानों को वरीयता देने वाली नीतियों के खिलाफ विरोध दर्ज किया था।

गुमराह करने वाले हितैषी

आतंकवाद के संदर्भ में मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने वाले वक्तव्यों से सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं राजनाथ सिंह सूर्य

दैनिक जागरण १५ अक्तूबर २००८, जब कभी आतंकी घटनाओं के संदर्भ में पुलिस की धरपकड़ तेज होती है तब यह बयान बार-बार दोहराया जाता है कि मुसलमानों को आतंकवाद से नहींजोड़ा जाना नहीं चाहिए, मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, इस्लाम में आतंक या अतिवादी कार्रवाई की इजाजत नहीं है आदि-आदि। वर्षों से इस प्रकार की अभिव्यक्ति सुनते रहने के कारण यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि कौन है जो सभी मुसलमानों को आतंकवादी मान रहा है या फिर इस्लाम को आतंक से जोड़ रहा है? यूरोपीय देशों में आतंकी घटनाओं के बाद 'इस्लामी टेररिस्ट' शब्द का प्रयोग हुआ है। इसकी वजह यह है कि इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने के सूत्रधार चाहे पहले लीबिया के गद्दाफी रहे हों या अब ओसामा बिन लादेन-सभी ने अपने को इस्लाम का अलंबरदार घोषित किया। यूरोप और अमेरिका में इस्लाम के अनुयायियों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा। बावजूद इसके चाहे अमेरिका हो या इंग्लैंड अथवा यूरोप के अन्य देश, न तो इस्लाम के नाम से पहचाने जाने वाले सभी संगठनों को गैर-कानूनी घोषित किया गया है और न इस्लामी देशों के समान गैर-इस्लामी आस्था वालों पर लगे प्रतिबंधों का अनुशरण किया गया है। जिन संगठनों ने स्वयं ही आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का दावा किया या सबूत मिले उन्हें अवश्य प्रतिबंधित किया गया तथा उस देश के कानून के मुताबिक उनके विरूद्ध कार्रवाई भी की गई। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अपने देश के आतंकी संगठनों के विरुद्ध अमेरिकी सैन्य कार्रवाई का समर्थन किया। पिछले तीन दशक से इस्लामी आस्था पर कथित आघात के प्रतिशोध में हो रही आतंकी घटनाओं में जितने लोग मारे गए हैं उतने तो किसी युद्ध में भी नहीं मारे गए। इस प्रकार के जुनून वालों के हमले से सबसे पवित्र तीर्थ माना जाने वाला मक्का भी महफूज नहीं रहा। धीरे-धीरे अनेक देश, जिनमें इस्लामी देश भी शामिल हैं, इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई के पक्ष में खड़े हो गए हैं।

भारत में आतंकी घटनाओं की पृष्ठभूमि अलग है। पाकिस्तान और बांग्लादेश, दोनों देशों के सत्ता प्रतिष्ठान अपने मंसूबों की पूर्ति के लिए इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते रहे हैं। अब इन घटनाओं में भले ही 'देशी' लोगों की ही मुख्य भूमिका हो, लेकिन सूत्रधार का काम पाकिस्तान और बांग्लादेश ही कर रहे हैं। भारत में वांछित अपराधियों को संरक्षण देने, आतंकी भेजने, आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वालों को प्रशिक्षित कर उन्हें विस्फोटक तथा धन मुहैया कराने, घुसपैठ कराकर आबादी का संतुलन बिगाड़ने, जाली नोटों का जखीरा भेजने आदि सभी कामों को पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आईएसआई कर रही है। इसके ढेरों सबूत हैं। यह संस्था न केवल मजहबी समानता का जुनून पैदाकर मुस्लिम युवकों को गुमराह कर रही है, बल्कि उल्फा एंवं नक्सलवादियों जैसे उग्र अथवा पृथकवादी संगठनों को सभी प्रकार की सहायता दे रही है। पंजाब की जागरूक जनता ने अपने राज्य में आईएसआई की इस साजिश का सफलता से मुकाबला किया। देश के अन्य भागों में उस साहस और सोच का अभाव है। शायद यही कारण है कि जब भी आतंकी घटना के आरोप में गिरफ्तारी होती है, यह शोर मचाने वाले सक्रिय हो जाते हैं कि सभी मुसलमानों को आतंकी न कहा जाए। प्रश्न वही उठ खड़ा होता है कि यह भावना कौन फैला रहा है? न तो किसी राजनीतिक दल ने, न किसी सरकार ने, न प्रशासन ने और न ही किसी हिंदूवादी संगठन ने एक बार भी सभी मुसलमानों के आतंकवाद से जुड़े होने की अभिव्यक्ति की है। यह अभिव्यक्ति मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व करने वालों द्वारा भी कभी-कभार ही की जाती है, लेकिन सेकुलरिज्म का जामा पहनकर सांप्रदायिकता के लिए खाद-पानी मुहैया कराने वाले बार-बार इस प्रकार का बयान देकर उन लोगों के मन में भी शंका पैदा करने का काम करते हैं जिनकी इस प्रकार की सोच नहीं है।

न तो मुसलमान आतंकी हैं, न पृथकतावादी, लेकिन आतंकी घटनाओं में शामिल होने के आरोप में जो भी पकड़े गए हैं वे मुसलमान हैं और पाकिस्तानी झंडा हाथ में लेकर कश्मीर घाटी में 'आजादी' की मांग करने वाले भी मुसलमान हैं। जिस प्रकार 1984 के बाद कुछ सालों तक सभी सिख संदेह की नजर से देखे जाते थे उसी प्रकार आजकल की घटनाओं के कारण सभी मुसलमानों के प्रति ऐसी धारणा का प्रभाव संभव है। क्या सिखों के प्रति उस समय बनी धारणा कायम रह सकी? नहीं। सिर्फ इसलिए, क्योंकि स्वयं सिख समुदाय ने आतंकियों से निपटने में जनसहयोग दिया। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उस अभियान में निर्दोष नहीं सताए गए, लेकिन ऐसा जानबूझकर किया गया, यह आरोप नहीं लगाया गया। हम कैसे देश में रह रहे हैं, जहां सरकार आतंकी कार्रवाई से निपटने के लिए कड़े कानून बनाने की बात कर रही है, आतंकियों को मारने या पकड़ने में सफलता का दावा कर रही है और जिस पार्टी की सरकार है वह फर्जी मुठभेड़ का दावा करने वालों की कतार में खड़ी होकर न्यायिक जांच कराने की मांग कर रही है। किसी भी 'अल्पसंख्यक' आयोग ने कश्मीर से बेघर किए गए हिंदुओं की दशा पर वक्तव्य तक मुनासिब नहीं समझा। मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग करने वालों ने एक बार भी पाकिस्तानी झंडा लहराते हुए आजादी की मांग करने को देशद्रोह बताने का साहस नहींकिया। अहमदाबाद की घटनाओं के बाद आजमगढ़ का एक इलाका आतंकियों के गढ़ के रूप में प्रगट हुआ, लेकिन इसका खुलासा तो उस अबुल बशर ने ही किया जिसे आतंकी वारदात के संदर्भ में पकड़ा गया। जो लोग इंस्पेक्टर मोहनचंद्र शर्मा की शहादत पर सवाल खड़े करते हैं या संसद पर हमले के दोषसिद्ध आरोपी अफजल की पक्षधरता करते हैं वे मुस्लिमों के हितचिंतक नहींहो सकते। मुसलमानों को आत्मचिंतन करना होगा। वे भयादोहन करने वालों से जितना परहेज करेंगे उतना ही पाकिस्तान के मंसूबे ध्वस्त होंगे।


संकीर्णता का विषाणु

इस्लाम के उदारवादी पक्षों को मजबूत करने की जरूरत पर बल दे रहे है जगमोहन
दैनिक जागरण, १६ अक्तूबर २००८. वैचारिक विषाणु में जमी आतंकवाद की जड़ें जिस तरह राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पर्तो को भेद रही हैं उससे आतंकवाद की समस्या न केवल विभिन्न राष्ट्रों के लिए अलग-अलग रूप से, बल्कि समग्र अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है। विश्व शांति और स्वतंत्रता, सहिष्णुता तथा खुलेपन के आधारभूत मूल्य इस बात पर निर्भर करेंगे कि इस बहुआयामी विकट समस्या से कैसे निपटा जाता है? इसमें मिलने वाली सफलता और विफलता ही हमारी सभ्यता की प्रकृति का निर्धारण करेगी। टोनी ब्लेयर ने ठीक ही कहा है, ''मौजूदा आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष सभ्यताओं के बीच टकराव नहीं, बल्कि सभ्यता के संबंध में टकराव है।'' इस वैचारिक वायरस से निपटने का कार्य यूनेस्को या संयुक्त राष्ट्र की नई विशिष्ट एजेंसी के हवाले कर देना चाहिए। यह एजेंसी उन पहलुओं और शक्तियों में सकारात्मक और तीव्र बदलाव लाने में सहायक हो सकती है जो दुनिया में बड़ी संख्या में मुसलमानों के मन-मस्तिष्क को प्रभावित कर रही हैं। यूनेस्को या विशिष्ट एजेंसी ऐसी नीति और कार्यक्रम तैयार करे जो मुस्लिम देशों में प्रबुद्ध नेतृत्व को आगे लाने में सहयोग दें, ताकि मुस्लिम विचारधारा के उन पहलुओं को आगे बढ़ाया जा सके जो मुक्ति, मानवता, बहुलता के पक्ष में हैं तथा विद्वेष फैलाने वाले विचारों को कुचलते हैं।
यह कार्य संविधान में वर्णित 'गतिशील तथा सौहार्दपूर्ण रचनात्मकता' के सिद्धांत का अनुकरण कर पूरा किया जा सकता है। इसका आशय है कि यदि संविधान में दो प्रावधान हैं, जो रूढ़ व्याख्या के कारण एक-दूसरे से टकरा रहे हैं तो उन्हें इस रूप में देखना चाहिए जिससे वे सकारात्मक और सौहार्दपूर्ण रचनात्मकता में सहायक बनें। एक ऐसी रचनात्मकता जो समयानुकूल हो और जो सहअस्तित्व के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर सके। इसके साथ ही जो मानवता को शांति, प्रगति और उत्पादकता की ओर उन्मुख कर सके। बात को स्पष्ट करने के लिए कुरान से दो उद्धरण गाबिले गौर होंगे। पहला है, ''तुम्हारे लिए तुम्हारा पंथ, मेरे लिए मेरा पंथ'' । दूसरा, ''ओ मानवजाति! हमने महिला और पुरुष के एक जोड़े से तुम्हारी रचना की और तुम्हें एक राष्ट्र और कबीला बनाया, ताकि तुम एक-दूसरे को जान सको, न कि एक-दूसरे से तिरस्कार करो'' । इस्लाम की आयतों को संकीर्णता के साथ तोड़-मरोड़ कर पेश करने के खिलाफ इस प्रकार की आयतों पर विशेष रूप से बल देने की आवश्यकता है। कुल मिलाकर मामला व्याख्या पर आकर टिक जाता है। यह वह काम है जो मानव समाज द्वारा किया जाना है। चौथे खलीफा अली इब्न अबी तालिब ने सही ही कहा था, ''यह कुरान है, सीधे शब्दों में लिखी हुई; यह जबान नहीं बोलती; इसकी व्याख्या जरूरी है; और व्याख्या जनता करती है।''
जो यह दावा करते हैं कि इस्लाम के तमाम पहलू दिव्य हैं वे अक्सर भूल जाते हैं कि इन पहलुओं की व्याख्या 'पूरी तरह मानवीय और सांसारिक' है। अफगानिस्तान में तालिबान की इस्लाम की व्याख्या लड़कियों के स्कूल बंद कराने की है। बुनियादी रूप से आज मुद्दा इस्लामिक आतंकवाद का नहीं है, बल्कि ऐसे आतंकवाद का है जो इस्लाम की संकीर्ण, नकारात्मक और तमाम नैतिक व पंथिक मूल्यों को अस्वीकारने वाली व्याख्या करता है। यह ऐसी व्याख्या है जो खुद खुदा की मूलभूत अवधारणाओं से मेल नहीं खाती। यह संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है। कट्टरपंथी लोग इस्लाम को टूटे चश्मे से देखते हैं और इससे नजर आने वाली विकृत तस्वीर को विश्वासी मुसलमानों को सही बताते हैं। इस प्रकार, समस्या का हल अज्ञानता दूर करने और मुस्लिम जनता को यह बताने में निहित है कि उग्रवादी इस्लाम का जो रूप पेश कर रहे हैं वह सही नहीं है।
अधिकांश मुस्लिम देशों में हालात को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह जरूरी हो जाता है कि उग्रवादी तत्वों से छुटकारा पाने और उदार इस्लाम से निकली शक्तियों का आधिपत्य स्थापित करने के लिए जोरदार पहल की जाए। इसके साथ ही मोहम्मद वहाब, सैयद कुत्ब, मौलाना मौदूदी, ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी और ऐसे अन्य तत्वों के इस्लामिक विचारों को हतोत्साहित करने की जरूरत है। इनके विचार असाधारण रूप से संकीर्ण और रूढ़ हैं। वे उदारता को सांस्कृतिक भ्रष्टाचार के रूप में देखते हैं और खुद के द्वारा विवेचित शरीयत को लोगों के निजी और सार्वजनिक जीवन में लागू करना चाहते हैं। या तो अनुचित व्यग्रता या फिर एकीकृत सोच के अभाव में वे गलत निष्कर्षो पर पहुंच जाते हैं और गलत सिद्धांत प्रतिपादित करते हैं। कभी-कभी वे अपनी पूर्वकल्पित धारणाओं को आध्यात्मिक आग्रहों से जोड़ देते हैं। उदाहरण के लिए कुरान में पंथ त्याग देने वाले दूसरे मुसलमानों को मारने की मनाही के बावजूद सैयद कुत्ब उन्हें मौत का हकदार बताते हैं।
कुत्ब की तरह वहाब और मौदूदी जैसे विचारकों ने भी इस्लामिक सोच में उग्रवादी रूढि़ता की शुरुआत की। उन्होंने जमाल अल-दीन अल-अफगानी और मोहम्मद अब्दुह जैसे महान विद्वानों के विचारों की पूरी तरह अनदेखी की। इन विद्वानों का कहना था कि आधुनिकता के साथ इस्लाम की असंगतता सही नहीं है। उन्होंने प्रतिपादित किया कि प्रकृति और विज्ञान के नियम भी अल्लाह के नियम हैं और तर्क व विवेचनात्मक गुण भी अल्लाह की देन हैं। दूसरे शब्दों में, दोनों तरह के नियमों यानी कुरान और हदीस में उल्लिखित नियमों और प्रकृति के नियमों का एक ही स्त्रोत है और दोनों बराबरी के हकदार हैं। इसी प्रकार सर मुहम्मद इकबाल ने अपनी महत्वपूर्ण रचना 'इस्लाम में पंथिक विचार का निर्माण' में लिखा है, ''इस्लाम का पैगंबर प्राचीन और आधुनिक संसार के बीच खड़ा है। जहां तक इलहाम के स्त्रोत का संबंध है, यह प्राचीन संसार से संबंध रखता है और जहां तक इलहाम की भावना का सवाल है तो यह आधुनिक संसार से संबद्ध है। उनमें जीवन नई दिशा के उपयुक्त ज्ञान के अन्य स्त्रोतों की खोज करता है। इस्लाम का जन्म प्रेरक बौद्धिकता का जन्म है।'' इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को या फिर किसी ऐसी एजेंसी के लिए यह लाजिमी हो जाता है कि अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के हित में नई पहल करे। एक ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जो गतिशील इस्लाम के पक्षधर विचारकों को प्रेरित करने के लिए नई राह और साधन उपलब्ध कराए।
वैश्विक मानवीय व्यवस्था कायम करना समय की जरूरत है। यह हैरानी की बात है कि आतंक का राज खत्म करने के लिए अब तक इस प्रकार के कदम क्यों नहीं उठाए गए हैं? क्या यह संयुक्त राष्ट्र का कर्तव्य नहीं है कि वह मानवता की शांति और बहुलता के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम करे। संयुक्त राष्ट्र को कुछ प्रस्ताव पारित करने या फिर सदस्य देशों को निर्देश देने भर से संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। उसे लोगों के दिलोदिमाग से कट्टरपंथी विचारों को निकाल फेंकने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालीन ठोस उपाय करने चाहिए और इन विचारों के स्थान पर उदारवादी इस्लाम में यकीन रखने वाले विद्वतजनों के विचारों को भरना चाहिए। ये उपाय इस्लाम को सकारात्मक शक्ति के रूप में देखने वाले प्रबुद्ध वर्र्गो के लिए सहयोग का विषय बनेंगे। वैचारिक वायरस के खात्मे के लिए ये उपाय ही सही दवा का काम कर सकते हैं।

धीमी पड़ रही है आतंक के खिलाफ मुहिम

दैनिक जागरण, १६ अक्तूबर २००८। अभी तो आतंकवाद के खिलाफ सुनियोजित तरीके से काम की शुरुआत ही हुई थी। संप्रग सरकार के कार्यकाल में आतंक का नया नाम बने इंडियन मुजाहिदीन की कमर टूट चुकी है, लेकिन अभी उसका सफाया बाकी है। इतना ही नहीं, आतंक के अन्य माड्यूल के बारे में तो विभिन्न राज्यों की पुलिस और खुफिया एजेंसियां शुरुआती सुराग पा सकी हैं और उसे ध्वस्त करने के लिए लंबा काम बाकी है। मगर चुनावी सियासत के आगे आतंक के खिलाफ मुहिम की रफ्तार धीमी पड़ने की आशंका बलवती हो गई है।

उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों के शीर्ष अधिकारी इस नई परिस्थिति से बेहद परेशान हैं। संप्रग सरकार के कार्यकाल में पहली बार आतंकवादियों के खिलाफ पूरे देश में सामूहिक अभियान चला और एक मूड बना। पिछले कई वर्षो से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर लगातार असफलता का आरोप झेल रहा खुफिया व पुलिस तंत्र पहली बार शाबासी की उम्मीद कर रहा था। मगर, आईएम का पूरा ढांचा ध्वस्त करने के पर्याप्त सुबूतों के बावजूद जिस तरह से राजनीति हुई, उससे वह हतप्रभ है।

खासतौर से राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री के इस बयान कि 'आतंकवाद निरोधक कार्रवाई में किसी वर्ग विशेष में असुरक्षा या अन्याय की भावना नहीं घर करे।' का सुरक्षा एजेंसियों के हौसलों पर भी असर पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक, आतंकवादियों के खिलाफ हुई कार्रवाई पर जिस तरह से राजनीति शुरू हुई थी, उसके बाद गृह मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन से भी चर्चा की थी। उन्होंने आतंकवादी विरोधी कार्रवाई के पक्ष में बयान भी दिए, लेकिन गृह मंत्रालय के सूत्र कहते हैं कि उड़ीसा और कर्नाटक में अल्पसंख्यकों पर बजरंग दल जैसे अतिवादी हिंदू संगठनों के कृत्य ने काफी बेड़ा गर्क किया है।

गृह मंत्रालय और कांग्रेस के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, आतंकवाद के खिलाफ मुहिम में सिर्फ एक वर्ग के लोग पकड़े गए। उधर, बजरंग दल के कार्यकर्ता उड़ीसा व कर्नाटक के अलावा अन्य राज्यों में भी उग्र प्रदर्शन करते दिखे। सियासतदानों के साथ-साथ कई मुसलिम उलेमा भी कांग्रेस व सरकार के खिलाफ तकरीरे गढ़ने लगे। अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बताने की जो जुबानी सियासत शुरू हुई, उससे आतंकवाद के खिलाफ मुहिम कमजोर हुई।

सियासत के इस अंदाज से आतंकवादियों के खिलाफ पिछले दिनों हुए देशव्यापी 'आपरेशन' से जुड़े रहे एक शीर्ष अधिकारी के शब्दों में सुरक्षा एजेंसियों की यह व्यथा समझी जा सकती है। वह कहते हैं कि 'सियासत और मीडिया के एक तबके ने जामिया नगर मुठभेड़ से लेकर मुंबई, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में हर जगह हुई गिरफ्तारी पर संदेह खड़ा कर दिया। बावजूद, इसके कि जो बातें कहीं गई, उनका कोई आधार नहीं था और पुलिस ने बाकायदा सारे तथ्य सामने रखे।' वह कहते हैं कि 'राज्य पुलिस ने ज्यादा वाहवाही लूटने के लिए भले ही एक-दूसरे से बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया हो, लेकिन अभी तक तथ्यों से इतना साफ है कि गिरफ्तार लोगों में से कोई निर्दोष नहीं था।'

Wednesday, October 15, 2008

प्रदेश में खुलेंगे 58 मुस्लिम राजकीय कालेज

दैनिक जागरण, १४ अक्तूबर २००८, कौशाम्बी । बसपा सरकार ने मुसलमानों को शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने की कवायद शुरू कर दी है। इसके लिए प्रदेश सरकार 58 मुस्लिम राजकीय माध्यमिक स्कूल खोलने जा रही है। यह कालेज कौशाम्बी समेत 58 जिलों में खोले जाएंगे। साथ ही प्रदेश में उर्दू को बढ़ावा दिया जाएगा ताकि यह भाषा जिंदा रहे। इसके अलावा सरकार ने मुस्लिम छात्रों को वजीफे के लिए उनके अभिभावक की सालाना आय की सीमा बढ़ाकर एक लाख रुपये तक कर दी है। प्रदेश सरकार की इस योजना का खुलासा मंगलवार को काबीना मंत्री इन्द्रजीत सरोज ने 'दैनिक जागरण' से बातचीत करते हुए किया।

उन्होंने कहा कि बसपा हमेशा मुसलमानों की तरक्की के बारे में फिक्रमंद रहती थी। सरकार ने हाल ही में मुस्लिम बुद्धिजीवियों को बुलाकर मुसलमानों की बुनियादी समस्याएं जानने की कोशिश की। इन बातचीत में यह तथ्य उभरकर आया कि मुस्लिम कौम अशिक्षा से जूझ रही है। इनमें से शिक्षा का स्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है। प्रदेश सरकार ने इसे उठाने की कोशिशें शुरू कर दी है। इसके लिए कई योजनाएं बनाई गई है। अब उन मुस्लिम छात्रों को भी वजीफा मिलेगा जिनके अभिभावकों की सालाना आमदनी एक लाख रुपये तक है। पहले उन्हीं छात्रों को वजीफा मिलता था जिनके अभिभावक 18 हजार रुपये सालाना कमाते थे। अब आय सीमा बढ़ जाने से लगभग सभी मुस्लिम छात्र वजीफे के हकदार हो जाएंगे। हाल ही में अरबी फारसी बोर्ड का गठन इसीलिए किया गया है। इसके अलावा प्रदेश में 58 राजकीय माध्यमिक स्कूल खोजे जा रहे है। इन स्कूलों में मुसलमानों के लड़के पढ़ेगे। प्रदेश सरकार की सोच है कि इन स्कूलों के जरिए मुसलमानों में तालीम का स्तर ऊंचा उठाया जा सकता है। कौशाम्बी में भी राजकीय मुस्लिम माध्यमिक स्कूल खोला जाएगा।

भगवंतपुर प्रकरण : शाहबाद कोतवाल निलंबित

दैनिक जागरण, १३ अक्तूबर २००८, शाहबाद (रामपुर) : भगवंतपुर गांव में हुए सांप्रदायिक दंगे की गाज कोतवाल पर गिर ही गई। एसपी ने आज उन्हें निलंबित कर दिया है। उधर गांव में एहतियातन पुलिस बल तैनात है।

ज्ञात हो विगत बुधवार की रात आठ बजे भगवंतपुर में पुलिस बल की मौजूदगी में देवी गीत गाते हुए चंडोल यात्रा निकाल रही दर्जनभर लड़कियों को एक धार्मिकस्थल के पास कुछ लोगों ने रोका, न रुकने पर पथराव कर दिया। इससे दूसरे पक्ष में रोष व्याप्त हो गया और दोनों ओर से पथराव हो गया, इसमें एक दर्जन से अधिक घायल हो गए। शाहिद पक्ष से 32 तथा महावीर सिंह पक्ष से 10 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई। बाद में शाहिद पक्ष में एक व महावीर पक्ष में छह लोगों के नाम प्रकाश में आए। दोनों पक्षों के 16 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वहीं, महावीर पक्ष के 50 व शाहिद पक्ष के 30 लोगों पर निरोधात्मक कार्रवाई की गई। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि लापरवाही बरतने में कोतवाल सुरेंद्र पाल सिंह को निलंबित कर दिया गया है। अन्य नामजदों की तलाश में दबिशें जारी हैं।

कुशीनगर में मूर्ति विसर्जन के दौरान पथराव, पांच घायल, जाम

दैनिक जागरण, कसया (कुशीनगर ), 13 अक्टूबर। थाना क्षेत्र के ग्राम गिदहा के टोला कपरधिक्का में सोमवार को दुर्गा प्रतिमा विसर्जित करने जा रही टोली पर एक वर्ग विशेष द्वारा पथराव कर दिया गया। जिससे प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गयी व तीन घायल हो गये। इसके बाद गांव में तनाव पैदा हो गया। देर रात समाचार लिखे जाने तक हियुवा कार्यकर्ता व पदाधिकारी ग्रामीणों के साथ मूर्ति रखकर दोषियों के गिरफ्तारी की मांग पर अड़े थे। तनाव को देखते हुए पुलिस क्षेत्राधिकारी व थानाध्यक्ष मय फोर्स घटना स्थल पर पहुंच गये थे। समाचार लिखे जाने तक जाम समाप्त नहीं हो सका था।

हमारे सखवनिया प्रतिनिधि से मिली जानकारी के मुताबिक क्षेत्र के ग्राम मठिया चौराहे पर सजी दुर्गा प्रतिमा को ग्रामवासी विसर्जन हेतु लेकर जा रहे थे। इस दौरान दुर्गा प्रतिमा को लेकर ग्रामीणों की टोली जैसे ही ग्राम गिदहां के टोला कपरधिक्का में पहुंची कुछ शरारती तत्वों द्वारा पथराव कर दिया गया। इससे दुर्गा प्रतिमा क्षतिग्रस्त हो गयी तो वहीं टोली में शामिल मठिया निवासी योगेन्द्र, कल्लू, यासीन, सत्तार सहित कुल पांच लोग घायल हो गये। इसके बाद चारों ओर अफरा-तफरी मच गयी। इससे आक्रोशित ग्रामीणों ने हियुवा के जिलाध्यक्ष चन्द्रप्रकाश यादव चमन, धर्मेन्द्र गोंड, गोपाल शर्मा, दीपक शर्मा, मुकुल पाण्डेय, जयप्रकाश वर्मा आदि हियुवा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर मूर्ति रखकर दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही की मांग को लेकर जाम कर बैठ गये। इधर गांव में पसरे तनाव की सूचना मिलने पर पुलिस क्षेत्राधिकारी ज्ञानेन्द्र कुमार सिंह व थानाध्यक्ष मेवालाल सुमन घटना स्थल पर मय फोर्स पहुंच गये तो देर शाम उपजिलाधिकारी बी. एस. चौधरी भी पहुंचे। समाचार लिखे जाने तक न तो जाम समाप्त हो सका था और न ही मूर्ति विसर्जित हो सकी थी। गांव में तनाव व्याप्त था लेकिन स्थिति नियंत्रण में थी।

इस बावत पुलिस क्षेत्राधिकारी श्री सिंह ने बताया कि इस बावत तहरीर मिल गयी है। मुकदमा दर्ज कर दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही की जायेगी। मामला गम्भीर है तनाव की कोई बात नहीं है।

लम्भुआ में हालात सामान्य, पुलिस बल वापस

दैनिक जागरण, लम्भुआ (सुल्तानपुर),13 अक्टूबर २००८ : दिन दहाड़े महिला के साथ दुष्कर्म की कोशिश मामले के बाद कस्बे में चौथे दिन हालात पूरी तौर पर सामान्य हो गये हैं। यहां तैनात अन्य थानों की पुलिस फोर्स और अतिरिक्त बल वापस भेज दिये गये हैं। भाजपा और हिन्दू संगठनों की धरना-प्रदर्शन की घोषित तारीख बीत जाने पर अफसरों ने भी राहत की सांस ली है। उधर अल्पसंख्यक समुदाय के बुद्धिजीवियों ने भी उक्त दुष्कृत्य को इस्लाम विरु द्ध बताया है।

शुक्रवार को दोपहर दो बजे बखारी दिखाने के बहाने प्रौढ़ महिला के साथ व्यापारी पुत्र के दुष्कर्म की कोशिश को लेकर कस्बे समेत ग्रामीण इलाके में तनाव व्याप्त हो गया था। उसी दिन भाजपा व हिन्दू संगठनों के पदाधिकारियों ने पुलिस अधिकारियों से मुलाकात करके कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। पुलिस ने चौदह घंटे के भीतर ही आरोपी युवक सलमान गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद शनिवार को हिन्दू संगठनों व भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक में युवाओं के तेवर देख लोगों के होश उड़ गये। हालांकि काफी जद्दोजहद के बाद मामला शांतिपूर्वक निपट गया। इस दौरान पुलिस फोर्स को कई बार कस्बे में गश्त भी लगानी पड़ी थी। रविवार की सुबह से ही कस्बे में हालात पूरी तौर पर सामान्य दिखे। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवियों ने भी इस मामले की कड़ी निन्दा की है। मास्टर शमीउल्ला की अध्यक्षता में हुई बैठक में वारदात को कष्टप्रद व दु:खदायी बताया गया। दोषी अपराधी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। वक्ताओं ने कहा कि अपराधी किसी जाति-धर्म का नहीं होता। वह किसी धर्म से ताल्लुक नहीं रखता है।

इस्लाम धर्म में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। कुछ लोग धर्म की आड़ में उन्माद पैदा करना चाहते थे, लेकिन उनके मंसूबे सफल न हुए। कस्बे में दोनों सम्प्रदायों के लोग साथ-साथ रहे हैं। लिहाजा, हिन्दू-मुस्लिम में नफरत पैदा करने की कोशिश न की जाय। बैठक में मुख्य रूप से नियाज अहमद, शाहिद अली, मु.सफी, गुलाम दस्तगीर, हाजी मुहर्रम अली, मुख्तार अहमद, वहीद खान आदि मौजूद रहे। उधर पुलिस ने दोषी युवक की दुकान व घटनास्थल को सीज करके मामले की विवेचना प्रारम्भ कर दी है।

Tuesday, October 14, 2008

खतरे की घुसपैठ

असम की अशांति के पीछे बांग्लादेशी घुसपैठियों की भूमिका देख रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण, १३ अक्तूबर २००८. अमरनाथ प्रकरण को लेकर कश्मीर घाटी में अलगाववादियों ने जिस तरह विरोध प्रदर्शन किया उसकी एक झलक अब असम के मुस्लिम बहुल इलाके-उदलगिरी, दरांग और रीता गांव में दिख रही है। पाकिस्तानी झंडा लहराते हुए घाटी के अलगाववादियों ने यदि भारत विरोधी नारे लगाए थे तो असम के उदलगिरी जिले के सोनारीपाड़ा और बाखलपुरा गांवों में बोडो आदिवासियों के घरों को जलाने के बाद बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा पाकिस्तानी झंडे लहराए गए। इससे पूर्व कोकराझार जिले के भंडारचारा गांव में अलगाववादियों ने स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगे की जगह काला झंडा लहराने की कोशिश की थी, जिसे स्थानीय राष्ट्रभक्त ग्रामीणों ने नाकाम कर दिया था।

असम के 27 जिलों में से आठ में बांग्लाभाषी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके है। बहुसंख्यक होते ही उनका भारत विरोधी नजरिया क्या रेखांकित करता है? भारत द्वेष का ऐसा सार्वजनिक प्रदर्शन कश्मीर घाटी का एक कड़वा सच बन चुका है और इसे भारत विभाजन से जोड़कर न्यायोचित ठहराने की कोशिश भी होती रही है, किंतु भारत के वैसे इलाके जहां धीरे-धीरे मुसलमान बहुसंख्यक की स्थिति में आ रहे हैं, वहां भी ऐसी मानसिकता दिखाई देती है। क्यों? मैं कई बार अपने पूर्व लेखों में इस कटु सत्य को रेखांकित करता रहा हूं कि भारत में जहां कहीं भी मुसलमान अल्पसंख्यक स्थिति में हैं वे लोकतंत्र, संविधान और भारतीय दंड विधान के मुखर पैरोकार के रूप में सामने आते है, किंतु जैसे ही वे बहुसंख्या में आते है, उनका रवैया बदल जाता है और मजहब के प्रति उनकी निष्ठा अन्य निष्ठाओं से ऊपर हो जाती है। विडंबना यह है कि भारत की बहुलतावादी संस्कृति को नष्ट करने पर आमादा ऐसी मानसिकता का पोषण सेकुलरवाद के नाम पर किया जा रहा है।

असम में बोडो आदिवासियों और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच हिंसा चरम पर है। अब तक बोडो आदिवासियों के 500 घरों को जलाने की घटना सामने आई है। करीब सौ लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि एक लाख बोडो आदिवासी शरणार्थी शिविरों में रहने को विवश है। सेकुलरिस्ट इसे बोडो आदिवासी और स्थानीय मुसलमानों के बीच संघर्ष साबित करने की कोशिश कर रहे है। मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी सच को सामने लाने से कतरा रहा है। आल असम स्टूडेट्स यूनियन के सलाहकार रागुज्ज्वल भट्टाचार्य के अनुसार प्रशासन पूर्वाग्रहग्रस्त है। बांग्लादेशी अवैध घुसपैठियों को संरक्षण दिया जा रहा है, वहीं बोडो आदिवासियों को हिंसा फैलाने के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है। इससे पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भी विगत जुलाई माह में यह कड़वी टिप्पणी की थी, ''बांग्लादेशी इस राज्य में 'किंगमेकर' की भूमिका में आ गए है।'' यह एक कटु सत्य है कि और इसके कारण न केवल असम के जनसांख्यिक स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है, बल्कि देश के कई अन्य भागों में भी बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बने हुए है। हुजी जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इन्हीं बांग्लादेशी घुसपैठियों की मदद से चलने की खुफिया जानकारी होने के बावजूद कुछ सेकुलर दल बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग कर रहे है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रभावी मंत्री रामविलास पासवान इस मुहिम के कप्तान है।

अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देना और उनके वोट बैंक का दोहन नई बात नहीं है। असम में पूर्वी बंगाली मुसलमानों की घुसपैठ 1937 से शुरू हुई। इस षड्यंत्र का उद्देश्य जनसंख्या के स्वरूप को मुस्लिम बहुल बनाकर इस क्षेत्र को पाकिस्तान का भाग बनाना था। पश्चिम बंगाल से चलते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार और असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में इन अवैध घुसपैठियों के कारण एक स्पष्ट भू-पट्टी विकसित हो गई है, जो मुस्लिम बहुल है। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलमानों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हुआ है। इस दशक में असम के बंगाईगांव, धुबरी, कोकराझार, बरपेटा और कछार के इलाकों में मुसलमानों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह तीव्रता से बढ़ रही है। असम सेकुलरिस्टों की कुत्सित नीति का एक और दंश झेल रहा है। यहां छल-फरेब के बल पर चर्च बड़े पैमाने पर मतांतरण गतिविधियों में संलग्न है। यहां ईसाइयों का अनुपात स्वतंत्रता के बाद करीब दोगुना हुआ है। कोकराझार, गोआलपारा, दरंग, सोनिपतपुर में ईसाइयों का अनुपात अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। कार्बी आंग्लांग के पहाड़ी जनपदों में ईसाइयों का अनुपात करीब 15 प्रतिशत है, जबकि उत्तर कछार जनपद में वे 26.68 प्रतिशत हैं।

असम की कुल आबादी में 1991 से 2001 की अवधि में ईसाइयों की आबादी 0.41 से बढ़कर 3.70 प्रतिशत हुई है। उड़ीसा और कर्नाटक में चर्च की दशकों पुरानी मतांतरण गतिविधियों से त्रस्त आदिवासियों का क्रोध ईसाई संगठनों पर फूट रहा है, जिसके लिए सेकुलरिस्ट बजरंग दल और विहिप को कसूरवार बताकर उन पर पाबंदी लगाने की मांग कर रहे है। भविष्य में यदि असम के आदिवासियों का आक्रोश भी उबल पड़े तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए 1979 में असम में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। इसी कारण 1983 के चुनावों का बहिष्कार भी किया गया, क्योंकि बिना पहचान के लाखों बांग्लादेशी मतदाता सूची में दर्ज कर लिए गए थे। चुनाव बहिष्कार के कारण केवल 10 प्रतिशत मतदान ही दर्ज हो सका। शुचिता की नसीहत देने वाली कांग्रेस पार्टी ने इसे ही पूर्ण जनादेश माना और सरकार का गठन कर लिया गया। 10 प्रतिशत मतदान करने वाले इन्हीं अवैध घुसपैठियों के संरक्षण के लिए कांग्रेस सरकार ने जो कानून बनाया वह असम के बहुलतावादी स्वरूप के लिए नासूर बन चुका है। कांग्रेस ने 1983 में अवैध आव्रजन अधिनियम के अधीन बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसने का अवसर उपलब्ध कराया था। हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को निरस्त कर अवैध बांग्लादेशियों को राज्य से निकाल बाहर करने का आदेश भी पारित किया, किंतु वर्तमान कांग्रेसी सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों के अनुरूप पिछवाड़े से इस कानून को लागू रखने पर आमादा है।

कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने वोटों के अंकगणित को देखते हुए न केवल अवैध घुसपैठियों से उत्पन्न खतरे को नजरअंदाज किया, बल्कि भविष्य में अवैध घुसपैठियों के निष्कासन को असंभव बनाने के लिए संवैधानिक प्रावधान भी बनाए। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए अवैध परिव्रजन अधिनियम, 1983 के अधीन 'अवैध घुसपैठिया' उसे माना गया जो 25 दिसंबर, 1971 (बांग्लादेश के सृजन की तिथि) को या उसके बाद भारत आया हो। इससे स्वत: उन लाखों मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता मिल गई जो पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। तब से सेकुलरवाद की आड़ में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ जारी है और उन्हे देश से बाहर निकालने की राष्ट्रवादी मांग को फौरन सांप्रदायिक रंग देने की कुत्सित राजनीति भी अपने चरम पर है। ऐसी मानसिकता के रहते भारत की बहुलतावादी संस्कृति की रक्षा कब तक हो पाएगी?


सुप्रीम कोर्ट ने सिमी पर प्रतिबंध बढ़ाया

13 अक्टूबर 2008 ,वार्ता, नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों से घिरे इस्लामिक स्टूडेंट्स मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर लगे प्रतिबंध को सोमवार अगले आदेश तक बढ़ा दिया।

न्यायमूर्ति एसबी. सिन्हा और न्यायमूर्ति सी. जोसेफ की पीठ ने मामले को उचित पीठ में स्थानांतरित कर दिया, जो पहले से ही संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 5 अगस्त 2008 को सिमी से प्रतिबंध हटाते हुए कहा था कि इस संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा पेश साक्ष्य गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून के तहत संगठन पर प्रतिबंध को जायज ठहराने के लिए ना काफी हैं।

केन्द्र ने उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में भी अपील दायर की थी।

मुख्य न्यायाधीश केजी. बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ, दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर पहले ही रोक लगा चुकी है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय की पैरवी करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था कि सिमी के कार्यकर्ता हाल में हुए कई बम धमाकों में शामिल थे और 89 मामलों में संगठन के 1900 कार्यकर्ता देश की विभिन्न जेलों में बंद हैं। लेकिन उच्च न्यायालय ने इन सबूतों को पर्याप्त नहीं माना था।

सरकार का आरोप है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के विशेष न्यायाधिकरण ने सिमी के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से सांठगांठ के बारे में केन्द्रीय खुफिया और जांच एजेंसियों से मिली जानकारी को भी नजरअंदाज किया।

सरकार का कहना है कि सिमी के अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल-कायदा और अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहीम से भी संबंध हैं। सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध को सात फरवरी 2008 को दो वर्ष के लिए बढ़ा दिया था।

Monday, October 13, 2008

बुरहानपुर हिंसा: मृतकों की संख्या आठ हुई

दैनिक जागरण, ११ अक्तूबर २००८, बुरहानपुर। मध्यप्रदेश के क‌र्फ्यूग्रस्त बुरहानपुर जिले के बिरोदा गांव से शनिवार दोपहर तीन और शव बरामद होने से सांप्रदायिक हिंसा में मरने वालों की संख्या आठ हो गई है। जिले में तनाव को देखते हुए आज भी क‌र्फ्यू में कोई ढील नहीं दी गई है। पुलिस दंगों के पीछे सिमी के हाथ होने की भी जांच कर रही है।

पुलिस के अनुसार बुरहानपुर से करीब आठ किलोमीटर दूर बिरोदा गांव में एक खेत से आज दोपहर तीन शव बरामद हुए जिसमें एक महिला और दो पुरुषों के शव हैं। तीनों पर धारदार हथियारों के निशान हैं। इसके साथ ही गंभीर रूप से घायल तीन और व्यक्ति इसी खेत से पाए गए हैं, जिन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस का मानना है कि उपद्रवियों से बचने के लिए वे लोग अपना घर छोड़कर खेत में किसी सुरक्षित स्थान की तलाश कर रहे होंगे, लेकिन हिंसक तत्वों के शिकंजे में आ गए। इससे पहले पुलिस फायरिंग में घायल हुए दो लोगों ने कल देर रात इंदौर के महाराजा यशवंतराव अस्पताल में दमतोड़ दिया।

इस बीच, संभागायुक्त वीपी सिंह और पुलिस महानिरीक्षक अनिल कुमार ने आज बुरहानपुर के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया। दोनों उच्चाधिकारी स्थिति पर नजर रखने के लिए यहां कैंप किए हुए हैं। कुमार ने बताया कि उपद्रव में 25 व्यक्ति घायल हुए, 27 दुकानें और तीन मकान जल गए। घायलों का बुरहानपुर के जिला चिकित्सालय में उपचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अब तक 142 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। कुमार ने बताया कि हिंसक घटना के पीछे किन तत्वों का हाथ हो सकता है, इसकी बारीकी से जांच की जा रही है। उन्होंने कहा कि स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया [सिमी] का भी बुरहानपुर गढ़ रहा है, अत: इस बारे में भी जांच की जा रही है। उल्लेखनीय है कि दशहरे के मौके पर यहां दो संप्रदायों के बीच दंगा भड़क उठा था।

केरल: हमले में संघ कार्यकर्ता की मौत

दैनिक जागरण, ११ अक्तूबर २००८, कन्नूर। केरल के कन्नूर जिले में शुक्रवार रात मा‌र्क्सवादी माकपा कार्यकर्ताओं के कथित बम हमले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक दल [आरएसएस] के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गया। भाजपा ने इसके विरोध में जिले में आज हड़ताल का आह्वान किया है।

पुलिस ने शनिवार को बताया कि थालसेरी के नजदीक कोलासरी में हुए देशी बम हमले में कोमाथु पारा के संघ के मुख्य शिक्षक 21 वर्षीय सीके अनूप की मौत हो गई। 22 वर्षीय घायल राजेश को कोझीक ोड के मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस ने बताया कि भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं के तीन घरों पर भी हमले किए गए। स्थिति पर नियंत्रण और हिंसा को बढ़ने से रोकने के लिए क्षेत्र पुलिस बल तैनात किया गया है।

आंध्र में छह लोगों को जिंदा जलाया

दैनिक जागरण, १२ अक्तूबर २००८, आदिलाबाद। आंध्र प्रदेश के हिंसाग्रस्त अदिलाबाद के वोट्टोली में रविवार को एक ही परिवार के दो बच्चों सहित छह व्यक्तियों को कथित तौर पर हाल की हिंसक घटनाओं के चलते जलाकर मार डाला गया।

आंध्र प्रदेश सरकार ने इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो से कराने की सिफारिश की है।

प्रदेश के गृह मंत्री के जाना रेड्डी हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने के बाद घोषणा की कि देवी दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के दौरान भैंसा शहर में हुए सांप्रदायिक दंगों तथा एक ही परिवार के छह लोगों के मौत की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से कराने का आदेश दिया गया है। मृतकों के घर को वतोली गांव में आज आग लगा दी गई।

रेड्डी ने कहा कि हिंसाग्रस्त इलाके में सुरक्षा के कई प्रबंध किए गए हैं और अतिरिक्त बल को जिला मुख्यालय से बुलाया गया है। दिल्ली से आए त्वरित कार्यबल [आरएएफ] के जवान स्थानीय पुलिस के साथ गश्त कर रहे हैं।

पीड़ितों के परिजनों से मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के साथ मशविरा के बाद सरकार सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए उचित राहत पैकेज की घोषणा करेगी। हालांकि पुलिस ने बताया कि भैंसा शहर को छोड़कर निर्मल एवं आसिफाबाद इलाके में स्थिति नियंत्रण में है तथा यहां हिंसा की कोई ताजा घटना नहीं हुई है।

मजलिस इत्तोहादुल मुसलीमीन [एमआईएम] के अध्यक्ष और सांसद असादुद्दीन ओवाइसी ने भैंसा झड़प और वातोली घटना की सीबीआई जांच कराने की मांग की। उन्होंने पूरे मामले में एक हिंदू कट्टरपंथी समूह का हाथ होने का आरोप लगाया था।

Friday, October 10, 2008

धर्मस्थल निर्माण पर आमने सामने आये दो समुदाय

दैनिक जागरण, १० अक्तूबर २००८, चित्रकूट। सदर ब्लाक के ग्राम सिमरिया चरण दासी में भूमि पर धार्मिक स्थल के निर्माण को लेकर दो समुदाय आमने सामने आ गये। जानकारी होते ही एसडीएम व सीओ ने मौके पर पहुंच कर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आठ लोगों को शांति भंग की आशंका में पाबंद कर जेल भेज दिया। फिर भी गांव में तनाव है।

जानकारी के मुताबिक गुरुवार की सुबह मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर स्थित सेमरिया चरणदासी के मुस्लिम पुरवा मजरे में ग्राम सभा की जमीन पर लकड़ी गाड़कर चारों तरफ से रस्सी व बीच में एक गाय बंधी देखकर पूरे गांव के लोग उत्तेजित हो गये। गोकशी की आशंका से पूरा गांव उस भूमि के पास एकत्र होकर भूमि के कब्जे व गाय बांधने का विरोध करने लगा। ग्रामीण लालमन व सुखलाल ने बताया कि बगैर ग्राम सभा की मंजूरी के दूसरे समुदाय के लोग धार्मिक स्थल बनाने का प्रयास कर रहे थे। इसी मामले में दूसरे समुदाय का कहना है कि ग्राम सभा की भूमि पर निर्माण की अनुमति प्रधान से ले ली गयी है। जबकि ग्राम प्रधान शांति देवी ने साफ कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव ही उनके सामने आया। भूमि नम्बर 334 ग्राम सभा की है। उस पर कोई भी निर्माण जबरन नही करने दिया जायेगा। पूरे गांव में तनाव बढ़ता ही जा रहा था तभी किसी ने पुलिस के साथ प्रशासनिक अधिकारियों को सूचना दे दी। मौके पर एसडीएम ऋषिकेश भास्कर व सीओ आलोक जायसवाल पहुंचे। दोनों पक्षों के लोगों से यथा स्थिति की जानकारी ली। उप जिलाधिकारी ने माना है कि गांव में धार्मिक स्थल के निर्माण को लेकर दो समुदायों को लेकर तनाव था। भूमि ग्राम सभा की ही है। गलतफहमी के चलते यह स्थिति बनी। सीओ के अनुसार एक समुदाय के आठ लोगों को शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

Wednesday, October 8, 2008

असम में स्थिति गंभीर, 47 मरे

बीबीसी , 07 अक्तूबर, २००८. भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में शुक्रवार को बांग्लादेशी मुसलमानों और स्थानीय कबीलों के बीच शुरु हुआ संघर्ष राज्य के कई और इलाक़ों में फैल गया है जिसमें मरने वालों की संख्या अब 47 तक पहुंच गई है.

राज्य के पश्चिमी ज़िले चिरांग से हिंसा की ताज़ा ख़बरें हैं जहां बोडो लोगों ने दूसरे समुदाय के कम से कम तीन लोगों को मार दिया है. मारे जाने वालों में एक गर्भवती महिला भी हैं.

उधर ग्वालपाड़ा ज़िले में राबा कबीले के लोगों और मुस्लिम समुदाय के बीच हुई झड़प में घायल एक व्यक्ति की मौत हो गई है जबकि सबसे बुरी तरह प्रभावित उदालगिरी और दरांग ज़िलों में भी कुछ घायलों की मौत हुई है.

असम पुलिस दंगों को रोकने का प्रयास कर रही है. शुक्रवार और शनिवार को कम से कम 12 स्थानों पर पुलिस ने गोलिया चलाईं जिसमें 16 लोग मारे गए. ये लोग हिंसा और आगजनी कर रहे थे.

बाकी लोग सामुदायिक हिंसा में मारे गए हैं.

अभी तक इन दंगों में कम से कम 100 लोग घायल हुए हैं जिसमें से कई की हालत गंभीर है. अब तक राज्य के छह ज़िले इस हिंसा से प्रभावित हो चुके हैं.

सबसे अधिक प्रभावित ज़िला उदालगिरी है जहां 25 लोग मारे गए हैं. पड़ोस के दरांग ज़िले में नौ लोग जबकि बक्सा में एक व्यक्ति की मौत हुई है.

हिंसा का यह दौर उस समय शुरु हुआ जब शुक्रवार को यह अफ़वाह फ़ैली कि कुछ मुस्लिमों ने उदालगिरी ज़िले में बोडो कबीले के रौता गांवों से मवेशी चुराए हैं.

स्थानीय अधिकारियों के अनुसार इस अफ़वाह के फ़ैलने के बाद स्थिति और ख़राब हुई कि कुछ मुस्लिम चरमपंथियों ने बम रखे हैं और पाकिस्तानी झंडे दिखाए.

इस समय हिंसा प्रभावित सभी इलाक़ों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. इतना ही नहीं कई स्थानों पर दंगाईयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं.

राज्य में स्थिति से निपटने के लिए सेना को बुलाया गया है और उदालगिरी ज़िले के मुख्य ज़िला अधिकारी का तबादला कर दिया गया है.

उदालगिरी और दरांग ज़िले में कई स्थानों पर राहत शिविर लगाए गए हैं जहां बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं.

अधिकारियों के अनुसार राज्य में कम से कम 80 हज़ार लोग प्रभावित हैं.

Tuesday, October 7, 2008

असम में हालात गंभीर, 35 लोगों की मौत

बीबीसी न्यूज़, 06 अक्तूबर, २००८. असम के बोडो आदिवासियों और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच शुक्रवार से भड़की हिंसा अब पाँच ज़िलों में फैल गई है. अबतक 35 लोग मारे जा चुके हैं.

सोमवार को स्थिति और गंभीर होती नज़र आ रही है क्योंकि बोडो आदिवासियों और मुसलमानों के बीच जारी संघर्ष में अब राभा आदिवासी भी शामिल हो गए हैं.

दो दिनों से जारी इस संघर्ष का दायरा बढ़ता जा रहा है. पश्चिमी असम इसमें शामिल हो गया है जहाँ राभा आदिवासियों के साथ संघर्ष में 10 लोग घायल हो गए हैं.

अभी तक कि हिंसा में 100 से भी ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. इनमें से कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है.

ताज़ा हिंसा की इन घटनाओं और व्याप्त तनाव को देखते हुए प्रभावित इलाकों में सेना तैनात कर दी गई है.

इस संघर्ष में सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है असम का उदालगुड़ी ज़िला जहाँ 24 लोग मारे गए हैं. इसके अलावा दरांग में नौ लोगों के मारे जाने की और बक्सा में एक व्यक्ति के मारे जाने की ख़बर है.

हालांकि सोनितपुर ज़िले से किसी के मारे जाने की अभी तक ख़बर नहीं मिली है पर वहाँ हिंसक झड़पों के बाद तनाव व्याप्त है.

चिंताजनक स्थिति

सोमवार को असम के पश्चिमी ज़िले गोलपारा में मुस्लिम और राभा आदिवासियों के बीच संघर्ष की ख़बरें आ रही हैं.

पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक इस संघर्ष में क़रीब 10 लोगों के घायल होने की पुष्टि हुई है.

राज्य पुलिस ने दंगे की स्थिति से निपटने के लिए कड़ा रुख़ भी अपनाया है. इसके बावजूद राज्य में संघर्ष का दायरा बढ़ता जा रहा है.

पुलिस ने शनिवार और रविवार को हिंसक घटनाओं को रोकने और नियंत्रित करने के लिए 12 जगहों पर गोलियाँ भी चलाईं जिसमें 16 लोगों की मौत हो गई.

पुलिस का कहना है कि ये लोग आगजनी और लूटपाट कर रहे थे.

क्यों भड़की हिंसा..?

दरअसल, तनाव की स्थिति तब पैदा हुई जब बोडो आदिवासियों ने आरोप लगाया कि मुसलमानों ने उनके मवेशी चुराए हैं. इसके बाद मुसलमानों के कुछ गाँवों पर हमला हुआ और कई घरों को आग लगा दी गई.

इसके बाद अगले दिन यानी शनिवार की सुबह एक मुसलमान व्यक्ति का शव उदालगुड़ी में कलेक्टर कार्यालय के सामने मिला. शव मिलने के बाद मुसलमानों में असंतोष व्याप्त हो गया और हिंसा फैल गई। घटना से नाराज़ मुसलमानों ने बोडो आदिवासियों के कई गाँवों पर हमला कर दिया.

पुलिस को रौता पुलिस थाने में दो जगहों और डेरागाँव पुलिस थाने में एक जगह गोलियाँ चलानी पड़ीं. इस दौरान तीन लोगों की मौत हो गई. रात तक रौता और सिमालगुड़ी गाँव से आठ और शव बरामद हुए.

इसके बाद दरांग ज़िले में हिंसा फैल गई, जहाँ बेसिमारी और बालाबाड़ी गाँवों में 30 घरों को आग लगा दी गई. सोनितपुर ज़िला भी हिंसा प्रभावित है. सोमवार तक बक्सा और गोलपुरा ज़िले भी इस हिंसा की चपेट में आ गए.

स्थिति तनावपूर्ण

दो दिनों की हिंसा को रोकने के लिए प्रशासन की ओर से तेज़ी से प्रयास किए जा रहे हैं पर हिंसा प्रभावित इलाकों की स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है.

प्रभावित इलाकों में प्रशासन की ओर से स्थानीय स्कूलों में राहत शिविर भी लगाए गए हैं. सरकारी हवाले से बताया गया है कि इन शिविरों में 80 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों ने शरण ले रखी है.

राज्य के मुख्यमंत्री ने सभी समुदायों से अपील की है कि वे शांति और अमन की स्थिति बहाल करने में अपनी मदद दें.

वहीं तनावपूर्ण स्थिति को नियंत्रित न कर पाने की वजह से उदालगुड़ी के जिलाधिकारी का तबादला भी कर दिया गया है.

हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा करके लौटे पत्रकारों के मुताबिक अभी भी स्थिति चिंताजनक है और पुलिस की तैनाती कम होने की वजह से हिंसक घटनाएं पूरी तरह से रोकी नहीं जा सकी हैं.

उधमपुर में फिर तनाव, पुलिस तैनात

दैनिक जागरण , ५ अक्तूबर २००८, बिलासपुर(रामपुर): उधमपुर गांव में फिर तनाव हो गया। लाउडस्पीकर बजाने को लेकर एक वर्ग ने कुछ शरारतीतत्वों में धार्मिक स्थल पर धावा बोल पूजन सामग्री फेंक दी और लाउडस्पीकर बंद करा दिया। विरोध में दूसरे वर्ग के लोगों ने एसडीएम कार्यालय पर प्रदर्शन किया। प्रशासन ने गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया है। सोमवार को प्रशासन की मध्यस्थता में दोनों वर्गो के बीच बैठक होगी।

खजुरिया के ग्राम उधमपुर में पूजा स्थल पर लाउडस्पीकर के माध्यम से भजन, कीर्तन को लेकर काफी समय से विवाद चला आ रहा है। पिछले दिनों भी विवाद बढ़ गया था। प्रशासन ने रमजान माह के चलते दोनों समुदायों के बीच समझौता करा दिया था। नवरात्र के चलते रविवार को सवेरे हिन्दू समुदाय के लोग पूजा स्थल में पूजा अर्चना के अलावा डेक पर आरती की कैसेट बजा रहे थे। आरोप है कि दूसरे वर्ग के लोगों ने हथियारों से लैस होकर धावा बोल दिया। उन्होंने पूजा स्थल के भीतर रखी पूजा-अर्चना की सामग्री को बाहर फेंक दिया तथा डेक को बंद कराने के अलावा जाति सूचक शब्दों से अपमानित कर जाने से मारने की धमकी दी। घटना की खबर मिलते ही गांव में तनाव फैल गया। हिन्दू समुदाय के लोग उपजिलाधिकारी कार्यालय पर पहुंचे, जहां पर राष्ट्रीय एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवरतन भारती के नेतृत्व में धरना देकर प्रदर्शन किया और दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की। बाद में इस मांग का ज्ञापन सौंपा। उधर तनाव के मद्देनजर गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। कल दोनों वर्गो की बैठक होगी।

धार्मिक स्थल बनाने को लेकर बेहटरा में गर्माया माहौल

दैनिक जागरण, ७ अक्तूबर २००८, मई-बसई (बदायूं)। वजीरगंज क्षेत्र के गाम बेहटरा में एक समुदाय के लोगों ने धर्मिक स्थल के निर्माण का प्रयास किया। सूचना पर पुलिस हरकत में आ गयी और छह लोगों को पकड़ लिया। पुलिस ने निर्माण कार्य तत्काल रूकवा दिया। पकड़े गये लोगों का शांति भंग में चालान कर दिया है।

बेहटरा गांव में बीती 4 अक्तूबर को एक समुदाय के लोगों ने धार्मिक स्थल बनाने के लिए गोपनीय ढंग से नींव खोद ली और नींव भरने के लिए ईटें भी मंगवा ली। धार्मिक स्थल बनने की सूचना से गांव में तनाव की स्थिति हो गयी। इसकी सूचना लोगों ने पुलिस को दी। सूचना पर पुलिस गांव पहुंची। पुलिस ने निर्माण कार्य रूकवा दिया साथ ही काम कर रहे छह लोगों को पकड़ लिया और थाने ले आयी।

सूचना पर सीओ बिसौली आरडी पाठक भी पहुंच गये। उन्होंने बताया कि सूचना यह थी कि कुछ लोग मस्जिद बना रहे हैं जब वह मौके पर गये और उन्होंने पूछताछ की तो उन लोगों ने बताया कि वह बारात घर बना रहे है उसी के लिए नींव खुदवाई जा रही है। सीओ ने निर्माण कार्य करा रहे लोगों को चेतावनी दी है कि किसी भी कीमत पर यहां कोई धार्मिक स्थल नहीं बनना चाहिए। अगर मस्जिद बनानी है तो पहले शासन, प्रशासन ने अनुमति लें। इधर पकड़े गये लोगों का शांति भंग की धारा 151 के तहत चालान कर दिया गया।

बालुरघाट में सामुदायिक हिंसा,50 घायल

दैनिक जागरण, ७ अक्टूबर २००८, बालुरघाट (दक्षिण दिनाजपुर) : जिले के बालुरघाट व कुमारगंज थाने के क्रमश: बाउल व दियोर इलाके में रविवार की आधी रात को दो समुदाय के बीच भड़की हिंसा में जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक समेत 50 लोग घायल हो गये। भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा व आंसू गैस के गोले दागने पड़े। जब इससे भी बात नहीं बनी तो उसे तीन चक्र हवाई फायरिंग करनी पड़ी। पुलिस ने हिंसा फैलाने के आरोप में 37 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। तनाव के मद्देनजर निषेधाज्ञा लागू कर दी गयी है। बीएसएफ ने मोर्चा संभालते हुए इलाके में फ्लैग मार्च किया। हिंसा एक धार्मिक स्थान को अपवित्र किये जाने को लेकर हुई। वहां तीन दिनों तक पूजा रोक दी गयी है। जिला प्रशासन ने स्थिति नियंत्रण में होने का दावा किया है। जानकारी अनुसार जैसे ही एक धर्मस्थल के अपवित्र किये जाने की खबर फैली दो समुदाय के लोग उग्र हो गये और दोनों ने एक-दूसरे पर लाठी, दाब, कुदाल आदि से हमला कर दिया। घटना की सूचना मिलते ही जिलाधिकारी स्वप्न कुमार चटर्जी व स्वप्न बनर्जी पूर्णपात्र दल-बल के साथ वहां पहुंचे। उनके लाख समझाने-बुझाने के बाद जब उग्र भीड़ नहीं मानी तो पुलिस को पहले उसे तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और फिर लाठियां चटकायीं। फिर भी उग्र भीड़ नहीं मानी तो तीन चक्र हवा में गोलियां चलानी पड़ीं। इससे भीड़ और आक्रोशित हो गयी और पुलिस-प्रशासन पर पथराव कर दिया। पथराव में जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक समेत सात पुलिसकर्मी घायल हो गये। बाद में उग्र व हिंसक भीड़ ने दियोर से सात किलोमीटर दूर बाउल के दस नंबर राजमार्ग पर सोमवार की सुबह नौ बजे टायर जलाकर सड़क जाम कर दिया। हालांकि इसकी सूचना पाते ही गंगारामपुर महकमा के एसडीपीओ, शांतिरंजन योंजन, बालुरघाट थाने के आईसी धर्मदेव चटर्जी पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गये। वहां पुलिस के साथ उग्र भीड़ का संघर्ष हो गया। जब पुलिस भीड़ को नियंत्रित नहीं कर सकी तो बीएसएफ की 57 नंबर बटालियन की दो कंपनी जवानों को तैनात किया गया। तब जाकर स्थिति संभली। जिलाधिकारी स्वपन चटर्जी ने बताया कि निसिगंज बस्ती में एक धार्मिक स्थल को अपवित्र करने वालों की तलाश की जा रही है। संघर्ष में 50 लोग जख्मी हुए हैं। हिंसा फैलाने वाले 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। एसडीपीओ श्री योंजन ने बताया कि पुलिस ने बाउल से 17 उपद्रवियों को गिरफ्तार किया गया है। दियोर में 144 धारा लागू कर दी गयी है। पूजा कमेटी ने अगले तीन दिनों तक पूजा का आयोजन बंद कर दिया है। बीएसएफ प्रभावित इलाकों में गश्त लगा रही है।

यूपी: तोड़फोड़ के बाद संप्रदायिक तनाव

दैनिक जागरण, ६ अक्टूबर , लखनऊ। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में सोमवार को नमाज स्थल में हुई तोड़फोड़ के बाद पैदा हुए तनाव से उग्र हुई भीड़ को तितर-वितर करने के लिए पुलिस को फायरिंग व लाठीचार्ज करना पड़ा। दोनों समुदाय के बीच हुए संघर्ष में कम से कम पांच लोग घायल हो गएं।

सहारनपुर के पुलिस उपमहानिरीक्षक आनंद कुमार ने बताया कि कोतवाली देहात क्षेत्र के मेहरबानी गांव में अली हसन ने अपने घर में नमाज स्थल बना रखा था। इसे लेकर 1995 में भी तनाव हुआ था। उस समय दोनों समुदायों में हुए समझौते के अनुसार उक्त नमाज स्थल का उपयोग केवल अली हसन और उसके परिवार के द्वारा ही होना था।

पुलिस उपमहानिरीक्षक ने बताया कि अली हसन ने रविवार को कुछ अन्य लोगों को भी नमाज अता करने के लिए बुला लिया था और नमाज स्थल पर कुछ नया निर्माण भी करा लिया था।

आनंद कुमार के अनुसार करीब तीन हजार आबादी वाले गांव के दूसरे समुदाय ने समझौते का उल्लंघन बताते हुए नमाजस्थल को तोड़ दिया। उसके ऊपर रखे छप्पर को उखाड़ दिया और खंभों को भी तोड़ दिया गया।

उन्होंने बताया कि इसके तोडे़ जाने की खबर गांव से 20 किलोमीटर दूर बेहटा कस्बे में जब पहुंची तो वहां भी तनाव व्याप्त हो गया। बेहटा में भी तोड़फोड़ शुरू हो गई और पथराव किया गया जिसमें कई लोग घायल हुए।

उन्होंने बताया कि बेहटा से मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग गांव की ओर बढ़े और गांव और गांव के बाहर स्थित कुछ घरों में जमकर तोड़फोड़ की। पुलिस को उपद्रवी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हवा में गोलियां चलानी पड़ी। रबर बुलेट दागे गए लाठी चार्ज करना पड़ा। आनंद कुमार के अनुसार पुलिस के बल प्रयोग में कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन दोनों समुदाय के आपसी संघर्ष में कम से कम पांच लोग घायल हुए हैं।

Monday, October 6, 2008

Hindu temples in Fiji looted

October 6,2008, Radio Australia , In the Fijian town of Nausori, three Hindu temples have been looted and another partially destroyed by fire.

The Fiji Times reports the temples, located within less than five kilometres of each other are believed to have been entered early yesterday morning.

People living in the area believe the robberies were planned and are pleading to be left alone during the current prayer seasons and approaching Diwali celebrations at the end of the month.

Surendra Prasad, caretaker of the partly burnt and most damaged Naga Baba Kuti Raralevu Temple has told the Fiji Times such attacks are a shame.

The temple, famous for its 108 steps, is the largest temple in Nausori and attracts worshippers from around the country.

मालेगांव में बम विस्फोट,चार मृत

30 सितम्बर २००८, वार्ता, नासिक। महाराष्ट्र में नासिक जिले के मालेगांव नगर में कल हुए एक विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक घायल हो गए।

सूत्रों के अनुसार नुरामी मस्जिद के पास अंजुमन चौक क्षेत्र में कल रात करीब पौने दस बजे हुए इस विस्फोट में मरने वालों की संख्या बढ़कर चार हो गई है जबकि घायलों की संख्या 50 से अधिक है। घायलों का यहां के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है जहां कुछ की हालत गंभीर बताई गई है।

सूत्रों के अनुसार इस विस्फोट में तो कम ही लोग मरे गए हैं, लेकिन इसके बाद मची भगदड़ में कई लोग मारे गए हैं। इसके साथ ही भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में भी कई लोग घायल हो गए। स्थिति की गंभीरता के मद्देनजर मालेगांव के पूर्वी क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा दिया गया है।

सूत्रों के अनुसार विस्फोटस्थल से एक मोटरसाइकिल का मलबा बरामद हुआ है। ऐसी आशंका जताई गई है कि यह कम तीव्रता वाला देशी बम संभवतः उसी मोटरसाइकिल पर रखा गया था।

घटना के बाद कुछ लोगों ने पथराव किया और पुलिस की एक चौकी को आग लगाने के साथ ही कुछ पुलिस वाहनों को भी नुकसान पहुंचाया। इसके कारण साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील इस नगर में तनाव है।

पुलिस ने उग्र भीड़ पर काबू पाने के लिए लाठीचार्ज करने के साथ हवा में फायरिंग की। विस्फोट के बाद पथराव और भगदड़ में आठ से दस पुलिसकर्मियों सहित 50 लोग घायल हो गए।

पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के साथ ही पूरे क्षेत्र को सील कर दिया है। जगह-जगह पर बेरीकेटिंग लगा दी गई हैं। इसके साथ ही नासिक से राज्य रिजर्व पुलिस बल के जवानों को मालेगांव बुलाया गया है। पुलिस के अनुसार फिलहाल स्थिति तनावपूर्ण लेकिन काबू में है।

ठाणे में साम्प्रदायिक झड़प, 1 की मौत

30 सितम्बर २००८, सीएनएन-आईबीएन, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में नाशिक जिले के मालेगांव में कल हुए विस्फोट के बाद ठाणे जिले में भी साम्प्रदायिक झड़प होने की खबर मिली है। इस झड़प में 1 व्यक्ति की मौत हो गई है।

ठाणे जिले के राबोडी इलाके में आज से शुरु हो रहे नवरात्रि त्योहार को लेकर एक पंडाल लगाए जाने के मामले पर विवाद ने झड़प का रुप ले लिया, जिसमें करीब 50 लोग घायल हो गए।

पुलिस के अनुसार, एक खास समुदाय के लोगों ने आरोप लगाया कि ये पंडाल उनके इलाके का अतिक्रमण कर रहा है। इसके बावजूद भी, नवरात्रि महोत्सव का आयोजन करने वाले स्थानीय मंडल समूह ने पंडाल लगाए जाने की बात पर अड़े रहे, और उसके बाद दोनों समुदाय में झड़प हो गई।

इस पूरे इलाके में धारा 144 लागू किए जाने के बावजूद भी कई जगहों पर वाहनों पर पत्थरबाजी किए जाने की घटना घटित हुई। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री आर.आर.पाटिल ने ठाणे के इस हिंसाग्रस्त इलाके का दौरा किया।

मालेगांव में हिंसाः

मालेगांव में भी कल रात भीकू चौक इलाके में हुए विस्फोट के बाद हिंसक घटनाओं की खबर मिली है। विस्फोट के ठीक बाद गुस्साए भीड़ ने पुलिस बलों पर पत्थरबाजी की, जिसमें अतिरिक्त सहायक पुलिस अधीक्षक विरेश प्रभु समेत छह पुलिसकर्मी घायल हो गए।

दरअसल, इस विस्फोट के बाद नाशिक जिले के इस संवेदनशील इलाके में तनाव फैल गया था।

महाराष्‍ट्र के धुले में कर्फ्यू जारी

अक्‍टूबर 2008 , आईबीएन-7 , धुले। महाराष्‍ट्र के धुले शहर में रविवार दोपहर दो गुटों में हुई झड़प के बाद भड़की हिंसा के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है। इस हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई थी।

हिंसा एक गुट के द्वारा लगाए गए पोस्‍टर फाड़ने की वजह से हुई। इससे दूसरा गुट नाराज हो गया और दोनों गुट एक दूसरे से भिड़ गए। दोनों ने एक दूसरे पर पत्‍थरबाजी की और कांच फेंके।

जल्‍द ही पूरा शहर हिंसा की चपेट में आ गया। हिंसा कर रहे लोगों ने दर्जनों वाहनों को निशाना बनाया। करीब दो घंटे तक लोग शहर भर में उत्‍पाद मचाते रहे और पुलिस इन पर काबू नहीं पा सकी।

इसके बाद पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और हवा में गोलियां चलाई। इसके बावजूद उपद्रवी भीड़ को काबू नहीं किया जा सका। इसके बाद पुलिस ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया। घायलों को शहर के सरकारी अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है।

फिलहाल धुले में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसके पूर्व मुम्‍बई से सटे ठाणे शहर में भी एक पंडाल का द्वार लगाने को लेकर हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें 1 व्‍यक्ति की मौत हो गई थी।