Monday, December 29, 2008

सहमे हुए हैं बांग्लादेश के हिंदू

बीबीसी , 26 दिसंबर, २००८, बांग्लादेश की राजधानी का पुराना इलाक़ा बिल्कुल दिल्ली के चांदनी चौक जैसा दिखता है. वही सकरी गलियाँ और छोटी-छोटी दुकानें.
यहाँ के ताते बाज़ार और शाखारी बाज़ार में कई हिंदू रहते है. जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरें दिख जातीं हैं.
यहाँ के जगन्नाथ मंदिर के कर्ता-धर्ता और पेशे से सुनार बाबुल चंद्र दास का कहना है कि अल्पसंख्यक, ख़ासकर हिंदुओं की स्थिति यहाँ बहुत ख़राब है.
उन्होंने कहा, ''पिछले चुनावों के बाद भड़की हिंसा को हम नही भूल सकते. हमें आज भी डर है कि हम वोट डालने जाएँ या नहीं, क्योंकि बाद में हमारे ऊपर हमले भी हो सकते हैं. हमें कहा जाता है कि आप हिंदू हो भारत चले जाओ, हमने भी 1971 की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और अब हमारे पास कोई अधिकार नहीं है.''
नज़ारा अलग है
लेकिन ढाका के शाखारी बाज़ार का नज़ारा एकदम अलग है. यहाँ लगभग पूरी आबादी ही हिंदुओ की है. इक्का-दुक्का मुसलमान यहाँ दिख जाएँगे.
यहाँ पर होटल चला रहे दीपक नाग कहते है, ''यहाँ कोई समस्या नहीं है क्योंकि यहाँ हम मज़बूत स्थिति में है. हाँ, गाँवों में हिंदू उत्पीड़न झेलते हैं. ढाका के इस बाज़ार में कोई हमें नहीं छू सकता.''
शाखरी बाज़ार बाक़ी देश से काफ़ी अलग है. बांग्लादेश में करीब 8-10 प्रतिशत हिंदू है, पर सामाजिक कार्यकर्ताओ की मानें तो ये संख्या काफ़ी ज़्यादा है और सरकारी आँकड़े पूरी सच्चाई बयां नहीं करते.
लेखक, पत्रकार और फ़िल्मकार शहरयार कबीर कहते हैं, ''खेद की बात है की बांग्लादेश में हिंदू हाशिए पर है. उनका संसद में, प्रशासन में सही प्रतिनिधित्व नहीं है."
इस्लामी राष्ट्र
वो कहते हैं कि संविधान को ज़िया उर रहमान ने धर्मनिरपेक्ष से बदल कर इस्लामी रूप दे दिया था और फिर जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्र धर्म का दर्जा दे दिया.
जिस भी हिंदू से बात करते हैं वो 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है. शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ. बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज, चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला. घर, मंदिर, धान की फ़सले जला दी गई. ये हिंसा महीनों चली
काजोल देबनाथ
इसके बाद हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए. हिंदुओ से भेदभाव और उनका दमन जारी है और वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा आज भी दहशत फैला रही है.
कबीर के अनुसार देश में भय का माहौल है और जैसे-जैसे इस्लामी चरमपंथ उभर रहा है, धर्मनिरपेक्ष ताक़तों की जगह कम होती जा रही है.
हालाँकि यहाँ के हिंदू स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते और अपने को मुख्यधारा के हिस्से के रूप में देखते है. काजोल देबनाथ हिंदू बोद्ध ईसाई एकता परिषद से जुड़े हैं और वे बताते हैं कि जब पूर्वी पाकिस्तान था तब राष्ट्रीय असेंबली की 309 में से 72 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं.
उनका कहना है कि अल्पसंख्यकों ने अलग सीटों की बजाए सम्मिलित सीटों की मांग की. पर आज हालत यह है की आवामी लीग ने क़रीब 15 तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने केवल चार से पाँच अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े किए हैं.
काजोल देबनाथ का कहना है, "जिस भी हिंदू से बात करते हैं वो 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है. शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ. बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज, चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला. घर, मंदिर धान की फ़सले जला दी गई. ये हिंसा महीनों चली.''
भारत का असर
ढाका विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर अजय राय कहते हैं, "और तो और लड़कियों के साथ बदसलूकी होती है. सिंदूर और बिंदी लगाने पर फ़िकरे कसे जाते है. भारत की घटनाओं का असर भी बांग्लादेश के हिंदू झेलते है."
अजय राय का कहना है, ''जब भारत में कुछ घटनाएँ होती हैं, जैसे गुजरात या बाबरी मस्जिद विध्वंस, यहाँ प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है. बाबरी विध्वंस के बाद यहाँ हिंदू पूजा स्थलों पर कई हमले हुए. अल्पसंख्यकों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेने की समस्या लगातार बनी रहती हैं क्योंकि वे कमज़ोर है और सरकार और प्रशासन का भी साथ उन्हें नहीं मिलता.
अजय राय एक ग़ैर सरकारी संस्था संपृति मंच के ज़रिए क़ानून-व्यवस्था पर नज़र रख रहे हैं और अल्पसख्यकों से चुनाव में बेख़ौफ़ हिस्सा लेने का आह्वान कर रहे हैं. साथ ही किसी भी हिंसक घटना या डराने-धमकाने की कोशिश को चुनाव आयोग तक पहुँचा रहे हैं.
लेकिन हिंदू समुदाय चुनाव के बाद और सरकार गठन के दौर में संभावित हिंसा से अब भी चिंतित है

Friday, December 12, 2008

आतंक की उर्वर जमीन

रह-रह कर होने वाले आतंकी हमलों के मूल कारणों पर प्रकाश डाल रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण, ०८ दिसम्बर २००८, इतिहास के काले पन्नों में 26/11 का भारत में वही स्थान है जो अमेरिका में 9/ 11 का है। भारत में लगभग हर दो मास के बाद बम विस्फोटों में निर्दोषों की हत्या होती है। ऐसी घटनाओं में मरने वालों की संख्या अब हजारों में है। 11 सितंबर ,2001 के व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन आदि पर हवाई हमले के बाद पिछले सात वर्र्षो में अमेरिका में एक भी आतंकवादी घटना नहीं हुई। अमेरिका और इज़राइल भारत की तुलना में जिहादी आतंकवादियों के निशाने पर अधिक हैं, फिर केवल भारत में ही आतंकवादियों को अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने में इतनी सफलता क्यों मिल रही है? क्या यह सत्य नहीं कि लगभग सभी स्वयंभू सेकुलर दलों ने सेकुलरवाद के नाम पर कट्टरवादी मुस्लिम मानसिकता को पुष्ट करने का काम किया है? क्या जिहादी प्रवृति इसी मानसिकता की देन नहीं है?

यह ठीक है कि मुंबई में हुए हाल के नरसंहार के लिए पाकिस्तानी जिम्मेदार थे, परंतु इस महानगर पर ढाए गए इस कहर को क्या केवल इन्हीं दस लोगों ने अंजाम दिया? क्या इन आतंकवादियों को कोई स्थानीय सहयोग नहीं प्राप्त था? वर्ष 2005 से अब तक की घटनाओं में अपने ही देश में पैदा हुए, पनपे और प्रशिक्षित किए गए आतंकवादियों की संख्या कितनी है? अभी दिल्ली में बटला हाउस की पुलिस मुठभेड़ को छोड़ दें तो कितनी घटनाओं में सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों को मार गिराने में सफलता प्राप्त की है? क्या यह सत्य नहीं कि इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को न तो किस न्यायालय में चार्जशीट किया गया है और न ही दंडित? क्यों? संसद पर खूनी हमले के दोषी मुहम्मद अफजल को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी वर्र्षो से दंडित नहीं किया गया। इससे क्या संदेश जाता है?

मुबई में हुए हमले के बाद जनाक्रोश उमड़ना स्वभाविक था और कांग्रेस में जिस तरह से आरोपों और प्रत्यायोपों का दौर शुरू हुआ वह वास्तव में ही शर्मनाक था। शेष देश और मुबई साठ घंटे के आतंकी आक्रमण से उबरे भी नहीं थे कि कांग्रेस के नेताओं में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद को लेकर जूतम पैजार शुरू हो गई। शीर्ष पर व्यक्ति बदलने से क्या कोई वास्तविक परिवर्तन संभव है? वर्तमान दुखद स्थिति के लिए नेतृत्व और उससे अधिक कांग्रेसी नीतियां जिम्मेदार हैं। क्या इन नीतियों में परिवर्तन होगा? क्या वोट बैंक की राजनीति के लिए राष्ट्र हितों की बलि नहीं दी जाएगी? 16 मार्च 2006 के दिन केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित करके उस अब्दुल नसीर मदनी की रिहाई की मांग की जिस पर 1998 में कोयंबतूर बम विस्फोटों का षडयंत्र करने और विस्फोटों में 60 बेकसूर नागरिकों की हत्या का मुकदमा चल रहा था। ये विस्फोट बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवानी की हत्या के इरादे से उनकी सार्वजनिक सभा में किए गए थे।

एक दूसरे से ज्यादा बड़ा और बेहतर सेकुलर दिखने और मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा खैरख्वाह होने के इसी उत्साह की वजह से भारत के वामपंथी दलों और यूपीए ने उत्साह के साथ आतंकवाद विरोधी पोटा कानून को भी खत्म कर दिया। इसी का नतीजा है कि भारत की अस्मिता पर बार-बार हमला करने वाले आतंकवादियों के हौसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। ऐसी हरकतें करने वाले संगठनों और पार्टियों के वोटों में कितनी बढ़ोत्तारी होती है, यह तो पता नहीं पर इसमें कोई शक नहीं कि इन हरकतों से समाज की सुरक्षा में लगी एजेंसियों और सुरक्षा कर्मियों का उत्साह घटता है। आतंकवादियों के लिए भला इससे बेहतर सौगात और क्या हो सकती है?

भारतीय मुस्लिम समाज और आतंकवाद का सवाल उठते ही भारत के सेकुलरिस्ट यह दलील देने लगते हैं कि गरीबी के कारण मुस्लिम युवक आतंकवाद की राह में भटक जाते हैं, लेकिन मुंबई और दिल्ली समेत पिछले सभी आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार जिन आतंकवादी युवाओं को पकड़ा गया उनमें से अधिकांश उच्चा शिक्षा पाए हुए और खाते पीते घरों के हैं। यह दिखाता है कि असली समस्या अशिक्षा और बेरोजगारी में नहीं, बल्कि भारतीय मुस्लिम समाज पर गहरी पकड़ बनाए बैठे वे कठमुल्ला नेता हैं जो आज भी भारत को 'दारुल इस्लाम' बनाने का सपना पाले हुए हैं। वैसे भी अगर गरीबी में ही आतंकवादी पैदा होते हैं तो फिर भारत के हिंदू समाज में सबसे ज्यादा आतंकवादी होने चाहिए थे, क्योंकि यहां के निपट गरीब हिंदुओं की संख्या भारत की पूरी मुस्लिम आबादी के दुगने से भी ज्यादा है। मुंबई में हुई आतंकी घटना एक ऐसे मौके पर हुई जब महाराष्ट्र की एटीएस मालेगांव बम विस्फोटों की जांच में लगी हुई थी।

महाराष्ट्र एटीएस की जांच के हर कदम को जिस तरह मीडिया के सामने रोज-रोज परोसा जा रहा था उसे देखकर समझना मुश्किल था कि महाराष्ट्र सरकार एटीएस का इस्तेमाल बमकांड की जांच के लिए कर रही है या दुनिया को यह बताने के लिए कि दुनिया भर में फल फूल रहे इस्लामी आतंकवाद के साथ-साथ भारत में 'हिंदू आतंकवाद' भी खड़ा हो गया है। 26 नवंबर के दिन पाकिस्तानी आतंकवादियों की गोलियों से शहीद होने से ठीक एक दिन पहले एटीएस के प्रधान शहीद हेमंत करकरे ने एक टीवी न्यूज़ चैनेल को दिए अपने इंटरव्यू में इस बात को स्वीकार किया था कि एटीएस का 90 प्रतिशत समय और ताकत को मालेगांव कांड पर खर्च किया जा रहा है। क्या इस जांच का उद्देश्य आतंकवाद के स्रोतों को बंद करना नहीं बल्कि साध्वी प्रज्ञा और ले. कर्नल पुरोहित को 'हिंदू टेरर' के प्रतीकों के रूप में खड़ा करके 'सेकुलरिस्टों' के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाना नहीं था? आतंकवादी पाकिस्तान से आए, इस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वाघा बार्डर पर मोमबत्तियां जला कर क्या पाकिस्तान की मानसिकता बदली जा सकती है? 1947 में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बावजूद पाकिस्तान कबायलियों और उनकी आड़ में अपनी सेना को भेजकर राज्य का एक हिस्सा अपने कब्जे में लेने में कामयाब रहा था। भारत के खिलाफ मजहबी आतंकवादियों के इस पहले इस्तेमाल की सफलता के बाद उसका इसमें विश्वास लगातार बढ़ता आया है। 1980 और 90 के दशकों में पंजाब में आतंकवादी आंधी के लिए भी पाकिस्तान ही जिम्मेदार था। कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को आतंक का समर्थन भी पाकिस्तान से प्राप्त होता है।

पाकिस्तान और कठमुल्लों के बाद भारत में जेहादी आतंकवाद को बढ़ाने वाला तीसरा तत्व वे मुस्लिम देश हैं जो दुनिया भर में जेहादी आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पैसे और हथियार मुहैया करा रहे हैं। अगर भारत में आतंकवाद को सचमुच खत्म करना है तो हमें इन तीनों तत्वों के प्रभाव पर नियंत्रण लगाना होगा। यह काम किसी एक पार्टी या सरकार के बस का नहीं है। इस काम के लिए सभी दलों को अपने छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठना होगा।


मजहब के नाम पर गुनाह

मजहब के नाम पर हिंसा और आतंक फैलाने वाली मानसिकता की तह तक जा रहे हैं डा.महीप सिंह

दैनिक जागरण ३ दिसम्बर २००८, जब छोटे-बड़े धर्म-गुरु, देश के नेता और समाज के चिंतनशील व्यक्ति यह कहते हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म, मजहब, मत या संप्रदाय नहीं होता तो मुझे बहुत विचित्र सा लगता है। यह भी कम विचित्र नहीं है कि सभी मजहबों और मतों के अगुवा यह दावा करते हुए दिखाई देते है कि हमारे मजहब या पंथ में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। मनुष्य का इतिहास ऐसी दलीलों की गवाही नहीं देता। संसार में जितना नरसंहार मजहब के नाम पर हुआ है उतना दुर्दांत आक्रमणकारियों द्वारा अपने राज्यों के विस्तार के लिए भी नहीं हुआ। मेरे सम्मुख इस समय तीन शब्द हैं-धर्मयुद्ध, जिहाद और ्रक्रुसेड। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है, ''जब-जब धर्म की हानि होती है, अधर्म की वृद्धि होती है, मैं पाप का विनाश करने और धर्म की स्थापना के लिए युग-युग में प्रकट होता हूं।'' लगभग यही बात गुरु गोबिंद सिंह ने भी कही है। भगवान कृष्ण कौरवों के खिलाफ अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं और गुरु गोबिंद सिंह मुगलों के विरुद्ध युद्ध को धर्म युद्ध मानते हैं।

जिहाद क्या है? उसकी एक परिभाषा तो यह है कि जो लोग इस्लाम की प्रभुता को स्वीकारते नहीं है उनके विरुद्ध युद्ध छेड़ना जिहाद है। उनके लिए यह धर्म युद्ध है। उदार सूफी लेखक मानते हैं कि जिहाद दो प्रकार का होता है-अल जिहाद-ए अकबर अर्थात बड़ा युद्ध। यह जिहाद व्यक्ति की अपनी वासनाओं और दुर्बलताओं के विरुद्ध है। दूसरा है-अल जिहाद ए-अगसर, जो विधर्मियों के खिलाफ लड़ा जाता है। सऊदी अरब के कट्टरपंथी वहाबी मानते है कि इस्लाम विरोधी सभी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध करना और उन्हे किसी भी प्रकार नष्ट करना सही जिहाद है, किंतु उदार मुसलमान कहते है कि कुरान शरीफ में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि इस्लाम किसी को जबरदस्ती मुसलमान बनाने की अनुमति नहीं देता।वह तो इसके सर्वथा विरुद्ध है। उनकी धारणा यह भी है कि इस्लाम के प्रारंभिक विरोधी यहूदी और ईसाई थे। उन्होंने इस्लाम का प्रचार रोकने के लिए उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा था। इसलिए कुरान में उनके विरुद्ध युद्ध करने की अनुमति दी गई। यह अनुमति इसलिए नहीं दी गई कि मुसलमान दूसरे पर चढ़ दौड़ें, बल्कि इसलिए कि अत्याचार से पीड़ित और निस्सहाय लोगों की सहायता करे और उन्हे अत्याचारियों के पंजों से छुटकारा दिलाएं। आज सारे संसार में जो कुछ हो रहा है, और अभी-अभी मुंबई में जो कुछ हुआ उसे वे लोग कर रहे है जो अपने आपको जिहादी मानते है। वे मानते हैं कि यहूदी, ईसाई और हिंदू इस्लाम के शत्रु है।

एक अन्य शब्द है क्रुसेड। ईसाइयों और मुसलमानों के मध्य कई सदियों तक निरंतर युद्ध चलता रहा। अरब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने एक समय यूरोप के अनेक देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। स्पेन आदि देशों पर उनका अधिकार कई सदियों तक बना रहा। 11वीं से 14वीं सदी तक पश्चिमी यूरोप के ईसाई क्रुसेडर अपनी भूमि को मुस्लिम प्रभाव से मुक्त कराने के लिए युद्ध करते रहे। क्रुसेड शब्द लैटिन भाषा के क्रक्स शब्द से बना है। युद्ध के लिए जाते समय ईसाई सैनिक अपनी छाती पर पहने हुए वस्त्र पर 'क्रास' का चिह्न सिल लेते थे। ये क्रुसेड पोप के नेतृत्व में होते थे। स्पेन में उत्तारी अफ्रीका की ओर मुस्लिम सेनाओं का प्रवेश आठवीं सदी में प्रारंभ हो गया था। लगभग सात सौ वर्ष तक यहां उनका प्रभुत्व बना रहा। 11वीं सदी में ईसाइयों द्वारा क्रुसेड आरंभ हुआ और लंबे संघर्ष के पश्चात 15वीं सदी के अंत तक वहां से मुस्लिम शासन पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। इतिहास की इस पृष्ठभूमि में जाने से मेरा इतना ही मंतव्य है कि मजहब को आधार बनाकर संसार के विभिन्न समुदायों का संघर्ष नया नहीं है। एक बात लगभग सभी पक्षों की ओर से उन सक्रिय भागीदारों से कही जाती है कि यदि तुम ऐसे महत् अभियान में मृत्यु प्राप्त करोगे तो तुम्हे स्वर्ग या जन्नत नसीब होगा और यदि तुम सफल हुए तो धरती के सभी सुख तुम्हारे चरणों में होंगे।

यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि आधुनिक युग में संसार में जिस प्रकार से वैज्ञानिक चिंतन का विकास हुआ है, लोकतंत्र की परिकल्पना ने अपने जड़ें जमाई है उससे धर्मयुद्ध और क्रुसेड शब्दों ने बड़ी सीमा तक अपनी संगति खो दी है, किंतु जिहाद शब्द अभी भी अपनी मध्ययुगीन मानसिकता से पल्ला नहीं छुड़ा सका है। प्रत्येक समुदाय में दो वर्ग स्पष्ट रूप से दिखाई देते है। अधिसंख्य लोग सभी प्रकार की विभिन्नताओं के बावजूद मिल-जुल कर शांतिपूर्वक रहना चाहते है, किंतु इसी के साथ एक अनुदार वर्ग भी उभर जाता है। उनकी संख्या अधिक नहीं होती, किंतु अपने आक्रामक तेवर के कारण वे अपने समुदाय के प्रवक्ता जैसे बन जाते है। मैं मानता हूं कि ऐसी कट्टर मानसिकता विकसित करने में उस मत के पुरोहित वर्ग की बड़ी भूमिका होती है। विश्व के कई स्थानों पर मुस्लिम समुदाय में सुन्नियों और शियाओं के बीच एक खूनी जंग छिड़ी दिखती है।

क्या मनुष्य के अस्तित्व में युद्ध एक अनिवार्य तत्व है? लगता तो यही है। 26 नवंबर की रात को मुंबई में जिहादियों द्वारा जो भीषण आक्रमण हुआ उसे अनेक समाचार पत्रों ने अपने शीर्षकों में युद्ध जैसी स्थिति घोषित किया। जाहिर है, युद्ध का स्वरूप अब बदलता जा रहा है। आज सारे संसार में जिस आतंकवाद की चर्चा हो रही है वह आमने-सामने का युद्ध नहीं है। मुंबई में आए आतंकवादियों का यह निश्चय था कि वे इस नगर के 5 हजार लोगों की हत्या करेगे। वे कौन होंगे, उनका मजहब क्या होगा-इससे उनका कोई सरोकार नहीं था। उनकी अंधाधुंध गोलाबारी का शिकार दो दर्जन से अधिक मुसलमान भी बने। मैंने प्रारंभ में ही लिखा है कि यह कहने को कोई अर्थ नहीं है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। देखना यह चाहिए कि आतंकियों को जन्म देने वाली उर्वरा भूमि कौन सी है और उसे खाद-पानी कहां से मिलता है?


बरेली में खुलेआम कुर्बानी को लेकर पथराव, फायरिंग

दैनिक जागरण,११ दिसम्बर २००८, बरेली : आजम नगर की छोटी गली में खुलेआम नई जगह कुर्बानी की कोशिश से दो समुदायों के सैकड़ों लोग आमने-सामने आ गए। पथराव में एक मासूम सहित कुछ लोगों को ईंट पत्थर लगे तो माहौल और भड़क उठा। फायरिंग शुरू हो गई। पुलिस पर भी उपद्रवियों ने हमला किया। पुलिस ने हवाई फायरिंग कर भीड़ को तितर-बितर किया। कुछ ही देर में आसपास के बाजार बंद हो गए। दो घंटे बाद किसी तरह दोनों पक्षों के मोअज्जिज लोगों और अफसरों ने माहौल शांत कराया। इलाके में तनाव बना हुआ है तथा फोर्स तैनात है। दोनों तरफ के डेढ़ सौ लोगों के खिलाफ बलवे का मुकदमा कायम कराया गया है। आजमनगर में सुबह करीब 11 बजे शाबिर पुत्र मोहम्मद अली अपने घर के सामने गली में भैंसे की कुर्बानी दे रहा था। इस पर पड़ोस में रहने वाले गंगा सहाय आदि लोगों ने आपत्ति की। इसी बात पर दोनों पक्षों में विवाद हो गया। माहौल गरमा गया और देखते ही देखते पथराव और फायरिंग शुरू हो गयी। दो मकानों में मिट्टी का तेल डालकर फूंकने का भी प्रयास किया गया। उपद्रव से इलाके में भगदड़ मच गयी।

Wednesday, December 3, 2008

Hindu shrine demolished in Malaysia despite ban order

3 December 2008, Kuala Lumpur (PTI): A 15-year-old Hindu shrine has been demolished by the city authorities in Kuala Lumpur even after an order by the Territories ministry banning the destruction of any temple without allocating alternate site.

The latest demolition of a shrine in Taman Desa, Seputeh, on Tuesday has raged anger among the Hindu community, who are now asking questions to explain the demolition act, media reports said here on Wednesday.

The Kuala Lumpur City Hall (DBKL) authorities had apparently issued a notice about the action to be taken in October and pasted the message on the temple's wall, reports added.

The notice was not handed over to the shrine authorities.

Leading ethnic Indian leader and President of the Malaysian Indian Congress, Samy Vellu, has asked the city authorities to explain their action and has warned of personally taking up the matter to Prime Minister Abdullah Ahmad Badawi.

Deputy Federal Territories Minister M Saravanan said he was upset over the demolition and would meet Federal Territories minister Datuk Zulhasnan Rafique on Wednesday.

"I have an understanding with the Federal Territories Minister that no existing temples would be demolished unless an alternative site has been given. If there was any development on the land, then the temple would be relocated," he said.

Multi-religious and multi-ethnic Malaysia has a eight per cent ethnic Indian population a majority of whom are Tamil Hindus.

Saravanan has asked Hindus to give the ministry a day or two before the issue could be resolve amicably.

Monday, November 24, 2008

Hindu religious leader to address EU Parliament

11/22/2008, Times of India.Prominent Hindu religious leader Rajan Zed has been invited by President of European Parliament Hans-Gert Pottering for a meeting to discuss issues concerning Hindus and promote interfaith dialogue. Zed, who is president of Universal Society of Hinduism, will meet President Pottering in his Brussels office on December 10.

This will be the first formal visit of a Hindu religious leader to EP during the current European Year of Intercultural Dialogue (EYID). Other world religious leaders who visited EP as part of EYID include Orthodox Patriarch Bartholomew, Grand Mufti of Syria and Rabbi Jonathan Sacks.

After exchanging views with the President, Zed will meet Deputy Head of President's Cabinet Ciril Stokelj for detailed discussion on various issues.

Zed, who became the first person to recite Hindu opening prayer in the United States' Senate in its 218-year history, is one of the panelists for 'On Faith', a prestigious interactive conversation on religion produced jointly by Newsweek and washingtonpost.com.

He has also set the record by reciting prayers in California, Arizona, Utah, New Mexico, and Nevada Senates, Arizona House of Representatives and Nevada Assembly.

Zed, Spiritual Advisor to the National Association of Interchurch and Interfaith Families, Director of Interfaith Relations of Nevada Clergy Association, is famous for his efforts in promoting interfaith talks.

Hindu nationalists protest documentary at Goa film festival

23 November 2008, PANAJI, India (AFP) — The International Film Festival of India was officially opened in the resort state of Goa Saturday but immediately ran into controversy with hardline Hindu nationalists.

The Sanatan Sanstha and Hindu Janajagruti Samiti (HJS) movements protested against the scheduled screening of M.F. Husain's 1960s documentary "Through the Eyes of a Painter," which was shown at the Berlin Film Festival and won a Golden Bear award.

India's Ministry of Information and Broadcasting has organised the screening for November 25.

Senior HJS member Sushant Dalvi said: "There are 1,250 police complaints filed against Husain in India. It is not right for the government organisations to make his film a part of such a prestigious festival."

Dalvi added that a formal complaint was being submitted to the festival director and Goa's chief minister.

Maqbool Fida Husain, 93, is one of India's best-known artists and has even been referred to as the country's Picasso.

But he became embroiled in controversy in the mid-1990s over his paintings of nude Hindu deities that led to court cases, attacks on his house and death threats.

A Ministry of Information and Broadcasting official rejected the complaints.

"The documentary has nothing to do with insulting any religion. It was produced long back and is selected because it is a good documentary," he said.

The festival runs until December 2.

मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा

बीबीसी, 22 नवंबर, २००८,मलेशिया में इस्लामिक धर्माधिकारियों ने एक फ़तवा जारी करके लोगों को योग करने से रोक दिया गया है क्योंकि उनको डर है कि इससे मुसलमान 'भ्रष्ट' हो सकते हैं.
धर्माधिकारियों का कहना है कि योग की जड़ें हिंदू धर्म में होने के कारण वे ऐसा मानते हैं.
यह फ़तवा मलेशिया की दो तिहाई लोगों पर लागू होगा जो इस्लाम को मानते हैं और उनकी कुल आबादी कोई दो करोड़ 70 लाख है.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार मलेशिया को आमतौर पर बहुजातीय समाज माना जाता है जहाँ आबादी का 25 प्रतिशत चीनी हैं और आठ प्रतिशत हिंदू हैं.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इस आदेश को मलेशिया में बढ़ती रूढ़िवादिता की तरह देखा जा रहा है.
खेल की तरह
ज़्यादातर लोगों के लिए योग एक तरह का खेल है जिससे आप अपने तनाव को कम कर सकते हैं और दिन की शुरुआत कर सकते हैं.
लेकिन इस प्राचीन व्यायाम योग की जड़ें हिंदू धर्म में हैं और मलेशिया की नेशनल फ़तवा काउंसिल ने कहा है कि मुसलमानों को योग नहीं करना चाहिए.
काउंसिल के प्रमुख अब्दुल शूकर हुसिन का कहना है कि प्रार्थना गाना और पूजा जैसी चीज़ें 'मुसलमानों के विश्वास' को डिगा सकती हैं.
हालांकि लोगों के लिए योग न करने के इस आदेश को मानने की बाध्यता नहीं है और काउंसिल के पास इसे लागू करवाने के अधिकार भी नहीं हैं लेकिन बड़ी संख्या में मुसलमान फ़तवे को मानते हैं.
इस निर्णय से पहले मलेशिया की योग सोसायटी ने कहा था कि योग केवल एक खेल है और यह किसी भी धर्म के आड़े नहीं आता है.
योग की शिक्षिका सुलैहा मेरिकन ख़ुद मुसलमान हैं और वे इस बात से इनकार करती हैं कि योग में हिंदू धर्म के तत्व हैं.
समाचार एजेंसी एपी से उन्होंने कहा, "हम प्रार्थना नहीं करते और ध्यान भी नहीं करते."
उनके पिता और दादा भी योग के शिक्षक रह चुके हैं. उनका कहना था, "योग एक महान स्वास्थ्य विज्ञान है. इसे वैज्ञानिक रुप से साबित भी किया जा चुका है और इसे कई देशों ने इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की तरह स्वीकार भी किया है."
बीबीसी के कुआलालंपुर संवाददाता रॉबिन ब्रांट का कहना है कि हालांकि योग की कक्षाओं में ज़्यादातर चीनी और हिंदू ही नज़र आते हैं लेकिन बड़े शहरों में मुसलमान महिलाओं का योग की कक्षाओं में दिखाई देना आम बात है.

Wednesday, November 19, 2008

पैंतीस किलो गौमांस समेत तस्कर पकड़ा, एक फरार

दैनिक जागरण, १७ नवम्बर, २००८, अमरोहा (ज्योतिबाफूलेनगर) : पुलिस ने दबिश देकर पैंतीस किलो गौ मांस के साथ तस्कर को रंगे हाथों धर दबोच लिया जबकि एक आरोपी दीवार कूदकर फरार हो गया। पुलिस को मौके से गाय की खाल, कई कटे हुए अंग एवं छुरी भी मिली है।

रविवार की शाम पांच बजे देहात थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गांव कांकर सराए के रहने वाले शहनवाज उर्फ शानू कुरैशी पुत्र शफीक अपने घर में ही गौकशी कर मांस बेच रहा है। इस पर एसओ गणेश दत्त जोशी मय पुलिस बल के मौके पर पहुंच गए। दबिश देकर नगर के मुहल्ला दानिश मंदान निवासी मोहम्मद अफजाल पुत्र अली हुसैन को गाय के मांस समेत गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान शाहनवाज मौके से दीवार फांदकर भागने में सफल हो गया। पुलिस ने पीछा भी किया लेकिन वह जंगल में गुम हो गया। मौके से पुलिस को 35 किलो गाय का मांस, एक गाय की खाल, अंग, तराजू, छुरी व बोरा आदि सामान बरामद कर लिया।

एसओ श्री जोशी ने बताया कि आरोपी से पूछताछ में गौमांस के अन्य तस्करों से जुड़ी अहम जानकारियां मिली हैं, जिस पर टीम को लगा दिया गया है। मामले की दो तस्करों के खिलाफ गौवध अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। फरार अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है।

21 पशु बरामद, दो दबोचे गए

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, सैयदराजा (चंदौली) । वध के लिए पैदल बंगाल में आपूर्ति को ले जाये जा रहे 21 पशुओं को स्थानीय पुलिस ने फेसुड़ा नहर के समीप से बरामद किया और दो तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। घटना सोमवार की मध्यरात्रि की बतायी जाती है।

जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष रामसागर को मुखबिर से सूचना मिली कि दो तस्करों द्वारा 21 मवेशियों को वध हेतु पैदल ही फेसुड़ा, जेवरियाबाद व कन्दवा थाना क्षेत्र की पगडंडियों के रास्ते बंगाल ले जाया जा रहा है। सूचना मिलते ही थानाध्यक्ष उपनिरीक्षक महानंद पाण्डेय व रमाशंकर यादव के अलावा सहयोगी पुलिस कर्मियों के साथ मार्ग की नाकेबंदी कर पशुओं समेत तस्करों के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर के बाद मय पशु तस्कर आते दिखायी दिये जो पुलिस को देखते ही पशुओं को छोड़ भागने लगे। पुलिस ने दौड़ा कर दोनों तस्करों को धर दबोचा और पशुओं को बरामद कर थाने पर ले आयी। बरामद पशुओं में 18 बैल एवं तीन गाय शामिल हैं। पुलिस ने गिरफ्तार तस्करों को गो-वध अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के बाद हवालात में डाल दिया। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में इन दिनों तस्करों द्वारा मोबाइल से पुलिस की गतिविधियों का लोकेशन लेकर देर रात्रि या भोर में पैदल पशुओं को नदी के रास्ते बिहार ले जाये जाने का सिलसिला जारी है।

हिंदुओं को जगाने निकली जन जागरण यात्रा

दैनिक जागरण १८ नवम्बर २००८चित्रकूट। हर हर महादेव, भारत मां की जय के उद्घोष के साथ मंदाकिनी का पूजन कर साधुओं का एक जत्था यहां से कूच कर गया। धर्मनगरी के साधु संतो की अगुआई में यहां से प्रारंभ की गई राष्ट्र रक्षा जन जागरण यात्रा का नेतृत्व विहिप के प्रांत संगठन मंत्री अम्बिका प्रसाद कर रहे हैं। यहां से निकली यात्रा बुंदेलखंड का भ्रमण कर हिंदू अस्मिता पर हो रहे प्रहार व संतों को आतंकवादी करार दिये जाने की सच्चाई को आम लोगों को बताने का काम करेगी।

मंगलवार को यात्रा का शुभारंभ रामघाट पर भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास की अगुवाई में शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति से मां मंदाकिनी का पूजन अर्चन किया। सबसे पहले दूध की धार से अभिषेक किया और फिर पूजन कर आरती करने के बाद यात्रा को रवाना कर दिया गया। विहिप के प्रांत संगठन मंत्री ने बताया कि हिंदू विरोधी केंद्र सरकार के कार्यों का काला चिट्ठा लोगों के सामने खोलने के लिए इस जनजागरण यात्रा की शुरुआत की गई है। उन्होंने बताया कानपुर प्रांत के अंतर्गत आज ही ब्रह्मावर्त से भी एक यात्रा शुरू की गई है। बताया कि यह यात्रा यहां से शुरू होकर आज ही अतर्रा, बांदा, कबरई होते हुये महोबा में रात्रि विश्राम करेगी। बुधवार को कबरई, खन्ना, मौदहा, भरुवासुमेरपुर होते हुये हमीरपुर में विश्राम करेगी। गुरुवार को राठ, उरई में विश्राम शुक्रवार को मोठ, पारीक्षा, चिरगांव व झांसी में विश्राम शनिवार को बबीना, तालबेहट, वासी होते हुये ललितपुर में समापन होगा। यात्रा के आरंभ में प्रांत संगठन मंत्री बजरंग दल वीरेन्द्र पांडेय, विभाग संगठन मंत्री रमेश चंद्र त्रिपाठी, जिला संगठन मंत्री छत्रपाल सिंह, जिला गौ रक्षा प्रमुख विकास मिश्र के अलावा दर्जनों साधू और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। यात्रा अपना पहला पड़ाव कर्वी के बाद शिवरामपुर, भरतकूप होते हुये बांदा जिले में प्रवेश कर गई। रास्ते में जगह-जगह हैंडबिलों के माध्यम से हिंदू चेतना का काम भी किया गया। इसके अलावा लाउडस्पीकर से भी यह काम किया जा रहा था।

Tuesday, November 18, 2008

खुद की बर्बादी का जश्न

मालेगांव बम कांड पर पक्ष एवं विपक्ष, दोनों के रवैये को अनुचित करार दे रहे हैं राजीव सचान

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर, २००८। मालेगांव बम धमाकों की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है। महाराष्ट्र सरकार का आतंकवाद विरोधी दस्ता यानी बहुचर्चित एटीएस जैसे-जैसे अपनी जांच आगे बढ़ा रही है और इस संदर्भ में किस्म-किस्म के जो प्रत्याशित-अप्रत्याशित दावे कर रही है उस पर सवाल उठाने का सिलसिला भी गति पकड़ता जा रहा है। तमाम राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक हिंदू संगठन एटीएस की जांच-पड़ताल को दुर्भावना भरी बता रहे हैं। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि एटीएस जो कुछ कर रही है उसके पीछे कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता और महाराष्ट्र सरकार का हाथ है। एटीएस की जांच कार्यवाही को संत समाज और सैन्य बलों के उत्पीड़न के रूप में भी परिभाषित किया जा रहा है तथा पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक करने की मांग हो रही है। कुल मिलाकर माहौल कुछ वैसा ही है जैसा दिल्ली के जामिया नगर में मुठभेड़ के बाद था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब दिल्ली पुलिस निशाने पर थी और निशाना लगाने वाली थी कथित सेक्युलर जमात। इस जमात में कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी और धर्मगुरू भी थे। ये सभी दिल्ली पुलिस के दावों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे-अभी भी नहीं हैं। इस जमात की ओर से दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के लिए चलाए गए अभियान से ऐसा माहौल बना कि अनेक कांग्रेसी नेता भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह मांग करने लगे कि जामिया नगर मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। इससे इनकार नहीं कि महाराष्ट्र एटीएस की जांच के तौर-तरीके और उसके कुछ कथित सबूत संदेह पैदा करने वाले हैं, लेकिन यह तो अदालत को तय करना है कि प्रज्ञा सिंह और उसके नौ साथियों पर एटीएस द्वारा लगाए गए सबूत सही हैं या नहीं? विडंबना यह है कि जो कार्य अदालत को करना है उसे कुछ हिंदू नेता और धर्माचार्य करने की जिद कर रहे हैं। इन्हें अपना संदेह प्रकट करने का अधिकार तो है, लेकिन यदि आरोपों के कठघरे में खड़े लोगों का बचाव इस आधार पर किया जाएगा कि हिंदू आतंकी हो ही नहीं सकते तो फिर मुश्किल होगी। यह सही है कि हिंदुओं के आतंक के रास्ते पर चलने का कोई औचित्य नहीं, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक अथवा व्यक्तिगत कारणों से पथभ्रष्ट होकर कोई भी गलत राह पर चल सकता है। इस संदर्भ में यह ध्यान रहे कि जो भी आतंक के रास्ते पर चलते हैं वे स्वयं को आतंकी मानने से इनकार करते हैं। नि:संदेह इसका यह मतलब नहीं कि मुंबई एटीएस जो कुछ कह रही है वह सब सही है और उसके दावे संदेह से परे हैं। सच तो यह है कि उसके अनेक दावे हास्यास्पद हैं, जैसे यह कि एक गवाह ने मालेगांव में विस्फोट की साजिश के संदर्भ में फोन पर हो रही बातचीतसुनी है। क्या ऐसा संभव है कि फोन पर दोनों ओर से हो रही बातचीत को सुना जा सके? एटीएस के तमाम संदेहास्पद दावों के बावजूद उचित यही है कि जांच पूरी होने का इंतजार किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पुलिस के लिए काम करना कठिन हो जाएगा। कम से कम आतंकवाद से लड़ना तो उसके लिए दुरूह हो ही जाएगा। वह आतंकी घटनाओं में शामिल किसी भी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगी। कल को अन्य समुदायों के लोग भी अपने लोगों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने पर उसी तरह बचाव करेंगे, जैसे कल मुस्लिम संगठन कर रहे थे और आज हिंदू संगठन कर रहे हैं।यह मांग तो की जा सकती है और की भी जानी चाहिए कि पुलिस की जांच के तौर-तरीके बदलें, क्योंकि अनेक बार वह अपने ही दावों का खंडन कर देती है अथवा उसके द्वारा जुटाए गए सबूत अदालतों के समक्ष ठहर नहीं पाते, लेकिन यदि उस पर अविश्वास किया जाएगा तो फिर आतंकवाद से लड़ना और कठिन होगा। एक ऐसे समय जब स्वयं भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के प्रति अनिच्छुक है तब आतंकी घटनाओं की जांच के सिलसिले में पुलिस को कठघरे में खड़ा करने से ऐसी भी नौबत आ सकती है कि वह संदेह के आधार पर किसी से पूछताछ करना ही बंद कर दे। सैद्धांतिक रूप से किसी एक के किए की सजा पूरे समुदाय को नहीं दी जा सकती, लेकिन जब समुदाय विशेष के हितों के बहाने आतंकवाद की राह पर चला जाएगा तो उस समुदाय का नाम अपने आप आतंकवाद के साथ नत्थी हो जाएगा। जाने-अनजाने दुनिया भर में ऐसा ही हो रहा है। यदि खालिस्तानी संगठनों के आतकंवाद को सिख आतंकवाद कहा गया तो लिट्टे के आतंकवाद को तमिल आतंकवाद। यदि कोई गूगल पर हिंदू आतंकवाद लिखे तो उसे लाखों संदर्भ मिल जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि प्रज्ञा सिंह और उसके साथियों की गिरफ्तारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन असहज हैं, लेकिन जरा गौर कीजिए कि खुश कौन है? यह है कांग्रेस और उसके जैसे खुद को सेक्युलर बताने वाले दल। उन्हें लग रहा है कि अब भाजपा को कठघरे में खड़ा करने में और आसानी हो जाएगी, लेकिन क्या यह खुश होने की बात है कि हिंदू युवक आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले हैं? यह तो अपने घर में आग लगने पर हाथ तापने जैसी बेवकूफी हुई। क्या इससे अधिक चिंताजनक और कुछ हो सकता है कि बहुसंख्यक समाज आतंकवाद का वरण करता दिखे? यह तो ऐसा मामला है जिस पर प्रधानमंत्री को हफ्तों नींद नहींआनी चाहिए। यदि हिंदू संगठन आतंक के रास्ते पर चल निकले हैं तो इसका अर्थ है कि घर को उसके ही चिराग से आग लग गई है। जब देश के राजनीतिक नेतृत्व को यह देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ तब वह राजनीतिक लाभ बटोरने की फिराक में है। क्या किसी ने कथित सेक्युलर जमात के किसी नेता का ऐसा कोई बयान पढ़ा-सुना है जिसमें हिंदू युवकों के आतंकी बनने पर चिंता जताई गई हो? उनके बयानों से यदि कुछ झलकता है तो उत्साह, विश्वास और इस बात का संतोष कि वे जो कुछ कहते थे वह सही साबित हो रहा है। शायद इसे ही कहते हैं खुद की बर्बादी का जश्न मनाना। हैरत यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी इस जश्न में शामिल दिख रही है। क्या कोई समझेगा कि आज प्रश्न यह नहींहै कि कांग्रेस और भाजपा का क्या होगा, बल्कि यह है कि देश का क्या होगा?

एटीएस ने दीं साध्वी प्रज्ञा को यातनाएं

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, नासिक : मालेगांव धमाका मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने आरोप लगाया है कि एटीएस साध्वी को यातनाएं दे रही है। अदालत ने सोमवार को साध्वी और सात अन्य आरोपियों की न्यायिक हिरासत 29 नवंबर तक बढ़ा दी। नासिक की जिला व सत्र अदालत ने आरोपियों से पूछताछ की गुजरात पुलिस की अपील खारिज कर दी। महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मामले के आठों आरोपियों की न्यायिक हिरासत बढ़ाने के लिए उन्हें नासिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। साध्वी के वकील गणे सवानी ने अदालत में याचिका दाखिल कर कहा कि एटीएस ने हाल ही में साध्वी को शारीरिक यातनाएं दीं। वकील ने यह भी कहा कि साध्वी के साथ दु‌र्व्यवहार हो रहा है। अतिरिक्त मजिस्ट्रेट एच. के. गणत्र की अदालत इस दौरान खचाखच भरी थी। एटीएस ने आगे पूछताछ के लिए आरोपियों की रिमांड बढ़ाने की अपील की। एटीएस के विशेष वकील अजय मिसर ने दलील दी कि विस्फोट मामले की जांच अभी जारी है, ऐसे में आरोपियों की न्यायिक हिरासत बढ़नी चाहिए। उनकी दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश ने साध्वी समेत सभी आरोपियों को 29 नवंबर तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इस बीच गुजरात पुलिस द्वारा दस में से नौ आरोपियों से पूछताछ के लिए दायर याचिका अदालत ने आज खारिज कर दी। अदालत में इस याचिका पर सुनवाई के दौरान गुजरात पुलिस के उपाधीक्षक के. के. मैसूरवाला मौजूद थे। पेशी के दौरान साध्वी प्रज्ञा ने अदालत से अपने वकीलों की ओर से दिए गए वक्तव्य का हिंदी अनुवाद उपलब्ध कराने को कहा। प्रज्ञा ने कहा कि अंग्रेजी में होने के कारण वह इसे समझ नहीं सकती। साध्वी ने अदालत में कहा, मुझे मालूम नहीं मेरा कसूर क्या है? इस मामले में एक अन्य आरोपी पूर्व सैन्य अधिकारी रमेश उपाध्याय ने अदालत को बताया कि उसे कानूनी मदद मांगने के लिए पुणे में अपने परिजनों को पत्र नहीं भेजने दिए गए। उपाध्याय ने आरोप लगाया कि उसे अपने परिवार से बात नहीं करने दी जा रही, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। उसने एटीएस पर जेल नियमों के तहत मिलने वाली सुविधाएं नहीं दिए जाने का भी आरोप लगाया। इससे पहले साध्वी, अभिनव भारत के सदस्य समीर कुलकर्णी और पूर्व सैन्य अधिकारी रमेश उपाध्याय को अन्य आरोपियों के साथ कड़ी सुरक्षा में अदालत लाया गया। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि साध्वी ने 29 सितंबर को मालेगांव धमाके के बाद मुख्य आरोपी रामजी से लंबी बातचीत की थी। अभियोजन पक्ष के वकील ने कहा कि साध्वी ने रामजी से पूछा कि पुलिस ने धमाके में इस्तेमाल हुई उसकी मोटरसाइकिल जब्त तो नहीं कर ली है और धमाके में इतने कम लोग क्यों मरे? साध्वी की पेशी के दौरान अदालत के बाहर शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू एकता आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी और प्रदर्शन किया।

Saturday, November 15, 2008

अब मधुशाला पर फतवा

दैनिक जागरण, १५ नवम्बर, २००८, लखनऊ: शहर काजी मौलाना अबुल इरफान मियां ने साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की कृति मधुशाला की कुछ पंक्तियों पर ऐतराज जताकर फतवा जारी किया है। वहीं राजधानी के एक शायर ने इस कदम को गैर जरूरी करार दिया है। शहर काजी मौलाना अबुल इरफान मियां फिरंगी महली ने शुक्रवार को एक विज्ञप्ति के जरिए जानकारी दी कि मधुशाला में लिखी कुछ पंक्तियां इस्लाम की दृष्टि से निहायत गलत हैं। साथ ही धर्म के अनुकूल नहीं हैं। उन्हें इस बात की जानकारी एक पाठक द्वारा दी गई थी। इसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया। उधर शायर खुशबीर सिंह शाद ने कहा है कि शायरों और साहित्यकारों की अपनी अलग पहचान है। वे किसी खास मजहब को तहजीब नहीं देते हैं, बल्कि उनका नाता सर्वसमाज से होता है। उन्होंने कहा कि कबीर और मशहूर शायर असदउल्ला खां गालिब ने भी इस प्रकार की रचनाएं लिखी हैं। ऐसे में इतने दिनों बाद इस प्रकार की आपत्तियां उठाना बेमानी है।

तसलीमा पर फिर भारत छोड़ने का दबाव

दैनिक जागरण, १५ नवम्बर २००८, नई दिल्ली: बांग्लादेश की निर्वासित एवं विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन पर फिर भारत छोड़कर जाने का दबाव पड़ रहा है। इस साल 8 अगस्त को भारत लौटीं तसलीमा ने कहा कि सरकार के आदेश के मुताबिक 15 अक्टूबर तक उन्हें देश छोड़ देना था। तसलीमा ने ई-मेल के जरिए दिए एक इंटरव्यू में कहा, हां मुझ पर एक बार फिर भारत छोड़कर जाने का दबाव पड़ रहा है। सरकार ने मुझे छह महीने का निवास परमिट दिया था, इसमें गुप्त शर्त थी कि मुझे कुछ दिनों के भीतर इस देश को फिर छोड़ना होगा। अपनी विवादित किताब लज्जा के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रही तसलीमा ने बताया कि वह इन दिनों यूरोप में किसी जगह हैं और व्याख्यान देने में व्यस्त हैं। डाक्टर से लेखिका बनी तसलीमा को सात महीने पहले भी कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते भारत छोड़कर जाना पड़ा था। विवादास्पद किताब लिखने की वजह से 1994 में बांग्लादेश से निकाले जाने के बाद तसलीमा ने अधिकांश समय कोलकाता में बिताया। तसलीमा ने कहा, मेरे लिए बांग्लादेश के दरवाजे बंद हो चुके हैं। लिहाजा मेरी नजर में अब भारत में कोलकाता ही मेरा घर है। यदि मुझे वहां लौटने की इजाजत नहीं मिली तो मेरी जिंदगी फिर खानाबदोश सरीखी हो जाएगी।

Friday, November 14, 2008

जांच के नाम पर जलालत

मालेगांव बम धमाके के सिलसिले में कुछ हिंदुओं की गिरफ्तारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित

दैनिक जागरण, १३ नवम्बर, २००८, विश्व हिंदू मानस के समक्ष आत्मनिरीक्षण की चुनौती है। हिंदू अपनी मातृभूमि में ही आतंकी बताए जा रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और मालेगांव सिर्फ बहाना हैं, समूचा हिंदू दर्शन और हिंदुत्व ही निशाना है। प्रज्ञा सिंह के नार्को परीक्षण जैसे ढेर सारे मेडिकल टेस्ट हो चुके हैं। महाराष्ट्र की एटीएस कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा सकी। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के योगाचार्य रामदेव ने ऐसे तमाम परीक्षणों पर ऐतराज जताया है। संविधान प्रदत्त व्यक्ति के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी अपराध के लिए आरोपित किसी व्यक्ति को स्वयं अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रज्ञा को विविध परीक्षणों के जरिए स्वयं अपने ही विरुद्ध साक्ष्य के लिए विवश किया जा रहा है।

बेशक मालेगांव घटना की गहन जांच होनी चाहिए। कानूनी तंत्र को दबावमुक्त होकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। राष्ट्रद्रोह असामान्य अपराध है, लेकिन एटीएस की अब तक संपन्न जांच ने कई आधारभूत सवाल भी उठाए हैं, मसलन एटीएस की गोपनीय पूछताछ भी नियमित रूप से प्रेस को क्यों पहुंचाई जा रही है? क्या पूछताछ का उद्देश्य महज प्रचार ंहै और यही सिद्ध करना है कि हिंदू संगठन भी आतंकी होते हैं? एटीएस सही दिशा में है तो कोई पुख्ता सबूत क्यों नहीं है? एटीएस ने 'अभिनव भारत' नाम की एक संस्था का पता लगाया है? 'अभिनव भारत' वीर सावरकर की संस्था थी। मदनलाल धींगरा भी इसके सदस्य थे। उन्होंने अंग्रेज अफसर डब्लूएच कर्जन को मारा था। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम था। धींगरा स्वाधीनता संग्राम के हीरो बने। देश आजाद हुआ, सावरकर ने यह कहकर अभिनव भारत की समाप्ति की घोषणा की कि स्वाधीन भारत में सशस्त्र युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। एटीएस द्वारा खोजी गई नई 'अभिनव भारत' जून 2006 में बनी। वेबसाइट के अनुसार संस्था का लक्ष्य है स्वराज्य, सुराज्य, सुरक्षा और सुशांति। सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय अध्यक्ष हैं। एटीएस का आरोप है कि प्रज्ञा सिंह इन्हीं उपाध्याय के संपर्क में आई। संपर्क दर संपर्क ही एटीएस का आधार है। कह सकते हैं कि एटीएस के पास फिलहाल सूत्र ही हैं, सबूत नहीं। बावजूद इसके हिंदू आतंकवाद का हौव्वा है। हिंदू आतंकवाद नई सेकुलर गाली है। क्या हिंदू आतंकी हो सकते हैं? आरोपों-प्रत्यारोपों की बातें दीगर हैं, इस लिहाज से तो महान राष्ट्रभक्त सरदार पटेल भी आतंकी घोषित हो चुके हैं, सेकुलर दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जिहादी आतंकवाद के लक्ष्य सुस्पष्ट हैं। वे शरीय कानूनों वाला देश चाहते हैं। आतंकी हमलों का श्रेय लेते हैं और पकड़े जाने पर बेखौफ अपना मकसद बताते हैं। प्रज्ञा या उपाध्याय और अभिनव भारत ने क्या ऐसा कोई उद्देश्य घोषित किया है? हिंदू हजारों बरस पहले ऋग्वैदिक काल से ही जनतंत्री हैं। यहां ईश्वर को भी खारिज करने वाले चार्वाक ऋषि हैं, हिंदू समाज की आक्रामक शल्य परीक्षा करने वाले डा.अंबेडकर भारत रत्न हैं। हिंदू संविधान मानते हैं, राष्ट्रध्वज देखकर रोमांचित होते हैं। हिंदू इस देश को पुण्यभूमि, पितृभूमि मानते हैं, यहां हिंसा होगी तो वे जाएंगे कहां? हिंदू अपने ही राष्ट्रीय समाज के विरुद्ध युद्धरत नहीं हो सकते। हिंदू जन्मजात राष्ट्रवादी हैं। सारी दुनिया का राष्ट्रभाव मात्र पांच-छह सौ बरस ही पुराना है, भारतीय राष्ट्रभाव कम से कम 8-10 हजार वर्ष पूर्व वैदिक साहित्य में भी है। हिंदू अपने ही हिंदु-स्थान को रक्तरंजित नहीं कर सकते। तब प्रश्न यह है कि प्रज्ञा सिंह या उपाध्याय पर लगे आरोपों का राज क्या है? अव्वल तो इस प्रश्न का सटीक उत्तर जांच और विवेचना की अंतिम परिणति और न्यायालय ही देंगे कि वे दोषी हैं या निर्दोष, लेकिन एटीएस की प्रचारात्मक कार्यशैली से राजनीतिक षड्यंत्र की गंध आ रही है। दु:ख है कि विद्वान प्रधानमंत्री को आस्ट्रेलियाई पुलिस द्वारा की गई एक मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी के कारण पूरी रात नींद नहीं आई, लेकिन बिना सबूत प्रज्ञा और सेना से जुड़े सदस्यों के उत्पीड़न के बावजूद वह खामोश हैं। प्रज्ञा का दोषी होना समूची हिंदू चेतना और भारतीय राष्ट्र-राज्य व राजनीति के लिए भूकंपकारी सिद्ध होगा। चूंकि प्रज्ञा बिना किसी साक्ष्य के बावजूद पीड़ित है इसलिए राजनीति और सरकार से आहत, अपमान झेल रहे करोड़ों हिंदुओं की 'महानायक' बन चुकी है। हिंदू मन स्वाभाविक रूप से आक्रामक नहीं होता। हिंदू ही क्या, कोई भी सांस्कृतिक और सभ्य कौम हमलावर नहीं होती,पर अपमान सहने की सीमा होती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताते हैं। इमाम बुखारी जैसे लोग राष्ट्र-राज्य को धौंस देते हैं। राजनीति एकतरफा अल्पसंख्यकवादी है। केंद्रीय मंत्री बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनाने की मांग करते हैं।

आतंकवाद राष्ट्र-राज्य से युद्ध है, लेकिन राजनीति आतंकवाद पर नरम है। भारत के हजारों निर्दोष जन आतंकी घटनाओं में मारे गए, सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हुए, बावजूद इसके कोई भी आतंकी प्रज्ञा जैसे ढेर सारे 'नार्को' परीक्षणों से नहीं जांचा गया। प्रज्ञा सिंह और अभिनव भारत कहीं तपते हिंदू मन के लावे का 'धूम्र ज्योति' तो नहीं हैं? हिंदुओं की एक संख्या को प्रज्ञा सिंह के कथित कृत्य पर कोई मलाल नहीं है। यह खतरनाक स्थिति है। देश के प्रत्येक हिंदू को ऐसे किसी कृत्य पर मलाल होना चाहिए, लेकिन मध्यकालीन इस्लामी बर्बरता और स्वतंत्र भारत की मुस्लिम परस्त राजनीति ने हिंदू मन को घायल किया है। प्रज्ञा मामले ने नई चोट दी है। राष्ट्रभक्त बहुमत इस घटना से आहत है। आतंकवाद इस राष्ट्र की मुख्यधारा नहीं है। हिंदुओं ने कभी भी किसी कौम या देश पर आक्रमण नहीं किया। हिंदू विश्व की प्राचीनतम संस्कृति, दर्शन और सभ्यता के विनम्र उत्तराधिकारी हैं। वे देश के प्रत्येक नागरिक को 'भारत माता का पुत्र' जानते-मानते हैं। वे आतंकवादी नहीं हो सकते। कृपया उन्हें और जलील न कीजिए।


अहमदाबाद धमाके, 76 लोग अभियुक्त

बीबीसी, १२ नवम्बर ,२००८. गुजरात पुलिस ने अहमदाबाद सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बुधवार को अदालत में चार्जशीट दाख़िल कर 76 लोगों को अभियुक्त बनाया है.

पुलिस के मुताबिक़ "कुल 76 अभियुक्तों में 26 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया जा चुका है, जबकि 50 अब भी फ़रार हैं."

अहमदाबाद से स्थानीय पत्रकार महेश लंगा के अनुसार बुधवार को पुलिस ने अहमदाबाद में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट जीएम पटेल की अदालत में दो हज़ार पन्नों की चार्जशीट दाख़िल की है.

मुख्य अभियुक्त

चार्जशीट में पुलिस ने मुफ़्ती अबू बशर, सफ़दर नागौरी और साजिद मंसूरी को मुख्य अभियुक्त बनाया है.

आहमदाबाद के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर और क्राइम ब्रांच के इंचार्ज आशीष भाटिया का कहना है कि जांच अब भी चल रही है.

बम धमाकों के बाद पुलिस ने पहले 10 अगस्त को 10 लोगों को गिरफ़तार किया. बाद में 16 अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया गया.

बम धमाकों के मामले में पुलिस ने अबतक 511 लोगों से पूछताछ की है.

पुलिस ने 26 गिरफ़्तार लोगों को देश के विभिन्न राज्यों से गिरफ़्तार किया है. अबू बशर को लखनऊ से गिरफ़्तार किया गया था. उसकी गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने दावा किया था कि अबू बशर ही धमाकों का मास्टरमाइंड है.

सफ़दार नागौरी पहले ही से गिरफ़्तार हैं.

ग़ौरतलब है कि 26 जुलाई को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे जिन में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और 150 से अधिक घायल हुए थे.

अहमदाहाद बम धमाकों के बाद दूसरे और तीसरे दिन गुजरात के शहर सूरत में लगभग 25 बम मिले थे, लेकिन किसी भी बम के फटने से पहले ही बम निरोधक दस्ता सभी बमों को निष्क्रिय करने में सफल रहा.

Wednesday, November 12, 2008

मालेगांव: मठाधीश दयानंद गिरफ्तार

दैनिक जागरण , १२ नवम्बर, २००८, लखनऊ। महाराष्ट्र की एटीएस टीम ने मालेगांव विस्फोट के संबंध में जम्मू मठ के मठाधीश दयानंद पांडेय को कानुपर में गिरफ्तार किया। एटीएस ने उसे कानपुर के काकादेव इलाके से गिरफ्तार किया गया। टीम उसे लेकर लखनऊ के लिए रवाना हो गई। इससे पहले एटीएस जांच दल के दो सदस्य मंगलवार की देर रात इस प्रकरण में मिले कथित सुरागों के आधार पर जांच के लिए लखनऊ पहुंचे। आधिकारिक सूत्रों ने फिलहाल इस जांच के घेरे में किसी सांसद अथवा विधायक के होने की बात से इनकार किया है।

प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक [कानून एवं व्यवस्था] बृजलाल ने बताया कि महाराष्ट्र एटीएस दल के दो सदस्य कल रात मालेगांव विस्फोट प्रकरण मे जांच के लिए लखनऊ पहुंच गए हैं और इसमें प्रदेश पुलिस उनका पूरा सहयोग करेगी।

यह पूछे जाने पर कि क्या एटीएस टीम गोरखपुर में सांसद योगी आदित्यनाथ एवं विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल से पूछताछ करेगी बृजलाल ने केवल इतना कहा कि जिस व्यक्ति से पूछताछ होनी है वह न तो सांसद है और न ही विधायक। यह पूछे जाने पर कि क्या एटीएस टीम पूछताछ के लिए गोरखपुर जाएगी, उन्होने इस बात से भी इनकार किया और कहा कि टीम किससे पूछताछ करेगी और जांच के लिए कहां जाएगी इसकी स्पष्ट जानकारी देना जांच के लिहाज से उचित भी नही होगा।

उधर, सांसद योगी आदित्यनाथ और विधायक अग्रवाल से पूछताछ के लिए एटीएस टीम के उत्तार प्रदेश आने की जानकारी लगने पर गोरखपुर में तनाव का माहौल बन गया है और जिला प्रशासन इस पर कड़ी नजर रखे हुए है।

उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ एटीएस टीम उनसे पूछताछ करने के लिए आ सकती है के बाबत पहले ही तल्ख टिप्पणी कर चुके हैं।

Tuesday, November 11, 2008

हाथ से फिसलते हालात

असम में कई दशकों से जारी अशांति के कारणों की तह तक जा रहे है जगमोहन

दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, देश के अधिकांश भागों में स्थितियां बिगड़ती जा रही हैं और भारत सरकार आतंकवाद और विध्वंस की रक्तरंजित घटनाओं को रोकने में असमर्थ नजर आ रही है। एक बुखार उतरता है तो दूसरा चढ़ जाता है। वर्ष 2000 से लेकर अब तक भारत पर 80 आतंकी हमले हो चुके हैं। नवीनतम है 30 अक्टूबर को असम में हुए सिलसिलेवार बम धमाके, जिनमें लगभग 80 लोग मारे गए। जिस निरंतरता और निर्भीकता के साथ इन धमाकों को अंजाम दिया गया है उससे पता चलता है कि हमारा शासन तंत्र कितना कमजोर हो गया है और हमारी आत्मकेंद्रित व नकारात्मक राजनीति ने कितनी क्षुद्रता के साथ इसे बेड़ी में बांध दिया है। त्रासदी यह है कि हमारे राजनीतिक दलों के लिए सत्ता और अल्पकालिक लाभ पाने के तुच्छ साधन अधिक महत्वपूर्ण हैं, न कि राष्ट्रीय सुरक्षा और इसका दीर्घकालीन कल्याण। यह घातक चूक जितनी स्पष्टता के साथ असम के मामले में दिखाई पड़ती है उतनी अन्यत्र कहीं नहीं। यहां भारतीय जनतंत्र के जन्म के साथ ही संक्रमण फैल गया था।

पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, के राजनेताओं ने भूमि हथियाने के एजेंडे के तहत असम में संक्रमण फैलाना शुरू कर दिया था। शेख मुजीबुर्रहमान ने खुलेआम घोषणा की थी, ''चूंकि असम में जंगल, खनिज संसाधन तथा पेट्रोलियम पदार्थ प्रचुरता में हैं इसलिए आर्थिक सुदृढ़ता के लिए पूर्वी पाकिस्तान में असम को मिला देना चाहिए।'' 1950 में संसद का ध्यान घुसपैठ की ओर खींचा गया। गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने इस मामले की गंभीरता को महसूस किया। त्वरित कार्रवाई करते हुए उन्होंने आव्रजन अधिनियम 1950 पारित कराया, किंतु दिसंबर, 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के तुरंत बाद इस अधिनियम के संबंध में अनेक मुद्दे खड़े कर दिए गए। अंतत: 1957 में इसे निरस्त कर दिया गया। यह असम के हितों और राष्ट्र की सुरक्षा के प्रयासों पर पहला बड़ा आघात था। सुरक्षा इस हद तक जोखिम में डाल दी गई कि 1962 के चीन हमले के दौरान असम में खासे बड़े तबके ने पाकिस्तान के झंड़े फहराए। इस तरह की घटनाओं के मद्देनजर घुसपैठ निषेध योजना लागू की गई। योजनानुसार एक न्यायाधिकरण को नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर 1951 के आधार पर घुसपैठियों की शिनाख्त करनी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री बीपी चलिहा ने इसे बड़े जोर-शोर से लागू किया। 1964 से 1967 तक दो लाख 40 हजार घुसपैठियों को चिह्निंत कर लिया गया। इसके अलावा 1967 से 1970 के बीच भी 20,800 बांग्लादेशियों की शिनाख्त हुई, किंतु संकीर्ण राजनीतिक आग्रह इसके रास्ते में आ गए। फखरुद्दीन अली अहमद ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अगर चलिहा अपना यह अभियान जारी रखते हैं तो कांग्रेस पार्टी न केवल असम में, बल्कि पूरे देश में मुस्लिम वोट खो देगी। वोट बैंक राजनीति की जीत हुई। घुसपैठ रोकने की योजना वस्तुत: त्याग दी गई और न्यायाधिकरण को भंग कर दिया गया। यह घुसपैठ में लिप्त ताकतों की एक और जीत थी।

बांग्लादेशी घुसपैठियों को खुलेआम समर्थन देने की नीति 1979-80 में उजागर हो गई जब 1979 की मतदाता सूची के आधार पर चुनाव संपन्न कराए गए। इस सूची में काफी बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों को भी शामिल किया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने खुद इस बात को सार्वजनिक रूप से कहा कि 1961 से 1971 के बीच असम की जनसंख्या 35 फीसदी बढ़ गई। परिणामस्वरूप असम के लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया और वहां जनांदोलन शुरू हो गया। आंदोलन की शुरुआत तो आल असम स्टूडेंट यूनियन ने की थी, किंतु इसे हिंसा के रास्ते पर यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम ले गया। 1983 के विधानसभा चुनाव ने आग में घी डालने का काम किया। 1980 से 1985 के बीच का काल सबसे हिंसक घटनाओं का साक्षी रहा। इनमें कुख्यात नेल्ली और गोहपुर नरसंहार शामिल हैं। दुर्भाग्य से इस रक्तरंजित दौर में भी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने वोट बैंक को अक्षुण्ण रखने के लिए अपने संकीर्ण राजनीतिक आग्रहों से मुक्त होने की कोशिश नहीं की। इसके विपरीत उसने संदिग्ध घुसपैठियों को कानूनी ढाल मुहैया कराने के प्रयास जारी रखे। 1983 में अवैध घुसपैठ अधिनियम पारित किया गया। नए कानून के प्रावधान ऐसे थे कि घुसपैठियों की पहचान और उनका निष्कासन बेहद मुश्किल हो गया। असम समझौते के बाद फिर से विधानसभा के चुनाव कराए गए। इसमें आल असम स्टूडेंट यूनियन के राजनीतिक अंग असम गण परिषद (अगप) ने सत्ता संभाली। लगा कि अब शांति स्थापित हो जाएगी, किंतु अगप का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। अगप सरकार की सबसे बड़ी विफलता अवैध रूप से सीमापार करने वाले बांग्लादेशियों को वापस न भेज पाने की रही।

अगप सरकार ने न तो केंद्रीय सरकार पर आईएमडीटी अधिनियम में संशोधन करने या इसे निरस्त करने का दबाव बनाया और न ही इस कानून में प्रदत्त प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई करके घुसपैठियों को बाहर निकालने का प्रयास किया। अनुमानित 30 लाख घुसपैठियों में से सिर्फ पांच सौ को ही बांग्लादेश वापस भेजा गया। केंद्र सरकार का रवैया और भी निंदनीय रहा। असम समझौते का पालन करने में इसने खरापन नहीं दिखाया। मीडिया और कुछ अन्य मंचों से आवाज उठाने के बावजूद असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ का सिलसिला चलता रहा। 1994 और 1997 के तीन साल के कालांतर में असम के 17 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में तीस प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई तथा 40 विधानसभा क्षेत्रों में 20 प्रतिशत से अधिक की, जबकि इस अवधि में अखिल भारतीय मतदाताओं की औसत वृद्धि मात्र सात प्रतिशत ही थी। भारत सरकार के नुकसानदायक प्रयोजनों में से एक यह रहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समस्याएं हल करने के लिए वह एक साथ कड़ा और नरम रुख अपनाती रही। आपरेशन बजरंग और आपरेशन राइनो, दोनों सैन्य अभियानों को बीच में ही रोक दिया गया। यही नहीं, हितेश्वर सैकिया सरकार ने तो 400 कट्टर उग्रवादियों को रिहा कर दिया। सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले उल्फा उग्रवादियों के पुनर्वास और अन्य विशेष सुविधाओं के लिए एक योजना भी चलाई।

इस योजना के सकारात्मक पक्ष सीमित रहे, जबकि नकारात्मक पहलू अहम साबित हुए। लोगों में यह संदेश गया कि नौकरी, ऋण और अन्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करने के बजाय आतंकवादी बना जाए। सैकिया मंत्रिमंडल ने एक बड़ा पाप यह किया कि वह राज्य के मूलभूत लक्ष्यों से विमुख हो गई और आत्मसमर्पण करने वालों की संख्या बढ़ाने में जुट गई। इससे न्याय के मूल सिद्धांत व कानून एवं व्यवस्था भंग होने के साथ-साथ समाज में तनाव व्याप्त हो गया और प्रशासन उलझनों में फंस गया। उल्फा के सदस्यों को उग्रवाद की धारा से वापस लाने के लिए क्षमादान देना तो समझ में आता है, किंतु उन्हें विशेष लाभ पहुंचाना तो नागरिकों को अपराध करने और अपनी मांग मनवाने के लिए हिंसा के रास्ते पर चलने को प्रेरित करने के समान है। सरकार इस बात को भूल गई कि बैल को काबू करने के लिए सींग पकड़े जाते हैं, न कि उसे अच्छे आचरण के वायदे पर ढीला छोड़ दिया जाता है।


छह गोवंशी बरामद, चार तस्कर गिरफ्तार

गोरखपुर, 09 नवम्बर। खजनी थाने की पुलिस ने रविवार को मुखबिर की सूचना पर वध के लिए ले जाए जा रहे दैनिक जागरण, १० नवम्बर, २००८. छह गोवंशी बरामद किया। चार तस्करों को गिरफ्तार किया गया। इनके खिलाफ गोवध निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई की गयी है। पूछताछ में अभियुक्तों ने पुलिस को बताया कि वे पशुओं को वध के लिए प. बंगाल ले जा रहे थे।

जानकारी के अनुसार खजनी थाने के दारोगा ज्ञानेन्द्र कुमार, इफ्तेखार खां, सिपाही मूलचंद्र, गोकुल प्रसाद आदि की टीम ने मुखबिर की सूचना पर धांधूपार के पास घेराबंदी कर रामअवध, भरत तथा मेघा निवासीगण बउरहवा थाना खलीलाबाद कोतवाली, जिला संत कबीरनगर एवं राममिलन निवासी सतहरा थाना खजनी को गिरफ्तार किया। उनकेकब्जे से 3 गाय व 3 बछड़े बरामद किए गए। चारों पशुओं को पैदल हांक कर ले जा रहे थे। पूछताछ के आधार पर पुलिस ने बताया कि वे चारों पशु तस्कर हैं। पशुओं को जुटा कर वध के लिए प. बंगाल ले जाते हैं।

धार्मिक स्थल पर अवैध निर्माण से तनाव

दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, फर्रुखाबाद। फतेहगढ़ के मोहल्ला मछली टोला स्थित मजार पर निर्माण कार्य कराये जाने को लेकर रविवार को विवाद की स्थिति बनने से स्थानीय नागरिकों में तनाव है। नगर मजिस्ट्रेट ने बिना अनुमति के किये जा रहे निर्माण को रुकवाने के लिये कोतवाली फतेहगढ़ को निर्देश दिये। देर शाम तक पुलिस के हस्तक्षेप न किये जाने के कारण विवाद की स्थिति बनी रही।

मछली टोला में कसाई खाने के निकट स्थित एक मजार पर निर्माण कार्य शनिवार को प्रारंभ किया गया। निर्माण कार्य की प्रकृति को लेकर निर्माण में लगे श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के बीच विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। दोनों पक्षों के लोगों के एकत्र होने के कारण बनी तनाव पूर्ण स्थिति को देखते हुये निर्माण कार्य रुकवाने के लिये नगर मजिस्ट्रेट को प्रार्थनापत्र दिया। नगर मजिस्ट्रेट देवकृष्ण तिवारी ने प्रभारी निरीक्षक को तत्काल निर्माण कार्य रुकवाने के आदेश दिये। देर शाम तक पुलिस की ओर से हस्तक्षेप न किये जाने के कारण मोहल्ले में विवाद की स्थिति बनी हुई है।

संवाददाता के अनुसार प्रभारी निरीक्षक लाल सिंह ने बताया कि मौके पर दरोगा मिहीलाल को जांच करने भेजा गया था। दोनों पक्षों में समझौता होने की संभावना को देखते हुये कोई कार्रवाई नहीं की गई।

बम बना रहे दो आरएसएस कार्यकताओं की मौत

दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, कन्नूर। चेरुवनचेरी में सोमवार की सुबह एक बम फटने से दो लोगों की मौत हो गई। यह जगह कन्नूर से 35 किलो मीटर दूर संवेदनशील थालासेरी शहर के निकट है। दोनों मरने वालों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ [आरएसएस] का कार्यकर्ता बताया जा रहा है।

सुबह करीब साढ़े सात बजे हुए विस्फोट में प्रदीपन और दिलीपन की मौत हो गई। इन दोनों की उम्र तीस साल के आसपास थी। बताया जाता है कि दोनों एक झाड़ी के पीछे बैठकर बम बना रहे थे तभी उसमें विस्फोट हो गया। पुलिस का कहना है कि दोनों आरएसएस के कार्यकर्ता थे। कन्नवम पुलिस थाना क्षेत्र में हुई इस घटना के बाद पुलिस महानिरीक्षक वी शांताराम के नेतृत्व में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं।

धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक नहीं

दैनिक जागरण, ११ नवम्बर २००८, नई दिल्ली। हाईकोर्ट ने कहा है कि वर्षो पुरानी धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। कोई व्यक्ति मुकदमों के जरिए इस तरह के मामले में रोक लगाने की मांग नहीं कर सकता है। यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है कि वह इस पर सुनवाई करे। इसके लिए कानून भी बने हुए हैं।
हाईकोर्ट की जस्टिस एसएन ढींगरा की पीठ ने स्वामी दयानंद द्वारा लिखी गई पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने निचली अदालत में चल रही सुनवाई पर भी रोक लगा दी है। पीठ ने कहा कि अगर पुरानी किताबों के प्रकाशन पर रोक लगा दी जाए, तो भविष्य में लोग बाइबिल, कुरान, गीता आदि पुस्तकों के प्रकाशन पर रोक लगाने की भी मांग कर सकते हैं। पेश मामले में मुस्लिम समुदाय के दो लोगों ने सिविल कोर्ट में अर्जी दायर कर 135 साल पुरानी धार्मिक पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के प्रकाशन पर रोक लगाने की मांग की थी। इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में चल रही है। इसके खिलाफ प्रकाशक सार्वदेशिक प्रेस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पूछा था कि क्या दीवानी वाद के जरिए कोई व्यक्ति वर्षो पुरानी धार्मिक पुस्तक पर रोक लगाने की मांग कर सकता है।

Monday, November 10, 2008

भारत में 'आतंकवाद' के ख़िलाफ़ फ़तवा

बीबीसी 09 नवंबर, २००८। 'आतंकवाद' के ख़िला़फ़ दारुल उलूम देवबंद के फ़तवे को आगे बढ़ाते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी आतंकवाद और आतंकवादियों के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी किया है.

रविवार को हैदराबाद में इस्लामी मंच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 29वें वार्षिक अधिवेशन के समापन के मौके पर यह फ़तवा जारी किया गया.

अधिवेशन में जमीयत अध्यक्ष क़ारी मोहम्मद उसमान ने फ़तवे को पढ़कर सुनाया जिसे सभी लोगों ने खड़े होकर सुना और इस बात की शपथ ली के वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट होंगे.

उसमान की आवाज़ पर सभा में मौजूद सभी लोगों ने, जिनमें छह हज़ार से अधिक उलेमा भी हाज़िर थे, शपथ ली कि “हम इस्लाम के पैग़ाम को आम करेंगे और ‘आतंकवाद’ की निंदा करते हैं और करते रहेंगे.”

हैदराबाद में जुटे धार्मिक नेताओं का कहना था कि इस्लाम एक अमन और शांति का मज़हब है और हर प्रकार की हिंसा को अस्वीकार करता है. इस्लाम क़त्ल और खून को अक्षम अपराध समझता है. इसलिए इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना ग़लत है.

याद रहे कि इसी वर्ष फरवरी और मई महीने में फ़तवा जारी करके भारत में मुसलमानों की अग्रणी धार्मिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने ‘आतंकवाद’ की सभी कार्यवाहियों को इस्लाम विरोधी करार दिया था.

जमीयत के महासचिव महमूद मदनी ने बताया, "पहले इस फ़तवे पर चार मुफ़्तियों के दस्तख़त थे, अब इससे 4000 उलेमा ने अपने दस्तख़त किए हैं. इसका मक़सद हज़ारों इस्लाम के विद्वानों के माध्यम से यह संदेश देना है कि इस्लाम में आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है."

अहम पहल

ग़ौरतलब है कि हैदराबाद में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन रविवार को एक आम सभा हुई जिनमें आंध्र प्रदेश के मुसख्यमंत्री वाईएस रेड्डी, लोकसभा के उपाध्यक्ष के रहमान ख़ान, हिंदू धार्मिक गुरू श्री रवि शंकर, स्वामी अग्निवेश, लोक सभा सदस्य अस्सदुद्दीन ओवसी और दारुल उलेम देवबंद के वाइस चांसलर भी शामिल हुए.

अधिवेशन को संबोधित करते हुए वाईएस रेड्डी ने कहा कि वो बहुत ख़ुश हैं कि उलेमा ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ देवबंद के फ़तवे के अनुमोदन और अमन का पैग़ाम देने के लिए हैदराबाद का चुनाव किया.

मुख़्यमंत्री ने कहा, “भारत की पहचान अनेकता में एकता की है और मुसलमानों की तरक़्की के बग़ैर देश का विकास नहीं हो सकता है.” उन्होंने दावा किया कि वो अपने राज्य में अल्पसंखयकों के साथ बेहतर सलूक कर रहे हैं.

वहीं हिंदू धार्मिक गुरू श्री रवि शंकर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम मोहम्मद को पूरब से ठंडी हवा आती थी और इसको क़ायम रखना ज़रूरी है. उनके अनुसार, “आतंकवाद को सहा नहीं जा सकता है. वैश्विक शांति की बहाली के लिए इसे खत्म करना आवश्यक है."

सबसे ज़्यादा तालियाँ बटोरीं बंधुआ मजदूरी और सांप्रदायिकता के सवाल पर काम कर रहे स्वामी अग्निवेश ने. उन्होंने अमरीका की ओर निशाना साधते हुए कहा कि इस्लाम को जो लोग आतंकवाद से जोड़ रहे हैं, वे दरअसल खुद आतंकवादी हैं.

उन्होंने यह भी सुझाव रखा कि मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिन विश्व आतंकवाद विरोधी दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र में पहल की जानी चाहिए.

कई प्रस्ताव पारित

अधिवेशन में कुल 21 प्रस्ताव पारित किए गए, जिनमें आतंकवाद के नाम पर पुलिस और जाँच एजेंसियों और मीडिया की पक्षपातपूर्ण भूमिका की निंदा की गई. सांप्रदायिक एकता पर भी ज़ोर दिया गया और कहा गया कि जबतक देश में शांति बहाल नहीं होती, देश की तरक़्क़ी मुमकिन नहीं है.

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट, रंगनाथन मिश्र कमीशन की रिपोर्ट को लागू किए जाने के साथ-साथ मुसलमानों के लिए आरक्षण और दंगा निरोधक क़ानून बनाने की मांग भी की गई.

दुनिया में आए आर्थिक संकट का ज़िक्र करते हुए कहा गया कि भारत में अब ग़ैर सूदी व्यवस्था पर आधारित इस्लामिक बैंकिंग को आज़माया जाना चाहिए. अधिवेशन में दलित-मुस्लिम एकता पर भी बल दिया गया.

मालेगाँव बम धमाकों में हिंदू संगठनों के नाम आने पर जमीयत ने कहा कि किसी एक व्यक्ति के दोष को पूरे समुदाय से जोड़ना न्याय के ख़िलाफ़ है क्योंकि इससे पूरे समाज में नफ़रत को हवा मिलेगी.

ग़ौरतलब है कि ये सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में अगले वर्ष की शुरुआत में लोक सभा चुनाव होने वाले हैं और फिलहाल देश कई आतंकवादी हमलों के बाद इसके सांप्रदायीकरण के सवाल से जूझ रहा है.

हालांकि कुछ लोगों की राय में ऐसे सम्मेलनों का मक़सद सरकार को अपने संगठन की ताक़त दिखाना भी होता है.

जमीयत पर ये इल्ज़ाम इसलिए भी लगाए जाते हैं क्योंकि ये संगठन वर्ष 1919 में अपने स्थापना के समय से ही कांग्रेस पार्टी का समर्थक रहा है.

Friday, November 7, 2008

अमंगल की आहट

साध्वी प्रज्ञा मामले को राज्यसत्ता पर बहुसंख्यकों के घटते विश्वास का संकेत मान रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश

दैनिक जागरण, ७ नवम्बर २००८, मालेगांव बम धमाकों के सिलसिले में साध्वी प्रज्ञा तथा कुछ अन्य हिंदुओं की गिरफ्तारी पर मचे शोर-शराबे के बीच हमारे समक्ष यह सवाल उभरा है कि क्या हिंदुओं के भीतर भी आतंकवाद का कीड़ा अंतत: रेंग गया अथवा यह अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने पाले में खींचने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की एक और साजिश है? उम्मीद है कि जिन लोगों के पास इस मामले की जांच का जिम्मा है वे उस हायतौबा से प्रभावित हुए बिना अपना कार्य करेंगे जो इस प्रकार की परिस्थितियों में संघ परिवार को लेकर छद्म सेकुलर ब्रिगेड की ओर से सुनने को मिलती रही है। जांचकर्ताओं को ऐसे सबूत एकत्र करने होंगे जो न्यायिक समीक्षा के समक्ष टिक सकें और उन लोगों के कामों पर पूरी रोशनी डाल सकें जिन्हें गिरफ्त में लिया गया है और इस पर भी कि किन कारणों से वे आतंकवादी तौर-तरीके अपनाने की ओर उन्मुख हुए। आतंकवाद पर राजनीति ने केंद्र सरकार की विश्वसनीयता को इस हद तक क्षति तक पहुंचाई है कि कोई भी उन सूचनाओं पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं जो इस मामले में सामने लाई गई हैं।

जब जांच की संभावित दिशा की शुरुआती खबरें सामने आईं तो पूरे देश के हिंदू यह जानकर सन्न रह गए कि इस समुदाय के कुछ लोग, जिनमें एक साध्वी तथा सेना के कुछ पूर्व व वर्तमान अधिकारी शामिल हैं, महाराष्ट्र के मालेगांव तथा गुजरात के मोदसा में हुए बम धमाकों के सिलसिले में जांच के घेरे में हैं। यह शुरुआती आश्चर्य अब संदेह में बदलने लगा है। जो लोग इस मामले में सरकार के रुख को स्वीकार करने के लिए तैयार थे, अब अचानक अनेक कारणों से घटने लगे हैं। इसका मुख्य कारण सत्ताधारी गठबंधन के इरादों पर घटता विश्वास तथा देश को एक व सुरक्षित बनाए रखने में उंसकी असफलता है। संप्रग की विश्वसनीयता पिछले छह माह में एकदम से घटी है। इसके कारणों को जानना कठिन नहीं है। सबसे पहला है इसकी अक्षमता। दूसरा कारण है उन लोगों के संदिग्ध इरादे जो आज हम पर शासन कर रहे हैं। कानून एवं व्यवस्था तथा आर्थिक मोर्चे पर असफलता अक्षमता के क्षेत्र में आती है। जो लोग सत्ता संभाले हुए हैं उनका रिकार्ड बेहद निराशाजनक है। दूसरा कारण कहीं अधिक खतरनाक है। यह हमारे सत्ता संचालकों की हानिकारक प्रकृति सामने लाता है। यह इसलिए ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह उस सबको तबाह कर सकता है जो हमने पिछले साठ वर्षो में संजोया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार के भीतर की इस खतरनाक सोच का सबसे पहले संकेत तब दिया था जब उन्होंने यह स्तब्धकारी घोषणा की थी कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। मैंने इससे अधिक निर्रथक बयान कभी नहीं सुना। यदि इस टिप्पणी के बाद भी मनमोहन सिंह अपने पद पर बने रह सके तो सिर्फ इसलिए कि हिंदू समाज में लोकतंत्र और पंथनिरपेक्षता की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह चिंता की बात है कि हिंदू समाज की इस विशेषता पर आंच आने लगी है। मनमोहन सिंह ने जिस एजेंडे की शुरुआत की उसे उनके साथियों ने खूब आगे बढ़ाया। हिंदुओं के मन-मस्तिष्क में आ रहे परिवर्तन की यही मुख्य वजह है।

सत्ताधारी गठबंधन के इस एजेंडे को राजेन्द्र सच्चर समिति की रिपोर्ट से और अधिक आगे तक ले जाया गया, जो देश में मुस्लिमों की दशा से संबंधित थी। खुद गैर-जिम्मेदार तरीके से काम करने वाली यह समिति सशस्त्र बलों में सांप्रदायिक आधार पर गिनती के पक्ष में थी। समिति ने जो रिपोर्ट पेश की उसमें मुस्लिमों की तथाकथित दुर्दशा के लिए हर किसी पर आधारहीन आरोप लगाए गए। तुष्टीकरण के मामले में प्रधानमंत्री के रुख से उत्साहित कैबिनेट के अन्य सदस्य और अधिक आगे बढ़ गए। उन्होंने देश की एकता, सेकुलर ताने-बाने तथा विधि के शासन को कहीं अधिक गंभीर क्षति पहुंचाई। जिस अबू बशर को पुलिस ने अहमदाबाद और बेंगलूर बम धमाकों के मास्टरमाइंड के रूप में चिह्निंत किया उसके परिजनों के प्रति संवेदना जताने में संप्रग सरकार के मंत्री एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में जुट गए। अहमदाबाद और बेंगलूर के बम धमाकों में सौ से अधिक लोग मारे गए थे और अनगिनत लोग घायल हुए थे। अबू बशर की पक्षधरता करने वाले मंत्री लालू प्रसाद यादव तथा रामबिलास पासवान ने बाद में जामिया नगर मुठभेड़ पर सवाल उठाने शुरू कर दिए, जिसमें दिल्ली पुलिस के एक बहादुर अधिकारी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इन सभी घटनाओं ने हिंदुओं के मन को बहुत अधिक आघात पहुंचाया।

यह संभव है कि इन घटनाओं ने बहुसंख्यक समुदाय को हिंसा की ओर मोड़ दिया हो। शायद इसीलिए वे लोकतांत्रिक जीवनशैली से दूर हो रहे हैं। अन्यथा और किस तरह साध्वी प्रज्ञा, जिन्होंने धर्म और अध्यात्म के लिए संन्यास ग्रहण कर लिया तथा देश प्रेम और अनुशासन का प्रतीक माने जाने वाले सैनिकों में से कुछ की आतंकी साजिश में लिप्तता की व्याख्या की जा सकती है? अंत में कुछ बातें लोकतंत्र और उस तत्व की जो भारत और अमेरिका जैसे देशों में लोकतंत्र को टिकाए रखने का आधार है। यह है संविधान। भारत, अमेरिका, सऊदी अरब या पाकिस्तान या अन्य कोई भी देश हो, उसका संविधान समाज में बहुमत की इच्छा को परिलक्षित करता है। हर तरह की समानता की गारंटी देने वाले भारत और अमेरिका सरीखे लोकतांत्रिक संविधान वास्तव में बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों को दिया गया उपहार है। यदि भारत के हिंदू पाकिस्तान के मुस्लिमों के समान संकीर्ण मानसिकता वाले होते तो हमें ऐसा संविधान नहीं मिला होता जो मानवता द्वारा व्यक्त किए गए अनेक महान विचारों को अपने अंदर समेटे हुए है। चाहे भारत हो या अमेरिका अथवा कोई अन्य देश, बहुसांस्कृतिक समाज में इस प्रकार के संविधान का टिके रहना इस पर निर्भर करता है कि उस देश की राजसत्ता की प्रकृति क्या है? वह संविधान को किस रूप में इस्तेमाल करती है? राजसत्ता को बहुमत का विश्वास हासिल होना चाहिए। जब बहुमत राज्य में विश्वास खो देता है तो लोकतंत्र अव्यवहारिक तथा निष्क्रिय हो जाता है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई तो एकदम ढांचागत परिवर्तन उत्पन्न हो सकते हैं और इसका पहला निशाना संविधान तथा लोकतंत्र ही बनेगा।

साध्वी की गिरफ्तारी तथा सेना के कुछ पूर्व तथा वर्तमान सदस्यों की इस साजिश में संभावित संलिप्तता की बातें इस बात का पर्याप्त संकेत दे रही हैं कि राज्य पर बहुमत का विश्वास घटने लगा है। यह चिंताजनक स्थिति है, जिसकी अनदेखी नहींकी जानी चाहिए। इसमें अधिक संदेह नहीं कि इस स्थितिके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा उनके कुछ गैर-जिम्मेदार सहयोगी जिम्मेदार हैं, जो आतंकियों के परिजनों के प्रति तो संवेदना प्रकट करते हैं, लेकिन आतंक से प्रभावित लोगों के परिजनों के प्रति नहीं। यदि शांति प्रिय हिंदू समाज में से कोई आतंकी कृत्यों की ओर मुड़ा है तो हमें आत्मचिंतन करना होगा। इसके पहले कि सामाजिक सुनामी लोकतंत्र,पंथनिरपेक्षता तथा उदारवाद के रूप में हमारे उन मूल्यों को तबाह कर दे जिन्हें हम सबसे अधिक सम्मान देते हैं, हमें सावधान होना होगा।


प्रधानमंत्री ने ठुकराई न्यायिक जांच की मांग

दैनिक जागरण ७ नवम्बर २००८, नई दिल्ली। राजनीतिक विवादों से घिरी बटला हाउस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूरी तरह ठुकरा दिया है। जबकि समाजवादी पार्टी और संप्रग के कुछ घटक ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक नेता भी इस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग के लिए दबाव बना रहे थे। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राशिद अल्वी को दो टूक कह दिया कि बटला मुठभेड़ की फिर से जांच कराना संभव नहीं है।

बटला मुठभेड़ की आगे अन्य किसी तरह की जांच की मांग पर सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर यह दो टूक घोषणा है। इस मुठभेड़ को लेकर करीब महीने भर से राजनीतिक विवाद चल रहा है।

बटला मुठभेड़ और मालेगांव में 2006 में हुए विस्फोटों की जांच में सीबीआई तथा महाराष्ट्र सरकार के रुख की शिकायत करने के लिए राशिद अल्वी ने बुधवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इस दौरान ही मनमोहन सिंह ने बटला मुठभेड़ की और आगे जांच नहीं किए जाने की बात कही।

राशिद अल्वी ने बताया कि बटला मुठभेड़ को लेकर चौतरफा उठ रही आवाजों का हवाला देते हुए जब उन्होंने न्यायिक जांच की मांग उठाई तो प्रधानमंत्री ने इसे खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री का कहना था कि 'इसकी अब आगे कोई जांच नहीं हो सकती।' गौरतलब है कि सपा, राजद, लोजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक नेता न्यायिक जांच की मांग की वकालत कर रहे थे।

जांच की मांग ठुकराए जाने पर अल्वी ने कहा कि वे निराश हुए हैं मगर हताश नहीं और प्रधानमंत्री को पुनर्विचार के लिए पत्र लिख रहे हैं। उनका तर्क है कि केन्द्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने मुठभेड़ को फर्जी बताया था और वे सरकार का हिस्सा हैं। ऐसे में मुठभेड़ की जांच एक बार करा लेने में हर्ज ही क्या है? अल्वी अब प्रधानमंत्री को मुंबई पुलिस द्वारा मारे गए बिहारी युवक राहुल राज का उदाहरण देंगे कि किस तरह बिहार के नेताओं की एकजुट आवाज सुनकर इसकी जांच कराई गई है।

कांग्रेस नेता ने बताया कि प्रधानमंत्री ने मालेगांव में दो साल पूर्व हुए विस्फोटों के बारे में सीबीआई और महाराष्ट्र सरकार के रवैये की शिकायतों पर गंभीरता से पड़ताल कराने का वादा किया। मालेगांव में संघ से जुड़े संगठनों की कथित आतंकी गतिविधियों के बारे में अल्वी ने प्रधानमंत्री को कुछ दस्तावेज भी सौंपे जिसमें यह बताया गया है कि दो साल पहले ही महाराष्ट्र सरकार को इसकी जानकारी मिल गई थी। सीबीआई को भी इस बारे में मालूम था। अल्वी के मुताबिक सीबीआई और राज्य सरकार ने इसे छिपाने की गलती क्यों और किसके इशारे पर की, इसकी सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा जांच होनी चाहिए।

Heidi Klum's 'Kali act' leaves Hindus fuming

Times of India, 5 Nov 2008,NEW YORK: Supermodel Heidi Klum's costume drama, resembling the Goddess 'Kali', at a Halloween party has enraged the Hindu leaders in America,
who are demanding a public apology from her.

The leaders feel that Klum should make a public apology for posing as a sacred figure in a party, a website reported.

Indian-American community leader Rajan Zed said, "Goddess Kali is highly revered in Hinduism and she is meant to be worshipped in temples and not to be used in clubs for publicity stunts or thrown around loosely for dramatic effect."

"Hindus welcome Hollywood and other entertainment industries to immerse themselves in Hinduism, but they should take it seriously and respectfully and not just use the religion for decorating or to advance their selfish agenda," Zad said in a statement.

Various other Hindu leaders, including Jawahar L Khurana from Hindu Alliance of India, and Bhavna Shinde of Hindu Janajagruti Samiti have also criticised Klum's act of posing like Goddess Kali in a Halloween party, calling it "denigrating", the website said.

Thirty-five-year-old supermodel is a self-proclaimed lover of Indian culture.

Klum had even invited a Hindu priest from Varanasi to renew her marriage vows to her singer husband Seal in a ceremony in Mexico in May.

आरएसएस नेता की हत्या से तनाव

बीबीसी, 06 नवंबर, २००८, उड़ीसा के तनावग्रस्त कंधमाल ज़िले में संदिग्ध माओवादियों ने बुधवार को हिंदूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के एक नेता की हत्या कर दी.

हिंदूवादी नेता की हत्या के बाद वहाँ एक बार फिर से तनाव फैल गया है.

पुलिस के मुताबिक बुधवार को मोटरसाइकिल सवार तीन लोगों ने कुंभारीगाँव में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता धनु प्रधान की गोली मारकर हत्या कर दी.

आरोप

आरएसएस नेता के भाई आनंद प्रधान ने आरोप लगाया कि उनके भाई की हत्या कुछ स्थानीय ईसाइयों ने की है. वहीं पुलिस का कहना है कि प्रधान की हत्या माओवादियों ने की है क्योंकी वे उनकी हिटलिस्ट में थे.

कंधमाल में हुई हिंदूवादी नेता हत्या और उसके बाद फैले तनाव को देखते हुए ज़िला प्रशासन ने वहाँ गुरुवार से धारा-144 लागू कर दी है.

समाचार एजेंसियों को कंधमाल के पुलिस प्रमुख एस प्रवीण कुमार ने बताया कि स्थिति की समीक्षा होने के बाद धारा-144 हटा ली जाएगी.

प्रशासन का कहना है कि ज़िले में 30 सितंबर के बाद से हिंसा की कोई वारदात नहीं हुई है लेकिन बुधवार की घटना के बाद एक बार फिर तनाव फैल गया है.

कंधमाल में 23 अगस्त को कुछ अज्ञात लोगों ने एक आश्रम पर हमला किया था. इस हमले में विश्व हिंदू परिषद के नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती समते पाँच लोगों की मौत हो गई थी.

इसके बाद वहाँ हिंसा भड़क उठी थी. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी और हज़ारों लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी.

राज्य में अभी भी हज़ारों लोग सरकारी राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं.

Thursday, November 6, 2008

काटने के लिए ले जाये जा रहे दर्जन भर मवेशी बरामद

दैनिक जागरण, ४ नवम्बर २००८, प्रतापगढ़। पट्टी कोतवाली व कंधई थानों की पुलिस ने काटने के लिए ले जाये जा रहे दर्जन भर गाय व बछड़ों को बरामद किया है। पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार भी किया है। जबकि तीन लोग मौके से भाग निकले। पुलिस ने यह जानवर स्थानीय लोगों को सुपुर्दगी में दिया है।

बताया गया कि कंधई थाना क्षेद्द के रामपुर कुर्मियान गांव में जानवरों के कटने की सूचना पर पुलिस सक्रिय थी। सोमवार की भोर उक्त गांव में चार लोग दो गायों व छह बछड़ों को लेकर जा रहे थे। पुलिस ने उन लोगों को रोका तो वह भागने लगे। इस दौरान पुलिस सिर्फ एक व्यक्ति को पकड़ सकी। जबकि तीन मौके से भागने में सफल रहे। पकड़ा गया आरोपी थाना क्षेद्द के ही चक मुबारक पुर निवासी अनीस पुत्र मुहीद बताया गया। पुलिस ने गाय व बछड़ों को स्थानीय लोगों की सुपुर्दगी में देकर आरोपी को जेल भेज दिया।

इसी प्रकार पट्टी कोतवाली के दोनई ईट भट्ठें पर कुछ लोग एक टेम्पो से चार गाय व बछड़े ले जा रहे थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस यहां पहुंची तो जानवर ले जाने वाले लोग भागने लगे। पुलिस ने मौके से चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया। यह लोग दिलदार नगर गाजीपुर के निवासी लालमणि व कमलेश तथा बेसार बंधवा निवासी बसंत गिरि व अशोक कुमार बताये गये।

रामलीला के दौरान दो समुदाय में विवाद,15 के विरुद्ध मुकदमा

दैनिक जागरण, महराजगंज, 04 नवम्बर २००८। श्यामदेउरवा थाना के ग्राम बड़हरा बरईपार में सोमवार की रात रामलीला के दौरान शरारती तत्वों ने जमकर उत्पात मचाया। दर्शक महिलाओं के बीच बोतल व पत्थर फेंकने तथा गांव के तिराहे के दक्षिण दुकानों में तोड़फोड़ के बाद गांव में तनाव पैदा हो गया। मुकामी पुलिस ने मंगलवार को इस मामले में 15 ज्ञात एवं दर्जनों अज्ञात लोगों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया।

गांव में शनिवार को रामलीला शुरू हुई। रविवार की रात रामलीला के दौरान महिलाओं के पीछे एक समुदाय के करीब डेढ़ दर्जन शरारती तत्व आ खड़े हुए। रामलीला समिति के सदस्यों एवं ग्रामीणों ने उन्हे दूर बैठने का आग्रह किया जिस पर शरारती तत्वों ने उत्पात मचाना शुरू किया। मुकामी पुलिस तथा ग्रामीणों के हस्तक्षेप से मामला शांत हो सका। पुलिस ने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया।

सोमवार की रात्रि करीब 10 बजे के आसपास पुन: दर्जनों की संख्या में शरारती तत्व रामलीला के दौरान महिलाओं के बीच पहुंच गये जिसे लेकर दर्शकों से उनकी झड़प हो गयी। शरारती तत्वों ने इसके बाद गांव कई घरों पर ईट पत्थर बरसाने शुरू कर दिए जिससे छ: लोगों को चोट आयी। बाद में पुलिस थानाध्यक्ष के नेतृत्व में पुलिस के पहुंचने पर मामला नियंत्रण में आया। पुलिस ने घटना में घायल लोगों में से रमाकांत पुत्र राजन, राकेश पुत्र मुन्नीलाल, रामआशीष पुत्र कौलेशर, ज्वाला पुत्र हरीराम का उपचार एवं डाक्टरी परीक्षण कराया। 2 अन्य घायल केदार गुप्त एवं छेदी के पुत्र हैं।

पुलिस ने इस मामले में धारा 147, 148, 109, 294, 504,506, 336, 394 एवं 427 भा.द.वि में 15 नामजद एवं दर्जनों अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत किया है।

महंगा पड़ा मदरसे में दबिश देना

दैनिक जागरण, ६ नवम्बर २००८, मुजफ्फरनगर। भोपा के गांव किशनपुर स्थित मदरसे में गोकशी की सूचना पर दबिश देने गई पुलिस को अब लेने के देने पड़ गये हैं। कप्तान ने दो पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया है और पूरी कार्रवाई को त्रुटिपूर्ण बताते हुए एसपी सिटी को जांच के आदेश दिए हैं।

गौरतलब है कि मंगलवार की दोपहर भोपा पुलिस को कंट्रोल रूम से सूचना दी गयी थी कि गांव किशनपुर के मदरसे में गोकशी हो रही है। थाना पुलिस को गांव में जाकर दबिश देने को भी कहा गया था। इस सूचना पर भोपा पुलिस सक्रिय हुई और दबिश देने मदरसे में पहुंच गई, वहां एकजुट ग्रामीणों ने पुलिस का विरोध किया और उन्हें बैरंग वापस लौटने पर विवश कर दिया। इतना ही नहीं आसपास के मुस्लिम बहुल गांव में इस बात को लेकर आक्रोश फैल गया। बसपा के एक विधायक ने भी दबिश को गलत करार देते हुए कप्तान से आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर डाली। संप्रदाय विशेष की ओर से लगाए जा रहे धार्मिक उत्पीड़न के आरोप से शासन भी सकते में आ गया और रात में ही एसएसपी को त्वरित निदान के निर्देश मिले। ऊपर से आए आदेश के तहत एसएसपी ने रात में ही सीओ जानसठ को भेजकर इस मामले की जांच कराई। जांच में दो पुलिसकर्मियों सिपाही कृतपाल और एचसीपी होशियार सिंह की भूमिका संदिग्ध मिली। बुधवार को कप्तान ने दोनों को लाइन हाजिर कर दिया और एसपी सिटी से इस पूरे प्रकरण की जांच सौंप दी। एसएसपी बीडी पाल्सन ने बताया कि पूरी जांच रिपोर्ट आ जाने के बाद आरोपियों के खिलाफ और भी सख्त कार्रवाई की जा सकती है। एसएसपी ने दावा किया है कि भोपा पुलिस ने अधिकारियों के आदेश के बगैर मदरसे में दबिश दी थी।

गोकशी का खुलासा, छह गिरफ्तार, दो कोल्ड स्टोर सील

दैनिक जागरण, ५ नवम्बर २००८, मेरठ। जिले में बड़े पैमाने पर हो रही गोकशी का पर्दाफाश हो गया। पुलिस ने एक ऐसे गिरोह के छह लोगों को पकड़ने में सफलता हासिल की जो महीनों से परतापुर क्षेत्र में गोकशी का धंधा कर रहा था। पांच दिन पहले ही खेड़ा बलरामपुर गांव के जंगल में इसी गिरोह ने गायों को काटा था और माहौल को खराब करने की कोशिश की थी। इन गायों का मीट मेडिकल क्षेत्र के जिन दो कोल्ड स्टोरज में रखा गया था, उन्हें पुलिस ने सील कर दिया। पकड़े गए लोगों ने धंधे के पीछे कई बड़े लोगों का हाथ होना उजागर किया है। पुलिस उनकी तलाश में दबिशें दे रही है।

गायों का कटान करने वाले गिरफ्तार लोगों में काशी गांव के मैराज पुत्र रफीक, फुल्लू पुत्र मकसूद, फन्नू पुत्र रमजानी, मुन्ना पुत्र रफीक, मुजफ्फरनगर के पलड़ी गांव का अब्दुल्ला उर्फ अब्लू और किठौर का जमील अहमद उर्फ बबलू है। इनके कब्जे से चार औजार, चाकू और दो देसी तमंचे मिले हैं। इनमें से अब्दुल्ला और जमील पांच दिन पहले खेड़ा बलरामपुर गांव के बबूल के जंगल में गायों के कटान में शामिल थे, जबकि बाकी सभी अपने अपने गांवों में गायों को काटते रहे हैं और उन पर तमाम मुकदमे भी दर्ज हैं।

पुलिस लाइन में मीडिया से मुखातिब एसएसपी रघुवीर लाल ने बताया कि सरधना के मढियाई गांव का असगर बंजारा 30/31 की रात में कुछ साथियों के साथ डम्फर में 11 गाय और बछड़ों को खेड़ा बलरामपुर गांव के जंगल में लेकर आया था और वहीं साथियों के साथ कटान किया था। मांस और खाल को तो उन्होंने ट्रक में लाद लिया था, लेकिन दिन निकलने की वजह से सिर, खुर आदि वहीं छोड़कर चले गए थे। टाटा 407 के जरिये मांस व खाल को कलुवा पुत्र बाबू, आसिफ आदि शहर लेकर आये। गाड़ी राजा नाम का चालक चला रहा था। इस सभी माल को गढ़ रोड पर मेडिकल से आगे मुद्रा कोल्ड स्टोरेज पर पहुंचाया गया। यहां सरताज को माल दिया गया और उसे कांटे पर तुलवाया गया। एसएसपी ने बताया कि बाद में सरताज ने यह माल मुद्रा कोल्ड स्टोरेज को बेच दिया। यह कोल्ड स्टोरेज तौफीक इलाही और लियाकत इलाही का है। इस मांस को बेचकर 55 हजार रुपये मिले। एसएसपी ने बताया कि पकड़े गए लोगों से पूछताछ में मालूम हुआ कि प्रतिबंधित मांस मुद्रा और यासीन कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता रहा है। इसलिए दोनों को सील कर दिया गया। साथ ही उनके मालिकों की गिरफ्तारी के लिए दबिशें शुरू करा दी गई। उन्होंने बताया कि फिलहाल छह लोगों की गिरफ्तारी कर ली गई है और बीस अन्य की गिरफ्तारी को दबिशें दी जा रही हैं।

एसएसपी रघुवीर लाल ने यह भी बताया कि गोवध करने वाले गिरोह और उनके सदस्यों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। फिलहाल चार सक्रिय गिरोह प्रकाश में आये हैं। इनमें एक गिरोह दिल्ली का है। इन सभी पर कार्रवाई शुरू कर दी गई है। उन्होंने कहा कि इस गंभीर मामले में कोई बेकसूर न फंसे, इसलिए कार्रवाई में जल्दबाजी नहीं की जाएगी, लेकिन जिन लोगों के भी नाम प्रकाश में आये हैं, उन पर रासुका के अलावा गैंगेस्टर के तहत संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई भी की जाएगी। उन्होंने कहा कि ऐसे धधे से जुड़े लोगों को माफिया घोषित कर उनकी संपत्ति भी कुर्क होगी। इस मामले में कोई भी दबाव नहीं माना जाएगा। ऐसी घटनाओं में जिन पुलिस वालों की संलिप्तता होगी, उन पर भी कार्रवाई होगी। मीडिया से वार्ता के वक्त एसपी सिटी राकेश जौली और सीओ ब्रह्मापुरी मंशाराम गौतम भी मौजूद थे।

गोकसी अड्डे पर छापा, छुरी-मांस बरामद

दैनिक जागरण, ५ नवम्बर २००८, बकेवर (इटावा)। कस्बे के मोहल्ला हाफिज नगर के निकट नूरी मस्जिद के पास तीन बैलों को काटकर गौकसी के अड्डे पर पुलिस ने छापा मारकर मांस व छुरी बरामद कर लिया। चार लोगों के खिलाफ थाने में मुकदमा पंजीकृत कर लिया गया।

पुलिस ने बताया कि रात्रि करीब 10 बजे मुखबिर के जरिये सूचना मिली कि नगर के मोहल्ला हाफिज नगर में स्थित नूरी मस्जिद के पास शमशुद्दीन के प्लाट में बैलों का कत्लेआम हो रहा है। जिस पर बकेवर एसओ वाईके पुनियां पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे।

उन्होंने मौके से बैलों का मांस और उन्हे काटने में प्रयुक्त होने वाली छुरी आदि औजार बरामद करने के साथ-साथ दो लोगों को भी हिरासत में लिया। बाद में पुलिस ने हिरासत में लिये गये दोनों कसाइयों को छोड़ दिया। गौवंशीय पशुओं की हत्या करके मांस बेचने के आरोप में एसआई बीएन सिंह ने मुकदमा पंजीकृत कराते हुए मोहम्मद इनाम कुरैशी, इकबाल, इरफान, गुलफाम को आरोपी बनाया है जिसमें उन्होंने दावा किया कि पुलिस द्वारा छापा मारते ही यह चारों सिर पर गौमांस की पोटली रखकर भाग रहे थे। इन लोगों को टार्च की रोशनी में पहचाना गया।

नगर वासियों के अनुसार पुलिस ने इस मामले में दो भाइयों को हिरासत में ले लिया था। बाद में पुलिस ने उन्हे सपा के कुछ दबंगों के इशारे पर छोड़ना पड़ा। पुलिस द्वारा कसाइयों को छोड़ जाने की घटना पर भाजपा लखना मंडल अध्यक्ष प्रभात महेश्वरी, भारत परिषद के प्रदेश अध्यक्ष कौशल किशोर पांडेय, भाजपा नेता बृजपाल सिंह चौहान, गगन सोनी, रानू श्रीवास्तव, आशुतोष दीक्षित, सुरेन्द्र पंडित ने आक्रोश व्यक्त कर थाना पुलिस के प्रति नाराजगी जताई है। पशु चिकित्सक डा. सुनील गुप्त के मांस परीक्षण के पश्चात उसके बिसरे को आगरा प्रयोगशाला में भेजा गया है। कस्बे में लंबे समय से गौकसी का धंधा संचालित हो रहा है।

Wednesday, November 5, 2008

गंगा ‘राष्ट्रीय नदी’ घोषित होगी: प्रधानमंत्री

04 नवम्बर 2008 , वार्ता, नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने गंगा नदी को ‘राष्ट्रीय नदी’ घोषित करने का फैसला किया है।

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने आज यहां जलसंसाधन पर्यावरण एवं वन और नगर विकास मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने फैसला किया।

गंगा नदी में जलप्रवाह की मात्रा और गुणवत्ता जल के समुचित उपयोग, बाढ़ और प्रदूषण नियंत्रण के बारे में परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ‘गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ गठित करने का भी फैसला किया गया।

प्रधानमंत्री ‘गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण’ के अध्यक्ष और गंगा प्रवाह वाले राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होंगे।

प्राधिकरण के अधिकार और कार्यक्षेत्र का निर्धारण राज्य सरकारों और मुख्यमंत्रियों से विचार-विमर्श के आधार पर तय किए जाएंगे।

डॉ. सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए देशवासियों के दिल-दिमाग में गंगा के विशेष महत्व का उल्लेख किया।

उन्होंने कहा कि गंगा के साथ भावनात्मक लगाव का तकाजा है कि इसे प्रदूषण मुक्त कर आदर्श नदी का रूप दिया जाए। उन्होंने गंगा से जुड़ी परियोजनाओं को लागू करने में आपसी तालमेल कायम किए जाने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा क गंगा प्रदूषण परियोजना के तहत केवल कुछ नगरों को चुन कर टुकड़ों में काम करने की बजाय एक समग्र रणनीति बनाने और इसके क्रियान्वयन की प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है।

Tuesday, November 4, 2008

पूजा के दौरान पत्थर फेंकने को लेकर दो पक्षों में तनाव

दैनिक जागरण, रुद्रपुर (देवरिया), 03 नवम्बर २००८। एकौना थाना क्षेत्र के ग्राम सभा ईश्वरपुरा में दो समुदायों के बीच तनाव घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। जिसे देखते हुए प्रशासन ने गांव में चौकसी बढ़ा दी है।

दशहरा के अवसर पर पूजा के दौरान किसी व्यक्ति ने पत्थर फेंक दिया। जिसे लेकर दोनों समुदाय के बीच तनाव पैदा हो गया। जो घटने की बजाय बढ़ता ही गया। दोनों पक्ष के लोग रोजाना रात में एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का आरोप लगा रहे हैं। जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर सोमवार को अपराह्न तीन बजे गांव में उपजिलाधिकारी रामानुज सिंह, क्षेत्राधिकारी रमेश प्रसाद गुप्ता व थानाध्यक्ष माधव राम गौतम ने दोनो समुदाय के लोगों के साथ बैठक कर माहौल को ठीक करने की रणनीति बनाई। इस संबंध में एस.डी.एम.श्री सिंह ने कहा कि दोनों पक्षों के लोग मिलकर अराजक तत्वों को चिह्नित करें। जबकि सी.ओ.श्री गुप्त ने कहा कि दोनों समुदाय के पांच-पांच लोगों की समिति बनाई गई है। जो पुलिस के साथ मिलकर मामले का शीघ्र पर्दाफाश करेगी।

गौकशी का धंधा करने वाले पुलिस के हत्थे चढे़

दैनिक जागरण, ४ नवम्बर २००८, उझानी (बदायूं)। गौकशी करने वाले गैंग में मनमुटाव का पुलिस को यह फायदा हुआ कि पुलिस के हत्थे गौकशी करने वाले तीन लोग चढ़ गये। जबकि कई के नाम पुलिस को पता चल गये। पकड़े गये लोगों से पुलिस पूछताछ कर रही है।

नगर व आसपास के क्षेत्र में गौकशी का धंधा चरम पर है। यहां से संभल, मुरादाबाद, अलीगढ़ व बुलंदशहर आदि के लिए प्रतिबंधित पशु भेजे जाते है। सोमवार को पुलिस ने बुद्दा सहित तीन व्यक्तियों को पकड़ लिया। इनके पकड़े जाने के बाद गौकशी के धंधे की परते खुलने लगी है। बताया जाता है कि पुलिस को यह सफलता गौकशी के धंधे से जुडे़ स्थानीय लोगों में मनमुटाव होने के बाद मिली है।

पता चला कि पिछले दिनों नगर के कुरैशी मोहल्ले से एक पालतू गाय चोरी हुई जिसे चुराने के बाद काट डाला गया। चूंकि गाय मालिक व चोर सजातीय थे इसलिए आपस में इस धंधे की पोल खुलने लगी। सूत्र बताते है कि नगर के गद्दी टोला मानकपुर रोड प्लाटों में नैथुआ से आकर बसे पिता-पुत्र व दामाद ने इस घिनौने कार्य की जड़े नगर ही नहीं अपितु आसपास के गांव व अन्य कस्बों तक फैला रखी हैं।

गौकशी के धंधे को मानकपुर के सात लोग अंजाम दे रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि पशुओं की चोरी में महिलाओं और बच्चों को कैरियर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। सोमवार को पुलिस के हत्थे चढ़े तीन लोगों से पुलिस गहन पूछताछ करके गौकशी के धंधे से जुड़े गैंग के सदस्यों को पता लगा रही है। कुछेक चर्चित नाम पुलिस के संज्ञान में आ चुके है।

अदालत में मूर्छित हुईं साध्वी प्रज्ञा

03 नवम्बर २००८, इंडो-एशियन न्यूज सर्विस, नासिक। मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सोमवार को नासिक के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में मूर्छित हो गईं।

इस बीच हिन्दू संगठनों ने अदालत के बाहर साध्वी के समर्थन में प्रदर्शन किया।

महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने सोमवार को साध्वी को दो अन्य आरोपियों श्याम भंवरलाल साहू और शिवनारायण सिंह कलसांगरा के साथ अदालत में पेश किया।

एटीएस द्वारा पिछले सप्ताह साध्वी कराए गए ब्रने मेपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट में कुछ भी सुराग हाथ नहीं लगा।

अभियोजन पक्ष के विशेष वकील अजय मिसर ने अदालत से कहा कि एटीएस अपनी छानबीन के अहम पड़ाव पर पहुंच चुकी है और साध्वी का टेस्ट हुआ है उससे अन्य आरोपियों की जांच पड़ताल में मदद मिलेगी।

उधर, साध्वी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वह और उसके साथ गिरफ्तार उसके अन्य सहयोगी निर्दोष हैं।

उन्होंने कहा कि हिन्दू आंदोलन को बदनाम करने के लिए उन्हें किसी बड़े षड़यंत्र में फंसाया जा रहा है

Monday, November 3, 2008

अखंडता के अद्भुत शिल्पी

सरदार पटेल के जन्म दिन पर राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में उनके अतुलनीय योगदान का स्मरण कर रहे हैं जगमोहन
दैनिक जागरण, ३१ अक्टूबर २००८, पिछले दिनों एक राष्ट्रीय दैनिक में खबर छपी कि आजमगढ़ में मुस्लिम पोलिटिकल काउंसिल ने सरदार पटेल को आतंकवादी बताया। इससे बेतुकी बात और कोई हो ही नहीं सकती। यह शायद केवल हमारे देश में संभव है कि स्वतंत्रता संग्राम के महानतम नेताओं और आधुनिक भारत के महानतम निर्माताओं में से एक के खिलाफ इस तरह के वाहियात और बेसिरपैर के आरोप मढ़े जा सकते हैं। अकसर भुला दिया जाता है कि पटेल संविधान सभा की अल्पसंख्यक उप समिति के अध्यक्ष थे। हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों को प्राप्त भाषाई और सांस्कृतिक अधिकार संबंधी उदार प्रावधान उनकी सर्वग्राह्यं स्वीकार्यता को दर्शाते हैं। पटेल की पंथनिरपेक्षता में गांधीजी का अटूट विश्वास 24 अक्टूबर, 1924 को लिखे गए पत्र से स्पष्ट हो जाता है। यह पत्र महादेव देसाई ने सरदार पटेल के नाम तब लिखा था जब गांधीजी हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन के उपवास पर थे। महादेव लिखते हैं, ''गुजरात में हिंदू-मुस्लिम मोर्चे पर जो भी हो, जब तक आप वहां हैं, गांधीजी निश्चिंत हैं। अगर आपकी उपस्थिति के बाद भी वहां तूफान आता है तो बापू मान लेंगे कि उसे रोक पाना संभव नहीं था।'' आजाद भारत में ऐसा कोई नहीं है जिसने इतने कम समय में इतने अधिक क्षेत्रों में इतनी उपलब्धियां हासिल की हों, जितनी सरदार पटेल ने की। उनकी मृत्यु पर मैनचेस्टर गार्जियन ने लिखा, ''पटेल के बिना गांधी के विचार इतने प्रभावशाली नहीं होते तथा नेहरू के आदर्शवाद का इतना विस्तार नहीं होता। वह न केवल स्वतंत्रता संग्राम के संगठनकर्ता, बल्कि नए राष्ट्र के निर्माता भी थे। कोई व्यक्ति एक साथ विद्रोही और राष्ट्र निर्माता के रूप में शायद ही सफल होता है। सरदार पटेल इसके अपवाद थे।'' सरदार पटेल द्वारा 561 रियासतों को एक राष्ट्र में मिलाना यथार्थवाद और उत्तारदायित्व बोध की विजय है। इस महती कार्य के कारण उनकी तुलना चांसलर बिस्मार्क से की जाती है, जिन्होंने 19वीं सदी में जर्मनी को एकता के सूत्र में बांधा था, किंतु पटेल की उपलब्धियां बिस्मार्क से बढ़कर हैं।
बिस्मार्क को कुल दर्जनभर राज्यों से निपटना पड़ा था, जबकि पटेल ने 561 रियासतों का मसला सुलझाया। बिस्मार्क ने खून-खराबे के बल पर कार्य को अंजाम दिया, पटेल ने रक्तरहित क्रांति की। उन्होंने लोगों और अवसरों से निपटने में गजब की कार्य कुशलता का परिचय दिया। जब लोहा गरम था तभी चोट की। उन्होंने आठ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल तथा 8.6 करोड़ लोगों को भारतीय संघ में मिलाया। गांधीजी और लार्ड माउंटबेटन दोनों ने पटेल के महान योगदान की भूरि-भूरि सराहना की। गांधीजी ने कहा था कि रियासतों से निपटने का कार्य वास्तव में बहुत बड़ा था। मुझे पक्का विश्वास है कि पटेल के अलावा कोई अन्य इस काम को अंजाम नहीं दे सकता था। पटेल को 19 जून, 1948 को लिखे पत्र में लार्ड माउंटबेटन ने कहा था, ''इसमें शक नहीं है कि वर्तमान सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रियासतों को भारतीय भूभाग में मिलाना था। अगर आप इसमें विफल हो जाते तो इसके भयावह परिणाम निकलते.सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ाने में कोई अन्य इतना अहम योगदान नहीं दे सकता था, जितना योगदान राज्यों के संबंध में आपकी शानदार नीतियों ने दिया।'' पटेल ने पहले भारत को एक सूत्र में बांधने की शानदार योजना बनाई और फिर वह इसे मूर्त रूप देने की दिशा में दृढ़ता से आगे बढ़े। उन्होंने रियासतों में देशभक्ति का जज्बा पैदा किया और उन्हें याद दिलाया, ''हम भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण दौर में हैं। एक सामूहिक प्रयास से हम देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। जबकि एकता के अभाव में हमें नई विपदाओं का सामना करना पड़ेगा।'' उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि विद्रोह की सुगबुगाहट न होने पाए। उन्होंने भोपाल के नवाब की यह सलाह अस्वीकार कर दी कि कुछ राज्यों का समूह बनाकर उन्हें स्वतंत्र उपनिवेश के रूप में मान्यता दे दी जाए।
जब भारत के निंदक विंस्टन चर्चिल ने हैदराबाद के निजाम के विभाजनकारी खेल को यह कहकर बढ़ावा दिया कि यह साम्राज्य का पुराना और विश्वासपात्र सहयोगी है तो पटेल ने कहा, ''चर्चिल की दुर्भावना और विषभुजी जबान से नहीं, बल्कि सद्भाव से ही भारत के ब्रिटेन और राष्ट्रमंडल के अन्य सदस्यों से चिरस्थायी संबंध बनेंगे।'' उनका संदेश काम कर गया और भारत के मामलों में नुक्ताचीनी बंद हो गई। अलग-अलग तरह की रियासतों को भारत में मिलाने के बेहद जटिल मुद्दे पर पटेल के नजरिये में दृष्टि, चातुर्य, उदारता, दृढ़निश्चय और परिपक्व व्यावहार्यता का समावेश था। जब 1956 में निकिता ºुश्चेव भारत के दौरे पर आए तो उन्होंने खास तौर पर कहा, ''आपने रजवाड़ों को मिटाए बिना ही रियासतों को मिटा दिया।'' अगर जम्मू-कश्मीर भी पटेल को सौंप दिया जाता तो भ्रम और अंतर्विरोध पैदा नहीं होते और हम आज जिस क्रूरता के शिकार बन रहे हैं उससे बच जाते। पटेल ने शेख अब्दुल्ला का धौंसपट्टी का रुझान भांप लिया था और उन पर सही ढंग से काबू पाया। उन्हें कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का पछतावा था। उन्होंने 28 अक्टूबर, 1947 को पंडित नेहरू के रेडियो पर प्रसारित भाषण से 'संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जनमत संग्रह' शब्द हटाने का पुरजोर प्रयास किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इंडियन सिविल सर्विस दूसरे पक्ष के साथ थी। इस कारण यह कांग्रेसी नेताओं का कोपभाजन बनी हुई थी। नेहरू इसे न भारतीय, न नागरिक, न सेवा कहकर फटकारते थे। एक बार फिर पटेल की रचनात्मक प्रतिभा काम आई और उन्होंने मामले को संतोषजनक तरीके से निपटा दिया। पटेल सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का पर्याय थे। मरणोपरांत उनके पास जो संपत्तिमिली उसमें धोती, कुर्ता और एक सूटकेस था। आज भारत में हालात काबू से बाहर हो रहे हैं और भारतीय संघ लड़खड़ा रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय नेतृत्व को पटेल की रचनात्मक दृष्टि और दृढ़ता को अपनाना चाहिए, जो उन्होंने इतिहास के नाजुक मोड़ पर दिखाई थी।