Friday, September 14, 2012

नेपाल में चित्रकार को धमकियों के बाद प्रदर्शनी बंद

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16386146.cms
 हिन्दू देवी-देवताओं को गलत तरीके से चित्रित करने पर एक चित्रकार को कार्यकर्ताओं की ओर से कथित रूप से जान से मारने की धमकियों के बाद यहां एक चित्रकला प्रदर्शनी को बंद कर दिया गया।

Tuesday, September 11, 2012

कर्नाटक में इंडियन मुजाहिद्दीन के चार संदिग्ध आतंकी गिरफ्तार

http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-257290.html
चिन्नास्वामी स्टेडियम में वर्ष 2010 में हुए विस्फोट के मामले में गुरुवार को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के चार संदिग्ध सदस्यों को कर्नाटक के हुबली से गिरफ्तार किया गया है।

अमरनाथ यात्रा के विरोध में कश्मीर बंद

http://www.jagran.com/news/national-protest-against-amarnath-yatra-9634084.html
 अमरनाथ यात्रा को लेकर कश्मीर में शुरू हुई अलगाववादियों की सियासत ने अपना रंग दिखाते हुए मंगलवार को सामान्य जनजीवन की रफ्तार को अस्त-व्यस्त किया। सरकारी कार्यालयों के अलावा हर एक जगह हड़ताल रही। हालांकि, बंद के दौरान किसी भी तरह की अप्रिय घटना नहीं घटी। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध कर रखे थे। सैयद अली शाह गिलानी, शब्बीर शाह, मीरवाइज, नईम अहमद खान समेत सभी प्रमुख अलगाववादियों को प्रशासन ने नजरबंद रखा।

अब विहिप का हिंदू हेल्पलाइन कार्ड

http://www.jagran.com/news/national-vhp-launch-hindu-helpline-card-9636645.html
विहिप की ओर से हिंदू हेल्प लाइन के दो टेलिफोन नंबर हैं। इसको डायल कर कोई भी हिंदू देश के किसी भी कोने से अपनी समस्या बताकर मदद मांग सकता है। कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति उनका पूरा ब्योरा एकत्रित करने के बाद संबंधित जिला या महानगर प्रमुख से संपर्क कर उन्हें पूरी जानकारी देगा। फिर वह उस व्यक्ति के पास पहुंचकर मदद करेंगे। कुछ देर बाद कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति पुन: मदद मांगने वाले संपर्क कर उनकी स्थिति का पता करेगा। इसके बाद संपर्क का दौर लगातार चलता रहेगा।

बांग्लादेशियों को वापस नहीं भेज सकते : गोगाई

http://www.jagran.com/news/national-assam-alone-cannot-stop-infiltration-says-tarun-9635872.html
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा है बांग्लादेशियों को वह राज्य से बाहर नहीं निकाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की पहचान करना उनका काम जरूर है, लेकिन बांग्लादेशियों को राज्य से बाहर करने का काम उनका नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर गेंद केंद्र के पाले में फेंक दी है। उन्होंने कहा कि यह काम केंद्र सरकार का है।

पाक में दो हजार अल्पसंख्यकों को बनाया मुसलमान

http://www.jagran.com/news/world-2000-girls-from-minority-sects-converted-to-islam-9637279.html
पाकिस्तान में हिंदू, सिख, ईसाई एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की दो हजार औरतों और लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया है। इसके लिए बलात्कार, यातना और अपहरण को हथियार बनाया गया। जबरन धर्म परिवर्तन के अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के 161 लोगों को ईशनिंदा कानून में फंसाया गया। ये आंकड़े 2011 के हैं।

पाकः बच्चों के दिमाग में हिंदू और भारत के खिलाफ घोला जा रहा जहर

http://www.amarujala.com/international/Pakistan/pakistani-books-provoke-children-against-india-and-hindu-13417-3.html
ऐसे समय में जब पाकिस्तान आतंकवाद से त्रस्त है, उस घड़ी में भी उसका आधिकारिक शैक्षिक जगत स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों के खिलाफ जातीय घृणा फैलाने वाली सामग्री को शामिल करने पर रोक लगाने में अक्षम है। वहां के बच्चों के दिमाग में हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों और भारत के खिलाफ जहर घोला जा रहा है। 

युवाओं में बढ़ती कट्टरता नई चुनौती

http://www.jagran.com/news/national-new-challenge-of-growing-radicalization-among-youth-9640126.html
युवाओं में बढ़ती कंट्टरता देश के लिए नया खतरा बन गई है। पिछले दिनों बेंगलूर में पकड़े गए पढ़े-लिखे युवा आतंकियों का उल्लेख करते हुए खुफिया ब्यूरो [आइबी] के प्रमुख नेहचल संधू ने इससे निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया। उनके अनुसार इंटरनेट और मोबाइल पर आतंकी एवं अलगाववादी गतिविधियां सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती बनकर उभरी हैं।

यूपी: अल्पसंख्यक छात्राओं को मिलेगा 30 हजार का अनुदान

http://www.amarujala.com/National/minority-girl-students-get-30-thousand-grant-in-up-31491.html
उत्तर प्रदेश सरकार ने कक्षा दस पास करने वाली अल्पसंख्यक बालिकाओं को एक और तोहफा दिया। अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार की छात्राओं को ‘बालिका शिक्षा अनुदान’ योजना के तहत 30,000 रुपये दिए जाएंगे।

सुरक्षा पर भारी पड़ते स्वार्थ

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion-9644739.html
असम में हाल में जो जातीय संघर्ष हुआ उसके बारे में बहुत भ्रातिया हैं। समस्या को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ उस समय भारी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थी आए। कालातर में जब पाकिस्तानी फौजों ने बंगालियों के विरुद्घ दमन चक्र चलाया तब मुसलमान भी भारी संख्या में भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में आए। 1971 में पाकिस्तान के टूटने और बाग्लादेश के सृजन पश्चात यह आशा हुई कि सभी जातिया और संप्रदाय के लोग साप्रदायिक सौहार्द के वातावरण में बाग्लादेश में रहेंगे, परंतु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। शेख मुजीब की 1975 में हत्या कर दी गई और बाद में जनरल इरशाद ने इस्लाम को राजधर्म की मान्यता दी। इसके बाद बाग्लादेश में हिंदू, बौद्घ, ईसाई और जनजातिया यानी सभी वर्ग के अल्पसंख्यकों पर अत्यधिक अत्याचार हुए। आर्थिक कारणों से भारी संख्या में मुसलमानों ने बाग्लादेश से पलायन किया। ऐसा समझा जाता है कि बाग्लादेश से भारत आने वालों में 70 प्रतिशत मुसलमान और 30 प्रतिशत हिंदू व अन्य संप्रदायों के लोग थे। बाग्लादेश से घुसपैठ के अकाट्य प्रमाण हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के अनुसार 1951 व 1961 के बीच करीब 35 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से चले गए थे। बाग्लादेश के चुनाव आयोग ने भी पाया कि 1991 व 1995 के बीच करीब 61 लाख मतदाता देश से गायब हो गए। स्पष्ट है कि ये सभी व्यक्ति भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में घुसपैठ कर चुके थे। 1996 में भी बाग्लादेश के चुनाव आयोग को मतदाता सूची से 1,20,000 नागरिकों के नाम काटने पडे़ थे, क्योंकि उनका कहीं अता-पता नहीं था। इतना सब होने के बाद भी बाग्लादेश के नेता जब यह कहते हैं कि उनके देश से अनधिकृत ढंग से पलायन नहीं हुआ तो उनकी गुस्ताखी की दाद देनी पड़ती है। भारत सरकार ने इस मुद्दे को बाग्लादेश सरकार से कभी गंभीरता से नहीं उठाया। 1998 में असम के तत्कालीन गवर्नर, जनरल एसके सिन्हा ने राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी थी कि बाग्लादेश से जिस तरह आबादी भारत में चली आ रही है, अगर उसका प्रवाह बना रहा तो वह दिन दूर नहीं जब असम के मूल निवासी अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और हो सकता है कि असम के कुछ जनपद भारत से कटकर अलग हो जाएं। चेतावनी का भारत सरकार पर कोई असर नहीं हुआ। कारगिल लड़ाई के बाद भारत सरकार ने चार टॉस्क फोर्सो का गठन किया था। इनमें से एक जो सीमा प्रबंधन से संबंधित थी उसके प्रमुख माधव गोडबोले भूतपूर्व गृह सचिव थे। इस टॉस्क फोर्स ने बड़ी निष्पक्ष आख्या प्रस्तुत की। गोडबोले ने अपनी रिपोर्ट में दो टूक शब्दों में लिखा कि बाग्लादेश से आबादी का जो अनधिकृत पलायन हो रहा है उसके बारे में सभी को मालूम है, परंतु दुर्भाग्य से समस्या से निपटने के लिए कोई आम सहमति नहीं बन पा रही है। टॉस्क फोर्स के आकलन के अनुसार सन् 2000 में बाग्लादेश से आए घुसपैठियों की संख्या लगभग 1.5 करोड़ थी। पिछले 12 वर्षो में यह संख्या बढ़कर कम से कम दो करोड़ तो हो ही गई होगी। 2001 में एक मंत्रि समूह ने टॉस्क फोर्स की रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि इतनी भारी संख्या में बाग्लादेशियों की उपस्थिति देश की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए एक खतरा है। यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के सामने भी गया। 12 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बाग्लादेशियों के भारी संख्या में अतिक्रमण के कारण असम में आतरिक अव्यवस्था और वाह्य आक्रमण जैसी स्थिति है और निर्देश दिया कि जो बाग्लादेशी भारत में अनधिकृत तरीके से घुस आए हैं उन्हें देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें भारत से निकाला जाए। भारत सरकार ने टॉस्क रिपोर्ट की संस्तुतियों की अनदेखी की, मंत्रि समूह की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की। घुसपैठिए प्रथम चरण में तो याचक थे। स्थानीय नेताओं ने इन्हें अपना वोट बैंक बनाया और असम के निवासी होने के प्रमाण पत्र दिलाए। धीरे-धीरे इन लोगों ने जमीनें भी खरीदनी शुरू कर दी। इस तरह इन्होंने अपना आर्थिक आधार बना लिया। वर्तमान में जिसे तृतीय चरण कहा जा सकता है, अब ये घुसपैठिए अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। 2008 में दरंग और उदलगिरी जनपदों में बोडो जनजाति और घुसपैठियों में दंगे हुए थे। इनमें 55 व्यक्तियों की जानें गई थीं। हाल में कोकराझाड़, धुबड़ी और अन्य जनपदों में जो हिंसा हुई वह भी 2008 की घटनाओं की पुनरावृत्ति थी, केवल जनपद बदल गए थे। भारतीय सेना के जाने के बाद ही स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सका। सवाल यह है कि अब इस समस्या से निपटा कैसे जाए। इस विषय पर मेरे तीन सुझाव हैं। पहला तो यह कि राजीव गाधी की पहल पर 1985 में जो असम समझौता हुआ था उसको आधार मान कर जो भी लोग एक जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच असम आए थे उनका पता लगाकर उनका नाम मतदाता सूची से काट दिया जाए और जो लोग 25 मार्च 1971 के बाद आए थे उनका पता लगाने के बाद उन्हें वैधानिक तरीके से अपने देश वापस भेज दिया जाए। दूसरा, अगर यह मान लिया जाए कि इतने वर्षो बाद बाग्लादेशियों को वापस भेजना संभव नहीं तो कम से कम यह सुनिश्चित किया जाए कि इनको वोट देने का कोई अधिकार न हो और वह अचल संपत्ति भी न खरीद सकें। इन बाग्लादेशियों को वर्क परमिट दिया जाए, जिससे उन्हें रोजी कमाने का अधिकार तो हो, परंतु भारतीय नागरिक के सामान्य अधिकार न हों? तीसरा यह कि बंग्लादेश सीमा पर तार लगाने का जो कार्य चल रहा है उसे अतिशीघ्र पूरा किया जाए। नेशनल माइनॉरिटी कमीशन के अनुसार असम में जो हिंसा हुई थी वह बोडो और प्रवासी मुसलमानों के बीच थी। यह निष्कर्ष भ्रामक है कि यह मुसलमान आज की तारीख में भले प्रवासी हो गए हों, परंतु सब जानते हैं कि ये बाग्लादेश से आए थे और इन्होंने फर्जी दस्तावेज बनवा लिए हैं। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि वह बोडो के बारे में पूर्वाग्रह दिखाती हैं। बोडो वास्तव में अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री ने अपने एक बयान में कहा कि प्रदेश में एक ज्वालामुखी सुलग रहा है। यह सही है, सरकार ने अपनी सैनिक शक्ति से स्थिति पर नियंत्रण तो पा लिया है, परंतु यह चिंगारी सुलगती रहेगी। जो नेतृत्व अपने राजनीतिक स्वार्थ के आगे नहीं सोचता और जिसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण सत्ता में बने रहना है वह अपनी अकर्मण्यता और अदूरदर्शिता के दलदल में फंसता जाएगा।