http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-unforgivable-crime-against-democracy-10052868.html
अकबरुद्दीन ओवैसी के पिछले माह आंध्र प्रदेश में दिए भड़काऊ भाषण से भारत के उदार, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक माहौल में जीने वाले हर नागरिक को धक्का लगा होगा। हालांकि उन्हें इस पर कोई हैरानी नहीं हुई होगी जो यहां 20वीं सदी से चले आ रहे कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं के द्वेषपूर्ण व्यवहार और इस संदर्भ में कांग्रेस पार्टी के मौन से परिचित हैं। राजनेता धार्मिक, जातिगत आधार पर और यहां तक कि महिलाओं के खिलाफ भी भड़काऊ बयानबाजी करते रहे हैं, लेकिन मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के नेता ओवैसी ने हर सीमा लांघ दी। चौंकाने वाली बात तो यह है कि ओवैसी आज के लोकतांत्रिक भारत में भी मध्ययुगीन विचारों में जी रहे हैं। यदि हम देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल की तुष्टीकरण की नीति को देखें तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। देश में छद्म पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा इसी दल ने दिया। कांग्रेस ने ही उस संस्कृति को जन्म दिया जिसमें पंथनिरपेक्षता को हिंदू-विरोध से जोड़ा गया और ओवैसी जैसे लोगों का दुस्साहस बढ़ता गया। चूंकि कांग्रेस आजादी से पहले अंतरिम सरकार में और आजादी के बाद भी सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रही, इसलिए देश में पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक माहौल को बिगाड़ने के लिए प्रथमदृष्टया यही जिम्मेदार है। इतिहास बताता है कि मुस्लिम नेताओं की सांप्रदायिक राजनीति ने कैसे देश का विभाजन कर दिया और कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने छद्म पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। हालांकि डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेता भांप गए थे कि यह नीति लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिए ठीक नहीं, लेकिन नेहरू सुनना ही नहीं चाहते थे। आजादी के बाद अंबेडकर ने तुष्टीकरण के परिणामों के प्रति सबसे पहले चेताया था। उन्होंने अपनी किताब थॉट्स ऑन पाकिस्तान में 1940 में मुस्लिम समुदाय की मांगों पर कहा है कि कांग्रेस जो नीति अपना रही है वह देश के लिए अनिष्टकारी होगी। अंबेडकर ने लिखा है, समर्थन हासिल करने के लिए तुष्टीकरण की नीति अपनाना हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचार में शामिल होना है। तुष्टीकरण की कोई सीमा नहीं होती। तुष्टीकरण की नीति हिंदुओं को भी उसी भय की स्थिति में डाल देगी जिसमें कभी हिटलर के प्रति अपनाई गई तुष्टीकरण की नीति ने उनके साथियों को डाल दिया था। अंबेडकर अलग इस्लामिक राष्ट्र- पाकिस्तान के बनने के पक्ष में थे। चूंकि यह माना जा रहा था कि भारत के 90 फीसद मुसलमान पाकिस्तान बनने के पक्ष में हैं, अंबेडकर ने पूर्वानुमान लगाया था कि एक बार पाकिस्तान बन जाने पर व्यापक आबादी की अदलाबदली होगी। परिणामस्वरूप तुष्टीकरण खत्म हो जाएगा। इस पूर्वाभास के बावजूद अंबेडकर छद्म पंथनिरपेक्षता से आजाद, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत को पहुंचने वाले नुकसान का आकलन करने में असफल रहे। जैसा कि हम जानते हैं विभाजन में व्यापक आबादी की अदलाबदली नहीं हुई, बल्कि कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को भरोसेमंद वोट बैंक के रूप में देखना शुरू कर दिया। नेहरू के बाद मुस्लिम वोट बढ़ाने के लिए तुष्टीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाने की बारी इंदिरा गांधी की थी। उनके बाद राजीव गांधी ने पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाया और उस न्यायिक फैसले को पलटने के लिए कानून में संशोधन का निर्णय लिया जिसमें मुस्लिम महिलाओं को संबंध-विच्छेद के बाद मुआवजे का अधिकार दिया गया था। यह फैसला उन्होंने मुस्लिम समुदाय के दबाव में लिया था। उसके बाद से ही मुस्लिम तुष्टीकरण कांग्रेस की नीतियों का अहम हिस्सा बन गया। दूसरे राजनीतिक दलों ने भी इसका अनुकरण किया। कांग्रेस को मुस्लिम लीग और ओवैसी के एमआइएम जैसे सांप्रदायिक दलों से गठबंधन करने का भी कोई अफसोस नहीं था। पिछले 20 सालों की इन घटनाओं ने ऐसे मुस्लिम नेताओं का हौसला बढ़ाया जो मुस्लिम युवाओं में हिंदुओं के प्रति नफरत भर रहे हैं और धार्मिक सौहार्द्र बिगाड़ने का कोई मौका नहीं जाने देते। यही कारण है कि मुस्लिम युवाओं ने बिना सोचे समझे पिछले साल मुंबई के आजाद मैदान में अमर ज्योति का अपमान किया और ऐसी ही तोड़फोड़ लखनऊ और दूसरी जगहों पर भी की। अब अकबरुद्दीन ओवैसी हिंदुओं के प्रति नफरत फैलाते हुए सामने आए हैं। इंटरनेट से पहले के जमाने में ऐसे भड़काऊ भाषणों का प्रसार रोकना आसान था। इंटरनेट आने के बाद कुछ लोग भड़काऊ भाषण यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर देते हैं और यह बुरी तरह फैल जाता है। इसलिए ओवैसी ने जो हानि लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को पहुंचाई है वह सिर्फ आंध्र प्रदेश तक सीमित नहीं है। दुनियाभर के लाखों हिंदुओं ने उनका नफरत भरा भाषण सुना है। यदि भारत ओवैसी जैसे लोगों के साथ सख्ती से पेश नहीं आता है तो इससे धार्मिक सौहार्द्र का माहौल तो बिगड़ेगा ही, दोनों समुदायों के गरीब और निर्दोष लोगों को भी नुकसान होगा। इस संदर्भ में हमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की दी गई सलाह को याद करना चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जर्मनी के तुष्टीकरण की ब्रिटिश नीति को लेकर चर्चिल ने कहा था, यदि तुम तब भी अपने अधिकार के लिए नहीं लड़ोगे जब बिना रक्तपात के आसानी से जीत सकते हो, यदि तब भी नहीं लड़ोगे जब तुम्हारी जीत तय हो और इसके लिए बड़ी कीमत भी नहीं चुकानी पड़े तो एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें खुद अपने विरुद्ध लड़ाई लड़नी होगी और उसमें बचने की संभावना बहुत कम होगी। आज हर उस भारतीय नागरिक को तुष्टीकरण पर चर्चिल की यह बात याद रखनी चाहिए जो उदार और लोकतांत्रिक माहौल की कद्र करता है। वरना एक दिन लोकतांत्रिक भारत भी अपने विरुद्ध लड़ाई की स्थिति में होगा और बचने की संभावना बहुत कम होगी।
अकबरुद्दीन ओवैसी के पिछले माह आंध्र प्रदेश में दिए भड़काऊ भाषण से भारत के उदार, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक माहौल में जीने वाले हर नागरिक को धक्का लगा होगा। हालांकि उन्हें इस पर कोई हैरानी नहीं हुई होगी जो यहां 20वीं सदी से चले आ रहे कट्टरवादी मुस्लिम नेताओं के द्वेषपूर्ण व्यवहार और इस संदर्भ में कांग्रेस पार्टी के मौन से परिचित हैं। राजनेता धार्मिक, जातिगत आधार पर और यहां तक कि महिलाओं के खिलाफ भी भड़काऊ बयानबाजी करते रहे हैं, लेकिन मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के नेता ओवैसी ने हर सीमा लांघ दी। चौंकाने वाली बात तो यह है कि ओवैसी आज के लोकतांत्रिक भारत में भी मध्ययुगीन विचारों में जी रहे हैं। यदि हम देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल की तुष्टीकरण की नीति को देखें तो इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए। देश में छद्म पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा इसी दल ने दिया। कांग्रेस ने ही उस संस्कृति को जन्म दिया जिसमें पंथनिरपेक्षता को हिंदू-विरोध से जोड़ा गया और ओवैसी जैसे लोगों का दुस्साहस बढ़ता गया। चूंकि कांग्रेस आजादी से पहले अंतरिम सरकार में और आजादी के बाद भी सबसे ज्यादा समय तक सत्ता में रही, इसलिए देश में पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक माहौल को बिगाड़ने के लिए प्रथमदृष्टया यही जिम्मेदार है। इतिहास बताता है कि मुस्लिम नेताओं की सांप्रदायिक राजनीति ने कैसे देश का विभाजन कर दिया और कैसे देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने छद्म पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया। हालांकि डॉ. भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेता भांप गए थे कि यह नीति लोकतांत्रिक भारत के भविष्य के लिए ठीक नहीं, लेकिन नेहरू सुनना ही नहीं चाहते थे। आजादी के बाद अंबेडकर ने तुष्टीकरण के परिणामों के प्रति सबसे पहले चेताया था। उन्होंने अपनी किताब थॉट्स ऑन पाकिस्तान में 1940 में मुस्लिम समुदाय की मांगों पर कहा है कि कांग्रेस जो नीति अपना रही है वह देश के लिए अनिष्टकारी होगी। अंबेडकर ने लिखा है, समर्थन हासिल करने के लिए तुष्टीकरण की नीति अपनाना हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचार में शामिल होना है। तुष्टीकरण की कोई सीमा नहीं होती। तुष्टीकरण की नीति हिंदुओं को भी उसी भय की स्थिति में डाल देगी जिसमें कभी हिटलर के प्रति अपनाई गई तुष्टीकरण की नीति ने उनके साथियों को डाल दिया था। अंबेडकर अलग इस्लामिक राष्ट्र- पाकिस्तान के बनने के पक्ष में थे। चूंकि यह माना जा रहा था कि भारत के 90 फीसद मुसलमान पाकिस्तान बनने के पक्ष में हैं, अंबेडकर ने पूर्वानुमान लगाया था कि एक बार पाकिस्तान बन जाने पर व्यापक आबादी की अदलाबदली होगी। परिणामस्वरूप तुष्टीकरण खत्म हो जाएगा। इस पूर्वाभास के बावजूद अंबेडकर छद्म पंथनिरपेक्षता से आजाद, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत को पहुंचने वाले नुकसान का आकलन करने में असफल रहे। जैसा कि हम जानते हैं विभाजन में व्यापक आबादी की अदलाबदली नहीं हुई, बल्कि कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय को भरोसेमंद वोट बैंक के रूप में देखना शुरू कर दिया। नेहरू के बाद मुस्लिम वोट बढ़ाने के लिए तुष्टीकरण की नीतियों को आगे बढ़ाने की बारी इंदिरा गांधी की थी। उनके बाद राजीव गांधी ने पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाया और उस न्यायिक फैसले को पलटने के लिए कानून में संशोधन का निर्णय लिया जिसमें मुस्लिम महिलाओं को संबंध-विच्छेद के बाद मुआवजे का अधिकार दिया गया था। यह फैसला उन्होंने मुस्लिम समुदाय के दबाव में लिया था। उसके बाद से ही मुस्लिम तुष्टीकरण कांग्रेस की नीतियों का अहम हिस्सा बन गया। दूसरे राजनीतिक दलों ने भी इसका अनुकरण किया। कांग्रेस को मुस्लिम लीग और ओवैसी के एमआइएम जैसे सांप्रदायिक दलों से गठबंधन करने का भी कोई अफसोस नहीं था। पिछले 20 सालों की इन घटनाओं ने ऐसे मुस्लिम नेताओं का हौसला बढ़ाया जो मुस्लिम युवाओं में हिंदुओं के प्रति नफरत भर रहे हैं और धार्मिक सौहार्द्र बिगाड़ने का कोई मौका नहीं जाने देते। यही कारण है कि मुस्लिम युवाओं ने बिना सोचे समझे पिछले साल मुंबई के आजाद मैदान में अमर ज्योति का अपमान किया और ऐसी ही तोड़फोड़ लखनऊ और दूसरी जगहों पर भी की। अब अकबरुद्दीन ओवैसी हिंदुओं के प्रति नफरत फैलाते हुए सामने आए हैं। इंटरनेट से पहले के जमाने में ऐसे भड़काऊ भाषणों का प्रसार रोकना आसान था। इंटरनेट आने के बाद कुछ लोग भड़काऊ भाषण यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर देते हैं और यह बुरी तरह फैल जाता है। इसलिए ओवैसी ने जो हानि लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्ष ताने-बाने को पहुंचाई है वह सिर्फ आंध्र प्रदेश तक सीमित नहीं है। दुनियाभर के लाखों हिंदुओं ने उनका नफरत भरा भाषण सुना है। यदि भारत ओवैसी जैसे लोगों के साथ सख्ती से पेश नहीं आता है तो इससे धार्मिक सौहार्द्र का माहौल तो बिगड़ेगा ही, दोनों समुदायों के गरीब और निर्दोष लोगों को भी नुकसान होगा। इस संदर्भ में हमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की दी गई सलाह को याद करना चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जर्मनी के तुष्टीकरण की ब्रिटिश नीति को लेकर चर्चिल ने कहा था, यदि तुम तब भी अपने अधिकार के लिए नहीं लड़ोगे जब बिना रक्तपात के आसानी से जीत सकते हो, यदि तब भी नहीं लड़ोगे जब तुम्हारी जीत तय हो और इसके लिए बड़ी कीमत भी नहीं चुकानी पड़े तो एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें खुद अपने विरुद्ध लड़ाई लड़नी होगी और उसमें बचने की संभावना बहुत कम होगी। आज हर उस भारतीय नागरिक को तुष्टीकरण पर चर्चिल की यह बात याद रखनी चाहिए जो उदार और लोकतांत्रिक माहौल की कद्र करता है। वरना एक दिन लोकतांत्रिक भारत भी अपने विरुद्ध लड़ाई की स्थिति में होगा और बचने की संभावना बहुत कम होगी।