Thursday, April 11, 2013

Tuesday, April 9, 2013

हमारे शव को पाक भेज दो, हमें नहीं: हिंदू शरणार्थी

http://www.jagran.com/news/national-deport-our-bodies-to-pakistan-not-us-hindu-refugees-10284963.html
अपने साथ पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार और अपनी धर्म की रक्षा की खातिर किसी भी तरीके से वहां से निकलकर भारत पहुंचे हिंदू शरणार्थियों ने सोमवार को मांग करते हुए कहा है कि उनके शव को भले ही पाकिस्तान भेज दिया जाएं लेकिन उन्हें वहां नहीं भेजा जाएं।

अमेरिका में योग का विरोध

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-yoga-in-america-opposed-10275357.html
व्हाइट हाउस में ईस्टर पर योग उद्यान बनवाया जाना महत्वपूर्ण घटना है। हालांकि स्वामी विवेकानंद ने लगभग सवा सौ वर्ष पहले अमेरिका में ही पहली बार आधुनिक विश्व को योग का संदेश दिया था, फिर भी चार दशक पहले तक भी ज्यादातर पश्चिमी लोग योगाभ्यास को हिंदू एक्रोबेटिक कहते थे। स्थिति तेजी से बदली और आज पूरी दुनिया में योग को सम्मान मिला। हालांकि कट्टरपंथी ईसाइयों ने इसे हिंदू धर्म-चिंतन को परोक्ष रूप से बढ़ावा देने का प्रयास बताते हुए आलोचना की। स्कूलों में योग शिक्षा देने के विरुद्ध कैलिफोर्निया में पहले ही एक मुकदमा चल रहा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भाषण में योग को धार्मिक क्रियाकलाप न बताकर इसके स्वास्थ्य संबंधी पंथनिरपेक्ष लाभ का ध्यान दिलाया जाए। असल में योग सिर्फ व्यायाम नहीं, बल्कि मानवता के सबसे महान दर्शन, चिंतन का ही एक अभिन्न अंग है।
इसका सबसे सरल प्रमाण यह है कि जिन महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में योग की व्याख्या दी, स्वयं उन्होंने उन्हीं ग्रंथों में मुख्यत: आध्यात्मिक, दार्शनिक संदेश दिया है। सहस्त्राब्दियों पहले कही गई वे बातें यदि आज भी लाभकारी दिखती हैं तो उनकी शाश्वत सच्चाई में कोई शंका नहीं बचती। आज भी स्वामी विवेकानंद से लेकर महर्षि अरविंद, स्वामी शिवानंद और सत्यानंद तक किसी भी सच्चे योगी ने योगाभ्यास को हिंदू धर्म-चिंतन से अलग करके नहीं दिखाया। वस्तुत: सभी ने निरपवाद रूप से योग विधियों को संपूर्ण जीवन दृष्टि के अंग रूप में प्रस्तुत किया। इन योग गुरुओं की संपूर्ण शिक्षाओं में योग से स्वास्थ्य लाभ की चर्चा कम और आध्यात्मिक, चारित्रिक उत्थान का विचार अधिक है। यह तो उनके यूरोपीय अनुयायियों ने अपनी सीमित समझ से योग की स्वास्थ्य उपयोगिता पर बल दिया।
योग को उस सीमित दायरे में देखना उचित नहीं। ऐसा करना ऐसा ही है जैसे केवल वर्णमाला के ज्ञान को ही संपूर्ण भाषा का ज्ञान मान लेना अथवा किसी पुस्तक की भूमिका को ही पूरी पुस्तक समझ कर शेष वृहत भाग को छोड़ देना। योग दर्शन मुख्यत: एक जीवन दृष्टि है जिससे मनुष्य इस संसार में सार्थक जीवन जीते हुए निरंतर अपने उत्थान की ओर बढ़ता है और अंतत: मानव आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा से मिल कर मुक्ति पाती है। गीता के अठारहों अध्याय योग शिक्षा हैं। भगवान कृष्ण ने अनेक प्रकार से समझाया है, 'समत्वं योग उच्यते'। यानी सम भाव में स्थित हो पाने तथा ज्ञान, कर्म और भक्ति तीनों या किसी भी एक में निष्णात हो सकने की क्षमता प्राप्त कर लेना ही योगी होना है। इसलिए जिसे योगाभ्यास कहा जाता है, वह तो सचेतन होने का प्रारंभिक उपक्रम भर है। यह गंभीरता से सोचने की बात है कि जब मामूली व्यायाम रूप में योगाभ्यास ने सारी दुनिया को इतना सम्मोहित किया तब योग दर्शन को संपूर्ण रूप में समझना मानवता के लिए कितनी महान उपलब्धि हो सकती है। आज जब वैज्ञानिक परीक्षण, उपयोगिता और बौद्धिकता का इतना बोलबाला है तब यदि हिंदू योग दर्शन की बातें बेकार होंगी तो मानव बुद्धि उसे स्वयं ठुकरा देगी। ऐसी स्थिति में धमकी या दबाव डालकर योग से लोगों को विमुख करने के पीछे क्या कारण हो सकता है? केवल यही कि यदि दुनिया के गैर हिंदुओं में योग के प्रति रुचि बढ़ी तो अंतत: उनका मजहबी विश्वास नष्ट हो सकता है। ईसाइयों को यह चेतावनी 24 वर्ष पहले दिवंगत पोप जॉन पाल द्वितीय ने विस्तार से एक पुस्तिका लिखकर दी थी। कुछ ऐसी ही बात मलेशिया की नेशनल फतवा काउंसिल ने भी कही, जब वहां मुसलमानों के लिए योगाभ्यास वर्जित करने का फतवा जारी हुआ। हालांकि वहां अधिकांश मुस्लिम इसे खेल-कूद के लोकप्रिय रूप में ही लेते हैं। भारतीय मुसलमानों को भी योग से परहेज करने को कहा जाता रहा है। इसलिए जब कुछ पादरियों ने ओबामा के योग उद्यान की आलोचना की तो इसे निपट अज्ञान नहीं मानना चाहिए। अधिकांश ईसाई नेता योग को स्वास्थ्य लाभ की नजर से देखने के विरोधी हैं। यूरोप के बाप्टिस्ट और आंग्लिकन चर्च ने भी स्कूल में योगाभ्यास प्रतिबंधित करने की मांग की थी। क्त्रोएशिया के स्कूलों में चर्च के दबाव में योग शिक्षा हटाई गई।
अब्राहमी धार्मिक मतवाद की दोनों धाराएं योग से एक ही कारण दूरी रखती हैं कि यह हिंदू धर्म का अंग है और इसके अभ्यास से ईसाई या मुसलमान अपने मजहब से दूर होकर हिंदू चिंतन की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में हिंदुओं का क्या कर्तव्य बनता है? सबसे पहले तो यह कि योगाभ्यास से आगे बढ़कर संपूर्ण योग दर्शन को जानें। अपनी नई पीढ़ी की नियमित शिक्षा में इस चिंतन का समुचित परिचय अनिवार्य करें। यह समझें कि यदि योग व्यायाम में इतनी शक्ति है तो उस ज्ञान में कितनी होगी जिससे योगसूत्र जैसी कालजयी रचनाएं निकलीं। इसके बाद योग विरोधियों के साथ स्वस्थ विचार-विमर्श भी चलाना जरूरी है। यह रेखांकित करना कि एक ओर किसी विचार के प्रति लोगों की स्वत: ललक और दूसरी ओर चेतावनियों के बल पर किसी मतवाद से लोगों को जोड़े रखने के प्रयत्न में कितनी बड़ी विडंबना है। ऐसा विलगाव और कृत्रिम उपाय किस काम का और यह कितने दिन कायम रहेगा? व्हाइट हाउस का योग उद्यान और उसके विरोध जैसी घटनाएं अवसर देती हैं कि हम जरूरी, मगर कठिन विषयों से बचना छोड़ें। यही हमारा धर्म है। इसमें हमारा ही नहीं संपूर्ण मानवता का हित जुड़ा है। ऐसे छोटे-छोटे प्रसंगों पर खुला विमर्श वस्तुत: बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाने के रास्ते खोल सकता है। आज नहीं तो कल यह समझना ही होगा। पंथनिरपेक्षता की झक ने भारतीय बौद्धिक वर्ग को सचेत हिंदू विरोधी बना दिया है, वरना स्वामी विवेकानंद के सवा सौ वर्ष बाद भी हमारा बौद्धिक वर्ग ऐसे प्रसंगों से नहीं कतराता।
[लेखक एस. शंकर, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

ईसाई धर्म प्रचारक पीटर यनग्रेन की यात्रा का विरोध

http://abpnews.newsbullet.in/ind/34-more/46315-2013-04-03-03-21-31
ईसाई धर्म प्रचारक पीटर यनग्रेन के आज नागपुर में होने वाले कार्यक्रम पर विश्व हिंदू परिषद के साथ कई दूसरे संगठनों ने भी एतराज जताया है.

कन्नौज में धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ से तनाव

http://www.jagran.com/news/national-demolition-at-the-site-of-religious-tension-in-kannauj-10265185.html
शरारती तत्वों ने एक धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ कर उत्तर प्रदेश में कन्नौज के अमनचैन में खलल डालने की कोशिश की। घटना की जानकारी पर पूरे छिबरामऊ कस्बे में तनाव फैल गया। एक संप्रदाय विशेष के कुछ लोगों ने हंगामा भी किया। प्रशासन ने क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत करा हालात को काबू में करने का प्रयास किया।

अब लड़कियों को दी जा रही है जिहाद की ट्रेनिंग?

http://navbharattimes.indiatimes.com/other-news-mumbai/muslim-institute-training-girls-for-jihad-mumbai-police-memo-reveals/articleshow/19326291.cms
क्या महाराष्ट्र में मुस्लिम लड़कियों को जिहाद की ट्रेनिंग दी जा रही है? यह बात कहीं और नहीं बल्कि मुंबई पुलिस के एक सर्कुलर में कही गई है। सर्कुलर में बाकायदा मुंबई के एक संगठन का नाम लेकर कहा गया है कि वह मुस्लिम लड़कियों को न केवल मानसिक तौर पर जिहाद के लिए तैयार कर रहा है बल्कि उन्हें जिहाद के लिए ट्रेनिंग भी दे रहा है।

'भारत में आतंक के लिए तैयार हो रही युवाओं की फौज'

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/self-radicalized-muslim-youth-swelling-terror-groups-ranks/articleshow/19315398.cms
भारत में सक्रिय आतंकी संगठनों को अपने साथ लड़ाकों की नई जमात खड़ी करने के लिए अब ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं, क्योंकि कट्टरपंथी युवाओं की बड़ी फौज खुद ही उनके साथ जुड़ने के लिए आगे बढ़कर आ रहे है। इन युवाओं को लगता है कि 'मुस्लिमों के साथ अन्याय' हो रहा है, इसलिए वे खुदी ही कट्टरपंथी संगठनों से जुड़ रहे हैं ।

संजय दत्त से सहानुभूति तो प्रज्ञा, पुरोहित व असीमानंद से क्यों नहीं

http://www.jagran.com/news/national-sanjay-dutts-sympathisers-should-not-interfere-with-court-sentence-rss-10260868.html
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुखपत्र 'ऑर्गेनाइजर' ने फिल्म अभिनेता संजय दत्त की सजा माफ करने की पैरवी कर रहे लोगों की जमकर आलोचना की है। इसने कहा है कि दत्त से सहानुभूति रखने वालों को अदालत की सजा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

बांग्लादेश में हिंदुओं को ज्यादा सुरक्षा देने की मांग

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अल्पसंख्यक हिंदुओं को ज्यादा सुरक्षा दिए जाने की मांग की है।
http://www.jagran.com/news/world-hindus-in-bangladesh-demand-more-security-10261847.html

पाताल में मिला सरस्वती का पता

http://aajtak.intoday.in/story/muse-muse-detected-in-the-hell-did-1-724211.html
वैज्ञानिक साक्ष्य और उनके इर्द-गिर्द घूमते ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक तथ्य पाताल में लुप्त सरस्वती की गवाही दे रहे हैं. हालांकि विज्ञान आस्था से एक बात में सहमत नहीं है और इस असहमति के बहुत गंभीर मायने भी हैं. मान्यता है कि सरस्वती लुप्त होकर जमीन के अंदर बह रही है, जबकि आइआइटी का शोध कहता है कि नदी बह नहीं रही है, बल्कि उसकी भूमिगत घाटी में जल का बड़ा भंडार है.