Sunday, November 17, 2013

बीजेपी नेता का मर्डर, बवाल

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/21198316.cms
तमिलनाडु में बीजेपी के महासचिव वी. रमेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह वारदात बीती रात उनके घर के पास हुई। रमेश के शरीर पर चोटों के 17 निशान थे। हत्यारों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है। इस घटना के बाद तमिलनाडु में तनाव फैल गया है।

चुनावों का सांप्रदायीकरण

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-communalism-elections-10587411.html
कांग्रेस प्रवक्ता ने आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के गठन और इसके अस्तित्व की तार्किकता पर असाधारण बयान जारी किया है। इस संगठन को अवैध गतिविविधि (निरोधक) अधिनियम के तहत आतंकी संगठन घोषित किया गया है। संप्रग सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसे विदेशी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया है। इंग्लैंड में भी यह निषिद्ध है। गंभीर राजनीतिक विश्लेषकों की समझ से परे है कि कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता इस प्रतिबंधित संगठन के गठन को कैसे तर्कसंगत ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि इस संगठन का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद हुआ है।
संप्रग अपने अस्तित्व के दसवें साल में है। जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं संप्रग को सत्ता विरोधी रुझान का भय सता रहा है। संप्रग में नेतृत्व की विफलता स्पष्ट है। इसका नेतृत्व अप्रभावी है। इसकी सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है। सरकार को नहीं सूझ रहा है कि अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर कैसे लाया जाए। संप्रग ने भ्रष्टाचार को नए दिशासूचक सिद्धांत के रूप में राज्य की नीति में शामिल कर लिया है। संप्रग के दस साल का कुशासन अब बता रहा है कि कैसे भारत की विकास गाथा को ध्वस्त कर दिया गया। संप्रग के शासन के घटिया ट्रैक रिकॉर्ड के बाद आगामी चुनाव में प्रभावी और स्वच्छ सरकार मुख्य मुद्दा बन गया है। कांग्रेस की पारंपरिक रणनीति है कि अगर वह शासन में विफल हो गई है तो अपने आखिरी उपाय को आजमाएगी यानी कांग्रेस के प्रथम परिवार के तथाकथित करिश्मे को भुनाने का प्रयास करेगी। दुर्भाग्य से यह करिश्मा भी बेअसर साबित हो रहा है। संप्रग का मौजूदा नेतृत्व अप्रभावी है और नए नेतृत्व में नेतृत्व करने का गुण ही नहीं है।
शासन के संकट और नेतृत्व के अभाव का सामना कर रहा संप्रग हताशाजनक रूप से ऐसी रणनीति पर चल रहा है, जिससे लोगों का ध्यान गंभीर मुद्दों से हट जाए। उसका पूरा प्रयास है कि भारत की विकास गाथा को पटरी से उतारने वाला मुद्दा चुनाव में प्रमुखता हासिल न कर पाए। ऐसे में संप्रग के सामने केवल एक विकल्प बचता है। देश के राजतंत्र का सांप्रदायीकरण करके चुनावी मुद्दे को बदल दे। जो भी लोग संप्रग को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि चुनाव में मुख्य मुद्दा शासन ही बना रहना चाहिए, जिससे संप्रग कन्नी काट रहा है।
पिछले कुछ सप्ताह से संप्रग नेता राजतंत्र के सांप्रदायीकरण की नीति पर तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके तीन स्पष्ट संकेतक हैं। पहला, संप्रग ने अपने हमले नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर रखे हैं। गुजरात में शुरुआत में कांग्रेस नरेंद्र मोदी पर हमले की रणनीति पर ही चली थी। कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक जंग में मोदी हमेशा भारी पड़े। चुनावों में मोदी का प्रदर्शन बेहतर रहा। इस रणनीति से फायदा मिलने के बजाय नुकसान होने के कारण कांग्र्रेस ने वैकल्पिक रणनीति अपनाई और यह दर्शाया कि जहां तक उसके चुनाव अभियान का संबंध है, मोदी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। केंद्र में प्रथम चरण में कांग्रेस की रणनीति मोदी पर तगड़े हमले करने की है। इस प्रक्त्रिया में वह मोदी को केंद्रीय मंच ही उपलब्ध करा रही है। जल्द ही संप्रग को इन हमलों की प्रति-उत्पादकता का अहसास होगा और वह अपनी वैकल्पिक रणनीति पर उतर आएगी और मोदी की उपेक्षा का दिखावा करेगी। दूसरे, इशरत जहां मामले में सीबीआइ के माध्यम से केंद्र सरकार की रणनीति हैरान करने वाली है। इस मामले में सीबीआइ लश्करे-तैयबा से मृतकों के संबंधों की अनदेखी कर रही है। इस प्रकार उसने पूरे भारत की सुरक्षा व्यवस्था को दांव पर लगा दिया है। कथित पीड़ितों के लश्करे-तैयबा से संबंधों पर पहली चार्जशीट में चुप्पी क्यों साधी जाती है? क्या खुफिया ब्यूरो ने इस आतंकी नेटवर्क के बारे में कश्मीर से अपने स्नोतों से जानकारी जुटाई थी? क्या भारत का सुरक्षा तंत्र और हमारी खुफिया एजेंसियां लश्करे-तैयबा की बातचीत रिकॉर्ड करने, उन पर निगरानी रखने और उनसे पूछताछ करने का अधिकार नहीं रखतीं? क्या ये तमाम उपाय आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए हैं या फिर एक अपराध की साजिश रचने के लिए?
इस सवाल का जवाब इसमें निहित है कि कथित पीड़ितों के लश्करे-तैयबा से संबंध थे या नहीं? सरकार की जांच एजेंसी के नाते सीबीआइ ने लश्करे-तैयबा से इनके संबंधों पर चुप्पी साध ली। डेविड हेडली से इस आतंकी गिरोह के लश्करे-तैयबा से संबंधों के बारे में एनआइए की पूछताछ संबंधी पैरा 168 किसने मिटा दिया है? सीबीआइ इस हद तक चली गई कि उसने लश्करे-तैयबा के आतंकियों और उनके भारतीय संपकरें के आवाज के नमूनों को भी स्वीकार नहीं किया है। क्या सीबीआइ ने कुछ पुलिसवालों से साठगांठ कर ली है, जो कथित मुठभेड़ में शामिल थे और जो आरोपी से गवाह बन चुके हैं। ऐसा करके वे देश के खुफिया तंत्र और सुरक्षा ढांचे का अपमान करना चाहते हैं। मुठभेड़ की तह में जाए बगैर मैं यह सवाल इसलिए उठाता हूं, क्योंकि ये संकेत हैं कि लश्करे-तैयबा के आतंकियों को शहीद और भारत के सुरक्षा और खुफिया तंत्र को खलनायक सिद्ध करने के सायास प्रयास किए जा रहे हैं। क्या यह वोट बैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाने की सायास रणनीति नहीं है?
तीसरे, इसी संदर्भ में इंडियन मुजाहिदीन पर शकील अहमद के बयान की पड़ताल होनी चाहिए। 9/11 के बाद विभिन्न आतंकी समूहों पर वैश्रि्वक ध्यानाकर्षण रहा है। पाकिस्तान पर भारत में सीमापार से आतंकवाद फैलाने का आरोप था। 9/11 से पाकिस्तान पर अपनी धरती से आतंकी गतिविधियां बंद करने का जबरदस्त दबाव पड़ा। राजग सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया था। इस परिप्रेक्ष्य में इंडियन मुजाहिदीन का गठन हुआ। पाकिस्तान एक ऐसा संगठन खड़ा करना चाहता था जो भारतीय लगे और जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय काम करें। बम बनाने की तकनीक और पैसा सीमापार से मुहैया कराया गया। इस संगठन में भारतीयों की मौजूदगी के कारण भारत में हर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान अपनी संलिप्तता से आसानी से इन्कार कर पाया। अपने गठन से ही इंडियन मुजाहिदीन भारत में बड़े हमलों का जिम्मेदार रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता ने इतिहास का पुनर्लेखन करने का प्रयास किया है। उनका प्रयास इंडियन मुजाहिदीन को गुजरात दंगों के शिकार लोगों के संगठन के रूप में प्रस्तुत करने का है। वह इंडियन मुजाहिदीन के गठन के पीछे पाकिस्तान की रणनीति की अनदेखी कर रहे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के सांप्रदायीकरण का एक और हताशापूर्ण प्रयास है।
[लेखक अरुण जेटली, राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं]

स्पेस में मैसेज भेजने के लिए संस्कृत है बेस्ट लैंग्वेज

http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/sanskrit-is-the-most-useful-language-for-communicating-with-space-travellers/articleshow/21085600.cms
 आजकल हर तरफ इंग्लिश का बोलबाला है। साइंस से लेकर वर्किंग लैंग्वेज के रूप में अपनी जगह बना चुकी इंग्लिश अब वक्त की जरूरत बन चुकी है। लेकिन अगर हम कहें कि इस जरूरत की भी अपनी कुछ कमजोरियां हैं जिनका सलूशन केवल संस्कृत के पास है तो निश्चित तौर पर आप पूछेंगे कैसे?

पाकिस्तान में हिंदू रेप के सबसे बुरे शिकारः अमेरिकी रिपोर्ट

http://navbharattimes.indiatimes.com/world/pakistan/hindus-in-pakistan-are-worst-rape-victims-in-pakistan/articleshow/21169543.cms
इस्लामाबाद।। पाकिस्तान में हिंदू रेप के सबसे बुरे शिकार हैं। एक इंडिपेंडेंट अमेरिकी ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की स्टडी में कहा गया है कि पिछले 18 महीनों के दौरान सात हिंदू लड़कियों के साथ रेप की घटना घटी।

रोड पर नमाज पढ़ने को लेकर मेरठ में तनाव

http://navbharattimes.indiatimes.com/other-cities/meerut/tension-in-meerut-over-namaz-on-road/articleshow/21013272.cms
रोड पर नमाज पढ़ने को लेकर मेरठ में दो समुदायों के बीच बुधवार को तनाव पैदा हो गया। सूचना मिलते ही काफी संख्या में पुलिस और प्रशासनिक ऑफिसरों ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस बल की मौजूदगी में लोगों ने नमाज अदा की। ऑफिसरों ने दोनों समुदायों को आश्वासन दिया है कि गुरुवार को इस मसले का हल निकाल लिया जाएगा। इसके बाद जाकर तनाव थोड़ा कम हुआ। हिंदूवादी संगठनों ने चेतावनी दी है कि सड़क पर किसी भी हालत में नमाज नहीं होने देंगे।

दिग्विजय के ट्वीट से नाराज कांग्रेसी नेता बीजेपी में शामिल

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/21017163.cms
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के ट्वीट का खामियाजा मध्य प्रदेश कांग्रेस को भुगतना पड़ा है। राज्य में कांग्रेस विधानमंडल दल के उपनेता राकेश सिंह चतुर्वेदी ने बागी रुख अपनाते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया है। चतुर्वेदी का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का पूरा घटनाक्रम भी कम नाटकीय नहीं रहा।

‘आतंकी थी इशरत, बिहार की बेटी बताकर जनता का अपमान न करे JDU’

http://aajtak.intoday.in/story/ishrat-jahan-was-a-terrorist-says-chinmayanand-1-736049.html
पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद का कहना है कि गृह मंत्रालय के अधीन आईबी की रिपोर्ट में यह साबित हो चुका है कि इशरत जहां आतंकवादी थी. फिर भी हमारे पूर्व सहयोगी जेडीयू के नेता इशरत जहां को बिहार की बेटी बताकर वहां की जनता का अपमान कर रहे हैं.

साड़ी पहने मदर मेरी और ईसा की मूर्ति पर विवाद

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/east-india/mother-mary-statue-in-tribal-attire-stirs-row-in-jharkhand/articleshow/21004786.cms
झारखंड के रांची के धुर्वा में लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहने और गोद में ईसा मसीह को उठाए हुए मदर मेरी की आदिवासी लुक वाली मूर्ति को लेकर गैर-ईसाइयों का एक धड़ा गुस्से में है। इस बाबत विवाद इस कदर बढ़ गया है कि इस मूर्ति को हटाए जाने की मांग कर रहे लोगों ने इस बाबत रैली निकाली है और इसे स्थानीय लोगों को 'बहकाने' वाला बताया है। विरोध कर रहे लोगों ने चेताया है कि यदि तुरंत मूर्ति नहीं हटाई गई तो देश भर में विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।

इंडियन मुजाहिदीन ने किए धमाके!

http://www.jagran.com/news/national-indian-mujahideen-behind-bodhgaya-blasts-10547884.html
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भले ही बोधगया धमाकों की साजिश के लिए भाजपा की ओर इशारा कर रहे हों, लेकिन गृह मंत्रालय का संदेह इंडियन मुजाहिदीन पर ही है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि हमारे पास पहले से जानकारी थी कि आइएम महाबोधि मंदिर में धमाके की योजना बना रहा है और इस पर संदेह का कोई कारण नहीं है। उन्होंने हालांकि स्वीकार किया कि इस वारदात को अंजाम देने वाले आतंकियों का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने महाराष्ट्र में कहा कि महाबोधि मंदिर परिसर में 13 बम लगाए गए थे, जिनमें से दस में विस्फोट हुए।

आतंकियों को आमंत्रण

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-invitation-to-terrorists-10547880.html
अभी तक यह आम धारणा रही है कि आतंकी गतिविधियों को लेकर खुफिया ब्यूरो यानी आइबी के एलर्ट रस्मी ही हुआ करते हैं और उनमें ऐसी कोई खास जानकारी नहीं रहती कि संबंधित राज्य की पुलिस कुछ खास कर सके, लेकिन शायद ऐसा नहीं है। महाबोधि मंदिर में धमाकों के बाद यह स्पष्ट हो रहा है कि आइबी के एलर्ट काम के होते हैं और अगर उन पर ध्यान दिया जाए तो आतंकियों पर अंकुश संभव है। दुर्भाग्य से बिहार सरकार ने आइबी एलर्ट पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और वह भी तब जब उसे कई बार ऐसे एलर्ट मिले। बिहार सरकार ने आइबी एलर्ट पर ध्यान देने के बजाय इस पर गौर किया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी रह-रहकर उसके यहां के लोगों को गिरफ्तार क्यों कर रही है? दरभंगा जिले से इन लोगों की गिरफ्तारी पर चेतने के बजाय बिहार सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी पर ही सवाल उठा दिया। उसकी आपत्तिइस पर थी कि गिरफ्तार किए जा रहे लोगों को 'दरभंगा माड्यूल' का हिस्सा क्यों बताया जा रहा है? उसने यह आपत्तिइसके बावजूद उठाई कि इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठन का कुख्यात सरगना यासीन भटकल दरभंगा जिले के एक गांव में महीनों रहकर आतंकियों को तैयार करता रहा।
यह संभवत: पहली बार है कि आतंकी धमाकों को लेकर आलोचनाओं के घेरे में आई राज्य सरकार केंद्र सरकार पर ऐसी कोई तोहमत मढ़ने की स्थिति में नहीं है कि उसकी एजेंसियों की ओर से कोई चेतावनी नहीं दी गई और जो दी भी गई वह किसी काम की नहीं थी। शायद केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के लिए इससे ज्यादा सटीक सूचनाएं देना संभव नहीं है और अगर वे देने में सक्षम हो जाएं तो भी आगे का काम राज्य सरकारों और उनकी पुलिस को ही करना होगा। मुश्किल यह है कि राज्यों को एनसीटीसी जैसी संस्था मंजूर नहीं। वे कानून एवं व्यवस्था के मामले में केंद्र का कोई हस्तक्षेप सहने को तैयार नहीं। अपनी-अपनी पुलिस को मजबूत करने का काम भी उनकी प्राथमिकता से बाहर है। बिहार में तमाम संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी और नेपाल से लगती सीमा से उनकी घुसपैठ की प्रबल आशंका के बावजूद बिहार सरकार ने आतंक रोधी दस्ते के गठन के केंद्र सरकार के सुझाव पर ध्यान न देना बेहतर समझा।
कानून एवं व्यवस्था के तंत्र को दुरुस्त करने के मामले में जो स्थिति बिहार की है वही ज्यादातर राज्यों की भी है। राज्य सरकारें यह देखने से इन्कार कर रही हैं कि आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने तत्व मजबूत होते जा रहे हैं और उनके मुकाबले उनका सुरक्षा तंत्र कहीं अधिक कमजोर है। आंध्र प्रदेश के नक्सलियों ने शेष देश के नक्सलियों से हाथ मिलाकर खुद को एकजुट और मजबूत कर लिया, लेकिन नक्सल प्रभावित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री एक के बाद एक अनगिनत बैठकों के बावजूद नक्सलवाद से निपटने के तरीकों पर एकमत नहीं हो सके हैं। यही स्थिति आतंकी तत्वों से निपटने के मामले में भी है। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने दक्षिण से निकलकर उत्तार भारत में अपनी जड़ें जमा लीं और फिर भी राज्य सरकारें कई बार इस पर उलझ पड़ती हैं कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी या किसी अन्य राज्य की पुलिस ने उसकी जानकारी के बगैर उसके यहां के किसी संदिग्ध को गिरफ्तार कैसे कर लिया। राज्यों के इस रवैये के साथ-साथ आतंकवाद को लेकर की जाने वाली सस्ती राजनीति ने भी आंतरिक सुरक्षा का बेड़ा गर्क कर रखा है। इस पर आश्चर्य नहीं कि महाबोधि मंदिर में विस्फोट होते ही सियासी बयान धमाकों की तरह गूंजने लगे। इस मामले में किसी भी दल के नेता पीछे नहीं रहे, लेकिन सबसे अव्वल रहे कांग्रेस के मुखर महासचिव दिग्विजय सिंह। कभी-कभार धीर-गंभीर, लेकिन ज्यादातर मौकों पर शरारत भरे बयान देने में माहिर दिग्विजय सिंह ने पहले यह कहा कि गैर भाजपा शासित राज्य सतर्क रहें। इस बयान के जरिये उन्होंने यह संदेश दिया कि हो न हो भाजपा वाले ही विस्फोट कराते हैं अथवा उनसे मिले रहते हैं। जब इस बयान से उनका जी नहीं भरा तो उन्होंने ट्विटर पर यह लिख मारा, ''अमित शाह अयोध्या में भव्य मंदिर का वायदा करते हैं और मोदी बिहार के भाजपा कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि वे नीतीश को सबक सिखाएं। अगले दिन महाबोधि में विस्फोट हो जाते हैं। क्या इसमें कोई संबंध है?'' यह सवाल की शक्ल में किया गया प्रहार है। क्या इसका मतलब ऐसा कुछ नहीं निकलता कि नरेंद्र मोदी ने पहले तो नीतीश कुमार को धमकाया और फिर किसी को भेजकर-उकसाकर महाबोधि मंदिर में धमाके करा दिए? दिग्विजय सिंह ने मोदी पर निशाना साधने के लिए बड़ी सफाई से उनके इस बयान को तोड़-मरोड़ डाला कि बिहार की जनता नीतीश कुमार को सबक सिखाएगी।
देश में जिस तरह नरेंद्र मोदी के तमाम प्रशंसक हैं उसी तरह उनके विरोधी भी बहुत हैं। स्पष्ट है कि मोदी के विरोधियों को दिग्विजय सिंह का बयान बहुत भाया होगा, लेकिन जिन तत्वों ने महाबोधि मंदिर में विस्फोट किए होंगे अथवा जो रह-रह कर विस्फोट करके देश को दहशतजदा करते रहते हैं वे तो आनंद से भर उठ होंगे। आतंकियों को आनंदित करने का यह काम कुछ और लोग भी कर रहे हैं। फिलहाल इस काम में सीबीआइ भी मशगूल दिख रही है। इशरत जहां मुठभेड़ कांड की जांच के बहाने उसने आइबी की ऐसी घेरेबंदी कर रखी है कि वह त्राहिमाम की हालत में आ गई है। आश्चर्यजनक यह है कि कोई भी आइबी की गुहार सुनने को तैयार नहीं-न राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और न ही प्रधानमंत्री। शायद संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लोभ में केंद्रीय सत्ता के नीति-नियंता यह भूल रहे हैं कि भविष्य में आइबी से किसी तरह के अलर्ट की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? क्या मौजूदा हालात नक्सलियों, आतंकियों और अन्य देश विरोधी तत्वों को सादर आमंत्रित करने वाले नहीं नजर आते?
[लेखक राजीव सचान, दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं]