बीबीसी , 26 दिसंबर, २००८, बांग्लादेश की राजधानी का पुराना इलाक़ा बिल्कुल दिल्ली के चांदनी चौक जैसा दिखता है. वही सकरी गलियाँ और छोटी-छोटी दुकानें.
यहाँ के ताते बाज़ार और शाखारी बाज़ार में कई हिंदू रहते है. जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की तस्वीरें दिख जातीं हैं.
यहाँ के जगन्नाथ मंदिर के कर्ता-धर्ता और पेशे से सुनार बाबुल चंद्र दास का कहना है कि अल्पसंख्यक, ख़ासकर हिंदुओं की स्थिति यहाँ बहुत ख़राब है.
उन्होंने कहा, ''पिछले चुनावों के बाद भड़की हिंसा को हम नही भूल सकते. हमें आज भी डर है कि हम वोट डालने जाएँ या नहीं, क्योंकि बाद में हमारे ऊपर हमले भी हो सकते हैं. हमें कहा जाता है कि आप हिंदू हो भारत चले जाओ, हमने भी 1971 की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और अब हमारे पास कोई अधिकार नहीं है.''
नज़ारा अलग है
लेकिन ढाका के शाखारी बाज़ार का नज़ारा एकदम अलग है. यहाँ लगभग पूरी आबादी ही हिंदुओ की है. इक्का-दुक्का मुसलमान यहाँ दिख जाएँगे.
यहाँ पर होटल चला रहे दीपक नाग कहते है, ''यहाँ कोई समस्या नहीं है क्योंकि यहाँ हम मज़बूत स्थिति में है. हाँ, गाँवों में हिंदू उत्पीड़न झेलते हैं. ढाका के इस बाज़ार में कोई हमें नहीं छू सकता.''
शाखरी बाज़ार बाक़ी देश से काफ़ी अलग है. बांग्लादेश में करीब 8-10 प्रतिशत हिंदू है, पर सामाजिक कार्यकर्ताओ की मानें तो ये संख्या काफ़ी ज़्यादा है और सरकारी आँकड़े पूरी सच्चाई बयां नहीं करते.
लेखक, पत्रकार और फ़िल्मकार शहरयार कबीर कहते हैं, ''खेद की बात है की बांग्लादेश में हिंदू हाशिए पर है. उनका संसद में, प्रशासन में सही प्रतिनिधित्व नहीं है."
इस्लामी राष्ट्र
वो कहते हैं कि संविधान को ज़िया उर रहमान ने धर्मनिरपेक्ष से बदल कर इस्लामी रूप दे दिया था और फिर जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्र धर्म का दर्जा दे दिया.
जिस भी हिंदू से बात करते हैं वो 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है. शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ. बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज, चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला. घर, मंदिर, धान की फ़सले जला दी गई. ये हिंसा महीनों चली
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इसके बाद हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए. हिंदुओ से भेदभाव और उनका दमन जारी है और वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा आज भी दहशत फैला रही है.
कबीर के अनुसार देश में भय का माहौल है और जैसे-जैसे इस्लामी चरमपंथ उभर रहा है, धर्मनिरपेक्ष ताक़तों की जगह कम होती जा रही है.
हालाँकि यहाँ के हिंदू स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते और अपने को मुख्यधारा के हिस्से के रूप में देखते है. काजोल देबनाथ हिंदू बोद्ध ईसाई एकता परिषद से जुड़े हैं और वे बताते हैं कि जब पूर्वी पाकिस्तान था तब राष्ट्रीय असेंबली की 309 में से 72 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं.
उनका कहना है कि अल्पसंख्यकों ने अलग सीटों की बजाए सम्मिलित सीटों की मांग की. पर आज हालत यह है की आवामी लीग ने क़रीब 15 तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने केवल चार से पाँच अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े किए हैं.
काजोल देबनाथ का कहना है, "जिस भी हिंदू से बात करते हैं वो 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है. शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ. बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज, चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला. घर, मंदिर धान की फ़सले जला दी गई. ये हिंसा महीनों चली.''
भारत का असर
ढाका विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर अजय राय कहते हैं, "और तो और लड़कियों के साथ बदसलूकी होती है. सिंदूर और बिंदी लगाने पर फ़िकरे कसे जाते है. भारत की घटनाओं का असर भी बांग्लादेश के हिंदू झेलते है."
अजय राय का कहना है, ''जब भारत में कुछ घटनाएँ होती हैं, जैसे गुजरात या बाबरी मस्जिद विध्वंस, यहाँ प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है. बाबरी विध्वंस के बाद यहाँ हिंदू पूजा स्थलों पर कई हमले हुए. अल्पसंख्यकों की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लेने की समस्या लगातार बनी रहती हैं क्योंकि वे कमज़ोर है और सरकार और प्रशासन का भी साथ उन्हें नहीं मिलता.
अजय राय एक ग़ैर सरकारी संस्था संपृति मंच के ज़रिए क़ानून-व्यवस्था पर नज़र रख रहे हैं और अल्पसख्यकों से चुनाव में बेख़ौफ़ हिस्सा लेने का आह्वान कर रहे हैं. साथ ही किसी भी हिंसक घटना या डराने-धमकाने की कोशिश को चुनाव आयोग तक पहुँचा रहे हैं.
लेकिन हिंदू समुदाय चुनाव के बाद और सरकार गठन के दौर में संभावित हिंसा से अब भी चिंतित है
आपको को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
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