Tuesday, July 3, 2012

सेतुसमुद्रम: 'वैकल्पिक रास्ता व्यावहारिक नहीं'

भारत सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि एक उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट से संकेत मिले हैं कि सेतुसमुद्रम परियोजना पर वैकल्पिक रास्ता पर्यावरण के मुताबिक और आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/07/120702_ramsethu_route_ac.shtml

पाकिस्तान में श्रीमद्भगवद गीता पर प्रतियोगिता

कराची। धार्मिक असहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अच्छी खबर है। कराची के एक स्कूल में श्रीमद्भगवद गीता पर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजित कराई जा रही है। इस प्रतियोगिता का मकसद हिंदू लड़के-लड़कियों को उनके धर्म से जुड़ी शिक्षा देना है।
http://www.jagran.com/news/world-bhagavad-gita-quiz-contest-in-pakistan-9430535.html

कश्मीरी पंडितों के लिए बन रहे आवास का विरोध

श्रीनगर। कश्मीरी पंडितों को दिल से लगाकर रखने के दावे करने वाले कट्टरपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने सोमवार को वादी में कश्मीरी विस्थापित पंडितों के लिए दी जा रही ट्रांजिट आवासीय सुविधा का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह कश्मीर की मुस्लिम आबादी को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश है। हम किसी भी सूरत में इन आवासीय कॉलोनियों को नहीं बनने देंगे।
http://www.jagran.com/news/national-gilani-opposes-to-make-transit-homes-for-kashmiri-pandit-9430530.html

Thursday, June 14, 2012

संविधान संशोधन कर अल्पसंख्यकों से न्याय करे केंद्र

नई दिल्ली। अल्पसंख्यक कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताते हुए सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि यदि इस मामले पर केंद्र सरकार की नीयत साफ है तो संविधान में संशोधन कर ऐसा प्रावधान करे कि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ न्याय हो सके। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झटका देते हुए मुस्लिम कोटा माने जाने वाले 4.5 फीसद अल्पसंख्यक आरक्षण मामले में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। अब माना जा रहा है कि यह मामला संवैधानिक पीठ के समक्ष पेश किया जा सकता है। भाजपा ने सुप्रीम के फैसले पर संतोष व्यक्त किया है।
http://www.jagran.com/news/national-supreme-court-refuse-to-stay-on-quota-decision-9363677.html

हिंदू छात्रों तक हो छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार: बीजेपी

चेन्नै।। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए केंद्र की छात्रवृत्ति योजना को 'भेदभाव पूर्ण' बताते हुए राज्य बीजेपी इकाई ने इसका विस्तार हिंदू छात्रों तक किए जाने की मांग की है और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता से इस मामले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने को कहा है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/13867154.cms

Wednesday, June 13, 2012

अल्पसंख्यक आरक्षण को सही ठहराने की कोशिश

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को अल्पसंख्यक आरक्षण से जुड़े दस्तावेज सुप्रीमकोर्ट को सौंपे। 1800 पन्ने के इन दस्तावेजों में सरकार ने अल्पसंख्यक आरक्षण के समर्थन में कई तर्क पेश किए हैं। इनमें मुसलमानों को गरीब बताकर उनके लिए आरक्षण की वकालत करने वाली राजेंद्र सच्चर समिति की रिपोर्ट भी शामिल है। वर्ष 1993 में तैयार की गई मुस्लिमों की पिछड़ी हुई जातियों की सूची भी दस्तावेजों के साथ पेश की गई है। सरकार ने कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों का हवाला देते हुए अपने पक्ष को मजबूती से रखा। इसके अलावा दस्तावेजों में मंडल समिति और रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट भी शामिल है।
http://www.jagran.com/news/national-centre-submits-in-supreme-court-relevant-material-on-the-issue-of-quota-for-minorities-9360158.html

Saturday, June 9, 2012

दिल्ली में पांडव कालीन मंदिर तोड़ने की 'कोशिश' नाकाम

नई दिल्ली।। राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक पुराना किला स्थित पाण्डव कालीन कुन्ती मन्दिर को कथित तौर पर तोड़े जाने के सरकारी आदेश से इस इलाके में दिन भर गहमा गहमी रही। मंदिर बचाने के नाम पर इकट्ठा हुई भीड़ कथित सरकारी आदेश से नाराज थी। आखिरकार, मंदिर में किसी भी तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई पर हाईकोर्ट का स्टे आ जाने के बाद यह मामला सुलझा और भीड़ वापस लौटी।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/13972418.cms

यूपी: दरोगा भर्ती में मुसलमानों के लिए 18% कोटा

लखनऊ।। उत्तर प्रदेश में होने जा रही पुलिस सब-इंस्पेक्टरों की भर्ती में राज्य सरकार सच्चर कमिटी की सिफारिशों का पालन करते हुए मुसलमानों को 18% रिजर्वेशन देगी। समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी मुसलमानों को 18% रिजर्वेशन देने का वादा किया था।
http://navbharattimes.indiatimes.com/up-18-reservation-for-muslim-sub-inspector-recruitment/articleshow/13953906.cms

Thursday, June 7, 2012

बेकार नहीं गई फई की दावतें



बेकार नहीं गई फई की दावतें

कश्मीर पर तो सन 1947 से सैकड़ों किस्म की राय, सलाह और रूपरेखाएं दी जाती रही हैं। लॉर्ड माउंटबेटन से लेकर गुलाम नबी फई और श्रीअरविंद से लेकर पनुन कश्मीर तक की अनगिनत सलाहें पुस्तकालयों से लेकर मंत्रालयों की फाइलों में उपलब्ध हैं। तब कश्मीर समस्या पर इस नवीनतम त्रि-सदस्यीय कमेटी द्वारा सुझाए गए समाधान की रूपरेखा किस बात में भिन्न है? इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक एक पुराने, प्रचलन से बाहर के अंग्रेजी शब्द के सहारे दिया है, ए कॉम्पैक्ट विद द पीपल ऑफ जम्मू एंड कश्मीर। यहां कॉम्पैक्ट शब्द रहस्यमय है, क्योंकि इसका अर्थ शब्दकोष और सामान्य प्रयोग से नहीं निकलेगा। मगर रिपोर्ट पढ़कर समझ में आ जाता है कि कॉम्पैक्ट की आड़ में पैक्ट यानी समझौता कहा जा रहा है। तब इस छोटे, स्पष्ट शब्द के बदले अस्पष्ट शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? क्या इसमें बिना साफ कहे कुछ अकथ कहने की कोशिश या कुछ कहकर उससे मुकरने का रास्ता खुला रखने की चतुराई बरती गई है? जिस अर्थ में इस कमेटी ने कॉम्पैक्ट शब्द का प्रयोग किया है, वैसा प्रयोग सदियों पहले शेक्सपीयर ने अपने नाटक जूलियस सीजर में किया था, ाट कॉम्पैक्ट मीन यू टु हैव विद अस? दिलचस्प बात यह है कि ठीक यही प्रश्न इस कमेटी से भारतीय जनता पूछ सकती है कि हमारे साथ तुम्हारा कौन सा करार रखने का इरादा है? क्या तुम हमारे मित्रों में गिने जाओगे या हम तुम पर कोई भरोसा न रखें? यानी वही जो शेक्सपीयर के पात्र ने अपने संदिग्ध मित्र से पूछा था। यह प्रश्न निराधार नहीं होगा। यह रिपोर्ट आरंभ से ही कटु सच्चाइयों से सायास बचने की कोशिश करती है। कश्मीर समस्या के जन्म से ही उसमें एक मजहबी तत्व रहा है, जिसकी अनदेखी कर रिपोर्ट में केवल सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर विविध बातें एकत्र की गई हैं। फिर, रिपोर्ट के अनुसार कमेटी ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित वृहत साहित्य का भी अध्ययन किया, लेकिन उन पुस्तकों की सूची परिशिष्ट में नहीं दी गई है, जबकि अनेक अनावश्यक चीजें वहां हैं। इससे पता चलता कि कितना महत्वपूर्ण साहित्य कमेटी सदस्यों ने नहीं पढ़ा अथवा यदि पढ़ा तो उसकी बातें पूरी तरह उपेक्षित कीं। उदाहरण के लिए, कश्मीर घाटी से भगाए गए कश्मीरी हिंदुओं द्वारा हर विधा में लिखा गया विस्थापन साहित्य। इसमें वर्तमान से लेकर पीछे पीढि़यों तक के लंबे जीवंत कश्मीरी अनुभव हैं। सामाजिक-आर्थिक से लेकर राजनीतिक-सांस्कृतिक और मजहबी, मनोवैज्ञानिक तक। आजकल के कवियों की भाषा में कहें, तो स्वयं का भोगा हुआ यथार्थ। समाज विज्ञान की भाषा में कहें तो प्राथमिक श्चोतों के तथ्य और प्रमाण। इस रिपोर्ट में वह कहीं नहीं झलकता। कश्मीरी हिंदुओं के बारे में रिपोर्ट लगभग चुप है। रिपोर्ट के कुल 176 पृष्ठों में कुल दो पेज भर सामग्री भी कश्मीरी हिंदुओं को नहीं दी गई है। जो कहा भी गया है, वह नेशनल कांफ्रेंस द्वारा समय-समय पर कही जाने वाली इक्का-दुक्का रस्मी उक्तियों से कुछ भिन्न नहीं है। सच तो यह है कि कमेटी की रिपोर्ट उन लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सही-सही पहचानने से भी इंकार करती है। सच से बचने वाली अपनी राजनीति संगत भाषा में उन्हें जड़ से उखड़े लोग कहती है। मगर इन उखड़े हुए लोगों की कही गई कोई बुनियादी बात रिपोर्ट में नहीं झलकती। कारण शायद यह है कि रिपोर्ट के शब्दों में, हमने इस राज्य को परेशान करने वाली अनगिनत समस्याओं को किसी एक क्षेत्र या जाति या मजहबी समुदाय की दृष्टि से देखने की गलती से बचने की कोशिश की है। ऊपर से सुंदर लगने वाली इस बात का वास्तविक, व्यवहारिक अर्थ यह भी हो सकता है कि कमेटी ने पहले से ही किसी भी क्षेत्र, समुदाय या मजहब को दोष न देना तय कर लिया था। जैसे, यह बुनियादी तथ्य कि कश्मीर-समस्या पाकिस्तान-समस्या से जन्मी और आज भी अभिन्न रूप से जुड़ी है। अब जिसने तय कर लिया हो कि उसे किसी एक मजहब को चर्चा में लाना ही नहीं, वह बुनियादी बात भी नहीं उठाएगा। मगर ऐसी समदर्शी दृष्टि जो अलगाववादी और समन्वयवादी के बीच, उत्पीड़ित और उत्पीड़क के बीच भेद न करने पर आमादा हो, वह सभी असुविधानक सच्चाइयों से बचने की कोशिश करेगी ही। इसीलिए इस रिपोर्ट में हर कदम पर, बार-बार अधूरी संज्ञाएं और विशेषण मिलते हैं, जिनसे कोई बात स्पष्ट होने की बजाए धुंधलके में रह जाती है। ऐसी रिपोर्ट लिखने वाली कमेटी कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी हिंदुओं के बीच के बरायनाम संबंध से ऊपर, अलगाववादियों और समन्वयवादियों के विपरीत मनोभावों से ऊपर, इस्लाम और हिंदू धर्म के किसी भेद से ऊपर, भारत-पाकिस्तान के झगड़े से ऊपर उठी हुई है! रिपोर्ट पढ़कर लगता है कि अमेरिका में आइएसआइ के कश्मीरी एजेंट गुलाम नबी फई की दावतें बेकार नहीं गईं। एक जरूरी प्रश्न यह भी उठता है कि ऐसी समदर्शिता के साथ यह कमेटी किस का प्रतिनिधित्व कर रही थी? क्या कमेटी ने खुद उसी के शब्दों में राष्ट्रीय हित का प्रतिनिधित्व किया? ऐसा लगता नहीं, क्योंकि रिपोर्ट की पूरी भाषा नेशनल कांफेंस के मानवाधिकारी संगठनों, एक्टिविस्ट समूहों की भाषा से ही मिलती है। यह भारतीय राष्ट्रीय हितों की चिंता करने वाली भाषा से मेल नहीं खाती। यदि इन्हीं दृष्टियों से कश्मीर समस्या को देखना हो, तब याद रखें कि अमेरिकी सरकार, यूरोपीय संघ से लेकर सीआइए, आइएसआइ जैसी कई अंतरराष्ट्रीय सत्ताओं, एजेंसियों और उनके मुखौटे मानवाधिकारियों, एनजीओ की भी कश्मीर पर अपनी-अपनी स्थापित दृष्टि है। क्या इन दृष्टियों और इस कमेटी की दृष्टि में कोई भेद है? इस प्रश्न का उत्तर रिपोर्ट में ढूंढ़ना एक रोचक कार्य होगा।

अल्पसंख्यक कोटे पर सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सरकारी नौकरियों व केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यकों के 4.5 फीसदी कोटे के मामले में आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार अगले हफ्ते के शुरुआत में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। तात्कालिक मामला आइआइटी में दाखिलों से जुड़ा है। लिहाजा मानव संसाधन विकास मंत्रालय इसमें और देरी के मूड में नहीं है। हालाकि, शीर्ष अदालत जाने को लेकर कानून व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद की राय इससे जुदा है।
http://www.jagran.com/news/national-government-to-approach-sc-in-july-on-minority-subquota-issue-9343332.html