Friday, August 10, 2012

पाक में हिंदू युवती से दुष्कर्म

इस्लामाबाद। एक हिंदू युवती के जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में यहां एक मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया गया है। युवक ने दावा किया था कि युवती ने इस्लाम धर्म कबूल कर उससे निकाह किया था, जबकि युवती ने इन दावों को खारिज कर दिया।
http://www.jagran.com/news/world-pakistan-hindu-girl-denied-conversion-9547504.html

असम में हिंसा जारी, अब तक 73 की मौत

गुवाहाटी।। निचले असम के जिलों में हिंसा की ताजा घटना होने की खबरें हैं। असम में अब तक जारी जातीय हिंसा में 73 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार पहले ही इन दंगों की सीबीआई से जांच की बात कह चुकी है। मुख्य मंत्री ने बिगड़े हालात के लिए अंदरूनी और बाहरी दोनों तरह की ताकतों को जिम्मेदार बताया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15394176.cms

अवैध मस्जिद ढहाना बस में नहीं: दिल्ली पुलिस

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। लाल किले के पास सुभाष पार्क में बने अवैध मस्जिद के ढांचे को ढहाने के मामले में दिल्ली पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कई मजबूरियां बताते हुए पुलिस ने मंगलवार को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद ढहाने के फैसले में संशोधन करने की अपील की है। पुलिस ने क्षेत्र के विधायक शोएब इकबाल द्वारा मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने की मांग की है। अदालत 17 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
http://www.jagran.com/news/national-not-able-to-demolish-illigal-mosque-9547590.html

त्रासदी पर विचित्र खामोशी

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय खबरों के क्रम में पूर्वोत्तर भारत को सबसे निचला दर्जा हासिल है। जबानी जमाखर्च में तो खूब जोर दिया जाता है कि भारत के इस उपेक्षित भाग को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए, किंतु क्षेत्र की विलक्षण जटिलता और पहुंच में अपेक्षाकृत कठिनाई से यह सुनिश्चित हो जाता है कि यह तीसरी दुनिया में चौथी दुनिया है। पिछले दिनों असम के कोकराझाड़ और धुबड़ी जिलों में हुई हिंसा में पचास से अधिक लोग मारे गए तथा चार लाख से अधिक घर-द्वार छोड़ने को विवश हुए हैं। इस मुद्दे पर मीडिया का गढ़ा हुआ नया जुमला-मानवता पर संकट टीवी पर चर्चाओं में छा जाना चाहिए था और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ मच जानी चाहिए थी। ओडिशा के कंधमाल जिले में 2009 का संकट इससे हल्का होते हुए भी कहीं अधिक ध्यान खींच ले गया था। 2002 के गुजरात दंगों के बारे में तो कुछ कहना ही बेकार है, जो अब तक मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। दुर्भाग्य से ब्रंापुत्र नदी के उत्तरी किनारे के हालात इतने जटिल हैं कि यहां अच्छे और बुरे के बीच भेद करना मुश्किल है। क्या यह हिंदू बोडो और मुस्लिम घुसपैठियों के बीच टकराव है, जो बांग्लादेश से आकर यहां बस गए हैं? या फिर यह मूल निवासी बोडो और बंगाली भाषी अप्रवासियों के बीच संघर्ष है? अहम बात यह है कि सांप्रदायिक दंगे अस्वीकार्य हैं और जातीय संघर्ष इतनी भ?र्त्सना के काबिल नहीं है। धीरे-धीरे टीवी चैनलों पर कुछ सवाल उभरने शुरू हुए। क्या दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई में असम सरकार ने देरी की? छह जुलाई को कोकराझाड़ में दो मुसलमानों की हत्या और 20 जुलाई को बदले की कार्रवाई में चार बोडो कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद तरुण गोगोई सरकार ने हालात को काबू करने के त्वरित उपाय क्यों नहीं किए? क्या तरुण गोगोई के इस बयान में सच्चाई है कि सेना ने रक्षामंत्री एके एंटनी की अनुमति मिलने से पहले कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया था और इस कारण कार्रवाई में दो दिन की देरी हुई? क्या बोडो ट्राइबल काउंसिल के प्रमुख के इस कथन का कोई आधार है कि अंतरराष्ट्रीय सीमापार से आकर हथियारबंद बांग्लादेशियों ने हिंसा को भड़काया? इनमें से अधिकांश सवाल आधिकारिक जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भी अनुत्तरित रह जाएंगे। हालांकि यह स्पष्ट है कि इस पूर्वनियोजित हिंसा पर प्रशासन की दोषसिद्धि पर मीडिया और राजनीतिक तबका लीपापोती पर उतर आया है। कोकराझाड़ और धुबड़ी में हुई जातीय-सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ा एक असहज पहलू यह है कि निर्णायक शक्तियां इस त्रासदी पर कुछ नहीं करेंगी, उनके पास पेशकश के लिए कुछ है ही नहीं। असम में हिंसा की जड़ पिछले सौ वर्षो से निरंतर जारी जनसांख्यिकीय बदलाव में निहित है। बांग्लादेश से अप्रवासियों के रेले यहां बसते रहे और 1901 में 32.9 लाख की आबादी वाले असम की जनसंख्या 1971 में 1.46 करोड़ हो गई। इस कालखंड में असम की जनसंख्या 343.7 फीसदी बढ़ गई, जबकि इस दौरान भारत में जनसंख्या वृद्धि मात्र 150 फीसदी हुई। इसमें भी मुस्लिम आबादी बढ़ने की रफ्तार स्थानीय मूल निवासियों की वृद्धि दर से कहीं अधिक रही। पिछले सप्ताह चुनाव आयुक्त एमएस ब्रंा ने कहा कि 2011 की जनगणना से पता चल सकता है कि असम के 27 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बाहुल्य वाले हो गए हैं। बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ ब्रंापुत्र घाटी के असमभाषी हिंदुओं में चर्चा का विषय बन गई है, जबकि अविभाजित गोलपाड़ा जिले के बोडो भाषी अल्पसंख्यकों के लिए तो यह मुद्दा जीवन-मरण का सवाल बन गया है। बोडो भाषी अल्पसंख्यकों की आबादी असम की कुल आबादी का महज पांच प्रतिशत है। उन्हें असमभाषी बहुसंख्यक आबादी से सांस्कृतिक चुनौती मिल रही है, जबकि बांग्लादेशी मुसलमानों से उन्हें अपने अस्तित्व पर संकट नजर आ रहा है। नब्बे के दशक में हिंसक बोडो आंदोलन इस दोहरी चुनौती से निपटने का प्रयास था। इस आंदोलन के कारण ही 1993 में बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की अ?र्द्ध स्वायत्ताता स्थापित हुई। हालांकि इस हिंसक आंदोलन से हासिल अधिकांश लाभ मुस्लिम समुदाय के फैलाव से अब हाथ से फिसल गए हैं। मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन और असमिया परिषद के उदय के कारण बोडो-मुस्लिम टकराव शुरू हो गया। एआइयूडीएफ की इस मांग से तनाव और बढ़ गया कि बोडो टेरिटोरियल काउंसिल द्वारा शासित अधिकांश भागों में अब बोडो का बहुमत नहीं रह जाने के कारण इसे भंग कर दिया जाना चाहिए। पिछले सप्ताह तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि अब असम में विभिन्न समुदायों के लोग रह रहे हैं। इन सबको शांति के साथ रहना सीखना होगा। उन्होंने सीमा पर बाड़ लगाने अथवा अवैध घुसपैठ के खिलाफ बनाए गए लचर कानून में संशोधन पर एक शब्द नहीं बोला। दिसपुर में बोडो समर्थन और पूरे देश में मुस्लिम समर्थन को लेकर दुविधाग्रस्त कांग्रेस के पास बोडो गुत्थी सुलझाने के लिए अधिक उपाय नहीं हैं। अतीत में भारत के उदारवादी बुद्धिजीवी तथाकथित सांप्रदायिक सवाल पर बहुत मुखर थे, खासतौर पर अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना पर। असम में हिंसक घटनाओं पर इस तबके ने आश्चर्यचकित करने वाली चुप्पी ओढ़ रखी है। इसके कारण स्पष्ट हैं। बहुसंख्यकों की कथित बर्बरता तथा अल्पसंख्यकों की कमजोरी का चिरपरिचित फार्मूला धुबड़ी और कोकराझाड़ में फिट नहीं बैठता। असम में बोडो जाति चारो तरफ से घिर गई है। यहां बोडो एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता का शिकार है, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूती का लाभ क्षेत्रीय स्तर पर उठा रहा है। 2004 में, जब 2001 की जनगणना में असम में जनसांख्यिकीय बदलाव दृष्टिगोचर हुए तो खुफिया विभाग ने अपना सिर रेत में धंसा लिया और सुनिश्चित किया कि इस मुद्दे पर कोई सार्थक चर्चा न हो। एक बार फिर असम में यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। 1947 में मुस्लिम डरा-सहमा समुदाय था। 2012 में भारतीय पंथनिरपेक्षता ने अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं और उसने पंथिक अल्पसंख्यकों की गरिमा व राजनीतिक सशक्तीकरण सुनिश्चित किया है। हालांकि इससे एक समस्या उठती नजर आ रही है कि अल्पसंख्यकों का सशक्तीकरण कहीं अन्य लोगों के लिए अन्यायपूर्ण न हो जाए। असम के बोडो अल्पसंख्यकों के लिए पंथनिरपेक्ष राजनीति में उनकी पहचान और अस्तित्व का संकट निहित है। [लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9542584.html

असम में फिर भड़की हिंसा, पाच की मौत

कोकराझाड़ [जागरण संवाददाता]। असम में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। कोकराझाड़ में करीब दस दिन की शांति के बाद बीती रात फिर से माहौल गर्म हो गया। कोकराझाड़ में दो और चिरांग जिले में तीन लोगों की मारे जाने व छह घरों को जला देने की खबर है। मृतकों को गोली मोरी गई थी। इस सांप्रदायिक हिंसा में अब तक कुल 61 लोगों की मौत हो चुकी है। कोकराझाड़ से एक व्यक्ति लापता भी बताया जा रहा है।
http://www.jagran.com/news/national-assam-5-killed-in-fresh-violence-in-kokrajhar-9541017.html

हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए जयललिता ने दी 1.25 करोड़ रुपए की सब्सिडी

चेन्नै।। मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए मानसरोवर और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए हिंदू तीर्थ यात्रियों को सब्सिडी देने के लिए 1.25 करोड़ रुपए आवंटित किए।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15349922.cms

जुडिशरी ने सिमी पर बैन जारी रखा

नई दिल्ली।। एक विशेष न्यायाधिकरण ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर केन्द्र के बैन को बरकरार रखा। सिमी के पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा और इंडियन मुहाहिदीन के साथ तार जुडे़ हैं
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15337671.cms

पुणे में चार विस्फोट, गृहमंत्री का होना था दौरा

पुणे में बुधवार की शाम चार जगहों पर विस्फोट हुए। इस सीरियल ब्लास्ट से पूरे शहर में दहशत फैल गई। ये विस्फोट रात आठ बजे के करीब हुए। माना जा रहा है कि इन विस्फोटों में आतंकियों के हाथ हैं।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-247461.html

Saturday, August 4, 2012

करबला में दिखी टेंशन, फोर्स तैनात

भुजरियां विसर्जित किए जाने वाले विवादित स्थल करबला को लेकर गुरुवार को पुलिस प्रशासन टेंशन में दिखा। सुबह से ही यहां बड़ी संख्या में पुलिस तैनात रही। किसी भी व्यक्ति को अंदर नहीं जाने दिया गया। इसके बाद भी एक युवक यहां भुजरियां विसर्जित करने पहुंचा तो उसे पुलिस ने दबोच लिया।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/firozabad-9531700.html

कश्मीरी पंडितों को वादी छोड़ने का फरमान

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। उमर अब्दुल्ला सरकार पंडितों की वापसी लायक माहौल बनने के लाख दावे करे, लेकिन आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने कश्मीरी पंडितों को सात दिन के अंदर वादी छोड़ने का फरमान सुनाया है।