Monday, January 7, 2013

देश का इकलौता हिन्दू मंदिर गिराएगी रूस सरकार

http://navbharattimes.indiatimes.com/russias-only-hindu-temple-faces-threat-of-demolition/articleshow/17739492.cms
नई दि्ल्ली।। भगवद्गीता पर बैन लगाने की कोशिशों के साल भर बाद रूस की सरकार ने देश का एकमात्र मंदिर को गिराने का फैसला ले लिया है। 15 जनवरी 2013 तक मॉस्को स्थित इस इस्कॉन टेंपल का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।

पाकिस्तान में हिंदू चिकित्सक की गोली मारकर हत्या

http://aajtak.intoday.in/story/hindu-doctor-shot-dead-in-pakistan--1-715836.html
पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम अशांत प्रांत बलूचिस्तान में दो अलग अलग घटनाओं में एक प्रख्यात चिकित्सक और एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की गुरुवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई.

जिहाद के कारखाने

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion-9909645.html

चार साल पूर्व 26 नवंबर को मुंबई की सड़कों पर निरपराधों की लाशें बिछाने वाले आतंकियों में से एकमात्र जिंदा पकड़े गए अजमल कसाब को अंतत: फासी दे दी गई। कई विश्लेषकों ने इसे आतंक के एक अध्याय की समाप्ति की संज्ञा दी है। क्या यह उम्मीद सार्थक है? वास्तविकता तो यह है कि जिहाद की बुनियादी सच्चाइयों की अनदेखी कर आतंकवाद के खत्म होने की आशा करना बेमानी होने के साथ सभ्य समाज के प्रति बेईमानी भी है। कसाब को फासी दिए जाने के 24 घटों के अंदर ही कई इस्लामी आतंकी संगठनों ने भारतीयों को निशाना बनाकर बदला लेने की धमकी दी। ऐसा नहीं है कि इस्लामी कट्टरपंथियों के लिए केवल भारत और हिंदू ही दुश्मन हैं। अभी पाकिस्तान में मुहर्रम के जुलुस में शामिल शियाओं पर बहुसंख्यक सुन्नियों ने हमला कर दिया, जिसमें दर्जनों लोगों की जानें गई। ईरान में शिया बहुसंख्यक हैं। वहा सुन्नी शियाओं के निशाने पर रहते हैं। इराक में करीब हर रोज अल्पसंख्यक सुन्नियों पर बहुसंख्यक शियाओं के बम फटते हैं। इस्लाम को ही मानने वाले दो संप्रदायों के बीच यह टकराव क्यों? और उस हिंसा की प्रेरणा क्या है?
इस संदर्भ में पिछले दिनों एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल राष्ट्र का बुनियादी पहलू यह है कि वहा न केवल अल्पसंख्यक समुदाय, बल्कि स्वयं इस्लाम में जो बहुसंख्यक नहीं हैं, वे भी इस्लामी व्यवस्था के स्थायी शिकार हैं। अल्पसंख्यकों की आबादी को नगण्य करने के बाद मुसलमान अब अपने ही मजहब के अल्पसंख्यक संप्रदाय से हिसाब चुकता कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है, सन 2000 के बाद से अब तक उपमहाद्वीप में मजहबी हिंसा में हिंदुओं की अपेक्षा अपने ही मुस्लिम भाइयों के हाथों मरने वाले मुसलमानों की संख्या दस गुनी अधिक है। इसके साथ ही लेखक ने एक ऐतिहासिक सच को भी उठाया है। उन्होंने लिखा है, हिंदू बहुसंख्या के अधीन हिंदू खुशहाल हैं, किंतु सच्चाई यह है कि हिंदू बहुसंख्या के अधीन मुसलमान भी उतने ही खुशहाल हैं, क्योंकि इसके कारण इस्लाम के अंतर्गत होने वाले फसादों से संरक्षा मिल जाती है। देश विभाजन के बाद भारत में मुसलमानों की आबादी बढ़कर जहा 15 प्रतिशत हुई है वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 20 प्रतिशत से घटकर आज एक प्रतिशत से कम रह गई है। सुन्नी बहुल कश्मीर घाटी को छोड़ दें तो शेष भारत में अल्पसंख्यक शिया बहुसंख्यक सुन्नियों के हमले से सुरक्षित हैं। अहमदिया, बोहरा आदि मुसलमानों के अन्य समुदाय भी हिंदू बहुल भारत में बराबरी के अधिकार से फल-फूल रहे हैं।
लेखक ने पाकिस्तान के संदर्भ में एक हास्यास्पद, किंतु इस्लामी जगत के लिए मनन करने योग्य घटना का उल्लेख किया है। पाकिस्तान के पंजाब सूबे के वित्तमंत्री राणा आसिफ महमूद ईसाई हैं। उनके पिता राणा ताज महमूद भी ईसाई थे। कुछ महीने पहले किसी ने गलती से राष्ट्रीय पंजीकरण में आसिफ महमूद का धर्म इस्लाम दर्ज कर दिया। अब महमूद इसे बदल नहीं सकते, क्योंकि इस्लाम त्यागने पर वहा मौत की सजा तय है। किसी की गलती से भी मुसलमान बन गए तो आजीवन मुसलमान रहेंगे, यह कोई फतवा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी का आदेश है। यह स्थापित सत्य है कि जहा कहीं भी मुसलमान अल्पसंख्या में होते हैं वे सेक्युलर व्यवस्था पर गहरी आस्था प्रकट करते हैं, किंतु जहा कहीं भी वे बहुसंख्या में हैं, सेक्युलरवाद एक गाली है। पाकिस्तान ही क्यों, अमरनाथ यात्रा और कश्मीरी पंडितों को लेकर कश्मीर घाटी के घटनाक्रम इस कटु सत्य को ही रेखाकित करते हैं। पाकिस्तानी आवाम में भारत विरोधी भावना अविभाजित भारत के मुसलमानों की मानसिकता की ही तार्किक परिणति है। तब मुसलमानों को यह आशका थी कि ब्रितानियों के जाने के बाद उन्हें काफिर हिंदुओं के साथ बराबरी के स्तर पर रहना होगा। जिन लोगों को रोज यही सब सिखाया जाता हो कि इस्लाम ही एकमात्र सच्चा व अंतिम पंथ है, उन्हें बहुलतावादी सनातनी संस्कृति वाले भारत के प्रति जिहाद के लिए उकसाना कठिन नहीं है। उन्हें जानबूझकर इतिहास के उस पक्ष से परिचित नहीं कराया जाता, जब ब्रिटिश उपनिवेश से पहले भारत की अधिकाश रियासतों में अल्पसंख्यक मत व पंथों को बराबरी के अधिकार से पल्लवित-पुष्पित होने का अवसर प्राप्त था।
सवाल है कि क्या पाकिस्तानी सेना कट्टरपंथियों से साठगाठ कर वहा के आवाम को भारत व हिंदू विरोध के लिए भड़काती है? वास्तविकता तो यह है कि पाकिस्तानी जेहन में मौजूद हिंदू विरोधी मानसिकता का वहा की सेना दोहन करने के साथ उसे प्रोत्साहित भी करती है। अभी कुछ समय पूर्व पाकिस्तानी पंजाब सूबे के गवर्नर सलमान तसीर की उनके ही अंगरक्षक ने हत्या कर दी थी। उस हत्यारे को वहा की आवाम ने हीरो बताया, उसके ऊपर फूल बरसाए गए, जबकि हत्यारे को सजा सुनाने वाले न्यायाधीश को पिछले दरवाजे से भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। सलमान तसीर का कसूर इतना था कि उन्होंने ईशनिंदा कानून में बंद एक ईसाई महिला से मिलने की गलती और ईशनिंदा कानून में बदलाव लाने की वकालत की थी। ऐसी मानसिकता के रहते जिहादी फैक्ट्रियों के बंद होने की उम्मीद व्यर्थ है।
2010 में पाकिस्तानी फिल्म निर्मात्री शरमीन ओबैद को उनकी फिल्म दि चिल्ड्रेन ऑफ तालिबान के लिए एमी अवॉर्ड मिला था। इसमें बताया गया था कि किस तरह जिहादी संगठन फिदायीन तैयार करते हैं। जैशे-मोहम्मद, लश्कर, हरकत उल अंसार, जिसे अब हरकत उल मुजाहिदीन कहा जाता है, जैसे जिहादी संगठनों के लिए कट्टरपंथी तत्व गरीब व अशिक्षित परिवारों के बच्चे तलाशते हैं। उन्हें खाने और शिक्षा दिलाने के नाम पर मीलों दूर प्रशिक्षण शिविरों में भेजा जाता है। यहा एकात में उन्हें इस्लाम और केवल इस्लाम की दीक्षा दी जाती है। बाहरी दुनिया से उनका कोई संपर्क नहीं होता। इसके बाद इन बच्चों के साथ घोर अमानवीय व्यवहार किया जाता है ताकि उनके मन में अपने अस्तित्व को लेकर ही घृणा का भाव पैदा हो जाए। फिर उन्हें इस्लाम के लिए मर मिटने पर जन्नत और हूरें मिलने का पाठ पढ़ाया जाता है। जिस बच्चे के साथ इतना घोर अमानवीय व्यवहार हो रहा हो उसके लिए मौत ज्यादा मुनासिब लगती है। इसके बाद इन बच्चों को पश्चिमी देशों और भारत में मुसलमानों के कथित उत्पीड़न की फर्जी सीडी आदि दिखाई जाती है। इसका बदला लेने को मजहबी दायित्व बता उन्हें मरने-मारने के लिए सहज तैयार कर लिया जाता है। इसलिए एक कसाब के मरने से आतंकवाद का रक्तरंजित अध्याय बंद हो जाएगा, ऐसी आशा करना व्यर्थ है।
[बलबीर पुंज: लेखक राज्यसभा सदस्य हैं]

पाक में हिंदूओं को शव दफनाने को किया जा रहा मजबूर

http://www.jagran.com/news/national-pakistan-cremation-ground-sold-by-govt-hindus-forced-to-bury-their-dead-9893691.html
नई दिल्ली। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू समुदाय के लोगों को अब अपने परंपराओं एवं रीतिरिवाजों के अनुसार मृत शवों का क्रियाक्रम करने की अनुमति नहीं दी जा रही हैं। इतना ही नहीं इसके लिए यहां रहने वाले हिंदू समुदाय के लोगों के लिए श्मशान भूमि तक नहीं उपलब्ध कराई जा रही हैं।

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है हिंदू

http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-291213.html
दुनिया भर में अनुयायियों की संख्या के लिहाज से ईसाई सबसे बड़ा, जबकि हिंदू धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस्लाम दूसरे स्थान पर है। हिंदू धर्मावलंबियों की 97 फीसदी संख्या भारत, नेपाल और मॉरीशस में रहती है।

सईद ने कसाब के लिए पढ़ी नमाज-ए-जनाजा

http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-284004.html
मुंबई पर आतंकवादी हमले में गिरफ्तार एकमात्र आतंकवादी अजमल कसाब के नमाज-ए-जनाजा में लश्कर-ए-तैय्यबा के संस्थापक हाफिज मोहम्मद सईद के नेतृत्व में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। गौरतलब है कि कसाब को इस हफ्ते की शुरुआत में फांसी दी गई थी।

मुलायम ने मांगा मुसलमानों के लिए आरक्षण

http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-290708.html
सरकारी नौकरियों में काम कर रहे अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के विरोध के कारण अलग-थलग पड़ी समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सोमवार को कहा कि सरकार को मुसलमानों को आरक्षण देने की दिशा में काम करना चाहिए। मुलायम ने यह धमकी भी दी कि पदोन्नति में आरक्षण आया तो वह संप्रग को समर्थन के बारे में विचार करेंगे।

वापसी पर सोचें कश्मीरी पंडितः उमर

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/17709102.cms
नई दिल्ली।। कश्मीर घाटी को दो दशक पहले छोड़ चुके कश्मीरी पंडितों के मन में सुरक्षा की भावना बहाल करने के वादे के साथ जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को इस समुदाय से राज्य में वापसी की संभावनाएं तलाशने को कहा। उमर ने कहा कि अगर कश्मीरी पंडितों को घाटी में लौटाने के लिए बोलने से काम चलता तो हम बोलते। लेकिन मुझे लगता है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी के मामले में बोलना पर्याप्त नहीं है।

विकृतियों वाला सेक्युलरवाद

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-9954109.html

अमरनाथ यात्रा के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का हाल का निर्णय वस्तुत: सेक्युलर विकृतियों को ही उजागर करता है। लंबे समय से कश्मीर घाटी के अलगाववादी नेता और उनके संरक्षक सेक्युलर दल हिंदुओं की पावन अमरनाथ यात्रा को लेकर अवरोध खड़ा करते आए हैं। घाटी के अलगाववादी नेता जहां अपने हिंसक विरोध के बल पर अमरनाथ यात्रा को बाधित करने का कुप्रयास करते हैं, वहीं उनके संरक्षक सेक्युलर दल पर्यावरण और कानून एवं व्यवस्था की आड़ में तीर्थयात्रियों की राह में संकट खड़ा करते हैं। पिछले साल अमरनाथ यात्रा के दौरान पर्याप्त स्वास्थ्य और राहत सेवाएं नहीं होने के कारण करीब सौ से ज्यादा तीर्थयात्रियों की मृत्यु यात्रा मार्ग में हुई थी। उसका स्वत: संज्ञान सर्वोच्च न्यायालय ने लिया था। उस पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीएस चौहान और एस कुमार की पीठ ने पवित्र गुफा तक 'मानवीय गरिमा और सुरक्षा' के साथ तीर्थयात्रियों की यात्रा सुनिश्चित करने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार सहित अमरनाथ श्राइन बोर्ड को निर्देश जारी किया। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लेख करते हुए कहा है कि प्रत्येक नागरिक को गरिमामय, सुरक्षित और स्वच्छ वातावरण में जीने का अधिकार है। हर वार्षिक अमरनाथ यात्रा में समय के बीतने के साथ तीर्थयात्रियों की मृत्युदर बढ़ रही है। स्वास्थ्य, नागरिक सुविधाओं व साफ-सफाई के मामले में तीर्थयात्रियों की कठिनाइयां लगातार बढ़ती जा रही हैं।
अमरनाथ की यात्रा दुर्गम है, राह कठिन है और अनेक दुश्वारियां हैं, किंतु आज के वैज्ञानिक युग में उन कठिनाइयों को दूर करना असंभव नहीं है। अमरनाथ यात्रा को लेकर सेक्युलर दलों की उदासीनता और अलगाववादी नेताओं का मुखर विरोध एक मानसिकता से प्रेरित है। वह मानसिकता हिंदू और हिंदुस्तान की सनातनी संस्कृति के विरोध पर केंद्रित है। वास्तविकता यह है कि अमरनाथ यात्रा को हतोत्साहित करने का अभियान नया नहीं है। घाटी से कश्मीर की मूल संस्कृति के प्रतीक कश्मीरी पंडितों के बलात निष्कासन के बाद इस्लामी कट्टरवादियों का एक लक्ष्य पूरा हो चुका है। घाटी हिंदूरहित हो चुकी है। हिंदुओं के अधिकांश पूजास्थल ध्वस्त हो चुके हैं, परंतु कुछ प्रमुख आराध्य स्थल अभी भी जीवंत हैं और जिहादियों के निशाने पर हैं। अमरनाथ यात्रा का प्रत्यक्ष व परोक्ष विरोध उसी मानसिकता का उदाहरण है।
सन 2008 में यात्रा की अवधि 55 दिनों से घटाकर 15 दिनों तक करने पर लोग सड़कों पर उतर आए थे। तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु अमरनाथ श्राइन बोर्ड को उपलब्ध कराई गई 40 एकड़ जमीन अलगाववादियों को रास नहीं आई थी। अलगाववादियों को खुश करने के लिए तब सेक्युलर सत्ता अधिष्ठान ने फौरन जमीन आवंटन को निरस्त भी कर दिया था, किंतु इसकी तुलना में शेष भारत में मुसलमानों के मामलों में सेक्युलर दलों के बीच उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में अधिक से अधिक सुविधाएं देने की होड़ लगी रहती है। यहां तो सरकारी खजाने की कीमत पर मुसलमानों को हज करने मक्का-मदीना भेजा जाता है, किंतु मानसरोवर यात्रा या अमरनाथ यात्रा में हिंदुओं को बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध कराने की चिंता सेक्युलर अधिष्ठान को नहीं होती। सन 2009, 2010 और 2011 में हज सब्सिडी देकर सरकार ने लगभग सवा लाख हाजियों को मक्का-मदीना की यात्रा पर भेजा। सन 2009 में 690 करोड़ और 2010 और 2011 में करीब 600 करोड़ हज सब्सिडी का भारी-भरकम बोझ सरकारी राजस्व को झेलना पड़ा, जिसकी भरपाई बहुसंख्यक समुदाय को विभिन्न करों के मद में चुकानी पड़ती है। इस पंथनिरपेक्ष देश के हिंदू नागरिक विकृत सेक्युलरवाद से पोषित हज सब्सिडी का बोझ उठाकर जजिया कर नहीं तो फिर क्या चुका रहे हैं? हज दौरे पर सरकार डॉक्टरों, नर्सो, हज अधिकारी, हज सहायक आदि की फौज साथ भेजती है। मक्का-मदीना में 90 बेड का अस्पताल और 18 डिस्पेंसरी की व्यवस्था के साथ 17 एंबुलेंस हाजियों की सेवा में तत्पर रखे जाते हैं। अमरनाथ यात्रा के लिए ऐसी सुविधा क्यों नहीं होती?
राजस्थान हिंदू बहुल है और यहां के अजमेर शरीफ में हर साल उर्स का मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में जायरीन शरीक होते हैं। दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है। मुंबई में हाजी अली की दरगाह है। उत्तराखंड में कलियार शरीफ, तमिलनाडु में नागौर दरगाह आदि कई अन्य ऐसे प्रसिद्ध दरगाह देश में और भी हैं जहां हिंदू भी उतनी ही श्रद्धा से शीश नवाते हैं। कहीं किसी भी मुस्लिम आराधना स्थल पर बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा उत्पात नहीं मचाया जाता। दो साल पूर्व जम्मू-कश्मीर की सरकार ने अमरनाथ यात्रा और वैष्णो देवी की यात्रा के लिए राच्य में प्रवेश करने वाले दूसरे राच्यों के वाहनों पर दो हजार रुपये का प्रवेश शुल्क लगाया था, किंतु बहुलतावाद व पंथनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने वाले बुद्धिजीवी व राजनीतिक दल तब खामोश रहे। क्यों? कश्मीर घाटी में मुसलमान बहुसंख्यक हैं तो क्या वहां हिंदुओं का प्रवेश वर्जित कर दिया जाए? नहीं तो यह प्रवेश-कर क्यों? विभाजन से पूर्व पाकिस्तान के हिस्से में आए क्षेत्रों में हिंदू कुल जनसंख्या के एक चौथाई से भी अधिक थे। आज उनकी आबादी एक प्रतिशत से भी कम है। इन क्षेत्रों में विभाजन के दौरान करीब पांच सौ ऐतिहासिक मंदिर थे, जिनकी संख्या अब केवल 26 रह गई है। अधिकांश हिंदू तीर्थस्थल या तो जमींदोज कर दिए गए हैं या उनके खंडहर मात्र बचे हैं, जहां पूजा-अर्चना की भी समुचित व्यवस्था नहीं है। विभाजन से पूर्व लाहौर शहर की कुल आबादी में हिंदू-सिखों का अनुपात 70 प्रतिशत था। अब उनकी संख्या नगण्य है।
आज वहां हिंदू-सिखों को जान की सलामती के लिए जजिया देना पड़ता है या फिर मतांतरण के लिए विवश होना पड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में हिंदू युवतियों के अपहरण और उनसे बलात निकाह की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। हाल की एक खबर के अनुसार पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। पाक मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार सिंध में हर महीने करीब 20 से 25 हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। क्यों? यह स्थापित सत्य है कि जहां कहीं भी मुसलमान अल्पसंख्या में होते हैं वे पंथनिरपेक्षता, संविधान और प्रजातांत्रिक मूल्यों से प्रतिबद्ध होने का दावा करते हैं, किंतु जिस किसी भी क्षेत्र में वे बहुसंख्या में आते हैं उनके लिए शरीयत कानून सर्वोपरि हो जाते हैं। अमरनाथ प्रकरण में अलगाववादियों का विरोध जहां इस कटु सत्य को रेखांकित करता है वहीं यह सेक्युलरिस्टों के दोहरेपन को भी नंगा करता है।
[लेखक बलबीर पुंज, राच्यसभा सदस्य हैं]


अल्पसंख्यकों के लिए होंगे पढ़ाई के खास इंतजाम

http://www.jagran.com/news/national-education-for-minorities-government-provide-to-specific-arrangements-9948330.html
नई दिल्ली, [राजकेश्वर सिंह]। सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल के बहाने पिछले लोकसभा चुनाव में सिर्फ अल्पसंख्यक बहुल जिलों में कांग्रेस को 30 सीटों का फायदा देख चुकी सरकार अब अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों पर और ध्यान केंद्रित करेगी। इनमें पढ़ाई और रोजगार के अवसर सबसे ऊपर हैं। अल्पसंख्यकों की बड़ी आबादी वाले सौ कस्बों व शहरों में बेहतर तालीम, कौशल विकास [स्किल डेवलपमेंट] और व्यावसायिक शिक्षा की खास पहल होगी। अल्पसंख्यक बहुल उन छोटे कस्बों में महिला डिग्री कॉलेज खोलने पर भी फोकस होगा, जहां सकल दाखिला दर [जीईआर] काफी कम है।