Saturday, April 5, 2014

कोबरापोस्ट का स्टिंग 'ऑपरेशन जन्मभूमि' सवालों के घेरे में

http://www.jagran.com/news/national-cobraposts-operation-janmbhoomi-advani-narasimha-rao-knew-of-plot-11208332.html
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। लोकसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू होने से चंद दिन पहले अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने के 22 साल पुराने मामले को लेकर सामने आए स्टिंग ऑपरेशन पर सवाल खड़े गए हैं। गड़े मुर्दे उखाड़ने की तर्ज पर कोबरा पोस्ट नामक समाचार वेबसाइट के स्टिंग ऑपरेशन पर भाजपा ने तीखा हमला बोला है। चुनाव आयोग से इसकी शिकायत करते हुए पार्टी ने जांच की मांग की है। वहीं, संप्रग के सहयोगी दल नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस समय स्टिंग के सामने आने पर हैरानी जताई है। जबकि कांग्रेस का कहना है कि स्टिंग ने भाजपा और आरएसएस के सही चेहरे को उजागर कर दिया है।

Friday, April 4, 2014

सोनिया-बुखारी की मुलाकात लोमड़ी-भेड़‍िये की अहिंसा पर बात करने जैसा: शिवसेना

http://aajtak.intoday.in/story/maharashtra-udhav-says-sonia-bukhari-meet-like-fox-and-wolf-talking-non-violence-1-759899.html
धर्मनिरपेक्ष वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम से मुलाकात करने पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को आड़े हाथ लेते हुए शिवसेना ने कहा कि यह 'लोमड़ी और भेड़िये' के अहिंसा और शाकाहार पर बात करने के समान है.

Thursday, April 3, 2014

हिन्दुओं को अपमान सहने की आदत क्यों

http://www.punjabkesari.in/news/article-232630
(तरुण विजय) मुगल, ब्रिटिश और उसके बाद नेहरूवादी सैकुलर तंत्र ने इस देश में आग्रही हिन्दू बनना अपराध घोषित कर दिया था। देशभक्ति और मातृभूमि के प्रति समर्पण की चरम सीमा तक जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को आज भी सरकारी नौकरी के योग्य नहीं माना जाता और इस बारे में केन्द्र तथा विभिन्न राज्य सरकारों ने अधिघोषणा जारी की हुई है, जो रद्द नहीं की गई। 15 अगस्त तथा 26 जनवरी के दिन लालकिले और जनपथ पर जो भव्य परेड तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के कार्यक्रम होते हैं, उनमें अनेक भयानक आरोपों से घिरे मंत्री और राजनेता बुलाए जाते हैं। जिस मुस्लिम लीग ने भारत का विभाजन करवाया, उसके सदस्य और पदाधिकारी भी आमंत्रित किए जाते हैं और उनमें से एक तो केन्द्रीय मंत्रिमंडल के भी सदस्य बनाए गए।

लेकिन कभी विश्व के सबसे बड़े हिन्दू संगठन, जो भारत का महान देशभक्त संगठन है, उसे अधिकृत तौर पर न तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के यहां चाय पर या राष्ट्रीय दिवसों के कार्यक्रमों में भारत शासन की ओर से अथवा राज्य सरकार की भी ओर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी के नाते आमंत्रित किया जाता है। अब कुछ भाजपा की राज्य सरकारों ने यदि उन्हें बुलाया हो तो यह अलग बात है। हिन्दुत्व की विचारधारा से आप लाख असहमत हो सकते हैं लेकिन उस विचारधारा को मानने वालों को त्याज्य, अस्पृश्य, अनामंत्रित और सूचीविहीन वर्ग में रखना अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक छुआछूत का उदाहरण है। भारत के 82,000 से ज्यादा समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में सामान्यत: कांग्रेस, वामपंथी या सीधे-सीधे कहें तो उन लेखकों, पत्रकारों और सम्पादकों का प्रभुत्व है, जिनका एक ही मकसद है-हिन्दुत्व की विचारधारा का विरोध। महानगरों से छपने वाले तथाकथित राष्ट्रीय अंग्रेजी समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में हर दिन जिन लोगों के स्तंभ और लेख छपते हैं, उनमें हिन्दुत्व अथवा भारत के आग्रही हिन्दू समाज की उस विचारधारा का संभवत: एक प्रतिशत भी प्रतिनिधित्व नहीं होता जो राष्ट्रीयता के उस प्रवाह को मानते हैं जिसे श्री अरविन्द और लाल-बाल-पाल की त्रयी ने परिभाषित किया था। 

देश में ऐसे सैंकड़ों आई.ए.एस., आई.एफ.एस. और आई.पी.एस. अधिकारी होंगे जो बालपन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को मानते हैं और उसे देश के लिए हितकारी समझते हैं लेकिन उनमें से एक भी सरकारी नौकरी में यह कहते हुए डरता है क्योंकि ऐसा घोषित करने पर उसके विरुद्ध तत्काल सरकारी कार्रवाई हो जाएगी। सरकार में कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थक होने पर कोई दिक्कत नहीं है- जिस कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को पं. नेहरू की सरकार ने 1962 के युद्ध में चीन का साथ देने के अपराध में गिरफ्तार किया था जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को 1962 में देश की सेवा और सैनिकों का साथ देने के कारण 1963 की गणतंत्र दिवस परेड में पूर्ण गणवेश में नेहरू सरकार ने शामिल किया था।

हिन्दुत्व समर्थक का परिचय मिलते ही कार्पोरेट जगत और सामाजिक क्षेत्र में एक भिन्न दृष्टि से देखे जाने का चलन कांग्रेस और वामपंथियों ने शुरू किया जिनके राज में हजारों सिख मारे गए, सबसे ज्यादा हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार की घटनाएं हुईं, संविधान का उल्लंघन हुआ, आपातकाल लगा, व्यक्तिगत स्वतंत्रताएं समाप्त हुईं, देश पिछड़ गया, महिलाएं असुरक्षित हुईं और विदेशों में भारत की छवि खराब हुई, वे केवल मीडिया पर अपने प्रभुत्व एवं सरकारी तंत्र के दुरुपयोग से स्वयं को सैकुलर, शांतिप्रिय, संविधान के रक्षक और मुस्लिम हित ङ्क्षचतक के रूप में दिखाते रहे।

सलमान रुशदी की पुस्तक ‘सेटेनिक वर्सेज’ पर जो प्रतिबंध की वकालत करते रहे, वही हिन्दू धर्म पर लिखी वैंडी डॉनिगर की अपमानजनक पुस्तक को बेचने की वकालत करते रहे। हिन्दुओं पर आघात आघात नहीं लेकिन अहिन्दुओं पर ताना भी कसा गया और जिसकी सबने ङ्क्षनदा भी की हो तो भी वह प्राण लेने वाला गुनाह मान लिया जाता है। कश्मीर से पांच लाख हिन्दू आज भी बाहर हैं। भारत के किसी गांव से 5 गैर-हिन्दू भी यदि किसी भेदभाव के शिकार होकर निकाल दिए जाएं तो दुनिया भर में तब तक तूफान मचा रहेगा जब तक वे 500 सिपाहियों के संरक्षण में वापस नहीं लौटा दिए जाते। भारत की दर्जनों राजनीतिक पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र में वह एक पंक्ति को ही दिखा दें  जिसमें कहा गया हो कि अगर उस पार्टी की सरकार आएगी तो वह ससम्मान और ससुरक्षा कश्मीरी हिन्दुओं की घर वापसी घोषित करेगी। सिवाय भाजपा के और कौन कहता है? इसका कारण क्या है?

जो लोग फिलस्तीन के मुस्लिम दर्द पर बोलते हैं, इसराईल के विरुद्ध दिल्ली में प्रदर्शन करते हैं और बम फोड़ते हैं, जिन्हें इस्लामी मालदीव और चीन के सिंकियांग में मुस्लिम मोह पर चीनी कार्रवाई से दर्द होता है, वे अपने ही रक्तबंधु हिन्दुओं के पाकिस्तान और बंगलादेश में अमानुषिक उत्पीडऩ पर खामोश क्यों रहते हैं?

गत एक सप्ताह में पाकिस्तान में 2 हिन्दू मंदिर अपवित्र किए गए, मूर्ति जला दी गई और हिन्दुओं का अपमान किया गया। इसके विरोध में आपने कहीं कोई आवाज सुनी? अब इस समाचार में मंदिर की जगह मस्जिद लिखिए और फिर सोचिए कि अगर हमारे या हमारे मुल्क के आसपास कहीं गैर-मुस्लिमों ने मस्जिदों के साथ यही काम किया होता तो क्या नतीजा निकलता?

हिन्दुओं को अपना अपमान सहन करने, अपना दुख पीने और अपने ऊपर होने वाले आघात स्वाभाविक मानने की आदत क्यों हो गई है? क्यों आग्रही हिन्दू उस शासन में जो उनके राजस्व और वोट से चलता है, केवल इसलिए तिरस्कृत और सूचीविहीन किया जाना स्वीकार कर लेते हैं कि वे हिन्दुत्व समर्थक हैं? अस्पृश्यता और तिरस्कार का जितना भयानक दंश हिन्दुत्व समर्थकों ने झेला है, वैसा नाजियों के हाथों यहूदियों ने भी नहीं झेला होगा।  

Wednesday, April 2, 2014

महासमर.. श्राइन बिल का एजेंडा तय करेगा पंडितों का वोट

http://www.jagran.com/jammu-and-kashmir/jammu-11202826.html
जम्मू : दो दशकों से भी अधिक समय से विस्थापन में रह रहा कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीर में पुनर्वास व वापसी में देरी के लिए न सिर्फ राज्य व केंद्र सरकार को जिम्मेदार मान रहा है, बल्कि प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रति भी उनके मन में गिला है। उन्होंने उनकी बेबसी से हमेशा ही पल्ला छुड़ाया है। वादी में सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे पंडितो को उन राजनीतिक दलों के प्रति भी मन में मलाल है, जिन्होंने मंदिरों व धार्मिक स्थलों के संरक्षण के लिए विधानसभा में लंबित कश्मीरी हिंदू श्राइन बिल को पारित न होने देने में अहम भूमिका निभाई थी।

Tuesday, April 1, 2014

पाकिस्तान में हिंदू आश्रम पर हमला

http://hindi.ruvr.ru/2014_04_01/270509228/

पाकिस्तान के सिंध प्रांत में करीब चार लोगों ने एक हिंदू आश्रम पर हमला कर दिया। सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों ने आश्रम से त्रिशूल भी चोरी कर लिया। 


इस घटना के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन किया और कुछ स्थानों पर कारोबारियों की आंशिक बंदी भी देखी गई। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में करीब चार लोगों ने एक हिंदू आश्रम पर हमला कर दिया। सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों ने आश्रम से त्रिशूल भी चोरी कर लिया। इस घटना के विरोध में लोगों ने प्रदर्शन किया और कुछ स्थानों पर कारोबारियों की आंशिक बंदी भी देखी गई।
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Sunday, March 30, 2014

छप्पर डालने को लेकर आपस मे भिड़े दो समुदायों के लोग

http://hindi.pardaphash.com/news/--756971/756971.html
लखीमपुर-खीरी। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी जिले के निघासन थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक धार्मिक स्थल पर छप्पर डालने को लेकर दो समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए। विवाद की सूचना पर पहुंचे एसडीएम तथा सीओ ने दोनों समुदाय के लोगों को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं माने। पुलिस ने दोनों पक्ष के करीब चालीस लोगों को पाबंद किया है। घटना को लेकर दोनों समुदायों में तनाव है। 

Saturday, March 29, 2014

पाकिस्तान में हिंदू मंदिर पर हमला

http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2014/03/140328_attack_temple_pakistan_rns.shtml
शुक्रवार को पाकिस्तान के हैदराबाद के एक कारोबारी इलाक़े फ़तेह चौक के प्रसिद्ध हिंदू मंदिर में तीन नकाबपोशों ने हमला किया. इस इलाक़े के आसपास बड़ी तादाद में हिंदू रहते हैं.

Friday, March 28, 2014

राजनीतिक एजैंडे से बाहर हिंदू वेदना

http://www.punjabkesari.in/news/article-230703
(तरुण विजय) दो दिन पूर्व राज्यसभा टी.वी. पर एंकर महोदया ने आम पार्टी के प्रतिनिधि से पूछा कि वैसे तो आपके नेता अरविंद केजरीवाल सांप्रदायिकता से लडऩे की बातें करते हैं लेकिन वाराणसी पहुंचते ही उन्होंने गंगा स्नान किया और मंदिर में दर्शन किया। आप प्रतिनिधि बेचारे शब्द ढूंढने लगे कि क्या जवाब दें और यही कह पाए कि वे परिवार सहित काशी गए थे इसलिए गंगा स्नान किया। ‘इंटेलैक्चुअल माडर्निटी’ जैसे भारी-भरकम अंग्रेजी शब्द हिंदी कार्यक्रम में इस्तेमाल करते हुए उन एंकर बहन का एक ही प्रहार था कि अगर सांप्रदायिकता से लडऩा है तो फिर मंदिर जाने का क्या अर्थ है? मैंने उनसे पूछा कि क्या इंटेलैक्चुअल माडॢनटी का अर्थ सिर्फ हिंदुओं पर इस रूप में लागू होता है कि जब तक वे मंदिर जाएंगे तब तक सैक्युलर नहीं कहलाएंगे। क्या अन्य गैर-हिंदुओं से वह यह प्रश्र करने का साहस करपातीं?

अभी पिछले सप्ताह पेशावर में जेहादियों ने एक गुरुद्वारे पर हमला किया। एक सिख नागरिक, पेशावर के प्रसिद्ध वैद्य परमजीत सिंह की हत्या कर दी गई। वहां हड़ताल हुई, पूरे पाकिस्तान में उसका शोर उठा लेकिन हिंदुस्तान और उसकी राजधानी दिल्ली में सिर्फ चुनाव पसरा रहा। एक-दूसरे पर अभद्र भाषा में आरोप-प्रत्यारोप, मोहल्ले की भाषा राष्ट्रीय चुनाव चर्चा का माध्यम बनती रही लेकिन पाकिस्तान के हिंदुओं और सिखों पर आघात पर चार लोगों ने भी इंडिया गेट या चाणक्यपुरी में प्रदर्शन नहीं किया, न कोई बयान आया, न किसी नेता को यह कहने की जरूरत महसूस हुई कि पाकिस्तान में हर रोज होने वाली इन वारदातों पर रोक लगाने के लिए हम जनमत संगठित करेंगे। यह स्थिति तब हुई थी जब कुछ समय पहले बंगलादेश में जमाते-इस्लामी के तालिबानों ने सैंकड़ों हिंदुओं के घर जला दिए थे, महिलाओं पर अत्याचार किया था और फिर हिंदू शरणार्थियों की एक बाढ़ भारत की ओर मुड़ी थी।

तमिलनाडु के जिन मछुआरों को श्रीलंका सरकार द्वारा अवैध रूप से पकड़कर 2-2 महीने जेल में रखा जाता है, उनकी नौकाएं तथा जाल तोड़ दिए जाते हैं, वे लगभग सभी हिंदू होते हैं। उनके विषयमें सामान्यत: ऐसा मान लिया जाता है कि अगर किसीको बोलना भी है तो तमिलनाडु के नेताओं और संगठनों को बोलने दीजिए। हमारा उनसे क्या संबंध है?

एक समय था जब रामसेतु को लेकर पूरे देश में हजारों प्रदर्शन हुए और एक करोड़ से ज्यादा हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपे गए। पर अब न रामसेतु और न ही तमिलनाडु के हजारों मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के सर्वोच्च न्यायालय में डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दर्ज जनहित याचिका पर ऐतिहासिक फैसले को लेकर कोई राष्ट्रव्यापी विचार तरंग दौड़ती है। मेरठ में कुछ भटके हुए कश्मीरी लड़कों ने भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए तो हर पार्टी के नेता बोले, मुख्यधारा के संपादकों ने संपादकीय लिखे, भाषण और सैमीनार हुए। 5 लाख कश्मीरी अभी भी शरणार्थी हैं, शंकराचार्य पहाड़ी को तख्ते सुलेमान और अनंतनाग को इस्लामाबाद लिखा जा रहा है। सरकारी वैबसाइट और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नामपट्टों में ऐसे नामों का जिक्र होता है लेकिन यह राजनीतिक मुद्दा भी नहीं है, चुनाव घोषणा-पत्र या भाषण और सैमीनारों की तो बात ही छोड़ दीजिए।

भारत का एक मन भी है, उसका चैतन्य है, वह र्सिफ रोटी-कपड़ा और मकान पर जिंदा भौतिक काया मात्र ही नहीं है। इसीलिए श्री अरविंद ने भवानी-भारती की कल्पना सामने रखते हुए कहा था कि, ‘हमारे लिए भारत नदियों, पहाड़ों, मकानों, जंगलों और भीड़ का समुच्चय नहीं वरन् साक्षात जगत-जननी माता है।’ जैसे-जैसे राजनीति के छल और द्वंद्व में यह भाव तिरोहित होता गया और जहां तक राजनेताओं का वोट बैंक है, वहीं से भारतीय परंपराओं और हिंदुत्व की प्रखर एवं क्षमाबोध रहित आवाजें दबनी और दबाई जानी शुरू हो गईं। अगर केवल बिजली, पानी और सड़क का मामला लिया जाए तो यह हिंदुत्व की परम वैभव की कल्पना में स्वत: सन्निहित है।

जिस धर्म के अनुयायी जीवन में लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के बिना अपने भाव विश्व की कल्पना नहीं कर सकते, उनके बारे में यह कहना कि हिंदुत्व की बात छोड़कर सड़क, पानी, बिजली की बात करो क्योंकि हिंदुत्व का अर्थ है पिछड़ापन, सांप्रदायिकता, अल्पसंख्यक विरोध, बैलगाड़ी युग और प्रगतिशीलता का विरोध, तो यह सत्य से मुंह मोडऩा होगा। 

तालिबान और जेहाद केवल बंदूक और शारीरिक ङ्क्षहसा से ही नहीं होता। हिंदुओं के विरुद्ध शब्द हिंसा तथाकथित सैक्युलर मीडिया और जेहादी मानसिकता के तत्वों का एक बड़ा हथियार रहा है। वे कभी भी यह स्वीकार नहीं कर सकते कि लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की आराधना का अर्थ ही उद्योग, व्यापार, आर्थिक विकास, शिक्षा और प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक मानसिकता के साथ नित्य नूतन मानवहितवर्धक अन्वेषण तथा गवेषणाएं, सैन्य विकास, शत्रु को परास्त करने के लिए हर प्रकार की शक्ति का अर्जन और आत्मनिर्भरता है।

केवल घंटी बजाकर कर्मकांड करना हिंदू का स्वभाव नहीं है बल्कि वैदिक परम्पराओं और विरासत को समसामायिक संदर्भों में पुन: व्याख्यायित करते हुए धर्म पर छाने वाली काई, कीचड़, धूल को साफ करने के लिए पाखंड खंडिनी पताका का स्वागत हमने करके दिखाया है। एक ऐसे समय में जब विश्व की प्रबल शक्तियां भारत के पुनरोदय के विरुद्ध जी-जान से षड्यंत्रों में व्यस्त हैं उस समय हमें अपनी विरासत पर टेक बराबर जमाए रखनी होगी और आंतरिक झगड़ों तथा कोलाहल से दूर रहना होगा। यह समय बहस और तर्क-वितर्क का नहीं, चेहरे, नाम और पहचान पर सवाल जडऩे का नहीं, अपनी  विरासत और हिम्मत को बिसारने का नहीं। एक बड़ी हुंकार से विजय को थामना, यही अपने हिंदुत्व और नागरिकत्व को सार्थक करना है।
 

Thursday, March 27, 2014

गौसेवक को बंधक बनाकर पीटा, कई गाय लूटी

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/shamli-city-11187861.html
कांधला : सशस्त्र बदमाशों ने गौसेवक को बंधक बनाकर मारपीट करते हुए गऊशाला से कई गाय लूटकर फरार हो गए। गाय लूटे जाने से हिंदू समुदाय के लोगों में रोष है। पीड़ित ने तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की है। पुलिस बदमाशों की तलाश कर रही है।

Wednesday, March 26, 2014

रंग की जंग में बहा खून

http://www.bhaskar.com/article-hf/RAJ-BHIL-communal-riots-in-bhilwara-rajasthan-4560003-PHO.html
भीलवाड़ा.  शहर में एक युवक की समुदाय विशेष के युवकों द्वारा चाकू घोंपकर हत्या करने के बाद सोमवार दोपहर को तनाव फैल गया। आक्रोशित लोगों ने हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जिला अस्पताल में तोड़फोड़ की। एक एंबुलेंस में आग लगा दी। कई वाहनों के शीशे फोड़ दिए। उपद्रवियों ने छह स्थानों पर पथराव किया। हालात काबू में करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज कर आंसू गैस के गोले छोड़े। स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में बताई गई है। पुलिस ने दो जनों को गिरफ्तार कर लिया है।