Sunday, February 24, 2013

संघ की छवि के साथ खिलवाड़

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-messing-with-the-image-of-the-union-10105285.html

केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का यह वक्तव्य कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी के प्रशिक्षण शिविरों में आतंकवाद फैलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, इन दोनों संगठनों को जानने और इनके शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोगों के लिए अत्यंत आघातकारी है। गत लगभग 60 सालों से मेरा संबंध संघ से रहा है और मैंने सैकड़ों प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया है। मैं दावे के साथ कहता हूं कि कभी किसी भी स्तर पर आतंकवाद की रत्ती भर आशंका नजर नहीं आई। एक समय था जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ को जड़-मूल से समाप्त करने की बात करते रहे, किंतु वह भी संघ की राष्ट्रनिष्ठा से इतना अधिक प्रभावित थे कि 1963 में गणतंत्र दिवस पर उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों की परेड देखी। उन्होंने विभिन्न राष्ट्र-हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सरसंघचालक गोलवलकर के साथ कम से कम तीन मुलाकातें तथा पत्राचार किए थे। संघ का कथित आतंकवाद कभी कोई मुद्दा रहा ही नहीं। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने पंडित नेहरू को स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि गांधीजी की ह्त्या में संघ का हाथ नहीं। ताशकंद जाने के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने गोलवलकरजी से चर्चा की थी। उनके समय में भी संघ का कथित आतंकवाद कभी कोई मुद्दा रहा ही नहीं। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निकट सहयोगी द्वारका प्रसाद मिश्र एवं संघ के वरिष्ठ प्रचारक दत्ताोपंत ठेंगड़ी के बीच अच्छे संबंध तभी से थे जब द्वारका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
कांग्रेस के एक अन्य प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और सरसंघचालक रच्जू भैया के बीच मधुर संबंध थे और वे दोनों राष्ट्रहित के अनेक मुद्दों पर आपस में बातचीत किया करते थे। तब भी किसी ने संघ को आतंकवाद से नहीं जोड़ा। गांधीजी, मदनमोहन मालवीय एवं जयप्रकाश नारायण ने खुलकर संघ की प्रशंसा की थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल अनेक भूमिगत कांग्रेस नेताओं को संघ के लोगों ने अपने घरों में शरण दी थी। देश के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता आरिफ मोहम्मद खान 2004 के लोकसभा चुनाव अभियान में संघ, भाजपा तथा गोलवलकरजी की प्रशंसा करते देखे-सुने गए थे। वह यह सिद्ध करते थे कि संघ और भाजपा दरअसल मुसलमानों के सच्चे दोस्त हैं। सरसंघचालक केसी सुदर्शन की प्रेरणा से राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच का गठन हुआ था, जो देश में सामाजिक समरसता स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
यह हास्यास्पद है कि कुछ लोग गृहमंत्री के उस वक्तव्य को विचार प्रकट करने के उनके संविधान प्रदत्त अधिकार से जोड़कर उनको क्लीन चिट दे रहे हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि शिंदे कोई साधारण नागरिक नहीं, बल्कि देश के गृहमंत्री हैं। यदि उनकी निगाह में संघ और भाजपा आतंकवादी संगठन हैं तो उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अविलंब इन दोनों संगठनों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। पता नहीं वह किस रिपोर्ट के आधार पर यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास संघ और भाजपा के प्रशिक्षण शिविरों में आतंकवाद की ट्रेनिंग दिए?जाने के प्रमाण हैं। अगर ऐसे कोई प्रमाण वास्तव में उनके पास हैं तो उन्हें कोरी बयानबाजी करने के स्थान पर संघ और भाजपा के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। भले ही चौतरफा घिरने के बाद शिंदे यह कह रहे हों कि उनके बयान को गलत रूप में पेश किया गया, लेकिन हर कोई यह समझ रहा है कि वह वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। एक अन्य विचित्र दलील भी अक्सर सुनने को मिलती रहती है और वह यह कि भाजपा सांप्रदायिक दल है, क्योंकि उसमें नरेंद्र मोदी सरीखे नेता हैं, जिन पर गुजरात दंगों का दाग लगा हुआ है। इसीलिए यदि भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया तो नीतीश कुमार का दल जनता दल यूनाइटेड राजग से संबंध विच्छेद कर लेगा। ऐसी स्थिति में उनकी पार्टी सहित देश के सारे तथाकथित सेक्युलर दल कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन से मिल जाएंगे। क्या कांग्रेस वाकई सेक्युलर है? जरा कुछ तथ्यों पर निगाह डालें। 1984 के दंगों में 3000 सिखों की हत्या हुई थी, तब केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी। सिख विरोधी दंगों के संदर्भ में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की थी कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तब धरती हिलती ही है। 1948 में हैदराबाद में बड़े पैमाने पर मुसलमानों की हत्याएं हुईं। सुंदरलाल समिति ने उस कत्लेआम पर जो जांच रिपोर्ट नेहरू सरकार को दी थी वह आज तक प्रकाशित नहीं की गई। वह रिपोर्ट आज भी ठंडे बस्ते में पड़ी है और कांग्रेस की सेक्युलरिच्म की नीति पर हंस रही है। यह भी विचित्र है कि सेक्युलरिच्म के सिलसिले में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले देश के प्रमुख इतिहासकार और पत्रकार गुजरात के अलावा अन्य स्थानों पर हुए दंगों पर मौन रहना ही बेहतर समझते हैं। अपने देश में साहित्यकार और पत्रकार भले ही हैदराबाद में हुए? कत्लेआम पर मौन रहे हों, लेकिन स्काटलैंड में जन्मे साहित्यकार विलियम डैरिम्पिल ने अपनी एक पुस्तक में सुंदरलाल समिति के तथ्यों को सबके सामने ला दिया था। यह सेक्युलरिच्म के नाम पर अपनाए जाने वाले दोहरे आचरण का ही उदाहरण है कि दंगों के मामले में भाजपा को घेरने वाले राजनीतिक दल और कथित सेक्युलर बौद्धिक वर्ग कांग्रेस अथवा अन्य दलों के शासनकाल में हुईं सांप्रदायिक दंगों की घटनाओं पर कुछ नहीं बोलता।
[लेखक डॉ.बलराम मिश्र, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]

एटा में धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ से तनाव

http://www.jagran.com/news/national-religious-site-sabotage-stress-in-uttar-pradesh-10100958.html
उत्तर प्रदेश के एटा शहर की फिजां में शरारती तत्वों ने जहर घोलने की कोशिश की। टीबी अस्पताल के सामने एक धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ की गई और वहां पर रखे गए वस्त्रों को आग के हवाले कर दिया गया।

‘Indian history was distorted by the British’

http://www.hindustantimes.com/India-news/Kolkata/Indian-history-was-distorted-by-the-British/Article1-1004972.aspx

The Aryan invasion theory was actually part of the British policy of divide and rule, French historian Michel Danino, an expert on ancient Indian history, said on Thursday on the sidelines of the Kolkata Literary Meet. 

उप्र में आतंकवाद की आड़ में बंद मुस्लिमों की रिहाई जल्द

http://www.jagran.com/news/national-early-release-under-the-guise-of-terrorism-off-the-muslims-cm-10082781.html
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उनकी पार्टी ने चुनाव घोषणा पत्र में स्पष्ट तौर यह वादा किया था कि दहशतगर्दी के खिलाफ कार्रवाई की आड़ में प्रदेश के जिन बेकसूर मुस्लिमों नौजवानों को जेलों में डाला गया है उन्हें रिहा कराया जाएगा। साथ ही उनके पुनर्वास के लिए मुआवजे के साथ इंसाफ भी दिया जाएगा। चुनाव घोषणा पत्र के सभी वादों को पूरा करने के लिए सरकार कृत संकल्पित हैं। इस संबंध में कार्यवाही भी प्रारंभ कर दी गई है।

राजनीति का निम्नतम स्तर

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-lowest-level-of-politics-10081251.html

केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाने का आरोप लगाने से सबसे ज्यादा हानि किसकी हुई है? अधिकांश भारतवासी जहां एक तरफ भाजपा और संघ के राष्ट्रवादी चरित्र से परिचित हैं, वहीं शिंदे के रिकॉर्ड के कारण उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। शिंदे के इस गैर जिम्मेदार बयान का कुप्रभाव सबसे अधिक भारत पर पड़ेगा। पाकिस्तान हमेशा यह दावा करता रहा है कि उसके यहां होने वाली आतंकी गतिविधियों को न तो सरकार और न ही सेना का समर्थन प्राप्त है। उसका कुतर्क यह भी है कि वह भी दूसरे देशों की तरह आतंकवाद से पीड़ित है। अब पाकिस्तान भारत के गृहमंत्री के बयान को अंतरराष्ट्रीय मंचों से उठाकर यह साबित करना चाहेगा कि आतंकवाद को प्रोत्साहन देने के लिए यदि कोई कसूरवार है तो वह भारत है। भारत अब तक कहता आया है कि यहां आतंकवाद सीमा पार से आता है, शिंदे के बयान के बाद दुनिया की नजरों में भारत की जहां हास्यास्पद स्थिति हो गई है, वहीं पाकिस्तान के हाथ मजबूत हुए हैं।
कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति के कारण हिंदू आतंक का हौवा खड़ा करना चाहती है, जिसके कारण अंतत: पाकिस्तान और पाक पोषित आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ रहा है। भारत के बहुलतावादी ताने-बाने को ध्वस्त करने के लिए एक गहरी साजिश रची जा रही है। मुंबई पर हमला करने आए आतंकियों के हाथों में कलावा बंधा होना व माथे पर तिलक होना और हमले के पूर्व से कांग्रेसी नेताओं की ओर से 'भगवा आतंक' का हौवा खड़ा करना क्या महज संयोग हो सकता है? मुंबई हमलों में महाराष्ट्र आतंक निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे की मौत के बाद कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने यह दावा किया था कि करकरे ने फोन पर बात कर उनसे हिंदूवादी संगठनों से अपनी जान का खतरा बताया था और अब शिंदे द्वारा 'हिंदू आतंकवाद' का रहस्योद्घाटन कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति के निम्नतम स्तर पर उतर आने का ही संकेत करता है। सारा घटनाक्त्रम एक गहरी साजिश का परिणाम है। शिंदे ने न केवल समग्र रूप से हिंदू समाज को अपमानित किया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय जगत में सहिष्णु व बहुलतावादी भारत की छवि बिगाड़ने का काम भी किया है। सच्चाई यह है कि मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों के बाद से ही वोट बैंक की राजनीति करने वाली कांग्रेस ने तथ्यों को दबाते हुए 'भगवा आतंक', जो अब 'हिंदू आतंक' में बदल चुका है, का हौवा खड़ा करना शुरू कर दिया। सरकारी मशीनरियों के दुरुपयोग से जो मनगढ़ंत कहानी खड़ी की गई है, तथ्य व साक्ष्य उसकी पुष्टि नहीं करते।
एक जुलाई, 2009 को अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने चार लोगों के संबंध में एक प्रेस नोट जारी किया था। इनमें कराची आधारित लश्करे-तैयबा के आतंकी आरिफ कासमानी का उल्लेख है। उस रिपोर्ट के आधार पर एक अंग्रेजी पत्रिका के 4 जुलाई, 2009 के अंक में रक्षा विशेषज्ञ बी. रमन का लेख प्रकाशित हुआ था। उस लेख से कांग्रेस की घृणित साजिश का पर्दाफाश होता है। उक्त रिपोर्ट के अंश यहां उद्घृत हैं, 'आरिफ कासमानी अन्य आतंकी संगठनों के साथ लश्करे तैयबा का मुख्य समन्वयकर्ता है और उसने लश्कर की आतंकी गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कासमानी ने लश्कर के साथ मिलकर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया, जिनमें जुलाई, 2006 में मुंबई और फरवरी, 2007 में पानीपत में समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाके शामिल हैं। सन 2005 में लश्कर की ओर से कासमानी ने धन उगाहने का काम किया और भारत के कुख्यात अपराधी दाऊद इब्राहीम से जुटाए गए धन का उपयोग जुलाई, 2006 में मुंबई की ट्रेनों में बम धमाकों में किया। कासमानी ने अलकायदा को भी वित्तीय व अन्य मदद दी। कासमानी के सहयोग के लिए अलकायदा ने 2006 और 2007 के बम धमाकों के लिए आतंकी उपलब्ध कराए।' संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका द्वारा लश्कर और कासमानी को प्रतिबंधित करने के छह महीने बाद पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री रहमान मलिक ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि समझौता बम धमाकों में पाकिस्तानी आतंकियों का हाथ था, किंतु अपने यहां वोट बैंक की राजनीति के कारण जो कांग्रेसी साजिश चल रही थी उसका ताना-बाना सीमा पार भी बुना गया। रहमान ने अपने उपरोक्त कथन में कहा, 'लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने कुछ पाकिस्तान स्थित आतंकियों का इस्तेमाल समझौता एक्सप्रेस में बम धमाका करने के लिए किया।'
समझौता एक्सप्रेस में हुए बम धमाकों में जुटी जांच एजेंसियों ने भी पहले इसके लिए सिमी और लश्कर को जिम्मेदार ठहराया था। सिमी के महासचिव सफदर नागौरी, उसके भाई कमरुद्दीन नागौरी और अमिल परवेज का बेंगलूर में अप्रैल, 2007 में नारको टेस्ट हुआ। उसमें पाया गया कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन की मदद से सिमी ने बम धमाकों को अंजाम दिया है और सिमी के एहतेशाम सिद्दीकी व नसीर को मुख्य कसूरवार बताया गया। हाल ही में अमेरिकी अदालत ने मुंबई हमलों के दौरान छह अमेरिकी नागरिकों की हत्या के लिए डेविड हेडली को पैंतीस साल की सजा सुनाई है। हेडली ने मुंबई समेत भारत के कई ठिकानों की रेकी थी। अमेरिका के खोजी पत्रकार सेबेस्टियन रोटेला ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि हेडली की तीसरी पत्नी फैजा ओतल्हा ने 2008 में ही यह कबूल कर लिया था कि समझौता बम धमाकों में हेडली का हाथ है।
स्वाभाविक प्रश्न है कि इतने साक्ष्यों के होते हुए भी सरकार समझौता एक्सप्रेस बम धमाकों के लिए हिंदू संगठनों को कसूरवार साबित करने पर क्यों तुली है? मालेगांव धमाकों में भी सिमी की संलिप्तता सामने आने के बावजूद सत्ता अधिष्ठान साधु-संतों को कसूरवार बताने के लिए बलतंत्र के बूते साक्ष्यों को दबाने पर तुला है। मालेगांव बम धमाकों को लेकर कर्नल पुरोहित और उनके सहयोगियों के खिलाफ अदालत में जो आरोप पत्र पेश किया गया है उसमें कहा गया है कि आरोपी आइएसआइ से धन लेने के कारण संघ प्रमुख मोहन भागवत और संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार की हत्या की योजना बना रहे थे। यदि कथित हिंदू आतंकी संघ प्रमुख की हत्या करना चाहते थे तो फिर संघ पर आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाने का आरोप कैसे लगाया जा सकता है? शिंदे को अपने कहे की समझ भी है? मुंबई हमलों की साजिश में पाकिस्तानी सेना और जमात उद दवा की संलिप्तता के पुख्ता प्रमाण अमेरिकी जांच एजेंसी के पास है, किंतु कांग्रेस 'हिंदू आतंकवाद' का हौवा खड़ा कर रही है। क्यों? ऐसा करने के लिए किसका दबाव है या इस काम का पारितोषिक उसे क्या मिला है? क्या सरकार वोट बैंक की राजनीति के लिए असली गुनहगारों को बचाना चाहती है?
[लेखक बलबीर पुंज, राच्यसभा के सदस्य हैं]

पेशावर में खौफ में जी रहा सिख समुदाय

http://www.jagran.com/news/world-peshawar-sikhs-worried-insecure-over-kidnappings-10078002.html
इस्लामाबाद। अपहरण की बढ़ती घटनाओं के कारण पेशावर शहर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय के बीच असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है। पिछले साल नवंबर में कबायली क्षेत्र खैबर से अपहृत औषधि विक्रेता मोहिंदर सिंह का शव टुकड़ों में मिला था। वहीं बीते हफ्ते रघबीर सिंह को उनके कायदाबाद स्थित घर के पास से ही अगवा कर लिया गया था। 40 वर्षीय रघबीर चार बच्चों के पिता हैं।

ईद मिलादुन्नबी के जुलूस में फायरिंग व पथराव

http://www.jagran.com/news/national-10072239.html
मुरादाबाद। जनपद के भगतपुर थानांतर्गत ग्राम मानपुर में शुक्रवार दोपहर ईद मिलादुन्नबी के जुलूस के दौरान दो संप्रदायों के बीच टकराव हो गया। इस दौरान दोनों गुटों की ओर से जमकर पथराव हुआ। देखते ही देखते माहौल इतना गरमा गया कि असलहे भी निकल आए। दोनों पक्षों के बीच जमकर फायरिंग भी हुई। इसमें आधा दर्जन लोग घायल हो गए। मौके पर पहुंचे एक दरोगा तथा चार सिपाहियों को भीड़ ने दौड़ा दिया।

बरेली में हिंसा, छह घायल

http://www.jagran.com/news/national-violence-in-bareilly-six-injured-10072940.html
उत्तर प्रदेश के बरेली जिला स्थित गांव धौली मोरूपुरा में जुलूस ए मुहम्मदी में शामिल होने आ रही अंजुमन को रोकने पर बवाल हो गया। पथराव व फायरिंग में पीएसी जवान समेत छह लोग घायल हुए हैं। घरों में आग लगाने का भी प्रयास हुआ। मौके पर जिलाधिकारी व एसएसपी फोर्स के साथ पहुंचे और किसी तरह हालात पर काबू पाया।

दस नामों के कारण हिंदू आतंकवाद का हल्ला

http://www.jagran.com/news/national-ten-names-clutter-the-hindu-terrorism-10068988.html
जिन कथित आतंकियों के कारण केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला और अब जिन्हें लेकर सियासी तापमान बढ़ता जा रहा है वे कुल दस शख्स हैं। ये हैं स्वामी असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा, देवेंद्र गुप्ता, संदीप डांगे, लोकेश शर्मा, कमल चौहान, मुकेश वासानी, चंद्रशेखर लेवे, राजेंद्र और रामजी कलसांगरे। इस सूची में सुनील जोशी का नाम भी शामिल था, लेकिन उसकी हत्या हो चुकी है। संदीप डांगे और रामजी को फरार बताया जाता है। जेल में बंद साध्वी प्रज्ञा स्तन कैंसर से ग्रस्त है।

मिशनरियों के साये में भी पिछड़े रहे आदिवासी

http://navbharattimes.indiatimes.com/thoughts-platform/viewpoint/are-also-backward-tribal-missionaries-in-the-shadows/articleshow/18167548.cms
आज क्रिसमस सबसे बड़ा ग्लोबल त्योहार बन गया है। दुनिया भर में ईसाई ही नहीं, बल्कि तमाम दूसरे समुदाय के लोग भी इसे धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन दूसरे त्योहारों की तरह क्या यह भी अब एक खोखला आयोजन बन कर नहीं रह गया है? ईसा मसीह ने दुनिया को शांति का संदेश दिया था। लेकिन गरीब ईसाइयों के जीवन में अंधेरा कम नहीं हो रहा। अगर समुदाय में शांति होती तो आज ईसाई आदिवासी समाज की स्थिति इतनी दयनीय नहीं होती।