केरल का वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम वस्तुत: भारत में प्रचलित सेक्युलरवाद की विकृतियों को ही रेखांकित करता है। कांग्रेसनीत यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार में इंडियन युनियन मुस्लिम लीग और केरल कांग्रेस का दबदबा है। अभी हाल में मुस्लिम लीग ने सरकार की कलाई मरोड़ कर अपनी पार्टी के कोटे में पांचवां मंत्रालय भी हासिल कर लिया। ओमान चांडी के 21 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अब अल्पसंख्यक कोटे के 12 मंत्री हैं, जिसमें केवल मुस्लिम लीग के पांच मंत्री हैं। जोड़तोड़ से सरकार बनाने में सफल कांग्रेस पर गठबंधन का दबाव इतना है कि जो काम मुख्यमंत्री का है वह काम भी घटक दल अपनी मनमानी से कर रहे हैं। मुस्लिम लीग ने कांग्रेस की कमजोर नब्ज दबा रखी है और उसी कारण न केवल अपने लिए पांचवां मंत्रालय झटका, बल्कि मंत्री और मंत्रालय भी अपनी मर्जी से स्वयं घोषित कर दिए।
करीब एक साल से मुस्लिम लीग इस पांचवें मंत्रालय की मांग कर रही थी। इसके समर्थन में सड़कों पर भी हरा झंडा लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें मल्लपुरम को केरल की सत्ता का केंद्र बताया जाता था। मल्लपुरम वही ऐतिहासिक क्षेत्र है जहां मार्क्सवादी नेता और बाद में केरल के पहले मुख्यमंत्री बने नंबूदरीपाद अलग पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते सड़कों पर उतरा करते थे। परिस्थितियां आज भी वैसी ही हैं। राजनीतिक स्वार्थपूर्ति के लिए कांग्रेस अलगाववादी मानसिकता को पोषित कर रही है। मुस्लिम लीग या केरल कांग्रेस का भयादोहन केवल मंत्रालय तक सीमित नहीं है। केरल कांग्रेस और इंडियन मुस्लिम लीग के जो मंत्री हैं उनके सभी निजी सहकर्मी भी ईसाई और मुस्लिम संप्रदाय के हैं। इतना ही नहीं, केरल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मंत्री महोदय के अधीन जितने भी विभाग आते हैं उनमें शीर्ष स्तर पर नियुक्तिऔर तबादले अपने ही समुदाय से किए जा रहे हैं। केरल में हिंदुओं की आबादी 56 प्रतिशत है, किंतु ओमान चांडी की सरकार में केवल नौ हिंदू मंत्री हैं। ईसाई आबादी 19 फीसदी है और उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए सात मंत्री हैं। इसी तरह मुस्लिमों की आबादी करीब 25 फीसदी है और उनके कोटे से पांच मंत्री हैं। आज केरल के नीति निर्माण में वहां के अल्पसंख्यक प्रभावी और निर्णायक भूमिका में हैं, जबकि वहां के बहुसंख्यक सरकार में अल्पसंख्यक बन गए हैं। क्या यह स्थिति सेक्युलरवादी राजनीति का परिणाम नहीं है? विडंबना यह है कि प्राय: पूरे देश में सेक्युलरवाद के नाम पर राजनीतिक दलों में वोट बैंक की राजनीति के कारण तुष्टीकरण की होड़ लगी है। तुष्टीकरण की यह होड़ देश को किस ओर ले जा रही है?
हाल में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सत्तासीन हुई है, किंतु विजयमाला के फूल सूखे भी नहीं थे कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मुस्लिम चरमपंथियों की ब्लैकमेलिंग से दो-चार होना पड़ा। सपा नेता आजम खान और दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद बुखारी के बीच चली जुबानी जंग इस खतरनाक पहलू को ही रेखांकित करती है। केरल में मुस्लिमों का वोट बैंक अपने पाले में करने के लिए हर चुनाव के दौरान कांग्रेस और मार्क्सवादियों के बीच होड़ लगी रहती है। पीपुल्स डेमोक्त्रेटिक पार्टी के संस्थापक अब्दुल नासेर मदनी कोयंबटूर बम धमाकों के आरोप में सन् 2008 में जब तमिलनाडु की जेल में बंद थे तब होली की छुट्टी के दिन केरल विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें कांग्रेस और मार्क्सवादियों ने सर्वसम्मति से मदनी को पैरोल पर छोड़ने के लिए प्रस्ताव पारित किया था।
आज मदनी चेन्नास्वामी स्टेडियम में बम विस्फोट के सिलसिले में कर्नाटक की जेल में बंद है, किंतु कांग्रेस और मार्क्सवादी उसको संरक्षण देने से बाज नहीं आ रहे। केरल के पूर्व मार्क्सवादी मुख्यमंत्री अच्युतांनद ने सार्वजनिक तौर पर राज्य का इस्लामीकरण किए जाने का खुलासा किया था, किंतु यह भी सच है कि कांग्रेस और मार्क्सवादियों के मौन समर्थन के कारण लव जिहाद का खेल जारी है। बहला-फुसलाकर हिंदू युवतियों के साथ मुस्लिमों के निकाह किए जाने की साजिश का वित्तपोषण खाड़ी देशों से होता है। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन [अलगाववादी मुस्लिम छात्र संगठन सिमी का नया अवतार] के कई स्लीपर सेल केरल में मौजूद हैं। इन खतरों के बीच केरल की राजनीति में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का प्रभावी भूमिका में होना आत्मघाती साबित हो सकता है।
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इमामों के लिए मासिक मेहनताना देने, उनके लिए मकान बनवाने की खातिर भूमि और आर्थिक मदद देने की घोषणा की। ममता की निगाह अगले साल होने वाले पंचायती चुनाव पर टिकी है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर वह मार्क्सवादियों से दौड़ में आगे रहने के लिए मुसलमानों को बढ़-चढ़ कर सौगातें दे रही हैं। उन्होंने बड़े पैमाने पर मदरसों की स्थापना करने की राह भी आसान की है। पश्चिम बंगाल में तीस सालों तक मार्क्सवादियों का राज रहा, जिन्होंने वोट बैंक की खातिर बड़े पैमाने पर अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की बसावट को नजरअंदाज किया। तुष्टीकरण की नीति के कारण ही आधी रात को बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को मार्क्सवादियों ने राज्य से बाहर निकाल दिया था। हाल ही में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने छल-प्रपंच के बल पर सलमान रुश्दी को जयपुर में संपन्न साहित्य सम्मेलन में भाग लेने से वंचित कर दिया था। जो सेक्युलर जमात हिंदू देवी-देवताओं के नग्न चित्र बनाने वाले मकबूल फिदा हुसैन के समर्थन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल खड़ा करता है वह तस्लीमा नसरीन और सलमान रुश्दी के मामले में खामोश क्यों हो जाती है?
क्या भारत वास्तव में एक सेक्युलर देश है? देश के कई हिंदूबहुल राच्यों में यदि गैर हिंदू मुख्यमंत्री-राच्यपाल बन सकता है तो मुस्लिम बहुल या ईसाई बहुल राच्यों में एक हिंदू मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों आसीन नहीं हो पाता? मिजोरम, मेघालय, नागालैंड आदि में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई हिंदू अब तक नहीं बैठा। जम्मू-कश्मीर में गैर मुस्लिम का मुख्यमंत्री बनना वर्तमान में दिवास्वप्न ही है, जबकि मुस्लिम समुदाय के लोगों की एक लंबी सूची है, जो देश के भिन्न-भिन्न राच्यों में राच्यपाल या मुख्यमंत्री रहे। मुस्लिम समुदाय के लोग इस देश में राष्ट्रपति जैसे शिखर पद पर आसीन हो चुके हैं, किंतु कुछ राच्यों के साथ हिंदुओं का अनुभव ऐसा नहीं है। पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में जिस दिन कोई हिंदू मुख्यमंत्री बनेगा वह सेक्युलरवाद की सच्ची जीत होगी, किंतु यक्ष प्रश्न यह है कि सेक्युलरवाद का मौजूदा स्वरूप क्या कभी ऐसा माहौल विकसित होने देगा?
[बलबीर पुंज: लेखक भाजपा के राच्यसभा सदस्य हैं]
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