Sunday, November 17, 2013

बीजेपी नेता का मर्डर, बवाल

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/21198316.cms
तमिलनाडु में बीजेपी के महासचिव वी. रमेश की बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह वारदात बीती रात उनके घर के पास हुई। रमेश के शरीर पर चोटों के 17 निशान थे। हत्यारों के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका है। इस घटना के बाद तमिलनाडु में तनाव फैल गया है।

चुनावों का सांप्रदायीकरण

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-communalism-elections-10587411.html
कांग्रेस प्रवक्ता ने आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के गठन और इसके अस्तित्व की तार्किकता पर असाधारण बयान जारी किया है। इस संगठन को अवैध गतिविविधि (निरोधक) अधिनियम के तहत आतंकी संगठन घोषित किया गया है। संप्रग सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इसे विदेशी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया है। इंग्लैंड में भी यह निषिद्ध है। गंभीर राजनीतिक विश्लेषकों की समझ से परे है कि कांग्रेस के आधिकारिक प्रवक्ता इस प्रतिबंधित संगठन के गठन को कैसे तर्कसंगत ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि इस संगठन का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद हुआ है।
संप्रग अपने अस्तित्व के दसवें साल में है। जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं संप्रग को सत्ता विरोधी रुझान का भय सता रहा है। संप्रग में नेतृत्व की विफलता स्पष्ट है। इसका नेतृत्व अप्रभावी है। इसकी सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है। सरकार को नहीं सूझ रहा है कि अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर कैसे लाया जाए। संप्रग ने भ्रष्टाचार को नए दिशासूचक सिद्धांत के रूप में राज्य की नीति में शामिल कर लिया है। संप्रग के दस साल का कुशासन अब बता रहा है कि कैसे भारत की विकास गाथा को ध्वस्त कर दिया गया। संप्रग के शासन के घटिया ट्रैक रिकॉर्ड के बाद आगामी चुनाव में प्रभावी और स्वच्छ सरकार मुख्य मुद्दा बन गया है। कांग्रेस की पारंपरिक रणनीति है कि अगर वह शासन में विफल हो गई है तो अपने आखिरी उपाय को आजमाएगी यानी कांग्रेस के प्रथम परिवार के तथाकथित करिश्मे को भुनाने का प्रयास करेगी। दुर्भाग्य से यह करिश्मा भी बेअसर साबित हो रहा है। संप्रग का मौजूदा नेतृत्व अप्रभावी है और नए नेतृत्व में नेतृत्व करने का गुण ही नहीं है।
शासन के संकट और नेतृत्व के अभाव का सामना कर रहा संप्रग हताशाजनक रूप से ऐसी रणनीति पर चल रहा है, जिससे लोगों का ध्यान गंभीर मुद्दों से हट जाए। उसका पूरा प्रयास है कि भारत की विकास गाथा को पटरी से उतारने वाला मुद्दा चुनाव में प्रमुखता हासिल न कर पाए। ऐसे में संप्रग के सामने केवल एक विकल्प बचता है। देश के राजतंत्र का सांप्रदायीकरण करके चुनावी मुद्दे को बदल दे। जो भी लोग संप्रग को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं उन्हें यह बात समझनी चाहिए कि चुनाव में मुख्य मुद्दा शासन ही बना रहना चाहिए, जिससे संप्रग कन्नी काट रहा है।
पिछले कुछ सप्ताह से संप्रग नेता राजतंत्र के सांप्रदायीकरण की नीति पर तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके तीन स्पष्ट संकेतक हैं। पहला, संप्रग ने अपने हमले नरेंद्र मोदी पर केंद्रित कर रखे हैं। गुजरात में शुरुआत में कांग्रेस नरेंद्र मोदी पर हमले की रणनीति पर ही चली थी। कांग्रेस के साथ अपनी राजनीतिक जंग में मोदी हमेशा भारी पड़े। चुनावों में मोदी का प्रदर्शन बेहतर रहा। इस रणनीति से फायदा मिलने के बजाय नुकसान होने के कारण कांग्र्रेस ने वैकल्पिक रणनीति अपनाई और यह दर्शाया कि जहां तक उसके चुनाव अभियान का संबंध है, मोदी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। केंद्र में प्रथम चरण में कांग्रेस की रणनीति मोदी पर तगड़े हमले करने की है। इस प्रक्त्रिया में वह मोदी को केंद्रीय मंच ही उपलब्ध करा रही है। जल्द ही संप्रग को इन हमलों की प्रति-उत्पादकता का अहसास होगा और वह अपनी वैकल्पिक रणनीति पर उतर आएगी और मोदी की उपेक्षा का दिखावा करेगी। दूसरे, इशरत जहां मामले में सीबीआइ के माध्यम से केंद्र सरकार की रणनीति हैरान करने वाली है। इस मामले में सीबीआइ लश्करे-तैयबा से मृतकों के संबंधों की अनदेखी कर रही है। इस प्रकार उसने पूरे भारत की सुरक्षा व्यवस्था को दांव पर लगा दिया है। कथित पीड़ितों के लश्करे-तैयबा से संबंधों पर पहली चार्जशीट में चुप्पी क्यों साधी जाती है? क्या खुफिया ब्यूरो ने इस आतंकी नेटवर्क के बारे में कश्मीर से अपने स्नोतों से जानकारी जुटाई थी? क्या भारत का सुरक्षा तंत्र और हमारी खुफिया एजेंसियां लश्करे-तैयबा की बातचीत रिकॉर्ड करने, उन पर निगरानी रखने और उनसे पूछताछ करने का अधिकार नहीं रखतीं? क्या ये तमाम उपाय आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए हैं या फिर एक अपराध की साजिश रचने के लिए?
इस सवाल का जवाब इसमें निहित है कि कथित पीड़ितों के लश्करे-तैयबा से संबंध थे या नहीं? सरकार की जांच एजेंसी के नाते सीबीआइ ने लश्करे-तैयबा से इनके संबंधों पर चुप्पी साध ली। डेविड हेडली से इस आतंकी गिरोह के लश्करे-तैयबा से संबंधों के बारे में एनआइए की पूछताछ संबंधी पैरा 168 किसने मिटा दिया है? सीबीआइ इस हद तक चली गई कि उसने लश्करे-तैयबा के आतंकियों और उनके भारतीय संपकरें के आवाज के नमूनों को भी स्वीकार नहीं किया है। क्या सीबीआइ ने कुछ पुलिसवालों से साठगांठ कर ली है, जो कथित मुठभेड़ में शामिल थे और जो आरोपी से गवाह बन चुके हैं। ऐसा करके वे देश के खुफिया तंत्र और सुरक्षा ढांचे का अपमान करना चाहते हैं। मुठभेड़ की तह में जाए बगैर मैं यह सवाल इसलिए उठाता हूं, क्योंकि ये संकेत हैं कि लश्करे-तैयबा के आतंकियों को शहीद और भारत के सुरक्षा और खुफिया तंत्र को खलनायक सिद्ध करने के सायास प्रयास किए जा रहे हैं। क्या यह वोट बैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगाने की सायास रणनीति नहीं है?
तीसरे, इसी संदर्भ में इंडियन मुजाहिदीन पर शकील अहमद के बयान की पड़ताल होनी चाहिए। 9/11 के बाद विभिन्न आतंकी समूहों पर वैश्रि्वक ध्यानाकर्षण रहा है। पाकिस्तान पर भारत में सीमापार से आतंकवाद फैलाने का आरोप था। 9/11 से पाकिस्तान पर अपनी धरती से आतंकी गतिविधियां बंद करने का जबरदस्त दबाव पड़ा। राजग सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध लगाया था। इस परिप्रेक्ष्य में इंडियन मुजाहिदीन का गठन हुआ। पाकिस्तान एक ऐसा संगठन खड़ा करना चाहता था जो भारतीय लगे और जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय काम करें। बम बनाने की तकनीक और पैसा सीमापार से मुहैया कराया गया। इस संगठन में भारतीयों की मौजूदगी के कारण भारत में हर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान अपनी संलिप्तता से आसानी से इन्कार कर पाया। अपने गठन से ही इंडियन मुजाहिदीन भारत में बड़े हमलों का जिम्मेदार रहा है। कांग्रेस प्रवक्ता ने इतिहास का पुनर्लेखन करने का प्रयास किया है। उनका प्रयास इंडियन मुजाहिदीन को गुजरात दंगों के शिकार लोगों के संगठन के रूप में प्रस्तुत करने का है। वह इंडियन मुजाहिदीन के गठन के पीछे पाकिस्तान की रणनीति की अनदेखी कर रहे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के सांप्रदायीकरण का एक और हताशापूर्ण प्रयास है।
[लेखक अरुण जेटली, राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं]

स्पेस में मैसेज भेजने के लिए संस्कृत है बेस्ट लैंग्वेज

http://navbharattimes.indiatimes.com/delhi/other-news/sanskrit-is-the-most-useful-language-for-communicating-with-space-travellers/articleshow/21085600.cms
 आजकल हर तरफ इंग्लिश का बोलबाला है। साइंस से लेकर वर्किंग लैंग्वेज के रूप में अपनी जगह बना चुकी इंग्लिश अब वक्त की जरूरत बन चुकी है। लेकिन अगर हम कहें कि इस जरूरत की भी अपनी कुछ कमजोरियां हैं जिनका सलूशन केवल संस्कृत के पास है तो निश्चित तौर पर आप पूछेंगे कैसे?

पाकिस्तान में हिंदू रेप के सबसे बुरे शिकारः अमेरिकी रिपोर्ट

http://navbharattimes.indiatimes.com/world/pakistan/hindus-in-pakistan-are-worst-rape-victims-in-pakistan/articleshow/21169543.cms
इस्लामाबाद।। पाकिस्तान में हिंदू रेप के सबसे बुरे शिकार हैं। एक इंडिपेंडेंट अमेरिकी ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की स्टडी में कहा गया है कि पिछले 18 महीनों के दौरान सात हिंदू लड़कियों के साथ रेप की घटना घटी।

रोड पर नमाज पढ़ने को लेकर मेरठ में तनाव

http://navbharattimes.indiatimes.com/other-cities/meerut/tension-in-meerut-over-namaz-on-road/articleshow/21013272.cms
रोड पर नमाज पढ़ने को लेकर मेरठ में दो समुदायों के बीच बुधवार को तनाव पैदा हो गया। सूचना मिलते ही काफी संख्या में पुलिस और प्रशासनिक ऑफिसरों ने मौके पर पहुंचकर स्थिति को संभाला। पुलिस बल की मौजूदगी में लोगों ने नमाज अदा की। ऑफिसरों ने दोनों समुदायों को आश्वासन दिया है कि गुरुवार को इस मसले का हल निकाल लिया जाएगा। इसके बाद जाकर तनाव थोड़ा कम हुआ। हिंदूवादी संगठनों ने चेतावनी दी है कि सड़क पर किसी भी हालत में नमाज नहीं होने देंगे।

दिग्विजय के ट्वीट से नाराज कांग्रेसी नेता बीजेपी में शामिल

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/21017163.cms
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के ट्वीट का खामियाजा मध्य प्रदेश कांग्रेस को भुगतना पड़ा है। राज्य में कांग्रेस विधानमंडल दल के उपनेता राकेश सिंह चतुर्वेदी ने बागी रुख अपनाते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया है। चतुर्वेदी का कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का पूरा घटनाक्रम भी कम नाटकीय नहीं रहा।

‘आतंकी थी इशरत, बिहार की बेटी बताकर जनता का अपमान न करे JDU’

http://aajtak.intoday.in/story/ishrat-jahan-was-a-terrorist-says-chinmayanand-1-736049.html
पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद का कहना है कि गृह मंत्रालय के अधीन आईबी की रिपोर्ट में यह साबित हो चुका है कि इशरत जहां आतंकवादी थी. फिर भी हमारे पूर्व सहयोगी जेडीयू के नेता इशरत जहां को बिहार की बेटी बताकर वहां की जनता का अपमान कर रहे हैं.

साड़ी पहने मदर मेरी और ईसा की मूर्ति पर विवाद

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/east-india/mother-mary-statue-in-tribal-attire-stirs-row-in-jharkhand/articleshow/21004786.cms
झारखंड के रांची के धुर्वा में लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहने और गोद में ईसा मसीह को उठाए हुए मदर मेरी की आदिवासी लुक वाली मूर्ति को लेकर गैर-ईसाइयों का एक धड़ा गुस्से में है। इस बाबत विवाद इस कदर बढ़ गया है कि इस मूर्ति को हटाए जाने की मांग कर रहे लोगों ने इस बाबत रैली निकाली है और इसे स्थानीय लोगों को 'बहकाने' वाला बताया है। विरोध कर रहे लोगों ने चेताया है कि यदि तुरंत मूर्ति नहीं हटाई गई तो देश भर में विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।

इंडियन मुजाहिदीन ने किए धमाके!

http://www.jagran.com/news/national-indian-mujahideen-behind-bodhgaya-blasts-10547884.html
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भले ही बोधगया धमाकों की साजिश के लिए भाजपा की ओर इशारा कर रहे हों, लेकिन गृह मंत्रालय का संदेह इंडियन मुजाहिदीन पर ही है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि हमारे पास पहले से जानकारी थी कि आइएम महाबोधि मंदिर में धमाके की योजना बना रहा है और इस पर संदेह का कोई कारण नहीं है। उन्होंने हालांकि स्वीकार किया कि इस वारदात को अंजाम देने वाले आतंकियों का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने महाराष्ट्र में कहा कि महाबोधि मंदिर परिसर में 13 बम लगाए गए थे, जिनमें से दस में विस्फोट हुए।

आतंकियों को आमंत्रण

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-invitation-to-terrorists-10547880.html
अभी तक यह आम धारणा रही है कि आतंकी गतिविधियों को लेकर खुफिया ब्यूरो यानी आइबी के एलर्ट रस्मी ही हुआ करते हैं और उनमें ऐसी कोई खास जानकारी नहीं रहती कि संबंधित राज्य की पुलिस कुछ खास कर सके, लेकिन शायद ऐसा नहीं है। महाबोधि मंदिर में धमाकों के बाद यह स्पष्ट हो रहा है कि आइबी के एलर्ट काम के होते हैं और अगर उन पर ध्यान दिया जाए तो आतंकियों पर अंकुश संभव है। दुर्भाग्य से बिहार सरकार ने आइबी एलर्ट पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया और वह भी तब जब उसे कई बार ऐसे एलर्ट मिले। बिहार सरकार ने आइबी एलर्ट पर ध्यान देने के बजाय इस पर गौर किया कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी रह-रहकर उसके यहां के लोगों को गिरफ्तार क्यों कर रही है? दरभंगा जिले से इन लोगों की गिरफ्तारी पर चेतने के बजाय बिहार सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी पर ही सवाल उठा दिया। उसकी आपत्तिइस पर थी कि गिरफ्तार किए जा रहे लोगों को 'दरभंगा माड्यूल' का हिस्सा क्यों बताया जा रहा है? उसने यह आपत्तिइसके बावजूद उठाई कि इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकी संगठन का कुख्यात सरगना यासीन भटकल दरभंगा जिले के एक गांव में महीनों रहकर आतंकियों को तैयार करता रहा।
यह संभवत: पहली बार है कि आतंकी धमाकों को लेकर आलोचनाओं के घेरे में आई राज्य सरकार केंद्र सरकार पर ऐसी कोई तोहमत मढ़ने की स्थिति में नहीं है कि उसकी एजेंसियों की ओर से कोई चेतावनी नहीं दी गई और जो दी भी गई वह किसी काम की नहीं थी। शायद केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के लिए इससे ज्यादा सटीक सूचनाएं देना संभव नहीं है और अगर वे देने में सक्षम हो जाएं तो भी आगे का काम राज्य सरकारों और उनकी पुलिस को ही करना होगा। मुश्किल यह है कि राज्यों को एनसीटीसी जैसी संस्था मंजूर नहीं। वे कानून एवं व्यवस्था के मामले में केंद्र का कोई हस्तक्षेप सहने को तैयार नहीं। अपनी-अपनी पुलिस को मजबूत करने का काम भी उनकी प्राथमिकता से बाहर है। बिहार में तमाम संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी और नेपाल से लगती सीमा से उनकी घुसपैठ की प्रबल आशंका के बावजूद बिहार सरकार ने आतंक रोधी दस्ते के गठन के केंद्र सरकार के सुझाव पर ध्यान न देना बेहतर समझा।
कानून एवं व्यवस्था के तंत्र को दुरुस्त करने के मामले में जो स्थिति बिहार की है वही ज्यादातर राज्यों की भी है। राज्य सरकारें यह देखने से इन्कार कर रही हैं कि आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने तत्व मजबूत होते जा रहे हैं और उनके मुकाबले उनका सुरक्षा तंत्र कहीं अधिक कमजोर है। आंध्र प्रदेश के नक्सलियों ने शेष देश के नक्सलियों से हाथ मिलाकर खुद को एकजुट और मजबूत कर लिया, लेकिन नक्सल प्रभावित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री एक के बाद एक अनगिनत बैठकों के बावजूद नक्सलवाद से निपटने के तरीकों पर एकमत नहीं हो सके हैं। यही स्थिति आतंकी तत्वों से निपटने के मामले में भी है। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन ने दक्षिण से निकलकर उत्तार भारत में अपनी जड़ें जमा लीं और फिर भी राज्य सरकारें कई बार इस पर उलझ पड़ती हैं कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी या किसी अन्य राज्य की पुलिस ने उसकी जानकारी के बगैर उसके यहां के किसी संदिग्ध को गिरफ्तार कैसे कर लिया। राज्यों के इस रवैये के साथ-साथ आतंकवाद को लेकर की जाने वाली सस्ती राजनीति ने भी आंतरिक सुरक्षा का बेड़ा गर्क कर रखा है। इस पर आश्चर्य नहीं कि महाबोधि मंदिर में विस्फोट होते ही सियासी बयान धमाकों की तरह गूंजने लगे। इस मामले में किसी भी दल के नेता पीछे नहीं रहे, लेकिन सबसे अव्वल रहे कांग्रेस के मुखर महासचिव दिग्विजय सिंह। कभी-कभार धीर-गंभीर, लेकिन ज्यादातर मौकों पर शरारत भरे बयान देने में माहिर दिग्विजय सिंह ने पहले यह कहा कि गैर भाजपा शासित राज्य सतर्क रहें। इस बयान के जरिये उन्होंने यह संदेश दिया कि हो न हो भाजपा वाले ही विस्फोट कराते हैं अथवा उनसे मिले रहते हैं। जब इस बयान से उनका जी नहीं भरा तो उन्होंने ट्विटर पर यह लिख मारा, ''अमित शाह अयोध्या में भव्य मंदिर का वायदा करते हैं और मोदी बिहार के भाजपा कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि वे नीतीश को सबक सिखाएं। अगले दिन महाबोधि में विस्फोट हो जाते हैं। क्या इसमें कोई संबंध है?'' यह सवाल की शक्ल में किया गया प्रहार है। क्या इसका मतलब ऐसा कुछ नहीं निकलता कि नरेंद्र मोदी ने पहले तो नीतीश कुमार को धमकाया और फिर किसी को भेजकर-उकसाकर महाबोधि मंदिर में धमाके करा दिए? दिग्विजय सिंह ने मोदी पर निशाना साधने के लिए बड़ी सफाई से उनके इस बयान को तोड़-मरोड़ डाला कि बिहार की जनता नीतीश कुमार को सबक सिखाएगी।
देश में जिस तरह नरेंद्र मोदी के तमाम प्रशंसक हैं उसी तरह उनके विरोधी भी बहुत हैं। स्पष्ट है कि मोदी के विरोधियों को दिग्विजय सिंह का बयान बहुत भाया होगा, लेकिन जिन तत्वों ने महाबोधि मंदिर में विस्फोट किए होंगे अथवा जो रह-रह कर विस्फोट करके देश को दहशतजदा करते रहते हैं वे तो आनंद से भर उठ होंगे। आतंकियों को आनंदित करने का यह काम कुछ और लोग भी कर रहे हैं। फिलहाल इस काम में सीबीआइ भी मशगूल दिख रही है। इशरत जहां मुठभेड़ कांड की जांच के बहाने उसने आइबी की ऐसी घेरेबंदी कर रखी है कि वह त्राहिमाम की हालत में आ गई है। आश्चर्यजनक यह है कि कोई भी आइबी की गुहार सुनने को तैयार नहीं-न राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और न ही प्रधानमंत्री। शायद संकीर्ण राजनीतिक हितों की पूर्ति के लोभ में केंद्रीय सत्ता के नीति-नियंता यह भूल रहे हैं कि भविष्य में आइबी से किसी तरह के अलर्ट की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? क्या मौजूदा हालात नक्सलियों, आतंकियों और अन्य देश विरोधी तत्वों को सादर आमंत्रित करने वाले नहीं नजर आते?
[लेखक राजीव सचान, दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं]

सेतुसमुद्रम के पक्ष में द्रमुक ने दी जेलें भरने की धमकी

http://www.jagran.com/news/national-demand-for-sscp-not-aimed-at-publicity-says-karunanidhi-10547887.html
नागपट्टनम। भारत और श्रीलंका के बीच जहाजों के सुगम आवागमन के लिए सेतुसमुद्रम परियोजना की हिमायत करते हुए द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि ने कहा है कि उनका मकसद इस मुहिम से लोकप्रियता हासिल करना नहीं है। पार्टी कोषाध्यक्ष एमके स्टालिन ने चेतावनी दी है कि अगर राज्य सरकार परियोजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से हलफनामा वापस नहीं लेती

मलयेशिया में धर्म परिवर्तन से जुड़ा विवादास्पद बिल वापस

http://navbharattimes.indiatimes.com/world/asian-countries/malaysia-withdraws-bill-allowing-unilateral-conversion/articleshow/20975980.cms
मलयेशियाई सरकार ने सोमवार को धर्म परिवर्तन से जुड़े एक विवादास्पद बिल को वापस ले लिया। यह बिल मां या बाप, किसी भी एक को अपने बच्चे को धर्म परिवर्तन के लिए मंजूरी देने का अधिकार देता है। बिल को लेकर खासा विवाद उस वक्त पैदा हो गया था, जब दो नाबालिग भारतीय हिंदू लड़कियों की मां की इजाजत बिना ही उन्हें इस्लाम कबूल कराया गया था।

हिंदू मुन्नानी संगठन के नेता की हत्या से रामेश्वरम में तनाव

http://www.jagran.com/news/national-hindu-munnani-leader-murdered-in-rameswaram-10546058.html
तमिलनाडु के रामेश्वरम में हिंदू मुन्नानी संगठन के एक स्थानीय नेता की हत्या कर दी गई है। इससे शहर में तनाव पैदा हो गया है। राज्य में इस संगठन के नेता पर यह दूसरा जानलेवा हमला है।

बिहार के बोधगया के महाबोधि मंदिर में सीरियल ब्लास्ट

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/8-serial-blast-in-mahabodhi-temple/articleshow/20951739.cms
आतंकी हमले के बाद बिहार के बोधगया मंदिर को आम लोगों के लिए बंद कर दिया गया है, हालांकि वहां प्रार्थना नियमित रूप से कराई जाएगी। बिहार के डीजीपी अभयानंद ने यह जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर को खास नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन वहां की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ज्यादा कड़ी कर दी गई है। इस बीच खबर है कि एनआईए की टीम बोधगया मंदिर पहुंच गई है और उसने अपनी तरह से जांच-पड़ताल शुरू कर दी है।

आतंकवाद पर आत्मघाती रवैया

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-suicide-attitude-on-terrorism-10537062.html
जब इशरत जहां पुलिस गोलीकांड मामले में आरोपपत्र दाखिल होने के पूर्व से ही तूफान खड़ा किया जा रहा था तो फिर आरोपपत्र आने के बाद उसे बवंडर में परिणत करने की कोशिश बिल्कुल स्वाभाविक है। हालांकि जिस तरह खुफिया ब्यूरो के अधिकारी से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह आदि के नाम आने से लेकर उनके भविष्य तक का आकलन पहले ही कर दिया गया था वैसा कुछ हुआ नहीं। हां, कुछ लोगों के लिए संतोष का विषय यह है कि आरोपपत्र में सीबीआइ ने जांच जारी रखने की बात कही है। दुर्भाग्य से इस आरोपपत्र की गलत व्याख्या भी की जा रही है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो सीबीआइ ने अपनी जांच में इशरत जहां सहित मारे गए चारों को बिल्कुल निर्दोष साबित कर दिया है। इशरत जहां मामले के दो पहलू हैं। एक यह कि वह और उसके साथियों ने वाकई पुलिस के साथ भिड़ंत की या उन्हें पकड़ने के बाद मारा गया? दो, क्या वे चारों निर्दोष थे या आतंकवाद या अपराध से उनका रिश्ता था? आरोपपत्र में केवल यह कहा गया है कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद के नरोदा इलाके में मारी गई इशरत एवं उनके तीन साथियों ने पुलिस से मुठभेड़ नहीं की थी, वे पहले से पुलिस के कब्जे में थे, जिन्हें मारकर मुठभेड़ की झूठी कथा में परिणत कर दिया गया। नि:संदेह इस मामले में पहले आई रिपोटरें से भी पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में आती हैं। मसलन, 9 सितंबर 2009 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट न्यायमूर्ति एसपी तमांग की जांच रिपोर्ट। इसमें भी उनके पास हथियार रखने की बात थी। इसमें कहा गया था कि उप महानिरीक्षक डीजी बंजारा एवं पुलिस आयुक्त केआर कौशिक ने इशरत जहां, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्राणेश पिल्लई, अमजद अली उर्फ राजकुमार राणा और जीशान अली को महाराष्ट्र में ठाणे व अन्य जगहों से उठाया और 14 जून की रात्रि में 10-12 बजे के बीच गोली मार दी, लेकिन तमांग की रिपोर्ट व्यापक जांच के बजाय पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु के कारण संबंधी रिपोर्ट, फोरेंसिक निष्कर्ष एवं सबडिविजनल मजिस्ट्रेट की प्राथमिक छानबीन पर आधारित थी।
सीबीआइ आरोपपत्र से उनके आतंकवादी न होने का प्रमाण नहीं मिलता। सीबीआइ आरोपपत्र के अनुसार उसने इस पहलू की जांच की ही नहीं। क्यों नहीं की? तो जवाब है कि उच्च न्यायालय ने ऐसा करने को नहीं कहा। खैर, पुलिस ने दावा किया था कि वे चारों मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए थे और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी थे। इसके भी दो पहलू हैं। एक यह कि उनके आतंकवादी होने की सूचना कहां से आई थी? यह साफ है कि केंद्रीय खुफिया ब्यूरो ने पहले इसकी छानबीन की, फिर गुजरात एवं यहां तक कि महाराष्ट्र पुलिस को भी इसकी जानकारी दी। यानी यह गुजरात पुलिस की अपनी सूचना पर कार्रवाई नहीं थी। सीबीआइ कह रही है कि खुफिया ब्यूरो ने पहले अमजद अली उर्फ राजकुमार राणा और जीशान अली को गिरफ्तार किया, फिर इशरत और उसके साथी जावेद गुलाम शेख उर्फ प्राणेश पिल्लई को गिरफ्तार किया गया था। इन चारों को आइबी ने दो तीन हफ्ते तक अपनी हिरासत में रखा, फिर गुजरात पुलिस को सौंप दिया।
प्रश्न है कि अगर खुफिया ब्यूरो कोई सूचना देता है तो जिम्मेदारी उसकी होगी या राच्य की? अगर राच्य की पुलिस को केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार ने सूचना दी तो जिम्मेदारी उनकी है और वे अकेले तो इस ऑपरेशन में संलग्न थे नहीं। इसमें वहां के मुख्यमंत्री कैसे षड्यंत्र में शामिल हो सकते हैं। अब आएं उनके आतंकवादी होने और न होने के आरोप पर। आइबी द्वारा सीबीआइ को लिखे पत्र के अनुसार सितंबर 2009 में अमेरिका में पकड़े गए पाकिस्तान मूल के लश्कर-ए-तैयबा आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने एफबीआइ के सामने अपने कुबूलनामे में लिखा है कि इशरत जहां और उसके साथी लश्कर से जुड़े थे और वह स्वयं एक फिदायीन थी। जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनके अनुसार केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के अधिकारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मुजम्मिल का फोन ट्रेस कर रहे थे। इस दौरान सुराग मिला कि जीशान जौहर नामक आतंकवादी 26 अप्रैल 2004 को अहमदाबाद आया है एवं छद्म पहचान के साथ गोता हाउसिंग बोर्ड में रुका है। इसी दौरान दूसरी सूचना 27 मई को अमजद अली राणा के कालूपुल-अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के सामने स्थित होटल में ठहरने की जानकारी मिली।
सीबीआइ का कहना है कि पुलिस ने राणा को उठा लिया। तत्पश्चात चारों को 15 जून 2004 को पूर्वी अहमदाबाद में मार गिराया गया। यह मान लिया जाए कि उन्हें उठाकर मारा गया तब भी उनके आतंकवादी होने का संदेह पुख्ता अवश्य होता है। अमेरिका गए राष्ट्रीय जांच एजेंसी एवं कानून मंत्रालय के चार सदस्यीय दल ने वहां क्या जानकारी प्राप्त की उसे देश के सामने लाया जाए। 6 अगस्त 2009 को अपने पहले हलफनामे में गृह मंत्रालय ने इशरत और उसके साथियों को लश्कर आतंकी बताते हुए मुठभेड़ की सीबीआइ जांच का विरोध किया था। दो महीने के भीतर ही हलफनामा बदल दिया गया था। क्यों? जाहिर है, फर्जी मुठभेड़ के आरोप की आड़ में हमें उतावलेपन और केवल मोदी विरोध की भावना में आतंकवादी या संदेहास्पद गतिविधियों वाले पहलू को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। फर्जी मुठभेड़ बिल्कुल अनुचित है, परंतु यह देश की सुरक्षा का मामला है। आतंकवादी रडार में शीर्ष पर होने वाले देश के लिए ऐसा रवैया आत्मघाती होगा। अगर हम आतंकवादियों की खुफिया जानकारी और परवर्ती कार्रवाई में लगी आइबी, पुलिस या सरकारों को ही कठघरे में खड़ा करेंगे तो इससे आतंकवादियों और देश विरोधियों का ही हौसला बढ़ेगा।
[लेखक अवधेश कुमार, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]

खाड़ी की दौलत से केरल में बढ़ रहा धार्मिक उन्माद?

केरल में मुस्लिम समुदाय के लोगों की इनकम बढ़ाने में काफी हद तक खाड़ी देशों के इकनॉमिक बूम का योगदान है, लेकिन पिछले 4 दशक के दौरान बढ़ी इस ताकत के कुछ नेगेटिव पहलू भी सामने आ रहे हैं। इससे समुदाय के कुछ लोगो में रैडिकलिज़म को भी हवा मिली है।
http://getpocket.com/redirect?url=http%3A%2F%2Fnavbharattimes.indiatimes.com%2Fbusiness%2Fbusiness-news%2Fgulf-money-gives-currency-to-muslim-extremism-in-kerala%2Farticleshow%2F20889189.cms
 

Tuesday, October 1, 2013

बलियाः हिंसक झड़प मामले में 7 गिरफ्तार

http://navbharattimes.indiatimes.com/-///---7-/articleshow/20863269.cms
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में उभांव थाना के कुंडैल नियामतअली गांव में रविवार को दलित और मुस्लिम वर्ग के बीच हुई हिंसक झड़प के मामले में पुलिस ने सोमवार को दोनों पक्षों के सात लोगों को गिरफ्तार किया है। यह जानकारी पुलिस ने दी।

दोहरे मापदंड का प्रमाण

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-proof-of-double-standards-10527947.html
पिछले दिनों 'शबे बारात' के मौके पर रात को दिल्ली की सड़कों पर एक समुदाय विशेष के युवाओं ने जमकर हुड़दंग मचाया। पिछले साल भी इस मौके पर ऐसा ही अराजक माहौल था। मोटरसाइकिल पर सवार हजारों गुंडों ने कानून एवं व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं। एक-एक मोटरसाइकिल पर तीन-चार गुंडे बैठे थे। किसी ने भी हेलमेट नहीं पहना था और ट्रैफिक के हर कानून का उल्लंघन करते हुए घंटों गुंडागर्दी का तांडव किया। निजी वाहनों में सफर कर रही महिलाओं के साथ बदतमीजी की गई और उन्हें अश्लील इशारे किए गए। ट्रैफिक जाम में फंसी कारों के ऊपर खड़े होकर उत्पाती नाचते रहे। पुलिस मूकदर्शक बनी रही। प्रश्न उठता है कि इन असामाजिक तत्वों के आगे प्रशासन पंगु क्यों था और इन गुंडों को दुस्साहस की प्रेरणा कहां से मिलती है?
दैनिक जागरण बधाई का पात्र है, जिसने पूरी साफगोई से मामले को विस्तार से सामने रखा। यह घटनाक्त्रम सेक्युलर व्यवस्था के दोहरे मापदंडों को रेखांकित करता है। यह केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। देश के अन्य हिस्सों, खासतौर पर पश्चिम उत्तार प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं आम हैं। दहशतगर्द यदि मुस्लिम समुदाय से जुड़े होते हैं तो प्रशासन मौन साध लेता है। अधिकारियों को 'ऊपर' से कार्रवाई न करने का आदेश होता है। समाज की शांति भंग करने वाले जहां बेखौफ हैं, वहीं इस देश की कानून एवं व्यवस्था पर विश्वास रखने वाले आम नागरिक हुड़दंगियों के रहमोकरम पर हैं। दो साल पूर्व इसी जून के महीने में कालेधन और भ्रष्टाचार को लेकर बाबा रामदेव द्वारा छेड़े गए जन आंदोलन को दिल्ली पुलिस ने अपने लाठीबल से कुचल दिया था। भारत माता की जय बोलने वाले एक निहत्थे समूह को आधी रात पुलिसिया बर्बरता का शिकार बनाने वाली व्यवस्था ऐसे मामलों में क्यों खामोश रहती है? आज दिल्ली पुलिस की मर्दानगी कहां खो गई? मुस्लिम समुदाय के कट्टरपंथी तत्वों द्वारा हिंसा के बल पर कानून एवं व्यवस्था को हाशिये पर डालने के अनेक उदाहरण हैं। पुरानी दिल्ली स्थित सुभाष पार्क में मेट्रो रेल निगम की ओर से रेल पटरी बिछाने के लिए की जा रही खुदाई में जब एक ढांचा सामने आया तो उस पर मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं ने फौरन अपनी दावेदारी ठोंक दी। खुदाई में अभी केवल एक दीवार ही मिली थी और उसे मस्जिद का अवशेष घोषित कर मस्जिद खड़ी कर दी गई। यहां चल रहे अवैध निर्माण कार्य को रोकने का साहस किसी भी सरकारी एजेंसी में नहीं था। मामला जब उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में पहुंचा तो अदालत ने वहां निर्माण कार्य पर रोक लगाने का आदेश सुनाया, किंतु इस आदेश की तामील कराने जब पुलिस विवादित स्थल पर पहुंची तो स्थानीय मुस्लिम आबादी के एक बड़े वर्ग ने पुलिस पर हल्ला बोल दिया। घंटों सड़क पर बलवाइयों का खौफ छाया रहा और आम आदमी को जानोमाल के जोखिम से दोचार होना पड़ा। अदालती आदेश की अवहेलना और सड़क पर बलवा करने की इस घटना पर सेक्युलरिस्ट खामोश रहे। क्यों? देश का कानून और सेक्युलरिस्टों की सक्त्रियता अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में लकवाग्रस्त क्यों हो जाती है? अगस्त, 2012 में मुंबई के आजाद मैदान में असम दंगों के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन का हिंसा पर उतर आना कट्टरपंथियों के बढ़े दुस्साहस का एक और प्रमाण है। स्थानीय मुस्लिम संगठन रजा अकादमी के आह्वान पर जनसभा में शामिल होने के बहाने हजारों की संख्या में एकत्रित भीड़ ने पुलिस की गाड़ियां जला डालीं, न्यूज चैनलों की ओबी वैन जलाई गई और आसपास की दुकानों को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान पाकिस्तानी झंडे भी लहराए गए। इसके साथ ही पुणे, हैदराबाद आदि शहरों में पूर्वोत्तार के लोगों पर भी हमले किए गए। प्रश्न यह है कि एक समुदाय विशेष के कट्टरपंथी वर्ग को इस देश की कानून एवं व्यवस्था का खौफ क्यों नहीं है? अपनी हर उचित-अनुचित मांग को पूरा करने के लिए जब-तब हिंसा की प्रेरणा उसे कौन देता है?
दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में दिल्ली विकास प्राधिकरण की जमीन पर अवैध रूप से बनाई गई एक मस्जिद को ढहाने के लिए जब अधिकारी पहुंचे तो इसी तरह हिंसा के बल पर सुरक्षा जवानों और अधिकारियों को खदेड़ भगाया गया। दिल्ली के ही जोरबाग इलाके में अदालत के आदेश पर एक विवादित स्थल पर प्रवेश की अनुमति नहीं है, किंतु हिंसा के बल पर उसमें जबरन प्रवेश करने की जब-तब कोशिशें होती हैं। पुलिस मौन रहती है, जबकि आसपास के आम नागरिक खौफ के वातावरण में जीने को अभिशप्त हैं। क्यों? असम के दंगों के दौरान सेक्युलरिस्टों का वीभत्स चेहरा बेनकाब हुआ था। अवैध रूप से बस चुके बांग्लादेशी घुसपैठिए अब वहां के स्थानीय बोडो जनजातीय लोगों को हिंसा के बल पर मार भगाना चाहते हैं। उनकी पहचान मिटाने पर आमादा हैं, किंतु कांग्रेस दशकों से बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण प्रदान कर रही है, जिनके वोट बैंक के बूते वह असम की सत्ता पर कुंडली मारे बैठी है।
क्या वोट बैंक की राजनीति के लिए इन अवैध घुसपैठियों को इसलिए शरणार्थी मान लेना चाहिए कि वे मुस्लिम हैं? रोहयांग म्यांमारी और बांग्लादेशी घुसपैठियों का भारत से दूर-दूर का संपर्क नहीं है, फिर भी उन्हें संरक्षण दिलाने के लिए सेक्युलर दलों का एक बड़ा तबका चिंताग्रस्त है, किंतु उन हजारों हिंदुओं के लिए कोई फिक्रमंद दिखाई नहीं देता जो मजहबी उत्पीड़न और हिंसा से खौफजदा होकर बांग्लादेश और पाकिस्तान से पलायन कर अपने वतन लौटे हैं।
भारत में यदि मुस्लिम समाज में कट्टरवादी हावी हो रहे हैं और मजहबी जुनून को हवा मिल रही है तो इसका बड़ा श्रेय सेक्युलरिस्टों को जाता है, जो वोट बैंक की राजनीति के कारण मुस्लिम कट्टरपंथ को आंख बंद कर पोषित करते हैं। यही कारण है कि सीमा पार बैठी शक्तियां स्थानीय मुस्लिम युवाओं को काफिर और जिहाद के नाम पर उकसाने में सफल हो रही हैं। सेक्युलरिस्ट अशिक्षा को इस्लामी आतंक की प्रमुख वजह बताते आए हैं, किंतु कड़वी सच्चाई यह है कि मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग में मौजूद कट्टरपंथी मानसिकता ही वह उर्वर भूमि है जिसमें जिहाद की फसल लहलहा रही है। वस्तुत: सेक्युलरिस्टों के दोहरे मापदंड सामाजिक शांति, सौहार्द और भारत के परंपरागत बहुलतावादी समाज के लिए गंभीर खतरा हैं।
[लेखक बलबीर पुंज, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं]

हटाई माता 'धारी देवी' की मूर्ति तो उत्तराखंड में हुआ 'महाविनाश'

इसे चाहें तो अंधविश्वास कहें या महज एक संयोग! उत्तराखंड में हुई तबाही के लिए जहां लोग प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वहीं उत्तराखंड के गढ़वाल वासियों का मानना है कि माता धारी देवी के प्रकोप से ये महाविनाश हुआ.
http://aajtak.intoday.in/story/superstition-or-co-incidence-locals-believe-kali-avtaar-dhari-devi-unleashed-the-floods-for-revenge-1-734467.html

कनाडा में हिंदू मंदिर में तोड़फोड़

http://www.jagran.com/news/world-hindu-temple-in-canada-vandalised-10514364.html
कनाडा के एक वैदिक हिंदू मंदिर में दो लोगों द्वारा तोड़फोड़ किए जाने की घटना सामने आई है। इससे यहां अल्पसंख्यक समुदाय में गुस्से की लहर है। लोग इसे हिंदुओं के खिलाफ घृणा अपराध के रूप में देख रहे हैं।

कैलिफोर्निया में अक्टूबर में मनेगा हिंदू जागरुकता माह

http://www.jagran.com/news/world-california-declares-oct-as-month-for-hindu-awareness-10511189.html
अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की सीनेट ने हिंदू अमेरिकियों के योगदान को मान्यता देने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है। इसके तहत इस साल अक्टूबर को हिंदू जागरुकता माह के रूप में मनाने की घोषणा की गई है।
 

पांच रुपये के सिक्के पर मां वैष्णो देवी की तस्वीर पर विवाद

http://www.jagran.com/news/national-controversies-over-issue-rs-5-denomination-coins-on-vaishno-devi-10493831.html
श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के 25 साल पूरे होने पर जारी देवी मां की तस्वीर वाले पांच रुपये के सिक्के को लेकर विवाद हो पैदा गया है। रिजर्व बैंक से जारी इन सिक्कों को लेकर मुस्लिम संगठनों ने विरोध जताया है।

मलेशिया में दो हिंदू बच्चों का धर्मांतरण कराया

मलेशिया में भारतीय मूल के दो नाबालिग हिंदू बच्चों का धर्मांतरण उनकी मां की मर्जी के बगैर करवा दिया गया। इस विरोध में वहां प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/20665084.cms

अमरनाथ यात्रा में खलल डालना चाहते हैं आतंकी: परनायक

सेना के उत्तरी कमान प्रमुख केटी परनायक ने सोमवार को कहा कि खुफिया सूचना के मुताबिक आतंकियों का इरादा इस बार अमरनाथ यात्रा में खलल डालने का है। इसके लिए आतंकी टूथपेस्ट या किताब जैसी चीजों में बम छिपाकर श्रद्धालुओं को निशाना बनाने की योजना बना रहे हैं, लेकिन सेना उनके नापाक इरादों को कामयाब नहीं होने देगी। 'ऑपरेशन शिवा' नामक अभियान चलाकर सेना श्रद्धालुओं की सुरक्षा करेगी।
http://www.jagran.com/news/national-amarnath-yatra-on-terror-radar-says-parnaik-10486886.html

आगरा: दो समुदायों में भिड़ंत, आगजनी

http://www.jagran.com/news/national-clash-in-agra-10486811.html
अति संवेदनशील इलाका काजीपाड़ा में सोमवार को युवकों के खेल के झगड़े में सुलग गया। आमने-सामने आए दो समुदायों के बीच जमकर पथराव और मारपीट हुई। इसके बाद उपद्रवियों ने आगजनी शुरू कर दी। पथराव से फैली दहशत के कारण बाजार एकाएक बंद हो गया। हालात काबू में करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और हवाई फायरिंग की। पथराव में कई लोग घायल भी हुए हैं।

पुलिसकर्मियों को कुचलने का प्रयास

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-10477985.html
वध के लिए ले जाए जाने वाले मवेशियों की धर पकड़ के दौरान शुक्रवार को डाफी टोल टैक्स के पास पशु तस्करों ने पुलिसकर्मियों को कुचलने का प्रयास किया। इस दौरान लंका पुलिस ने दो ट्रकों को पकड़ लिया जिस पर 37 मवेशी लदे थे। थाना प्रमुख देव प्रकाश यादव ने बताया कि इस बाबत कौशांबी व फतेहपुर के मो. रेहान, चांद बाबू, मो. जाकिर व बचानी गिरफ्तार किए गए। मवेशी वध के लिए कानपुर व इटावा ले जाए जा रहे थे।

खाड़ी देशों में मेरठ से भेजा जा रहा गोमांस

http://www.jagran.com/news/national-meerut-is-a-big-hub-of-beef-export-to-all-uae-and-gulf-10477393.html
खाड़ी देशों में बड़े पैमाने पर गोमांस निर्यात हो रहा था। डीएम के नेतृत्व में गढ़ रोड स्थित मुद्रा कोल्ड स्टोरेज [पैकेजिंग मीट प्लांट] में मारे गए छापे से यह पता चला है। मीट के आठ नमूनों की जांच कर मथुरा स्थित फोरेंसिक लैब ने गोमांस होने की पुष्टि कर दी है। प्लांट संचालकों के विरुद्ध मेडिकल थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया है। अब इकाई को सील करने की तैयारी है। इस मामले में मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने भी रिपोर्ट तलब की है।

25,000 बुजुर्गों को फ्री तीर्थयात्रा कराएगी IRCTC

राजस्थान सरकार इस साल 25 हजार बुजुर्गों को फ्री तीर्थयात्रा कराएगी. इस संबंध में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मौजूदगी में वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना के तहत देवस्थान विभाग और रेल मंत्रालय के उपक्रम आई.आर.सी.टी.सी. के बीच समझौता पत्र (एम.ओ.यू) पर हस्ताक्षर हुए.
http://aajtak.intoday.in/story/rajasthan-govt-signs-deal-with-irctc-to-facilitate-free-pilgrimage-to-senior-citizens-1-733347.html

पाकिस्तान से हिंदू कर सकते हैं पलायन

http://www.jagran.com/news/world-hindu-lawmaker-in-pak-raises-fears-of-his-communitys-exodus-10466046.html
पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं के बीच एक हिंदू विधायक ने देश की नई सरकार से अपने समुदाय के लोगों के पलायन की आशंका जताई है। साथ ही उनके अधिकारों की रक्षा के लिए त्वरित और प्रभावी कानून बनाने का आह्वान किया है।

गो तस्करी के खिलाफ फूटा गुस्सा

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-10461853.html
गो तस्करी के खिलाफ हिन्दू जागरण मंच का गुस्सा शनिवार को फूट पड़ा। मंच के उत्तेजित कार्यकर्ताओं ने विरोध में रामेश्वर स्थित गोशाला के मुख्यद्वार पर प्रदर्शन कर नारेबाजी की।

आतंकी छोड़ने पर तुली है यूपी सरकार: हाई कोर्ट

http://www.jagran.com/news/national-hc-stays-up-order-on-withdrawing-cases-against-terror-accused-10460341.html
उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैजाबाद, लखनऊ और वाराणसी की अदालतों में हुए धमाकों के आरोपी आतंकियों से मुकदमे वापसी की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी है। अदालत ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकार जिस तरीके से आतंकियों के मुकदमे वापस लेकर उन्हें छोड़ने पर आमादा है, उससे आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा।

वोट बटोरने की बेताबी

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-eagerly-plotting-votes-10449248.html
कट्टरवाद के तुष्टीकरण की होड़ में उत्तर प्रदेश की सरकार आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोपियों की रिहाई के लिए बेचैन है। वस्तुत: पिछले साल विधानसभा चुनावों के दौरान ही सेक्युलर दलों में मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए होड़ लगी थी। राज्य सरकार की बेताबी चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करने का प्रयास है। सत्ता हासिल करने के कुछ समय बाद ही सरकार ने 2006 के वाराणसी बम धमाके के आरोपी वलीउल्लाह और शमीम को रिहा करने का निर्णय किया था। सरकार के इस निर्णय को अदालत में चुनौती दी गई थी, जिस पर फैसला सुनाते हुए अदालत को कड़वी टिप्पणी के लिए बाध्य होना पड़ा। न्यायाधीश आरके अग्रवाल और आरएसआर मौर्य की पीठ ने तब कहा था, आज आप उन पर से मुकदमा हटाना चाहते हैं, कल क्या उन्हें पद्म भूषण देंगे? किंतु सरकार इस फटकार से जरा भी विचलित नहीं है।
उत्तार प्रदेश सरकार कचहरी ब्लास्ट केस में गिरफ्तार मोहम्मद खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का मन बना चुकी थी। खालिद की कोर्ट पेशी के दौरान मृत्यु हो चुकी है। सरकार ने उसके परिजनों को छह लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है। एक आरोपी आतंकी के लिए इतनी उदारता क्यों? आतंकियों के हाथों मारे जाने वाले सुरक्षा जवानों या नागरिकों के लिए सरकार ऐसी ही चिंता क्यों नहीं करती? कट्टरपंथियों का आरोप है कि इन दोनों को एसटीएफ ने फर्जी तरीके से गिरफ्तार किया था। इस शिकायत की जांच के लिए बाकायदा आरडी निमेश कमीशन का गठन किया गया था। कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है, 'खालिद मुजाहिद और कासमी की बाराबंकी में 22 दिसंबर, 2007 को हुई गिरफ्तारी संदिग्ध लगती है। इस गिरफ्तारी को लेकर दिए गए बयान व गवाहों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।'
वास्तविकता क्या है? 22 दिसंबर, 2006 को दिल्ली क्त्राइम ब्रांच और आइबी ने हुजी कमांडर व डोडा, जम्मू-कश्मीर के निवासी मोहम्मद अमीन बानी को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में बानी ने ही इन दोनों आतंकियों का खुलासा किया था। उसने बताया कि 28 नवंबर, 2006 को वह खालिद मुजाहिद से मिलने जौनपुर गया था, जहां उसकी मुलाकात आजमगढ़ के तारिक कासमी से हुई। दोनों ने कश्मीर में चल रहे आंदोलन में सक्त्रिय सहयोग के लिए हामी भरी थी। खालिद मुजाहिद तो 2004 से ही हुजी कमांडरों के संपर्क में था। हवाला के साढ़े चार लाख रुपयों के साथ गिरफ्तार बानी ने पूछताछ में बताया था कि इस रकम से हुजी के लिए असलहे व अन्य संसाधन जुटाने थे। उसने बताया कि जौनपुर निवासी मोहम्मद खालिद ने उल्फा के लोगों से असलहे खरीदने के लिए हुजी से रकम जुटाने को कहा था। बानी इसी रकम को लेने के लिए दिल्ली आया था। मोहम्मद खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की गिरफ्तारी से एक साल पूर्व ही खुद हुजी के कमांडर ने उनके आतंकी गतिविधियों में संलग्न होने का खुलासा कर दिया था। ऐसे में इन दोनों आतंकियों को बेगुनाह कैसे बताया जा रहा है?
जिन युवकों पर आतंकवाद में शामिल होने का आरोप है, उन्हें सेक्युलर दल न केवल अपनी ओर से 'क्लीन चिट' थमा रहे हैं, बल्कि भारत की न्यायिक व्यवस्था को दुनिया की नजरों में कलंकित करने का भी कुप्रयास कर रहे हैं। यह कैसी मानसिकता है? अभी कुछ समय पूर्व सेक्युलर दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री से मिलकर जेलों में बंद कथित निर्दोष मुसलमानों को रिहा करने की अपील की थी। इस देश की न्याय व्यवस्था को कलंकित करने का प्रयास करने वाले सेक्युलरिस्टों को अजमल कसाब का दृष्टांत सामने रखना चाहिए। ज्वलंत साक्ष्यों और सैकड़ों प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के बावजूद कसाब को दंडित करने में न्यायपालिका को चार साल लग गए। इस लंबी न्यायिक प्रक्त्रिया में कसाब को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त अवसर भी दिया गया।
इस तरह की क्षुद्र राजनीति से जहां एक ओर आतंकवाद को प्रोत्साहन मिलता है वहीं सुरक्षा बलों का मनोबल भी टूटता है। वस्तुत: यह विकृत मानसिकता वोट बैंक की सेक्युलर राजनीति से प्रेरित है। इसी मानसिकता के कारण देश की संप्रभुता के प्रतीक संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरु की फांसी की सजा लंबे समय तक अधर में लटकाए रखी गई। कश्मीर के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने पत्र लिखकर केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि अफजल को फांसी देने से कानून एवं व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है तो वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला घाटी में फिर से आतंकवाद के जिंदा होने की धमकी देते रहे। क्या सेक्युलर नेताओं का यह रवैया मुसलमानों के राष्ट्रप्रेम पर प्रश्न नहीं लगाता? क्या तथाकथित सेक्युलर दल यह मानकर चलते हैं कि भारत के साधारण मुसलमान की सहानुभूति भारत के साथ न होकर आतंकियों के साथ है? क्या यह धारणा भारत के आम मुसलमानों के साथ अन्याय नहीं है? कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने सत्ता में आते ही राजग सरकार द्वारा लागू पोटा को निरस्त कर दिया था। सेक्युलरवादियों का आरोप था कि सांप्रदायिक भाजपा ने मुसलमानों को प्रताड़ित करने के लिए पोटा जैसा कानून बनाया था। आतंकवाद से निपटने के लिए कड़े कानून नहीं होने का परिणाम है कि आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक इस्लामी चरमपंथियों के हौसले बुलंद हैं। इस देश की जांच एजेंसियों या पुलिस पर मुस्लिम समाज के उत्पीड़न का आरोप समझ से परे है। न तो पुलिस और न ही सरकार ने आतंकवाद को लेकर मुस्लिम समुदाय को कठघरे में खड़ा किया है। अभी हाल में दिल्ली के बाटला हाउस मुठभेड़ में सेक्युलरिस्टों ने आतंकियों के हाथों शहीद हुए जवानों की अनदेखी कर इस मुठभेड़ को फर्जी साबित करने की कोशिश की थी। मुसलमानों को अपने समुदाय में छिपे उन भेड़ियों की तलाश करनी चाहिए जो दहशतगदरें को पनाह देते हैं। मुंबई पर इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ, क्या वह सीमा पार कर अचानक घुस आए जिहादियों के द्वारा संभव था?
मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ कांग्रेस व उसके सेक्युलर संगियों का गठजोड़ नया नहीं है। शाहबानो से लेकर अब्दुल नसीर मदनी तक सेक्युलर विकृतियां सभ्य समाज के लिए गंभीर खतरा हैं। कोयंबटूर बम धमाके के आरोपी मदनी को पैरोल पर रिहा करने के लिए कांग्रेस और मा‌र्क्सवादियों ने होली की छुट्टी वाले दिन सदन का विशेष सत्र आयोजित कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था। अभी मदनी कर्नाटक पुलिस की गिरफ्त में है। केरल में उसका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कांग्रेस और मा‌र्क्सवादियों में होड़ लगी रहती है। आज यदि सेक्युलर दल आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद मुस्लिम युवाओं से सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं तो आश्चर्य कैसा?
[लेखक बलबीर पुंज, राज्यसभा सदस्य हैं]

गोहत्या के लिए उकसाने के आरोप में फेसबुक पर मुकदमा

 http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/case-filed-against-facebook-for-inciting-cow-slaughter/articleshow/20154598.cms
रिपोर्ट के मुताबिक, फेसबुक पर एक समूह द्वारा खुलेआम गोहत्या की तारीफ करते हुए इसके लिए उकसाया जा रहा है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि समूह में शामिल कई यूजर्स कई तरह की आपत्तिजनक टिप्पणियों के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।
 

ब्लास्ट आरोपी की रिहाई को सपा सरकार डालेगी विशेष याचिका

http://www.jagran.com/news/national-up-blast-accused-special-plea-10409614.html
कचहरी सीरियल ब्लास्ट के आरोपी खालिद मुजाहिद की मौत के बाद अब सपा सरकार दूसरे अभियुक्त तारिक काजमी के विरुद्ध दर्ज मुकदमे की वापसी के लिए हाई कोर्ट में विशेष याचिका दायर करेगी। यह कदम बाराबंकी की न्यायालय से मुकदमा वापसी की शासन की सिफारिश खारिज होने के बाद उठाया जा रहा है। इसके लिए जिलाधिकारी मिनिस्ती एस ने अभियोजन विभाग से तैयार मसौदे को शासन को सौंप दिया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी योग-आयुर्वेद की शरण में

http://www.jagran.com/news/national-world-health-organization-in-the-shelter-of-ayurveda-and-yoga-10401006.html
विश्व स्वास्थ्य संगठन [डब्लूएचओ] भी योग और आयुर्वेद की शरण में है। डब्लूएचओ ने दुनिया को रोग मुक्त बनाने के इरादे से योग और आयुर्वेद को जरूरी प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। दोनों ही पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए इसने पहली बार भारत में एक-एक साझेदारी केंद्र शुरू किए हैं। इससे न सिर्फ विभिन्न बीमारियों के इलाज में योग और आयुर्वेद के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि दुनिया भर में इन पर लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।

अल्पसंख्यकों को हुनरमंद बनाने को सालभर का कोर्स

http://www.jagran.com/news/national-special-programme-for-minority-community-10401008.html
देश में चुनावी माहौल बनने के बीच सरकार की नजर रोजगार के लिए इधर-उधर भटक रहे अल्पसंख्यकों, खासतौर से मुस्लिम समुदाय के युवाओं पर भी पहुंच गई है। अब वह उन्हें स्थानीय उद्योग-धंधों की जरूरतों के लिहाज से हुनरमंद बनाएगी। युवकों को इसके लिए एक साल पढ़ाई करनी होगी व प्रशिक्षण लेना होगा। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, अलीगढ़, बरेली, भदोही और खुर्जा से लेकर जम्मू-कश्मीर तक के स्थानीय उद्योगों के मद्देनजर उन्हें रोजगार के काबिल बनाने के लिए स्किल डेवलपमेंट के नये कोर्स शुरू होंगे। पास होने वालों को सर्टिफिकेट मिलेगा।

Saturday, September 21, 2013

युवक की हत्या से दो समुदायों में तनाव

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-10717480.html

मुजफ्फर नगर दंगे की तपिश दूसरी जगहों पर भी चिंगारी उठा रही है। बुधवार को आगरा का कस्बा एत्मादपुर झुलसने से बच गया। वहां मंगलवार की मध्य रात्रि युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्यारों ने लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया। हत्यारोपी दूसरे समुदाय से होने के कारण बुधवार की सुबह इलाके में जबरदस्त तनाव व्याप्त हो गया। हत्यारोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी का आश्वासन देकर अधिकारियों ने ग्रामीणों को शांत किया। सतर्कता के मद्देनजर गांव में फोर्स तैनात किया गया है।
 

अलीगढ़ में तनाव

http://www.bhaskar.com/article/MAT-RAJ-AJM-c-18-427791-NOR.html
अलीगढ़ के अतरौली इलाके में बाइक सवार तीन युवकों ने कॉलेज जा रही एक लड़की से छेडख़ानी की। लड़की के शोर मचाने पर आसपास के लोगों ने एक युवक को पकड़ लिया लेकिन दो युवक भाग गए। इस घटना के बाद वहां स्थानीय संगठनों के कुछ लोग पहुंच गए। इलाके में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है।

दुकान में आग लगाई, तनाव

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/bijnor-10725722.html
बिजनौर : नगर के निकट स्थित गांव रामपुर बकली में एक दुकान में आग लगा दी गई। इससे हजारों रुपये का नुकसान हो गया। मामला दो सम्प्रदाय का होने के कारण गांव में तनाव हो गया। पुलिस ने दुकानदार और आरोपी का शांतिभंग में चालान कर दिया। साथ ही गांव में पुलिस बल को तैनात कर दिया गया है।

धार्मिक स्थल में युवकों के घुसने पर तनाव

http://www.jagran.com/uttar-pradesh/agra-city-10726175.html

बल्केश्वर में महादेव मंदिर रोड पर कृष्णानंद महाराज का आश्रम है। यहां फतेहाबाद रोड निवासी लाल सिंह दो साल से सेवादार हैं। उन्होंने बताया कि शनिवार रात करीब आठ बजे बस्ती के दूसरे समुदाय के पांच-छह युवक आश्रम में सीढि़यों से कूदकर आ गए और कृष्णानंद महाराज से आश्रम की चाभी मांगने लगे। लाल सिंह ने बताया कि इसका उन्होंने विरोध किया, तो युवकों ने उनके साथ मारपीट कर दी। शोर मचाने पर सामने की बस्ती के लोग आश्रम में पहुंच गए। दूसरे पक्ष के लोग भी हाथों में सरिया लेकर आ गए, लेकिन इधर के लोगों की संख्या अधिक देखकर वापस हो गए। बवाल की आशंका के चलते पुलिस फोर्स के साथ सीओ हरीपर्वत समीर सौरभ और इंस्पेक्टर न्यू आगरा नरेशचंद्र शर्मा पहुंच गए। दोनों पक्षों को समझाकर शांत कराया।
 

मांस की दुकानें हटाने को लेकर तनाव, पांच गिरफ्तार

http://www.prabhatkhabar.com/news/45546-Rajasthan-Mathura-Gate-Police-Station-Bhandara-during-the-protests-tensions-between-the-two-communities.html
राजस्थान के भरतपुर शहर के मथुरा गेट थाना इलाके में बुध की हाट इलाके में कल रात भंडारे के
दौरान हुए पथराव से दो समुदाय के बीच तनाव पैदा हो गयापुलिस सूत्रों ने बताया कि बुध की हाट स्थित
धार्मिक स्थल के आसपास मांस की दुकानों को लेकर एक समुदाय का दूसरे से कुछ दिनों से विवाद चल रहा था.
तनाव कल उस समय पैदा हो गया जब एक समुदाय के लोगों ने धार्मिक स्थल पर चल रहे भंडारे के दौरान
पत्थर फेंके, जिससे चार लोगों को चोट लगी.