Saturday, April 27, 2013

'हिंदू मतलब चोर' पर फंसेंगे या बचेंगे करुणानिधि?

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19690552.cms
गौरतलब है कि करुणानिधि ने 24 अक्टूबर 2002 को विवादित बयान देते हुए 'हिंदू' का मतलब 'चोर' बताया था। बवाल बढ़ने पर करुणानिधि ने 'हिंदी विश्व कोष' का हवाला देते हुए अपने बयान को सही कहा था। करुणानिधि के इस बयान पर तब हिंदू संगठनों ने जमकर वबाल किया था। हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में एक शख्स बीआर गौतमन की शिकायत पर सिटी पुलिस ने क्रिमिनल केस दर्ज किया था। करुणानिधि के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करने पर गौतमन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।

यूपी सरकार ने आतंकी से वापस लिए सभी मुकदमे

http://www.jagran.com/news/national-at-last-case-against-gorakhpu-blast-accused-tariq-qasmi-withdrawn-10333330.html
उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर में 22 मई, 2007 को हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोपी तारिक कासमी के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले लिया है। सरकार की उच्चाधिकार समिति ने यह फैसला न्याय विभाग के परामर्श के आधार पर किया है। आजमगढ़ जिले के सरायमीर कस्बे का मूल निवासी तारिक कासमी इस वक्त लखनऊ जेल में बंद है।

Attack on Hindus: TN Mutt heads too join stir

http://www.dailypioneer.com/nation/attack-on-hindus-tn-mutt-heads-too-join-stir.html
Normal life in four western districts of Coimbatore, Nilgiris, Tirupur and Erode came to a standstill on Friday following a dawn-to-dusk hartal called by various Hindu outfits. The strike was in protest against continued attacks on temples and leaders of Hindu organisations by various outfits masquerading as political parties.

मुलायम की ‘मुस्लिम सियासत’ हुई तेज

http://aajtak.intoday.in/story/sp-eyes-muslim-votes-in-up-1-728069.html
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आम चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय को रिझाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. इसके लिए वह सभी प्रभावशाली मुस्लिम संगठनों से संपर्क साधने और उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश में लगे हैं.

अयोध्या के विवादित स्थल पर रामनवमी को नहीं हुई पूजा

उन्नीस साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए एक आदेश की वजह से अयोध्या के विवादित स्थल पर इसबार रामनवमी के दिन पूजा अर्चना नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जिला प्रशासन ने विवादित स्थल पर इसबार किसी धार्मिक गतिविधि की इजाजत नहीं दी।

बेंगलुरु ब्लास्ट: इंडियन मुजाहिदीन शक के घेरे में

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19604783.cms
बेंगलुरु में हुए विस्फोट के एकबार फिर यह साबित हो गया है कि खुफिया तंत्र पूरी तरह 'अक्षम' है। हालत यह है कि विस्फोट के कई घंटे बाद तक जांच एजेंसियां यह बताने की स्थिति में नहीं है कि विस्फोट के पीछे किसका हाथ है। गृह मंत्रालय की तरफ से भी आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन सीनियर अधिकारी मान रहे हैं कि जो लोग हैदराबाद बम विस्फोटों के पीछे थे, उन्होंने ही इस विस्फोट को अंजाम दिया है।

हमें भारत में ही मारकर अंतिम संस्कार कर दो..

http://www.jagran.com/news/national-deport-our-bodies-to-pakistan-not-us-10310815.html
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग को पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों की दासता जब सुनाई जा रही थी तब मानवता भी शर्म सार थी। बुधवार को राजधानी दिल्ली के लोधी रोड स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के बाहर पाकिस्तान से आए हिंदुओं ने जमकर प्रदर्शन किया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा।

बेंगलुरु में BJP दफ्तर के पास IED से ब्लास्ट, 16 घायल

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/south-india/explosion-near-bjp-office-in-bangalore/articleshow/19591807.cms
चुनावी रंग में रंगा बेंगलुरु बुधवार सुबह एक ब्लास्ट से दहल गया। ब्लास्ट बेंगलुरु के मलेश्वरम में बीजेपी दफ्तर के बाहर एक मोटरसाइकल में हुआ। इसमें 8 पुलिसवालों समेत 16 लोग घायल हो गए।ब्लास्ट इतना तगड़ा था कि तीन कारें और कई मोटरसाइकलें जल गईं। शुरुआती रिपोर्ट्स में ब्लास्ट वैन के एलपीजी सिलेंडर में होने की खबर आई, लेकिन बाद में बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर ने साफ कि ब्लास्ट मोटरसाइकल में हुआ। एनआईए ने शुरुआती जांच के बाद बताया कि ब्लास्ट इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से किया गया। ब्लास्ट के पीछे आतंकी हमले की साजिश जताई जा रही है, लेकिन फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
 

पंथनिरपेक्षता का पाखंड

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-the-hypocrisy-of-secularism-10310065.html
नरेंद्र मोदी द्वारा इंडिया फ‌र्स्ट के रूप में सेक्युलरिज्म की नई परिभाषा देने से फिर एक विवाद पैदा हुआ और इस विवाद को बढ़ाने का काम जद (यू) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचना कर किया। नरेंद्र मोदी पर नीतीश कुमार के हमलों से यह बहस तेज हो गई है कि आखिर सेक्युलरिज्म है क्या बला? राजनीति में जिस सेक्युलरिज्म की दुहाई दी जाती है वह दरअसल झूठी और विकृत पंथनिरपेक्षता से अधिक और कुछ नहीं। यह वोट बटोरने का एक जरिया मात्र है। सेक्युलरिज्म पर सारा विवाद और छींटाकशी इसलिए होती रहती है, क्योंकि हमारे देश में इसकी कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। न संविधान में, न संसद में कानून बना कर, न सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय में सेक्यूलरिज्म का कोई अर्थ बताया गया है। सबसे बुरी बात तो यह कि इसे पारिभाषित करने के प्रयास को भी बाधित किया जाता है! नेतागण, सुप्रीम कोर्ट और प्रभावी बुद्धिजीवी वर्ग सबने इसे अस्पष्ट रहने देने की सिफारिश की है। यह सामान्य बात नहीं, क्योंकि इसी के सहारे भारत में एक विशेष प्रकार की राजनीति का दबदबा बना है, जिसकी धार हिंदू विरोधी है और इसी को कवच बनाकर देश-विदेश की भारत-विरोधी शक्तियां भी अपना कारोबार करती हैं।
ध्यान देने पर यह किसी को भी दिख सकता है। यहां बौद्धिक विचार-विमर्श में हिंदू शब्द प्राय: केवल उपहास या गाली के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। प्रसिद्ध पत्रकार तवलीन सिंह के अनुसार भारत में प्रचलित सेक्युलरिच्म हिंदू सभ्यता के विरुद्ध चुनौती बन गया है। भारतीय सभ्यता अपने उत्कर्ष पर हिंदू सभ्यता ही थी, जिसने संपूर्ण विश्व को गणित से लेकर दर्शन, धर्म और साहित्य तक हर क्षेत्र में अनमोल उपहार दिए, किंतु आज भारत में यह बात कहना हिंदू सांप्रदायिकता है। उसी तरह इंडिया फ‌र्स्ट कहने पर भी आपत्तिकी जा रही है। इन बातों का निहितार्थ बहुत गंभीर है। ऐसे प्रसंग हमारे देश के बौद्धिक वातावरण पर एक टिप्पणी है कि किस तरह एक विकृत मतवाद ने लोगों को इतना दिग्भ्रमित कर दिया है कि वे देखकर भी नहीं देख पाते। प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार ने 1965 में ही स्पष्ट देखा था किए इस देश में मुस्लिम संस्कृति और भारतीय संस्कृति की चर्चा की जा सकती है, मगर हिंदू संस्कृति की नहीं। हिंदू शब्द केवल नकारात्मक अथरें में प्रयोग किया जाता है। याद रहे, यह तब की बात है जब न राम-जन्मभूमि आंदोलन था, न विश्व हिंदू परिषद थी। मगर तब भी हिंदू शब्द का प्रयोग पोंगापंथी, सांप्रदायिक, फासिस्ट संदर्भ में ही होता था। चार दशक में आज वह विष भी बन गया जिससे पुस्तकों, पदों, संस्थानों को मुक्त करने का अभियान चलाना पड़ता है।
दुनिया के सबसे बड़े हिंदू देश में हिंदू-विरोध ही सेक्युलरिच्म की और बौद्धिकता की कसौटी बन गया है। इसी से संभव होता है कि एक समुदाय के मजहबी शिक्षा-संस्थानों को अनुदान मिले, जबकि दूसरे को अपनी औपचारिक शिक्षा में महान दार्शनिक ग्रंथों को पढ़ने की अनुमति भी न दी जाए। अपरिभाषित सेक्युलरिच्म के डंडे से ही हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्जा कर लिया जाता है। इतना ही नहीं कई बड़े मंदिरों की आमदनी से दूसरे समुदाय के धार्मिक कर्मकांडों को करोड़ों का अनुदान दिया जाता है। एक ही काम के लिए ईसाई कार्यकर्ता को पद्म भूषण दिया जाता है, जबकि हिंदू समाजसेवी को सांप्रदायिक कहकर लांछित किया जाता है। नितांत अप्रमाणित आरोप पर भी हिंदू धर्माचार्य गिरफ्तार कर अपमानित किए जाते हैं, जबकि दूसरे धमरें के धर्मगुरुओं को देशद्रोही बयान देने, संरक्षित पशुओं को अवैध रूप से अपने घर में लाकर बंद रखने पर भी छुआ तक नहीं जाता। उल्टे राजनीतिक निर्णयों में उन्हें विश्वास में लेकर उनकी शक्ति बढ़ा दी जाती है। भयंकर आतंकवादी को भी लादेनजी और अफजल साहब का सम्मानित संबोधन दिया जाता है, जबकि देश के सबसे बड़े योगाचार्य को ठग कहा जाता है। यदि सेक्युलरिच्म वैधानिक रूप से परिभाषित हो गया तो ये सभी मनमानियां नहीं की जा सकेंगी। इसकी अस्पष्टता का ही करिश्मा है कि शिक्षा, संस्कृति और राजनीति हर क्षेत्र में भारत में अन्य समुदायों को हिंदुओं से अधिक अधिकार मिले हुए हैं।
कहने को अभी देश में सेक्युलरिच्म की कम से कम चार परिभाषाएं हैं, यद्यपि कोई भी वास्तविक नहीं। अलग-अलग सेक्युलरवादी इच्छानुसार इनका उपयोग करते हैं। एक परिभाषा 1973 में न्यायाधीश एचआर खन्ना ने दी कि राच्य मजहब के आधार पर किसी नागरिक के विरुद्ध पक्षपात नहीं करेगा। कुछ वर्ष बाद दूसरी परिभाषा कांग्रेस पार्टी ने दी-सर्वधर्म समभाव। तीसरी परिभाषा भाजपा ने दी-न्याय सब को, तरजीह किसी को नहीं। चौथी परिभाषा नहीं एक टिप्पणी है। किंतु सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष एमएन वेंकटचलैया की होने के कारण इसका महत्व है। इसके अनुसार सेक्युलरिच्म का अर्थ बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध नहीं हो सकता। यह टिप्पणी प्रकारांतर मानती है कि व्यवहार में इसका यही अर्थ हो गया है। यहां याद करना जरूरी है कि स्वयं संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान को सेक्युलर नहीं माना था, क्योंकि यह विभिन्न समुदायों के बीच भेदभाव करता है।
कांग्रेस ने 1976 में इमरजेंसी के दौरान 42वां संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द जबरन जोड़ दिया। बाद में आई जनता सरकार ने 1978 में 45वें संशोधन द्वारा कांग्रेस वाली परिभाषा को ही वैधानिक रूप देने की कोशिश की। लोकसभा में यह पारित भी हो गया। पर राच्यसभा में कांग्रेस ने ही इसे पारित नहीं होने दिया। यह इस बात का पक्का प्रमाण है कि संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द गर्हित उद्देश्य से जोड़ा गया था, इसीलिए उसे जानबूझकर अपरिभाषित रखा गया ताकि जब जैसे चाहे, दुरुपयोग किया जाए। इस अन्याय को सुप्रीम कोर्ट ने भी दूर नहीं किया। उसने एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार मामले के निर्णय में लिख दिया कि सेक्युलरिच्म एक लचीला शब्द है, जिसका अपरिभाषित रहना ही ठीक है। जबकि ऐसा कहना ही कानून की धारणा के विरुद्ध है। जिसे संविधान और शासन का आधारभूत सिद्धांत कहा जाता है उसे परिभाषित होने से रोकने का आधार क्या है? एक अर्थ पसंद नहीं तो दूसरा सही, पर कोई पक्का वैधानिक अर्थ तो होना ही चाहिए। इससे हीलाहवाली करने पर आम जनता को समझने में कठिनाई नहीं होगी कि सेक्युलरिच्म को अपरिभाषित रखना विभिन्न समुदायों के बीच दूरी और झगड़ा बनाए रखने का पक्का औजार है।
[लेखक एस. शंकर, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

Tuesday, April 16, 2013

टोपी-टीका छाप पंथनिरपेक्षता

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-cap-mark-secularism-vaccine-10306939.html
देश में तमाम लोग ऐसे हैं जिन्हें यह लगता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हैं, लेकिन बहुत से लोग उन्हें इस पद के लिए श्रेष्ठ उम्मीदवार मान रहे हैं। यह पहले से स्पष्ट था कि नीतीश कुमार ऐसे लोगों में नहीं हैं। वह एक बार पहले भी नरेंद्र मोदी का नाम लिए बगैर उन्हें पीएम पद के लिए खारिज कर चुके हैं। तब उन्होंने एक साक्षात्कार के जरिये ऐसा किया था। अब सार्वजनिक भाषण के जरिये किया। पिछली बार की तरह इस बार भी उन्होंने मोदी का नाम नहीं लिया, लेकिन कम अक्ल लोग भी यह समझ गए होंगे कि उन्होंने मोदी के कपड़े-लत्तो उतारने की कोशिश की है। हालांकि वह मोदी का उपहास उड़ाए बगैर भी उन्हें पीएम पद के दावेदार के तौर पर खारिज कर सकते थे, लेकिन उन्होंने तो उनकी लानत-मलानत करते हुए उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर भी असफल करार दिया। उन्हें केवल गुजरात का विकास ही रास नहीं आया, बल्कि वहां के लोगों की उद्यमशीलता और उसके समुद्री किनारे से भी परेशानी हुई। अब जद-यू के छोटे-बड़े नेता भले यह कहें कि देखिए, नीतीशजी ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन कोई परम मूर्ख ही होगा जो यह कहेगा कि क्या वह गुजरात के मुख्यमंत्री की बात कर रहे थे, जिनका नाम नरेंद्र मोदी है? अगर गुजरात के लोगों में उद्यमशीलता है और वहां समंदर भी है तो इससे किसी को कोई शिकायत कैसे हो सकती है? आश्चर्यजनक रूप से नीतीश कुमार को है। उन्होंने गुजरात के विकास में कुछ खामियां भी खोज निकालीं। इसमें कोई बुराई नहीं। यह काम कोई भी आसानी से कर सकता है-ठीक वैसे ही जैसे बिहार के सुशासन में तमाम विसंगतियां गिनाई जा सकती हैं। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि गुजरात में राम राज्य है और वहां हर तरफ खुशहाली छाई है। खुद मोदी ने भी कहा है कि अभी तो सिर्फ गढ्डे भरे जा सके हैं। नरेंद्र मोदी के आलोचक कुछ भी कहें, यह एक सच्चाई है कि गुजरात में विकास हुआ है। इसी तरह यह भी एक सच्चाई है कि नीतीश के शासन में बिहार की बदहाली दूर हुई है। जिस तरह मोदी के तौर-तरीकों से असहमत हुआ जा सकता है वैसे ही नीतीश कुमार की रीति-नीति से भी। यह स्वाभाविक है कि दोनों नेताओं में जब-तब तुलना भी होती है और उन्हें भावी प्रधानमंत्री के तौर पर भी देखा जाता है। यह भी स्पष्ट है कि नीतीश के मुकाबले कहीं अधिक लोग नरेंद्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार खुद को प्रधानमंत्री का दावेदार नहीं बताते, लेकिन उनके दल के तमाम नेता ऐसा ही कहते हैं। इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि नीतीश की परेशानी यह है कि उनके मुकाबले नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता कहीं अधिक बढ़ गई है। मामला तुम्हारी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद कैसे वाला लगता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं कि नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखें। यह अधिकार हर राजनेता को है, लेकिन नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी की निंदा करके उन्हें नहीं पछाड़ सकते- इसलिए और भी नहीं, क्योंकि जब मोदी अपना अहंकार तजकर सहिष्णुता का परिचय दे रहे हैं तब नीतीश असहिष्णुता के साथ-साथ अहंकार का भी प्रदर्शन कर रहे हैं। वह मोदी और उनके बहाने भाजपा को तबसे अपमानित करते चले आ रहे हैं जब बिहार भाजपा ने दोनों नेताओं के हाथ मिलाते फोटो एक विज्ञापन में प्रकाशित करा दिए थे। तब उन्होंने भाजपा नेताओं का भोज रद कर दिया था। इस बार उन्होंने भाजपा नेताओं के साथ भोज कर मोदी को रद कर दिया।
नरेंद्र मोदी से नीतीश कुमार की परेशानी का दूसरा कारण बिहार का मुस्लिम वोट बैंक है। वह इससे चिंतित हैं कि मोदी को स्वीकार करने से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है। आज की राजनीति में हर नेता को अपने वोट बैंक की चिंता करने का अधिकार है, लेकिन एक खास समुदाय के वोटों की परवाह करना पंथनिरपेक्षता नहीं है। नि:संदेह टोपी पहनना और टीका लगाना भी पंथनिरपेक्षता नहीं है। यह तो पंथनिरपेक्षता के नाम पर किया जाने वाला पाखंड है। अगर इस तरह के पाखंड को पंथनिरपेक्षता मान लिया जाएगा अथवा उसकी ऐसी सरल व्याख्या की जाएगी तो उसका और विकृत रूप सामने आना तय है। क्या नीतीश कुमार यह कहना चाहते हैं कि यदि मोदी मौलवी के हाथों टोपी पहन लेते तो वह उनकी नजर में पंथनिरपेक्ष हो जाते? पता नहीं वैसा होता तो नीतीश का नजरिया कैसा होता, लेकिन उन्हें उन सवालों का जवाब देना चाहिए कि जब वह वाजपेयी सरकार में रेलमंत्री थे तब उन्हें नरेंद्र मोदी क्यों स्वीकार थे?
अगर भाजपा को नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने का अधिकार है तो जदयू को उससे अलग होने का। यदि भाजपा-जदयू का नाता टूटता है, जिसके प्रबल आसार नजर आने लगे हैं तो इससे शायद ही किसी को हैरत हो, लेकिन अगर आम चुनाव टोपी-टीका छाप पंथनिरपेक्षता के आधार पर लड़े गए और विकास का मसला नेपथ्य में चला गया तो इससे देश का बेड़ा गर्क होना तय है। टोपी-टीका छाप पंथनिरपेक्षता को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने से विकास के साथ-साथ भ्रष्टाचार का मसला भी किनारे हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो इससे सबसे ज्यादा खुशी कांग्रेस को होगी, जिसके नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़ने के बाद इस ताक में है कि कैसे विकास के मुद्दे को किनारे कर और सांप्रदायिकता का हौवा खड़ा करके अगले आम चुनाव लड़े जाएं। यह हैरत की बात है कि नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों के खिलाफ गर्जन-तर्जन करने वाले नीतीश कुमार ने केंद्रीय सत्ता के कुशासन के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा। वह मोदी के प्रति कठोर हो सकते हैं, लेकिन आखिर भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार के प्रति नरम कैसे हो सकते हैं?
[लेखक राजीव सचान, दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं]

साल अयोध्या में विवादित स्थल पर राम नवमी पूजा में अड़चन

http://aajtak.intoday.in/story/no-ram-navmi-puja-at-ayodhya-site-this-year-district-administration-1-727447.html
अयोध्या में विवादित स्थल पर पिछले 64 सालों से चली आ रही राम नवमी के दिन पूजा की परंपरा को अब बाधा का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि जिला प्रशासन ने इलाके में किसी तरह धार्मिक कार्यक्रम की अनुमति न देने का फैसला किया है.

Monday, April 15, 2013

येद्दयुरप्पा देंगे मुस्लिमों को दो हजार करोड़ का पैकेज

http://www.jagran.com/news/national-yeddyurappa-promises-rs-2000cr-budget-allocation-for-muslims-10299208.html
कर्नाटक में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा सत्ता पाने के लिए मुसलमानों और किसानों को लुभाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। भाजपा छोड़कर नई पार्टी बनाने वाले येद्दयुरप्पा ने शनिवार को अपनी कर्नाटक जनता पार्टी का घोषणापत्र जारी किया जिसमें उन्होंने किसानों, बुनकरों और मछुआरों के एक लाख तक का कर्ज माफ करने और मुसलमानों के लिए बजट में दो हजार करोड़ रुपये का पैकेज देने का एलान किया है।

'लव जिहाद' बयान पर फंसे कर्नाटक के डेप्युटी CM

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19515847.cms
ईश्वरप्पा ने शिमोगा में एक कार्यक्रम में कहा था, 'पिछले आठ महीनों में शिमोगा में 68 ब्राह्मण लड़कियों से मुस्लिम समुदाय के लड़कियों ने बहला-फुसलाकर गलत हरकतें कीं और बाद में उन्हें छोड़ दिया। मेरे पास इन आरोपों को साबित करने के लिए कागज हैं। शिमोगा शहर की ब्राह्मण लड़कियां 'लव जिहाद' की शिकार हैं।'

बांग्लादेशी हिंदुओं को बचाएं ओबामा

http://www.jagran.com/news/world-obama-asked-to-protect-religious-minorities-in-bangladesh-10293984.html
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार के बीच गुरुवार को बांग्लादेशी मूल के हिंदुओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास व्हाइट हाउस के बाहर प्रदर्शन किया।

Thursday, April 11, 2013

जबरदस्ती उठाकर कर लेते थे निकाह

http://www.bhaskar.com/article/HAR-AMB-girls-are-being-kidnapped-and-found-married-4231821-PHO.html?HF-11=
वे पाकिस्तान के नागरिक हैं लेकिन बरसों से भारत में आबाद जिंदगी बसर कर रहे हैं। हिंदुस्तान इन्हें नागरिकता नहीं देता और पाक इन्हें स्वीकारने का तैयार नहीं। यहां रहने के लिए उन्हें हर साल वीजा की अवधि बढ़वाने के लिए पाकिस्तान एम्बेसी के चक्कर काटने पड़ते हैं। 17 साल से भारत और पाकिस्तान के कानून के बीच फंसे इन लोगों में अधिकतर बूढ़े हो चले हैं।

Reprieve for Pakistani Hindus, visa extended

In a reprieve to 480 Pakistani Hindus, the Home Ministry has extended visas for a month, before the government takes a decision on their demand for political asylum in India.
http://www.thehindu.com/news/national/reprieve-for-pakistani-hindus-visa-extended/article4603740.ece

Tuesday, April 9, 2013

हमारे शव को पाक भेज दो, हमें नहीं: हिंदू शरणार्थी

http://www.jagran.com/news/national-deport-our-bodies-to-pakistan-not-us-hindu-refugees-10284963.html
अपने साथ पाकिस्तान में हो रहे अत्याचार और अपनी धर्म की रक्षा की खातिर किसी भी तरीके से वहां से निकलकर भारत पहुंचे हिंदू शरणार्थियों ने सोमवार को मांग करते हुए कहा है कि उनके शव को भले ही पाकिस्तान भेज दिया जाएं लेकिन उन्हें वहां नहीं भेजा जाएं।

अमेरिका में योग का विरोध

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-yoga-in-america-opposed-10275357.html
व्हाइट हाउस में ईस्टर पर योग उद्यान बनवाया जाना महत्वपूर्ण घटना है। हालांकि स्वामी विवेकानंद ने लगभग सवा सौ वर्ष पहले अमेरिका में ही पहली बार आधुनिक विश्व को योग का संदेश दिया था, फिर भी चार दशक पहले तक भी ज्यादातर पश्चिमी लोग योगाभ्यास को हिंदू एक्रोबेटिक कहते थे। स्थिति तेजी से बदली और आज पूरी दुनिया में योग को सम्मान मिला। हालांकि कट्टरपंथी ईसाइयों ने इसे हिंदू धर्म-चिंतन को परोक्ष रूप से बढ़ावा देने का प्रयास बताते हुए आलोचना की। स्कूलों में योग शिक्षा देने के विरुद्ध कैलिफोर्निया में पहले ही एक मुकदमा चल रहा है। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भाषण में योग को धार्मिक क्रियाकलाप न बताकर इसके स्वास्थ्य संबंधी पंथनिरपेक्ष लाभ का ध्यान दिलाया जाए। असल में योग सिर्फ व्यायाम नहीं, बल्कि मानवता के सबसे महान दर्शन, चिंतन का ही एक अभिन्न अंग है।
इसका सबसे सरल प्रमाण यह है कि जिन महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में योग की व्याख्या दी, स्वयं उन्होंने उन्हीं ग्रंथों में मुख्यत: आध्यात्मिक, दार्शनिक संदेश दिया है। सहस्त्राब्दियों पहले कही गई वे बातें यदि आज भी लाभकारी दिखती हैं तो उनकी शाश्वत सच्चाई में कोई शंका नहीं बचती। आज भी स्वामी विवेकानंद से लेकर महर्षि अरविंद, स्वामी शिवानंद और सत्यानंद तक किसी भी सच्चे योगी ने योगाभ्यास को हिंदू धर्म-चिंतन से अलग करके नहीं दिखाया। वस्तुत: सभी ने निरपवाद रूप से योग विधियों को संपूर्ण जीवन दृष्टि के अंग रूप में प्रस्तुत किया। इन योग गुरुओं की संपूर्ण शिक्षाओं में योग से स्वास्थ्य लाभ की चर्चा कम और आध्यात्मिक, चारित्रिक उत्थान का विचार अधिक है। यह तो उनके यूरोपीय अनुयायियों ने अपनी सीमित समझ से योग की स्वास्थ्य उपयोगिता पर बल दिया।
योग को उस सीमित दायरे में देखना उचित नहीं। ऐसा करना ऐसा ही है जैसे केवल वर्णमाला के ज्ञान को ही संपूर्ण भाषा का ज्ञान मान लेना अथवा किसी पुस्तक की भूमिका को ही पूरी पुस्तक समझ कर शेष वृहत भाग को छोड़ देना। योग दर्शन मुख्यत: एक जीवन दृष्टि है जिससे मनुष्य इस संसार में सार्थक जीवन जीते हुए निरंतर अपने उत्थान की ओर बढ़ता है और अंतत: मानव आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा से मिल कर मुक्ति पाती है। गीता के अठारहों अध्याय योग शिक्षा हैं। भगवान कृष्ण ने अनेक प्रकार से समझाया है, 'समत्वं योग उच्यते'। यानी सम भाव में स्थित हो पाने तथा ज्ञान, कर्म और भक्ति तीनों या किसी भी एक में निष्णात हो सकने की क्षमता प्राप्त कर लेना ही योगी होना है। इसलिए जिसे योगाभ्यास कहा जाता है, वह तो सचेतन होने का प्रारंभिक उपक्रम भर है। यह गंभीरता से सोचने की बात है कि जब मामूली व्यायाम रूप में योगाभ्यास ने सारी दुनिया को इतना सम्मोहित किया तब योग दर्शन को संपूर्ण रूप में समझना मानवता के लिए कितनी महान उपलब्धि हो सकती है। आज जब वैज्ञानिक परीक्षण, उपयोगिता और बौद्धिकता का इतना बोलबाला है तब यदि हिंदू योग दर्शन की बातें बेकार होंगी तो मानव बुद्धि उसे स्वयं ठुकरा देगी। ऐसी स्थिति में धमकी या दबाव डालकर योग से लोगों को विमुख करने के पीछे क्या कारण हो सकता है? केवल यही कि यदि दुनिया के गैर हिंदुओं में योग के प्रति रुचि बढ़ी तो अंतत: उनका मजहबी विश्वास नष्ट हो सकता है। ईसाइयों को यह चेतावनी 24 वर्ष पहले दिवंगत पोप जॉन पाल द्वितीय ने विस्तार से एक पुस्तिका लिखकर दी थी। कुछ ऐसी ही बात मलेशिया की नेशनल फतवा काउंसिल ने भी कही, जब वहां मुसलमानों के लिए योगाभ्यास वर्जित करने का फतवा जारी हुआ। हालांकि वहां अधिकांश मुस्लिम इसे खेल-कूद के लोकप्रिय रूप में ही लेते हैं। भारतीय मुसलमानों को भी योग से परहेज करने को कहा जाता रहा है। इसलिए जब कुछ पादरियों ने ओबामा के योग उद्यान की आलोचना की तो इसे निपट अज्ञान नहीं मानना चाहिए। अधिकांश ईसाई नेता योग को स्वास्थ्य लाभ की नजर से देखने के विरोधी हैं। यूरोप के बाप्टिस्ट और आंग्लिकन चर्च ने भी स्कूल में योगाभ्यास प्रतिबंधित करने की मांग की थी। क्त्रोएशिया के स्कूलों में चर्च के दबाव में योग शिक्षा हटाई गई।
अब्राहमी धार्मिक मतवाद की दोनों धाराएं योग से एक ही कारण दूरी रखती हैं कि यह हिंदू धर्म का अंग है और इसके अभ्यास से ईसाई या मुसलमान अपने मजहब से दूर होकर हिंदू चिंतन की ओर बढ़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में हिंदुओं का क्या कर्तव्य बनता है? सबसे पहले तो यह कि योगाभ्यास से आगे बढ़कर संपूर्ण योग दर्शन को जानें। अपनी नई पीढ़ी की नियमित शिक्षा में इस चिंतन का समुचित परिचय अनिवार्य करें। यह समझें कि यदि योग व्यायाम में इतनी शक्ति है तो उस ज्ञान में कितनी होगी जिससे योगसूत्र जैसी कालजयी रचनाएं निकलीं। इसके बाद योग विरोधियों के साथ स्वस्थ विचार-विमर्श भी चलाना जरूरी है। यह रेखांकित करना कि एक ओर किसी विचार के प्रति लोगों की स्वत: ललक और दूसरी ओर चेतावनियों के बल पर किसी मतवाद से लोगों को जोड़े रखने के प्रयत्न में कितनी बड़ी विडंबना है। ऐसा विलगाव और कृत्रिम उपाय किस काम का और यह कितने दिन कायम रहेगा? व्हाइट हाउस का योग उद्यान और उसके विरोध जैसी घटनाएं अवसर देती हैं कि हम जरूरी, मगर कठिन विषयों से बचना छोड़ें। यही हमारा धर्म है। इसमें हमारा ही नहीं संपूर्ण मानवता का हित जुड़ा है। ऐसे छोटे-छोटे प्रसंगों पर खुला विमर्श वस्तुत: बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाने के रास्ते खोल सकता है। आज नहीं तो कल यह समझना ही होगा। पंथनिरपेक्षता की झक ने भारतीय बौद्धिक वर्ग को सचेत हिंदू विरोधी बना दिया है, वरना स्वामी विवेकानंद के सवा सौ वर्ष बाद भी हमारा बौद्धिक वर्ग ऐसे प्रसंगों से नहीं कतराता।
[लेखक एस. शंकर, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

ईसाई धर्म प्रचारक पीटर यनग्रेन की यात्रा का विरोध

http://abpnews.newsbullet.in/ind/34-more/46315-2013-04-03-03-21-31
ईसाई धर्म प्रचारक पीटर यनग्रेन के आज नागपुर में होने वाले कार्यक्रम पर विश्व हिंदू परिषद के साथ कई दूसरे संगठनों ने भी एतराज जताया है.

कन्नौज में धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ से तनाव

http://www.jagran.com/news/national-demolition-at-the-site-of-religious-tension-in-kannauj-10265185.html
शरारती तत्वों ने एक धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ कर उत्तर प्रदेश में कन्नौज के अमनचैन में खलल डालने की कोशिश की। घटना की जानकारी पर पूरे छिबरामऊ कस्बे में तनाव फैल गया। एक संप्रदाय विशेष के कुछ लोगों ने हंगामा भी किया। प्रशासन ने क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत करा हालात को काबू में करने का प्रयास किया।

अब लड़कियों को दी जा रही है जिहाद की ट्रेनिंग?

http://navbharattimes.indiatimes.com/other-news-mumbai/muslim-institute-training-girls-for-jihad-mumbai-police-memo-reveals/articleshow/19326291.cms
क्या महाराष्ट्र में मुस्लिम लड़कियों को जिहाद की ट्रेनिंग दी जा रही है? यह बात कहीं और नहीं बल्कि मुंबई पुलिस के एक सर्कुलर में कही गई है। सर्कुलर में बाकायदा मुंबई के एक संगठन का नाम लेकर कहा गया है कि वह मुस्लिम लड़कियों को न केवल मानसिक तौर पर जिहाद के लिए तैयार कर रहा है बल्कि उन्हें जिहाद के लिए ट्रेनिंग भी दे रहा है।

'भारत में आतंक के लिए तैयार हो रही युवाओं की फौज'

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/self-radicalized-muslim-youth-swelling-terror-groups-ranks/articleshow/19315398.cms
भारत में सक्रिय आतंकी संगठनों को अपने साथ लड़ाकों की नई जमात खड़ी करने के लिए अब ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं, क्योंकि कट्टरपंथी युवाओं की बड़ी फौज खुद ही उनके साथ जुड़ने के लिए आगे बढ़कर आ रहे है। इन युवाओं को लगता है कि 'मुस्लिमों के साथ अन्याय' हो रहा है, इसलिए वे खुदी ही कट्टरपंथी संगठनों से जुड़ रहे हैं ।

संजय दत्त से सहानुभूति तो प्रज्ञा, पुरोहित व असीमानंद से क्यों नहीं

http://www.jagran.com/news/national-sanjay-dutts-sympathisers-should-not-interfere-with-court-sentence-rss-10260868.html
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुखपत्र 'ऑर्गेनाइजर' ने फिल्म अभिनेता संजय दत्त की सजा माफ करने की पैरवी कर रहे लोगों की जमकर आलोचना की है। इसने कहा है कि दत्त से सहानुभूति रखने वालों को अदालत की सजा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

बांग्लादेश में हिंदुओं को ज्यादा सुरक्षा देने की मांग

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अल्पसंख्यक हिंदुओं को ज्यादा सुरक्षा दिए जाने की मांग की है।
http://www.jagran.com/news/world-hindus-in-bangladesh-demand-more-security-10261847.html

पाताल में मिला सरस्वती का पता

http://aajtak.intoday.in/story/muse-muse-detected-in-the-hell-did-1-724211.html
वैज्ञानिक साक्ष्य और उनके इर्द-गिर्द घूमते ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक तथ्य पाताल में लुप्त सरस्वती की गवाही दे रहे हैं. हालांकि विज्ञान आस्था से एक बात में सहमत नहीं है और इस असहमति के बहुत गंभीर मायने भी हैं. मान्यता है कि सरस्वती लुप्त होकर जमीन के अंदर बह रही है, जबकि आइआइटी का शोध कहता है कि नदी बह नहीं रही है, बल्कि उसकी भूमिगत घाटी में जल का बड़ा भंडार है.

पाकिस्तान में लड़की को मुसलमान बनाने पर हिंदुओं का प्रदर्शन

पाकिस्तान के सिंध में एक हिंदू युवती के इस्लाम स्वीकार करने और एक मुस्लिम युवक से शादी करने को लेकर अल्पसंख्यक हिंदुओं ने विरोध प्रदर्शन किया। उनका आरोप है कि युवती का अपहरण कर उससे जबरन धर्मांतरण करवाया गया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/world/pakistan/hindus-protest-after-woman-converted-to-islam-in-pakistan/articleshow/19291109.cms

पाकिस्तानी हिंदुओं को शरणार्थी का दर्जा नहीं: भारत

http://www.livehindustan.com/news/videsh/indiaabroad/article1-story-2-7-318797.html
पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होने वाले हिंदुओं को भारत द्वारा शरणार्थी का दर्जा देने से इनकार किए जाने पर अमेरिका स्थित हिंदू अमेरिकी संस्था (एचएएफ) ने कल निराशा जाहिर की।

जारी है मुस्लिम युवाओं को फंसाने का सिलसिला: दिग्विजय

http://www.jagran.com/news/national-muslim-youth-trapping-continues-digvijay-singh-10257885.html
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह इस बात पर आज भी कायम हैं कि बटला हाउस मुठभेड़ सही नहीं थी। हालांकि उन्होंने यह भी माना कि वह अपनी पार्टी को इस मामले की न्यायिक जांच के लिए तैयार नहीं कर सके।

सोशल साइट पर टिप्पणी से भिवंडी में तनाव, मामला दर्ज

http://www.jagran.com/news/national-tension-in-bhiwandi-after-comment-on-social-networking-site-case-registered-10254308.html
ठाणे। सोशल नेटवर्किंग साइट पर भड़काऊ टिप्पणी को लेकर मुंबई के नजदीक संवेदनशील शहर भिवंडी में गुरुवार को तनाव फैल गया। हालात को नियंत्रित करने के लिए पुलिस दोनों समुदाय के नेताओं की मदद ले रही है। साथ ही उसने लोगों से संयम बनाए रखने की अपील की है।