हिंदू हितों (सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक) को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं से सम्बंधित प्रमाणिक सोत्रों ( राष्ट्रिय समाचार पत्र, पत्रिका) में प्रकाशित संवादों का संकलन।
Saturday, November 15, 2008
अब मधुशाला पर फतवा
तसलीमा पर फिर भारत छोड़ने का दबाव
Friday, November 14, 2008
जांच के नाम पर जलालत
मालेगांव बम धमाके के सिलसिले में कुछ हिंदुओं की गिरफ्तारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित
दैनिक जागरण, १३ नवम्बर, २००८, विश्व हिंदू मानस के समक्ष आत्मनिरीक्षण की चुनौती है। हिंदू अपनी मातृभूमि में ही आतंकी बताए जा रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और मालेगांव सिर्फ बहाना हैं, समूचा हिंदू दर्शन और हिंदुत्व ही निशाना है। प्रज्ञा सिंह के नार्को परीक्षण जैसे ढेर सारे मेडिकल टेस्ट हो चुके हैं। महाराष्ट्र की एटीएस कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा सकी। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के योगाचार्य रामदेव ने ऐसे तमाम परीक्षणों पर ऐतराज जताया है। संविधान प्रदत्त व्यक्ति के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी अपराध के लिए आरोपित किसी व्यक्ति को स्वयं अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रज्ञा को विविध परीक्षणों के जरिए स्वयं अपने ही विरुद्ध साक्ष्य के लिए विवश किया जा रहा है।
बेशक मालेगांव घटना की गहन जांच होनी चाहिए। कानूनी तंत्र को दबावमुक्त होकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। राष्ट्रद्रोह असामान्य अपराध है, लेकिन एटीएस की अब तक संपन्न जांच ने कई आधारभूत सवाल भी उठाए हैं, मसलन एटीएस की गोपनीय पूछताछ भी नियमित रूप से प्रेस को क्यों पहुंचाई जा रही है? क्या पूछताछ का उद्देश्य महज प्रचार ंहै और यही सिद्ध करना है कि हिंदू संगठन भी आतंकी होते हैं? एटीएस सही दिशा में है तो कोई पुख्ता सबूत क्यों नहीं है? एटीएस ने 'अभिनव भारत' नाम की एक संस्था का पता लगाया है? 'अभिनव भारत' वीर सावरकर की संस्था थी। मदनलाल धींगरा भी इसके सदस्य थे। उन्होंने अंग्रेज अफसर डब्लूएच कर्जन को मारा था। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम था। धींगरा स्वाधीनता संग्राम के हीरो बने। देश आजाद हुआ, सावरकर ने यह कहकर अभिनव भारत की समाप्ति की घोषणा की कि स्वाधीन भारत में सशस्त्र युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। एटीएस द्वारा खोजी गई नई 'अभिनव भारत' जून 2006 में बनी। वेबसाइट के अनुसार संस्था का लक्ष्य है स्वराज्य, सुराज्य, सुरक्षा और सुशांति। सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय अध्यक्ष हैं। एटीएस का आरोप है कि प्रज्ञा सिंह इन्हीं उपाध्याय के संपर्क में आई। संपर्क दर संपर्क ही एटीएस का आधार है। कह सकते हैं कि एटीएस के पास फिलहाल सूत्र ही हैं, सबूत नहीं। बावजूद इसके हिंदू आतंकवाद का हौव्वा है। हिंदू आतंकवाद नई सेकुलर गाली है। क्या हिंदू आतंकी हो सकते हैं? आरोपों-प्रत्यारोपों की बातें दीगर हैं, इस लिहाज से तो महान राष्ट्रभक्त सरदार पटेल भी आतंकी घोषित हो चुके हैं, सेकुलर दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जिहादी आतंकवाद के लक्ष्य सुस्पष्ट हैं। वे शरीय कानूनों वाला देश चाहते हैं। आतंकी हमलों का श्रेय लेते हैं और पकड़े जाने पर बेखौफ अपना मकसद बताते हैं। प्रज्ञा या उपाध्याय और अभिनव भारत ने क्या ऐसा कोई उद्देश्य घोषित किया है? हिंदू हजारों बरस पहले ऋग्वैदिक काल से ही जनतंत्री हैं। यहां ईश्वर को भी खारिज करने वाले चार्वाक ऋषि हैं, हिंदू समाज की आक्रामक शल्य परीक्षा करने वाले डा.अंबेडकर भारत रत्न हैं। हिंदू संविधान मानते हैं, राष्ट्रध्वज देखकर रोमांचित होते हैं। हिंदू इस देश को पुण्यभूमि, पितृभूमि मानते हैं, यहां हिंसा होगी तो वे जाएंगे कहां? हिंदू अपने ही राष्ट्रीय समाज के विरुद्ध युद्धरत नहीं हो सकते। हिंदू जन्मजात राष्ट्रवादी हैं। सारी दुनिया का राष्ट्रभाव मात्र पांच-छह सौ बरस ही पुराना है, भारतीय राष्ट्रभाव कम से कम 8-10 हजार वर्ष पूर्व वैदिक साहित्य में भी है। हिंदू अपने ही हिंदु-स्थान को रक्तरंजित नहीं कर सकते। तब प्रश्न यह है कि प्रज्ञा सिंह या उपाध्याय पर लगे आरोपों का राज क्या है? अव्वल तो इस प्रश्न का सटीक उत्तर जांच और विवेचना की अंतिम परिणति और न्यायालय ही देंगे कि वे दोषी हैं या निर्दोष, लेकिन एटीएस की प्रचारात्मक कार्यशैली से राजनीतिक षड्यंत्र की गंध आ रही है। दु:ख है कि विद्वान प्रधानमंत्री को आस्ट्रेलियाई पुलिस द्वारा की गई एक मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी के कारण पूरी रात नींद नहीं आई, लेकिन बिना सबूत प्रज्ञा और सेना से जुड़े सदस्यों के उत्पीड़न के बावजूद वह खामोश हैं। प्रज्ञा का दोषी होना समूची हिंदू चेतना और भारतीय राष्ट्र-राज्य व राजनीति के लिए भूकंपकारी सिद्ध होगा। चूंकि प्रज्ञा बिना किसी साक्ष्य के बावजूद पीड़ित है इसलिए राजनीति और सरकार से आहत, अपमान झेल रहे करोड़ों हिंदुओं की 'महानायक' बन चुकी है। हिंदू मन स्वाभाविक रूप से आक्रामक नहीं होता। हिंदू ही क्या, कोई भी सांस्कृतिक और सभ्य कौम हमलावर नहीं होती,पर अपमान सहने की सीमा होती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताते हैं। इमाम बुखारी जैसे लोग राष्ट्र-राज्य को धौंस देते हैं। राजनीति एकतरफा अल्पसंख्यकवादी है। केंद्रीय मंत्री बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनाने की मांग करते हैं।
आतंकवाद राष्ट्र-राज्य से युद्ध है, लेकिन राजनीति आतंकवाद पर नरम है। भारत के हजारों निर्दोष जन आतंकी घटनाओं में मारे गए, सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हुए, बावजूद इसके कोई भी आतंकी प्रज्ञा जैसे ढेर सारे 'नार्को' परीक्षणों से नहीं जांचा गया। प्रज्ञा सिंह और अभिनव भारत कहीं तपते हिंदू मन के लावे का 'धूम्र ज्योति' तो नहीं हैं? हिंदुओं की एक संख्या को प्रज्ञा सिंह के कथित कृत्य पर कोई मलाल नहीं है। यह खतरनाक स्थिति है। देश के प्रत्येक हिंदू को ऐसे किसी कृत्य पर मलाल होना चाहिए, लेकिन मध्यकालीन इस्लामी बर्बरता और स्वतंत्र भारत की मुस्लिम परस्त राजनीति ने हिंदू मन को घायल किया है। प्रज्ञा मामले ने नई चोट दी है। राष्ट्रभक्त बहुमत इस घटना से आहत है। आतंकवाद इस राष्ट्र की मुख्यधारा नहीं है। हिंदुओं ने कभी भी किसी कौम या देश पर आक्रमण नहीं किया। हिंदू विश्व की प्राचीनतम संस्कृति, दर्शन और सभ्यता के विनम्र उत्तराधिकारी हैं। वे देश के प्रत्येक नागरिक को 'भारत माता का पुत्र' जानते-मानते हैं। वे आतंकवादी नहीं हो सकते। कृपया उन्हें और जलील न कीजिए।
अहमदाबाद धमाके, 76 लोग अभियुक्त
पुलिस के मुताबिक़ "कुल 76 अभियुक्तों में 26 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया जा चुका है, जबकि 50 अब भी फ़रार हैं."
अहमदाबाद से स्थानीय पत्रकार महेश लंगा के अनुसार बुधवार को पुलिस ने अहमदाबाद में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट जीएम पटेल की अदालत में दो हज़ार पन्नों की चार्जशीट दाख़िल की है.
मुख्य अभियुक्त
चार्जशीट में पुलिस ने मुफ़्ती अबू बशर, सफ़दर नागौरी और साजिद मंसूरी को मुख्य अभियुक्त बनाया है.
आहमदाबाद के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर और क्राइम ब्रांच के इंचार्ज आशीष भाटिया का कहना है कि जांच अब भी चल रही है.
बम धमाकों के बाद पुलिस ने पहले 10 अगस्त को 10 लोगों को गिरफ़तार किया. बाद में 16 अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया गया.
बम धमाकों के मामले में पुलिस ने अबतक 511 लोगों से पूछताछ की है.
पुलिस ने 26 गिरफ़्तार लोगों को देश के विभिन्न राज्यों से गिरफ़्तार किया है. अबू बशर को लखनऊ से गिरफ़्तार किया गया था. उसकी गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने दावा किया था कि अबू बशर ही धमाकों का मास्टरमाइंड है.
सफ़दार नागौरी पहले ही से गिरफ़्तार हैं.
ग़ौरतलब है कि 26 जुलाई को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे जिन में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और 150 से अधिक घायल हुए थे.
अहमदाहाद बम धमाकों के बाद दूसरे और तीसरे दिन गुजरात के शहर सूरत में लगभग 25 बम मिले थे, लेकिन किसी भी बम के फटने से पहले ही बम निरोधक दस्ता सभी बमों को निष्क्रिय करने में सफल रहा.
Wednesday, November 12, 2008
मालेगांव: मठाधीश दयानंद गिरफ्तार
दैनिक जागरण , १२ नवम्बर, २००८, लखनऊ। महाराष्ट्र की एटीएस टीम ने मालेगांव विस्फोट के संबंध में जम्मू मठ के मठाधीश दयानंद पांडेय को कानुपर में गिरफ्तार किया। एटीएस ने उसे कानपुर के काकादेव इलाके से गिरफ्तार किया गया। टीम उसे लेकर लखनऊ के लिए रवाना हो गई। इससे पहले एटीएस जांच दल के दो सदस्य मंगलवार की देर रात इस प्रकरण में मिले कथित सुरागों के आधार पर जांच के लिए लखनऊ पहुंचे। आधिकारिक सूत्रों ने फिलहाल इस जांच के घेरे में किसी सांसद अथवा विधायक के होने की बात से इनकार किया है।
प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक [कानून एवं व्यवस्था] बृजलाल ने बताया कि महाराष्ट्र एटीएस दल के दो सदस्य कल रात मालेगांव विस्फोट प्रकरण मे जांच के लिए लखनऊ पहुंच गए हैं और इसमें प्रदेश पुलिस उनका पूरा सहयोग करेगी।
यह पूछे जाने पर कि क्या एटीएस टीम गोरखपुर में सांसद योगी आदित्यनाथ एवं विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल से पूछताछ करेगी बृजलाल ने केवल इतना कहा कि जिस व्यक्ति से पूछताछ होनी है वह न तो सांसद है और न ही विधायक। यह पूछे जाने पर कि क्या एटीएस टीम पूछताछ के लिए गोरखपुर जाएगी, उन्होने इस बात से भी इनकार किया और कहा कि टीम किससे पूछताछ करेगी और जांच के लिए कहां जाएगी इसकी स्पष्ट जानकारी देना जांच के लिहाज से उचित भी नही होगा।
उधर, सांसद योगी आदित्यनाथ और विधायक अग्रवाल से पूछताछ के लिए एटीएस टीम के उत्तार प्रदेश आने की जानकारी लगने पर गोरखपुर में तनाव का माहौल बन गया है और जिला प्रशासन इस पर कड़ी नजर रखे हुए है।
उल्लेखनीय है कि योगी आदित्यनाथ एटीएस टीम उनसे पूछताछ करने के लिए आ सकती है के बाबत पहले ही तल्ख टिप्पणी कर चुके हैं।
Tuesday, November 11, 2008
हाथ से फिसलते हालात
असम में कई दशकों से जारी अशांति के कारणों की तह तक जा रहे है जगमोहन
दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, देश के अधिकांश भागों में स्थितियां बिगड़ती जा रही हैं और भारत सरकार आतंकवाद और विध्वंस की रक्तरंजित घटनाओं को रोकने में असमर्थ नजर आ रही है। एक बुखार उतरता है तो दूसरा चढ़ जाता है। वर्ष 2000 से लेकर अब तक भारत पर 80 आतंकी हमले हो चुके हैं। नवीनतम है 30 अक्टूबर को असम में हुए सिलसिलेवार बम धमाके, जिनमें लगभग 80 लोग मारे गए। जिस निरंतरता और निर्भीकता के साथ इन धमाकों को अंजाम दिया गया है उससे पता चलता है कि हमारा शासन तंत्र कितना कमजोर हो गया है और हमारी आत्मकेंद्रित व नकारात्मक राजनीति ने कितनी क्षुद्रता के साथ इसे बेड़ी में बांध दिया है। त्रासदी यह है कि हमारे राजनीतिक दलों के लिए सत्ता और अल्पकालिक लाभ पाने के तुच्छ साधन अधिक महत्वपूर्ण हैं, न कि राष्ट्रीय सुरक्षा और इसका दीर्घकालीन कल्याण। यह घातक चूक जितनी स्पष्टता के साथ असम के मामले में दिखाई पड़ती है उतनी अन्यत्र कहीं नहीं। यहां भारतीय जनतंत्र के जन्म के साथ ही संक्रमण फैल गया था।
पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, के राजनेताओं ने भूमि हथियाने के एजेंडे के तहत असम में संक्रमण फैलाना शुरू कर दिया था। शेख मुजीबुर्रहमान ने खुलेआम घोषणा की थी, ''चूंकि असम में जंगल, खनिज संसाधन तथा पेट्रोलियम पदार्थ प्रचुरता में हैं इसलिए आर्थिक सुदृढ़ता के लिए पूर्वी पाकिस्तान में असम को मिला देना चाहिए।'' 1950 में संसद का ध्यान घुसपैठ की ओर खींचा गया। गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने इस मामले की गंभीरता को महसूस किया। त्वरित कार्रवाई करते हुए उन्होंने आव्रजन अधिनियम 1950 पारित कराया, किंतु दिसंबर, 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के तुरंत बाद इस अधिनियम के संबंध में अनेक मुद्दे खड़े कर दिए गए। अंतत: 1957 में इसे निरस्त कर दिया गया। यह असम के हितों और राष्ट्र की सुरक्षा के प्रयासों पर पहला बड़ा आघात था। सुरक्षा इस हद तक जोखिम में डाल दी गई कि 1962 के चीन हमले के दौरान असम में खासे बड़े तबके ने पाकिस्तान के झंड़े फहराए। इस तरह की घटनाओं के मद्देनजर घुसपैठ निषेध योजना लागू की गई। योजनानुसार एक न्यायाधिकरण को नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर 1951 के आधार पर घुसपैठियों की शिनाख्त करनी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री बीपी चलिहा ने इसे बड़े जोर-शोर से लागू किया। 1964 से 1967 तक दो लाख 40 हजार घुसपैठियों को चिह्निंत कर लिया गया। इसके अलावा 1967 से 1970 के बीच भी 20,800 बांग्लादेशियों की शिनाख्त हुई, किंतु संकीर्ण राजनीतिक आग्रह इसके रास्ते में आ गए। फखरुद्दीन अली अहमद ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अगर चलिहा अपना यह अभियान जारी रखते हैं तो कांग्रेस पार्टी न केवल असम में, बल्कि पूरे देश में मुस्लिम वोट खो देगी। वोट बैंक राजनीति की जीत हुई। घुसपैठ रोकने की योजना वस्तुत: त्याग दी गई और न्यायाधिकरण को भंग कर दिया गया। यह घुसपैठ में लिप्त ताकतों की एक और जीत थी।
बांग्लादेशी घुसपैठियों को खुलेआम समर्थन देने की नीति 1979-80 में उजागर हो गई जब 1979 की मतदाता सूची के आधार पर चुनाव संपन्न कराए गए। इस सूची में काफी बड़ी संख्या में बांग्लादेशियों को भी शामिल किया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने खुद इस बात को सार्वजनिक रूप से कहा कि 1961 से 1971 के बीच असम की जनसंख्या 35 फीसदी बढ़ गई। परिणामस्वरूप असम के लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया और वहां जनांदोलन शुरू हो गया। आंदोलन की शुरुआत तो आल असम स्टूडेंट यूनियन ने की थी, किंतु इसे हिंसा के रास्ते पर यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम ले गया। 1983 के विधानसभा चुनाव ने आग में घी डालने का काम किया। 1980 से 1985 के बीच का काल सबसे हिंसक घटनाओं का साक्षी रहा। इनमें कुख्यात नेल्ली और गोहपुर नरसंहार शामिल हैं। दुर्भाग्य से इस रक्तरंजित दौर में भी केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने वोट बैंक को अक्षुण्ण रखने के लिए अपने संकीर्ण राजनीतिक आग्रहों से मुक्त होने की कोशिश नहीं की। इसके विपरीत उसने संदिग्ध घुसपैठियों को कानूनी ढाल मुहैया कराने के प्रयास जारी रखे। 1983 में अवैध घुसपैठ अधिनियम पारित किया गया। नए कानून के प्रावधान ऐसे थे कि घुसपैठियों की पहचान और उनका निष्कासन बेहद मुश्किल हो गया। असम समझौते के बाद फिर से विधानसभा के चुनाव कराए गए। इसमें आल असम स्टूडेंट यूनियन के राजनीतिक अंग असम गण परिषद (अगप) ने सत्ता संभाली। लगा कि अब शांति स्थापित हो जाएगी, किंतु अगप का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। अगप सरकार की सबसे बड़ी विफलता अवैध रूप से सीमापार करने वाले बांग्लादेशियों को वापस न भेज पाने की रही।
अगप सरकार ने न तो केंद्रीय सरकार पर आईएमडीटी अधिनियम में संशोधन करने या इसे निरस्त करने का दबाव बनाया और न ही इस कानून में प्रदत्त प्रावधानों के अनुसार उचित कार्रवाई करके घुसपैठियों को बाहर निकालने का प्रयास किया। अनुमानित 30 लाख घुसपैठियों में से सिर्फ पांच सौ को ही बांग्लादेश वापस भेजा गया। केंद्र सरकार का रवैया और भी निंदनीय रहा। असम समझौते का पालन करने में इसने खरापन नहीं दिखाया। मीडिया और कुछ अन्य मंचों से आवाज उठाने के बावजूद असम में बांग्लादेशियों की घुसपैठ का सिलसिला चलता रहा। 1994 और 1997 के तीन साल के कालांतर में असम के 17 विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में तीस प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई तथा 40 विधानसभा क्षेत्रों में 20 प्रतिशत से अधिक की, जबकि इस अवधि में अखिल भारतीय मतदाताओं की औसत वृद्धि मात्र सात प्रतिशत ही थी। भारत सरकार के नुकसानदायक प्रयोजनों में से एक यह रहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समस्याएं हल करने के लिए वह एक साथ कड़ा और नरम रुख अपनाती रही। आपरेशन बजरंग और आपरेशन राइनो, दोनों सैन्य अभियानों को बीच में ही रोक दिया गया। यही नहीं, हितेश्वर सैकिया सरकार ने तो 400 कट्टर उग्रवादियों को रिहा कर दिया। सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले उल्फा उग्रवादियों के पुनर्वास और अन्य विशेष सुविधाओं के लिए एक योजना भी चलाई।
इस योजना के सकारात्मक पक्ष सीमित रहे, जबकि नकारात्मक पहलू अहम साबित हुए। लोगों में यह संदेश गया कि नौकरी, ऋण और अन्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करने के बजाय आतंकवादी बना जाए। सैकिया मंत्रिमंडल ने एक बड़ा पाप यह किया कि वह राज्य के मूलभूत लक्ष्यों से विमुख हो गई और आत्मसमर्पण करने वालों की संख्या बढ़ाने में जुट गई। इससे न्याय के मूल सिद्धांत व कानून एवं व्यवस्था भंग होने के साथ-साथ समाज में तनाव व्याप्त हो गया और प्रशासन उलझनों में फंस गया। उल्फा के सदस्यों को उग्रवाद की धारा से वापस लाने के लिए क्षमादान देना तो समझ में आता है, किंतु उन्हें विशेष लाभ पहुंचाना तो नागरिकों को अपराध करने और अपनी मांग मनवाने के लिए हिंसा के रास्ते पर चलने को प्रेरित करने के समान है। सरकार इस बात को भूल गई कि बैल को काबू करने के लिए सींग पकड़े जाते हैं, न कि उसे अच्छे आचरण के वायदे पर ढीला छोड़ दिया जाता है।
छह गोवंशी बरामद, चार तस्कर गिरफ्तार
गोरखपुर, 09 नवम्बर। खजनी थाने की पुलिस ने रविवार को मुखबिर की सूचना पर वध के लिए ले जाए जा रहे दैनिक जागरण, १० नवम्बर, २००८. छह गोवंशी बरामद किया। चार तस्करों को गिरफ्तार किया गया। इनके खिलाफ गोवध निवारण अधिनियम के तहत कार्रवाई की गयी है। पूछताछ में अभियुक्तों ने पुलिस को बताया कि वे पशुओं को वध के लिए प. बंगाल ले जा रहे थे।
जानकारी के अनुसार खजनी थाने के दारोगा ज्ञानेन्द्र कुमार, इफ्तेखार खां, सिपाही मूलचंद्र, गोकुल प्रसाद आदि की टीम ने मुखबिर की सूचना पर धांधूपार के पास घेराबंदी कर रामअवध, भरत तथा मेघा निवासीगण बउरहवा थाना खलीलाबाद कोतवाली, जिला संत कबीरनगर एवं राममिलन निवासी सतहरा थाना खजनी को गिरफ्तार किया। उनकेकब्जे से 3 गाय व 3 बछड़े बरामद किए गए। चारों पशुओं को पैदल हांक कर ले जा रहे थे। पूछताछ के आधार पर पुलिस ने बताया कि वे चारों पशु तस्कर हैं। पशुओं को जुटा कर वध के लिए प. बंगाल ले जाते हैं।
धार्मिक स्थल पर अवैध निर्माण से तनाव
दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, फर्रुखाबाद। फतेहगढ़ के मोहल्ला मछली टोला स्थित मजार पर निर्माण कार्य कराये जाने को लेकर रविवार को विवाद की स्थिति बनने से स्थानीय नागरिकों में तनाव है। नगर मजिस्ट्रेट ने बिना अनुमति के किये जा रहे निर्माण को रुकवाने के लिये कोतवाली फतेहगढ़ को निर्देश दिये। देर शाम तक पुलिस के हस्तक्षेप न किये जाने के कारण विवाद की स्थिति बनी रही।
मछली टोला में कसाई खाने के निकट स्थित एक मजार पर निर्माण कार्य शनिवार को प्रारंभ किया गया। निर्माण कार्य की प्रकृति को लेकर निर्माण में लगे श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के बीच विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई। दोनों पक्षों के लोगों के एकत्र होने के कारण बनी तनाव पूर्ण स्थिति को देखते हुये निर्माण कार्य रुकवाने के लिये नगर मजिस्ट्रेट को प्रार्थनापत्र दिया। नगर मजिस्ट्रेट देवकृष्ण तिवारी ने प्रभारी निरीक्षक को तत्काल निर्माण कार्य रुकवाने के आदेश दिये। देर शाम तक पुलिस की ओर से हस्तक्षेप न किये जाने के कारण मोहल्ले में विवाद की स्थिति बनी हुई है।
संवाददाता के अनुसार प्रभारी निरीक्षक लाल सिंह ने बताया कि मौके पर दरोगा मिहीलाल को जांच करने भेजा गया था। दोनों पक्षों में समझौता होने की संभावना को देखते हुये कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बम बना रहे दो आरएसएस कार्यकताओं की मौत
दैनिक जागरण, १० नवम्बर २००८, कन्नूर। चेरुवनचेरी में सोमवार की सुबह एक बम फटने से दो लोगों की मौत हो गई। यह जगह कन्नूर से 35 किलो मीटर दूर संवेदनशील थालासेरी शहर के निकट है। दोनों मरने वालों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ [आरएसएस] का कार्यकर्ता बताया जा रहा है।
सुबह करीब साढ़े सात बजे हुए विस्फोट में प्रदीपन और दिलीपन की मौत हो गई। इन दोनों की उम्र तीस साल के आसपास थी। बताया जाता है कि दोनों एक झाड़ी के पीछे बैठकर बम बना रहे थे तभी उसमें विस्फोट हो गया। पुलिस का कहना है कि दोनों आरएसएस के कार्यकर्ता थे। कन्नवम पुलिस थाना क्षेत्र में हुई इस घटना के बाद पुलिस महानिरीक्षक वी शांताराम के नेतृत्व में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं।