Tuesday, May 5, 2009

सेकुलर राजनीति की सच्चाई

गुजरात दंगों के संदर्भ में विशेष जांच दल की रपट से कथित सेकुलर वर्ग का झूठ उजागर होता देख रहे हैं तरुण विजय

Dainik Jagran, 19 April 2009, जिस समय प्राय: हर रोज सैनिकों और नागरिकों की आतंकवादियों द्वारा बर्बर हत्याओं के समाचार छप रहे हों उस समय यह देखकर लज्जा होती है कि भारतीय राजनेता परिवारवाद तथा मजहबी तुष्टीकरण के दलदल में फंसे हास्यास्पद बयान देने में व्यस्त है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि 'स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह' अर्थात् अपने धर्म पर अडिग रहते हुए मृत्यु भी प्राप्त हो तो वह श्रेयस्कर है। आज सत्ता का भोग करने वाले यदि अपने मूल राजधर्म के पथ से अलग रहते है तो एक दिन ऐसा आता है जब न तो उनका यश शेष रहता है और न ही पाप कर्म से अर्जित संपदा। लोकसभा चुनावों में अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप, मिथ्या भाषण तथा गाली-गलौज का जो वातावरण बना है वह राजनीतिक कलुश का अस्थाई परिचय ही कराता है।

आजादी के बाद से अब तक देश में ऐसे अनेक मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने अपने-अपने कार्यकाल में विवादों, चर्चाओं और अकूत संपत्तिका आनंद लिया, परंतु उन सब में हम ऐसे किन्हीं दो-चार व्यक्तियों का स्मरण करते है जो अपनी संपत्तिनहीं, बल्कि कर्तव्य के कारण जनप्रिय हुए। पैसा कभी वास्तविक सम्मान नहीं दिलाता, इस बात को वे राजनेता भूल जाते है जो भारत की मूल हिंदू परंपरा सभ्यता और संस्कृति के प्रवाह पर चोट करना अपनी सेकुलर राजनीति का आधार बना बैठे है कि इस देश को हमेशा धर्म ने बचाया है सेकुलर सत्ता ने नहीं। अब तक कई हजार सांसद और विधायक बन गए है, परंतु उनमें से ऐसे कितने होंगे जिन्होंने पैसा नहीं, यश कमाया है? क्या वजह है कि सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस नेता होते हुए भी शेष दलों में भी आदर और सम्मान पाते है और भाजपा के हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति के पुरोधा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों अथवा दीनदयाल उपाध्याय, उनके प्रति कभी कोई आघात नहीं कर पाया। वे संपदा और राजनीतिक प्रभुता न होते हुए भी दायरों से परे सम्मान के पात्र हुए।

गुजरात में दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम के प्रमुख एवं पूर्व सीबीआई निदेशक ने पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की, जिसमें कहा गया कि गुजरात दंगों के बारे में कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने अपने कुछ नेताओं के कहने पर एक जैसे प्रारूप पर रौंगटे खड़े करने वाले जो आरोप लगाए थे वे सरासर झूठ और मनगढ़ंत थे। इसमें तीस्ता जावेद सीतलवाड़ का नाम सामने आया, जिन्होंने इस प्रकार के आरोप उछाले थे कि गर्भवती मुस्लिम महिला से हिंदुओं ने दुष्कर्म के बाद बर्बरतापूर्वक उसकी हत्या कर दी। विशेष जांच टीम ने स्पष्ट रूप से ऐसे चार उदाहरण प्रस्तुत किए है जिनमें एक कौसर बी की हत्या, दूसरा नरौडा पाटिया में कुएं में मुस्लिमों की लाशें फेंकने, तीसरा एक ब्रिटिश दंपत्तिकी हत्या का था। ये तीनों घटनाएं सैकड़ों मुसलमानों द्वारा एक जैसी भाषा और एक जैसे प्रारूप पर जांच टीम को दी गई थीं और तीनों ही झूठी साबित हुईं। हालांकि तीस्ता ने इस खबर का तीव्र खंडन किया है, लेकिन इस पर विशेष जांच टीम ने कोई टिप्पणी नहीं की है। अत: खंडन के दावों की भी जांच जरूरी है। ध्यान रहे, इसी प्रकार अरुंधती राय ने भी गुजरात दंगों के एक पक्ष का झूठा चित्रण किया था। यह कैसा सेकुलरवाद है जो अपने ही देश और समाज को बदनाम करने के लिए झूठ का सहारा लेने से भी नहीं हिचकता? यह कैसे प्रधानमंत्री हैं जो परमाणु संधि न होने की स्थिति में इस्तीफा देने के लिए तैयार रहते है, लेकिन नागरिकों को सुरक्षा देने में असमर्थ रहते हुए भी पद पर बने रहते हैं।

इस देश में एक ऐसा सेकुलर वर्ग खड़ा हो गया है जिसने हिंदुओं की संवेदना तथा प्रतीकों पर चोट करना अपना मकसद मान लिया है। इन दिनों विशेषकर जिस प्रकार उर्दू के कुछ अखबारों में जहर उगला जा रहा है वह 1947 से पहले के जहरीले माहौल की याद दिलाता है। ऐसी किसी संस्था या नेता पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इस स्थिति में केवल देशभक्ति और राष्ट्रीयता के आधार पर एकजुटता ही अराष्ट्रीय तत्वों को परास्त कर सकती है। दुर्भाग्य से इस देश में हिंदुओं का पहला शत्रु हिंदू ही होता है। इसी स्थिति को बदलने के लिए डा. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, ताकि हिंदू एकजुटता स्थापित हो और इस देश का सांस्कृतिक प्रवाह सुरक्षित रह सके। भारत में हिंदू बहुलता संविधान सम्मत लोकतंत्र और बहुलवाद की गारंटी है। जिस दिन हिंदू अल्पसंख्यक होंगे या उनका मनोबल सेकुलर आघातों से तोड़ दिया जाएगा उस दिन भारत न सिर्फ अपनी पहचान खो देगा, बल्कि यहां भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी मजहबी मतांधता छा जाएगी। पानी, बिजली, सड़क, रोजगार, गरीबी उन्मूलन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास, ग्रामीण सम्मान की पुनस्र्थापना राजधर्म के अंतर्गत अनिवार्य कर्तव्य है, लेकिन यही सब स्वयं में कभी भी राष्ट्र की पहचान नहीं बन सकते। अगर भौतिकता राष्ट्र की पहचान होती तो तिरंगे झंडे और यूनियन जैक में फर्क ही नहीं रहता।

आज देश की राजनीति को वह दृष्टि देने की जरूरत है जो भारतीयता की रक्षा कर सके। देश आज विदेशी विचारधाराओं और नव उपनिवेशवादी प्रहारों से लहूलुहान हो रहा है। जिहादी हमलों में साठ हजार से भी अधिक भारतीय मारे गए है। नक्सलवादी-माओवादी हमलों में 12 हजार से अधिक भारतीय मारे जा चुके है। इन आतंकवादियों के पास हमारे सैनिकों से बेहतर उपकरण और हथियार होते है। भारत सरकार पुलिस और अर्धसैनिक बलों को घटिया हथियार, सस्ती बुलेट प्रूफ जैकेट और अपर्याप्त प्रशिक्षण देकर अमानुषिक आतंकवादियों का सामना करने भेज देती है। राजधर्म का इससे बढ़कर और क्या पतन होगा? जिस राज में सैनिक अपने वीरता के अलंकरण वापस करने लगें और संत अपमानित व लांछित किए जाएं वहां के शासक अनाचार को ही प्रोत्साहित करने वाले कहे जाएंगे।





झूठी कहानी की सच्चाई

विशेष जांच दल की रपट से गुजरात दंगों की कहानियों का झूठ उजागर होता हुआ देख रहे हैं एस. शंकर

Dainik Jagran, 23 April 2009, पिछले सात वर्र्षो से मीडिया में मानो एक धारावाहिक चल रहा है, जिसमें गोधरा, बेस्ट बेकरी, जाहिरा शेख, नरेंद्र मोदी, नरोड़ा पटिया, अरुंधती राय, मानवाधिकार आयोग और तीस्ता सीतलवाड़ आदि शब्द बार-बार सुनने को मिलते हैं। नाटक के आरंभ से ही नरेंद्र मोदी को खलनायक के रूप में पेश किया गया, किंतु जैसे-जैसे नई परतें खुलती गईं, पात्रों की भूमिकाएं बदलती नजर आईं। नवीनतम कड़ी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसने गुजरात दंगे पर सबसे अधिक सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को जघन्य हत्याओं और उत्पीड़न की झूठी कहानियां गढ़ने, झूठे गवाहों की फौज तैयार करने, अदालतों में झूठे दस्तावेज जमा करवाने और पुलिस पर मिथ्या आरोप लगाने का दोषी बताया है। चूंकि नई सच्चाई सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से आई है अत: तीस्ता और उनके शुभचिंतक मौन रहकर इसे दबाने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह अब तक जो अभियोजक थे अब वे आरोपी के रूप में कठघरे में दिखाई देंगे। वैसे इन वषरें में गुजरात दंगों से संबंधित हर नया पहलू इसी तरह बदलता रहा है। जाहिरा शेख का बार-बार गवाही-पलटना, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा उतावलापन दिखाना, तहलका के पासे उलटा पड़ना, नानावती आयोग की वृहत रिपोर्ट, तीस्ता के अत्यंत निकट सहयोगी रईस खान द्वारा तीस्ता के भय से पुलिस सुरक्षा की मांग करने से लेकर अरुंधती राय द्वारा काग्रेस नेता अहसान जाफरी की बेटी के दुष्कर्म-हत्या की लोमहर्षक झूठी कथा लिखने और लालू प्रसाद यादव द्वारा नियुक्त मुखर्जी आयोग द्वारा गोधरा को महज दुर्घटना बताने तक सभी कड़ियों ने प्रकारातर में एक ही चीज दिखाई कि गुजरात सरकार पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत थे।

बेस्ट बेकरी मामला मात्र जाहिरा शेख के बयान बदलने से चर्चित हुआ। मानवाधिकार आयोग ने उसी जाहिरा की छह सौ पन्नों की याचिका पर गुजरात हाई कोर्ट पर सार्वजनिक रूप से लाछन लगाया। उन पन्नों को देखने की भी तकलीफ नहीं की, जिन पर कहीं भी जाहिरा के दस्तखत तक नहीं थे! पर चूंकि उसे तीस्ता ने जमा किया था इसलिए आयोग अधीर होकर सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगा बैठा कि बेस्ट बेकरी की सुनवाई गुजरात से बाहर हो। इस प्रकार आयोग ने न केवल अपनी मर्यादा का उल्लंघन किया, बल्कि गुजरात की न्यायपालिका पर कालिख भी पोती। यहां तक कि गुहार सुनते हुए स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट और वहां के मुख्यमंत्री के विरुद्ध कठोर टिप्पणियां कर दीं। किस आधार पर? एक ऐसे व्यक्ति के बयान पर, जो स्व-घोषित रूप से एक बार शपथ लेकर अदालत में झूठा बयान दे चुका था।

इस प्रकार हमारे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक ही गवाह के एक बयान को मनमाने तौर पर गलत और दूसरे को सही मान लिया। इसी आधार पर गुजरात हाईकोर्ट की खुली आलोचना की, जिसने बेस्ट बेकरी केआरोपियों को दोषमुक्त किया था। उस निर्णय को 'सच्चाई का मखौल' बताकर सर्वोच्च न्यायपालकों ने नरेंद्र मोदी को भी 'राजधर्म' निभाने या 'गद्दी छोड़ देने' की सलाह दे डाली। साथ ही मामला मुंबई हाई कोर्ट को सौंप दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने यह सब तब किया जब जाहिरा की मां और ननद ने कहा था कि सारा खेल तीस्ता करवा रही है और जाहिरा ने पैसे लेकर बयान बदला है। जाहिरा के वकील ने भी यही कहा था। फिर भी, सच्चाई की अनदेखी कर केवल कुछ उग्र, साधन-संपन्न मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से प्रभावित होकर हमारे न्यायपालकों ने अपने को हास्यास्पद स्थिति में डाल लिया।

बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह देखकर 'अपने को विचित्र स्थिति' में पाया कि जाहिरा के नाम पर प्रस्तुत किए गए भारी-भरकम दस्तावेजों में जाहिरा के दस्तखत ही नहीं हैं। यह सब तो अब स्पष्ट हो रहा है। इस बीच तीस्ता भारतीय न्यायपालिका को दुनिया भर में बदनाम कर चुकी थीं और उन्हें न्यूरेनबर्ग ह्यूमन राइट अवार्ड, ग्राहम स्टेंस इंटरनेशनल अवार्ड फार रिलीजियस हारमोनी, पैक्स क्रिस्टी इंटरनेशनल पीस प्राइज, ननी पालकीवाला अवार्ड से लेकर पद्मश्री तक कई देशी-विदेशी पुरस्कार मिल चुके हैं। न्यायाधीशों ने जाहिरा शेख को झूठे बयान देने के लिए सजा दी। अमेरिकी संसद की 'यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन आन इंटरनेशनल रिलीजस फ्रीडम' के सामने भी तीस्ता ने मनगढ़ंत गवाही दी थी। क्या हमारे न्यायाधीश उन सारी झूठी गवाहियों की असल सूत्रधार को कोई सजा देंगे? तीस्ता को इसलिए सजा मिलनी चाहिए ताकि आगे न्यापालिका और मीडिया का दुरुपयोग कर अपना उल्लू साधने वालों को चेतावनी मिले। गुजरात हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में वही बातें लिखी थीं जिन्हें अब सुप्रीम कोर्ट के विशेष जांच दल ने जांच में सही पाया है।

हाईकोर्ट ने कहा था कि जाहिरा का 'कुछ लोगों को बदनाम करने का षड्यंत्र' दिखता है और यह भी कि वह कुछ समाज-विरोधी और देश-विरोधी तत्वों के गंदे हाथों में खेल रही हैं। हाईकोर्ट ने ऐसे लोगों और कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा पूरे राज्य प्रशासन और न्यायपालिका को निशाना बनाने तथा एक समानातर जांच चलाने की भी आलोचना की थी, पर उस निर्णय को निरस्त करके सर्वोच्च न्यायालय ने कठोर टिप्पणियां कर दीं। उसी से देश-विदेश में गुजरात हाई कोर्ट की छवि धूमिल हुई। क्या आज गुजरात हाईकोर्ट के वे न्यायाधीश सही नहीं साबित हुए, जिन्हें पक्षपाती समझ कर उन न्यायिक मामलों को राज्य से बाहर ले जाया गया था? आशा की जा सकती है कि अपने ही द्वारा गठित विशेष जांच दल की इस रिपोर्ट के बाद सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करेगा। गुजरात धारावाहिक की अंतिम कड़ियां आनी अभी बाकी हैं।


Thursday, March 19, 2009

उड़ीसा में संघ नेता की हत्या

दैनिक जागरण, 19 मार्च 2009, फुलबनी। पिछले वर्ष ईसाई विरोधी दंगे में गिरफ्तार किए गए आरएसएस नेता की गुरुवार की सुबह सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील उड़ीसा के कंधमाल जिले में संदिग्ध माओवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

पुलिस ने बताया कि यहां से 145 किलोमीटर दूर रुडीगुमा गांव में आज सुबह करीब 15 हथियारबंद उग्रवादियों ने हमला किया और प्रभात पाणिग्रही को गोली मार दी। पाणिग्रही आरएसएस के एक कार्यकर्ता के यहां ठहरे हुए थे। हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए व्यापक खोज अभियान चलाया जा रहा है।

किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए एहतियात के तौर पर गांव में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। पुलिस ने बताया कि माओवादियों ने कोटागाडा और रूडीगुमा के बीच सड़क पर पेड़ काट कर गिरा दिया जिससे पुलिस को घटनास्थल तक पहुंचने में देरी हुई।

सूत्रों ने बताया कि पाणिग्रही को विहिप नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगे के मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह 14 मार्च को बालीगुडा जेल से जमानत पर रिहा हुए थे।

Tuesday, January 27, 2009

Indonesia: Yoga Ban for Muslims

THE ASSOCIATED PRESS, 27 January , 2009, Indonesia’s top Islamic body, the Ulema Council, barred Muslims from practicing yoga that contains Hindu rituals like chanting, the chairman of the group said Monday, citing concerns that it would corrupt their faith. The council issued the ruling after weekend talks by hundreds of theological experts in Padang Panjang, in West Sumatra. A similar ruling was made in Malaysia last year.

Thursday, January 22, 2009

Hindu group demands ban on 'Slumdog Millionaire'

Times of India, 22 Jan 2009,PANAJI: The Goa unit of a Hindu organisation has demanded a ban on the release of `Slumdog Millionaire', saying the award-winning film hurts the religious sentiments of the majority community।Hindu Janjagruti Samiti (HJS) will approach various governments, including that in Goa, insisting the movie should not be released, Jayesh Thali, state spokesman of the group, said.


There were a few scenes in the movie that denigrated Lord Ram, he alleged.

Thali said a HJS delegation had met Central Board of Film Certification officials in Mumbai, demanding a ban on the film which is slated for release tomorrow.

'Slumdog Millionaire', which tells the rags-to-riches tale of an orphan from a Mumbai slum, won four Golden Globe awards, including one for music composer A R Rahman.

Wednesday, January 21, 2009

Hindu outrage over fundraising con job

Fijilive, २० जनवरी, २००९, Fiji’s largest Hindu organization wants police to stop a group of people who are using its name to swindle money from members of the public.

Shree Sanatan Dharam Pratinidhi Sabha of Fiji secretary Vijendra Pratap told Fijlive, “that somebody had tried to use the name of a Hindu temple to get money out of people” recently.

“What we are worried about is that there could be so many people out there who will be using the name of religion to take money from people,” he said.

“We will be going to the police to find out how this could be stopped.”

Pratap said they were called yesterday by a concerned person asking them about a temple which according to the Sabha listing does not exist.

“What had happened is that a group of people are using letterheads and fictitious temple names to make money saying they are organizing fund drives. What we are going to do is give a list of registered temples to the Provincial Council Offices, which then can be used as a reference by the Councils to issue permits.

“This is also considered blasphemy, when you use the god and religion to con people, god will punish these people.”

Police are advising the general public to check permits of those collecting funds in the name of those affected by the recent floods.

Police spokeswoman Ema Mua said people collecting donations should carry with them a permit.

“People will also be aware that corporate bodies such as the Hibiscus Committee and radio stations are collecting money. It is advisable that people who want to help donate money into these bank accounts instead of giving it to people who come knocking on their doors,” she said.

अस्मिता पर आघात

तरुण विजय

दैनिक जागरण, १२ जवारी 2००९, नेपाल के माओवादी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने पशुपतिनाथ मंदिर को निशाने पर लेकर 'जनवादी क्रांति' शुरू करने का जो प्रयास किया वह तीव्र जनरोष के कारण विफल रहा और उन्हे भारतीय मूल के पुजारियों को पुन: बहाल करने पर विवश होना पड़ा। तात्कालिक रूप से यह भले ही हिंदू समाज के लिए राहत की बात हो, लेकिन इसके दूरगामी संकेत चिंताजनक है। प्रचंड के नेतृत्व में माओवादी नेपाल के अन्य गणतंत्रात्मक दलों को प्रभा हीन कर नए संविधान निर्माण के तुरंत बाद होने वाले चुनावों में अपने बल पर बहुमत प्राप्त करना चाहते है। मुख्य उद्देश्य है चीन की भांति नेपाल में एकतंत्रात्मक कम्युनिस्ट शासन स्थापित करना। इसके लिए उन्हे जिस प्रकार के तंत्रात्मक सहयोग एवं शासकीय उपकरणों की सहायता आवश्यक होगी उन सब साधनों को अपने कब्जे में करने के लिए उनके कदम उठ चुके हैं। सेना में माओवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के गुरिल्ला लड़ाकों की भर्ती, पुलिस पर माओवादी झुकाव वाले अधिकारियों की नियुक्ति द्वारा नियंत्रण, न्यायपालिका और मीडिया में निचले स्तर से माओवादियों की भर्ती और प्रभाव वृद्धि के बाद उन्होंने हिंदू नेपाल के प्रतीक पशुपतिनाथ मंदिर की मर्यादा हनन कर राष्ट्रवादी हिंदुओं का उसी प्रकार तेज भंग करने का सुविचारित कदम उठाया जैसे बाबर तथा औरंगजेब ने अयोध्या में रामजन्मभूमि एवं मथुरा में गोविंद देव के मंदिर ध्वस्त कर किया था। जहां विभिन्न शासकीय अंगों पर माओवादी संगठनात्मक नियंत्रण से पार्टी को अगले चुनाव में मनमाफिक परिणाम हासिल करने में मदद मिलेगी वहीं हिंदू श्रेष्ठता और उच्चता के सभी प्रतिमान खंडित कर नेपाल को भारत से दूर करने की दिशा में निर्णायक अध्याय रचा जा सकेगा, जिसे प्रचंड के लोग 'नए नेपाल' का मूल मुद्दा मानते हैं। पिछले दिनों प्रचंड ने यह कहकर चौंका दिया था कि नेपाल के लिए भारत से संबंधों को संतुलित करने के लिए चीन तथा पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाना जरूरी है।

पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की हिंदू अस्मिता और राष्ट्रीयता की पहचान के रूप में विश्व में मान्य है। वहां हिंदुओं को प्रभावहीन दिखाकर वे 'नए नेपाल' के लाल-स्वप्न को साकार करने के लिए वैसे ही बढ़ सकते है जैसे अक्टूबर क्रांति के बाद बोल्शेविक छा गए थे। गत वर्ष सितंबर में जब प्रचंड अपनी प्रथम राजनीतिक यात्रा पर भारत आए थे तो मुझे उनसे कुछ देर वार्ता का अवसर मिला था। बातचीत में उन्होंने स्पष्ट कहा-'भाई, हम भी तो हिंदू हैं, हम हिंदू धर्म के खिलाफ क्यों काम करेगे?' भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के यहां एक कार्यक्रम में वह बोले कि जब तक अयोध्या और जनकपुर है तब तक भारत-नेपाल संबंध कोई बिगाड़ नहीं सकता। ऐसा लगता है माओवादी अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ होने तक राजनयिक विनय ओढ़ना जरूरी समझते है। उनकी वास्तविक मंशा का परिचय यंग कम्युनिस्ट लीग के कार्यो और सरकार की हिंदुओं के प्रति संवेदनहीनता से मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि जिन माओवादियों ने चीन को अपना प्रेरक देश माना, जिन्होंने 15 हजार नेपालियों की हत्या की, जिसके निशाने पर गत डेढ़ दशक में केवल हिंदू प्रतीक के प्रतिमान रहे, जिन्होंने सबसे पहले नेपाल के हिंदू राष्ट्र वाले संवैधानिक अलंकरण को हटाया उन पर भारत के नेता तुरंत कैसे विश्वास कर लेते है? यदि विश्व के हिंदू संगठनों और समाज ने एकजुट होकर नेपाल में बहुलतावादी लोकतंत्र के गैर-कम्युनिस्ट स्वरूप को बचाने तथा नेपाल की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान बनाए रखने के लिए दबाव नहीं बनाया तो यह स्वाभिमानी धर्मनिष्ठ देश भारत के लिए वैसा ही भू-राजनीतिक सिरदर्द बन जाएगा जैसे बांग्लादेश व पाकिस्तान हैं। चीन की मंशा यही है। वह भारत के तीव्र गति से बढ़ रहे विकास को बांधने के लिए जैसे पाकिस्तान का उपयोग करता है वैसे ही अब नेपाल उसका परोक्ष सामरिक उपकरण बन गया है। पशुपतिनाथ मंदिर की व्यवस्था अपने नियंत्रण में लेने के लिए माओवादियों का प्रहार पूरे परिदृश्य का छोटा, परंतु महत्वपूर्ण संकेत है। असल में नेपाल के कम्युनिस्टों की नजर मंदिर की आय पर है। 1800 वर्ष पूर्व स्थापित यह प्राचीन मंदिर भारत-नेपाल प्रगाढ़ संबंधों की सबसे शक्तिशाली गारंटी है। यहां के पुजारी भारत के हों अथवा नेपाल के, यह प्रश्न सदा गौण रहा, क्योंकि पुजारी की नियुक्ति की एकमात्र कसौटी उसका तंत्र विद्या में निष्णात होना और ऋग्वेद संपूर्णत: कंठस्थ होने के साथ-साथ पारिवारिक परंपरा से शुद्ध शाकाहारी होनी मानी जाती है। विधि-विधान से पूजन की परंपरा को माओवादियों ने खंडित किया है। कम्युनिस्टों का यह कलुष दोनों देशों के प्राचीन संबंधों पर काली छाया न डाले, इसके लिए भारत सरकार और समाज के सभी वर्गों को दृढ़ता दिखानी होगी।


जिहादी रणनीति का सच

एस.शकंर
दैनिक जागरण, १३ जवारी २००९, जब इजरायल पर हिजबुल्ला और हमास जैसे आतंकी संगठनों के हमले शुरू होते है तो विरोध की प्रतिक्रियाएं सुनाई नहीं पड़तीं। न तो मानवीय संकट का राग अलापा जाता है, न ही अपील और आपत्तियों के स्वर उठते है। दूसरी ओर इजरायल द्वारा अपनी रक्षा के लिए प्रतिक्रियात्मक प्रहार शुरू करते ही निंदा, प्रदर्शन और अपीलों का दौर शुरू हो जाता है। दिसंबर में हमास ने इजरायल पर राकेट हमले शुरू किए। इजरायल की कार्रवाई जवाबी है, फिर भी आलोचना के निशाने पर वही है। जबसे इजरायल बना है तभी से उसे तरह-तरह के शत्रुओं की घृणा, प्रहार का सामना करना पड़ रहा है। पिछले तीन वर्ष से ईरान के राष्ट्रपति इजरायल को दुनिया से मिटा देने की कई बार घोषणाएं कर चुके है। क्यों दुनिया के मानवता प्रेमी ईरान की वह भ‌र्त्सना, निंदा नहींकरते जो इजरायल द्वारा आत्मरक्षा में की गई कार्रवाइयों पर होती है? इजरायल की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर वेस्ट बैंक और गाजा अर्थात फलस्तीनी सत्ता पर कुख्यात आतंकी संगठन हमास दो वर्ष से काबिज है। हमास का लक्ष्य है इजरायल को मिटाना। इजरायल के उत्तर अर्थात लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र में शिया आतंकी संगठन हिजबुल्ला का राज है। हिजबुल्ला का नियंत्रण ईरान के हाथ में है, जो उसे सैन्य और वित्तीय मदद देता है। इस प्रकार हमास, हिजबुल्ला, ईरान, सीरिया आदि कई शक्तियां इजरायल को खत्म करने का खुलेआम उद्देश्य रखती है। ऐसे में यह कहना कि हमास के हमलों पर इजरायल की प्रतिक्रिया आनुपातिक होनी चाहिए, निरी प्रवंचना ही है।

आतंकी पश्चिमी भय और बुद्धिजीवियों के भोलेपन का जमकर लाभ उठाते है। यहां अनुपात का प्रश्न ही नहीं, मूल बात अस्तित्व-रक्षा की है। गाजा उस भूमि पर स्थित है जिसे तीन वर्ष पहले इजरायल ने अपनी बसी-बसाई आबादी को हटाकर स्वेच्छा से खाली कर दिया था, ताकि सुलह-शांति का कोई मार्ग निकले। आज वहीं से उस पर राकेट से हमले हो रहे है। डेढ़ वर्ष पहले हिजबुल्ला ने यही किया था, अब हमास कर रहा है। गाजा को खाली करने के बदले इजरायल को अरब देशों, सुन्नी हमास और शिया हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों से क्या मिला? आतंकी तत्व नरमी को डर और कायरता समझते है। अलग-अलग रूपों में जिहादी राजनीति केवल फलस्तीन ही नहीं, दुनिया के हर क्षेत्र में कमोबेश सक्रिय है, किंतु इसकी रणनीति और विचारधारा को समझा नहीं गया है। उसे हम प्राय: अपनी मनोवृत्ति के अनुरूप देखने की गलती करते है। जैसे सभी घाव मरहम से ठीक नहीं होते उसी तरह हरेक राजनीतिक संघर्ष बातचीत या लेन-देन से नहीं सुलझ सकता। जिहादी राजनीति के अपने नियम है। उन्हे पाकिस्तान, फलस्तीन से लेकर दारफर तक पहचाना जा सकता है। अलकायदा, हमास, हिजबुल्ला, लश्करे-तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन आदि सैकड़ों संगठन खुलेआम जिहाद में लगे है। इसके अलावा ईरान, सीरिया, सऊदी अरब, सूडान आदि कई देशों में सत्ताधारी हलकों से जब-तब प्रत्यक्ष या प्रच्छन्न जिहादी राजनीति का संचालन या सहयोग होता रहता है। उनकी भिन्नताएं अपनी जगह है, किंतु उनके क्रिया-कलाप की सैद्धांतिक-व्यवहारिक समानताएं अधिक महत्वपूर्ण है। उसी में उनकी शक्ति और कमजोरी की थाह मिलती है। जिहादी रणनीति सदैव हमला करने की है। इसके लिए उसे किसी बहाने की जरूरत नहीं पड़ती। कारण ढूंढने का काम तो उलटे पीड़ित समाजों के बुद्धिजीवी करते है। सभी जिहादी सीधे नागरिक आबादी को मारते हैं, जैसा कि भारत में पिछले 15 वर्ष से मार रहे है। यदि जांच-पड़ताल भी की जाए तो वे 'निर्दोष मुसलमानों' को पीड़ित करने का आरोप लगाएंगे। जिहादियों को विश्वास है कि उनके शत्रु जीत नहीं सकते। दबावों से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता और वार्ता से वे कायल होने वाले नहीं।

हिजबुल्ला और हमास ने लेबनान या गाजा में जानबूझकर नागरिक बस्तियों के बीच अपने सैनिक ठिकाने बनाए है, ताकि वे बच्चों, स्त्रियों को ढाल बना सकें। आम नागरिकों की हमास या हिजबुल्ला को परवाह नहीं, मगर वे दुनिया भर में प्रचार करेगे कि इजरायल निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा है। यदि हमास, हिजुबल्ला, लश्कर जैसे संगठनों के दस्तावेज, पर्चो या दूसरी सामग्री पर ध्यान दें तो स्पष्ट दिखता है कि वे यहूदियों, हिंदुओं के विरुद्ध घृणा फैलाते है। जिहादी रणनीति का यही मूल तत्व है। फलस्तीन हो या कश्मीर, कमोबेश उनके तौर-तरीके समान है। जिहादी आतंकवाद के व्यवहार को ठीक-ठीक पहचान कर उपाय सोचें, तब दिखेगा कि उससे और उसकी विचारधारा से खुली, लंबी लड़ाई के अलावा कोई विकल्प नही। जब हम आसान समाधान की दुराशा छोड़ देंगे और लड़ाई स्वीकार करेगे तभी जिहादी आतंकवाद के अंत की शुरुआत होगी।


अल्पसंख्यक अपने अधिकारों से महरूम

दैनिक जागरण, २० जनवरी २००८, नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति मुहम्मद हामिद अंसारी ने मंगलवार को कहा कि कानून के सामने अल्पसंख्यक देश के सभी अधिकारों के लाभार्थी हैं लेकिन हकीकत इससे परे है और इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है।

अंसारी ने कहा कि इस हकीकत के चलते देश का सर्वागीण विकास प्रभावित हो रहा है इस लिए इस स्थिति में सुधार लाए जाने की सख्त जरूरत है।

उपराष्ट्रपति ने मंगलवार को यहां राज्य अल्पसंख्यक आयोगों के वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह टिप्पणी की। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने कहा कि कुछ हाल की और कुछ पहले की घटनाओं के चलते अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मामले में चिंताएं बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि शासन द्वारा सुरक्षा मुहैया नहीं करा पाना इस मामले में चिंता का बड़ा विषय है। अदालतों के फैसलों से भी इस बात की पुष्टि होती है।

अंसारी ने कहा कि इस संबंध में जनमानस और मानवाधिकार संगठनों की शिकायतों को देखते हुए सुधारात्मक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश में लगभग हर छठा व्यक्ति अल्पसंख्यक है और उनकी आबादी करीबन 20 करोड़ है। कानून की नजर में वे सभी अधिकारों के लाभार्थी हैं लेकिन हकीकत इससे परे है और इसकी पुष्टि भी हो चुकी है। इससे देश का सर्वागीण विकास प्रभावित हुआ है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और इस तरह के राज्य आयोगों का गठन अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा और उनमें विश्वास बहाल करने के लिए किया गया था लेकिन अनुभव दर्शाते है कि उनकी शिकायतें दूर करने का तंत्र भी कुछ हद तक सफल नहीं रहा है।

अंसारी ने इस कमी को दूर करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अनुसूचित जाति आयोग की तर्ज पर अल्पसंख्यक आयोग को भी जांच के अधिकार देने की वकालत की। उन्होंने कहा कि इसी तरह अल्पसंख्यकों के लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति उत्पीडन निवारक कानून की तर्ज पर कोई कानून बनाने के बारे में भी विचार करना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के बाद अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए कई स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि उनके क्रियान्वयन पर नजर रखने के लिए भी कारगर तंत्र स्थापित किए जाएं। इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने कहा कि उन्होंने मदरसों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की शिक्षा को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और भारतीय स्कूल शिक्षा बोर्ड परिषद के समकक्ष मानने की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है।

सिंह ने कहा कि इसके अलावा केंद्रीय मदरसा बोर्ड गठित करने का मामला भी विचाराधीन है। केंद्रीय श्रम मंत्री आस्कर फर्नाडिस ने कहा कि अल्पसंख्यकों का उत्थान वर्तमान समय में जरूरी है और इसके लिए उन्हें बड़े पैमाने पर तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि वे स्वावलंबी बन सकें।

अगले सत्र में पेश होगा मदरसा बिल

दैनिक जागरण, २० जनवरी २००९, नई दिल्ली। मदरसों में शिक्षा का स्तर सुधारने के इरादे से सरकार केंद्रीय मदरसा बोर्ड की स्थापना करने के वास्ते संसद के अगले सत्र में विधेयक लाएगी।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने मंगलवार को राज्य अल्पसंख्यक आयोगों के वार्षिक सम्मेलन में कहा कि अल्पसंख्यकों की एक अर्से से मांग रही है कि ऐसा बोर्ड बनाया जाए और इसके मद्देनजर संसद के अगले सत्र में यह विधेयक पेश किया जाएगा। सिंह ने कहा कि उनके मंत्रालय के मदरसा शिक्षा की तरफ विशेष ध्यान दिया है और हाल में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड [सीबीएसई] और भारतीय स्कूल शिक्षा बोर्ड परिषद [सीओबीएसई] से सिफारिश की है कि मदरसा प्रमाणपत्र को सीबीएसई के बराबर माना जाए, ताकि मदरसों से शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी सरकारी नौकरियों के योग्य हों।

सिंह ने कहा कि अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों के वास्ते एक विशेष निकाय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान आयोग का गठन इसलिए किया गया है, ताकि अपने पंसद के शिक्षण संस्थान खोलने और चलाने के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा हो सके। बाटला हाउस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग संबंधी एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह मांग सरकार की नजर में है और व्यक्तिगत तौर पर उनका मानना है कि अच्छा होगा कि अगर इस घटना के संबंध में स्थिति स्पष्ट हो सके। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा चलाए जा रहे सरस्वती शिशु मंदिर स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने के बारे में पत्रकारों के सवालों के जवाब में सिंह ने कहा कि इन स्कूलों के पाठ्यक्रम में कुछ अवांछित सामग्री है और उनका मंत्रालय मामले की जांच कर रहा है। उन्होंने लेकिन यह भी कहा कि वह जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहते क्योंकि किसी भी संगठन की राजनीतिक तौर पर निशाना बनाने की उनकी कोई मंशा नहीं है।