Friday, May 3, 2013

रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए

http://www.jagran.com/news/national-tamil-nadu-government-demand-ram-sethu-to-declare-national-monument-10348402.html
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है। इतना ही नहीं सेतु समुद्रम परियोजना का विरोध करते हुए राज्य सरकार ने रामसेतु को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि से केंद्र को रोकने की मांग भी की है। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को हलफनामे का जवाब दाखिल करने के लिए तीन महीने का समय दिया है।

 

Saturday, April 27, 2013

'हिंदू मतलब चोर' पर फंसेंगे या बचेंगे करुणानिधि?

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19690552.cms
गौरतलब है कि करुणानिधि ने 24 अक्टूबर 2002 को विवादित बयान देते हुए 'हिंदू' का मतलब 'चोर' बताया था। बवाल बढ़ने पर करुणानिधि ने 'हिंदी विश्व कोष' का हवाला देते हुए अपने बयान को सही कहा था। करुणानिधि के इस बयान पर तब हिंदू संगठनों ने जमकर वबाल किया था। हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में एक शख्स बीआर गौतमन की शिकायत पर सिटी पुलिस ने क्रिमिनल केस दर्ज किया था। करुणानिधि के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करने पर गौतमन ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी।

यूपी सरकार ने आतंकी से वापस लिए सभी मुकदमे

http://www.jagran.com/news/national-at-last-case-against-gorakhpu-blast-accused-tariq-qasmi-withdrawn-10333330.html
उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर में 22 मई, 2007 को हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोपी तारिक कासमी के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस ले लिया है। सरकार की उच्चाधिकार समिति ने यह फैसला न्याय विभाग के परामर्श के आधार पर किया है। आजमगढ़ जिले के सरायमीर कस्बे का मूल निवासी तारिक कासमी इस वक्त लखनऊ जेल में बंद है।

Attack on Hindus: TN Mutt heads too join stir

http://www.dailypioneer.com/nation/attack-on-hindus-tn-mutt-heads-too-join-stir.html
Normal life in four western districts of Coimbatore, Nilgiris, Tirupur and Erode came to a standstill on Friday following a dawn-to-dusk hartal called by various Hindu outfits. The strike was in protest against continued attacks on temples and leaders of Hindu organisations by various outfits masquerading as political parties.

मुलायम की ‘मुस्लिम सियासत’ हुई तेज

http://aajtak.intoday.in/story/sp-eyes-muslim-votes-in-up-1-728069.html
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आम चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय को रिझाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. इसके लिए वह सभी प्रभावशाली मुस्लिम संगठनों से संपर्क साधने और उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश में लगे हैं.

अयोध्या के विवादित स्थल पर रामनवमी को नहीं हुई पूजा

उन्नीस साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए एक आदेश की वजह से अयोध्या के विवादित स्थल पर इसबार रामनवमी के दिन पूजा अर्चना नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जिला प्रशासन ने विवादित स्थल पर इसबार किसी धार्मिक गतिविधि की इजाजत नहीं दी।

बेंगलुरु ब्लास्ट: इंडियन मुजाहिदीन शक के घेरे में

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/19604783.cms
बेंगलुरु में हुए विस्फोट के एकबार फिर यह साबित हो गया है कि खुफिया तंत्र पूरी तरह 'अक्षम' है। हालत यह है कि विस्फोट के कई घंटे बाद तक जांच एजेंसियां यह बताने की स्थिति में नहीं है कि विस्फोट के पीछे किसका हाथ है। गृह मंत्रालय की तरफ से भी आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन सीनियर अधिकारी मान रहे हैं कि जो लोग हैदराबाद बम विस्फोटों के पीछे थे, उन्होंने ही इस विस्फोट को अंजाम दिया है।

हमें भारत में ही मारकर अंतिम संस्कार कर दो..

http://www.jagran.com/news/national-deport-our-bodies-to-pakistan-not-us-10310815.html
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग को पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों की दासता जब सुनाई जा रही थी तब मानवता भी शर्म सार थी। बुधवार को राजधानी दिल्ली के लोधी रोड स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के बाहर पाकिस्तान से आए हिंदुओं ने जमकर प्रदर्शन किया तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा।

बेंगलुरु में BJP दफ्तर के पास IED से ब्लास्ट, 16 घायल

http://navbharattimes.indiatimes.com/india/south-india/explosion-near-bjp-office-in-bangalore/articleshow/19591807.cms
चुनावी रंग में रंगा बेंगलुरु बुधवार सुबह एक ब्लास्ट से दहल गया। ब्लास्ट बेंगलुरु के मलेश्वरम में बीजेपी दफ्तर के बाहर एक मोटरसाइकल में हुआ। इसमें 8 पुलिसवालों समेत 16 लोग घायल हो गए।ब्लास्ट इतना तगड़ा था कि तीन कारें और कई मोटरसाइकलें जल गईं। शुरुआती रिपोर्ट्स में ब्लास्ट वैन के एलपीजी सिलेंडर में होने की खबर आई, लेकिन बाद में बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर ने साफ कि ब्लास्ट मोटरसाइकल में हुआ। एनआईए ने शुरुआती जांच के बाद बताया कि ब्लास्ट इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से किया गया। ब्लास्ट के पीछे आतंकी हमले की साजिश जताई जा रही है, लेकिन फिलहाल इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
 

पंथनिरपेक्षता का पाखंड

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-the-hypocrisy-of-secularism-10310065.html
नरेंद्र मोदी द्वारा इंडिया फ‌र्स्ट के रूप में सेक्युलरिज्म की नई परिभाषा देने से फिर एक विवाद पैदा हुआ और इस विवाद को बढ़ाने का काम जद (यू) नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचना कर किया। नरेंद्र मोदी पर नीतीश कुमार के हमलों से यह बहस तेज हो गई है कि आखिर सेक्युलरिज्म है क्या बला? राजनीति में जिस सेक्युलरिज्म की दुहाई दी जाती है वह दरअसल झूठी और विकृत पंथनिरपेक्षता से अधिक और कुछ नहीं। यह वोट बटोरने का एक जरिया मात्र है। सेक्युलरिज्म पर सारा विवाद और छींटाकशी इसलिए होती रहती है, क्योंकि हमारे देश में इसकी कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है। न संविधान में, न संसद में कानून बना कर, न सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय में सेक्यूलरिज्म का कोई अर्थ बताया गया है। सबसे बुरी बात तो यह कि इसे पारिभाषित करने के प्रयास को भी बाधित किया जाता है! नेतागण, सुप्रीम कोर्ट और प्रभावी बुद्धिजीवी वर्ग सबने इसे अस्पष्ट रहने देने की सिफारिश की है। यह सामान्य बात नहीं, क्योंकि इसी के सहारे भारत में एक विशेष प्रकार की राजनीति का दबदबा बना है, जिसकी धार हिंदू विरोधी है और इसी को कवच बनाकर देश-विदेश की भारत-विरोधी शक्तियां भी अपना कारोबार करती हैं।
ध्यान देने पर यह किसी को भी दिख सकता है। यहां बौद्धिक विचार-विमर्श में हिंदू शब्द प्राय: केवल उपहास या गाली के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। प्रसिद्ध पत्रकार तवलीन सिंह के अनुसार भारत में प्रचलित सेक्युलरिच्म हिंदू सभ्यता के विरुद्ध चुनौती बन गया है। भारतीय सभ्यता अपने उत्कर्ष पर हिंदू सभ्यता ही थी, जिसने संपूर्ण विश्व को गणित से लेकर दर्शन, धर्म और साहित्य तक हर क्षेत्र में अनमोल उपहार दिए, किंतु आज भारत में यह बात कहना हिंदू सांप्रदायिकता है। उसी तरह इंडिया फ‌र्स्ट कहने पर भी आपत्तिकी जा रही है। इन बातों का निहितार्थ बहुत गंभीर है। ऐसे प्रसंग हमारे देश के बौद्धिक वातावरण पर एक टिप्पणी है कि किस तरह एक विकृत मतवाद ने लोगों को इतना दिग्भ्रमित कर दिया है कि वे देखकर भी नहीं देख पाते। प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार ने 1965 में ही स्पष्ट देखा था किए इस देश में मुस्लिम संस्कृति और भारतीय संस्कृति की चर्चा की जा सकती है, मगर हिंदू संस्कृति की नहीं। हिंदू शब्द केवल नकारात्मक अथरें में प्रयोग किया जाता है। याद रहे, यह तब की बात है जब न राम-जन्मभूमि आंदोलन था, न विश्व हिंदू परिषद थी। मगर तब भी हिंदू शब्द का प्रयोग पोंगापंथी, सांप्रदायिक, फासिस्ट संदर्भ में ही होता था। चार दशक में आज वह विष भी बन गया जिससे पुस्तकों, पदों, संस्थानों को मुक्त करने का अभियान चलाना पड़ता है।
दुनिया के सबसे बड़े हिंदू देश में हिंदू-विरोध ही सेक्युलरिच्म की और बौद्धिकता की कसौटी बन गया है। इसी से संभव होता है कि एक समुदाय के मजहबी शिक्षा-संस्थानों को अनुदान मिले, जबकि दूसरे को अपनी औपचारिक शिक्षा में महान दार्शनिक ग्रंथों को पढ़ने की अनुमति भी न दी जाए। अपरिभाषित सेक्युलरिच्म के डंडे से ही हिंदू मंदिरों पर सरकारी कब्जा कर लिया जाता है। इतना ही नहीं कई बड़े मंदिरों की आमदनी से दूसरे समुदाय के धार्मिक कर्मकांडों को करोड़ों का अनुदान दिया जाता है। एक ही काम के लिए ईसाई कार्यकर्ता को पद्म भूषण दिया जाता है, जबकि हिंदू समाजसेवी को सांप्रदायिक कहकर लांछित किया जाता है। नितांत अप्रमाणित आरोप पर भी हिंदू धर्माचार्य गिरफ्तार कर अपमानित किए जाते हैं, जबकि दूसरे धमरें के धर्मगुरुओं को देशद्रोही बयान देने, संरक्षित पशुओं को अवैध रूप से अपने घर में लाकर बंद रखने पर भी छुआ तक नहीं जाता। उल्टे राजनीतिक निर्णयों में उन्हें विश्वास में लेकर उनकी शक्ति बढ़ा दी जाती है। भयंकर आतंकवादी को भी लादेनजी और अफजल साहब का सम्मानित संबोधन दिया जाता है, जबकि देश के सबसे बड़े योगाचार्य को ठग कहा जाता है। यदि सेक्युलरिच्म वैधानिक रूप से परिभाषित हो गया तो ये सभी मनमानियां नहीं की जा सकेंगी। इसकी अस्पष्टता का ही करिश्मा है कि शिक्षा, संस्कृति और राजनीति हर क्षेत्र में भारत में अन्य समुदायों को हिंदुओं से अधिक अधिकार मिले हुए हैं।
कहने को अभी देश में सेक्युलरिच्म की कम से कम चार परिभाषाएं हैं, यद्यपि कोई भी वास्तविक नहीं। अलग-अलग सेक्युलरवादी इच्छानुसार इनका उपयोग करते हैं। एक परिभाषा 1973 में न्यायाधीश एचआर खन्ना ने दी कि राच्य मजहब के आधार पर किसी नागरिक के विरुद्ध पक्षपात नहीं करेगा। कुछ वर्ष बाद दूसरी परिभाषा कांग्रेस पार्टी ने दी-सर्वधर्म समभाव। तीसरी परिभाषा भाजपा ने दी-न्याय सब को, तरजीह किसी को नहीं। चौथी परिभाषा नहीं एक टिप्पणी है। किंतु सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष एमएन वेंकटचलैया की होने के कारण इसका महत्व है। इसके अनुसार सेक्युलरिच्म का अर्थ बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध नहीं हो सकता। यह टिप्पणी प्रकारांतर मानती है कि व्यवहार में इसका यही अर्थ हो गया है। यहां याद करना जरूरी है कि स्वयं संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान को सेक्युलर नहीं माना था, क्योंकि यह विभिन्न समुदायों के बीच भेदभाव करता है।
कांग्रेस ने 1976 में इमरजेंसी के दौरान 42वां संशोधन करके संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द जबरन जोड़ दिया। बाद में आई जनता सरकार ने 1978 में 45वें संशोधन द्वारा कांग्रेस वाली परिभाषा को ही वैधानिक रूप देने की कोशिश की। लोकसभा में यह पारित भी हो गया। पर राच्यसभा में कांग्रेस ने ही इसे पारित नहीं होने दिया। यह इस बात का पक्का प्रमाण है कि संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द गर्हित उद्देश्य से जोड़ा गया था, इसीलिए उसे जानबूझकर अपरिभाषित रखा गया ताकि जब जैसे चाहे, दुरुपयोग किया जाए। इस अन्याय को सुप्रीम कोर्ट ने भी दूर नहीं किया। उसने एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार मामले के निर्णय में लिख दिया कि सेक्युलरिच्म एक लचीला शब्द है, जिसका अपरिभाषित रहना ही ठीक है। जबकि ऐसा कहना ही कानून की धारणा के विरुद्ध है। जिसे संविधान और शासन का आधारभूत सिद्धांत कहा जाता है उसे परिभाषित होने से रोकने का आधार क्या है? एक अर्थ पसंद नहीं तो दूसरा सही, पर कोई पक्का वैधानिक अर्थ तो होना ही चाहिए। इससे हीलाहवाली करने पर आम जनता को समझने में कठिनाई नहीं होगी कि सेक्युलरिच्म को अपरिभाषित रखना विभिन्न समुदायों के बीच दूरी और झगड़ा बनाए रखने का पक्का औजार है।
[लेखक एस. शंकर, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]