Tuesday, September 9, 2008

उड़ीसा दंगों में ईसाई संगठन दोषी: रिपोर्ट

5 सितम्बर 2008, वार्ता, नई दिल्ली। एक स्वयंसेवी संगठनजस्टिस ऑन ट्रायलने अपनी जांच के आधार पर आरोप लगाया है कि उड़ीसा के कंधमाल जिले में साम्प्रदायिक हिंसा के लिए ईसाई मिशनरियों की धर्मपरिवर्तन की गतिविधियां दोषी हैं।

जस्टिस ऑन ट्रायलकी जांच समिति के अध्यक्ष और राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्ता सरदार जीएस. गिल ने आज यहां एक प्रेस वार्ता में कहा कि उड़ीसा में धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए सन 1967 में बनाए गए सख्त कानून के बावजूद ईसाई मिशनरी संस्थाएं प्रलोभन से भोलेभाले आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं, जिससे समय-समय पर तनाव पैदा होता रहता है।

उन्होंने कहा कि उड़ीसा के हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती ने एक साक्षात्कार में स्वंय कहा था कि मिशनरी तत्व उन पर आठ बार हमला कर चुके हैं। नौवें हमले में गत महीने उनकी मौत हो गई थी।

जांच समिति ने हिन्दू नेता पर हुए हमले के लिए माओवादियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में कहा कि ऐसा कोई ठोस कारण नहीं है कि माओवादी स्वामी जी की जान लें।

जांच समिति ने कहा कि इस बात की छानबीन होनी चाहिए कि क्या हिन्दू विरोधी ताकतों ने माओवादियों के जरिए इस अपराध को अंजाम दिया है।

जांच समिति में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीसी. डोगरा, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य नफीसा हुसैन, सामाजिक कार्यकर्ता कैप्टन एमके. अंधारे और रामकिशोर पसारी शामिल थे।

कंधमाल में पिछले वर्ष भी दिसम्बर में हुई घटनाओं की जांच के लिए समिति के सदस्यों ने विभिन्न स्थानों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट जारी की थी। समिति के सदस्यों का मानना है कि इस रिपोर्ट में साम्प्रदायिक और सामाजिक तनावों के मूल कारणों का उल्लेख है, जिन्हें दूर करके ही इस क्षेत्र में शांति और सद्भाव कायम किया जा सकता है।

Monday, September 8, 2008

उड़ीसा में इटली का दखल

उड़ीसा की हिंसक घटनाओं के पीछे मतांतरण की भूमिका देख रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण ,१ सितम्बर २००८ , उड़ीसा के कंधमाल जिले की हिंसा पर इटली सरकार द्वारा विगत गुरुवार को व्यक्त की गई आपत्ति न केवल राजनयिक मर्यादा का अतिक्रमण है, बल्कि ईसाइयत का साम्राज्यवादी चेहरा भी बेनकाब करती है। 80 वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके सहयोगियों की हत्या एवं उसकी प्रतिक्रिया में जो हिंसा हुई वह निंदनीय है, किंतु इसके पीछे चर्च की दशकों पुरानी मतांतरण गतिविधियां जनाक्रोश का सबसे बड़ा कारण हैं। ये हिंसक घटनाएं भारत का आंतरिक मसला हैं और किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा पोषित नहीं हैं। विगत गुरुवार को इटली सरकार ने कैबिनेट की बैठक के बाद भारतीय राजदूत को तलब कर भारत में मजहबी हिंसा रोकने का निर्देश देने का फैसला लेने संबंधी बयान जारी किया है। इसके एक दिन पूर्व पोप ने भी हिंसा की कड़ी निंदा की थी।

वस्तुत: इटली सरकार की निराधार प्रतिक्रिया उसके राजनीतिक पतन और गिरते सामाजिक मापदंडों को ही रेखांकित करती है। इटली की सरकार नवफासीवादियों पर आश्रित है, जिनका मुख्य एजेंडा विदेशी द्वेष और अप्रवास विरोधी है। आश्चर्य नहीं कि रोम के नए मेयर का स्वागत मुसोलिनी की तरह होता है। नवफासीवादी युवा इटली रोमन कैथोलिक के अनुयायी हैं और उन्हें मुस्लिम-यहूदियों सहित प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की उपस्थिति से भी नफरत है। इसके विपरीत ईसाई मत में दीक्षित और इटली में जन्मी-पलीं सोनिया गांधी सत्तापक्ष की सर्वोच्च नेता हैं। इस पृष्ठभूमि में इटली सरकार द्वारा भारत को सहिष्णुता का उपदेश देना शैतान के मंत्रोच्चार करने जैसा है। इटली की सरकार ने जो अनावश्यक हस्तक्षेप करने की कोशिश की है उसका भारतीय सत्ता अधिष्ठान की ओर से कड़ा प्रतिवाद किया जाना चाहिए। क्या इस सेकुलर सरकार से देश के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए किसी पहल की अपेक्षा की जा सकती है? पोप दुनियाभर के इसाइयों के संरक्षक माने जाते हैं, इसलिए कुछ हद तक उनकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, किंतु भारत के संदर्भ में उन्होंने एकपक्षीय तथ्यों के आधार पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर चर्च की मतांतरण गतिविधियों को ढकने का प्रयास किया है। चर्च भारत में वैसे इलाकों में ज्यादा सक्रिय है जहां आर्थिक व शैक्षिक पिछड़ापन है। बहुधा चर्च स्थानीय मान्यताओं, परंपराओं व प्रचलित आस्थाओं पर भी आघात कर अपना प्रसार करने की कोशिश करता रहा है। यह हिंदूनिष्ठ संगठनों का मिथ्या आरोप नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मतांतरण की ऐसी शिकायतें मिलने पर मध्य प्रदेश की कांग्रेसी सरकार द्वारा 14 अप्रैल 1955 में गठित 'नियोगी समिति' ने इस कटु सत्य को रेखांकित किया था। समिति की प्रमुख संस्तुतियां थीं-मतांतरण के उद्देश्य से आए विदेशी मिशनरियों को बाहर निकाला जाए, चिकित्सा व अन्य सेवाओं के माध्यम से मतांतरण को कानून बनाकर रोका जाए, बल प्रयोग, लालच, धोखाधड़ी, अनुभवहीनता, मानसिक दुर्बलता का उपयोग मतांतरण के लिए नहीं हो, किसी भी निजी संस्था को सरकारी स्त्रोतों के अलावा विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति नहीं मिले।

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती 1966 में कंधमाल आए और तब से वह अशिक्षित-पिछड़े वनवासियों के उत्थान में संलग्न थे। उन्होंने पिछड़े आदिवासियों के मतांतरण के मिशनरी प्रयासों का प्रखर विरोध किया। उन्होंने गोवध के खिलाफ भी मुहिम छेड़ रखी थी। 1970 के बाद से वह चर्च के निशाने पर थे। विगत दिसंबर माह में भी उन पर कातिलाना हमला हुआ था। उसकी प्रतिक्रिया में हिंसक वारदातें भी हुईं। तब दिल्ली से जांच के लिए उड़ीसा गए मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधियों ने हिंसा के लिए केवल हिंदू संगठनों को कसूरवार ठहराया। केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल का दौरा केवल ईसाई गांवों तक ही सीमित रहा। उन्होंने ब्राह्मणदेई, जलेसपेटा, तुमुड़ीबंध, बालीगुडा और बाराखंबा गांवों का दौरा नहीं किया, जहां ईसाई हमलावरों द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। ईसाई हमलावरों के डर से कटिंगिया व आसपास के दस गांवों के हिंदू ग्रामीण जंगलों में जा छिपे थे। उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने की चिंता शिवराज पाटिल को नहीं हुई। सेकुलर मीडिया में भी चर्चों पर हुए हमलों की तो खूब चर्चा हुई थी, किंतु मंदिरों और हिंदुओं पर किए गए हमलों की खबर गायब ही रही। यदि तब तटस्थतापूर्वक जांच की जाती और चर्च पर कड़ी कार्रवाई की जाती तो संभवत: आज यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। यह कहना कि हत्या के पीछे नक्सलियों-माओवादियों का हाथ है, सत्य से आंख मूंदना है। उड़ीसा में सक्रिय अधिकांश माओवादी-नक्सली नवमतांतरित ईसाई ही हैं। त्रिपुरा में अगस्त 2000 में स्वामी शांतिकाली जी महाराज की भी हत्या की गई थी। शांतिजी भी वनवासी इलाकों में चलाए जा रहे मतांतरण कार्यक्रमों के प्रखर आलोचक थे। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हत्या में बैप्टिस्ट चर्च के शामिल होने की बात स्वीकारी थी। पूर्वोत्तार के ईसाई बहुल क्षेत्र हों या अन्यत्र, जहां कहीं भी अलगाववाद की समस्या है उसके पीछे मतांतरण एक बड़ा कारक है।

मतांतरण के संबंध में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''जब हिंदू समाज का एक सदस्य मतांतरण करता है तो समाज की संख्या कम नहीं होती, बल्कि समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है।'' आज कश्मीर में जो हो रहा है वह इस कटु सत्य को रेखांकित करता है। आश्चर्य नहीं कि वैदिक हिंदू दर्शन के साक्षी कश्मीर में आज पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं और भारत की मौत की कामना की जा रही है।

लक्ष्मणानंदजी की हत्या में चर्च शामिल हो या नक्सली-माओवादी, मैं मतांतरण से पैदा होने वाली विषाक्त मानसिकता को मुख्य कसूरवार मानता हूं, जो बहुलतावादी संस्कृति की धुर विरोधी है। कंधमाल की हिंसा में जहां चर्च की बड़ी भूमिका है वहीं सेकुलरवादियों की कुत्सित नीतियों का भी बड़ा योगदान है। उड़ीसा की दो आदिवासी जातियों-कंध और पण में पिछले कुछ समय से आरक्षण को लेकर संघर्ष चरम पर है। कंध जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और आस्था के प्रति खासे जागरूक हैं, जबकि अधिकांश पण आदिवासियों ने ईसाइयत स्वीकार कर ली है। मतांतरण के बाद अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण से वंचित हो जाने के बाद पण समुदाय कंध की तरह अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने की मांग कर रहा है, जिसका समर्थन चर्च कर रहा है। विदेशी धन से पोषित फूलबनी कुई जनकल्याण संघ इस फसाद का सूत्रधार है। संप्रग सरकार द्वारा गठित रंगनाथ मिश्रा आयोग द्वारा सभी मतांतरितों को आरक्षण देने की संस्तुति के बाद कंध सहित अन्य हिंदू अनुसूचित जाति-जनजाति को यह भय सताने लगा है कि उनके हक का आरक्षण लाभ पण उड़ा ले जाएंगे। स्वयं पण भी चर्च की शरण में आने के बावजूद ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चर्च की शरण में आने के बावजूद उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। उड़ीसा की हाल की हिंसक घटनाओं की तह में छल-कपट और फरेब के बल पर चर्च द्वारा चलाया जा रहा मतांतरण अभियान है, जिसे सेकुलरिस्टों का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन प्राप्त है।



उड़ीसा: विहिप नेता समेत चार की हत्या

24 अगस्त २००८ वार्ता भुवनेश्वर। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के प्रमुख नेता स्वामी लक्ष्मनन्दा सरस्वती और चार अन्य की शनिवार रात अज्ञात हमलावरों ने उड़ीसा में कालाहांडी-फुलबनी सीमा पर जलेसपाटा आश्रम स्कूल में गोली मारकर हत्या कर दी।

फुलबनी स्थित चकपाड़ा आश्रम के संस्थापक स्वामी सरस्वती आश्रम में गए थे, तभी हमलावरों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिससे चार अन्य सहित उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। राज्य के पुलिस महानिदेशक गोपाल नन्दा ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि मारे गए चार अन्य की पहचान अभी नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा कि यह घटना संदिग्ध नक्सलियों की हो सकती है और इसका पता लगाया जा रहा है।

स्वामी सरस्वती ने हाल ही में प्रेस को जारी एक बयान में आरोप लगाया था कि आदिवासी बहुल फुलबनी जिले में माओवादियों के ईसाई मिशनरियों के साथ मिल जाने से उनके जीवन को खतरा है।

जम्मू विवाद हल: मंदिर बोर्ड को जमीन मिली

1 अगस्त 2008 वार्ता, जम्मू। जम्मू कश्मीर सरकार और श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के बीच अमरनाथ जमीन विवाद को लेकर चार दौर की बातचीत के बाद आखिरकार आज समझौता हो गया जिसके तहत श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रा की अवधि के दौरान जमीन दी जायेगी।


सरकारी पैनल के प्रमुख एस.एस.ब्लोएरिया ने तड़के पांच बजे यहां एक संवाददाता सम्मेलन में श्राइन बोर्ड को यात्रा के दौरान जमीन बहाल किये जाने की घोषणा की।

बातचीत का चौथा दौर कल रात नौ बजकर पांच मिनट पर शुरू हुआ था जो आज तड़के चार बजकर 45 मिनट तक चला। इस फैसले के बाद लगभग दो महीनों से संघर्षरत और 39 दिनों से पूर्ण बंद का सामना कर रहे जम्मू के लोगों के चेहरो पर खुशी लौट आई।

श्री बेलोरिया ने बताया कि श्राइन बोर्ड को वापस की गई जगह पर विभिन्न तरह की सामग्री इस्तेमाल करके ढांचा तैयार किया जायेगा। इसमें शौचालय, स्थानीय निवासियों को दुकानें बनाने की अनुमति, चिकित्सीय सुविधाओं के साथ ही हेलीकाप्टर और वाहन प्रबंधन जैसी सुविधाएं मुख्य होंगी।

श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति (एसएवाईएसएस) के समन्वयक लीलाकरन शर्मा ने बताया कि बैठक में स्वीकार किया गया है कि यात्रा के लिये बोर्ड ही जिम्मेदार होगा और बोर्ड के अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल होंगे।
उन्होंने बताया कि वापस दी गई भूमि पर पूर्ण रूप से बोर्ड का अधिकार होगा और यात्रा के दौरान किसी श्रद्धालु से कोई पैसा नहीं लिया जायेगा।

श्री शर्मा ने कहा –“ हमने कुछ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लागू जन सुरक्षा अधिनियम हटाने, अपराधिक मामलों को वापस लेने, संघर्ष में मारे गये लोगों के परिजनों को मुआवजा दिये जाने, बागवानों एवं कृषकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू बंद खत्म करने का निर्णय लिया है।”

इस मामले में सहयोग के लिए उन्होंने जम्मूवासियों और सारे देश के लोगों धन्यवाद दिया है।

धर्मातरण के आरोप में पादरी गिरफ्तार

दैनिक जागरण, २९ जून २००८, बडवानी। मध्यप्रदेश में बडवानी जिले के नवलपुरा क्षेत्र में आदिवासियों को प्रलोभन देकर धर्मातरण कराने के प्रयास के आरोप में एक पादरी को पुलिस ने शनिवार रात गिरफ्तार किया।

नगर निरीक्षक विजय कुमार सिसोदिया ने बताया कि स्थानीय हिंदू संगठनों और नागरिकों की शिकायत पर नवलपुरा इलाके में स्थित एक मकान में छापा मारा गया, जहां धर्मातरण की प्रक्रिया करने के मामले में पादरी हटेसिंह रावत को हिरासत में लिया गया था।

उन्होंने बताया कि बाद में पादरी को प्रलोभन देकर धर्मातरण कराने के आरोप में मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्रय अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। रावत को कुछ माह पहले भी धर्मातरण के मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह झाबुआ जिले का निवासी है और पिछले कई वर्षो से बडवानी जिले में रह रहा है।

सिमी के चार लोग गिरफ्तार

दैनिक जागरण, २ sepetember जयपुर। जयपुर बम धमाकों की जांच कर रहे राजस्थान पुलिस के विशेष अनुसंधान दल [एसआईटी] ने प्रतिबंधित संगठन सिमी के चार और लोगों को गिरफ्तार किया है।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ए.के. जैन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रतिबंधित संगठन सिमी की गतिविधियों में सहयोग करने वाले आरोपियों कोटा निवासी मुनव्वर हुसैन, अतीक, नदीम अख्तर और बारां निवासी मोहम्मद इलियास को सोमवार को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने बताया कि चारों अभियुक्तों को जयपुर की एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया। अदालत ने चारों अभियुक्तों को 11 दिन के रिमांड पर एसआईटी को सौंप दिया।

योगी आदित्यनाथ पर हमला, एक की मौत

दैनिक जागरण, ८ september २००८, आजमगढ़/लखनऊ। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में रविवार को भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले के बाद यहां हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 12 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त सुरक्षाबल बुला लिए हैं। इस बीच, भाजपा ने आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ पर हमला उस वक्त हुआ जब वे तकिया इलाके से गुजर रहे थे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ के समर्थकों व विरोधियों में जमकर फायरिंग शुरू हो गई और 12 गाड़ियों को जला दिया गया। फायरिंग की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत हो गई। हमले में योगी सुरक्षित बच गए हैं।

वहीं, पुलिस के अनुसार पथराव में भाजपा सांसद के कुछ वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं तथा कुछ लोगों को मामूली चोटें आई हैं। सांसद के साथ चल रहे पुलिसकर्मियों ने उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए हवाई फायरिंग की, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। भाजपा सांसद आतंकवाद के विरोध में आयोजित एक रैली को संबोधित करने वहां गए थे। मौके पर अतिरिक्त पुलिस बल भेज दिया गया है। वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर नजर रख रहे हैं।

इस बीच, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि हिंदू नेता विघटनकारी शक्तियो के निशाने पर हैं। कंधमाल की घटना से देश चिंतित ही था कि आज योगी आदित्यनाथ पर भी कातिलाना हमला हो गया। दीक्षित ने कहा कि यह मायावती सरकार के कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होने संबंधी दावे को खोखला साबित करती है। उन्होंने कहा कि भाजपा इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग की।

Friday, August 22, 2008

बशर बेगुनाह, हिन्दू संगठन दोषी: बुखारी

21 अगस्त 2008 ,वार्ता ,आजमगढ़। दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने आज कहा कि देश में बढ़ते आतंकवाद के लिए ‘सिमी’ जैसे संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा शिवसेना जिम्मेदार हैं।

उन्होंने अहमदाबाद विस्फोटकाण्ड के गिरफ्तार आरोपी अबुल बशर को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसे शीघ्र रिहा नहीं किया गया तो देश के मुसलमान देशव्यापी आन्दोलन करने के लिए बाध्य होंगे, जो 1947 की क्रान्ति से बड़ा होगा। उन्होंने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की। इमाम बुखारी आज यहां सरायमीर के बीनापारा गांव में अबुल बशर के घर उनके परिजनों की कुशलक्षेम लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि केन्द्र और प्रदेश की सरकारें मुसलमानों को अनावश्यक परेशान कर रही है और उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। उन्होंने अहमदाबाद में हुए विस्फोटों के पीछे हिन्दूवादी संगठन का हाथ बताया।उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर आज उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है। असली आतंकवादी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद विस्फोट के मामले में अमेरिकी ई-मेल की जांच होनी चाहिए, लेकिन सरकार नाइंसाफी कर रही है। उन्होंने कहा कि सिमी आतंकवादी संगठन नहीं है।

उन्होंने कहा कि आजमगढ़ के डॉ. तारिक कासमी तथा अबुल बशर की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर अब मुस्लिम संगठन सड़क पर उतरेंगे तथा सरकारों के चेहरे को बेनकाब करेंगे। बुखारी ने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की जिसमें सच्चर कमेटी के लोग हों।

जम्मू के जज्बे को सलाम

अमरनाथ श्राइन बोर्ड मामले में कश्मीरी अलगाववादियों का असली चेहरा बेनकाब होता देख रहे है ए. सूर्यप्रकाश

दैनिक जागरण , अगस्त २१, २००८। कुछ समय पहले तीखे तेवर वाले सज्जाद लोन जैसे कश्मीरी अलगाववादी नेता अपने आंदोलन के दौरान बार-बार घोषणा कर रहे थे कि वे अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। भारत के उन अनेक नौजवानों को कश्मीर के अलगाववादियों के इस चुनौतीपूर्ण अंदाज से जबरदस्त धक्का लगा है जो अब तक उनसे अपरिचित रहे हैं। उन्हें नहीं पता था कि हुर्रियत कांफ्रेंस और ऐसे ही अन्य संगठनों के नेताओं के मन में भारत के स्वतंत्र, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे के प्रति नफरत भरी है। लोग उस स्तब्धकारी भेदभाव से भी पहली बार परिचित हो रहे हैं जो राष्ट्रवादी बहुल जम्मू क्षेत्र और अलगाववादी एवं सांप्रदायिक कश्मीर क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है। जम्मू के हिंदू, सिख और मुस्लिम प्रदर्शनकारी तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन करते हैं और भारत माता की जय जैसे नारे लगाते हैं, जबकि कश्मीर के प्रदर्शनकारी हुर्रियत या पाकिस्तान का हरा झंडा लेकर भारत विरोधी नारे लगाते हुए प्रदर्शन में भाग लेते हैं। पिछले साठ साल से भारतीय गणतंत्र का अंग होने के बावजूद कश्मीरी मुसलमानों का बड़ा वर्ग पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र के दायरे से बाहर है। मीडिया में सामने आई विरोध प्रदर्शन की तस्वीरों से यह साफ हो जाता है कि घाटी के अधिकांश मुसलमानों पर भारतीय पंथनिरपेक्षता का रंग नहीं चढ़ा है। दूसरी तरफ वहां छह सौ साल पहले का वही माहौल नजर आता है, जिसमें सुल्तान सिकंदर ने हिंदुओं पर कुठाराघात करते हुए उन्हें कश्मीर छोड़ने या मुसलमान बनने को मजबूर कर दिया था। हिंदू समुदाय पर दूसरा बड़ा कुठाराघात 1989-90 में मुस्लिम आतंकवादियों ने किया, जिन्हें स्थानीय मुसलमानों का समर्थन हासिल था। उन्होंने हिंदुओं की हत्याएं शुरू कर दीं। इस नरसंहार के कारण तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने पलायन कर जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में शरण ली।

हाल के वर्र्षो में आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाया और अस्थायी शिविरों में निवास करने वाले यात्रियों को मौत के घाट उतारा। इसके बावजूद सज्जाद लोन कहते हैं कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि मुसलमान हिंदू तीर्थयात्रियों का 'ध्यान' रख रहे हैं। इससे भी हास्यास्पद बयान हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीर वाइज फारुख का है। उनका दावा है कि वह पंथनिरपेक्षता में यकीन रखते हैं। सांप्रदायिक तो हिंदू हैं, जो श्राइन बोर्ड की जमीन के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि घाटी से हिंदुत्व की विशिष्ट संस्कृति के सफाए पर कोई भी अलगाववादी नेता शर्रि्मदगी महसूस नहीं करता। यह इस क्षेत्र में किसी भी पंथिक अल्पसंख्यक समुदाय पर सबसे बड़ा हमला है। हालिया वर्र्षो में टीवी शो में अनेक कश्मीरी अलगाववादी नेता हाजिर हुए हैं। ये विद्रोही, अड़ियल, सांप्रदायिक और भारत विरोधी थे, फिर भी कुछ अंग्रेजी समाचार चैनलों ने उन्हें पर्याप्त समय दिया। भारतीय मीडिया का एक वर्ग यह मानता है कि अलगाववाद की भाषा बोलने वाले कश्मीरी मुसलमानों से संजीदगी और पंथनिरपेक्षता की उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए। सज्जाद लोन, बिलाल लोन और मीर वाइज फारुख जैसे लोगों के जहर उगलने वाले बयान और उनके दावों में बेइमानी के निशान इन मीडिया संगठनों के लचर रवैये से साफ झलकते हैं। ये उन्मत्त कश्मीरी मुस्लिम सांप्रदायिकता के प्रति रुझान रखते हैं। इनमें कश्मीरी मुस्लिम दृष्टिकोण की तरफदारी की इच्छा इतनी तीव्र है कि साफ-साफ सांप्रदायिक नारेबाजी और प्रदर्शनों के बावजूद वे इसे सांप्रदायिक बताने से गुरेज करते हैं। मूर्खतावश अलगाववादियों को मंच प्रदान करके कुछ मीडिया संगठन भारत की एकता व अखंडता तथा संवैधानिक मूल्यों को छिन्न-भिन्न करने के खतरनाक अंजाम के करीब पहुंच गए हैं। यह नि:संदेह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।

सज्जाद लोन कहते हैं कि 'हम' हिंदुओं को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। एक चैनल पर एक कश्मीरी पंडित ने लोन से पूछा कि 'हम' से क्या मतलब है? क्या इसमें कश्मीरी पंडित शामिल नहीं हैं, जो कश्मीर के मूल निवासी हैं? इस सवाल पर लोन और वहां मौजूद अन्य लोगों की बोलती बंद हो गई। जाहिर है कि लोन ने जिस 'हम' का उल्लेख किया था उसमें केवल मुस्लिम समुदाय शामिल है। लोन को बताना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा और अगर सीमा पार के आकाओं से आपका इतना ही लगाव है तो मुजफ्फराबाद पुल पार करके वहां जाओ और वहीं जाकर बस जाओ। कश्मीर नाम के भौगोलिक टुकड़े से हम भावनात्मक बंधन में बंधे हैं और यह बंधन हमेशा कायम रहेगा। लोन के पूर्ववर्ती भी नियंत्रण रेखा के पार ऐसा ही झुकाव रखते थे। कश्मीरी मुसलमानों की सांप्रदायिकता सबसे पहले 1947 में खुलकर सामने आई थी। तब कश्मीर सेना में तैनात मुसलमान सैनिकों ने फौजी अफसरों की हुक्मअदूली करते हुए बगावत कर दी थी और हमलावर पाकिस्तान सेना में शामिल हो गए थे। उन्होंने अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह, बिग्रेडियर राजिंदर सिंह और अन्य अधिकारियों को मौत के घाट उतारने के बाद श्रीनगर की तरफ कूच किया।

इस धोखे की गूंज आज जम्मू-कश्मीर राज्य में सुनाई पड़ रही है। कश्मीरी मुस्लिम समुदाय सीमा पार से पड़े प्रभाव के कारण घाटी में हिंदुओं के अधिकारों को रौंदना अपना अधिकार समझ बैठा है। अगर हम जम्मू-कश्मीर को भारत के अभिन्न अंग के रूप में कायम रखना चाहते हैं तो देश की एकता, अखंडता, आजादी, पंथनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध भारत के प्रत्येक नागरिक को ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह जैसे बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। जम्मू की जुझारू जनता हमारे सामने उदाहरण पेश कर रही है। आइए हम सब उन्हें सलाम करें।


आतंक की घरेलू जड़ें

सिमी की देशव्यापी गतिविधियों को एक बड़ा खतरा बता रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित
दैनिक जागरण, अगस्त २१,२००८। सिमी देशी आतंकवाद का ब्रांड है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 1977 में जन्मी सिमी अब धुर दक्षिण तक केरल में है। पूर्वोत्तर में असम में है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में है। गुजरात का ताजा रक्तपात उसी का खेल है। राजनीति में सिमी को पाक-साफ बताने वाले राजनेता और राजनीतिक दल हैं तो सिमी को आतंकी संगठन बताने वाले भी हैं। सिमी की निगाह में भारत का संविधान इस्लाम विरोधी है। राष्ट्र-राज्य बकवास है, पंथनिरपेक्षता और हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बेकार और इस्लाम विरोधी है। उसकी दृष्टि में सभी गैर-इस्लामी जन 'काफिर' हैं, दुनिया के सभी गैर-इस्लामी विचार, सभ्यता और संस्कृतियां बेहूदा हैं। कुरान उसका संविधान है। जेहाद के जरिए भारत को इस्लामी मुल्क बनाना उसका मकसद है। सिमी भारत से युद्धरत है। वह एक मुकम्मल हमलावर विचारधारा है। इस विचार में मजहब की बारूद है। सिमी इस्लाम का बेजा इस्तेमाल कर रही है, लेकिन मौलवी, उलेमा, इमाम आदि चुप हैं। सिमी भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है, वह भारतीय राष्ट्र-राज्य की दुश्मन है। आतंकवाद और सिमी पर मुलायम रुख वाले सेकुलर दल दया के पात्र हैं।

सिमी ने अपने मुखपत्र 'इस्लामिक मूवमेंट' में साफ किया था,''कोई भी राजनीतिक दल अपनी सेकुलरवादी घटिया विचारधारा के जरिए ठोस और सकारात्मक बदलाव नहीं ला सकता। असली बदलाव का एकमात्र रास्ता इस्लामी जीवन पद्धति है।'' सिमी के महामंत्री सफदर नागौरी गुजरात रक्तपात के जरिये दोबारा चर्चा में हैं। नागौरी ने ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी नहीं, 'सच्चा मुसलमान' बताया था। उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है। सिमी ने 2004 में भारत के लिए एक और महमूद गजनी की जरूरत बताई थी। महमूद गजनी ने भारत पर 17 हमले किए, सिमी भी उसी तर्ज पर हमलावर है। उतवी हमलावर महमूद गजनी का सहायक और इतिहासकार था। उतवी ने 'तारीखे यामिनी' में सन 1000 से लेकर ज्यादातर हमलों का आंखों देखा वर्णन किया है,''..नदी का रंग काफिरों के खून से लाल हो गया, सुल्तान बेहिसाब दौलत लाया। अल्लाह इस्लाम और मुसलमानों को सम्मान देता है। गुलामों की तादाद के कारण बाजार भाव गिर गया।'' गजनी जोरजबर से गुलाम ले गया था, सो बाजारभाव गिरा। आज सिमी की खिदमत में खुशी-बखुशी गुलाम हाजिर हैं। यहां गुलामों की बहुतायत है, सिमी समर्थक दल नेता घटे दर पर गुलाम हैं। अबुल बशर और प्रतिभाशाली युवकों का सिमी में होना खतरे की घंटी है। अहमदाबाद बमकांड के आरोपी तथा आजमगढ़ के निवासी बशर को अपने किए पर कोई मलाल नहीं। उसने अहमदाबाद, वाराणसी, फैजाबाद और जयपुर की आतंकी कार्रवाई को 'इस्लामिक काम' ठहराया है।

सिमी प्रमुख शहिद बद्र पर बहराइच में राष्ट्रद्रोह सहित कई जघन्य आरोपों के मुकदमे दर्ज हुए। बद्र गुजरात रक्तपात में हुई गिरफ्तारियों को सिमी की बदनामी की साजिश बताते हैं। उनकी मानें तो सिमी पाक-साफ है। साबरमती एक्सप्रेस बम कांड के आरोप सिमी पर हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने जलगांव कोर्ट में अक्टूबर 2001 में 11 सिमी कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंकवादी आरोप-पत्र दाखिल किया था। 2001 में ही मध्य प्रदेश पुलिस ने 9 और दिल्ली पुलिस ने भी कई सिमी कार्यकर्ता पकड़े। हावड़ा ब्रिज उड़ाने की तैयारी में आरडीएक्स सहित सिमी के नेता हासिब रजा गिरफ्तार हुए। पश्चिम बंगाल में सिमी के कार्यकर्ता रेलवे लाइन उड़ाने के आरोप में पकड़े गए। मुंबई पुलिस ने आधुनिक शस्त्रों और रसायनों से लैस सिमी के आधा दर्जन कार्यकर्ता मई 2003 में पकड़े। 2005 के श्रीराम जन्मभूमि परिसर हमले में भी सिमी के लोग गिरतार हुए। सिमी के रक्तपात, राज्यद्रोह और राष्ट्रद्रोह की कथा लंबी है। बावजूद इसके ट्रिब्यूनल में केंद्र सिमी को खतरनाक संगठन घोषित करने लायक साक्ष्य भी नहीं जुटा पाया। सर्वोच्च न्यायालय स्टे न देता तो देश की छाती पर सवार सिमी के लोग देश की गर्दन दबोच लेते। गुजरात पुलिस ने केरल के जंगल में सिमी ट्रेनिंग कैंप का ताजा खुलासा किया है। केरल सरकार ने जून 2006 में ही सिमी पर प्रतिबंध की वैधता जांच रहे ट्रिब्यूनल के समक्ष तमाम खतरनाक सूचनाएं दी थीं। केरल राज्य की विशेष पुलिस शाखा ने कई स्थानीय मजहबी संगठनों/केंद्रों को भी सिमी सहायक पाया था। केरल के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, इस्लामिक यूथ सेंटर और तमिलनाडु के तमिल मुस्लिम मुनेत्र कजगम जैसे संगठन सिमी से संबंधित बताए जाते हैं। सिमी देश के तमाम विश्वविद्यालयों में भी सक्रिय है।

सिमी और बांग्लादेशी संगठन हरकत-उल जेहाद अल इस्लाम (हुजी) मिलकर काम करते आए हैं। सिमी ने हुजी के लिए उत्तर प्रदेश के जौनपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, अंबेडकरनगर, अलीगढ़, सोनौली, फिरोजाबाद, हाथरस और आजमगढ़ में नवयुवक प्रशिक्षित किए हैं। मध्य प्रदेश में प्रतिबंध के पहले ही विभिन्न जिलों में सांप्रदायिक शत्रुता बढ़ाने वाले 35 मुकदमे सिमी कार्यकर्ताओं पर दर्ज हुए थे। उसके बाद से 2006 तक 180 से ज्यादा सिमी कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए। संप्रति मध्य प्रदेश भी सिमी का गढ़ है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद, मालेगांव, जलगांव और थाणे सिमी के सघन कार्यक्षेत्र हैं। नासिक, शोलापुर, कोल्हापुर, गड़चिरौली, नांदेड़, औरंगाबाद, जलगांव और पुणे खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द हैं। राज्य में 3000 से ज्यादा मदरसे हैं और सिमी गतिविधियों के के लिए अच्छा-खासा कच्चा माल हैं। पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में 2003 के अगस्त-सितंबर में दो दिवसीय प्रशिक्षण हुआ। सिमी ने 2004 के चुनाव में 'इंडियन नेशनल लीग' के 6 उम्मीदवारों को जंगीपुर, मुर्शिदाबाद, डायमंड हार्बर, बशीरहाट, जादवपुर और पश्चिमोत्तर कोलकाता सीटों पर समर्थन भी दिया। तमाम नेता स्वाभाविक ही सिमी का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष समर्थन करते हैं।

जिस प्रकार सिमी का घोषित मकसद भारत विरोध और जेहादी आतंकवाद है उसी प्रकार सिमी समर्थक राजनीतिक दलों का घोषित मकसद चुनावी जीत है। दोनों परस्पर सहयोगी हैं। भारत आंतरिक सुरक्षा के संकट से जूझ रहा है। माओवादी नक्सलपंथी हिंसा है, राष्ट्रव्यापी जेहादी आतंकवाद है, कश्मीर घाटी में अलगाववाद है, पूर्वोत्तर अशांत है, नेपाल और बांग्लादेशी सीमाएं असुरक्षित हैं। सिमी के देशी आतंकवाद से पूरे देश में थरथराहट है। आतंकवाद के खिलाफ पड़ोसी बांग्लादेश में भी कड़े कानून हैं और मृत्युदंड का प्रावधान है। ब्रिटेन के आतंक विरोधी कानून में संदिग्ध को 42 दिन तक पुलिस हिरासत में रखने की व्यवस्था है। फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, फिलीपींस में भी कड़े कानून हैं, लेकिन भारत आतंकवाद पर मुलायम है। यहां रक्तपात, हमला और बमबारी नहीं, बल्कि हमलावर का मजहब देखा जाता है। सिमी ने 'सागा आफ स्ट्रगल' (वार्षिक रिपोर्ट 1998-2000) में कहा था,''दीन के लिए उठो, खड़े हो, मुस्लिम युवक इस्लाम की श्रेष्ठता की पुनस्र्थापना के लिए जेहाद करें।'' अर्थात अपने ही देशवासियों, भाई-बंधुओं का कत्ल करें। अचरज है कि सवा अरब भारतवासियों को 4-5 हजार उन्मादी मार रहे हैं और राष्ट्र-राज्य की सारी संस्थाएं चुप हैं।