रविवार को हैदराबाद में इस्लामी मंच, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के 29वें वार्षिक अधिवेशन के समापन के मौके पर यह फ़तवा जारी किया गया.
अधिवेशन में जमीयत अध्यक्ष क़ारी मोहम्मद उसमान ने फ़तवे को पढ़कर सुनाया जिसे सभी लोगों ने खड़े होकर सुना और इस बात की शपथ ली के वो आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट होंगे.
उसमान की आवाज़ पर सभा में मौजूद सभी लोगों ने, जिनमें छह हज़ार से अधिक उलेमा भी हाज़िर थे, शपथ ली कि “हम इस्लाम के पैग़ाम को आम करेंगे और ‘आतंकवाद’ की निंदा करते हैं और करते रहेंगे.”
हैदराबाद में जुटे धार्मिक नेताओं का कहना था कि इस्लाम एक अमन और शांति का मज़हब है और हर प्रकार की हिंसा को अस्वीकार करता है. इस्लाम क़त्ल और खून को अक्षम अपराध समझता है. इसलिए इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ना ग़लत है.
याद रहे कि इसी वर्ष फरवरी और मई महीने में फ़तवा जारी करके भारत में मुसलमानों की अग्रणी धार्मिक संस्था दारुल-उलूम देवबंद ने ‘आतंकवाद’ की सभी कार्यवाहियों को इस्लाम विरोधी करार दिया था.
जमीयत के महासचिव महमूद मदनी ने बताया, "पहले इस फ़तवे पर चार मुफ़्तियों के दस्तख़त थे, अब इससे 4000 उलेमा ने अपने दस्तख़त किए हैं. इसका मक़सद हज़ारों इस्लाम के विद्वानों के माध्यम से यह संदेश देना है कि इस्लाम में आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है."
अहम पहल
अधिवेशन को संबोधित करते हुए वाईएस रेड्डी ने कहा कि वो बहुत ख़ुश हैं कि उलेमा ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ देवबंद के फ़तवे के अनुमोदन और अमन का पैग़ाम देने के लिए हैदराबाद का चुनाव किया.
मुख़्यमंत्री ने कहा, “भारत की पहचान अनेकता में एकता की है और मुसलमानों की तरक़्की के बग़ैर देश का विकास नहीं हो सकता है.” उन्होंने दावा किया कि वो अपने राज्य में अल्पसंखयकों के साथ बेहतर सलूक कर रहे हैं.
वहीं हिंदू धार्मिक गुरू श्री रवि शंकर ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम मोहम्मद को पूरब से ठंडी हवा आती थी और इसको क़ायम रखना ज़रूरी है. उनके अनुसार, “आतंकवाद को सहा नहीं जा सकता है. वैश्विक शांति की बहाली के लिए इसे खत्म करना आवश्यक है."
सबसे ज़्यादा तालियाँ बटोरीं बंधुआ मजदूरी और सांप्रदायिकता के सवाल पर काम कर रहे स्वामी अग्निवेश ने. उन्होंने अमरीका की ओर निशाना साधते हुए कहा कि इस्लाम को जो लोग आतंकवाद से जोड़ रहे हैं, वे दरअसल खुद आतंकवादी हैं.
उन्होंने यह भी सुझाव रखा कि मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिन विश्व आतंकवाद विरोधी दिवस के तौर पर मनाया जाना चाहिए और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र में पहल की जानी चाहिए.
कई प्रस्ताव पारित
अधिवेशन में कुल 21 प्रस्ताव पारित किए गए, जिनमें आतंकवाद के नाम पर पुलिस और जाँच एजेंसियों और मीडिया की पक्षपातपूर्ण भूमिका की निंदा की गई. सांप्रदायिक एकता पर भी ज़ोर दिया गया और कहा गया कि जबतक देश में शांति बहाल नहीं होती, देश की तरक़्क़ी मुमकिन नहीं है.
दुनिया में आए आर्थिक संकट का ज़िक्र करते हुए कहा गया कि भारत में अब ग़ैर सूदी व्यवस्था पर आधारित इस्लामिक बैंकिंग को आज़माया जाना चाहिए. अधिवेशन में दलित-मुस्लिम एकता पर भी बल दिया गया.
मालेगाँव बम धमाकों में हिंदू संगठनों के नाम आने पर जमीयत ने कहा कि किसी एक व्यक्ति के दोष को पूरे समुदाय से जोड़ना न्याय के ख़िलाफ़ है क्योंकि इससे पूरे समाज में नफ़रत को हवा मिलेगी.
ग़ौरतलब है कि ये सम्मेलन ऐसे समय पर हो रहा है जब देश में अगले वर्ष की शुरुआत में लोक सभा चुनाव होने वाले हैं और फिलहाल देश कई आतंकवादी हमलों के बाद इसके सांप्रदायीकरण के सवाल से जूझ रहा है.
हालांकि कुछ लोगों की राय में ऐसे सम्मेलनों का मक़सद सरकार को अपने संगठन की ताक़त दिखाना भी होता है.
जमीयत पर ये इल्ज़ाम इसलिए भी लगाए जाते हैं क्योंकि ये संगठन वर्ष 1919 में अपने स्थापना के समय से ही कांग्रेस पार्टी का समर्थक रहा है.