Friday, November 7, 2008

प्रधानमंत्री ने ठुकराई न्यायिक जांच की मांग

दैनिक जागरण ७ नवम्बर २००८, नई दिल्ली। राजनीतिक विवादों से घिरी बटला हाउस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूरी तरह ठुकरा दिया है। जबकि समाजवादी पार्टी और संप्रग के कुछ घटक ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक नेता भी इस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग के लिए दबाव बना रहे थे। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के राज्यसभा सांसद राशिद अल्वी को दो टूक कह दिया कि बटला मुठभेड़ की फिर से जांच कराना संभव नहीं है।

बटला मुठभेड़ की आगे अन्य किसी तरह की जांच की मांग पर सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर यह दो टूक घोषणा है। इस मुठभेड़ को लेकर करीब महीने भर से राजनीतिक विवाद चल रहा है।

बटला मुठभेड़ और मालेगांव में 2006 में हुए विस्फोटों की जांच में सीबीआई तथा महाराष्ट्र सरकार के रुख की शिकायत करने के लिए राशिद अल्वी ने बुधवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इस दौरान ही मनमोहन सिंह ने बटला मुठभेड़ की और आगे जांच नहीं किए जाने की बात कही।

राशिद अल्वी ने बताया कि बटला मुठभेड़ को लेकर चौतरफा उठ रही आवाजों का हवाला देते हुए जब उन्होंने न्यायिक जांच की मांग उठाई तो प्रधानमंत्री ने इसे खारिज कर दिया। प्रधानमंत्री का कहना था कि 'इसकी अब आगे कोई जांच नहीं हो सकती।' गौरतलब है कि सपा, राजद, लोजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक नेता न्यायिक जांच की मांग की वकालत कर रहे थे।

जांच की मांग ठुकराए जाने पर अल्वी ने कहा कि वे निराश हुए हैं मगर हताश नहीं और प्रधानमंत्री को पुनर्विचार के लिए पत्र लिख रहे हैं। उनका तर्क है कि केन्द्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने मुठभेड़ को फर्जी बताया था और वे सरकार का हिस्सा हैं। ऐसे में मुठभेड़ की जांच एक बार करा लेने में हर्ज ही क्या है? अल्वी अब प्रधानमंत्री को मुंबई पुलिस द्वारा मारे गए बिहारी युवक राहुल राज का उदाहरण देंगे कि किस तरह बिहार के नेताओं की एकजुट आवाज सुनकर इसकी जांच कराई गई है।

कांग्रेस नेता ने बताया कि प्रधानमंत्री ने मालेगांव में दो साल पूर्व हुए विस्फोटों के बारे में सीबीआई और महाराष्ट्र सरकार के रवैये की शिकायतों पर गंभीरता से पड़ताल कराने का वादा किया। मालेगांव में संघ से जुड़े संगठनों की कथित आतंकी गतिविधियों के बारे में अल्वी ने प्रधानमंत्री को कुछ दस्तावेज भी सौंपे जिसमें यह बताया गया है कि दो साल पहले ही महाराष्ट्र सरकार को इसकी जानकारी मिल गई थी। सीबीआई को भी इस बारे में मालूम था। अल्वी के मुताबिक सीबीआई और राज्य सरकार ने इसे छिपाने की गलती क्यों और किसके इशारे पर की, इसकी सुप्रीम कोर्ट के जज द्वारा जांच होनी चाहिए।

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