हिंदू हितों (सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक) को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं से सम्बंधित प्रमाणिक सोत्रों ( राष्ट्रिय समाचार पत्र, पत्रिका) में प्रकाशित संवादों का संकलन।
Monday, November 24, 2008
मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा
Wednesday, November 19, 2008
पैंतीस किलो गौमांस समेत तस्कर पकड़ा, एक फरार
दैनिक जागरण, १७ नवम्बर, २००८, अमरोहा (ज्योतिबाफूलेनगर) : पुलिस ने दबिश देकर पैंतीस किलो गौ मांस के साथ तस्कर को रंगे हाथों धर दबोच लिया जबकि एक आरोपी दीवार कूदकर फरार हो गया। पुलिस को मौके से गाय की खाल, कई कटे हुए अंग एवं छुरी भी मिली है।
रविवार की शाम पांच बजे देहात थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गांव कांकर सराए के रहने वाले शहनवाज उर्फ शानू कुरैशी पुत्र शफीक अपने घर में ही गौकशी कर मांस बेच रहा है। इस पर एसओ गणेश दत्त जोशी मय पुलिस बल के मौके पर पहुंच गए। दबिश देकर नगर के मुहल्ला दानिश मंदान निवासी मोहम्मद अफजाल पुत्र अली हुसैन को गाय के मांस समेत गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान शाहनवाज मौके से दीवार फांदकर भागने में सफल हो गया। पुलिस ने पीछा भी किया लेकिन वह जंगल में गुम हो गया। मौके से पुलिस को 35 किलो गाय का मांस, एक गाय की खाल, अंग, तराजू, छुरी व बोरा आदि सामान बरामद कर लिया।
एसओ श्री जोशी ने बताया कि आरोपी से पूछताछ में गौमांस के अन्य तस्करों से जुड़ी अहम जानकारियां मिली हैं, जिस पर टीम को लगा दिया गया है। मामले की दो तस्करों के खिलाफ गौवध अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। फरार अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है।
21 पशु बरामद, दो दबोचे गए
दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, सैयदराजा (चंदौली) । वध के लिए पैदल बंगाल में आपूर्ति को ले जाये जा रहे 21 पशुओं को स्थानीय पुलिस ने फेसुड़ा नहर के समीप से बरामद किया और दो तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। घटना सोमवार की मध्यरात्रि की बतायी जाती है।
जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष रामसागर को मुखबिर से सूचना मिली कि दो तस्करों द्वारा 21 मवेशियों को वध हेतु पैदल ही फेसुड़ा, जेवरियाबाद व कन्दवा थाना क्षेत्र की पगडंडियों के रास्ते बंगाल ले जाया जा रहा है। सूचना मिलते ही थानाध्यक्ष उपनिरीक्षक महानंद पाण्डेय व रमाशंकर यादव के अलावा सहयोगी पुलिस कर्मियों के साथ मार्ग की नाकेबंदी कर पशुओं समेत तस्करों के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर के बाद मय पशु तस्कर आते दिखायी दिये जो पुलिस को देखते ही पशुओं को छोड़ भागने लगे। पुलिस ने दौड़ा कर दोनों तस्करों को धर दबोचा और पशुओं को बरामद कर थाने पर ले आयी। बरामद पशुओं में 18 बैल एवं तीन गाय शामिल हैं। पुलिस ने गिरफ्तार तस्करों को गो-वध अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के बाद हवालात में डाल दिया। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में इन दिनों तस्करों द्वारा मोबाइल से पुलिस की गतिविधियों का लोकेशन लेकर देर रात्रि या भोर में पैदल पशुओं को नदी के रास्ते बिहार ले जाये जाने का सिलसिला जारी है।
हिंदुओं को जगाने निकली जन जागरण यात्रा
मंगलवार को यात्रा का शुभारंभ रामघाट पर भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास की अगुवाई में शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति से मां मंदाकिनी का पूजन अर्चन किया। सबसे पहले दूध की धार से अभिषेक किया और फिर पूजन कर आरती करने के बाद यात्रा को रवाना कर दिया गया। विहिप के प्रांत संगठन मंत्री ने बताया कि हिंदू विरोधी केंद्र सरकार के कार्यों का काला चिट्ठा लोगों के सामने खोलने के लिए इस जनजागरण यात्रा की शुरुआत की गई है। उन्होंने बताया कानपुर प्रांत के अंतर्गत आज ही ब्रह्मावर्त से भी एक यात्रा शुरू की गई है। बताया कि यह यात्रा यहां से शुरू होकर आज ही अतर्रा, बांदा, कबरई होते हुये महोबा में रात्रि विश्राम करेगी। बुधवार को कबरई, खन्ना, मौदहा, भरुवासुमेरपुर होते हुये हमीरपुर में विश्राम करेगी। गुरुवार को राठ, उरई में विश्राम शुक्रवार को मोठ, पारीक्षा, चिरगांव व झांसी में विश्राम शनिवार को बबीना, तालबेहट, वासी होते हुये ललितपुर में समापन होगा। यात्रा के आरंभ में प्रांत संगठन मंत्री बजरंग दल वीरेन्द्र पांडेय, विभाग संगठन मंत्री रमेश चंद्र त्रिपाठी, जिला संगठन मंत्री छत्रपाल सिंह, जिला गौ रक्षा प्रमुख विकास मिश्र के अलावा दर्जनों साधू और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। यात्रा अपना पहला पड़ाव कर्वी के बाद शिवरामपुर, भरतकूप होते हुये बांदा जिले में प्रवेश कर गई। रास्ते में जगह-जगह हैंडबिलों के माध्यम से हिंदू चेतना का काम भी किया गया। इसके अलावा लाउडस्पीकर से भी यह काम किया जा रहा था।
Tuesday, November 18, 2008
खुद की बर्बादी का जश्न
मालेगांव बम कांड पर पक्ष एवं विपक्ष, दोनों के रवैये को अनुचित करार दे रहे हैं राजीव सचान
दैनिक जागरण, १८ नवम्बर, २००८। मालेगांव बम धमाकों की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है। महाराष्ट्र सरकार का आतंकवाद विरोधी दस्ता यानी बहुचर्चित एटीएस जैसे-जैसे अपनी जांच आगे बढ़ा रही है और इस संदर्भ में किस्म-किस्म के जो प्रत्याशित-अप्रत्याशित दावे कर रही है उस पर सवाल उठाने का सिलसिला भी गति पकड़ता जा रहा है। तमाम राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक हिंदू संगठन एटीएस की जांच-पड़ताल को दुर्भावना भरी बता रहे हैं। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि एटीएस जो कुछ कर रही है उसके पीछे कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता और महाराष्ट्र सरकार का हाथ है। एटीएस की जांच कार्यवाही को संत समाज और सैन्य बलों के उत्पीड़न के रूप में भी परिभाषित किया जा रहा है तथा पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक करने की मांग हो रही है। कुल मिलाकर माहौल कुछ वैसा ही है जैसा दिल्ली के जामिया नगर में मुठभेड़ के बाद था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब दिल्ली पुलिस निशाने पर थी और निशाना लगाने वाली थी कथित सेक्युलर जमात। इस जमात में कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी और धर्मगुरू भी थे। ये सभी दिल्ली पुलिस के दावों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे-अभी भी नहीं हैं। इस जमात की ओर से दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के लिए चलाए गए अभियान से ऐसा माहौल बना कि अनेक कांग्रेसी नेता भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह मांग करने लगे कि जामिया नगर मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। इससे इनकार नहीं कि महाराष्ट्र एटीएस की जांच के तौर-तरीके और उसके कुछ कथित सबूत संदेह पैदा करने वाले हैं, लेकिन यह तो अदालत को तय करना है कि प्रज्ञा सिंह और उसके नौ साथियों पर एटीएस द्वारा लगाए गए सबूत सही हैं या नहीं? विडंबना यह है कि जो कार्य अदालत को करना है उसे कुछ हिंदू नेता और धर्माचार्य करने की जिद कर रहे हैं। इन्हें अपना संदेह प्रकट करने का अधिकार तो है, लेकिन यदि आरोपों के कठघरे में खड़े लोगों का बचाव इस आधार पर किया जाएगा कि हिंदू आतंकी हो ही नहीं सकते तो फिर मुश्किल होगी। यह सही है कि हिंदुओं के आतंक के रास्ते पर चलने का कोई औचित्य नहीं, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक अथवा व्यक्तिगत कारणों से पथभ्रष्ट होकर कोई भी गलत राह पर चल सकता है। इस संदर्भ में यह ध्यान रहे कि जो भी आतंक के रास्ते पर चलते हैं वे स्वयं को आतंकी मानने से इनकार करते हैं। नि:संदेह इसका यह मतलब नहीं कि मुंबई एटीएस जो कुछ कह रही है वह सब सही है और उसके दावे संदेह से परे हैं। सच तो यह है कि उसके अनेक दावे हास्यास्पद हैं, जैसे यह कि एक गवाह ने मालेगांव में विस्फोट की साजिश के संदर्भ में फोन पर हो रही बातचीतसुनी है। क्या ऐसा संभव है कि फोन पर दोनों ओर से हो रही बातचीत को सुना जा सके? एटीएस के तमाम संदेहास्पद दावों के बावजूद उचित यही है कि जांच पूरी होने का इंतजार किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पुलिस के लिए काम करना कठिन हो जाएगा। कम से कम आतंकवाद से लड़ना तो उसके लिए दुरूह हो ही जाएगा। वह आतंकी घटनाओं में शामिल किसी भी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगी। कल को अन्य समुदायों के लोग भी अपने लोगों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने पर उसी तरह बचाव करेंगे, जैसे कल मुस्लिम संगठन कर रहे थे और आज हिंदू संगठन कर रहे हैं।यह मांग तो की जा सकती है और की भी जानी चाहिए कि पुलिस की जांच के तौर-तरीके बदलें, क्योंकि अनेक बार वह अपने ही दावों का खंडन कर देती है अथवा उसके द्वारा जुटाए गए सबूत अदालतों के समक्ष ठहर नहीं पाते, लेकिन यदि उस पर अविश्वास किया जाएगा तो फिर आतंकवाद से लड़ना और कठिन होगा। एक ऐसे समय जब स्वयं भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के प्रति अनिच्छुक है तब आतंकी घटनाओं की जांच के सिलसिले में पुलिस को कठघरे में खड़ा करने से ऐसी भी नौबत आ सकती है कि वह संदेह के आधार पर किसी से पूछताछ करना ही बंद कर दे। सैद्धांतिक रूप से किसी एक के किए की सजा पूरे समुदाय को नहीं दी जा सकती, लेकिन जब समुदाय विशेष के हितों के बहाने आतंकवाद की राह पर चला जाएगा तो उस समुदाय का नाम अपने आप आतंकवाद के साथ नत्थी हो जाएगा। जाने-अनजाने दुनिया भर में ऐसा ही हो रहा है। यदि खालिस्तानी संगठनों के आतकंवाद को सिख आतंकवाद कहा गया तो लिट्टे के आतंकवाद को तमिल आतंकवाद। यदि कोई गूगल पर हिंदू आतंकवाद लिखे तो उसे लाखों संदर्भ मिल जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि प्रज्ञा सिंह और उसके साथियों की गिरफ्तारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन असहज हैं, लेकिन जरा गौर कीजिए कि खुश कौन है? यह है कांग्रेस और उसके जैसे खुद को सेक्युलर बताने वाले दल। उन्हें लग रहा है कि अब भाजपा को कठघरे में खड़ा करने में और आसानी हो जाएगी, लेकिन क्या यह खुश होने की बात है कि हिंदू युवक आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले हैं? यह तो अपने घर में आग लगने पर हाथ तापने जैसी बेवकूफी हुई। क्या इससे अधिक चिंताजनक और कुछ हो सकता है कि बहुसंख्यक समाज आतंकवाद का वरण करता दिखे? यह तो ऐसा मामला है जिस पर प्रधानमंत्री को हफ्तों नींद नहींआनी चाहिए। यदि हिंदू संगठन आतंक के रास्ते पर चल निकले हैं तो इसका अर्थ है कि घर को उसके ही चिराग से आग लग गई है। जब देश के राजनीतिक नेतृत्व को यह देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ तब वह राजनीतिक लाभ बटोरने की फिराक में है। क्या किसी ने कथित सेक्युलर जमात के किसी नेता का ऐसा कोई बयान पढ़ा-सुना है जिसमें हिंदू युवकों के आतंकी बनने पर चिंता जताई गई हो? उनके बयानों से यदि कुछ झलकता है तो उत्साह, विश्वास और इस बात का संतोष कि वे जो कुछ कहते थे वह सही साबित हो रहा है। शायद इसे ही कहते हैं खुद की बर्बादी का जश्न मनाना। हैरत यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी इस जश्न में शामिल दिख रही है। क्या कोई समझेगा कि आज प्रश्न यह नहींहै कि कांग्रेस और भाजपा का क्या होगा, बल्कि यह है कि देश का क्या होगा?
एटीएस ने दीं साध्वी प्रज्ञा को यातनाएं
Saturday, November 15, 2008
अब मधुशाला पर फतवा
तसलीमा पर फिर भारत छोड़ने का दबाव
Friday, November 14, 2008
जांच के नाम पर जलालत
मालेगांव बम धमाके के सिलसिले में कुछ हिंदुओं की गिरफ्तारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित
दैनिक जागरण, १३ नवम्बर, २००८, विश्व हिंदू मानस के समक्ष आत्मनिरीक्षण की चुनौती है। हिंदू अपनी मातृभूमि में ही आतंकी बताए जा रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और मालेगांव सिर्फ बहाना हैं, समूचा हिंदू दर्शन और हिंदुत्व ही निशाना है। प्रज्ञा सिंह के नार्को परीक्षण जैसे ढेर सारे मेडिकल टेस्ट हो चुके हैं। महाराष्ट्र की एटीएस कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा सकी। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के योगाचार्य रामदेव ने ऐसे तमाम परीक्षणों पर ऐतराज जताया है। संविधान प्रदत्त व्यक्ति के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 20 के अनुसार किसी अपराध के लिए आरोपित किसी व्यक्ति को स्वयं अपने खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रज्ञा को विविध परीक्षणों के जरिए स्वयं अपने ही विरुद्ध साक्ष्य के लिए विवश किया जा रहा है।
बेशक मालेगांव घटना की गहन जांच होनी चाहिए। कानूनी तंत्र को दबावमुक्त होकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। राष्ट्रद्रोह असामान्य अपराध है, लेकिन एटीएस की अब तक संपन्न जांच ने कई आधारभूत सवाल भी उठाए हैं, मसलन एटीएस की गोपनीय पूछताछ भी नियमित रूप से प्रेस को क्यों पहुंचाई जा रही है? क्या पूछताछ का उद्देश्य महज प्रचार ंहै और यही सिद्ध करना है कि हिंदू संगठन भी आतंकी होते हैं? एटीएस सही दिशा में है तो कोई पुख्ता सबूत क्यों नहीं है? एटीएस ने 'अभिनव भारत' नाम की एक संस्था का पता लगाया है? 'अभिनव भारत' वीर सावरकर की संस्था थी। मदनलाल धींगरा भी इसके सदस्य थे। उन्होंने अंग्रेज अफसर डब्लूएच कर्जन को मारा था। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम था। धींगरा स्वाधीनता संग्राम के हीरो बने। देश आजाद हुआ, सावरकर ने यह कहकर अभिनव भारत की समाप्ति की घोषणा की कि स्वाधीन भारत में सशस्त्र युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। एटीएस द्वारा खोजी गई नई 'अभिनव भारत' जून 2006 में बनी। वेबसाइट के अनुसार संस्था का लक्ष्य है स्वराज्य, सुराज्य, सुरक्षा और सुशांति। सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय अध्यक्ष हैं। एटीएस का आरोप है कि प्रज्ञा सिंह इन्हीं उपाध्याय के संपर्क में आई। संपर्क दर संपर्क ही एटीएस का आधार है। कह सकते हैं कि एटीएस के पास फिलहाल सूत्र ही हैं, सबूत नहीं। बावजूद इसके हिंदू आतंकवाद का हौव्वा है। हिंदू आतंकवाद नई सेकुलर गाली है। क्या हिंदू आतंकी हो सकते हैं? आरोपों-प्रत्यारोपों की बातें दीगर हैं, इस लिहाज से तो महान राष्ट्रभक्त सरदार पटेल भी आतंकी घोषित हो चुके हैं, सेकुलर दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जिहादी आतंकवाद के लक्ष्य सुस्पष्ट हैं। वे शरीय कानूनों वाला देश चाहते हैं। आतंकी हमलों का श्रेय लेते हैं और पकड़े जाने पर बेखौफ अपना मकसद बताते हैं। प्रज्ञा या उपाध्याय और अभिनव भारत ने क्या ऐसा कोई उद्देश्य घोषित किया है? हिंदू हजारों बरस पहले ऋग्वैदिक काल से ही जनतंत्री हैं। यहां ईश्वर को भी खारिज करने वाले चार्वाक ऋषि हैं, हिंदू समाज की आक्रामक शल्य परीक्षा करने वाले डा.अंबेडकर भारत रत्न हैं। हिंदू संविधान मानते हैं, राष्ट्रध्वज देखकर रोमांचित होते हैं। हिंदू इस देश को पुण्यभूमि, पितृभूमि मानते हैं, यहां हिंसा होगी तो वे जाएंगे कहां? हिंदू अपने ही राष्ट्रीय समाज के विरुद्ध युद्धरत नहीं हो सकते। हिंदू जन्मजात राष्ट्रवादी हैं। सारी दुनिया का राष्ट्रभाव मात्र पांच-छह सौ बरस ही पुराना है, भारतीय राष्ट्रभाव कम से कम 8-10 हजार वर्ष पूर्व वैदिक साहित्य में भी है। हिंदू अपने ही हिंदु-स्थान को रक्तरंजित नहीं कर सकते। तब प्रश्न यह है कि प्रज्ञा सिंह या उपाध्याय पर लगे आरोपों का राज क्या है? अव्वल तो इस प्रश्न का सटीक उत्तर जांच और विवेचना की अंतिम परिणति और न्यायालय ही देंगे कि वे दोषी हैं या निर्दोष, लेकिन एटीएस की प्रचारात्मक कार्यशैली से राजनीतिक षड्यंत्र की गंध आ रही है। दु:ख है कि विद्वान प्रधानमंत्री को आस्ट्रेलियाई पुलिस द्वारा की गई एक मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी के कारण पूरी रात नींद नहीं आई, लेकिन बिना सबूत प्रज्ञा और सेना से जुड़े सदस्यों के उत्पीड़न के बावजूद वह खामोश हैं। प्रज्ञा का दोषी होना समूची हिंदू चेतना और भारतीय राष्ट्र-राज्य व राजनीति के लिए भूकंपकारी सिद्ध होगा। चूंकि प्रज्ञा बिना किसी साक्ष्य के बावजूद पीड़ित है इसलिए राजनीति और सरकार से आहत, अपमान झेल रहे करोड़ों हिंदुओं की 'महानायक' बन चुकी है। हिंदू मन स्वाभाविक रूप से आक्रामक नहीं होता। हिंदू ही क्या, कोई भी सांस्कृतिक और सभ्य कौम हमलावर नहीं होती,पर अपमान सहने की सीमा होती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताते हैं। इमाम बुखारी जैसे लोग राष्ट्र-राज्य को धौंस देते हैं। राजनीति एकतरफा अल्पसंख्यकवादी है। केंद्रीय मंत्री बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनाने की मांग करते हैं।
आतंकवाद राष्ट्र-राज्य से युद्ध है, लेकिन राजनीति आतंकवाद पर नरम है। भारत के हजारों निर्दोष जन आतंकी घटनाओं में मारे गए, सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हुए, बावजूद इसके कोई भी आतंकी प्रज्ञा जैसे ढेर सारे 'नार्को' परीक्षणों से नहीं जांचा गया। प्रज्ञा सिंह और अभिनव भारत कहीं तपते हिंदू मन के लावे का 'धूम्र ज्योति' तो नहीं हैं? हिंदुओं की एक संख्या को प्रज्ञा सिंह के कथित कृत्य पर कोई मलाल नहीं है। यह खतरनाक स्थिति है। देश के प्रत्येक हिंदू को ऐसे किसी कृत्य पर मलाल होना चाहिए, लेकिन मध्यकालीन इस्लामी बर्बरता और स्वतंत्र भारत की मुस्लिम परस्त राजनीति ने हिंदू मन को घायल किया है। प्रज्ञा मामले ने नई चोट दी है। राष्ट्रभक्त बहुमत इस घटना से आहत है। आतंकवाद इस राष्ट्र की मुख्यधारा नहीं है। हिंदुओं ने कभी भी किसी कौम या देश पर आक्रमण नहीं किया। हिंदू विश्व की प्राचीनतम संस्कृति, दर्शन और सभ्यता के विनम्र उत्तराधिकारी हैं। वे देश के प्रत्येक नागरिक को 'भारत माता का पुत्र' जानते-मानते हैं। वे आतंकवादी नहीं हो सकते। कृपया उन्हें और जलील न कीजिए।
अहमदाबाद धमाके, 76 लोग अभियुक्त
पुलिस के मुताबिक़ "कुल 76 अभियुक्तों में 26 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया जा चुका है, जबकि 50 अब भी फ़रार हैं."
अहमदाबाद से स्थानीय पत्रकार महेश लंगा के अनुसार बुधवार को पुलिस ने अहमदाबाद में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट जीएम पटेल की अदालत में दो हज़ार पन्नों की चार्जशीट दाख़िल की है.
मुख्य अभियुक्त
चार्जशीट में पुलिस ने मुफ़्ती अबू बशर, सफ़दर नागौरी और साजिद मंसूरी को मुख्य अभियुक्त बनाया है.
आहमदाबाद के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर और क्राइम ब्रांच के इंचार्ज आशीष भाटिया का कहना है कि जांच अब भी चल रही है.
बम धमाकों के बाद पुलिस ने पहले 10 अगस्त को 10 लोगों को गिरफ़तार किया. बाद में 16 अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया गया.
बम धमाकों के मामले में पुलिस ने अबतक 511 लोगों से पूछताछ की है.
पुलिस ने 26 गिरफ़्तार लोगों को देश के विभिन्न राज्यों से गिरफ़्तार किया है. अबू बशर को लखनऊ से गिरफ़्तार किया गया था. उसकी गिरफ़्तारी के बाद पुलिस ने दावा किया था कि अबू बशर ही धमाकों का मास्टरमाइंड है.
सफ़दार नागौरी पहले ही से गिरफ़्तार हैं.
ग़ौरतलब है कि 26 जुलाई को अहमदाबाद में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे जिन में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और 150 से अधिक घायल हुए थे.
अहमदाहाद बम धमाकों के बाद दूसरे और तीसरे दिन गुजरात के शहर सूरत में लगभग 25 बम मिले थे, लेकिन किसी भी बम के फटने से पहले ही बम निरोधक दस्ता सभी बमों को निष्क्रिय करने में सफल रहा.