Thursday, June 4, 2009

Maoist threat to BJP legislator in Orissa’s Kandhamal

ThaIndian News , June 4th, 2009 , Bhubaneswar, least two posters warning a Bharatiya Janata Party (BJP) legislator and Bajrang Dal activists of dire consequences for having allegedly fuelled last year’s communal violence have been found in Orissa’s Kandhamal district

The posters are suspected to have been put up by Maoist rebels, police said Thursday.


The posters warning that BJP’s Manoj Pradhan and three Bajrang Dal workers would be killed soon were found Wednesday in the Raikia area of Kandhamal, about 200 km from here, District Superintendent of Police S. Praveen Kumar told IANS.

Police have tightened security at the jail in G. Udayagiri, where Pradhan is imprisoned for his alleged involvement in the communal violence.

The district witnessed widespread communal violence after the murder of Vishwa Hindu Parishad (VHP) leader Swami Laxmanananda Saraswati and four of his aides at his ashram Aug 23 last year.

While the police blamed Maoists for the killings, some Hindu organisations alleged Christians were behind the crime and launched attacks on the community.

At least 38 people were killed and over 25,000 Christians forced to flee after their houses were attacked by rampaging mobs in the aftermath of the attack on Saraswati. Nearly 2,500 people are still living in government relief camps.

Although no violence has been reported from the region since October last year, police believe the posters may have been plastered by the rebels to disturb peace.

The BJP Thursday said the rebels had attacked Dilu Pradhan, a Bajrang Dal activist, a few days ago.

“The rebels have prepared a hit list that has the names of at least 14 people associated with the BJP and VHP,” a BJP leader said.

Wednesday, June 3, 2009

मस्जिद निर्माण को लेकर दो समुदाय आमने-सामने

दैनिक जागरण, ३ जून २००९, सहारनपुर। कुतुबशेर थाना क्षेत्र के मोहल्ला पटेल नगर स्थित एक पुरानी मस्जिद में हो रहे निर्माण को लेकर दो समुदायों के लोग आमने सामने आ गए। मामला बिगड़ता देख पुलिस आला अधिकारी भारी फोर्स के साथ वहां पहुंच गए और किसी तरह दोनों पक्षों को समझाया। बाद में पुलिस की मौजूदगी में दो पक्षों की बीच हुई वार्ता में मामला का निपटारा कर दिया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए मौके पर पुलिस फोर्स तैनात है।

मंगलवार को दोपहर थाना क्षेत्र के मोहल्ला पटेल नगर स्थित पुरानी मस्जिद में कुछ लोग निर्माण कर रहे थे। इस निर्माण का क्षेत्र के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। कुछ देर में ही दोनों समुदाय के लोग आमने सामने आ गए। सूचना मिलते ही कुतुबशेर एसओ मय फोर्स मौके पर पहुंच और किसी तरह मामला शांत कराया। दोपहर बाद दोनों समुदाय के बीच एसओ बीएन पराशर की मध्यस्तता में हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि मस्जिद की स्थिति पहले जैसी बनी रहेगी और उसमें कोई नया निर्माण नहीं हो सकता। गर्मी और बरसात के दौरान उसमें केवल टीन शेड डालने की अनुमति दी गई है। एसओ ने बताया कि इस पर दोनों समुदाय के लोगों ने अपनी सहमति जताई है।

सिब्बल के गले नहीं उतरी केजीबीवी की यह पढ़ाई

दैनिक जागरण , जून ०२, २००९, नई दिल्ली, संप्रग की पिछली सरकार ने बीते पांच वर्षो में मुस्लिम समुदाय की तालीमी [शिक्षा] तरक्की के लिए भले ही लाख शोर मचाया हो, लेकिन जमीनी तस्वीर लगभग जस की तस है। खासकर, लड़कियों की पढ़ाई के मामले में तो लगता है कि सरकार कागजों में ही ज्यादा गंभीर रही है। तभी तो कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में पढ़ रही ढाई लाख लड़कियों में से सिर्फ 15 हजार ही मुस्लिम समुदाय से हैं। शायद यही वजह है कि यह तालीमी तरक्की नए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के भी गले नहीं उतरी।

मंत्रालय का काम संभालने के बाद सिब्बल के एजेंडे पर जो कुछ खास मसले हैं, उनमें मुसलमानों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर जस्टिस सच्चर की सिफारिशों पर अब तक हुई कार्रवाई भी अहम है। तभी तो उन्होंने काम शुरू करने के महज दो दिनों के भीतर ही इस पर रिपोर्ट तलब कर ली। अफसरों को भी मुंह जबानी ब्यौरा देने की छूट नहीं थी, लिहाजा सोमवार को उन्होंने सच्चर की सिफारिशों पर अमली कार्रवाई को लेकर सोमवार को प्रेजेंटेशन भी दिया।

सूत्रों के मुताबिक अफसरों ने सिब्बल को बताया कि दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की लड़कियों की पढ़ाई पर खास फोकस के तहत देश भर में चलाए जा रहे कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों [केजीबीवी] में कुल ढाई लाख लड़कियां पढ़ रही हैं। लेकिन उनमें मुस्लिम समुदाय से सिर्फ 15 हजार ही हैं।

बताते हैं कि यह आंकड़ा सिब्बल के भी गले नहीं उतरा। उन्होंने इस स्थिति को कतई असंतोषजनक माना, लेकिन किसी को कोई हिदायत नहीं दी। सूत्रों की मानें तो सिब्बल अभी मंत्रालय से जुड़े विभिन्न मसलों को गहराई से समझने में जुटे हैं। यही वजह है कि वे अफसरों को सतही तौर पर कुछ भी हिदायत देने से बच रहे हैं।

बताते हैं कि अल्पसंख्यकों की शिक्षा और सच्चर की सिफारिशों को लेकर अफसरों ने सिब्बल के मंत्रालय का रोडमैप रख दिया है। अब उन्हें मंत्री के अगले निर्देश का इंतजार है। अफसरों के मुताबिक मंत्रालय 2004 से अब तक लगभग ढाई हजार केजीबीवी को मंजूरी दे चुका है, जिनमें से 427 मुस्लिम बहुल आबादी वाले विकास खंडों में खोले जाने हैं। उनमें भी 94 शहरी क्षेत्रों की मुस्लिम आबादी वाले मुहल्लों में खुलेंगे।

Saturday, May 30, 2009

लड़कियों के गायब होने से गरमाया धर्मातरण का मामला

दैनिक जागरण, २९ मई २००९, महाराष्ट्र के उत्तरी हिस्से में हिंदुओं के ईसाई बनने की घटनाएं अक्सरप्रकाश में आती रहती हैं। लेकिन पिछले वर्ष पुणे में इस्लाम स्वीकार करने की एक घटना अब पुलिस विभाग के लिए सिरदर्द बनती दिख रही है, क्योंकि इस घटना में इस्लाम स्वीकार करने वाली कुछ युवतियों के गायब होने की रिपोर्ट उनके अभिभावकों ने दर्ज कराई है । धर्मातरण की यह घटना पिछले वर्ष अक्टूबर माह की है। पुणे के पूर्वी हिस्से में स्थित एक शैक्षणिक संस्थान आ़जम कैम्पस में मुस्लिमों के एक सम्मेलन के दौरान छह युवतियों एवं तीन युवकों ने इस्लाम ग्रहण किया था। इस सम्मेलन का आयोजन प्रसिद्ध इस्लामी वक्ताडा. जाकिर नाईक की संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन ने किया था। बताया जाता है कि तीन दिन चले इस सम्मेलन के अंतिम दिन प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान उक्त नौ लोगों ने अपनी मर्जी से इस्लाम ग्रहण करने एवं कलमा पढ़ने की इच्छा जताई। इसके बाद उसी समारोह के दौरान उन्हें इस्लाम धर्म में दीक्षित कर दिया गया। इस्लाम ग्रहण करने वाले इन युवक-युवतियों की उम्र 17 से 25 वर्ष के बीच बताई जाती है । इस घटना की रिपोर्ट पुलिस को दिए जाने पर राज्य एवं केंद्रीय खुफिया ब्यूरो ने घटना की जांच उसी समय शुरू कर दी थी। अब इनमें से कुछ धर्मातरित युवतियों के गायब होने के कारणयह मामला फिर तूल पकड़ने लगा है। लड़कियों के गायब होने की सूचना पुलिस को उनके अभिभावकों द्वारा ही दी गई है। मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इस प्रकार के धर्मातरण अक्सर युवावर्ग द्वारा विवाह के लिएकिये जाते हैं। चूंकि पुणे में शिक्षा के लिएदेश भर से युवा आते हैं। इसलिए धर्मातरण के लिए प्रेरित करने वाली संस्थाएं यहां आसानी से सफलता हासिल कर लेती हैं।

Tuesday, May 5, 2009

पाकिस्तान:सिखों के घर तोड़ गए

Check SpellingBBC,  01 मई, 2009, पाकिस्तान के औरकज़ई ऐजेंसी इलाक़े में तालेबान चरमपंथियों ने जज़िया (सुरक्षा कर) नहीं चुकाने पर सिख धर्म के अनुयाइयों के कई घरों को तोड़ दिया है.

ख़बरें हैं कि तालेबान ने सिखों के कई घरों को आग के हवाले भी किया. इस घटना के बाद सिख सुमदाय के लोग इलाक़ा छोड़ रहे हैं.

इन इलाक़ों में सिख समुदाय के लोग सदियों से रहते आ रहे हैं और औरकज़ई एजेंसी में मोरज़ोई के नज़दीक फ़िरोज़खेल में लगभग 35 घर सिखों के हैं.

पाकिस्तान में बीबीसी उर्दू के पेशावर संवाददाता रिफ़तउल्लाह औरकज़ईने इन ख़बरों की पुष्टि की है. हालाँकि उनका कहना है कि कितने घरों को तोड़ा गया है कि सही संख्या इस समय बता पाना संभव नहीं है.

उनका कहना है, "तालेबान ने सिख समुदाय से इलाक़े में रहने के लिए जज़िया की माँग की थी. यह रक़म कितनी थी इसके बारे में पुख़्ता जानकारी नहीं है. लेकिन जो ख़बरें आ रही हैं उसके अनुसार ये यह रक़म काफ़ी अधिक थी."

जज़िया तय हुआ था

 तालेबान ने सिख समुदाय से इलाक़े में रहने के लिए जज़िया की माँग की थी. यह रक़म कितनी थी इसके बारे में पुख़्ता जानकारी नहीं है. लेकिन जो ख़बरें आ रही हैं उसके अनुसार ये यह रक़म काफ़ी अधिक थी
 
रिफ़तउल्लाह औरकज़ई

उनका कहना है कि तालेबान और सिख समुदाय के बीच जज़िया तय भी हुआ था, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि रक़म के बहुत अधिक होने के वजह से सिख समुदाय इसे नहीं दे सके.

बीबीसी संवाददाता का कहना है कि इन इलाक़ों में पाकिस्तान सरकार की पकड़ बहुत ही कमज़ोर है, इसलिए तालेबान चरमपंथियों के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है और किसी कार्रवाई की उम्मीद भी नहीं की जा सकती.

तालेबान का कहना है कि इस इलाक़े में शरिया क़ानून लागू हो चुका है, ऐसे में यहाँ ग़ैर-मुस्लिमों को रहने के लिए सुरक्षा के रुप में पैसे देने होंगे.

सेकुलर राजनीति की सच्चाई

गुजरात दंगों के संदर्भ में विशेष जांच दल की रपट से कथित सेकुलर वर्ग का झूठ उजागर होता देख रहे हैं तरुण विजय

Dainik Jagran, 19 April 2009, जिस समय प्राय: हर रोज सैनिकों और नागरिकों की आतंकवादियों द्वारा बर्बर हत्याओं के समाचार छप रहे हों उस समय यह देखकर लज्जा होती है कि भारतीय राजनेता परिवारवाद तथा मजहबी तुष्टीकरण के दलदल में फंसे हास्यास्पद बयान देने में व्यस्त है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि 'स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह' अर्थात् अपने धर्म पर अडिग रहते हुए मृत्यु भी प्राप्त हो तो वह श्रेयस्कर है। आज सत्ता का भोग करने वाले यदि अपने मूल राजधर्म के पथ से अलग रहते है तो एक दिन ऐसा आता है जब न तो उनका यश शेष रहता है और न ही पाप कर्म से अर्जित संपदा। लोकसभा चुनावों में अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप, मिथ्या भाषण तथा गाली-गलौज का जो वातावरण बना है वह राजनीतिक कलुश का अस्थाई परिचय ही कराता है।

आजादी के बाद से अब तक देश में ऐसे अनेक मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने अपने-अपने कार्यकाल में विवादों, चर्चाओं और अकूत संपत्तिका आनंद लिया, परंतु उन सब में हम ऐसे किन्हीं दो-चार व्यक्तियों का स्मरण करते है जो अपनी संपत्तिनहीं, बल्कि कर्तव्य के कारण जनप्रिय हुए। पैसा कभी वास्तविक सम्मान नहीं दिलाता, इस बात को वे राजनेता भूल जाते है जो भारत की मूल हिंदू परंपरा सभ्यता और संस्कृति के प्रवाह पर चोट करना अपनी सेकुलर राजनीति का आधार बना बैठे है कि इस देश को हमेशा धर्म ने बचाया है सेकुलर सत्ता ने नहीं। अब तक कई हजार सांसद और विधायक बन गए है, परंतु उनमें से ऐसे कितने होंगे जिन्होंने पैसा नहीं, यश कमाया है? क्या वजह है कि सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस नेता होते हुए भी शेष दलों में भी आदर और सम्मान पाते है और भाजपा के हिंदुत्वनिष्ठ राजनीति के पुरोधा डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों अथवा दीनदयाल उपाध्याय, उनके प्रति कभी कोई आघात नहीं कर पाया। वे संपदा और राजनीतिक प्रभुता न होते हुए भी दायरों से परे सम्मान के पात्र हुए।

गुजरात में दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच टीम के प्रमुख एवं पूर्व सीबीआई निदेशक ने पिछले सप्ताह अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की, जिसमें कहा गया कि गुजरात दंगों के बारे में कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने अपने कुछ नेताओं के कहने पर एक जैसे प्रारूप पर रौंगटे खड़े करने वाले जो आरोप लगाए थे वे सरासर झूठ और मनगढ़ंत थे। इसमें तीस्ता जावेद सीतलवाड़ का नाम सामने आया, जिन्होंने इस प्रकार के आरोप उछाले थे कि गर्भवती मुस्लिम महिला से हिंदुओं ने दुष्कर्म के बाद बर्बरतापूर्वक उसकी हत्या कर दी। विशेष जांच टीम ने स्पष्ट रूप से ऐसे चार उदाहरण प्रस्तुत किए है जिनमें एक कौसर बी की हत्या, दूसरा नरौडा पाटिया में कुएं में मुस्लिमों की लाशें फेंकने, तीसरा एक ब्रिटिश दंपत्तिकी हत्या का था। ये तीनों घटनाएं सैकड़ों मुसलमानों द्वारा एक जैसी भाषा और एक जैसे प्रारूप पर जांच टीम को दी गई थीं और तीनों ही झूठी साबित हुईं। हालांकि तीस्ता ने इस खबर का तीव्र खंडन किया है, लेकिन इस पर विशेष जांच टीम ने कोई टिप्पणी नहीं की है। अत: खंडन के दावों की भी जांच जरूरी है। ध्यान रहे, इसी प्रकार अरुंधती राय ने भी गुजरात दंगों के एक पक्ष का झूठा चित्रण किया था। यह कैसा सेकुलरवाद है जो अपने ही देश और समाज को बदनाम करने के लिए झूठ का सहारा लेने से भी नहीं हिचकता? यह कैसे प्रधानमंत्री हैं जो परमाणु संधि न होने की स्थिति में इस्तीफा देने के लिए तैयार रहते है, लेकिन नागरिकों को सुरक्षा देने में असमर्थ रहते हुए भी पद पर बने रहते हैं।

इस देश में एक ऐसा सेकुलर वर्ग खड़ा हो गया है जिसने हिंदुओं की संवेदना तथा प्रतीकों पर चोट करना अपना मकसद मान लिया है। इन दिनों विशेषकर जिस प्रकार उर्दू के कुछ अखबारों में जहर उगला जा रहा है वह 1947 से पहले के जहरीले माहौल की याद दिलाता है। ऐसी किसी संस्था या नेता पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इस स्थिति में केवल देशभक्ति और राष्ट्रीयता के आधार पर एकजुटता ही अराष्ट्रीय तत्वों को परास्त कर सकती है। दुर्भाग्य से इस देश में हिंदुओं का पहला शत्रु हिंदू ही होता है। इसी स्थिति को बदलने के लिए डा. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, ताकि हिंदू एकजुटता स्थापित हो और इस देश का सांस्कृतिक प्रवाह सुरक्षित रह सके। भारत में हिंदू बहुलता संविधान सम्मत लोकतंत्र और बहुलवाद की गारंटी है। जिस दिन हिंदू अल्पसंख्यक होंगे या उनका मनोबल सेकुलर आघातों से तोड़ दिया जाएगा उस दिन भारत न सिर्फ अपनी पहचान खो देगा, बल्कि यहां भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी मजहबी मतांधता छा जाएगी। पानी, बिजली, सड़क, रोजगार, गरीबी उन्मूलन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास, ग्रामीण सम्मान की पुनस्र्थापना राजधर्म के अंतर्गत अनिवार्य कर्तव्य है, लेकिन यही सब स्वयं में कभी भी राष्ट्र की पहचान नहीं बन सकते। अगर भौतिकता राष्ट्र की पहचान होती तो तिरंगे झंडे और यूनियन जैक में फर्क ही नहीं रहता।

आज देश की राजनीति को वह दृष्टि देने की जरूरत है जो भारतीयता की रक्षा कर सके। देश आज विदेशी विचारधाराओं और नव उपनिवेशवादी प्रहारों से लहूलुहान हो रहा है। जिहादी हमलों में साठ हजार से भी अधिक भारतीय मारे गए है। नक्सलवादी-माओवादी हमलों में 12 हजार से अधिक भारतीय मारे जा चुके है। इन आतंकवादियों के पास हमारे सैनिकों से बेहतर उपकरण और हथियार होते है। भारत सरकार पुलिस और अर्धसैनिक बलों को घटिया हथियार, सस्ती बुलेट प्रूफ जैकेट और अपर्याप्त प्रशिक्षण देकर अमानुषिक आतंकवादियों का सामना करने भेज देती है। राजधर्म का इससे बढ़कर और क्या पतन होगा? जिस राज में सैनिक अपने वीरता के अलंकरण वापस करने लगें और संत अपमानित व लांछित किए जाएं वहां के शासक अनाचार को ही प्रोत्साहित करने वाले कहे जाएंगे।





झूठी कहानी की सच्चाई

विशेष जांच दल की रपट से गुजरात दंगों की कहानियों का झूठ उजागर होता हुआ देख रहे हैं एस. शंकर

Dainik Jagran, 23 April 2009, पिछले सात वर्र्षो से मीडिया में मानो एक धारावाहिक चल रहा है, जिसमें गोधरा, बेस्ट बेकरी, जाहिरा शेख, नरेंद्र मोदी, नरोड़ा पटिया, अरुंधती राय, मानवाधिकार आयोग और तीस्ता सीतलवाड़ आदि शब्द बार-बार सुनने को मिलते हैं। नाटक के आरंभ से ही नरेंद्र मोदी को खलनायक के रूप में पेश किया गया, किंतु जैसे-जैसे नई परतें खुलती गईं, पात्रों की भूमिकाएं बदलती नजर आईं। नवीनतम कड़ी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसने गुजरात दंगे पर सबसे अधिक सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को जघन्य हत्याओं और उत्पीड़न की झूठी कहानियां गढ़ने, झूठे गवाहों की फौज तैयार करने, अदालतों में झूठे दस्तावेज जमा करवाने और पुलिस पर मिथ्या आरोप लगाने का दोषी बताया है। चूंकि नई सच्चाई सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से आई है अत: तीस्ता और उनके शुभचिंतक मौन रहकर इसे दबाने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह अब तक जो अभियोजक थे अब वे आरोपी के रूप में कठघरे में दिखाई देंगे। वैसे इन वषरें में गुजरात दंगों से संबंधित हर नया पहलू इसी तरह बदलता रहा है। जाहिरा शेख का बार-बार गवाही-पलटना, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा उतावलापन दिखाना, तहलका के पासे उलटा पड़ना, नानावती आयोग की वृहत रिपोर्ट, तीस्ता के अत्यंत निकट सहयोगी रईस खान द्वारा तीस्ता के भय से पुलिस सुरक्षा की मांग करने से लेकर अरुंधती राय द्वारा काग्रेस नेता अहसान जाफरी की बेटी के दुष्कर्म-हत्या की लोमहर्षक झूठी कथा लिखने और लालू प्रसाद यादव द्वारा नियुक्त मुखर्जी आयोग द्वारा गोधरा को महज दुर्घटना बताने तक सभी कड़ियों ने प्रकारातर में एक ही चीज दिखाई कि गुजरात सरकार पर लगाए गए आरोप मनगढ़ंत थे।

बेस्ट बेकरी मामला मात्र जाहिरा शेख के बयान बदलने से चर्चित हुआ। मानवाधिकार आयोग ने उसी जाहिरा की छह सौ पन्नों की याचिका पर गुजरात हाई कोर्ट पर सार्वजनिक रूप से लाछन लगाया। उन पन्नों को देखने की भी तकलीफ नहीं की, जिन पर कहीं भी जाहिरा के दस्तखत तक नहीं थे! पर चूंकि उसे तीस्ता ने जमा किया था इसलिए आयोग अधीर होकर सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगा बैठा कि बेस्ट बेकरी की सुनवाई गुजरात से बाहर हो। इस प्रकार आयोग ने न केवल अपनी मर्यादा का उल्लंघन किया, बल्कि गुजरात की न्यायपालिका पर कालिख भी पोती। यहां तक कि गुहार सुनते हुए स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात हाई कोर्ट और वहां के मुख्यमंत्री के विरुद्ध कठोर टिप्पणियां कर दीं। किस आधार पर? एक ऐसे व्यक्ति के बयान पर, जो स्व-घोषित रूप से एक बार शपथ लेकर अदालत में झूठा बयान दे चुका था।

इस प्रकार हमारे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक ही गवाह के एक बयान को मनमाने तौर पर गलत और दूसरे को सही मान लिया। इसी आधार पर गुजरात हाईकोर्ट की खुली आलोचना की, जिसने बेस्ट बेकरी केआरोपियों को दोषमुक्त किया था। उस निर्णय को 'सच्चाई का मखौल' बताकर सर्वोच्च न्यायपालकों ने नरेंद्र मोदी को भी 'राजधर्म' निभाने या 'गद्दी छोड़ देने' की सलाह दे डाली। साथ ही मामला मुंबई हाई कोर्ट को सौंप दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने यह सब तब किया जब जाहिरा की मां और ननद ने कहा था कि सारा खेल तीस्ता करवा रही है और जाहिरा ने पैसे लेकर बयान बदला है। जाहिरा के वकील ने भी यही कहा था। फिर भी, सच्चाई की अनदेखी कर केवल कुछ उग्र, साधन-संपन्न मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से प्रभावित होकर हमारे न्यायपालकों ने अपने को हास्यास्पद स्थिति में डाल लिया।

बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह देखकर 'अपने को विचित्र स्थिति' में पाया कि जाहिरा के नाम पर प्रस्तुत किए गए भारी-भरकम दस्तावेजों में जाहिरा के दस्तखत ही नहीं हैं। यह सब तो अब स्पष्ट हो रहा है। इस बीच तीस्ता भारतीय न्यायपालिका को दुनिया भर में बदनाम कर चुकी थीं और उन्हें न्यूरेनबर्ग ह्यूमन राइट अवार्ड, ग्राहम स्टेंस इंटरनेशनल अवार्ड फार रिलीजियस हारमोनी, पैक्स क्रिस्टी इंटरनेशनल पीस प्राइज, ननी पालकीवाला अवार्ड से लेकर पद्मश्री तक कई देशी-विदेशी पुरस्कार मिल चुके हैं। न्यायाधीशों ने जाहिरा शेख को झूठे बयान देने के लिए सजा दी। अमेरिकी संसद की 'यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन आन इंटरनेशनल रिलीजस फ्रीडम' के सामने भी तीस्ता ने मनगढ़ंत गवाही दी थी। क्या हमारे न्यायाधीश उन सारी झूठी गवाहियों की असल सूत्रधार को कोई सजा देंगे? तीस्ता को इसलिए सजा मिलनी चाहिए ताकि आगे न्यापालिका और मीडिया का दुरुपयोग कर अपना उल्लू साधने वालों को चेतावनी मिले। गुजरात हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में वही बातें लिखी थीं जिन्हें अब सुप्रीम कोर्ट के विशेष जांच दल ने जांच में सही पाया है।

हाईकोर्ट ने कहा था कि जाहिरा का 'कुछ लोगों को बदनाम करने का षड्यंत्र' दिखता है और यह भी कि वह कुछ समाज-विरोधी और देश-विरोधी तत्वों के गंदे हाथों में खेल रही हैं। हाईकोर्ट ने ऐसे लोगों और कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा पूरे राज्य प्रशासन और न्यायपालिका को निशाना बनाने तथा एक समानातर जांच चलाने की भी आलोचना की थी, पर उस निर्णय को निरस्त करके सर्वोच्च न्यायालय ने कठोर टिप्पणियां कर दीं। उसी से देश-विदेश में गुजरात हाई कोर्ट की छवि धूमिल हुई। क्या आज गुजरात हाईकोर्ट के वे न्यायाधीश सही नहीं साबित हुए, जिन्हें पक्षपाती समझ कर उन न्यायिक मामलों को राज्य से बाहर ले जाया गया था? आशा की जा सकती है कि अपने ही द्वारा गठित विशेष जांच दल की इस रिपोर्ट के बाद सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करेगा। गुजरात धारावाहिक की अंतिम कड़ियां आनी अभी बाकी हैं।


Thursday, March 19, 2009

उड़ीसा में संघ नेता की हत्या

दैनिक जागरण, 19 मार्च 2009, फुलबनी। पिछले वर्ष ईसाई विरोधी दंगे में गिरफ्तार किए गए आरएसएस नेता की गुरुवार की सुबह सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील उड़ीसा के कंधमाल जिले में संदिग्ध माओवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।

पुलिस ने बताया कि यहां से 145 किलोमीटर दूर रुडीगुमा गांव में आज सुबह करीब 15 हथियारबंद उग्रवादियों ने हमला किया और प्रभात पाणिग्रही को गोली मार दी। पाणिग्रही आरएसएस के एक कार्यकर्ता के यहां ठहरे हुए थे। हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए व्यापक खोज अभियान चलाया जा रहा है।

किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए एहतियात के तौर पर गांव में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। पुलिस ने बताया कि माओवादियों ने कोटागाडा और रूडीगुमा के बीच सड़क पर पेड़ काट कर गिरा दिया जिससे पुलिस को घटनास्थल तक पहुंचने में देरी हुई।

सूत्रों ने बताया कि पाणिग्रही को विहिप नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगे के मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह 14 मार्च को बालीगुडा जेल से जमानत पर रिहा हुए थे।

Tuesday, January 27, 2009

Indonesia: Yoga Ban for Muslims

THE ASSOCIATED PRESS, 27 January , 2009, Indonesia’s top Islamic body, the Ulema Council, barred Muslims from practicing yoga that contains Hindu rituals like chanting, the chairman of the group said Monday, citing concerns that it would corrupt their faith. The council issued the ruling after weekend talks by hundreds of theological experts in Padang Panjang, in West Sumatra. A similar ruling was made in Malaysia last year.

Thursday, January 22, 2009

Hindu group demands ban on 'Slumdog Millionaire'

Times of India, 22 Jan 2009,PANAJI: The Goa unit of a Hindu organisation has demanded a ban on the release of `Slumdog Millionaire', saying the award-winning film hurts the religious sentiments of the majority community।Hindu Janjagruti Samiti (HJS) will approach various governments, including that in Goa, insisting the movie should not be released, Jayesh Thali, state spokesman of the group, said.


There were a few scenes in the movie that denigrated Lord Ram, he alleged.

Thali said a HJS delegation had met Central Board of Film Certification officials in Mumbai, demanding a ban on the film which is slated for release tomorrow.

'Slumdog Millionaire', which tells the rags-to-riches tale of an orphan from a Mumbai slum, won four Golden Globe awards, including one for music composer A R Rahman.