हिंदू हितों (सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक) को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं से सम्बंधित प्रमाणिक सोत्रों ( राष्ट्रिय समाचार पत्र, पत्रिका) में प्रकाशित संवादों का संकलन।
Monday, November 24, 2008
Hindu religious leader to address EU Parliament
11/22/2008, Times of India.Prominent Hindu religious leader Rajan Zed has been invited by President of European Parliament Hans-Gert Pottering for a meeting to discuss issues concerning Hindus and promote interfaith dialogue. Zed, who is president of Universal Society of Hinduism, will meet President Pottering in his Brussels office on December 10.
Hindu nationalists protest documentary at Goa film festival
23 November 2008, PANAJI, India (AFP) — The International Film Festival of India was officially opened in the resort state of Goa Saturday but immediately ran into controversy with hardline Hindu nationalists.
The Sanatan Sanstha and Hindu Janajagruti Samiti (HJS) movements protested against the scheduled screening of M.F. Husain's 1960s documentary "Through the Eyes of a Painter," which was shown at the Berlin Film Festival and won a Golden Bear award.
India's Ministry of Information and Broadcasting has organised the screening for November 25.
Senior HJS member Sushant Dalvi said: "There are 1,250 police complaints filed against Husain in India. It is not right for the government organisations to make his film a part of such a prestigious festival."
Dalvi added that a formal complaint was being submitted to the festival director and Goa's chief minister.
Maqbool Fida Husain, 93, is one of India's best-known artists and has even been referred to as the country's Picasso.
But he became embroiled in controversy in the mid-1990s over his paintings of nude Hindu deities that led to court cases, attacks on his house and death threats.
A Ministry of Information and Broadcasting official rejected the complaints.
"The documentary has nothing to do with insulting any religion. It was produced long back and is selected because it is a good documentary," he said.
The festival runs until December 2.
मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा
Wednesday, November 19, 2008
पैंतीस किलो गौमांस समेत तस्कर पकड़ा, एक फरार
दैनिक जागरण, १७ नवम्बर, २००८, अमरोहा (ज्योतिबाफूलेनगर) : पुलिस ने दबिश देकर पैंतीस किलो गौ मांस के साथ तस्कर को रंगे हाथों धर दबोच लिया जबकि एक आरोपी दीवार कूदकर फरार हो गया। पुलिस को मौके से गाय की खाल, कई कटे हुए अंग एवं छुरी भी मिली है।
रविवार की शाम पांच बजे देहात थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गांव कांकर सराए के रहने वाले शहनवाज उर्फ शानू कुरैशी पुत्र शफीक अपने घर में ही गौकशी कर मांस बेच रहा है। इस पर एसओ गणेश दत्त जोशी मय पुलिस बल के मौके पर पहुंच गए। दबिश देकर नगर के मुहल्ला दानिश मंदान निवासी मोहम्मद अफजाल पुत्र अली हुसैन को गाय के मांस समेत गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान शाहनवाज मौके से दीवार फांदकर भागने में सफल हो गया। पुलिस ने पीछा भी किया लेकिन वह जंगल में गुम हो गया। मौके से पुलिस को 35 किलो गाय का मांस, एक गाय की खाल, अंग, तराजू, छुरी व बोरा आदि सामान बरामद कर लिया।
एसओ श्री जोशी ने बताया कि आरोपी से पूछताछ में गौमांस के अन्य तस्करों से जुड़ी अहम जानकारियां मिली हैं, जिस पर टीम को लगा दिया गया है। मामले की दो तस्करों के खिलाफ गौवध अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। फरार अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है।
21 पशु बरामद, दो दबोचे गए
दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, सैयदराजा (चंदौली) । वध के लिए पैदल बंगाल में आपूर्ति को ले जाये जा रहे 21 पशुओं को स्थानीय पुलिस ने फेसुड़ा नहर के समीप से बरामद किया और दो तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। घटना सोमवार की मध्यरात्रि की बतायी जाती है।
जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष रामसागर को मुखबिर से सूचना मिली कि दो तस्करों द्वारा 21 मवेशियों को वध हेतु पैदल ही फेसुड़ा, जेवरियाबाद व कन्दवा थाना क्षेत्र की पगडंडियों के रास्ते बंगाल ले जाया जा रहा है। सूचना मिलते ही थानाध्यक्ष उपनिरीक्षक महानंद पाण्डेय व रमाशंकर यादव के अलावा सहयोगी पुलिस कर्मियों के साथ मार्ग की नाकेबंदी कर पशुओं समेत तस्करों के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर के बाद मय पशु तस्कर आते दिखायी दिये जो पुलिस को देखते ही पशुओं को छोड़ भागने लगे। पुलिस ने दौड़ा कर दोनों तस्करों को धर दबोचा और पशुओं को बरामद कर थाने पर ले आयी। बरामद पशुओं में 18 बैल एवं तीन गाय शामिल हैं। पुलिस ने गिरफ्तार तस्करों को गो-वध अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के बाद हवालात में डाल दिया। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में इन दिनों तस्करों द्वारा मोबाइल से पुलिस की गतिविधियों का लोकेशन लेकर देर रात्रि या भोर में पैदल पशुओं को नदी के रास्ते बिहार ले जाये जाने का सिलसिला जारी है।
हिंदुओं को जगाने निकली जन जागरण यात्रा
मंगलवार को यात्रा का शुभारंभ रामघाट पर भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास की अगुवाई में शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति से मां मंदाकिनी का पूजन अर्चन किया। सबसे पहले दूध की धार से अभिषेक किया और फिर पूजन कर आरती करने के बाद यात्रा को रवाना कर दिया गया। विहिप के प्रांत संगठन मंत्री ने बताया कि हिंदू विरोधी केंद्र सरकार के कार्यों का काला चिट्ठा लोगों के सामने खोलने के लिए इस जनजागरण यात्रा की शुरुआत की गई है। उन्होंने बताया कानपुर प्रांत के अंतर्गत आज ही ब्रह्मावर्त से भी एक यात्रा शुरू की गई है। बताया कि यह यात्रा यहां से शुरू होकर आज ही अतर्रा, बांदा, कबरई होते हुये महोबा में रात्रि विश्राम करेगी। बुधवार को कबरई, खन्ना, मौदहा, भरुवासुमेरपुर होते हुये हमीरपुर में विश्राम करेगी। गुरुवार को राठ, उरई में विश्राम शुक्रवार को मोठ, पारीक्षा, चिरगांव व झांसी में विश्राम शनिवार को बबीना, तालबेहट, वासी होते हुये ललितपुर में समापन होगा। यात्रा के आरंभ में प्रांत संगठन मंत्री बजरंग दल वीरेन्द्र पांडेय, विभाग संगठन मंत्री रमेश चंद्र त्रिपाठी, जिला संगठन मंत्री छत्रपाल सिंह, जिला गौ रक्षा प्रमुख विकास मिश्र के अलावा दर्जनों साधू और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। यात्रा अपना पहला पड़ाव कर्वी के बाद शिवरामपुर, भरतकूप होते हुये बांदा जिले में प्रवेश कर गई। रास्ते में जगह-जगह हैंडबिलों के माध्यम से हिंदू चेतना का काम भी किया गया। इसके अलावा लाउडस्पीकर से भी यह काम किया जा रहा था।
Tuesday, November 18, 2008
खुद की बर्बादी का जश्न
मालेगांव बम कांड पर पक्ष एवं विपक्ष, दोनों के रवैये को अनुचित करार दे रहे हैं राजीव सचान
दैनिक जागरण, १८ नवम्बर, २००८। मालेगांव बम धमाकों की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है। महाराष्ट्र सरकार का आतंकवाद विरोधी दस्ता यानी बहुचर्चित एटीएस जैसे-जैसे अपनी जांच आगे बढ़ा रही है और इस संदर्भ में किस्म-किस्म के जो प्रत्याशित-अप्रत्याशित दावे कर रही है उस पर सवाल उठाने का सिलसिला भी गति पकड़ता जा रहा है। तमाम राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक हिंदू संगठन एटीएस की जांच-पड़ताल को दुर्भावना भरी बता रहे हैं। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि एटीएस जो कुछ कर रही है उसके पीछे कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता और महाराष्ट्र सरकार का हाथ है। एटीएस की जांच कार्यवाही को संत समाज और सैन्य बलों के उत्पीड़न के रूप में भी परिभाषित किया जा रहा है तथा पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक करने की मांग हो रही है। कुल मिलाकर माहौल कुछ वैसा ही है जैसा दिल्ली के जामिया नगर में मुठभेड़ के बाद था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब दिल्ली पुलिस निशाने पर थी और निशाना लगाने वाली थी कथित सेक्युलर जमात। इस जमात में कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी और धर्मगुरू भी थे। ये सभी दिल्ली पुलिस के दावों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे-अभी भी नहीं हैं। इस जमात की ओर से दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के लिए चलाए गए अभियान से ऐसा माहौल बना कि अनेक कांग्रेसी नेता भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह मांग करने लगे कि जामिया नगर मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। इससे इनकार नहीं कि महाराष्ट्र एटीएस की जांच के तौर-तरीके और उसके कुछ कथित सबूत संदेह पैदा करने वाले हैं, लेकिन यह तो अदालत को तय करना है कि प्रज्ञा सिंह और उसके नौ साथियों पर एटीएस द्वारा लगाए गए सबूत सही हैं या नहीं? विडंबना यह है कि जो कार्य अदालत को करना है उसे कुछ हिंदू नेता और धर्माचार्य करने की जिद कर रहे हैं। इन्हें अपना संदेह प्रकट करने का अधिकार तो है, लेकिन यदि आरोपों के कठघरे में खड़े लोगों का बचाव इस आधार पर किया जाएगा कि हिंदू आतंकी हो ही नहीं सकते तो फिर मुश्किल होगी। यह सही है कि हिंदुओं के आतंक के रास्ते पर चलने का कोई औचित्य नहीं, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक अथवा व्यक्तिगत कारणों से पथभ्रष्ट होकर कोई भी गलत राह पर चल सकता है। इस संदर्भ में यह ध्यान रहे कि जो भी आतंक के रास्ते पर चलते हैं वे स्वयं को आतंकी मानने से इनकार करते हैं। नि:संदेह इसका यह मतलब नहीं कि मुंबई एटीएस जो कुछ कह रही है वह सब सही है और उसके दावे संदेह से परे हैं। सच तो यह है कि उसके अनेक दावे हास्यास्पद हैं, जैसे यह कि एक गवाह ने मालेगांव में विस्फोट की साजिश के संदर्भ में फोन पर हो रही बातचीतसुनी है। क्या ऐसा संभव है कि फोन पर दोनों ओर से हो रही बातचीत को सुना जा सके? एटीएस के तमाम संदेहास्पद दावों के बावजूद उचित यही है कि जांच पूरी होने का इंतजार किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पुलिस के लिए काम करना कठिन हो जाएगा। कम से कम आतंकवाद से लड़ना तो उसके लिए दुरूह हो ही जाएगा। वह आतंकी घटनाओं में शामिल किसी भी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगी। कल को अन्य समुदायों के लोग भी अपने लोगों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने पर उसी तरह बचाव करेंगे, जैसे कल मुस्लिम संगठन कर रहे थे और आज हिंदू संगठन कर रहे हैं।यह मांग तो की जा सकती है और की भी जानी चाहिए कि पुलिस की जांच के तौर-तरीके बदलें, क्योंकि अनेक बार वह अपने ही दावों का खंडन कर देती है अथवा उसके द्वारा जुटाए गए सबूत अदालतों के समक्ष ठहर नहीं पाते, लेकिन यदि उस पर अविश्वास किया जाएगा तो फिर आतंकवाद से लड़ना और कठिन होगा। एक ऐसे समय जब स्वयं भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के प्रति अनिच्छुक है तब आतंकी घटनाओं की जांच के सिलसिले में पुलिस को कठघरे में खड़ा करने से ऐसी भी नौबत आ सकती है कि वह संदेह के आधार पर किसी से पूछताछ करना ही बंद कर दे। सैद्धांतिक रूप से किसी एक के किए की सजा पूरे समुदाय को नहीं दी जा सकती, लेकिन जब समुदाय विशेष के हितों के बहाने आतंकवाद की राह पर चला जाएगा तो उस समुदाय का नाम अपने आप आतंकवाद के साथ नत्थी हो जाएगा। जाने-अनजाने दुनिया भर में ऐसा ही हो रहा है। यदि खालिस्तानी संगठनों के आतकंवाद को सिख आतंकवाद कहा गया तो लिट्टे के आतंकवाद को तमिल आतंकवाद। यदि कोई गूगल पर हिंदू आतंकवाद लिखे तो उसे लाखों संदर्भ मिल जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि प्रज्ञा सिंह और उसके साथियों की गिरफ्तारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन असहज हैं, लेकिन जरा गौर कीजिए कि खुश कौन है? यह है कांग्रेस और उसके जैसे खुद को सेक्युलर बताने वाले दल। उन्हें लग रहा है कि अब भाजपा को कठघरे में खड़ा करने में और आसानी हो जाएगी, लेकिन क्या यह खुश होने की बात है कि हिंदू युवक आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले हैं? यह तो अपने घर में आग लगने पर हाथ तापने जैसी बेवकूफी हुई। क्या इससे अधिक चिंताजनक और कुछ हो सकता है कि बहुसंख्यक समाज आतंकवाद का वरण करता दिखे? यह तो ऐसा मामला है जिस पर प्रधानमंत्री को हफ्तों नींद नहींआनी चाहिए। यदि हिंदू संगठन आतंक के रास्ते पर चल निकले हैं तो इसका अर्थ है कि घर को उसके ही चिराग से आग लग गई है। जब देश के राजनीतिक नेतृत्व को यह देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ तब वह राजनीतिक लाभ बटोरने की फिराक में है। क्या किसी ने कथित सेक्युलर जमात के किसी नेता का ऐसा कोई बयान पढ़ा-सुना है जिसमें हिंदू युवकों के आतंकी बनने पर चिंता जताई गई हो? उनके बयानों से यदि कुछ झलकता है तो उत्साह, विश्वास और इस बात का संतोष कि वे जो कुछ कहते थे वह सही साबित हो रहा है। शायद इसे ही कहते हैं खुद की बर्बादी का जश्न मनाना। हैरत यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी इस जश्न में शामिल दिख रही है। क्या कोई समझेगा कि आज प्रश्न यह नहींहै कि कांग्रेस और भाजपा का क्या होगा, बल्कि यह है कि देश का क्या होगा?