Monday, November 24, 2008

Hindu religious leader to address EU Parliament

11/22/2008, Times of India.Prominent Hindu religious leader Rajan Zed has been invited by President of European Parliament Hans-Gert Pottering for a meeting to discuss issues concerning Hindus and promote interfaith dialogue. Zed, who is president of Universal Society of Hinduism, will meet President Pottering in his Brussels office on December 10.

This will be the first formal visit of a Hindu religious leader to EP during the current European Year of Intercultural Dialogue (EYID). Other world religious leaders who visited EP as part of EYID include Orthodox Patriarch Bartholomew, Grand Mufti of Syria and Rabbi Jonathan Sacks.

After exchanging views with the President, Zed will meet Deputy Head of President's Cabinet Ciril Stokelj for detailed discussion on various issues.

Zed, who became the first person to recite Hindu opening prayer in the United States' Senate in its 218-year history, is one of the panelists for 'On Faith', a prestigious interactive conversation on religion produced jointly by Newsweek and washingtonpost.com.

He has also set the record by reciting prayers in California, Arizona, Utah, New Mexico, and Nevada Senates, Arizona House of Representatives and Nevada Assembly.

Zed, Spiritual Advisor to the National Association of Interchurch and Interfaith Families, Director of Interfaith Relations of Nevada Clergy Association, is famous for his efforts in promoting interfaith talks.

Hindu nationalists protest documentary at Goa film festival

23 November 2008, PANAJI, India (AFP) — The International Film Festival of India was officially opened in the resort state of Goa Saturday but immediately ran into controversy with hardline Hindu nationalists.

The Sanatan Sanstha and Hindu Janajagruti Samiti (HJS) movements protested against the scheduled screening of M.F. Husain's 1960s documentary "Through the Eyes of a Painter," which was shown at the Berlin Film Festival and won a Golden Bear award.

India's Ministry of Information and Broadcasting has organised the screening for November 25.

Senior HJS member Sushant Dalvi said: "There are 1,250 police complaints filed against Husain in India. It is not right for the government organisations to make his film a part of such a prestigious festival."

Dalvi added that a formal complaint was being submitted to the festival director and Goa's chief minister.

Maqbool Fida Husain, 93, is one of India's best-known artists and has even been referred to as the country's Picasso.

But he became embroiled in controversy in the mid-1990s over his paintings of nude Hindu deities that led to court cases, attacks on his house and death threats.

A Ministry of Information and Broadcasting official rejected the complaints.

"The documentary has nothing to do with insulting any religion. It was produced long back and is selected because it is a good documentary," he said.

The festival runs until December 2.

मलेशिया में योग के ख़िलाफ़ फ़तवा

बीबीसी, 22 नवंबर, २००८,मलेशिया में इस्लामिक धर्माधिकारियों ने एक फ़तवा जारी करके लोगों को योग करने से रोक दिया गया है क्योंकि उनको डर है कि इससे मुसलमान 'भ्रष्ट' हो सकते हैं.
धर्माधिकारियों का कहना है कि योग की जड़ें हिंदू धर्म में होने के कारण वे ऐसा मानते हैं.
यह फ़तवा मलेशिया की दो तिहाई लोगों पर लागू होगा जो इस्लाम को मानते हैं और उनकी कुल आबादी कोई दो करोड़ 70 लाख है.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार मलेशिया को आमतौर पर बहुजातीय समाज माना जाता है जहाँ आबादी का 25 प्रतिशत चीनी हैं और आठ प्रतिशत हिंदू हैं.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार इस आदेश को मलेशिया में बढ़ती रूढ़िवादिता की तरह देखा जा रहा है.
खेल की तरह
ज़्यादातर लोगों के लिए योग एक तरह का खेल है जिससे आप अपने तनाव को कम कर सकते हैं और दिन की शुरुआत कर सकते हैं.
लेकिन इस प्राचीन व्यायाम योग की जड़ें हिंदू धर्म में हैं और मलेशिया की नेशनल फ़तवा काउंसिल ने कहा है कि मुसलमानों को योग नहीं करना चाहिए.
काउंसिल के प्रमुख अब्दुल शूकर हुसिन का कहना है कि प्रार्थना गाना और पूजा जैसी चीज़ें 'मुसलमानों के विश्वास' को डिगा सकती हैं.
हालांकि लोगों के लिए योग न करने के इस आदेश को मानने की बाध्यता नहीं है और काउंसिल के पास इसे लागू करवाने के अधिकार भी नहीं हैं लेकिन बड़ी संख्या में मुसलमान फ़तवे को मानते हैं.
इस निर्णय से पहले मलेशिया की योग सोसायटी ने कहा था कि योग केवल एक खेल है और यह किसी भी धर्म के आड़े नहीं आता है.
योग की शिक्षिका सुलैहा मेरिकन ख़ुद मुसलमान हैं और वे इस बात से इनकार करती हैं कि योग में हिंदू धर्म के तत्व हैं.
समाचार एजेंसी एपी से उन्होंने कहा, "हम प्रार्थना नहीं करते और ध्यान भी नहीं करते."
उनके पिता और दादा भी योग के शिक्षक रह चुके हैं. उनका कहना था, "योग एक महान स्वास्थ्य विज्ञान है. इसे वैज्ञानिक रुप से साबित भी किया जा चुका है और इसे कई देशों ने इसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की तरह स्वीकार भी किया है."
बीबीसी के कुआलालंपुर संवाददाता रॉबिन ब्रांट का कहना है कि हालांकि योग की कक्षाओं में ज़्यादातर चीनी और हिंदू ही नज़र आते हैं लेकिन बड़े शहरों में मुसलमान महिलाओं का योग की कक्षाओं में दिखाई देना आम बात है.

Wednesday, November 19, 2008

पैंतीस किलो गौमांस समेत तस्कर पकड़ा, एक फरार

दैनिक जागरण, १७ नवम्बर, २००८, अमरोहा (ज्योतिबाफूलेनगर) : पुलिस ने दबिश देकर पैंतीस किलो गौ मांस के साथ तस्कर को रंगे हाथों धर दबोच लिया जबकि एक आरोपी दीवार कूदकर फरार हो गया। पुलिस को मौके से गाय की खाल, कई कटे हुए अंग एवं छुरी भी मिली है।

रविवार की शाम पांच बजे देहात थाने की पुलिस को सूचना मिली कि गांव कांकर सराए के रहने वाले शहनवाज उर्फ शानू कुरैशी पुत्र शफीक अपने घर में ही गौकशी कर मांस बेच रहा है। इस पर एसओ गणेश दत्त जोशी मय पुलिस बल के मौके पर पहुंच गए। दबिश देकर नगर के मुहल्ला दानिश मंदान निवासी मोहम्मद अफजाल पुत्र अली हुसैन को गाय के मांस समेत गिरफ्तार कर लिया। इस दौरान शाहनवाज मौके से दीवार फांदकर भागने में सफल हो गया। पुलिस ने पीछा भी किया लेकिन वह जंगल में गुम हो गया। मौके से पुलिस को 35 किलो गाय का मांस, एक गाय की खाल, अंग, तराजू, छुरी व बोरा आदि सामान बरामद कर लिया।

एसओ श्री जोशी ने बताया कि आरोपी से पूछताछ में गौमांस के अन्य तस्करों से जुड़ी अहम जानकारियां मिली हैं, जिस पर टीम को लगा दिया गया है। मामले की दो तस्करों के खिलाफ गौवध अधिनियम के तहत मुकदमा पंजीकृत कर लिया है। फरार अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी जा रही है।

21 पशु बरामद, दो दबोचे गए

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, सैयदराजा (चंदौली) । वध के लिए पैदल बंगाल में आपूर्ति को ले जाये जा रहे 21 पशुओं को स्थानीय पुलिस ने फेसुड़ा नहर के समीप से बरामद किया और दो तस्करों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। घटना सोमवार की मध्यरात्रि की बतायी जाती है।

जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष रामसागर को मुखबिर से सूचना मिली कि दो तस्करों द्वारा 21 मवेशियों को वध हेतु पैदल ही फेसुड़ा, जेवरियाबाद व कन्दवा थाना क्षेत्र की पगडंडियों के रास्ते बंगाल ले जाया जा रहा है। सूचना मिलते ही थानाध्यक्ष उपनिरीक्षक महानंद पाण्डेय व रमाशंकर यादव के अलावा सहयोगी पुलिस कर्मियों के साथ मार्ग की नाकेबंदी कर पशुओं समेत तस्करों के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर के बाद मय पशु तस्कर आते दिखायी दिये जो पुलिस को देखते ही पशुओं को छोड़ भागने लगे। पुलिस ने दौड़ा कर दोनों तस्करों को धर दबोचा और पशुओं को बरामद कर थाने पर ले आयी। बरामद पशुओं में 18 बैल एवं तीन गाय शामिल हैं। पुलिस ने गिरफ्तार तस्करों को गो-वध अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने के बाद हवालात में डाल दिया। उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में इन दिनों तस्करों द्वारा मोबाइल से पुलिस की गतिविधियों का लोकेशन लेकर देर रात्रि या भोर में पैदल पशुओं को नदी के रास्ते बिहार ले जाये जाने का सिलसिला जारी है।

हिंदुओं को जगाने निकली जन जागरण यात्रा

दैनिक जागरण १८ नवम्बर २००८चित्रकूट। हर हर महादेव, भारत मां की जय के उद्घोष के साथ मंदाकिनी का पूजन कर साधुओं का एक जत्था यहां से कूच कर गया। धर्मनगरी के साधु संतो की अगुआई में यहां से प्रारंभ की गई राष्ट्र रक्षा जन जागरण यात्रा का नेतृत्व विहिप के प्रांत संगठन मंत्री अम्बिका प्रसाद कर रहे हैं। यहां से निकली यात्रा बुंदेलखंड का भ्रमण कर हिंदू अस्मिता पर हो रहे प्रहार व संतों को आतंकवादी करार दिये जाने की सच्चाई को आम लोगों को बताने का काम करेगी।

मंगलवार को यात्रा का शुभारंभ रामघाट पर भरत मंदिर के महंत दिव्य जीवन दास की अगुवाई में शास्त्रोक्त विधि से वैदिक रीति से मां मंदाकिनी का पूजन अर्चन किया। सबसे पहले दूध की धार से अभिषेक किया और फिर पूजन कर आरती करने के बाद यात्रा को रवाना कर दिया गया। विहिप के प्रांत संगठन मंत्री ने बताया कि हिंदू विरोधी केंद्र सरकार के कार्यों का काला चिट्ठा लोगों के सामने खोलने के लिए इस जनजागरण यात्रा की शुरुआत की गई है। उन्होंने बताया कानपुर प्रांत के अंतर्गत आज ही ब्रह्मावर्त से भी एक यात्रा शुरू की गई है। बताया कि यह यात्रा यहां से शुरू होकर आज ही अतर्रा, बांदा, कबरई होते हुये महोबा में रात्रि विश्राम करेगी। बुधवार को कबरई, खन्ना, मौदहा, भरुवासुमेरपुर होते हुये हमीरपुर में विश्राम करेगी। गुरुवार को राठ, उरई में विश्राम शुक्रवार को मोठ, पारीक्षा, चिरगांव व झांसी में विश्राम शनिवार को बबीना, तालबेहट, वासी होते हुये ललितपुर में समापन होगा। यात्रा के आरंभ में प्रांत संगठन मंत्री बजरंग दल वीरेन्द्र पांडेय, विभाग संगठन मंत्री रमेश चंद्र त्रिपाठी, जिला संगठन मंत्री छत्रपाल सिंह, जिला गौ रक्षा प्रमुख विकास मिश्र के अलावा दर्जनों साधू और छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। यात्रा अपना पहला पड़ाव कर्वी के बाद शिवरामपुर, भरतकूप होते हुये बांदा जिले में प्रवेश कर गई। रास्ते में जगह-जगह हैंडबिलों के माध्यम से हिंदू चेतना का काम भी किया गया। इसके अलावा लाउडस्पीकर से भी यह काम किया जा रहा था।

Tuesday, November 18, 2008

खुद की बर्बादी का जश्न

मालेगांव बम कांड पर पक्ष एवं विपक्ष, दोनों के रवैये को अनुचित करार दे रहे हैं राजीव सचान

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर, २००८। मालेगांव बम धमाकों की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गई है। महाराष्ट्र सरकार का आतंकवाद विरोधी दस्ता यानी बहुचर्चित एटीएस जैसे-जैसे अपनी जांच आगे बढ़ा रही है और इस संदर्भ में किस्म-किस्म के जो प्रत्याशित-अप्रत्याशित दावे कर रही है उस पर सवाल उठाने का सिलसिला भी गति पकड़ता जा रहा है। तमाम राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक हिंदू संगठन एटीएस की जांच-पड़ताल को दुर्भावना भरी बता रहे हैं। अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि एटीएस जो कुछ कर रही है उसके पीछे कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता और महाराष्ट्र सरकार का हाथ है। एटीएस की जांच कार्यवाही को संत समाज और सैन्य बलों के उत्पीड़न के रूप में भी परिभाषित किया जा रहा है तथा पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक करने की मांग हो रही है। कुल मिलाकर माहौल कुछ वैसा ही है जैसा दिल्ली के जामिया नगर में मुठभेड़ के बाद था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब दिल्ली पुलिस निशाने पर थी और निशाना लगाने वाली थी कथित सेक्युलर जमात। इस जमात में कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवी और धर्मगुरू भी थे। ये सभी दिल्ली पुलिस के दावों पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे-अभी भी नहीं हैं। इस जमात की ओर से दिल्ली पुलिस को बदनाम करने के लिए चलाए गए अभियान से ऐसा माहौल बना कि अनेक कांग्रेसी नेता भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से यह मांग करने लगे कि जामिया नगर मुठभेड़ की न्यायिक जांच हो। इससे इनकार नहीं कि महाराष्ट्र एटीएस की जांच के तौर-तरीके और उसके कुछ कथित सबूत संदेह पैदा करने वाले हैं, लेकिन यह तो अदालत को तय करना है कि प्रज्ञा सिंह और उसके नौ साथियों पर एटीएस द्वारा लगाए गए सबूत सही हैं या नहीं? विडंबना यह है कि जो कार्य अदालत को करना है उसे कुछ हिंदू नेता और धर्माचार्य करने की जिद कर रहे हैं। इन्हें अपना संदेह प्रकट करने का अधिकार तो है, लेकिन यदि आरोपों के कठघरे में खड़े लोगों का बचाव इस आधार पर किया जाएगा कि हिंदू आतंकी हो ही नहीं सकते तो फिर मुश्किल होगी। यह सही है कि हिंदुओं के आतंक के रास्ते पर चलने का कोई औचित्य नहीं, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक अथवा व्यक्तिगत कारणों से पथभ्रष्ट होकर कोई भी गलत राह पर चल सकता है। इस संदर्भ में यह ध्यान रहे कि जो भी आतंक के रास्ते पर चलते हैं वे स्वयं को आतंकी मानने से इनकार करते हैं। नि:संदेह इसका यह मतलब नहीं कि मुंबई एटीएस जो कुछ कह रही है वह सब सही है और उसके दावे संदेह से परे हैं। सच तो यह है कि उसके अनेक दावे हास्यास्पद हैं, जैसे यह कि एक गवाह ने मालेगांव में विस्फोट की साजिश के संदर्भ में फोन पर हो रही बातचीतसुनी है। क्या ऐसा संभव है कि फोन पर दोनों ओर से हो रही बातचीत को सुना जा सके? एटीएस के तमाम संदेहास्पद दावों के बावजूद उचित यही है कि जांच पूरी होने का इंतजार किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पुलिस के लिए काम करना कठिन हो जाएगा। कम से कम आतंकवाद से लड़ना तो उसके लिए दुरूह हो ही जाएगा। वह आतंकी घटनाओं में शामिल किसी भी समुदाय के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकेगी। कल को अन्य समुदायों के लोग भी अपने लोगों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने पर उसी तरह बचाव करेंगे, जैसे कल मुस्लिम संगठन कर रहे थे और आज हिंदू संगठन कर रहे हैं।यह मांग तो की जा सकती है और की भी जानी चाहिए कि पुलिस की जांच के तौर-तरीके बदलें, क्योंकि अनेक बार वह अपने ही दावों का खंडन कर देती है अथवा उसके द्वारा जुटाए गए सबूत अदालतों के समक्ष ठहर नहीं पाते, लेकिन यदि उस पर अविश्वास किया जाएगा तो फिर आतंकवाद से लड़ना और कठिन होगा। एक ऐसे समय जब स्वयं भारत सरकार आतंकवाद से लड़ने के प्रति अनिच्छुक है तब आतंकी घटनाओं की जांच के सिलसिले में पुलिस को कठघरे में खड़ा करने से ऐसी भी नौबत आ सकती है कि वह संदेह के आधार पर किसी से पूछताछ करना ही बंद कर दे। सैद्धांतिक रूप से किसी एक के किए की सजा पूरे समुदाय को नहीं दी जा सकती, लेकिन जब समुदाय विशेष के हितों के बहाने आतंकवाद की राह पर चला जाएगा तो उस समुदाय का नाम अपने आप आतंकवाद के साथ नत्थी हो जाएगा। जाने-अनजाने दुनिया भर में ऐसा ही हो रहा है। यदि खालिस्तानी संगठनों के आतकंवाद को सिख आतंकवाद कहा गया तो लिट्टे के आतंकवाद को तमिल आतंकवाद। यदि कोई गूगल पर हिंदू आतंकवाद लिखे तो उसे लाखों संदर्भ मिल जाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि प्रज्ञा सिंह और उसके साथियों की गिरफ्तारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा जैसे संगठन असहज हैं, लेकिन जरा गौर कीजिए कि खुश कौन है? यह है कांग्रेस और उसके जैसे खुद को सेक्युलर बताने वाले दल। उन्हें लग रहा है कि अब भाजपा को कठघरे में खड़ा करने में और आसानी हो जाएगी, लेकिन क्या यह खुश होने की बात है कि हिंदू युवक आतंकवाद के रास्ते पर चल निकले हैं? यह तो अपने घर में आग लगने पर हाथ तापने जैसी बेवकूफी हुई। क्या इससे अधिक चिंताजनक और कुछ हो सकता है कि बहुसंख्यक समाज आतंकवाद का वरण करता दिखे? यह तो ऐसा मामला है जिस पर प्रधानमंत्री को हफ्तों नींद नहींआनी चाहिए। यदि हिंदू संगठन आतंक के रास्ते पर चल निकले हैं तो इसका अर्थ है कि घर को उसके ही चिराग से आग लग गई है। जब देश के राजनीतिक नेतृत्व को यह देखना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ तब वह राजनीतिक लाभ बटोरने की फिराक में है। क्या किसी ने कथित सेक्युलर जमात के किसी नेता का ऐसा कोई बयान पढ़ा-सुना है जिसमें हिंदू युवकों के आतंकी बनने पर चिंता जताई गई हो? उनके बयानों से यदि कुछ झलकता है तो उत्साह, विश्वास और इस बात का संतोष कि वे जो कुछ कहते थे वह सही साबित हो रहा है। शायद इसे ही कहते हैं खुद की बर्बादी का जश्न मनाना। हैरत यह है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी इस जश्न में शामिल दिख रही है। क्या कोई समझेगा कि आज प्रश्न यह नहींहै कि कांग्रेस और भाजपा का क्या होगा, बल्कि यह है कि देश का क्या होगा?

एटीएस ने दीं साध्वी प्रज्ञा को यातनाएं

दैनिक जागरण, १८ नवम्बर २००८, नासिक : मालेगांव धमाका मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने आरोप लगाया है कि एटीएस साध्वी को यातनाएं दे रही है। अदालत ने सोमवार को साध्वी और सात अन्य आरोपियों की न्यायिक हिरासत 29 नवंबर तक बढ़ा दी। नासिक की जिला व सत्र अदालत ने आरोपियों से पूछताछ की गुजरात पुलिस की अपील खारिज कर दी। महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मामले के आठों आरोपियों की न्यायिक हिरासत बढ़ाने के लिए उन्हें नासिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया। साध्वी के वकील गणे सवानी ने अदालत में याचिका दाखिल कर कहा कि एटीएस ने हाल ही में साध्वी को शारीरिक यातनाएं दीं। वकील ने यह भी कहा कि साध्वी के साथ दु‌र्व्यवहार हो रहा है। अतिरिक्त मजिस्ट्रेट एच. के. गणत्र की अदालत इस दौरान खचाखच भरी थी। एटीएस ने आगे पूछताछ के लिए आरोपियों की रिमांड बढ़ाने की अपील की। एटीएस के विशेष वकील अजय मिसर ने दलील दी कि विस्फोट मामले की जांच अभी जारी है, ऐसे में आरोपियों की न्यायिक हिरासत बढ़नी चाहिए। उनकी दलीलें सुनने के बाद न्यायाधीश ने साध्वी समेत सभी आरोपियों को 29 नवंबर तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इस बीच गुजरात पुलिस द्वारा दस में से नौ आरोपियों से पूछताछ के लिए दायर याचिका अदालत ने आज खारिज कर दी। अदालत में इस याचिका पर सुनवाई के दौरान गुजरात पुलिस के उपाधीक्षक के. के. मैसूरवाला मौजूद थे। पेशी के दौरान साध्वी प्रज्ञा ने अदालत से अपने वकीलों की ओर से दिए गए वक्तव्य का हिंदी अनुवाद उपलब्ध कराने को कहा। प्रज्ञा ने कहा कि अंग्रेजी में होने के कारण वह इसे समझ नहीं सकती। साध्वी ने अदालत में कहा, मुझे मालूम नहीं मेरा कसूर क्या है? इस मामले में एक अन्य आरोपी पूर्व सैन्य अधिकारी रमेश उपाध्याय ने अदालत को बताया कि उसे कानूनी मदद मांगने के लिए पुणे में अपने परिजनों को पत्र नहीं भेजने दिए गए। उपाध्याय ने आरोप लगाया कि उसे अपने परिवार से बात नहीं करने दी जा रही, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। उसने एटीएस पर जेल नियमों के तहत मिलने वाली सुविधाएं नहीं दिए जाने का भी आरोप लगाया। इससे पहले साध्वी, अभिनव भारत के सदस्य समीर कुलकर्णी और पूर्व सैन्य अधिकारी रमेश उपाध्याय को अन्य आरोपियों के साथ कड़ी सुरक्षा में अदालत लाया गया। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि साध्वी ने 29 सितंबर को मालेगांव धमाके के बाद मुख्य आरोपी रामजी से लंबी बातचीत की थी। अभियोजन पक्ष के वकील ने कहा कि साध्वी ने रामजी से पूछा कि पुलिस ने धमाके में इस्तेमाल हुई उसकी मोटरसाइकिल जब्त तो नहीं कर ली है और धमाके में इतने कम लोग क्यों मरे? साध्वी की पेशी के दौरान अदालत के बाहर शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू एकता आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी और प्रदर्शन किया।

Saturday, November 15, 2008

अब मधुशाला पर फतवा

दैनिक जागरण, १५ नवम्बर, २००८, लखनऊ: शहर काजी मौलाना अबुल इरफान मियां ने साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन की कृति मधुशाला की कुछ पंक्तियों पर ऐतराज जताकर फतवा जारी किया है। वहीं राजधानी के एक शायर ने इस कदम को गैर जरूरी करार दिया है। शहर काजी मौलाना अबुल इरफान मियां फिरंगी महली ने शुक्रवार को एक विज्ञप्ति के जरिए जानकारी दी कि मधुशाला में लिखी कुछ पंक्तियां इस्लाम की दृष्टि से निहायत गलत हैं। साथ ही धर्म के अनुकूल नहीं हैं। उन्हें इस बात की जानकारी एक पाठक द्वारा दी गई थी। इसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया। उधर शायर खुशबीर सिंह शाद ने कहा है कि शायरों और साहित्यकारों की अपनी अलग पहचान है। वे किसी खास मजहब को तहजीब नहीं देते हैं, बल्कि उनका नाता सर्वसमाज से होता है। उन्होंने कहा कि कबीर और मशहूर शायर असदउल्ला खां गालिब ने भी इस प्रकार की रचनाएं लिखी हैं। ऐसे में इतने दिनों बाद इस प्रकार की आपत्तियां उठाना बेमानी है।

तसलीमा पर फिर भारत छोड़ने का दबाव

दैनिक जागरण, १५ नवम्बर २००८, नई दिल्ली: बांग्लादेश की निर्वासित एवं विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन पर फिर भारत छोड़कर जाने का दबाव पड़ रहा है। इस साल 8 अगस्त को भारत लौटीं तसलीमा ने कहा कि सरकार के आदेश के मुताबिक 15 अक्टूबर तक उन्हें देश छोड़ देना था। तसलीमा ने ई-मेल के जरिए दिए एक इंटरव्यू में कहा, हां मुझ पर एक बार फिर भारत छोड़कर जाने का दबाव पड़ रहा है। सरकार ने मुझे छह महीने का निवास परमिट दिया था, इसमें गुप्त शर्त थी कि मुझे कुछ दिनों के भीतर इस देश को फिर छोड़ना होगा। अपनी विवादित किताब लज्जा के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर रही तसलीमा ने बताया कि वह इन दिनों यूरोप में किसी जगह हैं और व्याख्यान देने में व्यस्त हैं। डाक्टर से लेखिका बनी तसलीमा को सात महीने पहले भी कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते भारत छोड़कर जाना पड़ा था। विवादास्पद किताब लिखने की वजह से 1994 में बांग्लादेश से निकाले जाने के बाद तसलीमा ने अधिकांश समय कोलकाता में बिताया। तसलीमा ने कहा, मेरे लिए बांग्लादेश के दरवाजे बंद हो चुके हैं। लिहाजा मेरी नजर में अब भारत में कोलकाता ही मेरा घर है। यदि मुझे वहां लौटने की इजाजत नहीं मिली तो मेरी जिंदगी फिर खानाबदोश सरीखी हो जाएगी।