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Thursday, August 30, 2012

भारतीय हज यात्रियों को मिलेगा सऊदी का सिम

भारतीय हज यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है। सऊदी अरब में घरवालों से फोन पर बात करने के लिए अब उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। यहां की सऊदी टेलीकॉम कंपनी भारतीयों को सिम कार्ड देगी। यह पहली बार है जब लोगों को यात्रा शुरू करने से पहले नाम मात्र के खर्च पर यह सुविधा मिलेगी।
http://www.amarujala.com/international/Gulf%20Country/saudi-sim-cards-for-indian-haj-pilgrims-13287-7.html

Wednesday, August 22, 2012

रोजगार योजनाओं में अब अल्पसंख्यकों को आरक्षण

वाराणसी : डेढ़ दशक से अधिक समय से संचालित स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) में अल्पसंख्यकों के लिए 15 प्रतिशत फंड आरक्षित किया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा कुछ दिनों पूर्व प्रारंभ महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में भी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के प्रावधान किए गए हैं।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9585294.html

कट्टरता का पोषण


अधिकारिक तौर पर उन्हें अफवाहों का सौदागर, शरारती तत्व और राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है। उन्हें यह सब कहें या फिर इससे भी अधिक किंतु कटु सच्चाई यह है कि भारत को इस तथ्य का सामना करना होगा कि ये दुष्ट लोग बड़े जोशोखरोश से अपने अभियान की सफलता का जश्न मना रहे हैं। जरा इन तथ्यों पर गौर फरमाएं। 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान पर 50,000 लोगों की भीड़ जमा होती है और वह फसाद शुरू कर देती है। वाहन जला दिए जाते हैं, महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ होती है, दुकानों के शीशे तोड़ दिए जाते हैं और यहां तक कि अमर जवान ज्योति का अनादर किया जाता है। यह सब असम और म्यांमार में मुसलमानों के उत्पीड़न से उपजे रोष में किया गया। भयाक्रांत करने वाली घटनाओं के दो दिनों के भीतर बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई आदि शहरों में रहने वाले उत्तरपूर्व के लोगों के मोबाइल पर डरावना एसएमएस आया कि 20 अगस्त तक शहर छोड़ दें या फिर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। पिछले रविवार की शाम को उत्तरपूर्व के लोगों ने बड़े पैमाने पर कूच शुरू कर दिया। करीब 25,000 लोगों ने छोटे झोलों में सामान भरा और अपना घर, पढ़ाई, कामकाज छोड़कर गुवाहाटी के लिए सबसे पहली उपलब्ध ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े। यहां तक कि सरकार, संसद और प्रबुद्ध नागरिकों ने इन घबराए हुए नागरिकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है, किंतु मुंबई के आजाद मैदान में भीड़ द्वारा कारें फूंकने, दुकानों की खिड़कियां तोड़ने की घटनाओं और 17 अगस्त को लखनऊ, इलाहाबाद में हुए उग्र प्रदर्शनों ने इस प्रयास पर पानी फेर दिया। एक अंग्रेजी अखबार की वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार लखनऊ में पचास से अधिक लोगों ने गौतम बुद्ध पार्क पर हमला बोल दिया और बुद्ध की एक मूर्ति को खंडित कर दिया। इस दौरान उन्होंने फोटोग्राफ भी खिंचवाए। वे भी असम और म्यांमार की घटनाओं का विरोध कर रहे थे। केवल नौ दिनों के भीतर इन शरारती तत्वों और राष्ट्रविरोधी लोगों ने तीन निश्चित लक्ष्यों को पूरा कर लिया। पहला यह कि उन्होंने बड़े सुस्पष्ट ढंग से यह जता दिया कि बात जब मुसलमानों की होती है, भूगोल के बजाय समुदाय की अहमियत होती है। उन्होंने भाजपा और बहुत से असमियों के दावे की खिल्ली उड़ाई कि कोकराझाड़ में दंगे भारतीय और विदेशियों के बीच हुए थे। उन्होंने पूरे भारत के सामने अकड़ दिखाते हुए जताया कि उनकी पहचान पूरी तरह बाहरियों और विदेशियों के साथ जुड़ी है। साथ ही उन्होंने प्रदर्शित किया कि जब मुस्लिम हितों की बात आती है तो राष्ट्रीय सीमाएं बेमानी हो जाती हैं। अतीत में तुर्की के खलीफा भी भारत में मुद्दा बन गए थे। हाल ही में, फिलीस्तीन पीड़ित के प्रतीक के रूप में उभरा था। अब म्यांमार में रोहिंग्याओं को गले लगाने के लिए रोष अपनी हदें पार कर चुका है। शरारती तत्वों ने दूसरा लक्ष्य यह साधा कि उन्होंने भारत की भावनात्मक एकता पर जबरदस्त आघात कर दिया। कुछ समय से भारत के शहरों में उत्तरपूर्व के लोगों, खासतौर पर महिलाओं को प्रताड़ना झेलनी पड़ी है। उत्तरपूर्व के लोगों की वाजिब शिकायत है कि मुख्यभूमि में उन्हें लोगों की अवमानना का शिकार होना पड़ता है। जैसे ही शांत आतंक के शिकार असम और उत्तरपूर्व के अपने ठिकानों पर पहुंचेंगे और अपने-अपने हालात बयान करेंगे, उनमें अलगाव की भावना और प्रबल होगी। आने वाले समय में यह याद नहीं रहेगा कि स्थानीय पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी समूहों ने उत्तारपूर्व के लोगों का विश्वास जीतने का पुरजोर प्रयास किया, बल्कि इतिहास में दर्ज होगा कि भारत की मुख्यधारा इन लोगों के लिए असुरक्षित हो गई है, कि जातीय और क्षेत्रीय आग्रहों के कारण वे निशाने पर आ गए हैं, कि उनका भारत के साथ कोई संबंध नहीं है। जो 25,000 या इसके करीब लोग भयभीत होकर अपने घर लौटे हैं उन्हें भावनात्मक सदमे से उबरने में लंबा समय लगेगा। जिनकी याददास्त अच्छी है, वे जानते हैं कि 1982 के एशियाड में सिखों के साथ हुए व्यवहार की टीस अभी तक उनके मन-मस्तिष्क से निकली नहीं है। विषाद को कटुता में बदलने से रोकने के लिए तुरंत ऐसे कदम उठाए जाने जरूरी हैं, जो सुनिश्चित कर सकें कि जिन लोगों ने गुवाहाटी की ट्रेन पकड़ी है, वे अपने कार्यस्थल पर जल्द से जल्द वापस लौट आएं। राष्ट्रद्रोहियों का अंतिम मकसद था सरकार और राजनीतिक वर्ग को हताश और कमजोर कर देना। पिछले दस दिनों में जो कुछ हुआ उस पर प्रतिक्रिया जताने में अतिसंवेदनशीलता का भद्दा प्रदर्शन किया गया। खबर है कि मुंबई पुलिस कमिश्नर ने अधिक गिरफ्तारियों के खिलाफ चेतावनी जारी की थी, एक मुख्यमंत्री ने विदेश मंत्रालय पर दबाव डाला था कि म्यांमार के राजदूत को बुलाकर औपचारिक विरोध दर्ज कराएं और अल्पसंख्यक कमीशन ने असम में अवैध घुसपैठ की घटनाओं को लेकर नकार की मुद्रा अपना ली थी। राजनीतिक रूप से कांग्रेस बुरी तरह फंस गई है। उसे डर है कि दंगाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के खतरनाक चुनावी नतीजे होंगे। यहां तक कि चौथा स्तंभ, जो निर्भीकता के साथ अन्याय को उजागर करता रहा है, ने भी अपने कदम वापस खींच लिए। इसका आंशिक कारण तो समझ में आने वाला है कि पूरा सच उजागर करने का मतलब है भय और हताशा का वातावरण बनाना। हालांकि शरारती तत्व सच्चे दिल की इस मजबूरी से यही निहितार्थ तलाशेंगे कि उनके बाहुबल और निर्वाचन शक्ति के सामने सत्ता प्रतिष्ठान झुक गया है। इन घटनाओं के बाद अब शरारती तत्वों के हौसले बुलंद हो गए हैं। उन्होंने अपने पंजे पैने कर लिए हैं और यह जान गए हैं कि इनमें कितनी ताकत है। इन घटनाओं ने मुस्लिम समुदाय में भी उग्रवादियों का असर बढ़ा दिया है। उग्रवादियों ने दिखा दिया है कि उनमें अपनी चलाने की क्षमता है। पिछले सप्ताह, संसद में असम पर होने वाली बहस के दौरान हैदराबाद के सासंद ने चेताया कि अगर मुसलमानों की शिकायतों को जल्द दूर नहीं किया गया तो कट्टरता की तीसरी लहर उठ सकती है। पिछले एक पखवाड़े की घटनाओं के बाद यह देखना होगा कि वह स्पष्ट रवैये की चेतावनी दे रहे थे या फिर उसके आगमन पर नगाड़ा बजा रहे थे।
[लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9585759.html

Sunday, August 12, 2012

वोट बैंक की राजनीति से रंगा है असम


नई दिल्ली, [सुमन अग्रवाल]। देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में लगभग एक माह से जारी हिंसा ने अब तक 78 लोगों की जान ले ली हैं और लाखों को बेघर कर दिया है। असम में जल रही यह आग उस विनाश की ओर इशारा कर रही है जो अभी तो सिर्फ असम को जला रही है, लेकिन आने वाले दिनों में यह आग कई और राज्यों तक फैलने की उम्मीद है। जहां एक तरफ हम देश का 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं असम के स्थानीय लोग अपने ही मूल अधिकारों से वंचित होकर अपने को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं।
असम में फैली हिंसा को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है, लेकिन हिंसा फैलने का कोई ठोस कारण अब तक सामने नहीं आ पा रहा है। सीबीआई भी हिंसा ग्रस्त इलाकों का दौरा कर चुकी है। लेकिन अब तक कोई कारण सामने नहीं आया है। लेकिन अब माना जा रहा कि इसके पीछे बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ सबसे बड़ा कारण है। इस वजह से असम के स्थानीय लोग अपने को अधिकारों से वंचित होता महसूस कर रहे हैं।
घुसपैठ एक बड़ा कारण
असम सरकार के मुताबिक असम के कोकराझाड़ व धुबड़ी जिलों में फैली यह हिंसा वहां के बोडो जनजाति व बांग्लादेश से लगातार हो रही घुसपैठ का नतीजा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि बाग्लादेशी घुसपैठिये एक व्यापक साजिश के तहत धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर उत्तर-पूर्व में अपनी तादाद बढ़ाते जा रहे हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम राजनीतिक गलियारे में इन्हें वोट बैंक के रूप में देख कर इनका इस्तेमाल करते हैं।
क्या कहते हैं सरकारी आंकडे़
भारत सरकार के बोर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बाग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाग्लादेश से गैर हिंदू घुसपैठियों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में 54 लाख, असम में 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं। वर्तमान आकलनों के अनुसार भारत में करीब तीन करोड़ से अधिक बाग्लादेशी गैर हिंदू घुसपैठिए हैं जिसमें से 50 लाख असम में हो सकते हैं।
हिंसाग्रस्त जिलों में असमान्य जनसंख्या
असम में जिन तीन जिलों में यह संघर्ष चल रहा है, अगर उन जिलों की जनगणना विश्लेषण पर एक नजर डाली जाए तो स्थिति अपने आप ही साफ हो जाएगी। सबसे पहले कोकराझाड़ जिले पर नजर डाले तो वर्ष 2001-2011 में यहां की जनसंख्या में 5.19 फीसद का इजाफा हुआ है। 2001 के जनगणना के अनुसार इस जिले में मुस्लिमों की संख्या बढकर लगभग 20 फीसद हो गई है। अगर हम असम मुस्लिम जनसख्या में वृद्धि दर को देखें तो बांग्लादेश से लगे जिलों में यह सबसे अधिक है जिसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ मुख्य कारण है। धुबड़ी जिला भी बांग्लादेश के सीमा से सटा हुआ है। 1971 में यहा मुस्लिम जनसंख्या 64.46 फीसद थी जो 1991 में बढकर 70.45 फीसद हो गई। 2001 के जनगणना के अनुसार जनसंख्या बढ़कर लगभग 75 फीसद हो गई। कमोबेश यही हाल 2004 में बने चिराग जिले का भी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह सब वही जिले है जहां पर असम में हिंसा की वारदातें हुई हैं। चिरांग और कोकराझाड़ हिंसा का सबसे ज्यादा प्रभावित जिला रहा है।
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक असम में पिछले तीस वर्षो में जनसंख्या में बेइंतहा वृद्धि देखने को मिली है। गौर करने वाली बात यह है कि यह वृद्धि असमान्य है। असम में 1971-1991 में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि का अनुपात 42.89 था, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में इससे 35 फीसद अधिक 77.42 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत संपूर्ण भारत में दोनों के बीच में अंतर 19.79 फीसद का रहा है। 1991-2001 में हिंदू जनसंख्या बढ़ोतरी दर 14.95 फीसद रही, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में यहा भी 14.35 फीसद अधिक, 29.3 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई थी।
1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42 फीसद थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढ़ कर 30.92 फीसद हो गई। मालूम हो कि बाग्लादेशी घुसपैठिए बड़े पैमाने पर असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, नागालैंड, दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक लगातार फैलते जा रहे हैं। जिनके कारण जनसंख्या का असंतुलन बढ़ा है। सबसे गंभीर स्थिति यह है कि बाग्लादेशी घुसपैठियों का इस्तेमाल आतंक की बेल के रूप में किया जा रहा है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई और कट्टरपंथियों के निर्देश पर बड़े पैमाने पर हुई बाग्लादेशी घुसपैठ का लक्ष्य ग्रेटर बाग्लादेश का निर्माण करना है। इसके साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए भी इनका प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए भारत के सामाजिक ढाचे का नुकसान व आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है।
वोटबैंक की राजनीति
असम में स्थानीय लोगों की जगह प्रवासियों का प्रभुत्व स्थापित हो रहा है और स्थानीय जन जाती अपने अधिकारों से वंचित होती नजर आ रही है। यहां जारी विरोध मुस्लमानों से नहीं है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते जब भी इस ओर कोई आवाज उठाई जाती है इसे साप्रदायिकता के रंग में रंग दिया जाता है। बाग्लादेशी घुसपैठ खुद भारतीय मुसलमानों के लिए ज्यादा नुकसान देह है। इनसे जनसंख्या में जो भारी असंतुलन हो रहा है उससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा जो सुविधाएं भारत सरकार भारत के अल्पसंख्यकों को देती है उसमें में भी वह धीरे-धीरे हिस्सेदार बनते जा रहे हैं।
इस बात से केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों ही भलीभांति अवगत हैं, लेकिन वोट बैंक व तुष्टीकरण के राजनीतिक कारणों की वजह से हमेशा से इन पर पर्दा ही डाला जाता है। हाल के असम संघर्ष ने इस साजिश का चेहरा सभी के सामने रख दिया है।
विपक्ष के निशाने सरकार
गौरतलब है कि मानसून सत्र में लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी ने असम हिंसा के मुद्दे पर चर्चा करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि प्रदेश सरकार के पास असम के प्रवासियों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं हैं। यही नहीं उन्होंने तो इस हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा करार देने की बात से भी इन्कार किया था। लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
असम हिंसा कहीं न कहीं हमारी आंतरिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। इस मामले में राजनीतिक इच्छा शक्ति को बढ़ाना होगा ताकि हम वोट बैंक की राजनीति व धर्म के दायरे से बाहर निकलकर देश की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द कोई फैसला ले पाएं।

http://www.jagran.com/news/national-votebank-politics-spreads-in-assam-9558682.html

Friday, August 10, 2012

अवैध मस्जिद ढहाना बस में नहीं: दिल्ली पुलिस

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। लाल किले के पास सुभाष पार्क में बने अवैध मस्जिद के ढांचे को ढहाने के मामले में दिल्ली पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कई मजबूरियां बताते हुए पुलिस ने मंगलवार को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद ढहाने के फैसले में संशोधन करने की अपील की है। पुलिस ने क्षेत्र के विधायक शोएब इकबाल द्वारा मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने की मांग की है। अदालत 17 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
http://www.jagran.com/news/national-not-able-to-demolish-illigal-mosque-9547590.html

Wednesday, August 1, 2012

'मोदी पर चिल्लाने वाले असम पर चुप क्यों'

गुजरात दंगों के लिए आए दिन नरेंद्र मोदी को निशाना बनाए जाने से खफा बीजेपी ने कहा है कि जो लोग दस साल पुराने मामले को लेकर मोदी पर हमला करते रहते हैं, वे असम में हुई हिंसा पर चुप क्यों हैं?
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15282343.cms

आग में झुलसता असम

पिछले दिनों की असम में हिंसक घटनाएं और आगजनी तथाकथित सेक्युलर दलों की कुत्सित राजनीति का परिणाम है। असम की वर्तमान हिंसा जातीय न होकर सीमा पार से आए मुस्लिम घुसपैठियों के हाथों स्थानीय जनजाति के लोगों की अपनी पहचान, सम्मान और संपत्ति की रक्षा का संघर्ष है। विगत 19 जुलाई से भड़की हिंसा में अब तक जहां 58 लोग अकाल मृत्यु के शिकार हुए वहीं करीब तीन लाख लोग अपने घरों से उजड़कर राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। इन शिविरों में खाने-पीने, सोने और दवा की व्यवस्था तक नहीं है। हिंसा के खौफ से गांव के गांव खाली हो गए। दंगाइयों ने इन गांवों के वीरान घरों और खेतों में लगी फसल को आग के हवाले कर दिया। मीडिया की खबरों के अनुसार सरकार को अंदेशा है कि दंगाइयों का अगला निशाना अब कोकराझाड़ के पड़ोसी जिले बन सकते हैं, इसलिए वह उन्हें खाली कराने पर विचार कर रही है। इस खबर में एक सेवानिवृत्त स्टेशन मास्टर बासुमतारी का उल्लेख है, जिसने बताया कि उन्होंने स्थानीय विधायक प्रदीप से रक्षा की गुहार लगाई तो उन्होंने पर्याप्त पुलिस बल नहीं होने की लाचारी दिखाई। गांव वालों के अनुसार टकराव की स्थिति तब बनी जब घुसपैठियों ने कोकराझाड़ के बेडलंगमारी के वनक्षेत्र में अतिक्त्रमण कर वहां ईदगाह होने का साइनबोर्ड लगा दिया। वन विभाग के अधिकारियों ने बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ मिलकर यह अतिक्त्रमण हटा दिया। इसके विरोध में ऑल बोडोलैंड माइनारिटी स्टूडेंट यूनियन ने कोकराझाड़ जिले में बंद का आ ान किया था। 6 जुलाई को अंथिपारा में अज्ञात हमलावरों ने एबीएमएसयू के दो सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी। 19 जुलाई को एमबीएसयू के पूर्व प्रमुख और उनके सहयोगी की हत्या हो गई। अगले दिन घुसपैठियों की भीड़ ने बीएलटी के चार सदस्यों की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी। इसके बाद ही बासुमतारी और अन्य गांव वाले हिंसा की आशंका में राहत शिविरों में चले गए। दूसरे दिन बांग्लादेशियों ने उनके घर और खेत जला दिए। कोकराझाड़, चिरांग, बंगाईगांव, धुबरी और ग्वालपाड़ा से स्थानीय बोडो आदिवासियों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिनके कारण न केवल असम के जनसांख्यिक स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है, बल्कि देश के कई अन्य भागों में भी बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। हुजी जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इन्हीं घुसपैठियों की मदद से चलने की खुफिया जानकारी होने के बावजूद कुछ सेक्युलर दल बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की थी कि ये अवैध घुसपैठिए राज्य में किंगमेकर बन गए हैं। असम को पाकिस्तान का अंग बनाने का सपना फखरुद्दीन अली अहमद ने देखा था। जनसांख्यिक स्वरूप में बदलाव लाने के लिए असम में पूर्वी बंगाली मुसलमानों की घुसपैठ 1937 से शुरू हुई। पश्चिम बंगाल से चलते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में अब इन अवैध घुसपैठियों के कारण एक स्पष्ट भूमि विकसित हो गई है, जो मुस्लिम बहुल है। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलमानों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हो गया। इस दशक में असम के अनेक इलाकों में मुसलमानों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह तेजी से बढ़ रही है। बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए वर्ष 1979 में असम में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। इसी कारण 1983 के चुनावों का बहिष्कार भी किया गया, क्योंकि बिना किसी पहचान के लाखों बांग्लादेशियों का नाम मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया था। चुनाव बहिष्कार के कारण केवल 10 प्रतिशत मतदान ही दर्ज हो सका। विडंबना यह है कि शुचिता की नसीहत देने वाली कांग्रेस पार्टी ने इसे ही पूर्ण जनादेश माना और राज्य में चुनी हुई सरकार का गठन कर लिया गया। यह अनुमान करना कठिन नहीं कि 10 प्रतिशत मतदान करने वाले इन्हीं अवैध घुसपैठिओं के संरक्षण के लिए कांग्रेस सरकार ने जो कानून बनाया वह असम के बहुलतावादी स्वरूप के लिए अब नासूर बन चुका है। 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस द्वारा 1983 में लागू किए गए अवैध आव्रजन अधिनियम को निरस्त कर अवैध बांग्लादेशियों को राज्य से निकाल बाहर करने का आदेश पारित किया था, किंतु कांग्रेसी सरकार इस कानून को लागू रखने पर आमादा है। इस अधिनियम में अवैध घुसपैठिया उसे माना गया जो 25 दिसंबर, 1971 (बांग्लादेश के सृजन की तिथि) को या उसके बाद भारत आया हो। इससे स्वत: उन लाखों मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता मिल गई जो पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। तब से सेक्युलरवाद की आड़ में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ जारी है और उन्हें देश से बाहर निकालने की राष्ट्रवादी मांग को फौरन सांप्रदायिक रंग देने की कुत्सित राजनीति भी अपने चरम पर है। बोडो आदिवासियों के साथ हिंसा एक सुनियोजित साजिश है। जिस तरह कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाया गया, हिंदू बोडो आदिवासियों के साथ भी पिछले कुछ सालों से इस्लामी जिहादी यही प्रयोग कर रहे हैं। 2008 में भी पांच सौ से अधिक बोडो आदिवासियों के घर जलाए गए थे, करीब सौ लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए थे। तब असम के उदलगिरी जिले के सोनारीपाड़ा और बाखलपुरा गांवों में बोडो आदिवासियों के घरों को जलाने के बाद बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा पाकिस्तानी झंडे लहराए गए थे। इससे पूर्व कोकराझाड़ जिले के भंडारचारा गांव में अलगाववादियों ने स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगे की जगह काला झंडा लहराने की कोशिश की थी। सेक्युलर मीडिया और राजनीतिक दल वर्तमान हिंसा को जातीय संघर्ष के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कटु सत्य यह है कि यह हिंसा जिहादी इस्लाम से प्रेरित है, जिसमें गैर मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है। बोडो आदिवासी पहले मेघालय की सीमा से सटे ग्वालपाड़ा और कामरूप जिले तक फैले थे। अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की भारी बसावट के कारण वे तेजी से सिमटते गए। अब तो संकट उनकी पहचान और अस्तित्व बचाए रखने का है। दूसरी ओर इस्लामी चरमपंथी इस बात पर तुले हैं कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के इलाके के जिन गांवों में बोडो समुदाय की आबादी आधी से कम है उन्हें बीटीसी से बाहर किया जाए। सच यह है कि असम के जिन क्षेत्रों में मुस्लिम धर्मावलंबी बहुमत प्राप्त कर चुके हैं वहां से इस्लामी कट्टरपंथी अब गैर मुस्लिमों को पलायन के लिए विवश कर रहे हैं। [लेखक: बलबीर पुंज, राज्यसभा सदस्य हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-9523930.html

असम सरकार को जिम्मेदार मान रहीं सुरक्षा एजेंसियां

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भले ही कोकराझाड़ में ताजा जातीय दंगों के लिए केंद्रीय बलों के समय पर नहीं पहुंचने को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसके लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार मान रही हैं।
http://www.jagran.com/news/national-assam-government-responsible-for-riots-9519104.html

Saturday, July 28, 2012

बीजेपी ने लगाया केन्द्र पर बोडो समुदाय से भेदभाव का आरोप

पटना।। बीजेपी ने केंद्र सरकार पर बोडो समुदाय के साथ लगातार भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए पूरे देश से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकाले जाने और बोडो समुदाय के सुरक्षा की गारंटी की आवश्यकता जताई है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15207766.cms

Saturday, July 21, 2012

हज हाउस पर फैसला आज, नगर में आजम

जागरण प्रतिनिधि, वाराणसी : हज की यात्रा पर जाने वाले जायरीनों के लिए लंबे समय से स्थायी हज हाउस को लेकर उठ रही मांग पर आज मुहर लग सकती है। हज हाउस के लिए प्रस्तावित गौतम बुद्ध ट्रेड सेंटर, चौकाघाट समेत तीन स्थलों का संसदीय कार्य, नगर विकास एवं हज मंत्री आजम खां शुक्रवार को निरीक्षण करेंगे।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9487831.html

Saturday, July 14, 2012

हज यात्रा का कोटा बढ़ाया जाए: जयललिता


तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने राज्य के हज यात्रा कोटे में वृद्धि करने के लिए शनिवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से आग्रह किया है।

http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-Tamil-Nadu-CM-J-Jayalalithaa-PM-Haj-quota-39-39-243186.html

Tuesday, July 10, 2012

अंसारी को उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना सकती है कांग्रेस

नई दिल्ली।। कांग्रेस उप राष्ट्रपति पद के लिए एक बार फिर हामिद अंसारी को ही उम्मीदवार बना सकती है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, ऐसा करके वह अल्पसंख्यक समुदाय को 'सही संदेश' देना चाहती है। उप राष्ट्रपति पद के लिए अंसारी की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को इस बारे में जनता दल (सेक्युलर) के अध्यक्ष एच. डी. देवगौड़ा से चर्चा की। जेडी (एस) के महासचिव दानिश अली ने कहा, 'प्रधानमंत्री ने शनिवार को देवगौड़ा से हामिद अंसारी के नाम पर चर्चा की। हमारी पार्टी उप राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करती है।'
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/14778497.cms

Monday, July 9, 2012

मुस्लिम आरक्षण का कानूनी पहलू


मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा नए सिरे से चर्चा में है। कुछ दिनों पहले आध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछड़े वर्गो के कोटा से अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले को खारिज कर दिया, बावजूद इसके पश्चिम बंगाल में पिछड़ी जातियों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों को नौकरियों में 17 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक आम सहमति से पारित हो गया। उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यक आरक्षण को राजनीतिक दलों ने चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। काग्रेस ने उच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद मुस्लिम आरक्षण की आस नहीं छोड़ी है। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर अंतरिम राहत न मिलने के बावजूद यह उम्मीद कर रहे हैं कि अंतत: फैसला मुस्लिम आरक्षण के हक में ही आएगा। कुल मिलाकर यह मुद्दा राजनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि कानूनी बहस का विषय बना हुआ है।
मुस्लिम आरक्षण पर आध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय ने कई नए सबक दिए हैं। पहला सबक यह कि सरकार को आरक्षण जैसे संवैधानिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर बहुत सतर्कता बरतने की जरूरत है। लोक मान्यता के खिलाफ इस निर्णय के जरिये अदालत ने मुस्लिम आरक्षण खारिज नहीं किया है, बल्कि सरकार द्वारा इसके लिए अपनाए गए तरीकों पर आपत्ति व्यक्त की है। संविधान में अनुसूचित जातियों/जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गो, बच्चों, महिलाओं तथा कुछ पिछड़े क्षेत्रों को आरक्षण देने की व्यवस्था है, लेकिन इन सभी के लिए अनुशासनबद्ध तरीका तय किया गया है। संविधान के 93वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद-15 में खंड-5 जोड़कर यह व्यवस्था कर दी गई थी कि कानून बनाकर संस्थाओं में प्रवेश के मामले में आरक्षण दिया जा सकता है। सरकार ने मुस्लिम आरक्षण के मामले में इस संवैधानिक निर्देश का पालन नहीं किया। कानून बनाने के बजाय सरकारी आदेश जारी करके आरक्षण दे दिया गया। अत: संविधान में तय की गई प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया है। इंदिरा साहनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि पिछड़े वर्गो को आरक्षण देते समय नई जोड़ी जाने वाली जातियों की सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक हैसियत का अध्ययन होना चाहिए और जब इस तथ्य के प्रमाण मिल जाएं कि उनकी परिस्थितिया ऐसी हैं जिसमें उन्हें विशेष आरक्षण दिए जाने की आवश्यकता है तभी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए। इसके पहले भी 2005 तथा 2007 में आध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने संविधान की अनदेखी करके दिए गए आरक्षण को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
उच्च न्यायालय ने इन निर्णयों में दो बातों पर विशेष बल दिया था। पहला यह कि आरक्षण केवल मजहबी आधार पर नहीं होना चाहिए तथा दूसरा यह कि आरक्षण देते समय पिछड़ा वर्ग आयोग से मशविरा किया जाना चाहिए। सरकार ने पिछले दोनों निर्णयों से कोई सबक नहीं लिया। लगता है कि वह राजनीतिक लाभ पाने की बहुत जल्दी में थी और इस हड़बड़ी में उसके द्वारा किए गए आरक्षण से साफ होता है कि वह केवल धर्म के आधार पर किया गया आरक्षण है, जो संविधान के अनुच्छेद-15 और 16 द्वारा प्रतिबंधित है। सरकार यदि वाकई समाज के वंचित वर्ग को बेहतर सुविधाएं देने के प्रति ईमानदार है तो उसका संविधान सम्मत तरीका यह है कि समाज के अल्पसंख्यक या अन्य संभावित वंचित समाज की सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक हैसियत का आकलन किया जाए। अल्पसंख्यक आयोग से इसमें मदद ली जाए और शोधपरक अध्ययन के बाद इस तरह से लाभान्वित होने वाली जातियों को समानुपातिक तथा न्यायपूर्ण आरक्षण दिया जाए। आध्र प्रदेश सरकार ने इस सिद्धात का पालन नहीं किया।
आध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सामने तथा बाद में सुप्रीम कोर्ट के सामने केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि उसके द्वारा लिया गया आरक्षण का फैसला धार्मिक तथा भाषायी अल्पसंख्यक आयोग तथा इसी तरह के अन्य अध्ययनों के आधार पर लिया गया था। इस दलील में कई छेद हैं। पहला यह कि भाषायी तथा धार्मिक अल्पसंख्यक आयोग का सृजन पिछड़ेपन का अध्ययन करने के लिए नहीं किया गया। इसका गठन मूलत: अल्पसंख्यकों के हालात तथा उनके साथ होने वाले भेदभाव पर नजर रखने तथा अपने सुझाव देने के लिए किया गया था। पिछड़े वर्गो के संबंध में अध्ययन करने की जिम्मेदारी पिछड़ा वर्ग आयोग को दी गई है। इसे कानून द्वारा सृजित किया गया है। इसे कई बातों के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्गो के संबंध में अध्ययन करने, उनके हालात का आकलन करने तथा उनकी बेहतरी के लिए शोधपरक सुझाव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अत: पिछड़े वर्ग का लाभ देने के लिए इस आयोग से मशविरा किया जाना आवश्यक है, जो सरकार द्वारा नहीं किया गया। सरकार ने अल्पसंख्यक वर्ग के अंतर्गत आने वाली पिछड़ी जातियों को एक साथ मिलाकर 4.5 फीसदी आरक्षण मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दे दिया। इसमें कोई दिमागी कसरत नहीं की गई। कुल मिलाकर सरकार को सबक यह मिला कि संविधान के निर्देशों का पालन करते समय सस्ती लोकप्रियता के बजाय गंभीर नीयत का परिचय दिया जाए। केवल राजनीतिक लाभ के लिए किए गए लोकलुभावन निर्णयों से नुकसान के खतरे बढ़ जाते हैं।
[डॉ. हरबंश दीक्षित: लेखक विधि मामलों के विशेषज्ञ हैं]

अल्पसंख्यक छात्राओं को साइकिल देगी सरकार


नई दिल्ली [राजकेश्वर सिंह]। आने वाले वर्षो में अल्पसंख्यक छात्राओं की तालीम पर सरकार और फोकस करेगी। खास तौर से उन पर जो आठवीं कक्षा के बाद महज इसलिए पढ़ाई छोड़ देती हैं क्योंकि उनका स्कूल दूर है या फिर वहां तक आने-जाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। सरकार ने इसके लिए कक्षा नौ में दाखिला लेने वाली अल्पसंख्यक समुदाय की सभी छात्राओं को साइकिल मुहैया कराने की योजना बनाई है।

हज यात्रियों को मुफ्त में मिलेंगे सिम कार्ड

मदुरै।। भारत सरकार की हज समिति हज जाने वाले यात्रियों को मुफ्त में सिम कार्ड बांटेगी। विदेश मंत्रालय के तहत आने वाली हज समिति के उपाध्यक्ष अबू बकर ने यह जानकारी दी। 
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/14749348.cms

Thursday, June 14, 2012

संविधान संशोधन कर अल्पसंख्यकों से न्याय करे केंद्र

नई दिल्ली। अल्पसंख्यक कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताते हुए सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि यदि इस मामले पर केंद्र सरकार की नीयत साफ है तो संविधान में संशोधन कर ऐसा प्रावधान करे कि अल्पसंख्यक समुदाय के साथ न्याय हो सके। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को झटका देते हुए मुस्लिम कोटा माने जाने वाले 4.5 फीसद अल्पसंख्यक आरक्षण मामले में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। अब माना जा रहा है कि यह मामला संवैधानिक पीठ के समक्ष पेश किया जा सकता है। भाजपा ने सुप्रीम के फैसले पर संतोष व्यक्त किया है।
http://www.jagran.com/news/national-supreme-court-refuse-to-stay-on-quota-decision-9363677.html

हिंदू छात्रों तक हो छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार: बीजेपी

चेन्नै।। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए केंद्र की छात्रवृत्ति योजना को 'भेदभाव पूर्ण' बताते हुए राज्य बीजेपी इकाई ने इसका विस्तार हिंदू छात्रों तक किए जाने की मांग की है और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता से इस मामले को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाने को कहा है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/13867154.cms

Wednesday, June 13, 2012

अल्पसंख्यक आरक्षण को सही ठहराने की कोशिश

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को अल्पसंख्यक आरक्षण से जुड़े दस्तावेज सुप्रीमकोर्ट को सौंपे। 1800 पन्ने के इन दस्तावेजों में सरकार ने अल्पसंख्यक आरक्षण के समर्थन में कई तर्क पेश किए हैं। इनमें मुसलमानों को गरीब बताकर उनके लिए आरक्षण की वकालत करने वाली राजेंद्र सच्चर समिति की रिपोर्ट भी शामिल है। वर्ष 1993 में तैयार की गई मुस्लिमों की पिछड़ी हुई जातियों की सूची भी दस्तावेजों के साथ पेश की गई है। सरकार ने कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों का हवाला देते हुए अपने पक्ष को मजबूती से रखा। इसके अलावा दस्तावेजों में मंडल समिति और रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट भी शामिल है।
http://www.jagran.com/news/national-centre-submits-in-supreme-court-relevant-material-on-the-issue-of-quota-for-minorities-9360158.html

Saturday, June 9, 2012

यूपी: दरोगा भर्ती में मुसलमानों के लिए 18% कोटा

लखनऊ।। उत्तर प्रदेश में होने जा रही पुलिस सब-इंस्पेक्टरों की भर्ती में राज्य सरकार सच्चर कमिटी की सिफारिशों का पालन करते हुए मुसलमानों को 18% रिजर्वेशन देगी। समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी मुसलमानों को 18% रिजर्वेशन देने का वादा किया था।
http://navbharattimes.indiatimes.com/up-18-reservation-for-muslim-sub-inspector-recruitment/articleshow/13953906.cms

Thursday, June 7, 2012

अल्पसंख्यक कोटे पर सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सरकारी नौकरियों व केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यकों के 4.5 फीसदी कोटे के मामले में आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार अगले हफ्ते के शुरुआत में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है। तात्कालिक मामला आइआइटी में दाखिलों से जुड़ा है। लिहाजा मानव संसाधन विकास मंत्रालय इसमें और देरी के मूड में नहीं है। हालाकि, शीर्ष अदालत जाने को लेकर कानून व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद की राय इससे जुदा है।
http://www.jagran.com/news/national-government-to-approach-sc-in-july-on-minority-subquota-issue-9343332.html