Wednesday, September 10, 2008

मतांतरण अभियान कब तक

मतांतरण अभियान के कारण होने वाले सामाजिक विखंडन की अनदेखी पर चिंता प्रकट कर रहे हैं तरुण विजय

दैनिक जागरण, १० सितम्बर २००८। कंधमाल उड़ीसा का जनजातीय बहुल जिला है जहां की करीब 6 लाख आबादी में प्राय: 52 प्रतिशत कंध जनजातीय लोग हैं जो अधिकांशत: हिंदू हैं। यहां 1857 में कंध वीर चक्र बिशोई ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया था तब से अंग्रेजों ने यहां के कंध जनजातीय समाज को सबक सिखाने और उनके व्यापक मतांतरण हेतु मिशनरियों के प्रोत्साहन का अभियान छेड़ा। कंध जनजातीय समाज देशभक्ति और धर्मनिष्ठा में अडिग रहा और उसने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की कोशिश सफल नहीं होने दी। मिशनरियों ने इसे एक चुनौती के रूप में माना और दुनिया भर से लाखों डालर एवं विदेशी पादरी यहां ईसाई प्रचार के लिए आक्रामक रूप से काम करते रहे। उनका ज्यादा प्रभाव स्थानीय अनुसूचित जाति पनास पर हुआ, जिसके लगभग डेढ़ लाख मतांतरित लोग कंधमाल में हैं। इस परिस्थिति में स्थानीय जनजातीय समाज के आíथक और धाíमक विकास का संकल्प लिए 1969 में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने कंधमाल में चक्कपाद आश्रम स्थापित कर आदिशंकर की उस परंपरा को जीवंत किया जिसमें नरसेवा को ही नारायण सेवा माना गया है। उन्होंने हजारों जनजातीय बच्चों को शिक्षा दी, उनकी धर्मनिष्ठा सुदृढ़ की, उनके माता-पिता बनकर वात्सल्य उडेला और विदेशी धन के बल पर मतांतरण के षड्यंत्र असफल किए। वे सच्चे अर्थों में गांधी, ठक्कर बापा और विनोबा की परंपरा के क्रांतिकारी संन्यासी थे, जिन्होंने गरीब और अन्त्यजों की सेवा को ही ईश्वरीय साधना माना। 23 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर एके-47 लिए 10-15 हमलावरों ने उनकी हत्या कर दी। अंधाधुंध गोलीबारी में उनके साथ आश्रम में कन्या छात्रावास की संचालिका माता भक्तिमयी, स्वामीजी के शिष्य अमृतानंद और एक छात्र के अभिभावक प्रभाती भी मार डाले गए।

उक्त घटना की प्रतिक्रिया में उपजी हिंसा पर वेटिकन से पोप ने प्रतिक्रिया व्यक्त की और इटली की सरकार ने भी भारतीय राजदूत को बुलाकर विरोध जताया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वदेशी मामले में विदेशी दखल पर वेटिकन और रोम को डपटने के बजाय अपने ही देश पर शर्रि्मदगी का इजहार किया। भारत के कैथोलिक स्कूलों ने उड़ीसा के ईसाई संस्थानों पर जनाक्रोश जनित हमलों के विरोध में हड़ताल की। इन सभी स्कूलों में अधिकाशत: हिंदू बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन उनके एक हिंदू संत की हत्या पर स्कूल बंद नहीं हुए। भारत में स्कूलों और बच्चों का राजनीतिक इस्तेमाल चर्च ने शुरू किया है। इसके अलग परिणाम होंगे। वेटिकन को इस पर कोई दुख नहीं हुआ कि शांतिपूर्वक जनसेवा कर रहे एक हिंदू संत की उन कुछ बर्बर तत्वों द्वारा हत्या कर दी गई जिन पर चर्च के संरक्षण का आरोप लगा है। उड़ीसा में किसी भी प्रकार की हिंसा का कोई समर्थन नहीं कर सकता। निर्दोष चाहे हिंदू मारा जाए या ईसाई, वह भारतीय है और उसकी हत्या पर समाज को दुखी होना चाहिए, लेकिन चर्च और दिल्ली की सत्ता ने दुख का भी सांप्रदायीकरण किया। पिछले वर्ष दिसंबर में भी स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या का प्रयास हुआ था, जो विफल रहा। इसके बाद राज्य सरकार और जिला प्रशासन को अनेक बार पत्र लिखकर सुरक्षा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया, पर राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। 9 अगस्त को कंधमाल के पास कुलमाहा गांव में ईसाइयों की एक बैठक हुई जिसमें आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के एक कुख्यात अधिकारी ने हिस्सा लिया जो पहले अमेरिकी संसद में भारत के विरुद्ध बयान देने के लिए चíचत रहे हैं। इस अधिकारी की स्वामीजी की हत्या से पहले उड़ीसा में लंबी उपस्थिति के रहस्य की जांच जरूरी है। 13 अगस्त को स्वामीजी की हत्या की धमकी वाला पत्र चक्कपाद आश्रम में मिला। इसका स्थानीय समाचार-पत्रों में व्यापक प्रचार हुआ और राज्य सरकार को भी इसकी सूचना दी गई, लेकिन पुलिस-प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।

स्वामी लक्ष्मणानंद इस क्षेत्र में समाज सुधारक के नाते जाने जाते थे। जनजातियों से शराब, तंबाकू की आदत छुड़वाना, साफ-सुथरे रहकर भगवद् चिंतन और उच्च शिक्षा की ओर प्रवृत्ता करना उनके मुख्य योगदान थे। उन्होंने जनजातीय क्षेत्र में संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। आर्थिक विकास, चिकित्सकीय सहायता जैसे अनेक प्रकल्प आज भी स्वामीजी के प्रयासों से चल रहे हैं। उनकी हत्या से किसे लाभ हो सकता था? स्थानीय ईसाई तत्वों ने उनकी हत्या के बाद प्रचारित किया कि माओवादी-नक्सली तत्वों ने उन्हें मारा है। जब माओवादियों की ओर से स्थानीय प्रेस को अधिकृत बयान दिया गया कि इस हत्या में उनका कोई हाथ नहीं है तब यह भ्रामक प्रचार रुका। वस्तुत: दुनिया में ईसाइयत ने सर्वाधिक रक्तरंजित बर्बरता जनजातीय समाज पर ही करते हुए उन्हें मतांतरित किया। 1493 में कोलंबस ने भारत की खोज के भ्रम में अमेरिका खोजा। कोलंबस के समय अमेरिका और कैरेबियन में 10 करोड़ जनजातीय लोग थे। उसके बाद सिर्फ सौ वर्ष के कालखंड में सात करोड़ लोग बर्बरतापूर्वक मार डाले गए। क्यूबा, प्यूर्टोरिको और जमैका के 30 लाख जनजातीय लोग 50 वर्ष के कालखंड में सिर्फ 200 रह गए। । ब्राजील, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के जनजातीय समाज को भी इसी प्रकार या तो मार डाला गया या ईसाई बनाया गया।

चर्च आक्रामकता के साथ हिंदू देवी-देवताओं के प्रति अभद्र प्रचार करते हुए हर संभव साधन से हिंदुओं के मतांतरण में जुटता है तो उस कारण सामाजिक विखंडन पैदा होता है। स्वेच्छा से कोई किसी भी आस्था को माने तो कभी किसी को आपत्तिनहीं होती, लेकिन छल-बल से हिंदू जनसंख्या घटाने का षड़यंत्र प्रतिक्रिया पैदा करता है। आक्रामक ईसाइयत केवल हिंदू और बौद्ध देशों तक ही क्यों सीमित है-इस्लामी देशों में क्यों नहीं? हिंदुओं की सर्वपंथ समभाव की धर्मनीति का सम्मान करने के बजाय उनके मतांतरण का अभियान क्यों किया जाता है?

Tuesday, September 9, 2008

फसाद की जड़ धर्मांतरण

हिन्दुस्तान दैनिक , 2 सितम्बर २००८स्वामी जी ने बिनोवा भाव के गोरक्षा आंदोलन को इस इलाके में जोर-शोर से चलाया जिस कारण गैर हिन्दू समाज को खास मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कंधमाल जिल में ईसाई संगठनों ने कंधों को लुभान की हर संभव कोशिश की है। विश्व हिन्दू परिषद की ईसाईयों के प्रति आक्रोश की यही वजह है, जिसका मजबूती के साथ नेतृृत्व स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती कर रहे थे। स्वामी जी ने ईसाई बने हजारों पनस लोगों को ‘शुद्धिकरण' के जरिये फिर से हिन्दू बनाया है।

उड़ीसा दंगों में ईसाई संगठन दोषी: रिपोर्ट

5 सितम्बर 2008, वार्ता, नई दिल्ली। एक स्वयंसेवी संगठनजस्टिस ऑन ट्रायलने अपनी जांच के आधार पर आरोप लगाया है कि उड़ीसा के कंधमाल जिले में साम्प्रदायिक हिंसा के लिए ईसाई मिशनरियों की धर्मपरिवर्तन की गतिविधियां दोषी हैं।

जस्टिस ऑन ट्रायलकी जांच समिति के अध्यक्ष और राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्ता सरदार जीएस. गिल ने आज यहां एक प्रेस वार्ता में कहा कि उड़ीसा में धर्मपरिवर्तन रोकने के लिए सन 1967 में बनाए गए सख्त कानून के बावजूद ईसाई मिशनरी संस्थाएं प्रलोभन से भोलेभाले आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन करा रही हैं, जिससे समय-समय पर तनाव पैदा होता रहता है।

उन्होंने कहा कि उड़ीसा के हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती ने एक साक्षात्कार में स्वंय कहा था कि मिशनरी तत्व उन पर आठ बार हमला कर चुके हैं। नौवें हमले में गत महीने उनकी मौत हो गई थी।

जांच समिति ने हिन्दू नेता पर हुए हमले के लिए माओवादियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बारे में कहा कि ऐसा कोई ठोस कारण नहीं है कि माओवादी स्वामी जी की जान लें।

जांच समिति ने कहा कि इस बात की छानबीन होनी चाहिए कि क्या हिन्दू विरोधी ताकतों ने माओवादियों के जरिए इस अपराध को अंजाम दिया है।

जांच समिति में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीसी. डोगरा, राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व सदस्य नफीसा हुसैन, सामाजिक कार्यकर्ता कैप्टन एमके. अंधारे और रामकिशोर पसारी शामिल थे।

कंधमाल में पिछले वर्ष भी दिसम्बर में हुई घटनाओं की जांच के लिए समिति के सदस्यों ने विभिन्न स्थानों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट जारी की थी। समिति के सदस्यों का मानना है कि इस रिपोर्ट में साम्प्रदायिक और सामाजिक तनावों के मूल कारणों का उल्लेख है, जिन्हें दूर करके ही इस क्षेत्र में शांति और सद्भाव कायम किया जा सकता है।

Monday, September 8, 2008

उड़ीसा में इटली का दखल

उड़ीसा की हिंसक घटनाओं के पीछे मतांतरण की भूमिका देख रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण ,१ सितम्बर २००८ , उड़ीसा के कंधमाल जिले की हिंसा पर इटली सरकार द्वारा विगत गुरुवार को व्यक्त की गई आपत्ति न केवल राजनयिक मर्यादा का अतिक्रमण है, बल्कि ईसाइयत का साम्राज्यवादी चेहरा भी बेनकाब करती है। 80 वर्षीय स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके सहयोगियों की हत्या एवं उसकी प्रतिक्रिया में जो हिंसा हुई वह निंदनीय है, किंतु इसके पीछे चर्च की दशकों पुरानी मतांतरण गतिविधियां जनाक्रोश का सबसे बड़ा कारण हैं। ये हिंसक घटनाएं भारत का आंतरिक मसला हैं और किसी समुदाय विशेष के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा पोषित नहीं हैं। विगत गुरुवार को इटली सरकार ने कैबिनेट की बैठक के बाद भारतीय राजदूत को तलब कर भारत में मजहबी हिंसा रोकने का निर्देश देने का फैसला लेने संबंधी बयान जारी किया है। इसके एक दिन पूर्व पोप ने भी हिंसा की कड़ी निंदा की थी।

वस्तुत: इटली सरकार की निराधार प्रतिक्रिया उसके राजनीतिक पतन और गिरते सामाजिक मापदंडों को ही रेखांकित करती है। इटली की सरकार नवफासीवादियों पर आश्रित है, जिनका मुख्य एजेंडा विदेशी द्वेष और अप्रवास विरोधी है। आश्चर्य नहीं कि रोम के नए मेयर का स्वागत मुसोलिनी की तरह होता है। नवफासीवादी युवा इटली रोमन कैथोलिक के अनुयायी हैं और उन्हें मुस्लिम-यहूदियों सहित प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की उपस्थिति से भी नफरत है। इसके विपरीत ईसाई मत में दीक्षित और इटली में जन्मी-पलीं सोनिया गांधी सत्तापक्ष की सर्वोच्च नेता हैं। इस पृष्ठभूमि में इटली सरकार द्वारा भारत को सहिष्णुता का उपदेश देना शैतान के मंत्रोच्चार करने जैसा है। इटली की सरकार ने जो अनावश्यक हस्तक्षेप करने की कोशिश की है उसका भारतीय सत्ता अधिष्ठान की ओर से कड़ा प्रतिवाद किया जाना चाहिए। क्या इस सेकुलर सरकार से देश के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए किसी पहल की अपेक्षा की जा सकती है? पोप दुनियाभर के इसाइयों के संरक्षक माने जाते हैं, इसलिए कुछ हद तक उनकी प्रतिक्रिया स्वाभाविक है, किंतु भारत के संदर्भ में उन्होंने एकपक्षीय तथ्यों के आधार पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर चर्च की मतांतरण गतिविधियों को ढकने का प्रयास किया है। चर्च भारत में वैसे इलाकों में ज्यादा सक्रिय है जहां आर्थिक व शैक्षिक पिछड़ापन है। बहुधा चर्च स्थानीय मान्यताओं, परंपराओं व प्रचलित आस्थाओं पर भी आघात कर अपना प्रसार करने की कोशिश करता रहा है। यह हिंदूनिष्ठ संगठनों का मिथ्या आरोप नहीं है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मतांतरण की ऐसी शिकायतें मिलने पर मध्य प्रदेश की कांग्रेसी सरकार द्वारा 14 अप्रैल 1955 में गठित 'नियोगी समिति' ने इस कटु सत्य को रेखांकित किया था। समिति की प्रमुख संस्तुतियां थीं-मतांतरण के उद्देश्य से आए विदेशी मिशनरियों को बाहर निकाला जाए, चिकित्सा व अन्य सेवाओं के माध्यम से मतांतरण को कानून बनाकर रोका जाए, बल प्रयोग, लालच, धोखाधड़ी, अनुभवहीनता, मानसिक दुर्बलता का उपयोग मतांतरण के लिए नहीं हो, किसी भी निजी संस्था को सरकारी स्त्रोतों के अलावा विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति नहीं मिले।

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती 1966 में कंधमाल आए और तब से वह अशिक्षित-पिछड़े वनवासियों के उत्थान में संलग्न थे। उन्होंने पिछड़े आदिवासियों के मतांतरण के मिशनरी प्रयासों का प्रखर विरोध किया। उन्होंने गोवध के खिलाफ भी मुहिम छेड़ रखी थी। 1970 के बाद से वह चर्च के निशाने पर थे। विगत दिसंबर माह में भी उन पर कातिलाना हमला हुआ था। उसकी प्रतिक्रिया में हिंसक वारदातें भी हुईं। तब दिल्ली से जांच के लिए उड़ीसा गए मानवाधिकार आयोग के प्रतिनिधियों ने हिंसा के लिए केवल हिंदू संगठनों को कसूरवार ठहराया। केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल का दौरा केवल ईसाई गांवों तक ही सीमित रहा। उन्होंने ब्राह्मणदेई, जलेसपेटा, तुमुड़ीबंध, बालीगुडा और बाराखंबा गांवों का दौरा नहीं किया, जहां ईसाई हमलावरों द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। ईसाई हमलावरों के डर से कटिंगिया व आसपास के दस गांवों के हिंदू ग्रामीण जंगलों में जा छिपे थे। उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने की चिंता शिवराज पाटिल को नहीं हुई। सेकुलर मीडिया में भी चर्चों पर हुए हमलों की तो खूब चर्चा हुई थी, किंतु मंदिरों और हिंदुओं पर किए गए हमलों की खबर गायब ही रही। यदि तब तटस्थतापूर्वक जांच की जाती और चर्च पर कड़ी कार्रवाई की जाती तो संभवत: आज यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। यह कहना कि हत्या के पीछे नक्सलियों-माओवादियों का हाथ है, सत्य से आंख मूंदना है। उड़ीसा में सक्रिय अधिकांश माओवादी-नक्सली नवमतांतरित ईसाई ही हैं। त्रिपुरा में अगस्त 2000 में स्वामी शांतिकाली जी महाराज की भी हत्या की गई थी। शांतिजी भी वनवासी इलाकों में चलाए जा रहे मतांतरण कार्यक्रमों के प्रखर आलोचक थे। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने हत्या में बैप्टिस्ट चर्च के शामिल होने की बात स्वीकारी थी। पूर्वोत्तार के ईसाई बहुल क्षेत्र हों या अन्यत्र, जहां कहीं भी अलगाववाद की समस्या है उसके पीछे मतांतरण एक बड़ा कारक है।

मतांतरण के संबंध में स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''जब हिंदू समाज का एक सदस्य मतांतरण करता है तो समाज की संख्या कम नहीं होती, बल्कि समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है।'' आज कश्मीर में जो हो रहा है वह इस कटु सत्य को रेखांकित करता है। आश्चर्य नहीं कि वैदिक हिंदू दर्शन के साक्षी कश्मीर में आज पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं और भारत की मौत की कामना की जा रही है।

लक्ष्मणानंदजी की हत्या में चर्च शामिल हो या नक्सली-माओवादी, मैं मतांतरण से पैदा होने वाली विषाक्त मानसिकता को मुख्य कसूरवार मानता हूं, जो बहुलतावादी संस्कृति की धुर विरोधी है। कंधमाल की हिंसा में जहां चर्च की बड़ी भूमिका है वहीं सेकुलरवादियों की कुत्सित नीतियों का भी बड़ा योगदान है। उड़ीसा की दो आदिवासी जातियों-कंध और पण में पिछले कुछ समय से आरक्षण को लेकर संघर्ष चरम पर है। कंध जनजाति के लोग अपनी संस्कृति और आस्था के प्रति खासे जागरूक हैं, जबकि अधिकांश पण आदिवासियों ने ईसाइयत स्वीकार कर ली है। मतांतरण के बाद अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण से वंचित हो जाने के बाद पण समुदाय कंध की तरह अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने की मांग कर रहा है, जिसका समर्थन चर्च कर रहा है। विदेशी धन से पोषित फूलबनी कुई जनकल्याण संघ इस फसाद का सूत्रधार है। संप्रग सरकार द्वारा गठित रंगनाथ मिश्रा आयोग द्वारा सभी मतांतरितों को आरक्षण देने की संस्तुति के बाद कंध सहित अन्य हिंदू अनुसूचित जाति-जनजाति को यह भय सताने लगा है कि उनके हक का आरक्षण लाभ पण उड़ा ले जाएंगे। स्वयं पण भी चर्च की शरण में आने के बावजूद ठगा सा महसूस कर रहे हैं। चर्च की शरण में आने के बावजूद उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। उड़ीसा की हाल की हिंसक घटनाओं की तह में छल-कपट और फरेब के बल पर चर्च द्वारा चलाया जा रहा मतांतरण अभियान है, जिसे सेकुलरिस्टों का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन प्राप्त है।



उड़ीसा: विहिप नेता समेत चार की हत्या

24 अगस्त २००८ वार्ता भुवनेश्वर। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के प्रमुख नेता स्वामी लक्ष्मनन्दा सरस्वती और चार अन्य की शनिवार रात अज्ञात हमलावरों ने उड़ीसा में कालाहांडी-फुलबनी सीमा पर जलेसपाटा आश्रम स्कूल में गोली मारकर हत्या कर दी।

फुलबनी स्थित चकपाड़ा आश्रम के संस्थापक स्वामी सरस्वती आश्रम में गए थे, तभी हमलावरों ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिससे चार अन्य सहित उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। राज्य के पुलिस महानिदेशक गोपाल नन्दा ने घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि मारे गए चार अन्य की पहचान अभी नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा कि यह घटना संदिग्ध नक्सलियों की हो सकती है और इसका पता लगाया जा रहा है।

स्वामी सरस्वती ने हाल ही में प्रेस को जारी एक बयान में आरोप लगाया था कि आदिवासी बहुल फुलबनी जिले में माओवादियों के ईसाई मिशनरियों के साथ मिल जाने से उनके जीवन को खतरा है।

जम्मू विवाद हल: मंदिर बोर्ड को जमीन मिली

1 अगस्त 2008 वार्ता, जम्मू। जम्मू कश्मीर सरकार और श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के बीच अमरनाथ जमीन विवाद को लेकर चार दौर की बातचीत के बाद आखिरकार आज समझौता हो गया जिसके तहत श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को यात्रा की अवधि के दौरान जमीन दी जायेगी।


सरकारी पैनल के प्रमुख एस.एस.ब्लोएरिया ने तड़के पांच बजे यहां एक संवाददाता सम्मेलन में श्राइन बोर्ड को यात्रा के दौरान जमीन बहाल किये जाने की घोषणा की।

बातचीत का चौथा दौर कल रात नौ बजकर पांच मिनट पर शुरू हुआ था जो आज तड़के चार बजकर 45 मिनट तक चला। इस फैसले के बाद लगभग दो महीनों से संघर्षरत और 39 दिनों से पूर्ण बंद का सामना कर रहे जम्मू के लोगों के चेहरो पर खुशी लौट आई।

श्री बेलोरिया ने बताया कि श्राइन बोर्ड को वापस की गई जगह पर विभिन्न तरह की सामग्री इस्तेमाल करके ढांचा तैयार किया जायेगा। इसमें शौचालय, स्थानीय निवासियों को दुकानें बनाने की अनुमति, चिकित्सीय सुविधाओं के साथ ही हेलीकाप्टर और वाहन प्रबंधन जैसी सुविधाएं मुख्य होंगी।

श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति (एसएवाईएसएस) के समन्वयक लीलाकरन शर्मा ने बताया कि बैठक में स्वीकार किया गया है कि यात्रा के लिये बोर्ड ही जिम्मेदार होगा और बोर्ड के अध्यक्ष राज्य के राज्यपाल होंगे।
उन्होंने बताया कि वापस दी गई भूमि पर पूर्ण रूप से बोर्ड का अधिकार होगा और यात्रा के दौरान किसी श्रद्धालु से कोई पैसा नहीं लिया जायेगा।

श्री शर्मा ने कहा –“ हमने कुछ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लागू जन सुरक्षा अधिनियम हटाने, अपराधिक मामलों को वापस लेने, संघर्ष में मारे गये लोगों के परिजनों को मुआवजा दिये जाने, बागवानों एवं कृषकों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए जम्मू बंद खत्म करने का निर्णय लिया है।”

इस मामले में सहयोग के लिए उन्होंने जम्मूवासियों और सारे देश के लोगों धन्यवाद दिया है।

धर्मातरण के आरोप में पादरी गिरफ्तार

दैनिक जागरण, २९ जून २००८, बडवानी। मध्यप्रदेश में बडवानी जिले के नवलपुरा क्षेत्र में आदिवासियों को प्रलोभन देकर धर्मातरण कराने के प्रयास के आरोप में एक पादरी को पुलिस ने शनिवार रात गिरफ्तार किया।

नगर निरीक्षक विजय कुमार सिसोदिया ने बताया कि स्थानीय हिंदू संगठनों और नागरिकों की शिकायत पर नवलपुरा इलाके में स्थित एक मकान में छापा मारा गया, जहां धर्मातरण की प्रक्रिया करने के मामले में पादरी हटेसिंह रावत को हिरासत में लिया गया था।

उन्होंने बताया कि बाद में पादरी को प्रलोभन देकर धर्मातरण कराने के आरोप में मध्यप्रदेश धर्म स्वातंत्रय अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। रावत को कुछ माह पहले भी धर्मातरण के मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह झाबुआ जिले का निवासी है और पिछले कई वर्षो से बडवानी जिले में रह रहा है।

सिमी के चार लोग गिरफ्तार

दैनिक जागरण, २ sepetember जयपुर। जयपुर बम धमाकों की जांच कर रहे राजस्थान पुलिस के विशेष अनुसंधान दल [एसआईटी] ने प्रतिबंधित संगठन सिमी के चार और लोगों को गिरफ्तार किया है।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ए.के. जैन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रतिबंधित संगठन सिमी की गतिविधियों में सहयोग करने वाले आरोपियों कोटा निवासी मुनव्वर हुसैन, अतीक, नदीम अख्तर और बारां निवासी मोहम्मद इलियास को सोमवार को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने बताया कि चारों अभियुक्तों को जयपुर की एक स्थानीय अदालत में पेश किया गया। अदालत ने चारों अभियुक्तों को 11 दिन के रिमांड पर एसआईटी को सौंप दिया।

योगी आदित्यनाथ पर हमला, एक की मौत

दैनिक जागरण, ८ september २००८, आजमगढ़/लखनऊ। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में रविवार को भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले के बाद यहां हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 12 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त सुरक्षाबल बुला लिए हैं। इस बीच, भाजपा ने आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ पर हमला उस वक्त हुआ जब वे तकिया इलाके से गुजर रहे थे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ के समर्थकों व विरोधियों में जमकर फायरिंग शुरू हो गई और 12 गाड़ियों को जला दिया गया। फायरिंग की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत हो गई। हमले में योगी सुरक्षित बच गए हैं।

वहीं, पुलिस के अनुसार पथराव में भाजपा सांसद के कुछ वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं तथा कुछ लोगों को मामूली चोटें आई हैं। सांसद के साथ चल रहे पुलिसकर्मियों ने उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए हवाई फायरिंग की, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। भाजपा सांसद आतंकवाद के विरोध में आयोजित एक रैली को संबोधित करने वहां गए थे। मौके पर अतिरिक्त पुलिस बल भेज दिया गया है। वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर नजर रख रहे हैं।

इस बीच, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि हिंदू नेता विघटनकारी शक्तियो के निशाने पर हैं। कंधमाल की घटना से देश चिंतित ही था कि आज योगी आदित्यनाथ पर भी कातिलाना हमला हो गया। दीक्षित ने कहा कि यह मायावती सरकार के कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होने संबंधी दावे को खोखला साबित करती है। उन्होंने कहा कि भाजपा इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग की।

Friday, August 22, 2008

बशर बेगुनाह, हिन्दू संगठन दोषी: बुखारी

21 अगस्त 2008 ,वार्ता ,आजमगढ़। दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने आज कहा कि देश में बढ़ते आतंकवाद के लिए ‘सिमी’ जैसे संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा शिवसेना जिम्मेदार हैं।

उन्होंने अहमदाबाद विस्फोटकाण्ड के गिरफ्तार आरोपी अबुल बशर को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसे शीघ्र रिहा नहीं किया गया तो देश के मुसलमान देशव्यापी आन्दोलन करने के लिए बाध्य होंगे, जो 1947 की क्रान्ति से बड़ा होगा। उन्होंने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की। इमाम बुखारी आज यहां सरायमीर के बीनापारा गांव में अबुल बशर के घर उनके परिजनों की कुशलक्षेम लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि केन्द्र और प्रदेश की सरकारें मुसलमानों को अनावश्यक परेशान कर रही है और उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। उन्होंने अहमदाबाद में हुए विस्फोटों के पीछे हिन्दूवादी संगठन का हाथ बताया।उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर आज उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है। असली आतंकवादी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद विस्फोट के मामले में अमेरिकी ई-मेल की जांच होनी चाहिए, लेकिन सरकार नाइंसाफी कर रही है। उन्होंने कहा कि सिमी आतंकवादी संगठन नहीं है।

उन्होंने कहा कि आजमगढ़ के डॉ. तारिक कासमी तथा अबुल बशर की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर अब मुस्लिम संगठन सड़क पर उतरेंगे तथा सरकारों के चेहरे को बेनकाब करेंगे। बुखारी ने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की जिसमें सच्चर कमेटी के लोग हों।