Monday, September 29, 2008

दिल्ली में फिर धमाका, एक की मौत

दैनिक जागरण, २७ सितम्बर, २००८, नई दिल्ली। राजधानी में 13 सितंबर को हुए धमाकों के बाद एक शनिवार ही शांति से गुजरा था कि दूसरे शनिवार फिर एक बम विस्फोट हो गया। इस बार दक्षिण दिल्ली के महरौली क्षेत्र में भीड़ भरे सराय बाजार को निशाना बनाया गया। धमाकों में नौ साल के एक लड़के की मौत हो गई और 24 से ज्यादा लोग घायल हो गए। सात की हालत गंभीर है। पुलिस को कुछ कहते नहीं बन रहा।

जानकारी के अनुसार, महरौली में अंधेरिया मोड़ के निकट स्थित सराय बाजार में दोपहर 2.15 बजे काले रंग की पल्सर मोटरसाइकिल पर सवार दो युवक पहुंचे। पीछे बैठे युवक के हाथ में एक लिफाफा था। युवक ने सड़क पर लिफाफा गिरा दिया। पास में ही खडे़ एक बच्चे संतोष ने उसे यह समझ कर उठा लिया कि मोटरसाइकिल सवार से लिफाफा गलती से गिर गया है। उसने आवाज लगाई, लेकिन तब तक वे मोटरसाइकिल सवार वहां से निकल चुके थे। इस बीच धुआं निकलते देख बच्चे ने लिफाफा नीचे फेंक दिया। तभी तेज धमाके के साथ उसके चीथड़े उड़ गए।

विस्फोट स्थल पर हर तरफ धुआं फैल गया। बाजार में अफरातफरी मच गई। धुआं कम होने पर पता चला कि कई लोग सड़क पर घायल होकर गिरे हुए हैं। वहां मौजूद लोगों ने फुर्ती से घायलों को विभिन्न अस्पतालों में पहुंचाना शुरू किया। पुलिस को भी सूचना दी गई।

पुलिस ने पहुंचते ही बाजार सील कर दिया। घटनास्थल की जांच के लिए दिल्ली पुलिस के बम निरोधक दस्ते के साथ डाग स्क्वाड और एनएसजी की टीम भी पहुंच गई। दिल्ली पुलिस के कमिश्नर भी एक घंटे के अंदर मौके पर पहुंच गए। बाद में पुलिस ने बताया कि काली बाइक पर काले कपड़े और काले हेलमेट पहने दो युवकों ने बम रखा।

आज के विस्फोट में अमोनियम नाइट्रेट, सल्फर और पोटैशियम का इस्तेमाल किया गया बताया जाता है। अधिकारियों ने बताया कि करीब डेढ़ इंच लंबी कीलों के साथ अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया, ताकि कील चुभने से लोगों को ज्यादा नुकसान हो। सल्फर का प्रयोग धुआं निकलने के लिए किया गया। इन विस्फोटकों की पैकिंग लूज थी, इसलिए धमाका निम्न स्तर का हुआ।

एम्स तथा ट्रामा सेंटर से मिली जानकारी के अनुसार, कुल चौबीस घायलों को अस्पताल लाया गया था। बाद में गृह मंत्री शिवराज पाटिल घायलों का हाल-चाल जानने एम्स पहुंचे। दिल्ली सरकार ने मृतक के परिजनों को 5 लाख और घायलों को 50-50 हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है।

प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शनिवार की घटना पर गहरा अफसोस जताया है। प्रधानमंत्री फ्रांस की यात्रा पर हैं। यहां उनके कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन लगातार अधिकारियों के संपर्क में हैं और स्थिति की समीक्षा कर रहे हैं।

पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने दिल्ली में हुए धमाके की निंदा की है और मारे गए व घायल लोगों के प्रति संवेदना जताई है।

दिल्ली में इससे पहले हुए आतंकी हमले

13 सितंबर 2008: करोलबाग, कनाट प्लेस, ग्रेटर कैलाश में हुए बम धमाकों में 20 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हो गए।

29 अक्टूबर 2005: सरोजिनी नगर/पहाड़गंज/गोविंदपुरी में हुए धमाकों में 59 लोगों की जान गई व 155 घायल हुए।

13 दिसंबर 2001: संसद पर हुए हमले में 11 लोग मारे गए और 30 घायल हो गए।

18 जून 2000: लाल किले पर हुए हमले में 2 लोग मारे गए।

16 अप्रैल 1999: होलंबीकलां रेलवे स्टेशन पर हुए धमाके में 2 लोग मारे गए।

26 जुलाई 1998: अंतरराज्यीय बस अड्डे पर हुए विस्फोट में 2 लोगों की मौत, 3 घायल।

30 दिसंबर 1997: पंजाबी बाग में हुए विस्फोट में 4 लोग मारे गए तथा 30 घायल।

30 नवंबर 1997: चांदनी चौक में हुए धमाके में 3 लोग मारे गए और 73 घायल हो गए।

1 अक्टूबर 1997: फ्रंटियर मेल में हुए धमाके में 3 लोग मारे गए।

मूर्ति रखने को लेकर विवाद

दैनिक जागरण, मईल, लार रोड , 28 सितम्बर २००८।

रविवार को मईल थाना क्षेत्र के लार रोड रेलवे स्टेशन पर मूर्ति रखने को लेकर दो समुदायों में कहा सुनी हो गयी। सूचना पाकर पहुंची मईल पुलिस ने मामले

को शांत कराया। समाचार लिखे जाने तक पुलिस गश्त कर रही थी।

Friday, September 26, 2008

धमाकों के आरोपियों की मदद देशहित में

Sep 26, २००८, नई दिल्ली। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति के दिल्ली बम विस्फोटों के मामले में आरोपी दो छात्रों को कानूनी सहायता देने के फैसले का खुलकर समर्थन करते हुए कहा कि यह कदम देशहित में है।

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुशरुल हसन शुक्रवार को अर्जुन सिंह से मिले और दिल्ली बम विस्फोटों के मामले में आरोपी दो छात्रों को विश्वविद्यालय के कानूनी सहायता देने के फैसले से अवगत कराया। भाजपा ने कुलपति के इस फैसले का विरोध किया है।

अर्जुन सिंह ने कहा कि इस मामले में छात्रों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने में कोई हर्ज नहीं है और मुझे पूरा ब्यौरा मिल गया है। कुलपति ने मुझे जो कुछ बताया है, उससे मुझे ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय का यह फैसला देश के हित में है।

वहीं, भाजपा ने कुलपति के इस फैसले को बर्बर, राष्ट्र विरोधी और बेहद आपत्तिजनक बताते हुए कुलपति की बर्खास्तगी की मांग की है।

अर्जुन सिंह से मुलाकात के बाद हसन ने कहा कि भाजपा का यह आरोप बेबुनियाद है कि विश्वविद्यालय छात्रों को कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग कर रही है। हसन ने कहा कि दोनों छात्रों को कानूनी सहायता देने का फैसला विश्वविद्यालय की शैक्षिक परिषद द्वारा लिया गया है। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता हासिल करना हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है। हम अपने फैसले पर अडिग हैं और मेरे इस्तीफा देने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय में कक्षाएं सामान्य रूप से चल रही हैं और हाल की घटनाओं से छात्रों का विश्वास प्रभावित नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि उनके संबोधन और उसके बाद शांति मार्च निकालने से छात्रों का विश्वास और बढ़ा है। हसन से सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया है कि वह इस मुद्दे को राजनीतिक रूप नहीं दें। अगर यह राजनीतिक मुद्दा हो गया तो यह अच्छा नहीं होगा। यह पूछे जाने पर कि क्या उनको कोई धमकी मिली है हसन ने कहा कि इससे सिद्धांत प्रभावित नहीं होने चाहिए।

संदिग्धों को कानूनी मदद देगा जामिया

नई दिल्ली (भाषा), बुधवार, 24 सितंबर २००८ जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय अपने दो निलंबित छात्रों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराएगा, जिन्हें दिल्ली पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी में हुए विस्फोट में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया है।

विश्वविद्यालय की प्रवक्ता रक्षंदा जलील ने कहा कि जब तक उन्हें दोषी नहीं पाया जाता तब तक उन्हें कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। विश्विद्यालय ने प्रथम दृष्टया छात्रों को दिल्ली विस्फोट में शामिल होने के आरोप में निलंबित कर दिया था।

गोधरा में साजिशन जलाई गई थी बोगी

दैनिक जागरण, २६ सितम्बर २००८. अहमदाबाद। छह साल पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को पूर्व नियोजित साजिश के तहत आग के हवाले किया गया था। गुजरात सरकार द्वारा मामले की जांच के लिए गठित एक आयोग का यही निष्कर्ष है। इस आयोग ने पिछले दिनों राज्य सरकार को अपनी आंशिक रिपोर्ट सौंपी थी। बृहस्पतिवार को विपक्ष के बहिर्गमन के बीच इसे विधानसभा में पेश किया गया। रिपोर्ट में बोगी जलाए जाने के बाद भड़के दंगों के सिलसिले में राज्य की नरेंद्र मोदी सरकार और पुलिस-प्रशासन को पाक-साफ करार दिया गया है। इन दंगों में एक हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।

साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच को आग के हवाले करने के पीछे मुख्य साजिशकर्ता के रूप में मौलाना उमरजी का नाम सामने आया है। नानावटी आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 27 फरवरी, 2002 को सुबह आठ बजे जब रामसेवक अयोध्या से गुजरात लौट रहे थे, तब गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 तथा एस-7 कोच पर दस से बीस मिनट तक पथराव किया गया। इसके बाद आरोपियों ने कोच के दरवाजे खोल कर पेट्रोल उड़ेल दिया। फिर हसन लालू ने जलते कपड़े फेंक कर कोच को आग के हवाले कर दिया। इस घटना में 59 कारसेवक जिंदा जल गए। इनमें 27 महिलाएं तथा 10 बच्चे थे। 48 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए थे।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साजिश को अंजाम देने के लिए सलीम पानवाला तथा रजाक कुर्कुर नामक दो युवकों ने 26 फरवरी को रात्रि दस बजे 140 लीटर पेट्रोल खरीदा था। मौलवी उमरजी, रजाक कुर्कुर तथा पानवाला के अलावा इस साजिश में सौकत लालू, इमरान शेरी, रफीक बटुक, सलीम जरदा, जब्बीर, सीराजवाला को भी लिप्त बताया गया है।

समूची साजिश गोधरा के अमन गेस्ट हाउस में रची गई। रात को पेट्रोल भी यहीं पर रखा गया था। आयोग के मुताबिक आरोपियों ने राच्य सरकार, प्रशासन तंत्र तथा जनता में भय व आतंक पैदा करने के लिए इस घृणास्पद षड्यंत्र को अंजाम दिया।

आयोग ने गोधरा काड के बाद भड़के दंगों को लेकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों तथा पुलिस अधिकारियों को क्लीन चिट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समूची घटना में मुख्यमंत्री समेत सरकार तथा प्रशासन के किसी भी व्यक्ति का हाथ होने के कोई सबूत नहीं है।

आयोग ने दंगा पीड़ितों को सुरक्षा, राहत एवं पुनर्वास के मामले में राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम को संतोषजनक बताते हुए कहा है कि इस संबंध में मानव अधिकार आयोग के निर्देशों का उल्लंघन किए जाने की कोई शिकायत नहीं है।

विधानसभा में यह रिपोर्ट पेश किए जाने के वक्त विपक्षी काग्रेस के सदस्य सदन से बाहर चले गए। काग्रेस ने सरकार पर इसे राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास बताते हुए नाटक करार दिया है।

छह साल में 12 बार बढ़ा कार्यकाल

गुजरात सरकार ने गोधरा काड तथा इसके बाद भड़के दंगों की जाच के लिए 6 मार्च, 2002 को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केजी शाह की नियुक्ति की। 21 मई को सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जीटी नानावटी को भी इसमें बतौर अध्यक्ष शामिल कर लिया गया। 22 मार्च, 2008 को शाह के निधन के बाद उनके स्थान पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश अक्षय मेहता को आयोग में नियुक्त किया गया। आयोग का कार्यकाल पिछले छह वर्ष में 12 बार बढाया गया। हाल में कार्यकाल 31 दिसंबर, 2008 तक बढ़ाया गया है।

जटिल जांच

नानावटी आयोग ने जनता से 44 हजार 275 शपथ पत्र तथा आवेदन पत्र, राज्य सरकार की ओर से दो हजार 19 शपथ पत्र तथा एक हजार सोलह गवाहों से पूछताछ के बाद 168 पेज तथा 230 पैराग्राफ की रिपोर्ट का प्रथम हिस्सा तैयार किया है।

बनर्जी आयोग ने बताया था हादसा

गोधरा कांड की जांच के लिए रेल मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में दो सदस्यीय आयोग बनाया था। इस आयोग ने गोधरा कांड को हादसा करार दिया था।

Thursday, September 25, 2008

अपनों से बेगानापन

मतांतरण के मूल कारणों पर आर. विक्रम सिंह के विचार

दैनिक जागरण, २५ सितम्बर २००८। उडीसा , कर्नाटक और केरल की हाल की घटनाओं के बाद मतांतरण पर बहस फिर तेज हो गई है। हमारे सामने सवाल यह है कि हिंदू समाज पिछले आठ सौ वर्षाें से मतांतरण के अभियानों का लक्ष्य क्यों बना हुआ है? क्या हमारे समाज के धार्मिक नेतृत्व ने इस सवाल का सामना करने का प्रयास किया है? यदि नहीं तो क्यों? मध्यकाल में इस्लाम के मतांतरण का लक्ष्य क्षत्रिय, ब्राह्मण वर्ग रहा, जबकि ईसाई मिशनरियों ने हिंदुत्व की सीमा रेखा पर स्थिति आदिवासी समुदाय को निशाना बनाया। पूर्वाेत्तार में वे अपना झंडा गाड़ चुके हैं और अपने मजहबी साम्राज्यवाद का अलम लेकर वे मुख्य आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ते जा रहे हैं। दुनिया में मतांतरण कहीं भी विचारों के आधार पर नहीं, बल्कि हमेशा धर्म इतर कारणों से ही हुआ है। भारत के ईसाइयों ने कभी मुस्लिमों को ईसाई बनाने या मुस्लिम धर्मगुरुओं ने ईसाइयों को मुसलमान बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। सभी का लक्ष्य हिंदू समाज रहा है।

उड़ीसा में कंधमाल से लगभग 350 किमी दूर स्थित केंद्रपाड़ा का ग्राम केरड़ागढ़ करीब दो वर्ष पूर्व समाचारों की सुर्खियों में था। इस गांव के दलित समाज के कुछ युवक वहींके जगन्नाथ मंदिर में सवर्णाें के समान सिंहद्वार से प्रवेश कर गए थे। इसकी प्रतिक्रिया में पुजारियों ने ठाकुर जी की पूजा अर्चना बंद कर दी। उच्च न्यायालय के दखल के बाद प्रशासन द्वारा दलितों के मंदिर प्रवेश की तिथि तय की गई। नियत तिथि पर पुजारियों के उकसाने पर आस-पास के गावों के लगभग पांच हजार लोग मंदिर घेर कर बैठ गए। समाज के उच्च तबके का यह रुख देखकर दलित बस्ती में सन्नाटा छा गया। पूजा के सामान, फूल-मालाएं, ढोल मंजीरे-सब रखे के रखे रह गये। वह दिन उन्हें सामाजिक विकलांगता से मुक्त कर हमेशा के लिए उनकी जिंदगी बदल देता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह पूछने पर कि दलितों का प्रवेश क्यों नहीं है, पुजारियों ने बताया कि उनके प्रवेश की परंपरा नहीं है। उल्टे ही मुझसे उन्होंने पूछा कि ये यहीं क्यों प्रवेश चाहते हैं, जब कहीं भी प्रवेश नहीं है। कहीं प्रवेश नहीं है? क्या मतलब? मैंने कहा-पुरी के जगन्नाथ मंदिर में तो प्रवेश है। उन्होंने दलील दी कि जाति छिपाकर तो प्रवेश हो जाता है। अगर दलित मंदिर में प्रवेश नहीं पाएगा तो तो क्यों हिंदू रहेगा? आजादी के 60 वर्ष बाद भी यह मानसिकता है तो हम कहां जाएंगे? इतिहास के भूले हुए पृष्ठों में डा. अंबेडकर का नासिक में कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन याद आता है। तब भी प्रवेश नहीं मिला था। इसके पूर्व वह अपने को सनातनी हिंदू मानते थे। इस घटना के बाद येवला में उन्होंने घोषणा कि मैं हिंदू नहीं मरूंगा! उस घटना के 78 वर्ष बाद आज हम इतिहास के उन्हीं पायदानों पर खड़े रह गए हैं। जिन्हें हम दलित आदिवासी कहते हैं वह मूल भारतीय समाज है। जो अपने ही समाज का मंदिर प्रवेश रोकता है वह विश्व के अन्य धर्माें से कैसे मुकाबला करेगा? धर्म संसदों में जाति व्यवस्था तोड़ने की, धर्म के सशक्तीकरण की, अंतरजातीय विवाहों एवं सामाजिक समरसता की बात नहीं उठती। हमारे दलित व आदिवासी आदिदेव शिव के पुत्र हैं। मंदिरों-शिवालों पर पहला हक उनका है। कर्मकांडियों ने उन्हें ही बहिष्कृत कर दिया।

14वीं शती के पूर्व कश्मीर बौद्धों और ब्राह्मंाणों की भूमि था। रिनझिन तिब्बती मूल का शासक था। सैन्य शक्ति के बल पर कश्मीर का शासक बना। यह सोचकर कि जनता का धर्म ही शासक का धर्म होना चाहिए, उसने ब्राह्मंाण विद्वानों को बुला भेजा और कहा कि मैं हिंदू धर्म में दीक्षित होना चाहता हूं। कश्मीर के कर्मकांडी ब्राह्मंाण यह तय ही नहीं कर सके कि रिनझिन को किस वर्ण में रखा जाए? उन्होंने कहा कि तुम्हें हिंदू नहीं बनाया जा सकता। रिनझिन मजबूरन इस्लाम ग्रहण करता है। आगे चलकर वर्ष 1938 में सुल्तान सिकंदर ने घाटी के हिंदुओं को इस्लाम ग्रहण करने के लिए एक माह का समय दिया। एक माह बाद कश्मीर घाटी में जो कत्ले आम हुआ उसकी भारत के इतिहास में दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती। तब से लेकर आज तक हमारे हिंदू समाज ने कोई सबक नहीं सीखा। हिंदू धर्म में अन्य मतावलंबियों के प्रवेश की बात दूर, अपने ही लोगों के धर्म में पुन: प्रवेश की कोई व्यवस्था ही नहीं है। यह कर्मकांडियों की असफलता है। इनकी अकर्मण्यताओं ने हिंदू समाज को मतांतरण का लक्ष्य बना दिया है। हम जातियों की दीवार गिराने को राजी नहीं हैं, चाहे पूरा मकान ध्वस्त हो जाए। धार्मिक मठाधीशों ने कभी सोचा ही नहीं कि हिंदू धर्म में नया कोई क्यों दीक्षित नहीं होता? धर्म को शोषण का माध्यम बनाने वालों ने दक्षिण भारत में किसी समाज को क्षत्रिय या वैश्य घोषित ही नहीं किया। सबको शूद्र बनाए रखा, जिससे कि कर्मकांडियों के वर्चस्व को कोई चुनौती न दे सके। अब हमें लगता है कि विदेशी मजहबों के सम्मुख लक्ष्मणानंद सरस्वती का कार्य कितना मुश्किल था। वे धर्मयोद्धा ही नहीं, भारतीयता के सैनिक थे।


Tuesday, September 23, 2008

आतंकवाद से मुकाबले के सवाल पर पक्ष-विपक्ष के रवैये पर निराशा प्रकट कर रहे हैं राजीव सचान

दैनिक जागरण २३ सितम्बर २००८। जो केंद्रीय सत्ता दिल्ली बम विस्फोटों के बाद अपनी जबरदस्त आलोचना से घबराकर आतंकवाद के खिलाफ कठोर कानून बनाने के सवाल पर यकायक सिर के बल खड़ी हो गई थी और ऐसे किसी कानून की जरूरत जताने लगी थी वह अब फिर से पुराना राग अलापने लगी है। केंद्र सरकार के एक के बाद एक प्रतिनिधि नए सिरे से आतंकवाद के खिलाफ कठोर कानून की आवश्यकता खारिज करने लगे हैं। इस मामले में वे उसी पुराने तर्क की रट लगा रहे हैं कि राजग शासन में पोटा था, फिर भी आतंकी हमले हुए-संसद में, रघुनाथ मंदिर में, अक्षरधाम में..। वे शिवराज पाटिल की अक्षमता का भी यह कहकर बचाव कर रहे हैं कि क्या जब संसद या अक्षरधाम मंदिर में हमला हुआ तब तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने त्यागपत्र दिया था? ऐसे तर्र्को को सुनकर यह सहज सवाल उठता है कि क्या भारतीय संविधान निर्माता यह लिखकर गए थे कि मई 2004 के बाद जो भी दल या दलों का समूह केंद्रीय शासन की बागडोर संभालेगा वह अपना प्रत्येक कार्य पूर्ववर्ती सरकार के आलोक में ही करेगा? उदाहरणस्वरूप यदि उस सरकार ने आंतरिक सुरक्षा की गंभीर अनदेखी की हो तो मई 2004 को सत्तारूढ़ सरकार भी ऐसा करना सुनिश्चित करेगी? इसी तरह यदि उस सरकार ने दागी नेताओं को मंत्रिपरिषद में स्थान दिया हो तो नई सरकार भी दागी नेताओं को खोजकर मंत्री बनाने का कार्य करेगी? ईश्वर न करे, लेकिन यदि कल को फिर से कोई कंधार कांड घटित हो जाए तो क्या संप्रग सरकार भी आतंकियों को यह कहकर हवाई जहाज में बैठाकर छोड़ आएगी कि देखिए राजग सरकार ने भी ऐसा ही किया था? पता नहीं संप्रग के नीति-नियंता किस मानसिकता से ग्रस्त हैं कि वे हर अच्छी-बुरी बात पर राजग सरकार का उदाहरण देने लगते हैं?

आज देश की दिलचस्पी इसमें नहीं कि राजग सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ क्या किया था और क्या नहीं, बल्कि इसमें है कि वह खुद क्या कर रही है? दुर्भाग्य से इस सवाल का कोई जवाब नहीं है और इसलिए नहीं है, क्योंकि संप्रग सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए बयानबाजी और बैठकें करने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रही है। शायद यही कारण है कि आतंकवाद कहीं अधिक गंभीर रूप ले चुका है। पहले आतंकी वारदात करने के बाद उसकी जिम्मेदारी अपने सिर लेते थे। अब बम विस्फोट होते ही वे सूचित कर देते हैं कि कृपया नोट करें कि आपके शहर में ये जो चार-छह-दस बम धमाके हो रहे हैं वे हमने किए हैं, रोक सको तो रोक लो। पहले आतंकी घटनाओं के बाद यह सामने आता था कि मारा अथवा पकड़ा गया आतंकी गुलाम कश्मीर या कराची का रहने वाला है। अब यह सामने आता है कि मारा या पकड़ा गया आतंकी मुंबई, आजमगढ़, मेरठ अथवा इंदौर का है। पहले आतंकी हमलों की साजिश सीमापार के आतंकवादी संगठन रचते थे। अब यह काम उपरोक्त शहरों के देशी आतंकी कर रहे हैं। पहले आतंकी हमलों के बाद लश्कर, जैश जैसे संगठनों के नाम चर्चा में आते थे। अब सिमी और इंडियन मुजाहिदीन की चर्चा होती है। तब और अब में एक और खतरनाक अंतर यह है कि पहले किसी आतंकवादी या आतंकी संगठन के खिलाफ कोई सहानुभूति जताने की हिम्मत नहीं करता था, लेकिन अब आतंकियों के भी हमदर्द मौजूद हैं और आतंकवादी संगठनों के भी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने एक मंत्री रामविलास पासवान से अच्छी तरह परिचित होंगे, जिन्हें इस बात से बहुत तकलीफ है कि सिमी पर पाबंदी लगा दी गई। संभवत: देश भी उन नेताओं से अच्छी तरह परिचित होगा जिनके लिए आजमगढ़ का एक गांव तब एक तीर्थस्थल सरीखा बन गया था जब वहां से अहमदाबाद बम धमाकों के आरोपी अबू बशर को गिरफ्तार किया गया था। देश को उन नेताओं पर भी गौर करना होगा जिन्होंने दिल्ली पुलिस के बहादुर इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की शहादत पर अफसोस का एक शब्द भी प्रकट करना जरूरी नहीं समझा। इनमें से कुछ नेता वही हैं जिन्हें विगत में फलस्तीन और ईरान के हालात पर चिंतित होते देखा गया है। बावजूद इसके यदि संप्रग सरकार यह रंट्टा लगाती है कि वह आतंकवाद से निपट रही है, निपट लेगी और आतंकवाद के खिलाफ नरमी बरतने के आरोप विपक्ष के दुष्प्रचार का हिस्सा हैं तो इसका मतलब है कि वह आतंकवाद से नहीं लड़ना चाहती।

केंद्र सरकार ने आतंकवाद के मामले में जैसी रीति-नीति अपना रखी है उसे देखते हुए विपक्ष के हमलावर होने में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं, लेकिन जब देश का ध्यान आतंकवाद पर केंद्रित होना चाहिए तब मुख्य विपक्षी दल भाजपा का एक सहयोगी संगठन बजरंग दल अपना सारा ध्यान गिरजाघरों पर हमला करने में लगाए हुए है। यह तब है जब भाजपा यह मानकर चल रही है कि केंद्र की सत्ता उसके हाथ में आने वाली है। बजरंग दल को ईसाई मिशनरियों के तौर-तरीकों पर आपत्तिहो सकती है और होनी भी चाहिए, लेकिन क्या उसे उग्र रूप धारण कर उनके खिलाफ आक्रामक होने के लिए यही समय मिला था? सवाल यह भी है कि ईसाई मिशनरियों के छल-छद्म के खिलाफ हिंसा का रास्ता अपनाकर बजरंग दल बदनामी के अलावा और क्या हासिल कर लेगा? यह संभव है कि बजरंग दल के नेतृत्व को यह समझ में न आ रहा हो कि उसके कार्यकर्ता बेवकूफी कर रहे हैं, लेकिन क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा को भी यह नहीं समझ आ रहा है? हो सकता है कि उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार ईसाई मिशनरियों के छल-कपट की अनदेखी कर रही हो, लेकिन क्या कर्नाटक सरकार के पास भी ऐसी वैधानिक शक्ति नहीं कि वह मतांतरण में लिप्त ईसाई मतप्रचारकों के खिलाफ उचित कार्रवाई न कर सके? सवाल यह भी है कि जब भाजपा केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रही थी तब उसने ईसाई मिशनरियों पर लगाम लगाने का काम क्यों नहीं किया? कुल मिलाकर सत्तापक्ष और विपक्ष के आचरण को देखकर कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि जो देश आतंकवाद से लड़ना नहींजानता वह दक्षिण एशिया में स्थित है और भारत नाम से जाना जाता है तथा खुद को महाशक्ति बनने के सपने देखा करता है।


Monday, September 22, 2008

बाजार से लौट रहे युवक पर हमला, तनाव

बिलरियागंज (आजमगढ़)। जिले में साम्प्रदायिक तनाव की आंच अभी भी कहीं न कहीं भड़क जा रही है। इसकी एक बानगी रविवार को दिन में रौनापार थाना क्षेत्र के चांद पट्टी बाजार में देखने को मिली। यहां उपद्रवियों ने अपने मां के साथ बाजार से खरीदारी कर घर लौट रहे युवक पर हमला कर दिया। घायल युवक का एक निजी अस्पताल में उपचार चल रहा है।

बताते है कि रौनापार थाना क्षेत्र के पकड़ियहवा ग्राम निवासी अशोक यादव (30) पुत्र मोती यादव रविवार को दिन में अपनी मां के साथ चांद पटं्टी बाजार आया था। मां-बेटे सोमवार को पड़ने वाले जीवतपुत्रिका पर्व के लिए सामानों की खरीदारी कर वापस लौट रहे थे कि बाजार के बाहर एक वर्ग के लगभग आधा दर्जन युवक अशोक यादव पर लाठी-डण्डों से लैस होकर टूट पड़े। बेटे को मार खाते देख महिला ने शोर मचाया। शोर सुनकर अगल-बगल के लोग जब तक मौके पर जुटते तब तक हमलावर फरार हो गये थे। घायल युवक को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस बात की जानकारी जब घायल युवक के गांव वालों को हुई तो वे दर्जनों की संख्या में लामबंद होकर चांद पटं्टी बाजार आ गये और हमलावरों की तलाश करने लगे। इसी बीच किसी ने इसकी जानकारी रौनापार थाने को दी। सूचना पाकर वहां तैनात उपनिरीक्षक मय फोर्स मौके पर पहुंच गये और घटना क्रम की जानकारी लेने के बाद हमलावर युवकों की तलाश में जुट गये। इस घटना को लेकर क्षेत्र में तनाव व्याप्त है। बताते चलें कि बुधवार को दिन में उन्हीं युवकों ने स्थानीय कस्बा निवासी अनिरुद्ध पुत्र हरदेव व प्रताप पुत्र वंशराज नामक दलित युवकों को भी बुरी तरह पीटकर घायल कर दिया था। इसकी भी शिकायत मुकामी थाने में की गयी थी लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। नतीजा यह कि क्षेत्र में दोनों घटनाओं को लेकर तनाव व्याप्त है। घायल अशोक यादव पक्ष की ओर से थाने में हमलावरों के विरुद्ध तहरीर दी गयी है लेकिन समाचार लिखे जाने तक प्राथमिकी दर्ज नहीं हो सकी थी।

हाटा में उपद्रव: 60 पर मुकदमा, बंद रही दुकानें

दैनिक जागरण , हाटा (कुशीनगर ), 20 सितम्बर, २००८ । सांसद योगी आदित्यनाथ की जनसभा की समाप्ति के पहले उपनगर के मेन बाजार में हुये उपद्रव, पथराव व तोड़ फोड़ की घटनाओं का असर दूसरे दिन शनिवार को भी दिखा। उप नगर में जहां शांतिपूर्ण तनाव की स्थिति दिन भर रही वहीं अफवाहें फैलने से कई बार अफरा तफरी भी दिखी। इसका सीधा असर बाजार के चहल पहल पर पड़ा और सड़कें सूनी नजर आयी। यहां तक कि दवा की अधिकांश दुकानें तक बंद दिखी।

पुलिस ने तोड़फोड़ के मामले में कुल 60 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है, जिसमें से 9 नामजद हैं।

बता दें कि उपनगर में शुक्रवार की सायं योगी आदित्यनाथ की सभा के समापन से पूर्व लगभग 6 बजे कुछ उपद्रवी सड़क पर लाठी, डंडा व राड लेकर उतर आये। इसके कुछ दुकानों में तोड़ फोड़ व पथराव की घटना हुई। पुलिस कप्तान ज्ञान सिंह व मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ तत्काल मयफोर्स मौके पर पहुंच गये तथा उपद्रवियों को पीट कर खदेड़ दिया एवं स्थिति नियंत्रण में कर लिया। इसके बाद पुलिस बल तब और बढ़ गया जब सभा सम्पन्न होने के बाद योगी गोरखपुर रवाना हो गये। कुछ ही पलों में माहौल सामान्य हो गया। उधर तेज बारिश ने भी अमन चैन बनाने में काफी सहयोग किया। रात भर पुलिस चौकसी बनी रही।

उधर शनिवार को भी पुलिस व प्रशासन काफी चौकन्ना रहा तथा उपनगर के हर चौराहे, प्रत्येक रास्ते तथा संवेदनशील चिह्नित स्थानों पर पुलिस बल का विशेष पहरा था। प्रभारी जिलाधिकारी केदारनाथ, पुलिस कप्तान ज्ञान सिंह, अपर जिलाधिकारी जे.एन. दीक्षित के दिशा निर्देशन में उप जिलाधिकारी हाटा अरुण कुमार, कसया बी.एस. चौधरी, पुलिस क्षेत्राधिकारी ज्ञानेन्द्र कुमार सिंह, स्वामीनाथ पूरे दिन भ्रमण कर शांति व्यवस्था का जायजा लिया।

उधर यूं तो शनिवार साप्ताहिक बंदी का दिन है। लेकिन आधी दुकानें ही बंद रहती रही है। शायद तनाव व आशंका का ही असर था कि सभी दुकानें बंद रही। हाल यह था कि दवा की इक्का दुक्का दुकानों को छोड़ सभी दुकानें बंद रही। स्कूल या तो बंद रहे या फिर बच्चे पढ़ने ही नहीं गये। दिन भर अफवाहे फैलती रही और कई बार अफरा तफरी में भी लोग दिखे। उधर सायं चार बजे सड़क पर ज्यादा भीड़ लगने पर पुलिस ने हल्का बल प्रयोग कर सबको यह कहते हुये खदेड़ दिया कि निषेधाज्ञा लागू है। फिलहाल समाचार लिखे जाने तक स्थिति तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में थी। शुक्रवार को देर रात पुलिस अधीक्षक ज्ञान सिंह ने खुद 9 चिह्नित उपद्रवियों तथा 51 अज्ञात अराजक तत्वों के विरुद्ध मुकदमा अ.सं. 775/08 धारा 147, 148, 332, 353, 188 व 504 आई.पी.सी. के तहत प्राथमिकी दर्ज की है।

सामाजिक अशांति की अनदेखी

ईसाइयों और हिंदू संगठनों के बीच टकराव के मूल कारणों पर प्रकाश डाल रहे है संजय गुप्त

दैनिक जागरण २० सितम्बर २००८। लगभग डेढ़ माह पूर्व उड़ीसा के कंधमाल जिले में विश्व हिंदू परिषद से जुड़े संत लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के बाद वहां हिंदुओं और ईसाइयों के बीच भड़की हिंसा शांत होती, इसके पहले ही कर्नाटक के कुछ इलाकों में इन दोनों समुदायों के बीच तनाव व्याप्त हो गया। इस तनाव के बीच मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक चर्च पर हमले की सूचना आई। हिंदुओं और ईसाइयों के बीच तनावपूर्ण रिश्ते शुभ नहीं। यह चिंताजनक है कि इन समुदायों के बीच पनपे वैमनस्य के मूल कारणों की अनदेखी की जा रही है। कंधमाल में लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के इतने दिनों बाद भी यह स्पष्ट नहीं कि उन्हे किसने मारा-नक्सलियों ने या ईसाई चरमपंथियों ने? न केवल लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान आवश्यक है, बल्कि उन तत्वों पर लगाम भी जरूरी है जो राज्य में अराजकता पैदा कर रहे है। केंद्र का कहना है कि भाजपा के समर्थन के कारण नवीन पटनायक सरकार उग्र हिंदू संगठनों को नियंत्रित नहीं कर रही है। केंद्र के नेताओं ने कुछ ऐसा ही आरोप कर्नाटक सरकार पर भी लगाया है, जहां कुछ गिरजाघरों पर हमले किए गए है। केंद्र ने कर्नाटक और उड़ीसा को चेतावनी देने के बाद मध्य प्रदेश और केरल को भी चेताया है। भले ही इस पर विवाद हो कि केंद्र ने उड़ीसा और कर्नाटक को अनुच्छेद 355 के तहत चेतावनी दी या नहीं, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि उसका रवैया सख्त है। क्या यह विचित्र नहीं कि केंद्र ने ऐसी सख्ती न तो महाराष्ट्र सरकार के संदर्भ में दिखाई और न ही असम सरकार को लेकर, जबकि इन दोनों राज्यों में हिंदी भाषियों को रह-रह कर आतंकित किया गया। यह शर्मनाक है कि असम में हिंदी भाषियों की हत्या और उसके कारण उनके पलायन पर भी केंद्र को अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं हुआ।

उड़ीसा एवं कर्नाटक में बजरंग दल जिस तरह आक्रामक तेवरों के साथ कानून अपने हाथ में लेकर ईसाइयों के धार्मिक स्थलों को निशाना बना रहा है उससे उसकी छवि लगातार गिर रही है। हिंदू हितों की रक्षा के लिए सक्रिय यह संगठन बेलगाम हो रहा है। एक ऐसे समय जब देश इस्लामी आतंकवाद से बुरी तरह त्रस्त है तब हिंदू संगठनों की उग्रता शांति एवं सद्भाव के लिए एक बड़ा खतरा है। यदि बजरंग दल इसी तरह की गतिविधियां जारी रखता है तो उस पर पाबंदी लग सकती है। ऐसा होने पर उसकी छवि एक आतंकी संगठन के रूप में उभरना तय है और यदि ऐसा कुछ होता है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी होना स्वाभाविक है। बजरंग दल यह तर्क दे सकता है कि देश के नीति-नियंता हिंदू संस्कृति का अपमान करने वालों को खुली छूट प्रदान कर रहे है इसलिए वह अपने तरीके से अन्याय का प्रतिकार कर रहा है। इसमें दो राय नहीं कि मतांतरण में लिप्त मिशनरियों पर अंकुश नहीं लगाया जा रहा, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि बजरंग दल मनमानी पर उतर आए और हिंदू समाज एवं राष्ट्र की छवि की परवाह न करे। यह संगठन जिस राह पर चल रहा है उससे किसी का भी हित नहीं होने वाला। कम से कम भाजपा को तो यह अनुभूति होनी चाहिए कि वह बजरंग दल को नियंत्रित न करके आग से खेलने का काम कर रही है। धीरे-धीरे यह धारणा गहराती जा रही है कि भाजपा शासित राज्यों में यह संगठन ईसाइयों और मुसलमानों के प्रति असहिष्णु हो उठता है और उसे सत्ता का संरक्षण मिलता है। यह स्थिति भाजपा के लिए गहन चिंता का कारण बननी चाहिए।

पिछले लगभग दो दशकों से देश में जैसे सामाजिक बदलाव हो रहे है उससे हिंदू संस्कृति पर आंच आ रही है। बात चाहे पूर्वोत्तर में बांग्लादेशी घुसपैठियों की हो या देश के विभिन्न भागों में ईसाई मिशनरियों के मतांतरण अभियान की-इस सबका दुष्प्रभाव अब साफ दिखने लगा है। समस्या यह है कि हमारे ज्यादातर राजनीतिक दल न तो बांग्लादेशी घुसपैठियों की बढ़ती आबादी को लेकर चिंतित है और न ही निर्धन एवं अशिक्षित व्यक्तियों को मतांतरित किए जाने पर। कुछ राजनेता तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति भी नरम है और मतांतरण में लिप्त मिशनरियों के प्रति भी। वे यह मानने को तैयार नही कि इस सबसे हिंदू संस्कृति प्रभावित हो रही है। बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ और ईसाई मिशनरियों की अवांछित सक्रियता पर भाजपा हमेशा यह कहती रही है कि एक सोची समझी साजिश के तहत हिंदू अस्मिता पर आघात किया जा रहा है, लेकिन तथाकथित सेकुलर दल उसकी सही बात सुनने को तैयार नहीं।

इस पर कोई संशय नहीं हो सकता कि संविधान में ऐसी कोई छूट नहीं दी गई है कि ईसाई मत प्रचारक मनमाने तरीके से भारत के लोगों का मतांतरण कर सकें या फिर पड़ोसी देश के लोग बेरोक-टोक आकर यहां बसते रहे। चूंकि ईसाई मिशनरियां छल-छद्म और प्रलोभन के जरिये निर्धन तबकों को मतांतरित कर रही हैं इसलिए विश्व हिंदू परिषद मतांतरित लोगों की घर वापसी यानी मूल धर्म में वापसी का अभियान चलाने के लिए बाध्य है। यदि ईसाई मिशनरियों को मतांतरण की छूट दी जाती रहेगी तो घर वापसी के अभियान चलते रहेगे और चलते रहने भी चाहिए। उड़ीसा में हिंदुओं और ईसाइयों के बीच तनाव का मूल कारण मतांतरण ही है। राज्य में कुई भाषी कंध और पण जातियों के बीच टकराव की स्थिति है। वैसे तो कंध जनजाति और पण दलित, दोनों आरक्षण के दायरे में हैं,पर कंध जनजाति के लोग मतांतरित होने के बाद भी आरक्षण का लाभ उठाते रहते हैं, जबकि पण दलित मतांतरित होने की स्थिति में आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाते हैं। बड़े पैमाने पर ईसाई मत अपनाने वाले पण खुद को कुई भाषी बताकर अपने लिए जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं। इस मांग को ईसाई मिशनरियां और वोट के लोभ में कुछ कथित सेकुलर दल समर्थन दे रहे हैं। कंध जनजाति के लोगों को लगता है कि यदि पण लोगों की मांग मान ली गई तो उनके अधिकार छिन जाएंगे। उन्हें यह भी लगता है कि उन्हें अपने मूल धर्म में बने रहने का खामियाजा उठाना पड़ सकता है। उनका भय जायज है, पर सेकुलर दल यह समझने के लिए तैयार नहीं। कर्नाटक में भी तनाव की जड़ में ईसाई मिशनरियों की अति सक्रियता है। देश को इस पर गौर करना होगा कि ईसाई मिशनरियां क्या कर रही हैं? कर्नाटक में मिशनरियों द्वारा वितरित की जा रही सत्यदर्शिनी नामक पुस्तिका में यहां तक कहा गया है कि भगवान राम तो मूर्ख थे। ऐसी ही बातें अन्य देवी देवताओं के बारे में कही गई हैं। क्या दुनिया का कोई भी समाज अपने देवताओं के बारे में ऐसी भाषा सहन करेगा?

मतांतरण व्यक्ति विशेष का निजी मौलिक अधिकार है। पूजा पद्धति पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता। विडंबना यह है कि हमारे देश में सामूहिक मतांतरण होता है। यह सहज संभव नहीं कि कोई एक बस्ती रातों-रात अपनी आस्था बदलने के लिए तैयार हो जाए। इस संदर्भ में यह नहीं भूलना चाहिए कि जो लोग मतांतरित हो रहे है वे गरीब और अशिक्षित है। उनके अभावों को दूर करने के लिए उन्हे तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाते है और फिर आस्था बदलने की शर्त रखी जाती है। यह एक यथार्थ है कि हर राष्ट्र की एक संस्कृति होती है और उसकी आत्मा उस संस्कृति में बसती है। भारत की आत्मा उसके हिंदुत्व प्रधान चरित्र में है। बांग्लादेशी घुसपैठियों और मतांतरित ईसाइयों के कारण जैसा समाज बन रहा है वह भारत की परिकल्पना के प्रतिकूल है।