दैनिक जागरण, २६ सितम्बर २००८. अहमदाबाद। छह साल पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को पूर्व नियोजित साजिश के तहत आग के हवाले किया गया था। गुजरात सरकार द्वारा मामले की जांच के लिए गठित एक आयोग का यही निष्कर्ष है। इस आयोग ने पिछले दिनों राज्य सरकार को अपनी आंशिक रिपोर्ट सौंपी थी। बृहस्पतिवार को विपक्ष के बहिर्गमन के बीच इसे विधानसभा में पेश किया गया। रिपोर्ट में बोगी जलाए जाने के बाद भड़के दंगों के सिलसिले में राज्य की नरेंद्र मोदी सरकार और पुलिस-प्रशासन को पाक-साफ करार दिया गया है। इन दंगों में एक हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।
साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच को आग के हवाले करने के पीछे मुख्य साजिशकर्ता के रूप में मौलाना उमरजी का नाम सामने आया है। नानावटी आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 27 फरवरी, 2002 को सुबह आठ बजे जब रामसेवक अयोध्या से गुजरात लौट रहे थे, तब गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 तथा एस-7 कोच पर दस से बीस मिनट तक पथराव किया गया। इसके बाद आरोपियों ने कोच के दरवाजे खोल कर पेट्रोल उड़ेल दिया। फिर हसन लालू ने जलते कपड़े फेंक कर कोच को आग के हवाले कर दिया। इस घटना में 59 कारसेवक जिंदा जल गए। इनमें 27 महिलाएं तथा 10 बच्चे थे। 48 लोग बुरी तरह जख्मी हो गए थे।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साजिश को अंजाम देने के लिए सलीम पानवाला तथा रजाक कुर्कुर नामक दो युवकों ने 26 फरवरी को रात्रि दस बजे 140 लीटर पेट्रोल खरीदा था। मौलवी उमरजी, रजाक कुर्कुर तथा पानवाला के अलावा इस साजिश में सौकत लालू, इमरान शेरी, रफीक बटुक, सलीम जरदा, जब्बीर, सीराजवाला को भी लिप्त बताया गया है।
समूची साजिश गोधरा के अमन गेस्ट हाउस में रची गई। रात को पेट्रोल भी यहीं पर रखा गया था। आयोग के मुताबिक आरोपियों ने राच्य सरकार, प्रशासन तंत्र तथा जनता में भय व आतंक पैदा करने के लिए इस घृणास्पद षड्यंत्र को अंजाम दिया।
आयोग ने गोधरा काड के बाद भड़के दंगों को लेकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों तथा पुलिस अधिकारियों को क्लीन चिट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समूची घटना में मुख्यमंत्री समेत सरकार तथा प्रशासन के किसी भी व्यक्ति का हाथ होने के कोई सबूत नहीं है।
आयोग ने दंगा पीड़ितों को सुरक्षा, राहत एवं पुनर्वास के मामले में राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम को संतोषजनक बताते हुए कहा है कि इस संबंध में मानव अधिकार आयोग के निर्देशों का उल्लंघन किए जाने की कोई शिकायत नहीं है।
विधानसभा में यह रिपोर्ट पेश किए जाने के वक्त विपक्षी काग्रेस के सदस्य सदन से बाहर चले गए। काग्रेस ने सरकार पर इसे राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास बताते हुए नाटक करार दिया है।
छह साल में 12 बार बढ़ा कार्यकाल
गुजरात सरकार ने गोधरा काड तथा इसके बाद भड़के दंगों की जाच के लिए 6 मार्च, 2002 को उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केजी शाह की नियुक्ति की। 21 मई को सुप्रीमकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जीटी नानावटी को भी इसमें बतौर अध्यक्ष शामिल कर लिया गया। 22 मार्च, 2008 को शाह के निधन के बाद उनके स्थान पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश अक्षय मेहता को आयोग में नियुक्त किया गया। आयोग का कार्यकाल पिछले छह वर्ष में 12 बार बढाया गया। हाल में कार्यकाल 31 दिसंबर, 2008 तक बढ़ाया गया है।
जटिल जांच
नानावटी आयोग ने जनता से 44 हजार 275 शपथ पत्र तथा आवेदन पत्र, राज्य सरकार की ओर से दो हजार 19 शपथ पत्र तथा एक हजार सोलह गवाहों से पूछताछ के बाद 168 पेज तथा 230 पैराग्राफ की रिपोर्ट का प्रथम हिस्सा तैयार किया है।
बनर्जी आयोग ने बताया था हादसा
गोधरा कांड की जांच के लिए रेल मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज यूसी बनर्जी की अध्यक्षता में दो सदस्यीय आयोग बनाया था। इस आयोग ने गोधरा कांड को हादसा करार दिया था।
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