Monday, October 15, 2012

युवती का धर्म परिवर्तन कराकर बंधक बनाया

http://www.amarujala.com/National/lady-kept-as-hostile-after-religion-changed-32473.html
पांच माह पहले पंजाब के लुधियाना से अगवा करके लाई गई लड़की को धर्म परिवर्तित कराकर परतापुर के गांव कांशी में जबरन रखा गया। सूचना पर जब उसका पिता परतापुर थाने पहुंचा, तो आरोपी उसे भी उठा ले गए। पुलिस ने लड़की और उसके पिता को बरामद कर लिया। पुलिस ने लड़की को पिता के सुपुर्द कर दिया, लेकिन आरोपियों के खिलाफ बिना कार्रवाई किए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।

मंदिर को क्षति पहुंचाने पर ईशनिंदा के तहत आरोप

http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-267325.html
इस्लाम विरोधी फिल्म के खिलाफ कराची में हुए हालिया प्रदर्शन के दौरान हिंदुओं के कुछ घरों पर कथित हमला करने और एक मंदिर को क्षति पहुंचाने वाले कुछ मुस्लिम नागरिकों पर देश के कठोर ईशनिंदा कानून के तहत आरोप लगाए गए हैं।

पाकिस्तान में कोर्ट ने हिंदू मंदिर तोड़ने पर लगाई रोक

http://www.jagran.com/news/world-dont-demolish-200yearold-hindu-temple-pakistani-court-9672127.html

पाकिस्तान की एक अदालत ने कराची स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर को तोड़ने पर रोक लगा दी है। अदालत ने इसके लिए कराची प्रशासन को संयम रुख अपनाने का निर्देश दिया है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 200 साल पूर्व किया गया था।

गोमांस पार्टी पर जेएनयू प्रशासन का नोटिस जारी

http://www.jagran.com/news/national-beef-party-jnu-administration-on-notice-9672029.html
जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) प्रशासन और दिल्ली पुलिस ने संयुक्त रूप से रविवार को सभी छात्रावासों और सीनियर वार्डन को गोमांस पार्टी के आयोजन पर रोक लगाने संबंधी नोटिस जारी किया है। नोटिस में कहा गया है कि गोमांस पार्टी का आयोजन कानूनी तौर पर जुर्म है। अगर कोई छात्र ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यूपी में कभी भी भड़क सकते हैं सांप्रदायिक दंगे: आईबी

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16528206.cms
आईबी ने केंद्र को आगाह किया है कि आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा विस्फोटक रूप ले सकती है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में जब से समाजवादी पार्टी ने सत्ता संभाली है, तब से यूपी के कई हिस्सों से सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं। अब तक इस तरह की 7 घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने चिंता जाहिर की है, कि आने वाले दिनों में हालात और खराब हो सकते हैं।

ब्रिटिश चर्च ने योग पर लगाया बैन

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16559197.cms
लंदन।। ब्रिटेन के एक चर्च ने अपने कैंपस में योग करने पर बैन लगा दिया है। चर्च का कहना है कि कसरत का यह प्राचीन भारतीय तरीका उनकी धार्मिक भावनाओं से मेल नहीं खाता है।

Monday, September 17, 2012

यूपी: मसूरी में बवाल के बाद फायरिंग, कर्फ्यू

http://www.amarujala.com/National/firing-after-affray-in-mussoorie-late-night-curfew-imposed-31822.html
उत्तरप्रदेश में बरेली के बाद अब गाजियाबाद के मसूरी क्षेत्र में शुक्रवार शाम को हुए बवाल को बढ़ता देख देर रात कर्फ्यू लगा दिया गया। बवाल शुक्रवार शाम एक धार्मिक पुस्तक के पन्ने फाड़कर फेंकने की अफवाह पर हुआ। एक समुदाय विशेष के गुस्साए लोगों ने मसूरी थाने में तोड़फोड़ कर वहां खड़े दर्जनों वाहनों में आग लगा दी।

शरीफ की हिंदुओं से अपील, देश छोड़कर ना जाएं

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16401600.cms
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हिंदुओं से अपील की है कि वे समस्याओं के बावजूद देश छोड़कर नहीं जाएं। 

मसूरी हिंसा: पुलिस को शक, पहले से प्लैनिंग थी

http://navbharattimes.indiatimes.com/was-mussoorie-violence-pre-planned/articleshow/16429775.cms
शुक्रवार को गाजियाबाद के मसूरी इलाके में हुई हिंसा कहीं पहले से योजना बनाकर तो अंजाम नहीं दी गई थी? जिस तरह से अचानक ही हंगामा हिंसा में तब्दील हो गया और आगजनी-फायरिंग हुई, उससे पुलिस का शक बढ़ रहा है और वह मामले की जांच इस एंगल से भी कर रही है।

Friday, September 14, 2012

एनसीआर के धार्मिक स्थल आतंकी निशाने पर!

http://www.amarujala.com/National/ncr-religious-sites-on-militant-target-31714.html
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के प्रमुख धार्मिक स्थल आतंकी निशाने पर हैं। पिछले दिनों दिल्ली में संदिग्ध लोगों के कब्जे से मिले 25 नक्शे इस आशंका को बल दे रहे हैं। यही वजह है कि एंटी टेररिस्ट स्क्वैड (एटीएस) लगातार प्रमुख धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की समीक्षा कर रहा है। 

असम के शिविरों से भागने लगे बांग्लादेशी घुसपैठिए

http://www.jagran.com/news/national-bangladeshi-immigrants-fleeing-to-camps-in-assam-9658444.html
स्थानीय प्रशासन की सख्ती के बाद असम के राहत शिविरों में शरण लेने वाले घुसपैठिए बांग्लादेश भागने लगे हैं। जुलाई में हिंसा के बाद असम में लगभग दो लाख लोग अब भी राहत शिविरों में रह रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों के शामिल होने की आशंका है। इनकी पहचान कर उन्हें वापस भेजने के लिए 64 नए ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की गई है।

नेपाल में चित्रकार को धमकियों के बाद प्रदर्शनी बंद

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16386146.cms
 हिन्दू देवी-देवताओं को गलत तरीके से चित्रित करने पर एक चित्रकार को कार्यकर्ताओं की ओर से कथित रूप से जान से मारने की धमकियों के बाद यहां एक चित्रकला प्रदर्शनी को बंद कर दिया गया।

Tuesday, September 11, 2012

कर्नाटक में इंडियन मुजाहिद्दीन के चार संदिग्ध आतंकी गिरफ्तार

http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-257290.html
चिन्नास्वामी स्टेडियम में वर्ष 2010 में हुए विस्फोट के मामले में गुरुवार को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन के चार संदिग्ध सदस्यों को कर्नाटक के हुबली से गिरफ्तार किया गया है।

अमरनाथ यात्रा के विरोध में कश्मीर बंद

http://www.jagran.com/news/national-protest-against-amarnath-yatra-9634084.html
 अमरनाथ यात्रा को लेकर कश्मीर में शुरू हुई अलगाववादियों की सियासत ने अपना रंग दिखाते हुए मंगलवार को सामान्य जनजीवन की रफ्तार को अस्त-व्यस्त किया। सरकारी कार्यालयों के अलावा हर एक जगह हड़ताल रही। हालांकि, बंद के दौरान किसी भी तरह की अप्रिय घटना नहीं घटी। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध कर रखे थे। सैयद अली शाह गिलानी, शब्बीर शाह, मीरवाइज, नईम अहमद खान समेत सभी प्रमुख अलगाववादियों को प्रशासन ने नजरबंद रखा।

अब विहिप का हिंदू हेल्पलाइन कार्ड

http://www.jagran.com/news/national-vhp-launch-hindu-helpline-card-9636645.html
विहिप की ओर से हिंदू हेल्प लाइन के दो टेलिफोन नंबर हैं। इसको डायल कर कोई भी हिंदू देश के किसी भी कोने से अपनी समस्या बताकर मदद मांग सकता है। कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति उनका पूरा ब्योरा एकत्रित करने के बाद संबंधित जिला या महानगर प्रमुख से संपर्क कर उन्हें पूरी जानकारी देगा। फिर वह उस व्यक्ति के पास पहुंचकर मदद करेंगे। कुछ देर बाद कंट्रोल रूम में बैठा व्यक्ति पुन: मदद मांगने वाले संपर्क कर उनकी स्थिति का पता करेगा। इसके बाद संपर्क का दौर लगातार चलता रहेगा।

बांग्लादेशियों को वापस नहीं भेज सकते : गोगाई

http://www.jagran.com/news/national-assam-alone-cannot-stop-infiltration-says-tarun-9635872.html
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा है बांग्लादेशियों को वह राज्य से बाहर नहीं निकाल सकते हैं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की पहचान करना उनका काम जरूर है, लेकिन बांग्लादेशियों को राज्य से बाहर करने का काम उनका नहीं है। उन्होंने इस मुद्दे पर गेंद केंद्र के पाले में फेंक दी है। उन्होंने कहा कि यह काम केंद्र सरकार का है।

पाक में दो हजार अल्पसंख्यकों को बनाया मुसलमान

http://www.jagran.com/news/world-2000-girls-from-minority-sects-converted-to-islam-9637279.html
पाकिस्तान में हिंदू, सिख, ईसाई एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की दो हजार औरतों और लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया है। इसके लिए बलात्कार, यातना और अपहरण को हथियार बनाया गया। जबरन धर्म परिवर्तन के अलावा अल्पसंख्यक समुदाय के 161 लोगों को ईशनिंदा कानून में फंसाया गया। ये आंकड़े 2011 के हैं।

पाकः बच्चों के दिमाग में हिंदू और भारत के खिलाफ घोला जा रहा जहर

http://www.amarujala.com/international/Pakistan/pakistani-books-provoke-children-against-india-and-hindu-13417-3.html
ऐसे समय में जब पाकिस्तान आतंकवाद से त्रस्त है, उस घड़ी में भी उसका आधिकारिक शैक्षिक जगत स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदुओं, ईसाइयों और सिखों के खिलाफ जातीय घृणा फैलाने वाली सामग्री को शामिल करने पर रोक लगाने में अक्षम है। वहां के बच्चों के दिमाग में हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों और भारत के खिलाफ जहर घोला जा रहा है। 

युवाओं में बढ़ती कट्टरता नई चुनौती

http://www.jagran.com/news/national-new-challenge-of-growing-radicalization-among-youth-9640126.html
युवाओं में बढ़ती कंट्टरता देश के लिए नया खतरा बन गई है। पिछले दिनों बेंगलूर में पकड़े गए पढ़े-लिखे युवा आतंकियों का उल्लेख करते हुए खुफिया ब्यूरो [आइबी] के प्रमुख नेहचल संधू ने इससे निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया। उनके अनुसार इंटरनेट और मोबाइल पर आतंकी एवं अलगाववादी गतिविधियां सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौती बनकर उभरी हैं।

यूपी: अल्पसंख्यक छात्राओं को मिलेगा 30 हजार का अनुदान

http://www.amarujala.com/National/minority-girl-students-get-30-thousand-grant-in-up-31491.html
उत्तर प्रदेश सरकार ने कक्षा दस पास करने वाली अल्पसंख्यक बालिकाओं को एक और तोहफा दिया। अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब परिवार की छात्राओं को ‘बालिका शिक्षा अनुदान’ योजना के तहत 30,000 रुपये दिए जाएंगे।

सुरक्षा पर भारी पड़ते स्वार्थ

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion-9644739.html
असम में हाल में जो जातीय संघर्ष हुआ उसके बारे में बहुत भ्रातिया हैं। समस्या को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने की आवश्यकता है। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ उस समय भारी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थी आए। कालातर में जब पाकिस्तानी फौजों ने बंगालियों के विरुद्घ दमन चक्र चलाया तब मुसलमान भी भारी संख्या में भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में आए। 1971 में पाकिस्तान के टूटने और बाग्लादेश के सृजन पश्चात यह आशा हुई कि सभी जातिया और संप्रदाय के लोग साप्रदायिक सौहार्द के वातावरण में बाग्लादेश में रहेंगे, परंतु दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। शेख मुजीब की 1975 में हत्या कर दी गई और बाद में जनरल इरशाद ने इस्लाम को राजधर्म की मान्यता दी। इसके बाद बाग्लादेश में हिंदू, बौद्घ, ईसाई और जनजातिया यानी सभी वर्ग के अल्पसंख्यकों पर अत्यधिक अत्याचार हुए। आर्थिक कारणों से भारी संख्या में मुसलमानों ने बाग्लादेश से पलायन किया। ऐसा समझा जाता है कि बाग्लादेश से भारत आने वालों में 70 प्रतिशत मुसलमान और 30 प्रतिशत हिंदू व अन्य संप्रदायों के लोग थे। बाग्लादेश से घुसपैठ के अकाट्य प्रमाण हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के अनुसार 1951 व 1961 के बीच करीब 35 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान से चले गए थे। बाग्लादेश के चुनाव आयोग ने भी पाया कि 1991 व 1995 के बीच करीब 61 लाख मतदाता देश से गायब हो गए। स्पष्ट है कि ये सभी व्यक्ति भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में घुसपैठ कर चुके थे। 1996 में भी बाग्लादेश के चुनाव आयोग को मतदाता सूची से 1,20,000 नागरिकों के नाम काटने पडे़ थे, क्योंकि उनका कहीं अता-पता नहीं था। इतना सब होने के बाद भी बाग्लादेश के नेता जब यह कहते हैं कि उनके देश से अनधिकृत ढंग से पलायन नहीं हुआ तो उनकी गुस्ताखी की दाद देनी पड़ती है। भारत सरकार ने इस मुद्दे को बाग्लादेश सरकार से कभी गंभीरता से नहीं उठाया। 1998 में असम के तत्कालीन गवर्नर, जनरल एसके सिन्हा ने राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी थी कि बाग्लादेश से जिस तरह आबादी भारत में चली आ रही है, अगर उसका प्रवाह बना रहा तो वह दिन दूर नहीं जब असम के मूल निवासी अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और हो सकता है कि असम के कुछ जनपद भारत से कटकर अलग हो जाएं। चेतावनी का भारत सरकार पर कोई असर नहीं हुआ। कारगिल लड़ाई के बाद भारत सरकार ने चार टॉस्क फोर्सो का गठन किया था। इनमें से एक जो सीमा प्रबंधन से संबंधित थी उसके प्रमुख माधव गोडबोले भूतपूर्व गृह सचिव थे। इस टॉस्क फोर्स ने बड़ी निष्पक्ष आख्या प्रस्तुत की। गोडबोले ने अपनी रिपोर्ट में दो टूक शब्दों में लिखा कि बाग्लादेश से आबादी का जो अनधिकृत पलायन हो रहा है उसके बारे में सभी को मालूम है, परंतु दुर्भाग्य से समस्या से निपटने के लिए कोई आम सहमति नहीं बन पा रही है। टॉस्क फोर्स के आकलन के अनुसार सन् 2000 में बाग्लादेश से आए घुसपैठियों की संख्या लगभग 1.5 करोड़ थी। पिछले 12 वर्षो में यह संख्या बढ़कर कम से कम दो करोड़ तो हो ही गई होगी। 2001 में एक मंत्रि समूह ने टॉस्क फोर्स की रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा कि इतनी भारी संख्या में बाग्लादेशियों की उपस्थिति देश की सुरक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए एक खतरा है। यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के सामने भी गया। 12 जुलाई 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बाग्लादेशियों के भारी संख्या में अतिक्रमण के कारण असम में आतरिक अव्यवस्था और वाह्य आक्रमण जैसी स्थिति है और निर्देश दिया कि जो बाग्लादेशी भारत में अनधिकृत तरीके से घुस आए हैं उन्हें देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है और उन्हें भारत से निकाला जाए। भारत सरकार ने टॉस्क रिपोर्ट की संस्तुतियों की अनदेखी की, मंत्रि समूह की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना की। घुसपैठिए प्रथम चरण में तो याचक थे। स्थानीय नेताओं ने इन्हें अपना वोट बैंक बनाया और असम के निवासी होने के प्रमाण पत्र दिलाए। धीरे-धीरे इन लोगों ने जमीनें भी खरीदनी शुरू कर दी। इस तरह इन्होंने अपना आर्थिक आधार बना लिया। वर्तमान में जिसे तृतीय चरण कहा जा सकता है, अब ये घुसपैठिए अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। 2008 में दरंग और उदलगिरी जनपदों में बोडो जनजाति और घुसपैठियों में दंगे हुए थे। इनमें 55 व्यक्तियों की जानें गई थीं। हाल में कोकराझाड़, धुबड़ी और अन्य जनपदों में जो हिंसा हुई वह भी 2008 की घटनाओं की पुनरावृत्ति थी, केवल जनपद बदल गए थे। भारतीय सेना के जाने के बाद ही स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सका। सवाल यह है कि अब इस समस्या से निपटा कैसे जाए। इस विषय पर मेरे तीन सुझाव हैं। पहला तो यह कि राजीव गाधी की पहल पर 1985 में जो असम समझौता हुआ था उसको आधार मान कर जो भी लोग एक जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच असम आए थे उनका पता लगाकर उनका नाम मतदाता सूची से काट दिया जाए और जो लोग 25 मार्च 1971 के बाद आए थे उनका पता लगाने के बाद उन्हें वैधानिक तरीके से अपने देश वापस भेज दिया जाए। दूसरा, अगर यह मान लिया जाए कि इतने वर्षो बाद बाग्लादेशियों को वापस भेजना संभव नहीं तो कम से कम यह सुनिश्चित किया जाए कि इनको वोट देने का कोई अधिकार न हो और वह अचल संपत्ति भी न खरीद सकें। इन बाग्लादेशियों को वर्क परमिट दिया जाए, जिससे उन्हें रोजी कमाने का अधिकार तो हो, परंतु भारतीय नागरिक के सामान्य अधिकार न हों? तीसरा यह कि बंग्लादेश सीमा पर तार लगाने का जो कार्य चल रहा है उसे अतिशीघ्र पूरा किया जाए। नेशनल माइनॉरिटी कमीशन के अनुसार असम में जो हिंसा हुई थी वह बोडो और प्रवासी मुसलमानों के बीच थी। यह निष्कर्ष भ्रामक है कि यह मुसलमान आज की तारीख में भले प्रवासी हो गए हों, परंतु सब जानते हैं कि ये बाग्लादेश से आए थे और इन्होंने फर्जी दस्तावेज बनवा लिए हैं। एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने माइनॉरिटी कमीशन की रिपोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि वह बोडो के बारे में पूर्वाग्रह दिखाती हैं। बोडो वास्तव में अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री ने अपने एक बयान में कहा कि प्रदेश में एक ज्वालामुखी सुलग रहा है। यह सही है, सरकार ने अपनी सैनिक शक्ति से स्थिति पर नियंत्रण तो पा लिया है, परंतु यह चिंगारी सुलगती रहेगी। जो नेतृत्व अपने राजनीतिक स्वार्थ के आगे नहीं सोचता और जिसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण सत्ता में बने रहना है वह अपनी अकर्मण्यता और अदूरदर्शिता के दलदल में फंसता जाएगा।

मुसलमानों ने हमारे घर जलाए

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/09/120908_bodo_muslim_riot_pa.shtml
असमके बोडो स्वायत्त इलाके के तीन जिलों में हुए
क्लिक करबोडो-मुसलमान दंगों ने इस इलाके के सामाजिक ताने बाने को छिन-भिन्न कर दिया है.

हिंसा के पीछे अनपढ़ मुस्लिमों की बढ़ती आबादी : गोगोई

http://www.jagran.com/news/national-muslim-illiteracy-spreads-violence-in-assam-gogoi-9650544.html
असम में बढ़ती हिंसा के लिए बांग्लादेशी घुसपैठिये नहीं बल्कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि असम में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। मुसलमानों में शिक्षा का स्तर काफी कम है और इसको ही आबादी बढ़ने का मुख्य कारण माना जा रहा है। गोगोई के इस बयान ने राजनीतिक सरगर्मी तेज कर दी है। गोगोई के इस बयान से काग्रेस की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। विपक्ष इसे बहस का मुद्दा बना सकता है।

भारत पहुंचे 171 पाक हिंदू, शरणार्थी दर्जा देने की मांग

http://www.amarujala.com/National/171-pak-hindus-reached-india-seeking-refugee-status-31621.html
करीब 3 महीने की लंबी और मुश्किल यात्रा के बाद 171 पाक हिंदुओं का जत्था रविवार को भारत पहुंच गया। पड़ोसी मुल्क में असहनीय हालात से तंग आकर यहां आए हिंदुओं ने भारत में उन्हें शरणार्थियों का दर्जा देने की मांग की है। समुचित इंतजाम न होने तक फिलहाल वे यहां के एक मंदिर में डेरा डाले बैठे हैं। हिंदू प्रवासियों के पुनर्वास के लिए लड़ रहे सीमांत लोक संगठन के प्रमुख सोधा सिंह ने कहा कि हमने राज्य के मुख्यमंत्री को सूचित कर दिया है। उम्मीद है कि वे पाक से आए हिंदुओं के लिए समुचित इंतजाम करने के निर्देश देंगे। 

जेएनयू में गोमांस पार्टी की तैयारी

देश के प्रतिष्ठित संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय [जेएनयू] में एक संगठन गोमांस पार्टी की तैयारी कर रहा है। इस संगठन को एक वामपंथी संगठन बढ़ावा दे रहा है। माहौल बिगड़ने की आशंका को देखते हुए पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। विश्व हिंदू परिषद व अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पार्टी आयोजित करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में भी इस तरह की एक पार्टी हुई थी। विरोध में एक छात्र को चाकू मार दिया गया। इसके बाद भड़की हिंसा में पांच छात्र बुरी तरह घायल हुए थे और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया।
http://www.jagran.com/news/national-jnu-students-group-wants-cow-meat-in-party-vhp-warn-9650503.html

'चाहें तो हमें गोली मार दें, लेकिन पाकिस्तान वापस नहीं जाएंगे'

 तीर्थ यात्रा के नाम पर आए हिंदुस्तान गए पाकिस्तानी हिंदुओं के एक और जत्थे ने पाकिस्तान लौटने से इनकार कर दिया है। इस समूह के सदस्यों का कहना है कि उसे भले वहां मार दिया जाए, मगर वह वापस पाकिस्तान नहीं जाएगा। इस समूह के कुछ लोगों ने पाकिस्तान में अपनी दुर्दशा बताते हुए कहा कि वे पाकिस्तान में अपने मृत परिजनों का अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16336985.cms

Tuesday, September 4, 2012

विज्ञान ने साबित किया भगवान राम का अस्तित्व

http://www.jagran.com/news/national-lord-ramas-date-of-birth-scientifically-calculated-9609011.html
भगवान राम के अस्तित्व को लेकर समय-समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन कभी कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश किया जा सका। अब वैज्ञानिकों ने उनके अस्तित्व पर मोहर लगाई है। दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज (आइ-सर्व) को त्रेता युग के भगवान राम के जन्म की सटीक तिथि के बारे में पता लगाने में सफलता मिली है। संस्थान ने इसे वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने का भी दावा किया है। संस्थान की निदेशक सरोज बाला ने दैनिक जागरण डॉट कॉम के साथ विशेष बातचीत में बताया कि हमने अपने सहयोगियों और प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से प्रभु राम की जन्मतिथि की सटीक जानकारी प्राप्त की है। इससे भगवान राम का अस्तित्व भी प्रमाणित होता है।

'पाक सरकार के सामने उठाया हिंदुओं पर अत्याचार का मुद्दा'

http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-257696.html
सरकार ने शुक्रवार को कहा कि पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के साथ कथित लूटपाट, अपहरण, विशेषकर लड़कियों के, तथा उनका धर्म परिवर्तन कराने आदि की घटनाओं संबंधी खबरों को लेकर पड़ोसी देश से अपनी चिंता व्यक्त की गई है।

मेघालय की मंत्री को एसएमएस के जरिये दी जा रही धमकी

http://www.jagran.com/news/national-meghalaya-minister-claims-she-received-threatening-texts-9619792.html
शिलांग। असम हिंसा के बाद कर्नाटक और महाराष्ट्र का दौरा करने वाली टीम की सदस्य और मेघालय की शहरी मंत्री को एसएमएस के जरिये धमकी दी गई है।

पकड़े गए आतंकियों के निशाने पर था परमाणु संयत्र

http://www.amarujala.com/National/nuclear-plant-was-on-target-of-caught-terrorist-31316.html
कर्नाटक में गिरफ्तार किए गए आतंकियों ने बताया है कि उनका मकसद नेताओं और कुछ पत्रकारों के अलावा कैगा परमाणु संयंत्र पर हमला करना था। वे देश के महत्वपूर्ण नौसैनिक ठिकानों को भी अपना शिकार बनाने का षड़यंत्र रच रहे थे। पुलिस पूछताछ में आतंकियों ने ये अहम खुलासे किए हैं। स्थानीय अदालत ने इन आतंकियों को फिलहाल 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।

लाहौर में हिंदू पूजा स्थलों के पुनरुद्धार को याचिका

http://www.amarujala.com/international/Pakistan/revival-petition-for-hindu-temples-kept-in-lahore-13351-3.html
पाकिस्तान में मंदिरों की दुर्दशा को लेकर लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में अदालत से लाहौर के हिंदू पूजा स्थलों के पुनरुद्धार के लिए सरकार को निर्देश देने की गुहार लगाई गई है। पेशे से वकील जावेद इकबाल जाफरी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि इन परिसरों को उनके वास्तविक स्वरूप में रहने दिया जाए। साथ ही उन्होंने कहा है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है। 

धार्मिक मामलों से दूर रहे सरकार: गिलानी

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/09/120901_geelani_kashmir_aa.shtml
वरिष्ठ अलगाववादी नेता सैयद अली शाह ने सरकार पर सांप्रदायिक तत्वों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा, “हम पिछले 145 वर्षों से अमरनाथ गुफा तक हिंदुओं की तीर्थयात्रा करा रहे हैं. लेकिन अब इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है और हम ऐसा नहीं होने देंगे.”

सऊदी अरब से हो रहा था आतंकी माड्यूल का संचालन

http://www.jagran.com/news/national-karnataka-terror-module-handlers-based-in-saudi-arabia-9632550.html
बेंगलूर। हाल में बेंगलूर पुलिस ने जिस आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश किया, उसे सऊदी अरब से संचालित किया जा रहा था। सूत्रों के मुताबिक, सऊदी में बैठे इन आतंकी आकाओं में ज्यादातर भारतीय थे। यह तीसरा मामला है, जिसमें भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन खाड़ी देशों से किया गया। प्रत्यर्पित लश्कर आतंकी अबू जुंदाल और इंडियन मुजाहिदीन से जुड़ा फसीह मुहम्मद भी सऊदी अरब से ही अपने मॉड्यूल संचालित कर रहा था।

असम में नहीं रुक रही राहत शिविरों में आमद

http://www.jagran.com/news/national-1540-people-join-relief-camps-in-kokrajhar-and-chirang-9626319.html
गुवाहाटी। असम के हिंसाग्रस्त बोडो बहुल इलाकों में लोगों के राहत शिविरों में शरण लेने का सिलसिला जारी है। सरकारी बयान में शांति बताए के बावजूद हाल के दिनों में कोकराझाड़ और चिरांग जिलों के राहत शिविरों में 1,540 लोग आए हैं। आने वालों में 1,390 बोडो आदिवासी हैं।

अब हिजबुल ने किया अमरनाथ यात्रा का विरोध

http://www.jagran.com/news/national-hizb-chief-echos-geelanis-stand-on-amarnath-yatra-9629142.html
श्रीनगर, जागरण ब्यूरो। ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन सैयद अली शाह गिलानी के बाद हिजबुल मुजाहिद्दीन के आला कमांडर सैयद सलाहद्दीन ने भी अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या पर एतराज जताया है। उसने कहा कि यह कश्मीर की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक बनाने की साजिश है।

कर्नाटकः टेरर प्लॉट में अब तक 13 अरेस्ट

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/16218425.cms
बेंगलुरू।। कर्नाटक में आतंकवादी मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने की मुहिम के बीच पुलिस ने शनिवार रात एक और संदिग्ध युवक को अरेस्ट किया है। तकरीबन 22 साल के इस युवक का नाम मोहम्मद अकरम है। आरोप है कि उसके तार लश्कर-ए-तैयबा और हूजी जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। इसी के साथ कर्नाटक और आंध्र में अब तक गिरफ्तार संदिग्ध लोगों की तादाद 13 हो चुकी है।

सेतु समुद्रम पर सरकार को छह हफ्ते का समय

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद सेतु समुद्रम परियोजना पर एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार को छह हफ्ते का समय दिया है। समिति ने कहा है कि पौराणिक रामसेतु से इतर वैकल्पिक मार्ग आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से व्यावहारिक नहीं है।
http://www.jagran.com/news/national-govt-given-six-weeks-to-state-stand-on-sethusamudram-project-9630028.html

Thursday, August 30, 2012

पाकिस्तान में मंदिरों की सुरक्षा के लिए बनेगा कानून

इस्लामाबाद। हिंदू सहित तमाम अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मस्थलों और संपत्ति की भू-माफिया से रक्षा के लिए तैयार किए जा रहे विधेयक के मसौदे को जल्द ही अंतिम रूप दिया जा सकता है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, सिंध प्रांत के अधिकारी इस सप्ताह तक रिलीजियस माइनोरिटीज प्रॉपर्टी एक्ट-2012 का मसौदा तैयार कर लेंगे।
http://www.jagran.com/news/world-pak-will-make-law-to-protect-hindus-9609048.html

बंद के दौरान असम में हिंसा, मीडिया पर हमले

गुवाहाटी [जागरण न्यूज नेटवर्क]। आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के आहूत बंद के दौरान मंगलवार को असम के कई इलाकों में हिंसा हुई। इस दौरान सरकारी अधिकारियों और मीडिया के लोगों पर हमले किए गए। तेजपुर में बंद का विरोध करने पर एक युवक को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। हिंसा के बाद राज्य के कई इलाकों में क‌र्फ्यू लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से संयम बरतने की अपील की है।
http://www.jagran.com/news/national-pne-killed-5-injured-in-assam-violence-9609005.html

असम में फिर हिंसा, एक की मौत, 5 घायल

गुवाहाटी।। असम के तनावग्रस्त कोकराझार जिले में सोमवार देर रात हिंसा की तीन अलग-अलग घटनाओं में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 5 अन्य घायल हो गए। पुलिस ने बताया कि पहली घटना सलाकाती पुलिस थाने के तहत आने वाले फुमती गांव में हुई लेकिन इसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15880010.cms

विकृत सेक्युलरवाद


असम में आग क्यों लगी और 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में पाकिस्तानी झंडे क्यों लहराए गए? मुंबई के बाद पुणे, बेंगलूर, हैदराबाद, लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में रोहयांग और बांग्लादेशी मुसलमानों के समर्थन में हिंसा क्यों हुई? क्यों पूर्वोत्तर के करीब पचास हजार लोग विभिन्न शहरों से रोजी-रोटी छोड़ पलायन को मजबूर हुए? क्या देश यह आशा कर सकता है कि अब असम जैसी हिंसा आगे नहीं होगी? प्रधानमंत्री के बयानों को देखते हुए यह आशा बेमानी लगती है। विगत 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, असम में हिंसा की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हमारी सरकार हिंसा के पीछे के कारणों को जानने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। असम में तीन बार से कांग्रेस का शासन है, किंतु उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार यह नहीं जानती कि समस्या की जड़ क्या है? ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी जानते हैं कि समस्या का क्या कारण है। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने स्वीकार किया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा फैलाना पाकिस्तान पोषित भारतीय नेटवर्क की साजिश थी। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने दावा किया है कि खुफिया एजेंसियों ने यह पता लगा लिया है कि पाकिस्तानी नेटवर्क से दंगा फैलाने के लिए आपत्तिाजनक एमएमएस और तस्वीरें भेजी गईं, जिन्हें यहां बैठे पाकिस्तानी पिट्ठुओं ने भारतीय मुसलमानों को भड़काने के लिए प्रसारित किया।
भारत को हजार घाव देना पाकिस्तान का जिहादी एजेंडा है। अन्य देशों में बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय खींची गई तस्वीरें और एमएमएस पाकिस्तान से भेजे गए। पाकिस्तान अपने मकसद में कामयाब हो पा रहा है, क्योंकि उसके एजेंडे को पूरा करने के लिए उसे जो मानसिकता और हाथ चाहिए वे यहां बेरोकटोक पोषित हो रहे हैं। देश के कई हिस्सों में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई हिंसा और तोड़फोड़ से यह साफ हो चुका है कि भारत में एक वर्ग ऐसा है जो तन से तो भारत में है, किंतु मन पाकिस्तान से जुड़ा है। ऐसे देशघातकों को जब राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया जाता है तो स्वाभाविक तौर पर प्रश्न खड़े होते हैं, किंतु विडंबना यह है कि ऐसी मानसिकता के विरोध को सांप्रदायिक ठहराने की कोशिश होती है। क्यों?
इसी सेक्युलर सरकार की एक बानगी पिछले साल जून के महीने की है, जब काला धन वापस लाने के लिए रामदेव दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में अनशन पर डटे थे। आधी रात को रामलीला मैदान पुलिस छावनी में बदल गया, अनशनकारियों पर पुलिस ने अंधाधुंध लाठियां भांजी। बाबा रामदेव को गिरफ्तार कर उन्हें रातोरात दिल्ली की सीमा से बाहर कर दिया गया। एक ओर आधी रात को वंदेमातरम् और भारत माता का जयघोष करने वालों को सरकार बर्बरता से पीटती है और दूसरी ओर पाकिस्तानी झंडे लहराने और शहीद स्मारक को तोड़ने वाले लोगों को मनमानी की छूट देती है। क्यों?
मुंबई के आजाद मैदान में एकत्रित भीड़ का बांग्लादेशी घुसपैठियों या म्यांमारी रोहयांग मुसलमानों से क्या रिश्ता है और उन्हें इन विदेशियों के समर्थन में आंदोलन करने की छूट क्यों दी गई? इस देश में राष्ट्रहित की बात करना सेक्युलर मापदंड में जहां गुनाह है, वहीं इस्लामी चरमपंथ को पोषित करना सेक्युलरवाद की कसौटी बन गया है। इस दोहरे सेक्युलरवादी चरित्र के कारण ही कट्टरपंथियों को बल मिलता है, जिसके कारण कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंक का खौफ पसरा है। संसद पर आतंकी हमला करने की साजिश में फांसी की सजा प्राप्त अफजल को सरकारी मेहमान बनाए रखना सेक्युलरिस्टों के दोहरे चरित्र का जीवंत साक्ष्य है। कौन-सा ऐसा स्वाभिमानी राष्ट्र होगा, जो अपनी संप्रभुता पर हमला करने वालों की तीमारदारी करेगा?
असम की समस्या बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण है। इन बांग्लादेशियों को सुनियोजित तरीके से असम और अन्य पूर्वोत्तर प्रांतों सहित पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों के सीमांत क्षेत्रों में बसाया गया है। इनके कारण ही उन क्षेत्रों के जनसंख्या स्वरूप में भारी बदलाव आया है और वहां के स्थानीय नागरिक कई क्षेत्रों में अल्पसंख्यक की स्थिति में आ गए हैं और असुरक्षित अनुभव करते हैं। असम के मामले में तो गुवाहाटी उच्च न्यायालय का कहना है कि वे राच्य में किंगमेकर बन गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सन 2005 के बाद 2006 में भी सरकार को बांग्लादेशी नागरिकों को देश से बाहर करने का निर्देश दिया है, किंतु बांग्लादेशी नागरिकों के निष्कासन पर सरकार खामोश है। असम में इतनी बड़ी हिंसा हुई, स्थानीय बोडो लोगों को उनके घरों और जमीनों से खदेड़ भगाया गया। विदेशियों के हाथों अपने सम्मान, अस्तित्व और पहचान लुटता देख जब स्थानीय लोगों ने कड़ा प्रतिरोध करना शुरू किया तो सभी सेक्युलर दलों को शांति और सद्भाव की चिंता सताने लगी। हिंसा भड़कने के प्रारंभिक तीन-चार दिनों तक राच्य और केंद्र सरकार दोनों सोई थीं। क्यों? अभी हाल में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने असम हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। इसमें बताया गया है कि दंगे मुसलमानों और बोडो के बीच छिड़े। रिपोर्ट में मुसलमानों को अल्पसंख्यक और बोडो को बहुसंख्यक बताया गया है। अल्पसंख्यक होने का सेक्युलर मापदंड आखिर है क्या? क्या मुसलमान होना ही अल्पसंख्यक होने का आधार है, चाहे उनका संख्या बल कितना भी हो?
असम में अल्पसंख्यक कौन हैं? असम बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण मुस्लिम बहुल राच्य बनने की राह पर है। कोकराझाड़, धुबड़ी, चिरांग और बरपेटा जिले हिंसा के सर्वाधिक शिकार रहे। कोकराझाड़ के भोवरागुड़ी में भारतीय मतावलंबियों की जनसंख्या 1991 से 2001 के बीच एक प्रतिशत तो दोतमा तहसील में 16 प्रतिशत घटी है, जबकि इसी अवधि में मुसलमानों की आबादी 26 प्रतिशत बढ़ी है। धुबड़ी जिले के बगरीबाड़ी, छापर और दक्षिणी सलमारा में भारतीय मतावलंबियों की आबादी क्रमश: 4, 2 और 23 प्रतिशत घटी, वहीं इन तहसीलों में मुसलमानों की जनसंख्या इसी अवधि में क्रमश: 30.5, 37.39, और 21 फीसदी बढ़ी। अन्यत्र यही हाल है। आबादी में यह बदलाव उन अवैध बांग्लादेशियों के कारण हुआ है, जिन्हें बसाकर जहां पाकिस्तान अपने एजेंडे को साकार करना चाहता है, वहीं कांग्रेस सेक्युलरवाद के नाम पर उन्हें संरक्षण प्रदान कर अपनी सत्ता अजर-अमर करना चाहती है। कांग्रेसी नेता देवकांत बरुआ ने इंदिरा गांधी को यूं ही नहीं कहा था कि अली और कुली असम में कांग्रेस के हाथ से गद्दी कभी जाने नहीं देंगे। इसी मानसिकता ने देश को रक्तरंजित विभाजन के लिए अभिशप्त किया। विकृत सेक्युलरवाद के कारण आज असम सुलग रहा है और मुंबई में पाकिस्तानी झंडे लहराए गए तो आश्चर्य कैसा?
[लेखक बलबीर पुंज, राच्यसभा सदस्य हैं]

छपे फोटो से खुश था अब्दुल कादिर

11 अगस्त को आजाद मैदान हिंसा के दौरान अमर जवान स्मारक पर लातों से हमला करने वाले जिस अब्दुल कादिर को मुंबई क्राइम ब्रांच ने बिहार के सीतामढ़ी शहर से गिरफ्तार किया है, वह 15 अगस्त तक मुंबई में ही था। उसे शुरुआत में पूरा भरोसा था कि उसे कभी पकड़ा नहीं जाएगा।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15910553.cms

भारतीय हज यात्रियों को मिलेगा सऊदी का सिम

भारतीय हज यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है। सऊदी अरब में घरवालों से फोन पर बात करने के लिए अब उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। यहां की सऊदी टेलीकॉम कंपनी भारतीयों को सिम कार्ड देगी। यह पहली बार है जब लोगों को यात्रा शुरू करने से पहले नाम मात्र के खर्च पर यह सुविधा मिलेगी।
http://www.amarujala.com/international/Gulf%20Country/saudi-sim-cards-for-indian-haj-pilgrims-13287-7.html

Monday, August 27, 2012

नापाक चेहरे का सच


अनुभूति और आस्था न्यूनतम मानवाधिकार हैं। अपने रस, छंद और अनुभव के आधार पर जीना हरेक मनुष्य का मौलिक अधिकार है, लेकिन पाकिस्तान में हिंदू होना एक गंभीर अपराध है। एक गहन यंत्रणा, असहनीय व्यथा और तिल-तिल कर मरने वाला मनस्ताप। बेटियों को पिता, मां और भाइयों के सामने उठा लिया जाता है, दुष्कर्म होते हैं। न पुलिस सुनती है और न सरकार। कट्टरपंथी जमातों के लिए वे काफिर हैं। वे मूर्तिपूजक हैं, वे दीन पर ईमान नहीं लाते सो उन्हें जीने का अधिकार नहीं। भारत सरकार मौन है। पाकिस्तानी मीडिया बेशक प्रशंसनीय है। एक पाकिस्तानी अखबार ने जकोबाबाद में 17 वर्षीय हिंदू लड़की के अपहरण पर टिप्पणी की और ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने की भी मांग की थी। एक अन्य समाचार पत्र ने बीते 11 अगस्त को लिखा, हिंदू व्यापारियों का अपहरण, लूट व संपत्ति पर कब्जा और धर्म विरोधी वातावरण के कारण वे मुख्यधारा से अलग हैं। ऐसा कोई मंच नहीं दिखता जहां उन्हें न्याय मिले, लेकिन भारत के मानवाधिकारवादी कथित सेक्युलर इस अंतरराष्ट्रीय उत्पीड़न पर भी मौन हैं। सारी दुनिया के हिंदू और संवेदनशील सन्न हैं और पाकिस्तानी कट्टरपंथी प्रसन्न। पाकिस्तान का जन्म स्वाभाविक नहीं था। राष्ट्र मजहब से नहीं बनते। वरना ढेर सारे मुस्लिम मुल्क न होते, लेकिन जिन्ना की मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को अलग राष्ट्र बताया। ब्रिटिशराज, कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर भारत बांटा। जिन्ना ने पाकिस्तान को इस्लामी रंगत वाला सेक्युलर मुल्क बनाने का दावा किया, लेकिन पाकिस्तान अपने जन्म के 24 वर्ष के भीतर ही टूट गया, पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश हो गया। वह 65 बरस बाद भी न गणतंत्र बन पाया और न एक संगठित राष्ट्र। कायदे से कायदे आजम जिन्ना की सोच में ही खोट था। हालांकि पाक संविधान में धर्मपालन की आजादी है, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन ईश निंदा पर सजा-ए-मौत है। विचार अभिव्यक्ति की आजादी पर तलवारें हैं। शरीय कानूनों की भी मार है। पाकिस्तानी समाज पर संविधान और सरकार का नियंत्रण नहीं। समाज कट्टरपंथी आक्रामक तत्वों के हवाले है। सरकार की दो ताकतवर भुजाए हैं-सेना और आइएसआइ। दोनों भारत विरोधी हैं, स्वाभाविक ही हिंदू विरोधी भी हैं। पाकिस्तानी कट्टरपंथी हिंदुओं को इंसान नहीं मानते। हिंदू अघोषित जिम्मी हैं। इस्लामी परंपरा के भाष्यकार अबूहनीफा [699-766 ई.] ने गैरमुस्लिमों को छूट दी थी कि वे इस्लाम या मौत के चुनाव के अलावा जजिया कर देते हुए निम्न स्थिति में जिम्मी होकर रहें। पाकिस्तान के हिंदुओं की त्रासदी नई नहीं है। सिंध के पहले हमलावर और विजेता मोहम्मद बिन कासिम ने भी यही कायदा लागू किया था। हिंदुओं का बड़ी संख्या में मतांतरण कराना या मौत के घाट उतारना कठिन था। उसने सिंध के हिंदुओं को ऐसी ही निम्न स्थिति में रहने की छूट दी थी। तुर्की और अफगान विजेताओं ने भी गैरमुस्लिमों के मामले में यही नीति अपनाई थी। भारत के मुसलमान अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। संविधान ने उन्हें विशेष सुविधाएं दी हैं। उनकी शिक्षण संस्थाओं पर सामान्य शिक्षा कानून लागू नहीं होते। वे हज जैसी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं, सरकार सब्सिडी देती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राष्ट्रीय संसाधनों पर उनका पहला अधिकार बताते हैं। वे दीगर मुल्क म्यांमार की कथित मुस्लिम उत्पीड़न की वारदात पर मुंबई, लखनऊ, कानपुर आदि में हमला करते हैं। पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं को पाक संविधान में क्या अधिकार हैं? उन्हें अयोध्या, मथुरा, काशी या रामेश्वरम की तीर्थ यात्रा में पाक सरकार कोई सुविधा या सब्सिडी नहीं देती। आखिरकार भारत में अल्पसंख्यक होने का मजा और पाक में अल्पसंख्यक होने की इतनी बड़ी सजा के मुख्य कारण क्या हैं? पाकिस्तानी सरकार विश्वसनीय नहीं है। अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए विशेष चिंता वाला देश माना है। पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग ने भी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की बात को सही पाया है। लोकसभा में यह मसला भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 13 अगस्त को उठाया था। उन्होंने सरकार से इस मुद्दे को पाकिस्तान के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी रखने की मांग की। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे को गंभीर बताया। बीजद के नेता भतर्ृहरि मेहताब ने राय दी कि जो हिंदू भारत आना चाहते हैं उनके लिए दरवाजे खोल देने चाहिए। भारतीय जनता की बेचैनी वाजिब है। पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं की व्यथा कथा आंसुओं से भीगी है। वे वापस नहीं जाना चाहते, लेकिन केंद्र सरकार का बयान लज्जाजनक है कि वीजा अवधि समाप्ति के बाद हिंदुओं को पाकिस्तान लौटना ही होगा। सरकार उनका दुख क्यों नहीं समझती? कीट-पतंगें, पशु-पक्षी भी अपने घर को प्यार करते हैं। यहां लोग अपना घर, व्यापार और संपदा छोड़कर भाग रहे हैं और कानूनी घेरे के बावजूद नहीं लौटना चाहते तो साफ है कि पाकिस्तानी अत्याचार अब बर्दाश्त के बाहर है। बलात मतांतरण मानवाधिकार का उल्लंघन हैं। दुष्कर्म और जबरन विवाह त्रासद हैं। देश विभाजन के बाद 1951 में भारत की मुस्लिम आबादी 10.43 प्रतिशत थी और हिंदू 87.24 प्रतिशत। इसी साल पाकिस्तान की हिंदू आबादी [बांग्लादेश सहित] 22 प्रतिशत थी। 2001 की भारतीय जनगणना में यहां मुस्लिम आबादी 10.43 से बढ़कर 13.42 प्रतिशत हो गई, लेकिन पाकिस्तान की हिंदू आबादी लगभग 1.8 प्रतिशत ही रह गई। कहां गए पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदू? क्या सबके सब यों ही खुशी-खुशी मतांतरित हो गए? कोई तो वजह होगी ही। यह पाकिस्तान का घरेलू मसला नहीं है। यह मानवाधिकार उल्लंघन का अंतरराष्ट्रीय सवाल है। भारत विभाजन के समय मुस्लिम लीगी आक्त्रामकता थी। कहा गया था कि मुसलमानों को पाकिस्तान देने से सांप्रदायिक समस्या का अंत होगा, लेकिन सारा देश विभाजन के विरुद्ध था। डॉ. अंबेडकर दूरदर्शी थे। उन्होंने पाकिस्तान का समर्थन किया था, लेकिन दोनों देशों की सांप्रदायिक जनसंख्या की अदलाबदली का सुझाव भी दिया था। सांप्रदायिक समस्या समाधान के लिए ही बुल्गारिया और ग्रीस व ग्रीस व तुर्की के बीच जनसंख्या की अदलाबदली हुई थी। पाकिस्तान अपने मुल्क को हिंदूविहीन बना रहा है। कट्टरपंथी बलात मतांतरण करवा रहे हैं। केंद्र को कोई नीति तो बनानी ही होगी। सरकार श्रीलंका के तमिलों पर सहानुभूति की मुद्रा में थी। मसला यह भी दूसरे देश का था। गांधीजी तुर्की के खलीफा को लेकर भारत में आंदोलन चला रहे थे, लेकिन भारत सरकार हिंदू उत्पीड़न पर भी मौन है, क्योंकि वे वोट बैंक नहीं है।
[लेखक हृदयनारायण दीक्षित, उप्र विधानपरिषद के सदस्य हैं]

Friday, August 24, 2012

असम समस्या की जड़


उत्तरपूर्व के लोगों का बेंगलूर, मुंबई और पुणे से हजारों की संख्या में पलायन 16 अगस्त, 1946 की याद दिलाता है जिसे मोहम्मद अली जिन्ना के आव्हान पर डाइरेक्ट एक्शन डे घोषित किया गया था। इसके बाद हिंसा का जो तांडव शुरू हुआ उसकी परिणति देश के विभाजन में हुई। तब विश्व इतिहास में आबादी का सबसे बड़ा स्थानांतरण हुआ था। इस बार भी बड़ी संख्या में आबादी का पलायन हुआ है, जो देश की सीमा के अंदर है। इससे बड़ी संख्या में पलायन सिर्फ बंटवारे के समय हुआ था। इस आग को भड़काने में सबसे बड़ी भूमिका रही सोशल मीडिया की। शरारती तत्वों ने भारत को अस्थिर करने के लिए इसका कुत्सित इस्तेमाल किया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कहा है कि अधिकतर एसएमएस/एमएमएस पाकिस्तान से भेजे गए थे। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा मामलों के मंत्री से बात भी की है, लेकिन जैसा कि होता आया है पाकिस्तान ने अपना हाथ होने से साफ इन्कार कर दिया है। वैसे उसने प्रमाण मिलने पर कार्रवाई करने का भारत को भरोसा दिया है। पाकिस्तान ने स्थिति का लाभ उठाते हुए जातीय संघर्ष को सांप्रदायिक दंगे का रूप देने की पुरजोर कोशिश की। उसने प्राकृतिक आपदा से हुए हादसों की तस्वीरों को तोड़-मरोड़कर इंटरनेट पर अपलोड कर यह दुष्प्रचार करने का कुत्सित प्रयास किया कि मुसलमानों को बेरहमी से मारा जा रहा है। असम की समस्या जातीय है, सांप्रदायिक नहीं। यदि उसी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान की जगह हिंदू वहां बसते तो भी स्थानीय नागरिकों का उनसे संघर्ष होता। बोडो जनजाति का दावा है कि वे वहां के मूल निवासी हैं। वहां के महान वैष्णव संत शंकर देव ने उन्हें म्लेच्छ कहा है। इससे बोडो काफी आहत हैं और उन्होंने शंकर देव के लेखन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। जो भी हो, असम की समस्या की जड़ में है बांग्लादेश से लगातार आ रहा जनसैलाब जो आजादी के बाद भी नहीं रुका और जिससे असम की आबादी की शक्ल बदल गई है। असम के कम से कम छह जिलों में मुसलमान आज बहुसंख्यक हैं। असम में अवैध घुसपैठ या स्थानांतरण की शुरुआत 19वीं सदी के प्रारंभ में हुई, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाली मुसलमानों को ब्रम्हपुत्र घाटी में खेतों में काम करने के लिए लाई। तीस साल के अंदर बंगाल से आने वाले मुसलमान असम के चार जिलों में बस गए थे। उन्होंने जंगल को साफ किया तथा बंजर भूमि में उत्पादन शुरू किया। उनकी आबादी इस कदर बढ़ी कि 1931 में जनगणना आयुक्त सीएस मुलेन ने जनगणना रिपोर्ट में भविष्यवाणी की, जहां कहीं भी खाली जमीन है वहां पूर्वी बंगाल के लोग बस रहे हैं। पिछले 25 वर्षो में बिना किसी हंगामे या ज्यादा शोर-शराबे के पांच लाख की आबादी बंगाल से असम आकर प्रत्यारोपित हो चुकी है। एक समय आएगा जब शिवसागर एकमात्र जिला बचेगा जिसे असमी अपना कह सकेंगे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने लाइन सिस्टम शुरू किया, जिसने हर जिले में एक खास क्षेत्र को चिन्हित किया जहां पलायन कर आने वाले बंगाली मुस्लिम बस सकते थे। परंतु 1944-45 में सादुल्लाह खान के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर कामरूप, दारांग तथा नवगांव जिलों में पूर्वी बंगाल से आने वाले मुसलमानों को बसने की छूट दे दी। ऐसा करने का उद्देश्य बताया गया- धान की पैदावार बढ़ाना। जिन्ना के निजी सचिव ने उनसे वादा किया था कि वह उन्हें पाकिस्तान के लिए असम तश्तरी पर परोस कर देंगे। स्वाधीनता के बाद भी बांग्लादेश से आबादी का पलायन जारी रहा। इससे यह प्रमाणित होता है कि मजहब के नाम पर हुए बंटवारे से समस्या का समाधान नहीं हुआ। महात्मा गांधी एवं जवाहरलाल नेहरू मजहब के आधार पर विभाजन के बिल्कुल खिलाफ थे। उनका कहना था कि यदि अंतत: विभाजन ही होना है तो यह क्षेत्रीय आधार पर होना चाहिए, धार्मिक आधार पर नहीं। परंतु जिन्ना ने उनकी बात नहीं मानी। जब सितंबर, 1946 में उनसे पूछा गया कि क्या वह हिंदुस्तान के सारे मुसलमानों को पाकिस्तान ले जा पाएंगे, तो उनका जवाब था कि वह पाकिस्तान में हिंदुओं को रखना पसंद करेंगे ताकि यदि भविष्य में हिंदुस्तान में मुसलमानों के साथ अन्याय होता है तो ऐसा ही वह हिंदुओं के साथ पाकिस्तान में कर सकें। यानी वह हिंदुओं को ब्लैकमेल करने के उद्देश्य से पाकिस्तान में रखना चाहते थे। वैसे संविधान सभा में जिन्ना ने अपने बहुचर्चित भाषण में कहा था कि पाकिस्तान में सभी धर्मावलंबी अमन-चैन से एकदूसरे के साथ रह पाएंगे। यदि पाकिस्तान को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र ही होना था, जहां सभी धर्मो को मानने वालों को समान अधिकार और सम्मान के साथ रहने का हक मिलता तो फिर विभाजन की जरूरत ही क्या थी? विभाजन के बाद भी बांग्लादेश से अवैध पलायनकर्ताओं का आना जारी रहा। इसके विरोध में पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला। अंत में 1985 में राजीव गांधी ने आसु के साथ समझौता किया, जिसमें तय हुआ कि 25 मार्च, 1971 के दिन या उसके बाद आने वाले बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस बांग्लादेश भेजा जाएगा। इस समझौते को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि असम के लोगों का विरोध स्थानीय मुसलमानों से नहीं है, वरन अवैध घुसपैठियों से है।
[लेखक सुधांशु रंजन, वरिष्ठ पत्रकार हैं]

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion2-9592398.html

खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर की जनजातियां

पूर्वोत्तर की जिन जनजातियों को शेष भारत में चिंकी और चीनी कहकर चिढ़ाया जाता है, वे खांटी भारतीय हैं। ये अपने आप को न सिर्फ रामायण-महाभारत के पात्रों का वंशज मानती हैं, बल्कि अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित भी रखे हुए हैं।
http://www.jagran.com/news/national-north-east-people-are-typical-indian-9594068.html

Wednesday, August 22, 2012

315 ईसाई फिर हिंदू धर्म में वापस

हरहुआ : स्थानीय मुर्दहा गांव स्थित ब्रह्म बाबा मंदिर में 315 ईसाइयों ने फिर हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया। ये आसपास के गांवों के 22 परिवारों से हैं। हवन कुंड में आहुतियां दीं और संकल्प लिया। संत रविदास धर्म रक्षा समिति व सुहेलदेव रक्षा समिति ने पूजन अनुष्ठान कराया और उनके मूल धर्म में वापसी कराई।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9585091.html

पुणे विस्फोटों के पीछे आईएम का संस्थापक सदस्य साजिद: सूत्र

पुणे में हाल में हुए सिलसिलेवार धमाकों की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों ने दावा किया है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का संस्थापक मोहम्मद साजिद हमले के पीछे मुख्य संदिग्ध है।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-253756.html

मुंबई पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक पर बरसे ठाकरे

मुंबई।। आजाद मैदान में हिंसा से निबटने को लेकर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करते हुए शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सोमवार को आरोप लगाया कि पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक पुलिस बल का मनोबल गिरा रहे हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15572484.cms

अमरनाथ गुफा तक सड़क बनाने की योजना नहीं

श्रीनगर। ऑल पार्टी हुर्रियत काफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक द्वारा अमरनाथ की पवित्र गुफा तक सड़क बनाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध करने के बाद वादी में 2008 की पुनरावृत्ति होने की आशका है। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने रविवार को बालटाल से पवित्र गुफा तक सड़क बनाने की किसी भी योजना से इन्कार कर दिया।
http://www.jagran.com/news/national-to-the-holy-cave-of-amarnath-street-plan-9582984.html

रोजगार योजनाओं में अब अल्पसंख्यकों को आरक्षण

वाराणसी : डेढ़ दशक से अधिक समय से संचालित स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) में अल्पसंख्यकों के लिए 15 प्रतिशत फंड आरक्षित किया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा कुछ दिनों पूर्व प्रारंभ महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में भी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के प्रावधान किए गए हैं।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9585294.html

पलायन मामले में जांच के दायरे में केरल का संगठन

असम में हुई हिंसा के बाद भड़काउ एसएमएस और एमएमएस भेजने में संदिग्ध भूमिका के लिए केरल का एक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया खुफिया एजेंसियों की जांच के दायरे में है। 
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-254034.html

पाक में हिंदू-मुस्लिम बच्चों के क्लास अलग-अलग

अटारी, जागरण संवाददाता। पाकिस्तान में हिंदुओं व सिखों के साथ क्या हो रहा है, यह उन चेहरों को देखने से बयां हो जाता है जो हर दिन समझौता एक्सप्रेस से अपने पूरे परिवार के साथ भारत आ रहे हैं। सोमवार को पाकिस्तान से 41 लोग भारत आए।
http://www.jagran.com/news/national-pak-hindu-muslim-children-class-individually-9585770.html

कट्टरता का पोषण


अधिकारिक तौर पर उन्हें अफवाहों का सौदागर, शरारती तत्व और राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है। उन्हें यह सब कहें या फिर इससे भी अधिक किंतु कटु सच्चाई यह है कि भारत को इस तथ्य का सामना करना होगा कि ये दुष्ट लोग बड़े जोशोखरोश से अपने अभियान की सफलता का जश्न मना रहे हैं। जरा इन तथ्यों पर गौर फरमाएं। 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान पर 50,000 लोगों की भीड़ जमा होती है और वह फसाद शुरू कर देती है। वाहन जला दिए जाते हैं, महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ होती है, दुकानों के शीशे तोड़ दिए जाते हैं और यहां तक कि अमर जवान ज्योति का अनादर किया जाता है। यह सब असम और म्यांमार में मुसलमानों के उत्पीड़न से उपजे रोष में किया गया। भयाक्रांत करने वाली घटनाओं के दो दिनों के भीतर बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई आदि शहरों में रहने वाले उत्तरपूर्व के लोगों के मोबाइल पर डरावना एसएमएस आया कि 20 अगस्त तक शहर छोड़ दें या फिर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। पिछले रविवार की शाम को उत्तरपूर्व के लोगों ने बड़े पैमाने पर कूच शुरू कर दिया। करीब 25,000 लोगों ने छोटे झोलों में सामान भरा और अपना घर, पढ़ाई, कामकाज छोड़कर गुवाहाटी के लिए सबसे पहली उपलब्ध ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े। यहां तक कि सरकार, संसद और प्रबुद्ध नागरिकों ने इन घबराए हुए नागरिकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है, किंतु मुंबई के आजाद मैदान में भीड़ द्वारा कारें फूंकने, दुकानों की खिड़कियां तोड़ने की घटनाओं और 17 अगस्त को लखनऊ, इलाहाबाद में हुए उग्र प्रदर्शनों ने इस प्रयास पर पानी फेर दिया। एक अंग्रेजी अखबार की वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार लखनऊ में पचास से अधिक लोगों ने गौतम बुद्ध पार्क पर हमला बोल दिया और बुद्ध की एक मूर्ति को खंडित कर दिया। इस दौरान उन्होंने फोटोग्राफ भी खिंचवाए। वे भी असम और म्यांमार की घटनाओं का विरोध कर रहे थे। केवल नौ दिनों के भीतर इन शरारती तत्वों और राष्ट्रविरोधी लोगों ने तीन निश्चित लक्ष्यों को पूरा कर लिया। पहला यह कि उन्होंने बड़े सुस्पष्ट ढंग से यह जता दिया कि बात जब मुसलमानों की होती है, भूगोल के बजाय समुदाय की अहमियत होती है। उन्होंने भाजपा और बहुत से असमियों के दावे की खिल्ली उड़ाई कि कोकराझाड़ में दंगे भारतीय और विदेशियों के बीच हुए थे। उन्होंने पूरे भारत के सामने अकड़ दिखाते हुए जताया कि उनकी पहचान पूरी तरह बाहरियों और विदेशियों के साथ जुड़ी है। साथ ही उन्होंने प्रदर्शित किया कि जब मुस्लिम हितों की बात आती है तो राष्ट्रीय सीमाएं बेमानी हो जाती हैं। अतीत में तुर्की के खलीफा भी भारत में मुद्दा बन गए थे। हाल ही में, फिलीस्तीन पीड़ित के प्रतीक के रूप में उभरा था। अब म्यांमार में रोहिंग्याओं को गले लगाने के लिए रोष अपनी हदें पार कर चुका है। शरारती तत्वों ने दूसरा लक्ष्य यह साधा कि उन्होंने भारत की भावनात्मक एकता पर जबरदस्त आघात कर दिया। कुछ समय से भारत के शहरों में उत्तरपूर्व के लोगों, खासतौर पर महिलाओं को प्रताड़ना झेलनी पड़ी है। उत्तरपूर्व के लोगों की वाजिब शिकायत है कि मुख्यभूमि में उन्हें लोगों की अवमानना का शिकार होना पड़ता है। जैसे ही शांत आतंक के शिकार असम और उत्तरपूर्व के अपने ठिकानों पर पहुंचेंगे और अपने-अपने हालात बयान करेंगे, उनमें अलगाव की भावना और प्रबल होगी। आने वाले समय में यह याद नहीं रहेगा कि स्थानीय पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी समूहों ने उत्तारपूर्व के लोगों का विश्वास जीतने का पुरजोर प्रयास किया, बल्कि इतिहास में दर्ज होगा कि भारत की मुख्यधारा इन लोगों के लिए असुरक्षित हो गई है, कि जातीय और क्षेत्रीय आग्रहों के कारण वे निशाने पर आ गए हैं, कि उनका भारत के साथ कोई संबंध नहीं है। जो 25,000 या इसके करीब लोग भयभीत होकर अपने घर लौटे हैं उन्हें भावनात्मक सदमे से उबरने में लंबा समय लगेगा। जिनकी याददास्त अच्छी है, वे जानते हैं कि 1982 के एशियाड में सिखों के साथ हुए व्यवहार की टीस अभी तक उनके मन-मस्तिष्क से निकली नहीं है। विषाद को कटुता में बदलने से रोकने के लिए तुरंत ऐसे कदम उठाए जाने जरूरी हैं, जो सुनिश्चित कर सकें कि जिन लोगों ने गुवाहाटी की ट्रेन पकड़ी है, वे अपने कार्यस्थल पर जल्द से जल्द वापस लौट आएं। राष्ट्रद्रोहियों का अंतिम मकसद था सरकार और राजनीतिक वर्ग को हताश और कमजोर कर देना। पिछले दस दिनों में जो कुछ हुआ उस पर प्रतिक्रिया जताने में अतिसंवेदनशीलता का भद्दा प्रदर्शन किया गया। खबर है कि मुंबई पुलिस कमिश्नर ने अधिक गिरफ्तारियों के खिलाफ चेतावनी जारी की थी, एक मुख्यमंत्री ने विदेश मंत्रालय पर दबाव डाला था कि म्यांमार के राजदूत को बुलाकर औपचारिक विरोध दर्ज कराएं और अल्पसंख्यक कमीशन ने असम में अवैध घुसपैठ की घटनाओं को लेकर नकार की मुद्रा अपना ली थी। राजनीतिक रूप से कांग्रेस बुरी तरह फंस गई है। उसे डर है कि दंगाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के खतरनाक चुनावी नतीजे होंगे। यहां तक कि चौथा स्तंभ, जो निर्भीकता के साथ अन्याय को उजागर करता रहा है, ने भी अपने कदम वापस खींच लिए। इसका आंशिक कारण तो समझ में आने वाला है कि पूरा सच उजागर करने का मतलब है भय और हताशा का वातावरण बनाना। हालांकि शरारती तत्व सच्चे दिल की इस मजबूरी से यही निहितार्थ तलाशेंगे कि उनके बाहुबल और निर्वाचन शक्ति के सामने सत्ता प्रतिष्ठान झुक गया है। इन घटनाओं के बाद अब शरारती तत्वों के हौसले बुलंद हो गए हैं। उन्होंने अपने पंजे पैने कर लिए हैं और यह जान गए हैं कि इनमें कितनी ताकत है। इन घटनाओं ने मुस्लिम समुदाय में भी उग्रवादियों का असर बढ़ा दिया है। उग्रवादियों ने दिखा दिया है कि उनमें अपनी चलाने की क्षमता है। पिछले सप्ताह, संसद में असम पर होने वाली बहस के दौरान हैदराबाद के सासंद ने चेताया कि अगर मुसलमानों की शिकायतों को जल्द दूर नहीं किया गया तो कट्टरता की तीसरी लहर उठ सकती है। पिछले एक पखवाड़े की घटनाओं के बाद यह देखना होगा कि वह स्पष्ट रवैये की चेतावनी दे रहे थे या फिर उसके आगमन पर नगाड़ा बजा रहे थे।
[लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9585759.html

Monday, August 20, 2012

त्रासदी से जूझता पूर्वोत्तर

असम में कोकराझाड़ समेत कुछ अन्य जिलों में व्यापक गुटीय हिंसा के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अफवाहों का जा दौर चला और उसके दुष्परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर के लोगों को जिस तरह निशाना बनाया गया उससे आंतरिक सुरक्षा का कमजोर ढांचा ही सामने आया। रही-सही कसर कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से पूर्वोत्तर के लोगों के पलायन ने पूरी कर दी। यह पलायन आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर केंद्र सरकार की नाकामी को उजागर करता है। इससे अधिक शर्मनाक और क्या होगा कि देश के एक हिस्से में उभरे सांप्रदायिक तनाव की प्रतिक्रिया देश के अलग-अलग हिस्सों में व्यक्त की जाए और राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्रीय सत्ता इस पर अंकुश लगाने में अक्षम साबित हो? यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है कि पूर्वोत्तर के लोगों को अलग-अलग राज्यों में निशाना बनाया जा रहा है और इसके चलते वे अपने घरों की ओर भाग रहे हैं। इस मामले में पहला दोष असम सरकार का है, जो अपने यहां भड़की हिंसा पर रोक लगाने में असफल साबित हुई। असम सरकार की नाकामी को ढकने का प्रयास केंद्रीय सत्ता ने किया। नतीजा यह हुआ कि वहां की हिंसा के बहाने अन्य राच्यों में शरारती तत्व सक्रिय हो गए। चूंकि असम में कांग्रेस की ही सरकार है इसलिए केंद्रीय सत्ता ने न तो वहां भड़की हिंसा के बुनियादी कारणों की तह में जाने की कोशिश की और न ही यह देखने-समझने की कि राच्य सरकार अपने दायित्वों का सही तरह पालन कर रही है या नहीं? असम में भड़की हिंसा पर बोडो समुदाय का आरोप है कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर बसे लोगों के कारण पूरे क्षेत्र का जनसांख्यिकीय स्वरूप बदल गया है। बोडो समुदाय की नाराजगी का एक कारण यह भी है कि 1985 में राजीव गांधी सरकार द्वारा किए गए समझौते को पूरी तरह लागू नहीं किया गया। पिछले डेढ़-दो दशकों में असम में बांग्लादेश से आए लोगों की आबादी जिस तरह बढ़ी है उससे स्थानीय समुदाय के लोगों को अपने संसाधन हाथ से खिसकते नजर आ रहे हैं। असम में भड़की हिंसा पर राच्य सरकार शुरू से ही हकीकत पर पर्दा डालते नजर आई। पहले उसकी ओर से यह आरोप लगाया गया कि सेना ने देर से हस्तक्षेप किया और फिर हिंसा भड़कने के अलग-अलग कारण बताने की होड़ लग गई। चूंकि असम सरकार ने वस्तुस्थिति समझकर सही कदम उठाने से इन्कार किया इसलिए हिंसा ने गंभीर रूप धारण कर लिया। स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि करीब तीन लाख लोग राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं और खुद मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि हालात सामान्य होने में दो-तीन माह का समय लगेगा। पता नहीं क्यों केंद्रीय सत्ता अभी भी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को लेकर अपनी आंखें बंद किए हुए है? जब अनेक स्नोतों से यह सामने आ चुका है कि पिछले तीन-चार दशकों में असम में बांग्लादेशी नागरिकों की आबादी कई गुना बढ़ गई है और सुप्रीम कोर्ट भी इस घुसपैठ को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है तब हाथ पर हाथ धरकर बैठने का क्या मतलब? बांग्लादेश से आए लोगों का मुद्दा असम की एक पुरानी समस्या है और इसे लेकर खूब राजनीति भी होती रही है। एक समय उल्फा और असम गण परिषद की मान्यता यह थी कि असम में बाहर से आए सभी लोगों को निकाला जाना चाहिए। उनके निशाने पर बांग्लादेश और साथ ही देश के अन्य हिस्सों से आए लोग भी थे। एक समय इस मुद्दे ने राष्ट्रीय समस्या का रूप ले लिया था। बाद में न केवल उल्फा की विभाजनकारी रणनीति पर अंकुश लगाया गया, बल्कि राजनीतिक रूप से असम गण परिषद भी हाशिये पर चला गया। असम गण परिषद के कमजोर होने का फायदा कांग्रेस को मिला और वह पिछले तीन चुनाव जीतने में सफल रही। लंबे समय तक सत्ता में रहने से जो कमियां शासन में आ जाती है वे असम सरकार में भी नजर आ रही हैं, विशेषकर कानून एवं व्यवस्था के मोर्चे पर। असम के साथ-साथ देश के अन्य क्षेत्रों में स्थितियां इसलिए और अधिक खराब होती गईं, क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट के जरिये सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले तत्वों पर लगाम नहीं लगाई जा सकी। मुंबई में तो असम हिंसा के विरोध में आयोजित प्रदर्शन अराजकता में तब्दील हो गया। केंद्र सरकार ने थोक में किए जाने वाले एसएमएस और एमएमएस पर रोक लगाने का निर्णय तब लिया जब कर्नाटक, आंध्र और महाराष्ट्र में रह रहे पूर्वोत्तर के लोग बड़े पैमाने पर पलायन के लिए विवश हो गए। भले ही प्रधानमंत्री और गृहमंत्री यह आश्वासन दे रहे हैं कि स्थितियां नियंत्रण में हैं, लेकिन यह कैसा नियंत्रण है कि पूर्वोत्तर के लोग यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी वास्तव में सुरक्षा की जाएगी? फिलहाल इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि नए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से सही तरह से निपट नहीं पा रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनके पदभार संभालने के बाद से एक के बाद एक ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जो उनके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं। यह स्वाभाविक ही है कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा आंतरिक सुरक्षा के मामलों को आक्रामक ढंग से उठा रही है। पूर्वोत्तर के लोगों को निशाना बनाए जाने के मामले में प्रधानमंत्री ने जिस तरह केवल भाजपा शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री से बात करना जरूरी समझा उससे भाजपा को केंद्र सरकार पर हमला करने का मौका मिला। वैसे भाजपा को ध्यान रखना होगा कि बांग्लादेशी नागरिकों को निकालना आसान नहीं। खुद उसके नेतृत्व वाली राजग सरकार इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर सकी थी। केंद्र सरकार के लिए न केवल यह आवश्यक है कि वह पूर्वोत्तर के लोगों को सुरक्षा का अहसास कराए, बल्कि उसे इसकी तह में जाना होगा कि क्या असम में हिंसा के पीछे कोई बड़ी साजिश थी? केंद्र सरकार को समस्या की जड़ यानी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को रोकने के ठोस प्रयास भी करने होंगे। असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को चिन्हित करना कोई सरल कार्य नहीं है। केंद्र सरकार को राजनीतिक स्वार्थो की परवाह करने के बजाय दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा। किसी क्षेत्र के सीमित संसाधनों पर जब एक समुदाय का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है तो दूसरे समुदायों की समस्याएं बढ़ती हैं। असम के एक हिस्से में भड़की हिंसा का असर जिस तरह देश के अन्य हिस्सों पर पड़ा और पूर्वोत्तर के हजारों लोग पलायन के लिए मजबूर गए उससे इसका पता चलता है कि किस तरह शरारती तत्व इस हिंसा को हिंदू बनाम मुसलमान का रूप देने में सक्षम हो गए। इससे यह भी जाहिर हुआ कि शेष देश के लोगों को पूर्वोत्तर की समझ नहीं है। इस स्थिति के लिए एक हद तक केंद्रीय सत्ता भी जिम्मेदार है, जो पूर्वोत्तर को हमेशा रियायतों से प्रभावित करने की कोशिश में रहती है। यही कारण है कि इस क्षेत्र के लोगों का सामाजिक और राजनीतिक तौर पर शेष देश से वैसा मिश्रण नहीं हुआ जैसा अन्य इलाके के लोगों का हुआ है। स्थितियां तभी बदलेंगी जब पूर्वोत्तर के च्यादा से च्यादा लोग देश के अन्य हिस्सों में काम-काज के लिए आते रहेंगे। अगर किसी भी कारण से वे भयभीत होंगे तो इससे पूर्वोत्तर की भी समस्याएं बढ़ेंगी और शेष देश की भी। [संजय गुप्त]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9580149.html

इलाहाबाद में दूसरे दिन भी बवाल

असम और बर्मा के मुद्दे पर निकले जुलूस के दौरान शहर में भड़की हिंसा दूसरे दिन भी जारी रही। तमाम कोशिशों के बाद भी शनिवार को चौक के हालात सामान्य नहीं हो सके। चौक में बवाल की आंच दूसरे इलाकों तक पहुंची और आधे शहर में भगदड़, पथराव के बाद बाजार बंद हो गए। जानसेनगंज के दुकानदारों ने जुलूस निकाल कर दूसरे बाजार भी बंद करा दिए। इस दौरान चौक और आसपास के इलाकों में पथराव के बाद बम भी चले।
http://www.amarujala.com/National/chaos-continues-second-day-in-Allahabad-30892.html

जब चिड़िया चुग गई खेत तब जागी सरकार

असम हिंसा की अफवाहों को लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों और सरकार दोनों का खराब रिकॉर्ड सामने आया है। सूचना तकनीक के विशेषज्ञों की नजर में अफवाहों को रोकने और उन्हें हटाने को लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें और सरकार जिम्मेदार भूमिका निभा सकती थीं। मगर ऐसा नहीं हुआ। सरकार अब इन साइटों पर कड़ी नजर रखने की बात कर रही है। जबकि वह सूचना तकनीक कानून के तहत ऐसे अधिकारों से लैस है। वह चाहे तो वेबसाइटों पर रोक लगा कर उन पर मुकदमा चलाने का आदेश दे सकती थी। मगर ऐसा नहीं किया गया।
http://www.amarujala.com/National/assam-violence-social-media-fanning-rumours-triggering-panic-30888.html

हिंदुओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाएगा पाकिस्तान

इस्लामाबाद।। पाकिस्तानी हिंदुओं के बड़ी तादाद में भारत जाने की खबरों के बीच राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सिंध सरकार को एक मसौदा कानून बनाने का निर्देश दिया है। इस कानून के जरिए संविधान में संशोधन किया जाएगा ताकि दक्षिणी प्रांत में अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण को रोका जा सके।

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15548773.cms

Saturday, August 18, 2012

असम हिंसा के विरोध में उप्र के तीन शहरों में उपद्रव

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। असम और म्यांमार की हिंसा में अल्पसंख्यकों पर हुए असर के विरोध में शुक्रवार को अलविदा की नमाज के बाद कई उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में भीड़ हिंसक हो उठी। इस दौरान न बीमार की परवाह की गई और न बच्चों की। न महिलाओं को देखा गया और न अपाहिज को। जिधर मन हुआ बेतहाशा ईंट-पत्थर बरसाए गए और लूटपाट की गई। लखनऊ में बुद्ध पार्क घूमने गई महिलाओं को घेरकर उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। मुंबई में हुए हिंसक विरोध से कोई सबक न लेते हुए सुस्त पुलिस तंत्र तब सक्रिय हुआ, जब तमाम निर्दोष चुटैल हो चुके थे और संपत्ति का भारी नुकसान हो चुका था। विरोध की बयार जम्मू-कश्मीर में भी चली लेकिन वहां लोगों के हिंसक होने की खबर नहीं है।
http://www.jagran.com/news/national-volence-in-protest-of-assam-issue-9575472.html

Friday, August 17, 2012

संसद की खतरनाक चुप्पी

विगत शनिवार को मुंबई के आजाद मैदान में असम दंगों के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन का हिंसा पर उतर आना क्या रेखांकित करता है? स्थानीय मुस्लिम संगठन रजा अकादमी के आव्हान पर जनसभा में शामिल होने के बहाने हजारों की संख्या में एकत्रित भीड़ ने पुलिस की गाड़ियां जला डालीं, न्यूज चैनलों के ओबी वैन जलाए गए और आसपास की दुकानों को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान पाकिस्तानी झंडे भी लहराए गए। प्रश्न यह है कि एक समुदाय विशेष के कट्टरपंथी वर्ग को देश की कानून-व्यवस्था का खौफ क्यों नहीं है? अपनी हर उचित-अनुचित मांग को पूरा करने के लिए जब-तब हिंसा की प्रेरणा उन्हें कौन देता है? मुंबई के उपरोक्त कांड से तीन कटु सत्य सामने आते हैं। पहला, देश में एक बड़ा वर्ग है, जो मजहब और मजहबी रिश्तों को देश की मिट्टी के साथ संबंध से बड़ा मानता है। नहीं तो कोई कारण नहीं था कि इस एकत्रित भीड़ की सहानुभूति बोडो लोगों के साथ ना होकर बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति होती। दूसरा, उक्त विरोध प्रदर्शन में पाकिस्तानी झंडे फहराने का अर्थ यह है कि बहुत से भारतीयों की पहली प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है। तीसरा, वोट बैंक की राजनीति से मोहग्रस्त कथित सेक्युलर दलों में से किसी ने भी इस हिंसक घटना की निंदा नहीं की। उनका इस विषय में मौन रहना और पुलिस को पंगु बनाए रखना ही कट्टरपंथियों को प्रोत्साहन दे रहा है। मुंबई जैसी हिंसा वस्तुत: सेक्युलरिस्टों के दोहरे चाल-चरित्र का परिणाम है। सब जानते हैं कि असम की हिंसा के पीछे देश में अवैध रूप से घुसपैठ कर यहां बस चुके बांग्लादेशियों का हाथ है, किंतु संसद से लेकर मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इस संबंध में चुप्पी साध रखी है। राज्य और केंद्र सरकार असम दंगों में बांग्लादेशियों का हाथ बताने से परहेज करती आई है। उच्च सदन में मैंने 8 अगस्त को बांग्लादेशी घुसपैठियों की चर्चा की थी, किंतु इस चर्चा में भाग लेने वाले अधिकांश सेक्युलर नेताओं ने लीपापोती करने का ही काम किया, इस खूनी संघर्ष के असली कारणों की चर्चा नहीं की। पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने एक राहत शिविर का दौरा करने के बाद कहा कि असम में अब विभिन्न समुदायों के लोग रह रहे हैं। इन सब को शांति से रहना सीखना होगा। अर्थात स्थानीय जनजाति के लोगों को विदेशी घुसपैठियों द्वारा उनकी संपत्ति, सम्मान और पहचान के ऊपर होते आक्रमण के साथ समझौता करना सीखना होगा। जब सत्ता अधिष्ठान देश की संप्रभुता के साथ समझौता कर ऐसी कायरता दिखाएगा तो स्वाभाविक तौर पर अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा मिलेगा। वस्तुत: असम के दंगे केवल असम का मामला नहीं है और ना ही यह बोडो जनजातियों तक सीमित है। करोड़ों की संख्या में अवैध रूप से घुसपैठ कर आए बांग्लादेशी नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं। यह तब और गंभीर हो जाता है, जब वोट बैंक के कारण इस देश की संप्रभुता को चुनौती देने वालों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या करीब डेढ़ करोड़ बताई जाती है। इनके कारण देश के कई प्रांतों का जहां जनसंख्या स्वरूप तेजी से बदला है, वहीं वे कानून-व्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा बन रहे हैं। असम में बस चुके अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के निष्कासन को असंभव बनाने के लिए कांग्रेस सरकार ने 1983 में जो आइएमडीटी एक्ट बनाया था, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 2005 में असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। सरकार को तब यह निर्देष दिया गया था कि वह बांग्लादेशियों की पहचान और उन्हें देश से बाहर करना सुनिश्चित करे। वह काम अधर में लटकाए रखा गया है। क्यों? इसे सन 2008 में गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा बाग्लादेशी नागरिकों के कारण पैदा हुई विसंगति पर की गई टिप्पणी से सहज समझा जा सकता है। 61 बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान संबंधी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह नोट किया कि उनमें से अधिकांश के पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड और पासपोर्ट हैं। उनमें से एक, जिसके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट था, ने 1996 में असम का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। सांसदों-विधायकों के चुनाव और अंतत: इस देश के नीतिनिर्माण में इन बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीरता को चिह्नित करते हुए कोर्ट ने तब कहा था कि असम में बांग्लादेशी किंगमेकर बन चुके हैं। आज ये प्रवासी मुसलमान असम की राजनीति में सर्वाधिक प्रभावी हैं। बांग्लादेश से निरंतर आ रहे घुसपैठिए सार्वजनिक जमीनों में बस्तियां आबाद करने के बाद स्थानीय नागरिकों को उनके घरों से बेदखल कर खदेड़ भगाना चाहते हैं। सवाल उठता है कि यह देश क्या धर्मशाला है, जहां कभी बांग्लादेश से तो कभी म्यांमार से अवैध घुसपैठिए बेरोकटोक आ धमकते हैं और स्थानीय जनजीवन को अस्तव्यस्त करते हैं? इन अवैध घुसपैठियों को इसलिए शरणार्थी मान लेना चाहिए कि वे मुस्लिम हैं? रोहयांग म्यांमारी और बांग्लादेशी घुसपैठियों का भारत से दूर-दूर का संपर्क नहीं है, फिर भी उन्हें संरक्षण दिलाने के लिए सेक्युलर दलों का एक बड़ा तबका चिंताग्रस्त है। किंतु उन हजारों हिंदुओं के लिए कोई फिक्त्रमंद दिखाई नहीं देता जो मजहबी चरमपंथ और हिंसा से आतंकित होकर पाकिस्तान से पलायन कर भारत में शरण की उम्मीद लगाए बैठे हैं। चौदह वर्षीय मनीषा कुमारी के अपहरण और बलात मत परिवर्तन के बाद उससे जबरन निकाह की ताजा घटना के साथ विगत शुक्रवार को ढाई सौ हिंदू-सिख परिवार भारत में शरण के लिए आए हैं। उनके समर्थन में भारत 
माता की जयघोष के साथ मुंबई जैसा प्रदर्शन क्यों नहीं होता? [लेखक बलबीर पुंज, भाजपा के राच्यसभा सांसद हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion2-9570757.html

हमले के डर से पूर्वोत्तर के हजारों लोग बेंगलुरु से भागे

बेंगलुरु।। असम में हुई हिंसा की आग अब पूरे देश में फैलती जा रही है। पिछले शनिवार को इसी मुद्दे पर दंगा भड़क गया था और अब बेंगलुरु में हमले की आशंका से पूर्वोत्तर भारत के हजारों लोग शहर छोड़ कर भाग रहे हैं। बुधवार रात ही पूर्वोत्तर के करीब 5,000 लोग विशेष रेलगाड़ियों से गुवाहाटी के लिए रवाना हो गए। इस बीच, पुलिस ने भरोसा दिलाते हुए कहा है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के छात्रों और अन्य लोगों को निशाना बनाए जाने की चर्चाएं अफवाह हैं और इन पर ध्यान न दें।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15513293.cms

पाकिस्तान से 118 हिन्दुओं का जत्था पहुंचा भारत

पाकिस्तान में आतंक के साये में जी रहे हिन्दुओं का 118 सदस्यीय जत्था गुरुवार को समझौता एक्सप्रेस से स्वदेश लौटा। स्वदेश लौटे इन हिन्दुओं के चेहरों पर आतंक का खौफ इतना है कि वे वापस पाकिस्तान जाने को लेकर आशंकित हैं।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-252476.html

पाकिस्तानी मीडिया ने स्वीकारा, हिंदुओं पर हुआ अत्याचार

इस्लामाबाद। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक खास तौर पर हिंदू कई दशकों से अत्याचार का सामना कर रहे हैं। यह बात पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने अपने संपादकीय में कही है। अखबार ने हिंदू व अन्य अल्पसंख्यकों के पाकिस्तान में रहने और उन्हें यहां सुरक्षित महसूस कराने की जरूरत पर भी बल दिया है।
http://www.jagran.com/news/world-cant-be-denied-hindus-faced-persecution-pakistani-daily-9570802.html 

Thursday, August 16, 2012

पाक हिन्दुओं को दिए जाएंगे लॉन्ग टर्म वीजा: सरका

नई दिल्ली।। पाकिस्तान में अत्याचारों के चलते भारत पहुंच रहे सैकड़ों हिन्दुओं के बारे में सरकार ने कहा है कि अगर वे नियम और शर्तों के तहत आवेदन करते हैं तो देश में रहने के लिए उन्हें लॉन्ग टर्म वीजा दिया जाएगा।
http://navbharattimes.indiatimes.com/pak-hindus-to-get-long-term-visas-if-they-apply-properly-govt/articleshow/15514306.cms

Wednesday, August 15, 2012

अमरनाथ यात्रियों की सुविधाओं पर काम करे सरकार

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अमरनाथ यात्रियों को सुविधाएं दिए जाने के मद्देनजर सरकार और अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आदेश दिया है कि वह बर्फबारी से पहले यात्रियों की सुविधाओं के लिए कुछ काम करके दिखाए। कोर्ट ने कहा कि उन्हें यह नहीं सुनना है कि अब तक क्या हुआ है।
http://www.jagran.com/news/national-supreme-court-slams-jk-government-and-amarnath-shrine-board-for-amarnath-yatra-9564606.html

मुंबई हिंसा के पीछे असम के अल्पसंख्यक नेता पर शक

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। असम के हालात को लेकर शनिवार को मुंबई में हुई हिंसा सुनियोजित थी। आशंका है कि इसके पीछे असम से आए किसी नेता का हाथ हो सकता है। महाराष्ट्र सरकार से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर किया गया है। गृह मंत्रालय ने हिंसा के पीछे असम लिंक की गहराई से जांच करने को कहा है।
http://www.jagran.com/news/national-mumbai-violence-pre-planned-9565759.html

Monday, August 13, 2012

पाकिस्तानी हिंदू नेता ने मांगी भारत व अमेरिका से मदद

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मीरपुरखास और आस-पास के इलाकों में 20 हिंदू परिवारों द्वारा देश छोड़ देने के बावजूद भी इस समुदाय के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने पाकिस्तान में भारत और अमेरिकी मिशनों से इस संबंध में मदद मांगी है।
http://www.jagran.com/news/world-hindu-leaders-in-pak-approach-indian-us-missions-for-help-9561799.html

Sunday, August 12, 2012

केरल में फर्जी नामों से काम कर रहे प्रतिबंधित संगठन

तिरुवनंतपुरम। कई प्रतिबंधित संगठनों ने केरल में फर्जी नामों से काम करना शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी [एनआइए] को सुबूत मिले हैं कि सिमी जैसे संगठन दोबारा सक्रिय हो गए हैं। ऐसी ज्यादातर रिपोर्ट उत्तरी केरल के कासारगोड, कन्नूर, कोझिकोड और मलाप्पुरम जिलों से मिली हैं।
http://www.jagran.com/news/national-banned-outfits-working-under-bogus-names-in-kerala-nia-9558935.html

संसद में उठेगा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का मामला

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर हिन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचार को अमानवीय बताते हुए केंद्र सरकार से पड़ोसी मुल्क को मदद देने वाले देशों पर दबाव डलवाकर उनकी सुरक्षा की मुकम्मल व्यवस्था कराए जाने की मांग की।
http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-0-0-251126.html

वोट बैंक की राजनीति से रंगा है असम


नई दिल्ली, [सुमन अग्रवाल]। देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में लगभग एक माह से जारी हिंसा ने अब तक 78 लोगों की जान ले ली हैं और लाखों को बेघर कर दिया है। असम में जल रही यह आग उस विनाश की ओर इशारा कर रही है जो अभी तो सिर्फ असम को जला रही है, लेकिन आने वाले दिनों में यह आग कई और राज्यों तक फैलने की उम्मीद है। जहां एक तरफ हम देश का 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं असम के स्थानीय लोग अपने ही मूल अधिकारों से वंचित होकर अपने को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं।
असम में फैली हिंसा को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है, लेकिन हिंसा फैलने का कोई ठोस कारण अब तक सामने नहीं आ पा रहा है। सीबीआई भी हिंसा ग्रस्त इलाकों का दौरा कर चुकी है। लेकिन अब तक कोई कारण सामने नहीं आया है। लेकिन अब माना जा रहा कि इसके पीछे बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ सबसे बड़ा कारण है। इस वजह से असम के स्थानीय लोग अपने को अधिकारों से वंचित होता महसूस कर रहे हैं।
घुसपैठ एक बड़ा कारण
असम सरकार के मुताबिक असम के कोकराझाड़ व धुबड़ी जिलों में फैली यह हिंसा वहां के बोडो जनजाति व बांग्लादेश से लगातार हो रही घुसपैठ का नतीजा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि बाग्लादेशी घुसपैठिये एक व्यापक साजिश के तहत धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर उत्तर-पूर्व में अपनी तादाद बढ़ाते जा रहे हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम राजनीतिक गलियारे में इन्हें वोट बैंक के रूप में देख कर इनका इस्तेमाल करते हैं।
क्या कहते हैं सरकारी आंकडे़
भारत सरकार के बोर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बाग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाग्लादेश से गैर हिंदू घुसपैठियों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में 54 लाख, असम में 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं। वर्तमान आकलनों के अनुसार भारत में करीब तीन करोड़ से अधिक बाग्लादेशी गैर हिंदू घुसपैठिए हैं जिसमें से 50 लाख असम में हो सकते हैं।
हिंसाग्रस्त जिलों में असमान्य जनसंख्या
असम में जिन तीन जिलों में यह संघर्ष चल रहा है, अगर उन जिलों की जनगणना विश्लेषण पर एक नजर डाली जाए तो स्थिति अपने आप ही साफ हो जाएगी। सबसे पहले कोकराझाड़ जिले पर नजर डाले तो वर्ष 2001-2011 में यहां की जनसंख्या में 5.19 फीसद का इजाफा हुआ है। 2001 के जनगणना के अनुसार इस जिले में मुस्लिमों की संख्या बढकर लगभग 20 फीसद हो गई है। अगर हम असम मुस्लिम जनसख्या में वृद्धि दर को देखें तो बांग्लादेश से लगे जिलों में यह सबसे अधिक है जिसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ मुख्य कारण है। धुबड़ी जिला भी बांग्लादेश के सीमा से सटा हुआ है। 1971 में यहा मुस्लिम जनसंख्या 64.46 फीसद थी जो 1991 में बढकर 70.45 फीसद हो गई। 2001 के जनगणना के अनुसार जनसंख्या बढ़कर लगभग 75 फीसद हो गई। कमोबेश यही हाल 2004 में बने चिराग जिले का भी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह सब वही जिले है जहां पर असम में हिंसा की वारदातें हुई हैं। चिरांग और कोकराझाड़ हिंसा का सबसे ज्यादा प्रभावित जिला रहा है।
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक असम में पिछले तीस वर्षो में जनसंख्या में बेइंतहा वृद्धि देखने को मिली है। गौर करने वाली बात यह है कि यह वृद्धि असमान्य है। असम में 1971-1991 में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि का अनुपात 42.89 था, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में इससे 35 फीसद अधिक 77.42 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत संपूर्ण भारत में दोनों के बीच में अंतर 19.79 फीसद का रहा है। 1991-2001 में हिंदू जनसंख्या बढ़ोतरी दर 14.95 फीसद रही, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में यहा भी 14.35 फीसद अधिक, 29.3 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई थी।
1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42 फीसद थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढ़ कर 30.92 फीसद हो गई। मालूम हो कि बाग्लादेशी घुसपैठिए बड़े पैमाने पर असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, नागालैंड, दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक लगातार फैलते जा रहे हैं। जिनके कारण जनसंख्या का असंतुलन बढ़ा है। सबसे गंभीर स्थिति यह है कि बाग्लादेशी घुसपैठियों का इस्तेमाल आतंक की बेल के रूप में किया जा रहा है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई और कट्टरपंथियों के निर्देश पर बड़े पैमाने पर हुई बाग्लादेशी घुसपैठ का लक्ष्य ग्रेटर बाग्लादेश का निर्माण करना है। इसके साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए भी इनका प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए भारत के सामाजिक ढाचे का नुकसान व आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है।
वोटबैंक की राजनीति
असम में स्थानीय लोगों की जगह प्रवासियों का प्रभुत्व स्थापित हो रहा है और स्थानीय जन जाती अपने अधिकारों से वंचित होती नजर आ रही है। यहां जारी विरोध मुस्लमानों से नहीं है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते जब भी इस ओर कोई आवाज उठाई जाती है इसे साप्रदायिकता के रंग में रंग दिया जाता है। बाग्लादेशी घुसपैठ खुद भारतीय मुसलमानों के लिए ज्यादा नुकसान देह है। इनसे जनसंख्या में जो भारी असंतुलन हो रहा है उससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा जो सुविधाएं भारत सरकार भारत के अल्पसंख्यकों को देती है उसमें में भी वह धीरे-धीरे हिस्सेदार बनते जा रहे हैं।
इस बात से केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों ही भलीभांति अवगत हैं, लेकिन वोट बैंक व तुष्टीकरण के राजनीतिक कारणों की वजह से हमेशा से इन पर पर्दा ही डाला जाता है। हाल के असम संघर्ष ने इस साजिश का चेहरा सभी के सामने रख दिया है।
विपक्ष के निशाने सरकार
गौरतलब है कि मानसून सत्र में लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी ने असम हिंसा के मुद्दे पर चर्चा करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि प्रदेश सरकार के पास असम के प्रवासियों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं हैं। यही नहीं उन्होंने तो इस हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा करार देने की बात से भी इन्कार किया था। लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
असम हिंसा कहीं न कहीं हमारी आंतरिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। इस मामले में राजनीतिक इच्छा शक्ति को बढ़ाना होगा ताकि हम वोट बैंक की राजनीति व धर्म के दायरे से बाहर निकलकर देश की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द कोई फैसला ले पाएं।

http://www.jagran.com/news/national-votebank-politics-spreads-in-assam-9558682.html

हिन्दुओं की सुरक्षा पर जागे जरदारी

इस्लामाबाद।। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सिंध प्रांत के हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना की खबरों के बाद सांसदों की तीन सदस्यीय समिति गठित की है। समिति प्रांत के अलग-अलग हिस्सों में जाकर हिन्दू समुदाय में फिर से भरोसा बहाल करेगी।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15449732.cms

आतंकी फरमान, कश्मीर में चलेगा शरिया कानून

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। कश्मीर घाटी में पहले पंच-सरपंचों, फिर कश्मीरी पंडितों और पत्रकारों को धमकी के बाद अब आतंकियों ने निजाम-ए-मुस्तफा [शरिया कानून] लागू करने का एलान किया है। पोस्टर के जरिये जारी किए गए इस फरमान में महिलाओं को पर्दे में रहने या फिर तेजाबी हमले झेलने को कहा गया है। यह ताजा धमकी आतंकी संगठन अलकायदा मुजाहिदीन ने दी है।
http://www.jagran.com/news/national-terrorists-fatwa-shariya-law-in-kashmir-9559901.html

असम दंगों पर मुंबई में हिंसा, दो मरे, 14 घायल

असम के दंगों के खिलाफ शनिवार को मुंबई में आयोजित विरोध प्रदर्शन के हिंसक हो जाने से दो लोगों की मौत हो गई और 14 अन्य घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों ने मीडिया के वैन समेत वाहनों में आग लगा दिया और पत्थर फेंके। पुलिस ने अराजक भीड़ को तितर बितर करने के लिये हवा में गोली चलाई और लाठीचार्ज किया।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-251178.html

बरेली में फिर क‌र्फ्यू

जागरण संवाददाता, बरेली। जगतपुर में धार्मिक जुलूस पर पथराव और फायरिंग से तीन सिपाहियों समेत डेढ़ दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। पुलिस ने रबर की गोलियां चला कर उपद्रवियों को खदेड़ा। उधर देर शाम कालीबाड़ी में लाठीचार्ज से भड़के लोगों ने पुलिस पर पथराव और फायरिंग की। इसमें एक होमगार्ड सहित कई लोग घायल हो गए। डीएम ने अमन कायम करने के लिए बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर, किला थाना क्षेत्र में क‌र्फ्यू लगा दिया और उपद्रवियों पर नकेल कसने के लिए उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए हैं। शहर के के सभी शिक्षण और वाणिज्यिक संस्थान बंद रखे जाने के भी निर्देश दिए गए हैं। देर रात एसएसपी सतेंद्र वीर सिंह ने दो दारोगा को सस्पेंड कर दिया और इंस्पेक्टर बारादरी को किला भेज दिया।
http://www.jagran.com/news/national-curfew-in-bareilly-again-9561357.html

Saturday, August 11, 2012

प्रताड़ित हिंदुओं का पाकिस्तान से पलायन

दुकानों में  लूटपाट, मकानों पर हमले और महिलाओं को जबरन इस्लाम कबूल करवाने की घटनाओं के बाद तमाम हिंदू पाकिस्तान से पलायन कर रहे हैं। यह जानकारी एक मीडिया रपट में सामने आई है।
http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-250905.html

Friday, August 10, 2012

पाकिस्तान में नाबालिग हिंदू लड़की अगवा

इस्लामाबाद।। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 14 साल की एक हिंदू लड़की के अगवा होने के बाद से वहां रह रहे अल्पसंख्यक परिवार पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15420372.cms

पाक में हिंदू युवती से दुष्कर्म

इस्लामाबाद। एक हिंदू युवती के जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में यहां एक मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया गया है। युवक ने दावा किया था कि युवती ने इस्लाम धर्म कबूल कर उससे निकाह किया था, जबकि युवती ने इन दावों को खारिज कर दिया।
http://www.jagran.com/news/world-pakistan-hindu-girl-denied-conversion-9547504.html

असम में हिंसा जारी, अब तक 73 की मौत

गुवाहाटी।। निचले असम के जिलों में हिंसा की ताजा घटना होने की खबरें हैं। असम में अब तक जारी जातीय हिंसा में 73 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार पहले ही इन दंगों की सीबीआई से जांच की बात कह चुकी है। मुख्य मंत्री ने बिगड़े हालात के लिए अंदरूनी और बाहरी दोनों तरह की ताकतों को जिम्मेदार बताया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15394176.cms

अवैध मस्जिद ढहाना बस में नहीं: दिल्ली पुलिस

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। लाल किले के पास सुभाष पार्क में बने अवैध मस्जिद के ढांचे को ढहाने के मामले में दिल्ली पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कई मजबूरियां बताते हुए पुलिस ने मंगलवार को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद ढहाने के फैसले में संशोधन करने की अपील की है। पुलिस ने क्षेत्र के विधायक शोएब इकबाल द्वारा मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने की मांग की है। अदालत 17 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
http://www.jagran.com/news/national-not-able-to-demolish-illigal-mosque-9547590.html