Monday, July 28, 2008

धमाकों से थर्राया बेंगलूर, दो की मौत

बेंगलूर। देश की आईटी राजधानी शुक्रवार को धमाकों से थर्रा गई। दोपहर डेढ़ बजे के बाद 15 मिनट के अंतराल पर लगातार नौ धमाके हुए। धमाकों में एक महिला समेत दो लोग मारे गए। एक दर्जन से अधिक लोग घायल भी हुए हैं। विस्फोटों के बाद देश के कई राज्यों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। इन धमाकों ने 2005 में यहां के भारतीय विज्ञान संस्थान पर हुए आतंकी हमले की याद दिला दी। इस हमले में दिल्ली आईआईटी के एक प्रोफेसर मारे गए थे।
धमाकों में देसी बमों का इस्तेमाल किया गया। अभी तक किसी भी आतंकी संगठन ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी नहीं ली है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार विस्फोटों के पीछे प्रतिबंधित संगठन सिमी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का हाथ हो सकता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने धमाकों की कड़ी निंदा की है। प्रधानमंत्री ने मारे गए लोगों के परिजनों को एक लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की। राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा ने इस घटना को राज्य की शांति को प्रभावित करने का प्रयास बताया। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। उधर, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी विस्फोटों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह आतंकवाद के प्रति संप्रग सरकार की नरम नीति का नतीजा है।
पुलिस ने बताया कि विस्फोट मडीवाला, अडुगोडी, नयनदाहाल्ली, मैसूर रोड, रिचमंड सर्किल, पंथारापाल्या और विट्ठल माल्या रोड पर हुए। मडीवाला के बस स्टैंड पर पति के साथ बस का इंतजार कर रही एक महिला श्रीमती श्रीरवि की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना में महिला का पति रवि और पुत्र घायल हो गया। विस्फोट के पांच मिनट बाद एक अन्य विस्फोट अडुगोडी इलाके में हुआ जहां एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया।
बेंगलूर के पुलिस आयुक्त शंकर एम बिदारी ने बताया कि एक बम विस्फोट फुटपाथ पर हुआ। विस्फोटों को अंजाम देने के लिए शक्तिशाली विस्फोटक और मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया गया। फोरेंसिक विशेषज्ञ और बम निरोधक दस्ता तुरंत मौके पर पहुंच गया और पुलिस ने इलाकों में नाकेबंदी कर दी। विस्फोटक सामग्री में नट और बोल्ट भी थे। उन्हें शरणार्थी शिविरों के पास और सड़क किनारे छिपाकर रखा गया था। उन्होंने बताया कि दो जगहों के अलावा विस्फोटों में कम तीव्रता वाली विस्फोटक सामग्री इस्तेमाल की गई। विस्फोट कुछ मिनटों के अंतराल पर हुए। पुलिस को एक विस्फोट स्थल से जिलेटिन की छडें़ भी मिली हैं।
राज्य की पंचायतराज मंत्री राजशोभा करनदलाजे ने एक विस्फोट स्थल का दौरा किया। उन्होंने कहा कि घायलों के इलाज का खर्च सरकार वहन करेगी। उन्होंने इन विस्फोटों की निंदा करते हुए कहा कि सरकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाएगी। एक अन्य विस्फोट स्थल पर गए राज्य के सूचना मंत्री कट्टा सुब्रमण्यम नायडू ने कहा कि यदि जरूरी हुआ तो राज्य सरकार शहर में अद्धसैनिक बलों की तैनाती पर विचार करेगी।(दैनिक जागरण, २५ जुलाई २००८)

Friday, July 25, 2008

अवैध निर्माण रुकवाने पर फायरिंग, पुलिस चौकी फूंकी

खन्ना नगर में एक विवादित स्थल पर अवैध निर्माण रुकवाने को लेकर बृहस्पतिवार को एक वर्ग विशेष और पुलिस के बीच गोलीबारी व पथराव से तीन पुलिस अधिकारी समेत दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए। सूत्र बताते हैं कि उपद्रव में दो लोगों की मौत हो गई, हालांकि प्रशासन ने इसकी पुष्टि नहीं की है। उपद्रवियों ने इस दौरान लोनी थाने की निठौरा पुलिस चौकी भी आग के हवाले कर दिया। रोडवेज बस समेत आधा दर्जन से ज्यादा वाहनों में आग लगा दी और कई वाहन क्षतिग्रस्त कर दिए। समाचार लिखे जाने तक पावी सादकपुर से लेकर लोनी बार्डर तक के आठ किलोमीटर के रास्ते में एक वर्ग विशेष के लोग जमा थे। पुलिस अनियंत्रित भीड़ को काबू करने में लगी हुई थी। बेकाबू हालात को देखते हुए लोनी में अघोषित क‌र्फ्यू लगा है व लोगों के घरों से निकलने पर रोक लगा दी गई है।

पुलिस अधिकारी हालात के बारे में कुछ भी कहने से देर रात तक कतराते रहे, पर डीएम दीपक अग्रवाल ने बताया कि हालात पर काबू पाने के लिए हर संभव कदम उठाए जा रहे है। उन्होंने कहा कि सरकारी भूमि पर दीवार खड़ी करने को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसे सुलझा लिया गया, लेकिन बाद में कुछ लोगों ने माहौल खराब कर दिया। उन्होंने कहा कि दो लोगों के घायल होने की जानकारी मिली है और तीन वाहनों में आग लगाने की। उन्होंने दावा किया कि उपद्रव के दौरान किसी मौत की सूचना नहीं है। देर रात तक जिलाधिकारी के साथ ही एसएसपी दीपक रतन समेत कई थानों की पुलिस व पीएसी हालात पर काबू पाने का प्रयास कर रहे थे। जिले के अतिरिक्त आसपास के जनपदों से भी पुलिस बल बुलाया जाता रहा।

जानकारी के मुताबिक लोनी के खन्ना नगर में एलएमसी की खाली पड़ी जमीन पर कुछ लोग बृहस्पतिवार को अवैध निर्माण करा रहे थे। दोपहर करीब चार बजे सूचना मिलने पर नायब तहसीलदार जय प्रकाश यादव के नेतृत्व में पहुंची प्रशासनिक टीम ने निर्माण कार्य को रुकवा दिया। इस बात को लेकर दोनों पक्षों में गहमा-गहमी बढ़ गई। मौके पर पहुंची पुलिस पांच लोगों को उठाकर थाने ले गई। इसके विरोध में वर्ग विशेष के लोगों ने खन्ना नगर में मुख्य सड़क पर जाम लगाकर हंगामा किया। आरोप है कि उन्होंने आसपास के घरों में घुसकर तोड़-फोड़ भी की। इसके बाद छह बजे के करीब एक वर्ग विशेष के सैकड़ों लोग लोनी थाने पहुंचे और जमकर हंगामा किया व पकड़े गए पांचों लोगों को थाने से जबरदस्ती छुड़ा ले गए। उपद्रवियों ने दिल्ली-सहारनपुर स्थित राशिद गेट पर भी जाम लगाकर हंगामा किया। जाम के दौरान फायरिंग होने से लोनी थाने के एसएसआई प्रेम शंकर, उप निरीक्षक एचपी सिंह, तीन बच्चे व एक महिला समेत दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए। सभी को लोनी व दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। देर रात तक घायलों को अस्पताल में पहुंचाया जाता रहा।

उपद्रवियों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने सीओ बार्डर सत्यपाल सिंह को बंधक बनाने का प्रयास किया और एसडीएम सदर विशाल सिंह को एक घर में कई घंटे जान बचाने के लिए छिपना पड़ा। लोनी तिराहे स्थित शंकर पैलेस [मैरिज होम], खन्ना नगर स्थित अशोका नर्सिंग होम समेत अनेक जगह घुसकर तोड़फोड़ की। देर रात तक लोनी में तनाव था। पावी सादिकपुर से लेकर लोनी बार्डर के आठ किलोमीटर के रास्ते में कई जगह वाहन जल रहे थे। चारों ओर वाहनों से आग की लपटें तथा सड़कों पर पत्थर दिखाई दे रहे थे। पुलिस उपद्रवियों की धरपकड़ में लगी हुई थी। क्षेत्र में बिजली नहीं होने के कारण स्थिति गंभीर बनी हुई थी। अंधेरा होने के कारण पुलिस प्रशासन को उपद्रवियों पर काबू पाने दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। कई जगह से किसी को चाकू तो किसी को गोली मारे जाने की चारों तरफ अफवाहे फैली हुई थीं। खेकड़ा क्षेत्र से रालोद विधायक मदन भैया ने लोनी की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है।(दैनिक जागरण २५ जुलाई २००८)

घाटी में बाहरी मजदूरों पर हमला, पांच मरे

श्रीनगर, जागरण संवाददाता : पहले सुरक्षाबलों, फिर पर्यटकों व श्रद्धालुओं और अब बाहरी राज्यों के मजदूर आतंकियों के निशाने पर आ गए हैं। गुरुवार को बटमालू बस स्टैंड पर आतंकियों ने ग्रेनेड से हमला कर दिया। इसमें बिहार निवासी एक महिला व उसके चार बच्चों की मौत हो गई। वे अपने घर वापस लौटने के लिए यहां बस का इंतजार कर रहे थे। विस्फोट की चपेट में आने से 21 अमरनाथ यात्रियों समेत 28 लोग घायल हो गए। इस हमले को घाटी से बाहरी लोगों को खदेड़ने की अलगाववादियों की साजिश का हिस्सा माना जा रहा है। इस वारदात को दोपहर पूर्व करीब पौने बारह बजे अंजाम दिया गया। उस समय बस स्टैंड पर बसों के इंतजार में बाहरी कामगारों और अमरनाथ गुफा के दर्शन कर वापस लौट रहे श्रद्घालुओं की भीड़ लगी हुई थी। हमले में एक ही परिवार के पांच लोगों की मौत हो गई। मृतकों में बिहार के अररिया जिला निवासी मुहम्मद फिरोज की पत्नी रूबीना (34) व उसके चार बच्चे खुशबू (12), अयूब (8), कय्यूम (7) व आदिल (4) शामिल हैं। फिरोज घाटी में मजदूरी कर परिवार को पाल रहा था। अलगाववादियों की धमकी के डर से अब वह घाटी छोड़ वापस अपने गांव लौट रहा था कि इसी बीच आतंकी हमला हो गया। श्रीनगर के एसएसपी ने कहा कि हमला किसी समुदाय विशेष के बजाय भीड़ को निशाना बनाने के इरादे से किया गया। उन्होंने बताया हमले में घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया है। गौरतलब है कि कश्मीर में बाहरी मजदूरों की मौजूदगी अलगाववादियों को खटक रही है। हुर्रियत कांफ्रेंस के कट्टरपंथी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी समेत अन्य अलगाववादी संगठन बाहरी राज्यों के लोगों को घाटी छोड़ने की कई बार धमकी दे चुके हैं। इसके लिए वे बाहरी मजदूरों को काम न देने और मारपीट जैसे हथकंडे भी अपना चुके हैं।(दैनिक जागरण , २५ जुलाई २००८)

Thursday, July 24, 2008

मुस्लिम तुष्टिकरण: अब मौलाना आजाद का जन्मदिन राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

Government to commemorate birthday of Maulana Abul Kalam Azad as National Education day

क्या इस देश मैं एक भी हिंदू शिक्षाविद नही बचा था या फिर केन्द्र की अंधी सरकार को पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे महान व्यक्तित्व दीखाई नही दीये।


There have been consistent demands from various sections of the society to observe 11th November, the birthday of Maulana Abul Kalam Azad, a great freedom fighter, an eminent Educationist and the first Union Minister of Education as National Education Day in a befitting manner. Several State Governments have also supported such a demand. Accordingly the Central Government has decided to observe 11th November, every year as the ‘National Education Day’ without declaring it as a holiday.

Ministry of Human Resource Development has decided to commemorate the birthday of this great son of India by recalling his contribution to the cause of education in India. Educational institutions at all levels would be involved in organizing seminars, symposia, essay-writing, elocution competitions, workshops and rallies with banners, cards and slogans on the importance of literacy and nation’s commitment to all aspects of education. The focus of activities on the ‘National Education Day’ would be on the various initiatives taken in Sarva Shiksha Abhiyan (SSA), in setting up of model schools in secondary education, on initiatives taken in higher secondary education, vocational education and higher education sectors by the Central Government on its own, as well as through Private-Public Partnership. These initiatives would be projected in association with various industry bodies, whose fullest cooperation also would be sought in the development of human resources in the country.

(Press Release, Government of India, Friday, July 18, 2008)

Saturday, July 19, 2008

अल्पसंख्यकों पर कुछ यूं फिदा हुए सरकारी बैंक

यूपीए सरकार ने सत्ता संभालने के साथ ही बैंकों के जरिए अल्पसंख्यकों को लुभाने का जो अभियान तीन वर्ष पहले शुरू किया था, वह अब परवान चढ़ता नजर आ रहा है। अभी तक अल्पसंख्यकों को कर्ज देने में आनाकानी करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब उन्हें आगे बढ़कर गले लगाने को तैयार हैं। केवल पिछले वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान अल्पसंख्यक बहुल जिलों में 523 बैंक शाखाएं खोली गई हैं। इन जिलों में इतनी बैंक शाखाएं पिछले पांच वर्षो के दौरान भी नहीं खोली गई थीं। यही नहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अगले तीन वर्षो के भीतर अल्पसंख्यक समुदाय को दिए जाने वाले कर्जो को बढ़ाने के लिए एक विशेष योजना भी तैयार कर ली है। इस बारे में सार्वजनिक क्षेत्र के सभी 28 बैंकों ने अपने स्तर पर अलग- अलग योजना की रूपरेखा तैयार की है। इसके तहत देश में दिए जाने वाले कुल बैंकिंग कर्ज में अल्पसंख्यकों की मौजूदा 9 फीसदी की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 15 फीसदी किया जाएगा। सरकारी बैंकों की इस योजना को रिजर्व बैंक की भी मंजूरी मिल गई है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कर्ज वितरण की विभिन्न सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी। बैंकों के भीतर अब एक प्रकोष्ठ का भी गठन किया जा रहा है जो अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले कर्ज पर विशेष नजर रखेगा। उधर,आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि अल्पसंख्यक बहुल जिलों में बैंकों की शाखाओं को खोलने में सरकार ने राजनीतिक नफा-नुकसान का पूरा ध्यान रखा है। सबसे ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश को दिया गया है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न अल्पसंख्यक बहुत जिलों में सरकारी बैंकों की 118 नई शाखाएं खोली गई हैं। (दैनिक जागरण, 19 ज़ुलाई 2008)

Thursday, July 17, 2008

बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए नई मुसीबत

ढाका, एजेंसी : बांग्लादेश में रह रहे हिंदू अल्पसंख्यकों के सामने आए दिन कोई कोई मुसीबत खड़ी होती रहती है। यहां के हिंदुओं के लिए नई चिंता का विषय देश की कार्यवाहक सरकार द्वारा प्रस्तावित नया संपत्ति कानून है। वैसे तो 1947 में भारत विभाजन के बाद से ही यहां हिंदुओं की जमीनों पर जबरन कब्जे की घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन, चिंता जताई जा रही है कि नए कानून की आड़ में हिंदुओं की जमीनों पर जबरन कब्जे की घटनाएं और तेज हो जाएंगी। देश के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और गैर सरकारी संगठनों ने सैन्य समर्थित सरकार से प्रस्तावित वेस्टिड प्रापर्टी वेरिफिकेशन, सिलेक्सन एंड सेटलमेंट आर्डिनेंस, 2008 को लागू नहीं करने की मांग की है। स्थानीय अखबार डेली स्टार के मुताबिक बुद्धिजीवियों का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय के भूमि विवाद सुलझाने के लिए वेस्टिड प्रापर्टी रिटर्न एक्ट 2001 पर्याप्त है। उन्होंने सरकार से गुजारिश की है कि नया कानून लाने की कोई जरूरत नहीं है। पाकिस्तान के निर्माण के बाद जब यहां रहने वाले लाखों हिंदू भारत चले गए तो उनकी जमीनों की देखरेख कर रहे रिश्तेदारों से जमीनें जबरन कब्जा ली गईं। इस वजह से अदालतों में भूमि विवाद के हजारों मुकदमे चल रहे हैं।

जम्मू में फिर बंद में बंध गई जिंदगी

जागरण संवाददाता, जम्मू : शहर व इसके आसपास के तमाम इलाकों में बुधवार को आम जनजीवन फिर हिंदू संगठनों के बंद में बंधी रही। शहर व कस्बों में बाजार पूरी तरह बंद रहे और शिक्षा संस्थानों समेत बैंकों में अवकाश रहा। सरकारी कार्यालयों में भी कर्मचारियों की उपस्थित कम रहने से कामकाज प्रभावित रहा। सड़कों पर दिनभर सन्नाटा पसरा रहा। कुछेक इलाकों में ही थोड़ी देर के लिए वाहनों की आवाजाही हो पाई। इससे सबसे ज्यादा परेशानी माता वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं को पेश आई। हिंदू संगठनों की अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति के आह्वान पर बुधवार को जम्मू पूर्ण बंद रहा। शहर की प्राइवेट बस यूनियन, मेटाडोर यूनियन, आटो यूनियन व टैक्सी यूनियन ने भी बंद को पूर्ण समर्थन दिया। यहां तक कि रेहड़ी वालों ने भी कारोबार बंद रखा। (दैनिक जागरण, 17 जुलाई, 2008)

Wednesday, July 16, 2008

कश्मीरियत की असलियत

अमरनाथ श्राइन बोर्ड मामले को कश्मीर में हिंदू विरोधी मानसिकता का प्रमाण बता रहे हैं एस.शंकर
कश्मीरी मुस्लिम नेता कश्मीरी हिंदुओं को मार भगाने संबंधी अपना पाप छिपाने तथा शेष भारत के हिंदुओं को बरगलाने के लिए कश्मीरियत का हवाला देते है, लेकिन असंख्य बार धोखा खाकर भी हिंदू वर्ग कुछ नहीं समझता। अभी-अभी मुफ्ती मुहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती ने जिस तरह जम्मू-कश्मीर सरकार को गिराया वह कश्मीरियत की असलियत का नवीनतम उदाहरण है। प्रांत में तीसरे-चौथे स्थान की हस्ती होकर भी मुफ्ती और उनकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने तीन वर्ष तक मुख्यमंत्री पद रखा। विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 13 सीटे और तीसरा स्थान मिला था, जबकि पहले स्थान पर रही कांग्रेस को 20 सीटे मिली थीं, फिर भी कांग्रेस ने पीडीपी को पहला अवसर दे दिया। कांग्रेस ने आधी-आधी अवधि के लिए दोनों पार्टियों का मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला माना था। जब आधी अवधि पूरी हुई तब पहले तो मुफ्ती ने समझौते का पालन करने के बजाय मुख्यमंत्री बने रहने के लिए तरह-तरह की तिकड़में कीं। अंतत: जब कांग्रेस ने अपनी बारी में अपना मुख्यमंत्री बनाना तय किया तो मुफ्ती ने 'नाराज न होने' का बयान दिया। तभी से वह किसी न किसी बहाने सरकार से हटने या उसे गिराने का मौका ढूंढ रहे थे। अमरनाथ यात्रा के यात्रियों के लिए विश्राम-स्थल बनाने के लिए भूमि देने से उन्हें बहाना मिल गया। इसीलिए उस निर्णय को वापस ले लेने के बाद भी मुफ्ती और उनकी बेटी ने सरकार गिरा दी। भारत का हिंदू कश्मीरी मुसलमानों से यह पूछने की ताब नहीं रखता कि जब देश भर में मुस्लिमों के लिए बड़े-बड़े और पक्के हज हाउस बनते रहे है, यहां तक कि हवाई अड्डों पर हज यात्रियों की सुविधा के लिए 'हज टर्मिनल' बन रहे है और सालाना सैकड़ों करोड़ रुपये की हज सब्सिडी दी जा रही है तब अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले हिंदुओं के लिए अपने ही देश में अस्थाई विश्राम-स्थल भी न बनने देना क्या इस्लामी अहंकार, जबर्दस्ती और अलगाववाद का प्रमाण नहीं है?
चूंकि कांग्रेस और बुद्धिजीवी वर्ग के हिंदू यह प्रश्न नहीं पूछते इसलिए कश्मीरी मुसलमान शेष भारत पर धौंस जमाना अपना अधिकार मानते है। वस्तुत: इसमें इस्लामी अहंकारियों से अधिक घातक भूमिका सेकुलर-वामपंथी हिंदुओं की है। कई समाचार चैनलों ने अमरनाथ यात्रियों के विरुद्ध कश्मीरी मुसलमानों द्वारा की गई हिंसा पर सहानुभूतिपूर्वक दिखाया कि 'कश्मीर जल रहा है'। मानों मुसलमानों का रोष स्वाभाविक है, जबकि यात्री पड़ाव के लिए दी गई भूमि वापस ले लेने के बाद जम्मू में हुए आंदोलन पर एक चैनल ने कहा कि यह बीजेपी की गुंडागर्दी है। भारत के ऐसे पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और नेताओं ने ही अलगावपरस्त और विशेषाधिकार की चाह रखने वाले मुस्लिम नेताओं की भूख बढ़ाई है। इसीलिए कश्मीरी मुसलमानों ने भारत के ऊपर धीरे-धीरे एक औपनिवेशिक धौंस कायम कर ली है। वे उदार हिंदू समाज का शुक्रगुजार होने के बजाय उसी पर अहसान जताने की भंगिमा दिखाते है। पीडीपी ने कांग्रेस के प्रति ठीक यही किया है। इस अहंकारी भंगिमा और विशेषाधिकारी मानसिकता को समझना चाहिए। यही कश्मीरी मुसलमानों की 'कश्मीरियत' है। यह मानसिकता शेष भारत अर्थात हिंदुओं का मनमाना शोषण करते हुए भी उल्टे सदैव शिकायती अंदाज रखती है। जो अंदाज छह वर्षो से मुफ्ती और महबूबा ने दिखाया वही फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर का भी था। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहते हुए भी उनकी पार्टी ने लोकसभा में वाजपेयी सरकार के विश्वास मत के पक्ष में वोट नहीं दिया था। वह मंत्री पद का सुख भी ले रहे थे और उस पद को देने वाले के विरोध का अंदाज भी रखते थे। जैसे अभी मुफ्ती ने कांग्रेस का दोहन किया उसी तरह जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में फारुक अब्दुल्ला ने भाजपा का दोहन किया। पूरे पांच वर्ष वह प्रधानमंत्री वाजपेयी से मनमानी इच्छाएं पूरी कराते रहे। जम्मू और लद्दाख क्षेत्र कश्मीरी मुसलमानों की अहमन्यता और शोषण का शिकार रहा है।
जम्मू और लद्दाख भारत का पूर्ण अंग बनकर रहना चाहते है। इन क्षेत्रों को स्वायत्त क्षेत्र या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग लंबे समय से स्वयं भाजपा करती रही। फिर भी केंद्र में छह साल शासन में रहकर भी उसने फारुक अब्दुल्ला को खुश रखने के लिए जम्मू और लद्दाख की पूरी उपेक्षा कर दी। यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव में फारुक अब्दुल्ला को जिताने की खातिर भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में गंभीरता से चुनाव ही नहीं लड़ा। बावजूद इसके जैसे ही लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन पराजित हुआ, फारुख ने उससे तुरंत पल्ला झाड़ लिया। इस मानसिकता को समझे बिना कश्मीरी मुसलमानों को समझना असंभव है। वाजपेयी सरकार के दौरान एक तरफ फारुख अब्दुल्ला ने तरह-तरह की योजनाओं के लिए केंद्र से भरपूर सहायता ली, जबकि उसी बीच जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्य की 'और अधिक स्वायत्तता' के लिए प्रस्ताव पारित कराया। एक तरह से यह वाजपेयी के साथ विश्वासघात जैसा ही था। यदि वह प्रस्ताव लागू हो तो जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री होगा। साथ ही वे तमाम चीजें होंगी जो उसे लगभग एक स्वतंत्र देश बना देंगी,मगर उसके सारे तामझाम, ठाट-बाट, सुरक्षा से लेकर विकास तक का पूरा खर्चा शेष भारत को उठाते रहना होगा। इस तरह कश्मीरी मुसलमान एक ओर भारत से अलग भी रहना चाहते है और दूसरी तरफ इसी भारत के गृहमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति और मौका मिले तो प्रधानमंत्री भी होना चाहते है। मुफ्ती मुहम्मद सईद, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तथा अन्य कश्मीरी मुस्लिम नेताओं के तमाम राजनीतिक लटके-झटके केवल एक भाव दर्शाते है कि वे भारत से खुश नहीं है। यही कश्मीरियत की असलियत है। कश्मीरी मुस्लिम नेतै, चाहे वे किसी भी राजनीतिक धारा के हों, शेष भारतवासियों को बिना कुछ दिए उनसे सिर्फ लेते रहना चाहते है। इस मनोविज्ञान को समझना और इसका इलाज करना बहुत जरूरी है, अन्यथा विस्थापित कश्मीरी हिंदू लेखिका क्षमा कौल के अनुसार पूरे भारत का हश्र कश्मीर जैसा हो जाएगा। दैनिक जागरण, 16 जुलाई 2008)

Tuesday, July 15, 2008

अलगाववादियों के अभियान

देश के दूसरे राज्यों से आकर जम्मू-कश्मीर में काम करके रोजी-रोटी कमाने वाले मजदूरों के खिलाफ अलगाववादियों ने एक बार फिर अभियान छेड़ दिया है। हालांकि हुर्रियत कान्फ्रेंस ने ऐसे तत्वों से फिलहाल अल्टीमेटम वापस लेने की अपील भी की है, लेकिन इसका कोई खास असर अल्टीमेटम देने वालों पर नहीं पड़ रहा है। यह अपील हुर्रियत ने सिर्फ कुछ दिनों के लिए की है, ताकि जनमत उनके खिलाफ न हो जाए। जबकि मजदूरों के खिलाफ अलगाववादियों के अल्टीमेटम और उनके अभियान का असर पूरे राज्य पर पड़ रहा है। इससे बाहरी राज्यों से आकर यहां काम करने वाले मजदूर तो प्रभावित हो ही रहे हैं, राज्य की कृषि और अर्थव्यवस्था पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। हालत यह है कि घाटी में बाहरी मजदूरों के खिलाफ ऐसा माहौल बना दिया गया है कि कोई वहां टिके ही नहीं। पहले तो उन्हें कश्मीर छोड़ने की धमकी दी गई। इसके बाद उन्हें घरों से बाहर निकाल कर पीटने और उनकी जमा-पूंजी छीनने जैसा जघन्य कृत्य भी किया गया। हैरत की बात यह है कि ऐसे अराजक तत्वों को रोकने वाला इस राज्य में कोई नहीं है। असामाजिक तत्व पूरे राज्य में अपनी मनमर्जी चला रहे हैं। जब जैसा चाहें फरमान जारी कर देते हैं और लोग उसे मानने के लिए विवश होते हैं, पर पुलिस प्रशासन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने में स्वयं को सक्षम नहीं पाता है। देश के दूसरे राज्यों से यहां आकर मजदूरी करने वाले लोगों के खिलाफ अभियान यहां कोई पहली बार नहीं चलाया जा रहा है। इसके पहले भी ऐसा हो चुका है। पहले उनके साथ सिर्फ लूटपाट की त्रासदी होती थी। मजदूरों की जमापूंजी छीनकर उन्हें भगा दिया जाता था। लेकिन अब स्थितियां ज्यादा बदतर हो गई हैं। बात केवल उनकी जमापूंजी छीनने तक सीमित नहीं रही। अब उनकी राष्ट्रीयता की भावना को आहत करने की पूरी कोशिश की जा रही है। ऐसी जगह पर जहां वे निराश्रित, अकेले और कमजोर हैं, उनकी गैरत को ललकारा जा रहा है। मजदूरों को पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने के लिए विवश किया जा रहा है। ऐसा राष्ट्रविरोधी कार्य करने की तुलना में आम भारतीय कश्मीर छोड़कर वापस अपने राज्य में लौट जाना पसंद करता है। दुखद बात यह है कि जम्मू-कश्मीर की सरकार या पुलिस-प्रशासन ऐसे तत्वों के खिलाफ कोई भी प्रभावी कदम उठाने में पूरी तरह नाकाम है। ऐसी स्थिति में अलगाववादियों पर काबू पाना वहां कैसे संभव होगा, यह सोचने की बात है। सच तो यह है कि कश्मीर में अलगाववादी पूरी तरह हावी होते जा रहे हैं। शासन और प्रशासन यह सब देख रहा है। इसके बावजूद वह कोई ठोस और प्रभावी कदम अलगाववादियों के खिलाफ नहीं उठा पा रहा है। वे जब जहां चाहते हैं हड़ताल करवा देते हैं। कभी धरना, कभी प्रदर्शन और कभी दंगे जैसे हालात बना देते हैं। यहां तक कि पाकिस्तानी झंडा फहराने जैसा राष्ट्रद्रोही कार्य भी वहां किया जा चुका है। ऐसा करने वाले लोग वहां आज भी खुलेआम घूम रहे हैं, क्योंकि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। यही नहीं, इनके राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों में स्थानीय नागरिकों को अक्सर न चाहते हुए भी शामिल होना पड़ता है। चूंकि स्थानीय प्रशासन आम लोगों की सुरक्षा कर पाने में नाकाम है, लिहाजा आम नागरिकों को इनके इशारे पर नाचना पड़ता है। वे जो कुछ भी चाहते हैं, वह उन्हें करना पड़ता है। आतंकवादियों को आम नागरिकों के घरों में शरण देने से लेकर उनके हथियार और गोला-बारूद छिपाने तक के अपराध आम जनता को इसीलिए करने पड़ते हैं। जाहिर है, जिनके पास भाग कर जाने के लिए भी कोई जगह नहीं है और जो पूरी तरह अलगाववादियों की दया पर ही निर्भर हैं, उन्हें उनके इशारों पर नाचना ही पड़ेगा। यह प्रशासनिक तंत्र की कमजोरी का ही नतीजा है, जो वहां अलगाववादी तत्व पूरे माहौल पर हावी हो गए हैं। अभी हाल ही में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी निर्माण के लिए जंगल की जमीन दिए जाने को लेकर जो कुछ हुआ वह प्रशासनिक तंत्र की कमजोरी का ही नतीजा है। अगर प्रशासनिक तंत्र मजबूत इच्छाशक्ति के साथ काम कर रहा होता तो वहां इस बात को लेकर किसी तरह का बवाल होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। परंतु इस मसले पर वहां पूरा बवाल हुआ और पूरा प्रशासन आम तौर पर मूकदर्शक बन कर देखता रहा। कश्मीरी पंडितों को अपने घर-खेत छोड़कर बाहर भागना पड़ा। आज वे दिल्ली और देश के अन्य शहरों में शरणार्थियों की तरह जिंदगी जी रहे हैं। पुरखों की संपत्ति से तो उन्हें वंचित होना ही पड़ा। यह आखिर किसकी कमजोरी है? भारतभूमि से प्रेम की कीमत उन्हें अपनी ही संपत्ति से वंचित होकर और अपने ही देश में शरणार्थी की तरह जीवन जीकर चुकानी पड़ रही है। इन सारी स्थितियों के लिए जिम्मेदार आखिर किसे माना जाए? अलगाववादी तत्व पूरे कश्मीर में खुलेआम घूम रहे हैं। वहां वे युवकों-युवतियों को वरगला रहे हैं। शरीफ नागरिकों को धमका रहे हैं और उन्हें पाकिस्तान के समर्थन तथा भारत के विरोध के लिए मजबूर कर रहे हैं। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो सरकार को मालूम न हो। सब कुछ पुलिस, खुफिया एजेंसियों और प्रशासन की नजर के सामने खुलेआम हो रहा है। इसके बावजूद किसी अलगाववादी तत्व के खिलाफ न तो कोई कठोर कार्रवाई की जा रही है और न उनकी नापाक हरकतों पर रोक लगाने की कोई गंभीर कोशिश ही दिखाई दे रही है। इन हालात को देखते हुए ऐसा लगने लगा है गोया कश्मीर अब पूरी तरह अराजक तत्वों के हवाले छोड़ दिया गया है। ऐसी स्थिति में दूसरे राज्यों से यहां आए मजदूर तो लौटकर अपने घर चले जाएंगे। वे वहीं मजदूरी करके जी लेंगे या थोड़े दिन बेरोजगार रह लेंगे। फिर कहीं और चले जाएंगे। लेकिन उन स्थानीय नागरिकों का क्या होगा, जो यहीं के रहने वाले हैं? क्या वे खुद को अलगाववादियों के रहमो-करम पर जीने को विवश मान लें या फिर सरकार उनकी जान-माल की सुरक्षा का कोई बंदोबस्त करेगी? सच तो यह है कि जब तक कश्मीर में आम नागरिकों की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो जाते तब तक वहां शांति सुनिश्चित हो पानी मुश्किल है। उस वक्त तक वहां आम आदमी को मुट्ठी भर राष्ट्रविरोधी तत्वों के रहमो-करम पर जीना पड़ेगा। यह न तो कश्मीर और वहां की जनता के लिए सही बात होगी और न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि के लिए ही। सरकार को इस मसले का कोई न कोई ठोस और प्रभावी समाधान तो निकालना ही पड़ेगा। बेहतर होगा कि इसके लिए अभी से ही सुनियोजित तरीके से काम शुरू कर दिया जाए। उन कारणों की पड़ताल की जाए जिनके नाते वहां पूरे माहौल पर अलगाववादी तत्व हावी हैं। इसके बाद उन पर नियंत्रण की पूरी व्यवस्था बनाई जाए और उस पर क्रमबद्ध तरीके से अमल किया जाए। यह तो अब तय ही हो चुका है कि यह काम आसानी से होने वाला नहीं है, इसलिए इस संबंध में सरकार को पूरी कड़ाई बरतने के लिए भी पहले से तैयार रहना चाहिए।(दैनिक जागरण , १५ जुलाई २००८)

Sunday, June 22, 2008

हिंदू जनजागृति समिति

मुंबई पुलिस की आतंकवाद निरोधक दस्ते ने ठाणे के थियेटर आडिटोरियम में विस्फोट के संबंध में स्थानीय दक्षिणपंथी संगठन हिंदू जनजागृति समिति के दो सदस्यों को आज गिरफ्तार किया। एक स्थानीय अदालत ने गिरफ्तार किए गए दोनों व्यक्तियों मंगेश निकम और रमेश गड़करी को 24 जून तक पुलिस हिरासत में भेज दिया। ठाणे के गड़करी रंगायतन आडिटोरियम में अमही पचुपुर्तें नामक नाटक के प्रदर्शन के दौरान चार जून को हुए हल्के विस्फोट में सात लोग घायल हो गए थे। 

इसके पहले समिति ने इस नाटक का विरोध किया था। उनका आरोप था कि नाटक में पौराणिक चरित्रों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था जिससे हिन्दुओं की भावनायें आहत होती है। मुंबई 16 जून (भाषा)