Saturday, July 19, 2008

अल्पसंख्यकों पर कुछ यूं फिदा हुए सरकारी बैंक

यूपीए सरकार ने सत्ता संभालने के साथ ही बैंकों के जरिए अल्पसंख्यकों को लुभाने का जो अभियान तीन वर्ष पहले शुरू किया था, वह अब परवान चढ़ता नजर आ रहा है। अभी तक अल्पसंख्यकों को कर्ज देने में आनाकानी करने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अब उन्हें आगे बढ़कर गले लगाने को तैयार हैं। केवल पिछले वित्त वर्ष 2007-08 के दौरान अल्पसंख्यक बहुल जिलों में 523 बैंक शाखाएं खोली गई हैं। इन जिलों में इतनी बैंक शाखाएं पिछले पांच वर्षो के दौरान भी नहीं खोली गई थीं। यही नहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अगले तीन वर्षो के भीतर अल्पसंख्यक समुदाय को दिए जाने वाले कर्जो को बढ़ाने के लिए एक विशेष योजना भी तैयार कर ली है। इस बारे में सार्वजनिक क्षेत्र के सभी 28 बैंकों ने अपने स्तर पर अलग- अलग योजना की रूपरेखा तैयार की है। इसके तहत देश में दिए जाने वाले कुल बैंकिंग कर्ज में अल्पसंख्यकों की मौजूदा 9 फीसदी की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 15 फीसदी किया जाएगा। सरकारी बैंकों की इस योजना को रिजर्व बैंक की भी मंजूरी मिल गई है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कर्ज वितरण की विभिन्न सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाएगी। बैंकों के भीतर अब एक प्रकोष्ठ का भी गठन किया जा रहा है जो अल्पसंख्यकों को दिए जाने वाले कर्ज पर विशेष नजर रखेगा। उधर,आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि अल्पसंख्यक बहुल जिलों में बैंकों की शाखाओं को खोलने में सरकार ने राजनीतिक नफा-नुकसान का पूरा ध्यान रखा है। सबसे ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश को दिया गया है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न अल्पसंख्यक बहुत जिलों में सरकारी बैंकों की 118 नई शाखाएं खोली गई हैं। (दैनिक जागरण, 19 ज़ुलाई 2008)

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