Thursday, August 30, 2012

पाकिस्तान में मंदिरों की सुरक्षा के लिए बनेगा कानून

इस्लामाबाद। हिंदू सहित तमाम अल्पसंख्यक समुदायों के धर्मस्थलों और संपत्ति की भू-माफिया से रक्षा के लिए तैयार किए जा रहे विधेयक के मसौदे को जल्द ही अंतिम रूप दिया जा सकता है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक, सिंध प्रांत के अधिकारी इस सप्ताह तक रिलीजियस माइनोरिटीज प्रॉपर्टी एक्ट-2012 का मसौदा तैयार कर लेंगे।
http://www.jagran.com/news/world-pak-will-make-law-to-protect-hindus-9609048.html

बंद के दौरान असम में हिंसा, मीडिया पर हमले

गुवाहाटी [जागरण न्यूज नेटवर्क]। आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के आहूत बंद के दौरान मंगलवार को असम के कई इलाकों में हिंसा हुई। इस दौरान सरकारी अधिकारियों और मीडिया के लोगों पर हमले किए गए। तेजपुर में बंद का विरोध करने पर एक युवक को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। हिंसा के बाद राज्य के कई इलाकों में क‌र्फ्यू लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सभी राजनीतिक दलों और संगठनों से संयम बरतने की अपील की है।
http://www.jagran.com/news/national-pne-killed-5-injured-in-assam-violence-9609005.html

असम में फिर हिंसा, एक की मौत, 5 घायल

गुवाहाटी।। असम के तनावग्रस्त कोकराझार जिले में सोमवार देर रात हिंसा की तीन अलग-अलग घटनाओं में एक व्यक्ति की मौत हो गई और 5 अन्य घायल हो गए। पुलिस ने बताया कि पहली घटना सलाकाती पुलिस थाने के तहत आने वाले फुमती गांव में हुई लेकिन इसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15880010.cms

विकृत सेक्युलरवाद


असम में आग क्यों लगी और 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में पाकिस्तानी झंडे क्यों लहराए गए? मुंबई के बाद पुणे, बेंगलूर, हैदराबाद, लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में रोहयांग और बांग्लादेशी मुसलमानों के समर्थन में हिंसा क्यों हुई? क्यों पूर्वोत्तर के करीब पचास हजार लोग विभिन्न शहरों से रोजी-रोटी छोड़ पलायन को मजबूर हुए? क्या देश यह आशा कर सकता है कि अब असम जैसी हिंसा आगे नहीं होगी? प्रधानमंत्री के बयानों को देखते हुए यह आशा बेमानी लगती है। विगत 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, असम में हिंसा की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हमारी सरकार हिंसा के पीछे के कारणों को जानने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। असम में तीन बार से कांग्रेस का शासन है, किंतु उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार यह नहीं जानती कि समस्या की जड़ क्या है? ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी जानते हैं कि समस्या का क्या कारण है। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने स्वीकार किया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा फैलाना पाकिस्तान पोषित भारतीय नेटवर्क की साजिश थी। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने दावा किया है कि खुफिया एजेंसियों ने यह पता लगा लिया है कि पाकिस्तानी नेटवर्क से दंगा फैलाने के लिए आपत्तिाजनक एमएमएस और तस्वीरें भेजी गईं, जिन्हें यहां बैठे पाकिस्तानी पिट्ठुओं ने भारतीय मुसलमानों को भड़काने के लिए प्रसारित किया।
भारत को हजार घाव देना पाकिस्तान का जिहादी एजेंडा है। अन्य देशों में बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय खींची गई तस्वीरें और एमएमएस पाकिस्तान से भेजे गए। पाकिस्तान अपने मकसद में कामयाब हो पा रहा है, क्योंकि उसके एजेंडे को पूरा करने के लिए उसे जो मानसिकता और हाथ चाहिए वे यहां बेरोकटोक पोषित हो रहे हैं। देश के कई हिस्सों में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई हिंसा और तोड़फोड़ से यह साफ हो चुका है कि भारत में एक वर्ग ऐसा है जो तन से तो भारत में है, किंतु मन पाकिस्तान से जुड़ा है। ऐसे देशघातकों को जब राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया जाता है तो स्वाभाविक तौर पर प्रश्न खड़े होते हैं, किंतु विडंबना यह है कि ऐसी मानसिकता के विरोध को सांप्रदायिक ठहराने की कोशिश होती है। क्यों?
इसी सेक्युलर सरकार की एक बानगी पिछले साल जून के महीने की है, जब काला धन वापस लाने के लिए रामदेव दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में अनशन पर डटे थे। आधी रात को रामलीला मैदान पुलिस छावनी में बदल गया, अनशनकारियों पर पुलिस ने अंधाधुंध लाठियां भांजी। बाबा रामदेव को गिरफ्तार कर उन्हें रातोरात दिल्ली की सीमा से बाहर कर दिया गया। एक ओर आधी रात को वंदेमातरम् और भारत माता का जयघोष करने वालों को सरकार बर्बरता से पीटती है और दूसरी ओर पाकिस्तानी झंडे लहराने और शहीद स्मारक को तोड़ने वाले लोगों को मनमानी की छूट देती है। क्यों?
मुंबई के आजाद मैदान में एकत्रित भीड़ का बांग्लादेशी घुसपैठियों या म्यांमारी रोहयांग मुसलमानों से क्या रिश्ता है और उन्हें इन विदेशियों के समर्थन में आंदोलन करने की छूट क्यों दी गई? इस देश में राष्ट्रहित की बात करना सेक्युलर मापदंड में जहां गुनाह है, वहीं इस्लामी चरमपंथ को पोषित करना सेक्युलरवाद की कसौटी बन गया है। इस दोहरे सेक्युलरवादी चरित्र के कारण ही कट्टरपंथियों को बल मिलता है, जिसके कारण कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंक का खौफ पसरा है। संसद पर आतंकी हमला करने की साजिश में फांसी की सजा प्राप्त अफजल को सरकारी मेहमान बनाए रखना सेक्युलरिस्टों के दोहरे चरित्र का जीवंत साक्ष्य है। कौन-सा ऐसा स्वाभिमानी राष्ट्र होगा, जो अपनी संप्रभुता पर हमला करने वालों की तीमारदारी करेगा?
असम की समस्या बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण है। इन बांग्लादेशियों को सुनियोजित तरीके से असम और अन्य पूर्वोत्तर प्रांतों सहित पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों के सीमांत क्षेत्रों में बसाया गया है। इनके कारण ही उन क्षेत्रों के जनसंख्या स्वरूप में भारी बदलाव आया है और वहां के स्थानीय नागरिक कई क्षेत्रों में अल्पसंख्यक की स्थिति में आ गए हैं और असुरक्षित अनुभव करते हैं। असम के मामले में तो गुवाहाटी उच्च न्यायालय का कहना है कि वे राच्य में किंगमेकर बन गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने सन 2005 के बाद 2006 में भी सरकार को बांग्लादेशी नागरिकों को देश से बाहर करने का निर्देश दिया है, किंतु बांग्लादेशी नागरिकों के निष्कासन पर सरकार खामोश है। असम में इतनी बड़ी हिंसा हुई, स्थानीय बोडो लोगों को उनके घरों और जमीनों से खदेड़ भगाया गया। विदेशियों के हाथों अपने सम्मान, अस्तित्व और पहचान लुटता देख जब स्थानीय लोगों ने कड़ा प्रतिरोध करना शुरू किया तो सभी सेक्युलर दलों को शांति और सद्भाव की चिंता सताने लगी। हिंसा भड़कने के प्रारंभिक तीन-चार दिनों तक राच्य और केंद्र सरकार दोनों सोई थीं। क्यों? अभी हाल में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने असम हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। इसमें बताया गया है कि दंगे मुसलमानों और बोडो के बीच छिड़े। रिपोर्ट में मुसलमानों को अल्पसंख्यक और बोडो को बहुसंख्यक बताया गया है। अल्पसंख्यक होने का सेक्युलर मापदंड आखिर है क्या? क्या मुसलमान होना ही अल्पसंख्यक होने का आधार है, चाहे उनका संख्या बल कितना भी हो?
असम में अल्पसंख्यक कौन हैं? असम बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण मुस्लिम बहुल राच्य बनने की राह पर है। कोकराझाड़, धुबड़ी, चिरांग और बरपेटा जिले हिंसा के सर्वाधिक शिकार रहे। कोकराझाड़ के भोवरागुड़ी में भारतीय मतावलंबियों की जनसंख्या 1991 से 2001 के बीच एक प्रतिशत तो दोतमा तहसील में 16 प्रतिशत घटी है, जबकि इसी अवधि में मुसलमानों की आबादी 26 प्रतिशत बढ़ी है। धुबड़ी जिले के बगरीबाड़ी, छापर और दक्षिणी सलमारा में भारतीय मतावलंबियों की आबादी क्रमश: 4, 2 और 23 प्रतिशत घटी, वहीं इन तहसीलों में मुसलमानों की जनसंख्या इसी अवधि में क्रमश: 30.5, 37.39, और 21 फीसदी बढ़ी। अन्यत्र यही हाल है। आबादी में यह बदलाव उन अवैध बांग्लादेशियों के कारण हुआ है, जिन्हें बसाकर जहां पाकिस्तान अपने एजेंडे को साकार करना चाहता है, वहीं कांग्रेस सेक्युलरवाद के नाम पर उन्हें संरक्षण प्रदान कर अपनी सत्ता अजर-अमर करना चाहती है। कांग्रेसी नेता देवकांत बरुआ ने इंदिरा गांधी को यूं ही नहीं कहा था कि अली और कुली असम में कांग्रेस के हाथ से गद्दी कभी जाने नहीं देंगे। इसी मानसिकता ने देश को रक्तरंजित विभाजन के लिए अभिशप्त किया। विकृत सेक्युलरवाद के कारण आज असम सुलग रहा है और मुंबई में पाकिस्तानी झंडे लहराए गए तो आश्चर्य कैसा?
[लेखक बलबीर पुंज, राच्यसभा सदस्य हैं]

छपे फोटो से खुश था अब्दुल कादिर

11 अगस्त को आजाद मैदान हिंसा के दौरान अमर जवान स्मारक पर लातों से हमला करने वाले जिस अब्दुल कादिर को मुंबई क्राइम ब्रांच ने बिहार के सीतामढ़ी शहर से गिरफ्तार किया है, वह 15 अगस्त तक मुंबई में ही था। उसे शुरुआत में पूरा भरोसा था कि उसे कभी पकड़ा नहीं जाएगा।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15910553.cms

भारतीय हज यात्रियों को मिलेगा सऊदी का सिम

भारतीय हज यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है। सऊदी अरब में घरवालों से फोन पर बात करने के लिए अब उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। यहां की सऊदी टेलीकॉम कंपनी भारतीयों को सिम कार्ड देगी। यह पहली बार है जब लोगों को यात्रा शुरू करने से पहले नाम मात्र के खर्च पर यह सुविधा मिलेगी।
http://www.amarujala.com/international/Gulf%20Country/saudi-sim-cards-for-indian-haj-pilgrims-13287-7.html

Monday, August 27, 2012

नापाक चेहरे का सच


अनुभूति और आस्था न्यूनतम मानवाधिकार हैं। अपने रस, छंद और अनुभव के आधार पर जीना हरेक मनुष्य का मौलिक अधिकार है, लेकिन पाकिस्तान में हिंदू होना एक गंभीर अपराध है। एक गहन यंत्रणा, असहनीय व्यथा और तिल-तिल कर मरने वाला मनस्ताप। बेटियों को पिता, मां और भाइयों के सामने उठा लिया जाता है, दुष्कर्म होते हैं। न पुलिस सुनती है और न सरकार। कट्टरपंथी जमातों के लिए वे काफिर हैं। वे मूर्तिपूजक हैं, वे दीन पर ईमान नहीं लाते सो उन्हें जीने का अधिकार नहीं। भारत सरकार मौन है। पाकिस्तानी मीडिया बेशक प्रशंसनीय है। एक पाकिस्तानी अखबार ने जकोबाबाद में 17 वर्षीय हिंदू लड़की के अपहरण पर टिप्पणी की और ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने की भी मांग की थी। एक अन्य समाचार पत्र ने बीते 11 अगस्त को लिखा, हिंदू व्यापारियों का अपहरण, लूट व संपत्ति पर कब्जा और धर्म विरोधी वातावरण के कारण वे मुख्यधारा से अलग हैं। ऐसा कोई मंच नहीं दिखता जहां उन्हें न्याय मिले, लेकिन भारत के मानवाधिकारवादी कथित सेक्युलर इस अंतरराष्ट्रीय उत्पीड़न पर भी मौन हैं। सारी दुनिया के हिंदू और संवेदनशील सन्न हैं और पाकिस्तानी कट्टरपंथी प्रसन्न। पाकिस्तान का जन्म स्वाभाविक नहीं था। राष्ट्र मजहब से नहीं बनते। वरना ढेर सारे मुस्लिम मुल्क न होते, लेकिन जिन्ना की मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को अलग राष्ट्र बताया। ब्रिटिशराज, कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने मिलकर भारत बांटा। जिन्ना ने पाकिस्तान को इस्लामी रंगत वाला सेक्युलर मुल्क बनाने का दावा किया, लेकिन पाकिस्तान अपने जन्म के 24 वर्ष के भीतर ही टूट गया, पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश हो गया। वह 65 बरस बाद भी न गणतंत्र बन पाया और न एक संगठित राष्ट्र। कायदे से कायदे आजम जिन्ना की सोच में ही खोट था। हालांकि पाक संविधान में धर्मपालन की आजादी है, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन ईश निंदा पर सजा-ए-मौत है। विचार अभिव्यक्ति की आजादी पर तलवारें हैं। शरीय कानूनों की भी मार है। पाकिस्तानी समाज पर संविधान और सरकार का नियंत्रण नहीं। समाज कट्टरपंथी आक्रामक तत्वों के हवाले है। सरकार की दो ताकतवर भुजाए हैं-सेना और आइएसआइ। दोनों भारत विरोधी हैं, स्वाभाविक ही हिंदू विरोधी भी हैं। पाकिस्तानी कट्टरपंथी हिंदुओं को इंसान नहीं मानते। हिंदू अघोषित जिम्मी हैं। इस्लामी परंपरा के भाष्यकार अबूहनीफा [699-766 ई.] ने गैरमुस्लिमों को छूट दी थी कि वे इस्लाम या मौत के चुनाव के अलावा जजिया कर देते हुए निम्न स्थिति में जिम्मी होकर रहें। पाकिस्तान के हिंदुओं की त्रासदी नई नहीं है। सिंध के पहले हमलावर और विजेता मोहम्मद बिन कासिम ने भी यही कायदा लागू किया था। हिंदुओं का बड़ी संख्या में मतांतरण कराना या मौत के घाट उतारना कठिन था। उसने सिंध के हिंदुओं को ऐसी ही निम्न स्थिति में रहने की छूट दी थी। तुर्की और अफगान विजेताओं ने भी गैरमुस्लिमों के मामले में यही नीति अपनाई थी। भारत के मुसलमान अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। संविधान ने उन्हें विशेष सुविधाएं दी हैं। उनकी शिक्षण संस्थाओं पर सामान्य शिक्षा कानून लागू नहीं होते। वे हज जैसी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं, सरकार सब्सिडी देती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राष्ट्रीय संसाधनों पर उनका पहला अधिकार बताते हैं। वे दीगर मुल्क म्यांमार की कथित मुस्लिम उत्पीड़न की वारदात पर मुंबई, लखनऊ, कानपुर आदि में हमला करते हैं। पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदुओं को पाक संविधान में क्या अधिकार हैं? उन्हें अयोध्या, मथुरा, काशी या रामेश्वरम की तीर्थ यात्रा में पाक सरकार कोई सुविधा या सब्सिडी नहीं देती। आखिरकार भारत में अल्पसंख्यक होने का मजा और पाक में अल्पसंख्यक होने की इतनी बड़ी सजा के मुख्य कारण क्या हैं? पाकिस्तानी सरकार विश्वसनीय नहीं है। अमेरिकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के लिए विशेष चिंता वाला देश माना है। पाकिस्तानी मानवाधिकार आयोग ने भी अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की बात को सही पाया है। लोकसभा में यह मसला भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने 13 अगस्त को उठाया था। उन्होंने सरकार से इस मुद्दे को पाकिस्तान के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी रखने की मांग की। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव सहित अन्य नेताओं ने भी इस मुद्दे को गंभीर बताया। बीजद के नेता भतर्ृहरि मेहताब ने राय दी कि जो हिंदू भारत आना चाहते हैं उनके लिए दरवाजे खोल देने चाहिए। भारतीय जनता की बेचैनी वाजिब है। पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं की व्यथा कथा आंसुओं से भीगी है। वे वापस नहीं जाना चाहते, लेकिन केंद्र सरकार का बयान लज्जाजनक है कि वीजा अवधि समाप्ति के बाद हिंदुओं को पाकिस्तान लौटना ही होगा। सरकार उनका दुख क्यों नहीं समझती? कीट-पतंगें, पशु-पक्षी भी अपने घर को प्यार करते हैं। यहां लोग अपना घर, व्यापार और संपदा छोड़कर भाग रहे हैं और कानूनी घेरे के बावजूद नहीं लौटना चाहते तो साफ है कि पाकिस्तानी अत्याचार अब बर्दाश्त के बाहर है। बलात मतांतरण मानवाधिकार का उल्लंघन हैं। दुष्कर्म और जबरन विवाह त्रासद हैं। देश विभाजन के बाद 1951 में भारत की मुस्लिम आबादी 10.43 प्रतिशत थी और हिंदू 87.24 प्रतिशत। इसी साल पाकिस्तान की हिंदू आबादी [बांग्लादेश सहित] 22 प्रतिशत थी। 2001 की भारतीय जनगणना में यहां मुस्लिम आबादी 10.43 से बढ़कर 13.42 प्रतिशत हो गई, लेकिन पाकिस्तान की हिंदू आबादी लगभग 1.8 प्रतिशत ही रह गई। कहां गए पाकिस्तान के अल्पसंख्यक हिंदू? क्या सबके सब यों ही खुशी-खुशी मतांतरित हो गए? कोई तो वजह होगी ही। यह पाकिस्तान का घरेलू मसला नहीं है। यह मानवाधिकार उल्लंघन का अंतरराष्ट्रीय सवाल है। भारत विभाजन के समय मुस्लिम लीगी आक्त्रामकता थी। कहा गया था कि मुसलमानों को पाकिस्तान देने से सांप्रदायिक समस्या का अंत होगा, लेकिन सारा देश विभाजन के विरुद्ध था। डॉ. अंबेडकर दूरदर्शी थे। उन्होंने पाकिस्तान का समर्थन किया था, लेकिन दोनों देशों की सांप्रदायिक जनसंख्या की अदलाबदली का सुझाव भी दिया था। सांप्रदायिक समस्या समाधान के लिए ही बुल्गारिया और ग्रीस व ग्रीस व तुर्की के बीच जनसंख्या की अदलाबदली हुई थी। पाकिस्तान अपने मुल्क को हिंदूविहीन बना रहा है। कट्टरपंथी बलात मतांतरण करवा रहे हैं। केंद्र को कोई नीति तो बनानी ही होगी। सरकार श्रीलंका के तमिलों पर सहानुभूति की मुद्रा में थी। मसला यह भी दूसरे देश का था। गांधीजी तुर्की के खलीफा को लेकर भारत में आंदोलन चला रहे थे, लेकिन भारत सरकार हिंदू उत्पीड़न पर भी मौन है, क्योंकि वे वोट बैंक नहीं है।
[लेखक हृदयनारायण दीक्षित, उप्र विधानपरिषद के सदस्य हैं]

Friday, August 24, 2012

असम समस्या की जड़


उत्तरपूर्व के लोगों का बेंगलूर, मुंबई और पुणे से हजारों की संख्या में पलायन 16 अगस्त, 1946 की याद दिलाता है जिसे मोहम्मद अली जिन्ना के आव्हान पर डाइरेक्ट एक्शन डे घोषित किया गया था। इसके बाद हिंसा का जो तांडव शुरू हुआ उसकी परिणति देश के विभाजन में हुई। तब विश्व इतिहास में आबादी का सबसे बड़ा स्थानांतरण हुआ था। इस बार भी बड़ी संख्या में आबादी का पलायन हुआ है, जो देश की सीमा के अंदर है। इससे बड़ी संख्या में पलायन सिर्फ बंटवारे के समय हुआ था। इस आग को भड़काने में सबसे बड़ी भूमिका रही सोशल मीडिया की। शरारती तत्वों ने भारत को अस्थिर करने के लिए इसका कुत्सित इस्तेमाल किया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साफ कहा है कि अधिकतर एसएमएस/एमएमएस पाकिस्तान से भेजे गए थे। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा मामलों के मंत्री से बात भी की है, लेकिन जैसा कि होता आया है पाकिस्तान ने अपना हाथ होने से साफ इन्कार कर दिया है। वैसे उसने प्रमाण मिलने पर कार्रवाई करने का भारत को भरोसा दिया है। पाकिस्तान ने स्थिति का लाभ उठाते हुए जातीय संघर्ष को सांप्रदायिक दंगे का रूप देने की पुरजोर कोशिश की। उसने प्राकृतिक आपदा से हुए हादसों की तस्वीरों को तोड़-मरोड़कर इंटरनेट पर अपलोड कर यह दुष्प्रचार करने का कुत्सित प्रयास किया कि मुसलमानों को बेरहमी से मारा जा रहा है। असम की समस्या जातीय है, सांप्रदायिक नहीं। यदि उसी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान की जगह हिंदू वहां बसते तो भी स्थानीय नागरिकों का उनसे संघर्ष होता। बोडो जनजाति का दावा है कि वे वहां के मूल निवासी हैं। वहां के महान वैष्णव संत शंकर देव ने उन्हें म्लेच्छ कहा है। इससे बोडो काफी आहत हैं और उन्होंने शंकर देव के लेखन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। जो भी हो, असम की समस्या की जड़ में है बांग्लादेश से लगातार आ रहा जनसैलाब जो आजादी के बाद भी नहीं रुका और जिससे असम की आबादी की शक्ल बदल गई है। असम के कम से कम छह जिलों में मुसलमान आज बहुसंख्यक हैं। असम में अवैध घुसपैठ या स्थानांतरण की शुरुआत 19वीं सदी के प्रारंभ में हुई, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाली मुसलमानों को ब्रम्हपुत्र घाटी में खेतों में काम करने के लिए लाई। तीस साल के अंदर बंगाल से आने वाले मुसलमान असम के चार जिलों में बस गए थे। उन्होंने जंगल को साफ किया तथा बंजर भूमि में उत्पादन शुरू किया। उनकी आबादी इस कदर बढ़ी कि 1931 में जनगणना आयुक्त सीएस मुलेन ने जनगणना रिपोर्ट में भविष्यवाणी की, जहां कहीं भी खाली जमीन है वहां पूर्वी बंगाल के लोग बस रहे हैं। पिछले 25 वर्षो में बिना किसी हंगामे या ज्यादा शोर-शराबे के पांच लाख की आबादी बंगाल से असम आकर प्रत्यारोपित हो चुकी है। एक समय आएगा जब शिवसागर एकमात्र जिला बचेगा जिसे असमी अपना कह सकेंगे। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने लाइन सिस्टम शुरू किया, जिसने हर जिले में एक खास क्षेत्र को चिन्हित किया जहां पलायन कर आने वाले बंगाली मुस्लिम बस सकते थे। परंतु 1944-45 में सादुल्लाह खान के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर कामरूप, दारांग तथा नवगांव जिलों में पूर्वी बंगाल से आने वाले मुसलमानों को बसने की छूट दे दी। ऐसा करने का उद्देश्य बताया गया- धान की पैदावार बढ़ाना। जिन्ना के निजी सचिव ने उनसे वादा किया था कि वह उन्हें पाकिस्तान के लिए असम तश्तरी पर परोस कर देंगे। स्वाधीनता के बाद भी बांग्लादेश से आबादी का पलायन जारी रहा। इससे यह प्रमाणित होता है कि मजहब के नाम पर हुए बंटवारे से समस्या का समाधान नहीं हुआ। महात्मा गांधी एवं जवाहरलाल नेहरू मजहब के आधार पर विभाजन के बिल्कुल खिलाफ थे। उनका कहना था कि यदि अंतत: विभाजन ही होना है तो यह क्षेत्रीय आधार पर होना चाहिए, धार्मिक आधार पर नहीं। परंतु जिन्ना ने उनकी बात नहीं मानी। जब सितंबर, 1946 में उनसे पूछा गया कि क्या वह हिंदुस्तान के सारे मुसलमानों को पाकिस्तान ले जा पाएंगे, तो उनका जवाब था कि वह पाकिस्तान में हिंदुओं को रखना पसंद करेंगे ताकि यदि भविष्य में हिंदुस्तान में मुसलमानों के साथ अन्याय होता है तो ऐसा ही वह हिंदुओं के साथ पाकिस्तान में कर सकें। यानी वह हिंदुओं को ब्लैकमेल करने के उद्देश्य से पाकिस्तान में रखना चाहते थे। वैसे संविधान सभा में जिन्ना ने अपने बहुचर्चित भाषण में कहा था कि पाकिस्तान में सभी धर्मावलंबी अमन-चैन से एकदूसरे के साथ रह पाएंगे। यदि पाकिस्तान को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र ही होना था, जहां सभी धर्मो को मानने वालों को समान अधिकार और सम्मान के साथ रहने का हक मिलता तो फिर विभाजन की जरूरत ही क्या थी? विभाजन के बाद भी बांग्लादेश से अवैध पलायनकर्ताओं का आना जारी रहा। इसके विरोध में पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला। अंत में 1985 में राजीव गांधी ने आसु के साथ समझौता किया, जिसमें तय हुआ कि 25 मार्च, 1971 के दिन या उसके बाद आने वाले बांग्लादेशियों की पहचान कर उन्हें वापस बांग्लादेश भेजा जाएगा। इस समझौते को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। यह स्पष्ट करना जरूरी है कि असम के लोगों का विरोध स्थानीय मुसलमानों से नहीं है, वरन अवैध घुसपैठियों से है।
[लेखक सुधांशु रंजन, वरिष्ठ पत्रकार हैं]

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion2-9592398.html

खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर की जनजातियां

पूर्वोत्तर की जिन जनजातियों को शेष भारत में चिंकी और चीनी कहकर चिढ़ाया जाता है, वे खांटी भारतीय हैं। ये अपने आप को न सिर्फ रामायण-महाभारत के पात्रों का वंशज मानती हैं, बल्कि अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित भी रखे हुए हैं।
http://www.jagran.com/news/national-north-east-people-are-typical-indian-9594068.html

Wednesday, August 22, 2012

315 ईसाई फिर हिंदू धर्म में वापस

हरहुआ : स्थानीय मुर्दहा गांव स्थित ब्रह्म बाबा मंदिर में 315 ईसाइयों ने फिर हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया। ये आसपास के गांवों के 22 परिवारों से हैं। हवन कुंड में आहुतियां दीं और संकल्प लिया। संत रविदास धर्म रक्षा समिति व सुहेलदेव रक्षा समिति ने पूजन अनुष्ठान कराया और उनके मूल धर्म में वापसी कराई।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9585091.html

पुणे विस्फोटों के पीछे आईएम का संस्थापक सदस्य साजिद: सूत्र

पुणे में हाल में हुए सिलसिलेवार धमाकों की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों ने दावा किया है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन का संस्थापक मोहम्मद साजिद हमले के पीछे मुख्य संदिग्ध है।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-253756.html

मुंबई पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक पर बरसे ठाकरे

मुंबई।। आजाद मैदान में हिंसा से निबटने को लेकर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना करते हुए शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सोमवार को आरोप लगाया कि पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक पुलिस बल का मनोबल गिरा रहे हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15572484.cms

अमरनाथ गुफा तक सड़क बनाने की योजना नहीं

श्रीनगर। ऑल पार्टी हुर्रियत काफ्रेंस के उदारवादी गुट के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक द्वारा अमरनाथ की पवित्र गुफा तक सड़क बनाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विरोध करने के बाद वादी में 2008 की पुनरावृत्ति होने की आशका है। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने रविवार को बालटाल से पवित्र गुफा तक सड़क बनाने की किसी भी योजना से इन्कार कर दिया।
http://www.jagran.com/news/national-to-the-holy-cave-of-amarnath-street-plan-9582984.html

रोजगार योजनाओं में अब अल्पसंख्यकों को आरक्षण

वाराणसी : डेढ़ दशक से अधिक समय से संचालित स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) में अल्पसंख्यकों के लिए 15 प्रतिशत फंड आरक्षित किया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा कुछ दिनों पूर्व प्रारंभ महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में भी अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के प्रावधान किए गए हैं।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/varanasi-city-9585294.html

पलायन मामले में जांच के दायरे में केरल का संगठन

असम में हुई हिंसा के बाद भड़काउ एसएमएस और एमएमएस भेजने में संदिग्ध भूमिका के लिए केरल का एक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया खुफिया एजेंसियों की जांच के दायरे में है। 
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-254034.html

पाक में हिंदू-मुस्लिम बच्चों के क्लास अलग-अलग

अटारी, जागरण संवाददाता। पाकिस्तान में हिंदुओं व सिखों के साथ क्या हो रहा है, यह उन चेहरों को देखने से बयां हो जाता है जो हर दिन समझौता एक्सप्रेस से अपने पूरे परिवार के साथ भारत आ रहे हैं। सोमवार को पाकिस्तान से 41 लोग भारत आए।
http://www.jagran.com/news/national-pak-hindu-muslim-children-class-individually-9585770.html

कट्टरता का पोषण


अधिकारिक तौर पर उन्हें अफवाहों का सौदागर, शरारती तत्व और राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा है। उन्हें यह सब कहें या फिर इससे भी अधिक किंतु कटु सच्चाई यह है कि भारत को इस तथ्य का सामना करना होगा कि ये दुष्ट लोग बड़े जोशोखरोश से अपने अभियान की सफलता का जश्न मना रहे हैं। जरा इन तथ्यों पर गौर फरमाएं। 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान पर 50,000 लोगों की भीड़ जमा होती है और वह फसाद शुरू कर देती है। वाहन जला दिए जाते हैं, महिला पुलिसकर्मियों के साथ छेड़छाड़ होती है, दुकानों के शीशे तोड़ दिए जाते हैं और यहां तक कि अमर जवान ज्योति का अनादर किया जाता है। यह सब असम और म्यांमार में मुसलमानों के उत्पीड़न से उपजे रोष में किया गया। भयाक्रांत करने वाली घटनाओं के दो दिनों के भीतर बेंगलूर, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई आदि शहरों में रहने वाले उत्तरपूर्व के लोगों के मोबाइल पर डरावना एसएमएस आया कि 20 अगस्त तक शहर छोड़ दें या फिर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें। पिछले रविवार की शाम को उत्तरपूर्व के लोगों ने बड़े पैमाने पर कूच शुरू कर दिया। करीब 25,000 लोगों ने छोटे झोलों में सामान भरा और अपना घर, पढ़ाई, कामकाज छोड़कर गुवाहाटी के लिए सबसे पहली उपलब्ध ट्रेन पकड़ने के लिए निकल पड़े। यहां तक कि सरकार, संसद और प्रबुद्ध नागरिकों ने इन घबराए हुए नागरिकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है, किंतु मुंबई के आजाद मैदान में भीड़ द्वारा कारें फूंकने, दुकानों की खिड़कियां तोड़ने की घटनाओं और 17 अगस्त को लखनऊ, इलाहाबाद में हुए उग्र प्रदर्शनों ने इस प्रयास पर पानी फेर दिया। एक अंग्रेजी अखबार की वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार लखनऊ में पचास से अधिक लोगों ने गौतम बुद्ध पार्क पर हमला बोल दिया और बुद्ध की एक मूर्ति को खंडित कर दिया। इस दौरान उन्होंने फोटोग्राफ भी खिंचवाए। वे भी असम और म्यांमार की घटनाओं का विरोध कर रहे थे। केवल नौ दिनों के भीतर इन शरारती तत्वों और राष्ट्रविरोधी लोगों ने तीन निश्चित लक्ष्यों को पूरा कर लिया। पहला यह कि उन्होंने बड़े सुस्पष्ट ढंग से यह जता दिया कि बात जब मुसलमानों की होती है, भूगोल के बजाय समुदाय की अहमियत होती है। उन्होंने भाजपा और बहुत से असमियों के दावे की खिल्ली उड़ाई कि कोकराझाड़ में दंगे भारतीय और विदेशियों के बीच हुए थे। उन्होंने पूरे भारत के सामने अकड़ दिखाते हुए जताया कि उनकी पहचान पूरी तरह बाहरियों और विदेशियों के साथ जुड़ी है। साथ ही उन्होंने प्रदर्शित किया कि जब मुस्लिम हितों की बात आती है तो राष्ट्रीय सीमाएं बेमानी हो जाती हैं। अतीत में तुर्की के खलीफा भी भारत में मुद्दा बन गए थे। हाल ही में, फिलीस्तीन पीड़ित के प्रतीक के रूप में उभरा था। अब म्यांमार में रोहिंग्याओं को गले लगाने के लिए रोष अपनी हदें पार कर चुका है। शरारती तत्वों ने दूसरा लक्ष्य यह साधा कि उन्होंने भारत की भावनात्मक एकता पर जबरदस्त आघात कर दिया। कुछ समय से भारत के शहरों में उत्तरपूर्व के लोगों, खासतौर पर महिलाओं को प्रताड़ना झेलनी पड़ी है। उत्तरपूर्व के लोगों की वाजिब शिकायत है कि मुख्यभूमि में उन्हें लोगों की अवमानना का शिकार होना पड़ता है। जैसे ही शांत आतंक के शिकार असम और उत्तरपूर्व के अपने ठिकानों पर पहुंचेंगे और अपने-अपने हालात बयान करेंगे, उनमें अलगाव की भावना और प्रबल होगी। आने वाले समय में यह याद नहीं रहेगा कि स्थानीय पुलिस, प्रशासन और स्वयंसेवी समूहों ने उत्तारपूर्व के लोगों का विश्वास जीतने का पुरजोर प्रयास किया, बल्कि इतिहास में दर्ज होगा कि भारत की मुख्यधारा इन लोगों के लिए असुरक्षित हो गई है, कि जातीय और क्षेत्रीय आग्रहों के कारण वे निशाने पर आ गए हैं, कि उनका भारत के साथ कोई संबंध नहीं है। जो 25,000 या इसके करीब लोग भयभीत होकर अपने घर लौटे हैं उन्हें भावनात्मक सदमे से उबरने में लंबा समय लगेगा। जिनकी याददास्त अच्छी है, वे जानते हैं कि 1982 के एशियाड में सिखों के साथ हुए व्यवहार की टीस अभी तक उनके मन-मस्तिष्क से निकली नहीं है। विषाद को कटुता में बदलने से रोकने के लिए तुरंत ऐसे कदम उठाए जाने जरूरी हैं, जो सुनिश्चित कर सकें कि जिन लोगों ने गुवाहाटी की ट्रेन पकड़ी है, वे अपने कार्यस्थल पर जल्द से जल्द वापस लौट आएं। राष्ट्रद्रोहियों का अंतिम मकसद था सरकार और राजनीतिक वर्ग को हताश और कमजोर कर देना। पिछले दस दिनों में जो कुछ हुआ उस पर प्रतिक्रिया जताने में अतिसंवेदनशीलता का भद्दा प्रदर्शन किया गया। खबर है कि मुंबई पुलिस कमिश्नर ने अधिक गिरफ्तारियों के खिलाफ चेतावनी जारी की थी, एक मुख्यमंत्री ने विदेश मंत्रालय पर दबाव डाला था कि म्यांमार के राजदूत को बुलाकर औपचारिक विरोध दर्ज कराएं और अल्पसंख्यक कमीशन ने असम में अवैध घुसपैठ की घटनाओं को लेकर नकार की मुद्रा अपना ली थी। राजनीतिक रूप से कांग्रेस बुरी तरह फंस गई है। उसे डर है कि दंगाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के खतरनाक चुनावी नतीजे होंगे। यहां तक कि चौथा स्तंभ, जो निर्भीकता के साथ अन्याय को उजागर करता रहा है, ने भी अपने कदम वापस खींच लिए। इसका आंशिक कारण तो समझ में आने वाला है कि पूरा सच उजागर करने का मतलब है भय और हताशा का वातावरण बनाना। हालांकि शरारती तत्व सच्चे दिल की इस मजबूरी से यही निहितार्थ तलाशेंगे कि उनके बाहुबल और निर्वाचन शक्ति के सामने सत्ता प्रतिष्ठान झुक गया है। इन घटनाओं के बाद अब शरारती तत्वों के हौसले बुलंद हो गए हैं। उन्होंने अपने पंजे पैने कर लिए हैं और यह जान गए हैं कि इनमें कितनी ताकत है। इन घटनाओं ने मुस्लिम समुदाय में भी उग्रवादियों का असर बढ़ा दिया है। उग्रवादियों ने दिखा दिया है कि उनमें अपनी चलाने की क्षमता है। पिछले सप्ताह, संसद में असम पर होने वाली बहस के दौरान हैदराबाद के सासंद ने चेताया कि अगर मुसलमानों की शिकायतों को जल्द दूर नहीं किया गया तो कट्टरता की तीसरी लहर उठ सकती है। पिछले एक पखवाड़े की घटनाओं के बाद यह देखना होगा कि वह स्पष्ट रवैये की चेतावनी दे रहे थे या फिर उसके आगमन पर नगाड़ा बजा रहे थे।
[लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9585759.html

Monday, August 20, 2012

त्रासदी से जूझता पूर्वोत्तर

असम में कोकराझाड़ समेत कुछ अन्य जिलों में व्यापक गुटीय हिंसा के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अफवाहों का जा दौर चला और उसके दुष्परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर के लोगों को जिस तरह निशाना बनाया गया उससे आंतरिक सुरक्षा का कमजोर ढांचा ही सामने आया। रही-सही कसर कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों से पूर्वोत्तर के लोगों के पलायन ने पूरी कर दी। यह पलायन आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर केंद्र सरकार की नाकामी को उजागर करता है। इससे अधिक शर्मनाक और क्या होगा कि देश के एक हिस्से में उभरे सांप्रदायिक तनाव की प्रतिक्रिया देश के अलग-अलग हिस्सों में व्यक्त की जाए और राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्रीय सत्ता इस पर अंकुश लगाने में अक्षम साबित हो? यह राष्ट्रीय शर्म का विषय है कि पूर्वोत्तर के लोगों को अलग-अलग राज्यों में निशाना बनाया जा रहा है और इसके चलते वे अपने घरों की ओर भाग रहे हैं। इस मामले में पहला दोष असम सरकार का है, जो अपने यहां भड़की हिंसा पर रोक लगाने में असफल साबित हुई। असम सरकार की नाकामी को ढकने का प्रयास केंद्रीय सत्ता ने किया। नतीजा यह हुआ कि वहां की हिंसा के बहाने अन्य राच्यों में शरारती तत्व सक्रिय हो गए। चूंकि असम में कांग्रेस की ही सरकार है इसलिए केंद्रीय सत्ता ने न तो वहां भड़की हिंसा के बुनियादी कारणों की तह में जाने की कोशिश की और न ही यह देखने-समझने की कि राच्य सरकार अपने दायित्वों का सही तरह पालन कर रही है या नहीं? असम में भड़की हिंसा पर बोडो समुदाय का आरोप है कि बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर बसे लोगों के कारण पूरे क्षेत्र का जनसांख्यिकीय स्वरूप बदल गया है। बोडो समुदाय की नाराजगी का एक कारण यह भी है कि 1985 में राजीव गांधी सरकार द्वारा किए गए समझौते को पूरी तरह लागू नहीं किया गया। पिछले डेढ़-दो दशकों में असम में बांग्लादेश से आए लोगों की आबादी जिस तरह बढ़ी है उससे स्थानीय समुदाय के लोगों को अपने संसाधन हाथ से खिसकते नजर आ रहे हैं। असम में भड़की हिंसा पर राच्य सरकार शुरू से ही हकीकत पर पर्दा डालते नजर आई। पहले उसकी ओर से यह आरोप लगाया गया कि सेना ने देर से हस्तक्षेप किया और फिर हिंसा भड़कने के अलग-अलग कारण बताने की होड़ लग गई। चूंकि असम सरकार ने वस्तुस्थिति समझकर सही कदम उठाने से इन्कार किया इसलिए हिंसा ने गंभीर रूप धारण कर लिया। स्थिति की गंभीरता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि करीब तीन लाख लोग राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं और खुद मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि हालात सामान्य होने में दो-तीन माह का समय लगेगा। पता नहीं क्यों केंद्रीय सत्ता अभी भी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को लेकर अपनी आंखें बंद किए हुए है? जब अनेक स्नोतों से यह सामने आ चुका है कि पिछले तीन-चार दशकों में असम में बांग्लादेशी नागरिकों की आबादी कई गुना बढ़ गई है और सुप्रीम कोर्ट भी इस घुसपैठ को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगा चुका है तब हाथ पर हाथ धरकर बैठने का क्या मतलब? बांग्लादेश से आए लोगों का मुद्दा असम की एक पुरानी समस्या है और इसे लेकर खूब राजनीति भी होती रही है। एक समय उल्फा और असम गण परिषद की मान्यता यह थी कि असम में बाहर से आए सभी लोगों को निकाला जाना चाहिए। उनके निशाने पर बांग्लादेश और साथ ही देश के अन्य हिस्सों से आए लोग भी थे। एक समय इस मुद्दे ने राष्ट्रीय समस्या का रूप ले लिया था। बाद में न केवल उल्फा की विभाजनकारी रणनीति पर अंकुश लगाया गया, बल्कि राजनीतिक रूप से असम गण परिषद भी हाशिये पर चला गया। असम गण परिषद के कमजोर होने का फायदा कांग्रेस को मिला और वह पिछले तीन चुनाव जीतने में सफल रही। लंबे समय तक सत्ता में रहने से जो कमियां शासन में आ जाती है वे असम सरकार में भी नजर आ रही हैं, विशेषकर कानून एवं व्यवस्था के मोर्चे पर। असम के साथ-साथ देश के अन्य क्षेत्रों में स्थितियां इसलिए और अधिक खराब होती गईं, क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट के जरिये सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाले तत्वों पर लगाम नहीं लगाई जा सकी। मुंबई में तो असम हिंसा के विरोध में आयोजित प्रदर्शन अराजकता में तब्दील हो गया। केंद्र सरकार ने थोक में किए जाने वाले एसएमएस और एमएमएस पर रोक लगाने का निर्णय तब लिया जब कर्नाटक, आंध्र और महाराष्ट्र में रह रहे पूर्वोत्तर के लोग बड़े पैमाने पर पलायन के लिए विवश हो गए। भले ही प्रधानमंत्री और गृहमंत्री यह आश्वासन दे रहे हैं कि स्थितियां नियंत्रण में हैं, लेकिन यह कैसा नियंत्रण है कि पूर्वोत्तर के लोग यह भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी वास्तव में सुरक्षा की जाएगी? फिलहाल इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि नए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से सही तरह से निपट नहीं पा रहे हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनके पदभार संभालने के बाद से एक के बाद एक ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जो उनके लिए किसी परीक्षा से कम नहीं। यह स्वाभाविक ही है कि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा आंतरिक सुरक्षा के मामलों को आक्रामक ढंग से उठा रही है। पूर्वोत्तर के लोगों को निशाना बनाए जाने के मामले में प्रधानमंत्री ने जिस तरह केवल भाजपा शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री से बात करना जरूरी समझा उससे भाजपा को केंद्र सरकार पर हमला करने का मौका मिला। वैसे भाजपा को ध्यान रखना होगा कि बांग्लादेशी नागरिकों को निकालना आसान नहीं। खुद उसके नेतृत्व वाली राजग सरकार इस दिशा में कुछ ठोस नहीं कर सकी थी। केंद्र सरकार के लिए न केवल यह आवश्यक है कि वह पूर्वोत्तर के लोगों को सुरक्षा का अहसास कराए, बल्कि उसे इसकी तह में जाना होगा कि क्या असम में हिंसा के पीछे कोई बड़ी साजिश थी? केंद्र सरकार को समस्या की जड़ यानी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को रोकने के ठोस प्रयास भी करने होंगे। असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को चिन्हित करना कोई सरल कार्य नहीं है। केंद्र सरकार को राजनीतिक स्वार्थो की परवाह करने के बजाय दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा। किसी क्षेत्र के सीमित संसाधनों पर जब एक समुदाय का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है तो दूसरे समुदायों की समस्याएं बढ़ती हैं। असम के एक हिस्से में भड़की हिंसा का असर जिस तरह देश के अन्य हिस्सों पर पड़ा और पूर्वोत्तर के हजारों लोग पलायन के लिए मजबूर गए उससे इसका पता चलता है कि किस तरह शरारती तत्व इस हिंसा को हिंदू बनाम मुसलमान का रूप देने में सक्षम हो गए। इससे यह भी जाहिर हुआ कि शेष देश के लोगों को पूर्वोत्तर की समझ नहीं है। इस स्थिति के लिए एक हद तक केंद्रीय सत्ता भी जिम्मेदार है, जो पूर्वोत्तर को हमेशा रियायतों से प्रभावित करने की कोशिश में रहती है। यही कारण है कि इस क्षेत्र के लोगों का सामाजिक और राजनीतिक तौर पर शेष देश से वैसा मिश्रण नहीं हुआ जैसा अन्य इलाके के लोगों का हुआ है। स्थितियां तभी बदलेंगी जब पूर्वोत्तर के च्यादा से च्यादा लोग देश के अन्य हिस्सों में काम-काज के लिए आते रहेंगे। अगर किसी भी कारण से वे भयभीत होंगे तो इससे पूर्वोत्तर की भी समस्याएं बढ़ेंगी और शेष देश की भी। [संजय गुप्त]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9580149.html

इलाहाबाद में दूसरे दिन भी बवाल

असम और बर्मा के मुद्दे पर निकले जुलूस के दौरान शहर में भड़की हिंसा दूसरे दिन भी जारी रही। तमाम कोशिशों के बाद भी शनिवार को चौक के हालात सामान्य नहीं हो सके। चौक में बवाल की आंच दूसरे इलाकों तक पहुंची और आधे शहर में भगदड़, पथराव के बाद बाजार बंद हो गए। जानसेनगंज के दुकानदारों ने जुलूस निकाल कर दूसरे बाजार भी बंद करा दिए। इस दौरान चौक और आसपास के इलाकों में पथराव के बाद बम भी चले।
http://www.amarujala.com/National/chaos-continues-second-day-in-Allahabad-30892.html

जब चिड़िया चुग गई खेत तब जागी सरकार

असम हिंसा की अफवाहों को लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों और सरकार दोनों का खराब रिकॉर्ड सामने आया है। सूचना तकनीक के विशेषज्ञों की नजर में अफवाहों को रोकने और उन्हें हटाने को लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटें और सरकार जिम्मेदार भूमिका निभा सकती थीं। मगर ऐसा नहीं हुआ। सरकार अब इन साइटों पर कड़ी नजर रखने की बात कर रही है। जबकि वह सूचना तकनीक कानून के तहत ऐसे अधिकारों से लैस है। वह चाहे तो वेबसाइटों पर रोक लगा कर उन पर मुकदमा चलाने का आदेश दे सकती थी। मगर ऐसा नहीं किया गया।
http://www.amarujala.com/National/assam-violence-social-media-fanning-rumours-triggering-panic-30888.html

हिंदुओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाएगा पाकिस्तान

इस्लामाबाद।। पाकिस्तानी हिंदुओं के बड़ी तादाद में भारत जाने की खबरों के बीच राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सिंध सरकार को एक मसौदा कानून बनाने का निर्देश दिया है। इस कानून के जरिए संविधान में संशोधन किया जाएगा ताकि दक्षिणी प्रांत में अल्पसंख्यकों के जबरन धर्मांतरण को रोका जा सके।

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15548773.cms

Saturday, August 18, 2012

असम हिंसा के विरोध में उप्र के तीन शहरों में उपद्रव

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। असम और म्यांमार की हिंसा में अल्पसंख्यकों पर हुए असर के विरोध में शुक्रवार को अलविदा की नमाज के बाद कई उत्तर प्रदेश में लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद में भीड़ हिंसक हो उठी। इस दौरान न बीमार की परवाह की गई और न बच्चों की। न महिलाओं को देखा गया और न अपाहिज को। जिधर मन हुआ बेतहाशा ईंट-पत्थर बरसाए गए और लूटपाट की गई। लखनऊ में बुद्ध पार्क घूमने गई महिलाओं को घेरकर उनके कपड़े तक फाड़ दिए गए। मुंबई में हुए हिंसक विरोध से कोई सबक न लेते हुए सुस्त पुलिस तंत्र तब सक्रिय हुआ, जब तमाम निर्दोष चुटैल हो चुके थे और संपत्ति का भारी नुकसान हो चुका था। विरोध की बयार जम्मू-कश्मीर में भी चली लेकिन वहां लोगों के हिंसक होने की खबर नहीं है।
http://www.jagran.com/news/national-volence-in-protest-of-assam-issue-9575472.html

Friday, August 17, 2012

संसद की खतरनाक चुप्पी

विगत शनिवार को मुंबई के आजाद मैदान में असम दंगों के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन का हिंसा पर उतर आना क्या रेखांकित करता है? स्थानीय मुस्लिम संगठन रजा अकादमी के आव्हान पर जनसभा में शामिल होने के बहाने हजारों की संख्या में एकत्रित भीड़ ने पुलिस की गाड़ियां जला डालीं, न्यूज चैनलों के ओबी वैन जलाए गए और आसपास की दुकानों को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान पाकिस्तानी झंडे भी लहराए गए। प्रश्न यह है कि एक समुदाय विशेष के कट्टरपंथी वर्ग को देश की कानून-व्यवस्था का खौफ क्यों नहीं है? अपनी हर उचित-अनुचित मांग को पूरा करने के लिए जब-तब हिंसा की प्रेरणा उन्हें कौन देता है? मुंबई के उपरोक्त कांड से तीन कटु सत्य सामने आते हैं। पहला, देश में एक बड़ा वर्ग है, जो मजहब और मजहबी रिश्तों को देश की मिट्टी के साथ संबंध से बड़ा मानता है। नहीं तो कोई कारण नहीं था कि इस एकत्रित भीड़ की सहानुभूति बोडो लोगों के साथ ना होकर बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति होती। दूसरा, उक्त विरोध प्रदर्शन में पाकिस्तानी झंडे फहराने का अर्थ यह है कि बहुत से भारतीयों की पहली प्रतिबद्धता पाकिस्तान के साथ है। तीसरा, वोट बैंक की राजनीति से मोहग्रस्त कथित सेक्युलर दलों में से किसी ने भी इस हिंसक घटना की निंदा नहीं की। उनका इस विषय में मौन रहना और पुलिस को पंगु बनाए रखना ही कट्टरपंथियों को प्रोत्साहन दे रहा है। मुंबई जैसी हिंसा वस्तुत: सेक्युलरिस्टों के दोहरे चाल-चरित्र का परिणाम है। सब जानते हैं कि असम की हिंसा के पीछे देश में अवैध रूप से घुसपैठ कर यहां बस चुके बांग्लादेशियों का हाथ है, किंतु संसद से लेकर मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इस संबंध में चुप्पी साध रखी है। राज्य और केंद्र सरकार असम दंगों में बांग्लादेशियों का हाथ बताने से परहेज करती आई है। उच्च सदन में मैंने 8 अगस्त को बांग्लादेशी घुसपैठियों की चर्चा की थी, किंतु इस चर्चा में भाग लेने वाले अधिकांश सेक्युलर नेताओं ने लीपापोती करने का ही काम किया, इस खूनी संघर्ष के असली कारणों की चर्चा नहीं की। पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने एक राहत शिविर का दौरा करने के बाद कहा कि असम में अब विभिन्न समुदायों के लोग रह रहे हैं। इन सब को शांति से रहना सीखना होगा। अर्थात स्थानीय जनजाति के लोगों को विदेशी घुसपैठियों द्वारा उनकी संपत्ति, सम्मान और पहचान के ऊपर होते आक्रमण के साथ समझौता करना सीखना होगा। जब सत्ता अधिष्ठान देश की संप्रभुता के साथ समझौता कर ऐसी कायरता दिखाएगा तो स्वाभाविक तौर पर अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा मिलेगा। वस्तुत: असम के दंगे केवल असम का मामला नहीं है और ना ही यह बोडो जनजातियों तक सीमित है। करोड़ों की संख्या में अवैध रूप से घुसपैठ कर आए बांग्लादेशी नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं। यह तब और गंभीर हो जाता है, जब वोट बैंक के कारण इस देश की संप्रभुता को चुनौती देने वालों को संरक्षण प्रदान किया जाता है। बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या करीब डेढ़ करोड़ बताई जाती है। इनके कारण देश के कई प्रांतों का जहां जनसंख्या स्वरूप तेजी से बदला है, वहीं वे कानून-व्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा बन रहे हैं। असम में बस चुके अवैध बांग्लादेशी नागरिकों के निष्कासन को असंभव बनाने के लिए कांग्रेस सरकार ने 1983 में जो आइएमडीटी एक्ट बनाया था, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 2005 में असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। सरकार को तब यह निर्देष दिया गया था कि वह बांग्लादेशियों की पहचान और उन्हें देश से बाहर करना सुनिश्चित करे। वह काम अधर में लटकाए रखा गया है। क्यों? इसे सन 2008 में गौहाटी उच्च न्यायालय द्वारा बाग्लादेशी नागरिकों के कारण पैदा हुई विसंगति पर की गई टिप्पणी से सहज समझा जा सकता है। 61 बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान संबंधी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह नोट किया कि उनमें से अधिकांश के पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड और पासपोर्ट हैं। उनमें से एक, जिसके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट था, ने 1996 में असम का विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। सांसदों-विधायकों के चुनाव और अंतत: इस देश के नीतिनिर्माण में इन बांग्लादेशियों की घुसपैठ की गंभीरता को चिह्नित करते हुए कोर्ट ने तब कहा था कि असम में बांग्लादेशी किंगमेकर बन चुके हैं। आज ये प्रवासी मुसलमान असम की राजनीति में सर्वाधिक प्रभावी हैं। बांग्लादेश से निरंतर आ रहे घुसपैठिए सार्वजनिक जमीनों में बस्तियां आबाद करने के बाद स्थानीय नागरिकों को उनके घरों से बेदखल कर खदेड़ भगाना चाहते हैं। सवाल उठता है कि यह देश क्या धर्मशाला है, जहां कभी बांग्लादेश से तो कभी म्यांमार से अवैध घुसपैठिए बेरोकटोक आ धमकते हैं और स्थानीय जनजीवन को अस्तव्यस्त करते हैं? इन अवैध घुसपैठियों को इसलिए शरणार्थी मान लेना चाहिए कि वे मुस्लिम हैं? रोहयांग म्यांमारी और बांग्लादेशी घुसपैठियों का भारत से दूर-दूर का संपर्क नहीं है, फिर भी उन्हें संरक्षण दिलाने के लिए सेक्युलर दलों का एक बड़ा तबका चिंताग्रस्त है। किंतु उन हजारों हिंदुओं के लिए कोई फिक्त्रमंद दिखाई नहीं देता जो मजहबी चरमपंथ और हिंसा से आतंकित होकर पाकिस्तान से पलायन कर भारत में शरण की उम्मीद लगाए बैठे हैं। चौदह वर्षीय मनीषा कुमारी के अपहरण और बलात मत परिवर्तन के बाद उससे जबरन निकाह की ताजा घटना के साथ विगत शुक्रवार को ढाई सौ हिंदू-सिख परिवार भारत में शरण के लिए आए हैं। उनके समर्थन में भारत 
माता की जयघोष के साथ मुंबई जैसा प्रदर्शन क्यों नहीं होता? [लेखक बलबीर पुंज, भाजपा के राच्यसभा सांसद हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion2-9570757.html

हमले के डर से पूर्वोत्तर के हजारों लोग बेंगलुरु से भागे

बेंगलुरु।। असम में हुई हिंसा की आग अब पूरे देश में फैलती जा रही है। पिछले शनिवार को इसी मुद्दे पर दंगा भड़क गया था और अब बेंगलुरु में हमले की आशंका से पूर्वोत्तर भारत के हजारों लोग शहर छोड़ कर भाग रहे हैं। बुधवार रात ही पूर्वोत्तर के करीब 5,000 लोग विशेष रेलगाड़ियों से गुवाहाटी के लिए रवाना हो गए। इस बीच, पुलिस ने भरोसा दिलाते हुए कहा है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के छात्रों और अन्य लोगों को निशाना बनाए जाने की चर्चाएं अफवाह हैं और इन पर ध्यान न दें।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15513293.cms

पाकिस्तान से 118 हिन्दुओं का जत्था पहुंचा भारत

पाकिस्तान में आतंक के साये में जी रहे हिन्दुओं का 118 सदस्यीय जत्था गुरुवार को समझौता एक्सप्रेस से स्वदेश लौटा। स्वदेश लौटे इन हिन्दुओं के चेहरों पर आतंक का खौफ इतना है कि वे वापस पाकिस्तान जाने को लेकर आशंकित हैं।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-252476.html

पाकिस्तानी मीडिया ने स्वीकारा, हिंदुओं पर हुआ अत्याचार

इस्लामाबाद। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक खास तौर पर हिंदू कई दशकों से अत्याचार का सामना कर रहे हैं। यह बात पाकिस्तान के एक प्रमुख अखबार ने अपने संपादकीय में कही है। अखबार ने हिंदू व अन्य अल्पसंख्यकों के पाकिस्तान में रहने और उन्हें यहां सुरक्षित महसूस कराने की जरूरत पर भी बल दिया है।
http://www.jagran.com/news/world-cant-be-denied-hindus-faced-persecution-pakistani-daily-9570802.html 

Thursday, August 16, 2012

पाक हिन्दुओं को दिए जाएंगे लॉन्ग टर्म वीजा: सरका

नई दिल्ली।। पाकिस्तान में अत्याचारों के चलते भारत पहुंच रहे सैकड़ों हिन्दुओं के बारे में सरकार ने कहा है कि अगर वे नियम और शर्तों के तहत आवेदन करते हैं तो देश में रहने के लिए उन्हें लॉन्ग टर्म वीजा दिया जाएगा।
http://navbharattimes.indiatimes.com/pak-hindus-to-get-long-term-visas-if-they-apply-properly-govt/articleshow/15514306.cms

Wednesday, August 15, 2012

अमरनाथ यात्रियों की सुविधाओं पर काम करे सरकार

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अमरनाथ यात्रियों को सुविधाएं दिए जाने के मद्देनजर सरकार और अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आदेश दिया है कि वह बर्फबारी से पहले यात्रियों की सुविधाओं के लिए कुछ काम करके दिखाए। कोर्ट ने कहा कि उन्हें यह नहीं सुनना है कि अब तक क्या हुआ है।
http://www.jagran.com/news/national-supreme-court-slams-jk-government-and-amarnath-shrine-board-for-amarnath-yatra-9564606.html

मुंबई हिंसा के पीछे असम के अल्पसंख्यक नेता पर शक

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। असम के हालात को लेकर शनिवार को मुंबई में हुई हिंसा सुनियोजित थी। आशंका है कि इसके पीछे असम से आए किसी नेता का हाथ हो सकता है। महाराष्ट्र सरकार से केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर किया गया है। गृह मंत्रालय ने हिंसा के पीछे असम लिंक की गहराई से जांच करने को कहा है।
http://www.jagran.com/news/national-mumbai-violence-pre-planned-9565759.html

Monday, August 13, 2012

पाकिस्तानी हिंदू नेता ने मांगी भारत व अमेरिका से मदद

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मीरपुरखास और आस-पास के इलाकों में 20 हिंदू परिवारों द्वारा देश छोड़ देने के बावजूद भी इस समुदाय के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई है। क्षेत्र के अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने पाकिस्तान में भारत और अमेरिकी मिशनों से इस संबंध में मदद मांगी है।
http://www.jagran.com/news/world-hindu-leaders-in-pak-approach-indian-us-missions-for-help-9561799.html

Sunday, August 12, 2012

केरल में फर्जी नामों से काम कर रहे प्रतिबंधित संगठन

तिरुवनंतपुरम। कई प्रतिबंधित संगठनों ने केरल में फर्जी नामों से काम करना शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी [एनआइए] को सुबूत मिले हैं कि सिमी जैसे संगठन दोबारा सक्रिय हो गए हैं। ऐसी ज्यादातर रिपोर्ट उत्तरी केरल के कासारगोड, कन्नूर, कोझिकोड और मलाप्पुरम जिलों से मिली हैं।
http://www.jagran.com/news/national-banned-outfits-working-under-bogus-names-in-kerala-nia-9558935.html

संसद में उठेगा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का मामला

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर हिन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचार को अमानवीय बताते हुए केंद्र सरकार से पड़ोसी मुल्क को मदद देने वाले देशों पर दबाव डलवाकर उनकी सुरक्षा की मुकम्मल व्यवस्था कराए जाने की मांग की।
http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/article1-story-0-0-251126.html

वोट बैंक की राजनीति से रंगा है असम


नई दिल्ली, [सुमन अग्रवाल]। देश के उत्तर-पूर्वी राज्य असम में लगभग एक माह से जारी हिंसा ने अब तक 78 लोगों की जान ले ली हैं और लाखों को बेघर कर दिया है। असम में जल रही यह आग उस विनाश की ओर इशारा कर रही है जो अभी तो सिर्फ असम को जला रही है, लेकिन आने वाले दिनों में यह आग कई और राज्यों तक फैलने की उम्मीद है। जहां एक तरफ हम देश का 66वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटे हैं, वहीं असम के स्थानीय लोग अपने ही मूल अधिकारों से वंचित होकर अपने को पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं।
असम में फैली हिंसा को लेकर राजनीतिक माहौल भी गर्म हो गया है, लेकिन हिंसा फैलने का कोई ठोस कारण अब तक सामने नहीं आ पा रहा है। सीबीआई भी हिंसा ग्रस्त इलाकों का दौरा कर चुकी है। लेकिन अब तक कोई कारण सामने नहीं आया है। लेकिन अब माना जा रहा कि इसके पीछे बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ सबसे बड़ा कारण है। इस वजह से असम के स्थानीय लोग अपने को अधिकारों से वंचित होता महसूस कर रहे हैं।
घुसपैठ एक बड़ा कारण
असम सरकार के मुताबिक असम के कोकराझाड़ व धुबड़ी जिलों में फैली यह हिंसा वहां के बोडो जनजाति व बांग्लादेश से लगातार हो रही घुसपैठ का नतीजा बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि बाग्लादेशी घुसपैठिये एक व्यापक साजिश के तहत धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर उत्तर-पूर्व में अपनी तादाद बढ़ाते जा रहे हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि हम राजनीतिक गलियारे में इन्हें वोट बैंक के रूप में देख कर इनका इस्तेमाल करते हैं।
क्या कहते हैं सरकारी आंकडे़
भारत सरकार के बोर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बाग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाग्लादेश से गैर हिंदू घुसपैठियों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। पश्चिम बंगाल में 54 लाख, असम में 40 लाख, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि में 5-5 लाख से ज्यादा दिल्ली में 3 लाख हैं। वर्तमान आकलनों के अनुसार भारत में करीब तीन करोड़ से अधिक बाग्लादेशी गैर हिंदू घुसपैठिए हैं जिसमें से 50 लाख असम में हो सकते हैं।
हिंसाग्रस्त जिलों में असमान्य जनसंख्या
असम में जिन तीन जिलों में यह संघर्ष चल रहा है, अगर उन जिलों की जनगणना विश्लेषण पर एक नजर डाली जाए तो स्थिति अपने आप ही साफ हो जाएगी। सबसे पहले कोकराझाड़ जिले पर नजर डाले तो वर्ष 2001-2011 में यहां की जनसंख्या में 5.19 फीसद का इजाफा हुआ है। 2001 के जनगणना के अनुसार इस जिले में मुस्लिमों की संख्या बढकर लगभग 20 फीसद हो गई है। अगर हम असम मुस्लिम जनसख्या में वृद्धि दर को देखें तो बांग्लादेश से लगे जिलों में यह सबसे अधिक है जिसके पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ मुख्य कारण है। धुबड़ी जिला भी बांग्लादेश के सीमा से सटा हुआ है। 1971 में यहा मुस्लिम जनसंख्या 64.46 फीसद थी जो 1991 में बढकर 70.45 फीसद हो गई। 2001 के जनगणना के अनुसार जनसंख्या बढ़कर लगभग 75 फीसद हो गई। कमोबेश यही हाल 2004 में बने चिराग जिले का भी है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह सब वही जिले है जहां पर असम में हिंसा की वारदातें हुई हैं। चिरांग और कोकराझाड़ हिंसा का सबसे ज्यादा प्रभावित जिला रहा है।
भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक असम में पिछले तीस वर्षो में जनसंख्या में बेइंतहा वृद्धि देखने को मिली है। गौर करने वाली बात यह है कि यह वृद्धि असमान्य है। असम में 1971-1991 में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि का अनुपात 42.89 था, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में इससे 35 फीसद अधिक 77.42 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई है। इसके विपरीत संपूर्ण भारत में दोनों के बीच में अंतर 19.79 फीसद का रहा है। 1991-2001 में हिंदू जनसंख्या बढ़ोतरी दर 14.95 फीसद रही, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में यहा भी 14.35 फीसद अधिक, 29.3 फीसद की दर से बढ़ोतरी हुई थी।
1991 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 28.42 फीसद थी जो 2001 के जनगणना के अनुसार बढ़ कर 30.92 फीसद हो गई। मालूम हो कि बाग्लादेशी घुसपैठिए बड़े पैमाने पर असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, नागालैंड, दिल्ली और जम्मू कश्मीर तक लगातार फैलते जा रहे हैं। जिनके कारण जनसंख्या का असंतुलन बढ़ा है। सबसे गंभीर स्थिति यह है कि बाग्लादेशी घुसपैठियों का इस्तेमाल आतंक की बेल के रूप में किया जा रहा है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआई और कट्टरपंथियों के निर्देश पर बड़े पैमाने पर हुई बाग्लादेशी घुसपैठ का लक्ष्य ग्रेटर बाग्लादेश का निर्माण करना है। इसके साथ ही भारत के अन्य हिस्सों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए भी इनका प्रयोग किया जा रहा है जिसके लिए भारत के सामाजिक ढाचे का नुकसान व आर्थिक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है।
वोटबैंक की राजनीति
असम में स्थानीय लोगों की जगह प्रवासियों का प्रभुत्व स्थापित हो रहा है और स्थानीय जन जाती अपने अधिकारों से वंचित होती नजर आ रही है। यहां जारी विरोध मुस्लमानों से नहीं है लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते जब भी इस ओर कोई आवाज उठाई जाती है इसे साप्रदायिकता के रंग में रंग दिया जाता है। बाग्लादेशी घुसपैठ खुद भारतीय मुसलमानों के लिए ज्यादा नुकसान देह है। इनसे जनसंख्या में जो भारी असंतुलन हो रहा है उससे बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो रही है। इसके अलावा जो सुविधाएं भारत सरकार भारत के अल्पसंख्यकों को देती है उसमें में भी वह धीरे-धीरे हिस्सेदार बनते जा रहे हैं।
इस बात से केंद्र सरकार व राज्य सरकार दोनों ही भलीभांति अवगत हैं, लेकिन वोट बैंक व तुष्टीकरण के राजनीतिक कारणों की वजह से हमेशा से इन पर पर्दा ही डाला जाता है। हाल के असम संघर्ष ने इस साजिश का चेहरा सभी के सामने रख दिया है।
विपक्ष के निशाने सरकार
गौरतलब है कि मानसून सत्र में लोकसभा में लालकृष्ण आडवाणी ने असम हिंसा के मुद्दे पर चर्चा करते हुए राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि प्रदेश सरकार के पास असम के प्रवासियों का कोई रिकॉर्ड ही नहीं हैं। यही नहीं उन्होंने तो इस हिंसा को सांप्रदायिक हिंसा करार देने की बात से भी इन्कार किया था। लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
असम हिंसा कहीं न कहीं हमारी आंतरिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल रही है। इस मामले में राजनीतिक इच्छा शक्ति को बढ़ाना होगा ताकि हम वोट बैंक की राजनीति व धर्म के दायरे से बाहर निकलकर देश की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द कोई फैसला ले पाएं।

http://www.jagran.com/news/national-votebank-politics-spreads-in-assam-9558682.html

हिन्दुओं की सुरक्षा पर जागे जरदारी

इस्लामाबाद।। पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सिंध प्रांत के हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना की खबरों के बाद सांसदों की तीन सदस्यीय समिति गठित की है। समिति प्रांत के अलग-अलग हिस्सों में जाकर हिन्दू समुदाय में फिर से भरोसा बहाल करेगी।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15449732.cms

आतंकी फरमान, कश्मीर में चलेगा शरिया कानून

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। कश्मीर घाटी में पहले पंच-सरपंचों, फिर कश्मीरी पंडितों और पत्रकारों को धमकी के बाद अब आतंकियों ने निजाम-ए-मुस्तफा [शरिया कानून] लागू करने का एलान किया है। पोस्टर के जरिये जारी किए गए इस फरमान में महिलाओं को पर्दे में रहने या फिर तेजाबी हमले झेलने को कहा गया है। यह ताजा धमकी आतंकी संगठन अलकायदा मुजाहिदीन ने दी है।
http://www.jagran.com/news/national-terrorists-fatwa-shariya-law-in-kashmir-9559901.html

असम दंगों पर मुंबई में हिंसा, दो मरे, 14 घायल

असम के दंगों के खिलाफ शनिवार को मुंबई में आयोजित विरोध प्रदर्शन के हिंसक हो जाने से दो लोगों की मौत हो गई और 14 अन्य घायल हो गए। प्रदर्शनकारियों ने मीडिया के वैन समेत वाहनों में आग लगा दिया और पत्थर फेंके। पुलिस ने अराजक भीड़ को तितर बितर करने के लिये हवा में गोली चलाई और लाठीचार्ज किया।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-251178.html

बरेली में फिर क‌र्फ्यू

जागरण संवाददाता, बरेली। जगतपुर में धार्मिक जुलूस पर पथराव और फायरिंग से तीन सिपाहियों समेत डेढ़ दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। पुलिस ने रबर की गोलियां चला कर उपद्रवियों को खदेड़ा। उधर देर शाम कालीबाड़ी में लाठीचार्ज से भड़के लोगों ने पुलिस पर पथराव और फायरिंग की। इसमें एक होमगार्ड सहित कई लोग घायल हो गए। डीएम ने अमन कायम करने के लिए बारादरी, कोतवाली, प्रेमनगर, किला थाना क्षेत्र में क‌र्फ्यू लगा दिया और उपद्रवियों पर नकेल कसने के लिए उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए हैं। शहर के के सभी शिक्षण और वाणिज्यिक संस्थान बंद रखे जाने के भी निर्देश दिए गए हैं। देर रात एसएसपी सतेंद्र वीर सिंह ने दो दारोगा को सस्पेंड कर दिया और इंस्पेक्टर बारादरी को किला भेज दिया।
http://www.jagran.com/news/national-curfew-in-bareilly-again-9561357.html

Saturday, August 11, 2012

प्रताड़ित हिंदुओं का पाकिस्तान से पलायन

दुकानों में  लूटपाट, मकानों पर हमले और महिलाओं को जबरन इस्लाम कबूल करवाने की घटनाओं के बाद तमाम हिंदू पाकिस्तान से पलायन कर रहे हैं। यह जानकारी एक मीडिया रपट में सामने आई है।
http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-story-2-2-250905.html

Friday, August 10, 2012

पाकिस्तान में नाबालिग हिंदू लड़की अगवा

इस्लामाबाद।। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में 14 साल की एक हिंदू लड़की के अगवा होने के बाद से वहां रह रहे अल्पसंख्यक परिवार पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15420372.cms

पाक में हिंदू युवती से दुष्कर्म

इस्लामाबाद। एक हिंदू युवती के जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में यहां एक मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया गया है। युवक ने दावा किया था कि युवती ने इस्लाम धर्म कबूल कर उससे निकाह किया था, जबकि युवती ने इन दावों को खारिज कर दिया।
http://www.jagran.com/news/world-pakistan-hindu-girl-denied-conversion-9547504.html

असम में हिंसा जारी, अब तक 73 की मौत

गुवाहाटी।। निचले असम के जिलों में हिंसा की ताजा घटना होने की खबरें हैं। असम में अब तक जारी जातीय हिंसा में 73 लोगों की मौत हो चुकी है। सरकार पहले ही इन दंगों की सीबीआई से जांच की बात कह चुकी है। मुख्य मंत्री ने बिगड़े हालात के लिए अंदरूनी और बाहरी दोनों तरह की ताकतों को जिम्मेदार बताया है।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15394176.cms

अवैध मस्जिद ढहाना बस में नहीं: दिल्ली पुलिस

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। लाल किले के पास सुभाष पार्क में बने अवैध मस्जिद के ढांचे को ढहाने के मामले में दिल्ली पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कई मजबूरियां बताते हुए पुलिस ने मंगलवार को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद ढहाने के फैसले में संशोधन करने की अपील की है। पुलिस ने क्षेत्र के विधायक शोएब इकबाल द्वारा मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने की मांग की है। अदालत 17 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
http://www.jagran.com/news/national-not-able-to-demolish-illigal-mosque-9547590.html

त्रासदी पर विचित्र खामोशी

इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय खबरों के क्रम में पूर्वोत्तर भारत को सबसे निचला दर्जा हासिल है। जबानी जमाखर्च में तो खूब जोर दिया जाता है कि भारत के इस उपेक्षित भाग को मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए, किंतु क्षेत्र की विलक्षण जटिलता और पहुंच में अपेक्षाकृत कठिनाई से यह सुनिश्चित हो जाता है कि यह तीसरी दुनिया में चौथी दुनिया है। पिछले दिनों असम के कोकराझाड़ और धुबड़ी जिलों में हुई हिंसा में पचास से अधिक लोग मारे गए तथा चार लाख से अधिक घर-द्वार छोड़ने को विवश हुए हैं। इस मुद्दे पर मीडिया का गढ़ा हुआ नया जुमला-मानवता पर संकट टीवी पर चर्चाओं में छा जाना चाहिए था और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों में एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ मच जानी चाहिए थी। ओडिशा के कंधमाल जिले में 2009 का संकट इससे हल्का होते हुए भी कहीं अधिक ध्यान खींच ले गया था। 2002 के गुजरात दंगों के बारे में तो कुछ कहना ही बेकार है, जो अब तक मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है। दुर्भाग्य से ब्रंापुत्र नदी के उत्तरी किनारे के हालात इतने जटिल हैं कि यहां अच्छे और बुरे के बीच भेद करना मुश्किल है। क्या यह हिंदू बोडो और मुस्लिम घुसपैठियों के बीच टकराव है, जो बांग्लादेश से आकर यहां बस गए हैं? या फिर यह मूल निवासी बोडो और बंगाली भाषी अप्रवासियों के बीच संघर्ष है? अहम बात यह है कि सांप्रदायिक दंगे अस्वीकार्य हैं और जातीय संघर्ष इतनी भ?र्त्सना के काबिल नहीं है। धीरे-धीरे टीवी चैनलों पर कुछ सवाल उभरने शुरू हुए। क्या दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई में असम सरकार ने देरी की? छह जुलाई को कोकराझाड़ में दो मुसलमानों की हत्या और 20 जुलाई को बदले की कार्रवाई में चार बोडो कार्यकर्ताओं की हत्या के बाद तरुण गोगोई सरकार ने हालात को काबू करने के त्वरित उपाय क्यों नहीं किए? क्या तरुण गोगोई के इस बयान में सच्चाई है कि सेना ने रक्षामंत्री एके एंटनी की अनुमति मिलने से पहले कार्रवाई करने से इन्कार कर दिया था और इस कारण कार्रवाई में दो दिन की देरी हुई? क्या बोडो ट्राइबल काउंसिल के प्रमुख के इस कथन का कोई आधार है कि अंतरराष्ट्रीय सीमापार से आकर हथियारबंद बांग्लादेशियों ने हिंसा को भड़काया? इनमें से अधिकांश सवाल आधिकारिक जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद भी अनुत्तरित रह जाएंगे। हालांकि यह स्पष्ट है कि इस पूर्वनियोजित हिंसा पर प्रशासन की दोषसिद्धि पर मीडिया और राजनीतिक तबका लीपापोती पर उतर आया है। कोकराझाड़ और धुबड़ी में हुई जातीय-सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ा एक असहज पहलू यह है कि निर्णायक शक्तियां इस त्रासदी पर कुछ नहीं करेंगी, उनके पास पेशकश के लिए कुछ है ही नहीं। असम में हिंसा की जड़ पिछले सौ वर्षो से निरंतर जारी जनसांख्यिकीय बदलाव में निहित है। बांग्लादेश से अप्रवासियों के रेले यहां बसते रहे और 1901 में 32.9 लाख की आबादी वाले असम की जनसंख्या 1971 में 1.46 करोड़ हो गई। इस कालखंड में असम की जनसंख्या 343.7 फीसदी बढ़ गई, जबकि इस दौरान भारत में जनसंख्या वृद्धि मात्र 150 फीसदी हुई। इसमें भी मुस्लिम आबादी बढ़ने की रफ्तार स्थानीय मूल निवासियों की वृद्धि दर से कहीं अधिक रही। पिछले सप्ताह चुनाव आयुक्त एमएस ब्रंा ने कहा कि 2011 की जनगणना से पता चल सकता है कि असम के 27 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बाहुल्य वाले हो गए हैं। बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ ब्रंापुत्र घाटी के असमभाषी हिंदुओं में चर्चा का विषय बन गई है, जबकि अविभाजित गोलपाड़ा जिले के बोडो भाषी अल्पसंख्यकों के लिए तो यह मुद्दा जीवन-मरण का सवाल बन गया है। बोडो भाषी अल्पसंख्यकों की आबादी असम की कुल आबादी का महज पांच प्रतिशत है। उन्हें असमभाषी बहुसंख्यक आबादी से सांस्कृतिक चुनौती मिल रही है, जबकि बांग्लादेशी मुसलमानों से उन्हें अपने अस्तित्व पर संकट नजर आ रहा है। नब्बे के दशक में हिंसक बोडो आंदोलन इस दोहरी चुनौती से निपटने का प्रयास था। इस आंदोलन के कारण ही 1993 में बोडो टेरिटोरियल काउंसिल की अ?र्द्ध स्वायत्ताता स्थापित हुई। हालांकि इस हिंसक आंदोलन से हासिल अधिकांश लाभ मुस्लिम समुदाय के फैलाव से अब हाथ से फिसल गए हैं। मौलाना बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा आल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन और असमिया परिषद के उदय के कारण बोडो-मुस्लिम टकराव शुरू हो गया। एआइयूडीएफ की इस मांग से तनाव और बढ़ गया कि बोडो टेरिटोरियल काउंसिल द्वारा शासित अधिकांश भागों में अब बोडो का बहुमत नहीं रह जाने के कारण इसे भंग कर दिया जाना चाहिए। पिछले सप्ताह तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा था कि अब असम में विभिन्न समुदायों के लोग रह रहे हैं। इन सबको शांति के साथ रहना सीखना होगा। उन्होंने सीमा पर बाड़ लगाने अथवा अवैध घुसपैठ के खिलाफ बनाए गए लचर कानून में संशोधन पर एक शब्द नहीं बोला। दिसपुर में बोडो समर्थन और पूरे देश में मुस्लिम समर्थन को लेकर दुविधाग्रस्त कांग्रेस के पास बोडो गुत्थी सुलझाने के लिए अधिक उपाय नहीं हैं। अतीत में भारत के उदारवादी बुद्धिजीवी तथाकथित सांप्रदायिक सवाल पर बहुत मुखर थे, खासतौर पर अल्पसंख्यकों की प्रताड़ना पर। असम में हिंसक घटनाओं पर इस तबके ने आश्चर्यचकित करने वाली चुप्पी ओढ़ रखी है। इसके कारण स्पष्ट हैं। बहुसंख्यकों की कथित बर्बरता तथा अल्पसंख्यकों की कमजोरी का चिरपरिचित फार्मूला धुबड़ी और कोकराझाड़ में फिट नहीं बैठता। असम में बोडो जाति चारो तरफ से घिर गई है। यहां बोडो एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की सांप्रदायिकता का शिकार है, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूती का लाभ क्षेत्रीय स्तर पर उठा रहा है। 2004 में, जब 2001 की जनगणना में असम में जनसांख्यिकीय बदलाव दृष्टिगोचर हुए तो खुफिया विभाग ने अपना सिर रेत में धंसा लिया और सुनिश्चित किया कि इस मुद्दे पर कोई सार्थक चर्चा न हो। एक बार फिर असम में यही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। 1947 में मुस्लिम डरा-सहमा समुदाय था। 2012 में भारतीय पंथनिरपेक्षता ने अपनी जड़ें गहरी कर ली हैं और उसने पंथिक अल्पसंख्यकों की गरिमा व राजनीतिक सशक्तीकरण सुनिश्चित किया है। हालांकि इससे एक समस्या उठती नजर आ रही है कि अल्पसंख्यकों का सशक्तीकरण कहीं अन्य लोगों के लिए अन्यायपूर्ण न हो जाए। असम के बोडो अल्पसंख्यकों के लिए पंथनिरपेक्ष राजनीति में उनकी पहचान और अस्तित्व का संकट निहित है। [लेखक स्वप्न दासगुप्ता, वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-opinion1-9542584.html

असम में फिर भड़की हिंसा, पाच की मौत

कोकराझाड़ [जागरण संवाददाता]। असम में एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। कोकराझाड़ में करीब दस दिन की शांति के बाद बीती रात फिर से माहौल गर्म हो गया। कोकराझाड़ में दो और चिरांग जिले में तीन लोगों की मारे जाने व छह घरों को जला देने की खबर है। मृतकों को गोली मोरी गई थी। इस सांप्रदायिक हिंसा में अब तक कुल 61 लोगों की मौत हो चुकी है। कोकराझाड़ से एक व्यक्ति लापता भी बताया जा रहा है।
http://www.jagran.com/news/national-assam-5-killed-in-fresh-violence-in-kokrajhar-9541017.html

हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए जयललिता ने दी 1.25 करोड़ रुपए की सब्सिडी

चेन्नै।। मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए मानसरोवर और मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए हिंदू तीर्थ यात्रियों को सब्सिडी देने के लिए 1.25 करोड़ रुपए आवंटित किए।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15349922.cms

जुडिशरी ने सिमी पर बैन जारी रखा

नई दिल्ली।। एक विशेष न्यायाधिकरण ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर केन्द्र के बैन को बरकरार रखा। सिमी के पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा और इंडियन मुहाहिदीन के साथ तार जुडे़ हैं
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15337671.cms

पुणे में चार विस्फोट, गृहमंत्री का होना था दौरा

पुणे में बुधवार की शाम चार जगहों पर विस्फोट हुए। इस सीरियल ब्लास्ट से पूरे शहर में दहशत फैल गई। ये विस्फोट रात आठ बजे के करीब हुए। माना जा रहा है कि इन विस्फोटों में आतंकियों के हाथ हैं।
http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-story-39-39-247461.html

Saturday, August 4, 2012

करबला में दिखी टेंशन, फोर्स तैनात

भुजरियां विसर्जित किए जाने वाले विवादित स्थल करबला को लेकर गुरुवार को पुलिस प्रशासन टेंशन में दिखा। सुबह से ही यहां बड़ी संख्या में पुलिस तैनात रही। किसी भी व्यक्ति को अंदर नहीं जाने दिया गया। इसके बाद भी एक युवक यहां भुजरियां विसर्जित करने पहुंचा तो उसे पुलिस ने दबोच लिया।
http://www.jagran.com/uttar-pradesh/firozabad-9531700.html

कश्मीरी पंडितों को वादी छोड़ने का फरमान

श्रीनगर [जागरण ब्यूरो]। उमर अब्दुल्ला सरकार पंडितों की वापसी लायक माहौल बनने के लाख दावे करे, लेकिन आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने कश्मीरी पंडितों को सात दिन के अंदर वादी छोड़ने का फरमान सुनाया है।

Wednesday, August 1, 2012

अफगानिस्तान में घटी अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों की आबादी : अमेरिका

वाशिंगटन: अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं और सिखों की आबादी घट रही है और इन समुदायों को अपने मृत लोगों का दाह संस्कार करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित एक अमेरिकी रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है।
http://khabar.ndtv.com/news/show/minority-hindus-and-sikhs-are-decreasing-in-afghanistan-us-24560?cp


पाक में हर महीने 25 हिंदू लड़कियों का अपहरण

वाशिंगटन। पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और खासतौर पर हिंदुओं के साथ होने वाले भेदभाव पर अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में गहरी चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं को अपहरण और जबरन धर्म-परिवर्तन का डर लगा रहता है। इसी प्रकार से बाग्लादेश में रहने वाले हिंदू और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
http://www.jagran.com/news/world-every-months-25-hindu-girls-kidnepped-in-pak-9524127.html

'मोदी पर चिल्लाने वाले असम पर चुप क्यों'

गुजरात दंगों के लिए आए दिन नरेंद्र मोदी को निशाना बनाए जाने से खफा बीजेपी ने कहा है कि जो लोग दस साल पुराने मामले को लेकर मोदी पर हमला करते रहते हैं, वे असम में हुई हिंसा पर चुप क्यों हैं?
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15282343.cms

आग में झुलसता असम

पिछले दिनों की असम में हिंसक घटनाएं और आगजनी तथाकथित सेक्युलर दलों की कुत्सित राजनीति का परिणाम है। असम की वर्तमान हिंसा जातीय न होकर सीमा पार से आए मुस्लिम घुसपैठियों के हाथों स्थानीय जनजाति के लोगों की अपनी पहचान, सम्मान और संपत्ति की रक्षा का संघर्ष है। विगत 19 जुलाई से भड़की हिंसा में अब तक जहां 58 लोग अकाल मृत्यु के शिकार हुए वहीं करीब तीन लाख लोग अपने घरों से उजड़कर राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हैं। इन शिविरों में खाने-पीने, सोने और दवा की व्यवस्था तक नहीं है। हिंसा के खौफ से गांव के गांव खाली हो गए। दंगाइयों ने इन गांवों के वीरान घरों और खेतों में लगी फसल को आग के हवाले कर दिया। मीडिया की खबरों के अनुसार सरकार को अंदेशा है कि दंगाइयों का अगला निशाना अब कोकराझाड़ के पड़ोसी जिले बन सकते हैं, इसलिए वह उन्हें खाली कराने पर विचार कर रही है। इस खबर में एक सेवानिवृत्त स्टेशन मास्टर बासुमतारी का उल्लेख है, जिसने बताया कि उन्होंने स्थानीय विधायक प्रदीप से रक्षा की गुहार लगाई तो उन्होंने पर्याप्त पुलिस बल नहीं होने की लाचारी दिखाई। गांव वालों के अनुसार टकराव की स्थिति तब बनी जब घुसपैठियों ने कोकराझाड़ के बेडलंगमारी के वनक्षेत्र में अतिक्त्रमण कर वहां ईदगाह होने का साइनबोर्ड लगा दिया। वन विभाग के अधिकारियों ने बोडो लिबरेशन टाइगर्स के साथ मिलकर यह अतिक्त्रमण हटा दिया। इसके विरोध में ऑल बोडोलैंड माइनारिटी स्टूडेंट यूनियन ने कोकराझाड़ जिले में बंद का आ ान किया था। 6 जुलाई को अंथिपारा में अज्ञात हमलावरों ने एबीएमएसयू के दो सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी। 19 जुलाई को एमबीएसयू के पूर्व प्रमुख और उनके सहयोगी की हत्या हो गई। अगले दिन घुसपैठियों की भीड़ ने बीएलटी के चार सदस्यों की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी। इसके बाद ही बासुमतारी और अन्य गांव वाले हिंसा की आशंका में राहत शिविरों में चले गए। दूसरे दिन बांग्लादेशियों ने उनके घर और खेत जला दिए। कोकराझाड़, चिरांग, बंगाईगांव, धुबरी और ग्वालपाड़ा से स्थानीय बोडो आदिवासियों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाने वाले अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं, जिनके कारण न केवल असम के जनसांख्यिक स्वरूप में तेजी से बदलाव आया है, बल्कि देश के कई अन्य भागों में भी बांग्लादेशी अवैध घुसपैठिए कानून एवं व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं। हुजी जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां इन्हीं घुसपैठियों की मदद से चलने की खुफिया जानकारी होने के बावजूद कुछ सेक्युलर दल बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की थी कि ये अवैध घुसपैठिए राज्य में किंगमेकर बन गए हैं। असम को पाकिस्तान का अंग बनाने का सपना फखरुद्दीन अली अहमद ने देखा था। जनसांख्यिक स्वरूप में बदलाव लाने के लिए असम में पूर्वी बंगाली मुसलमानों की घुसपैठ 1937 से शुरू हुई। पश्चिम बंगाल से चलते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में अब इन अवैध घुसपैठियों के कारण एक स्पष्ट भूमि विकसित हो गई है, जो मुस्लिम बहुल है। 1901 से 2001 के बीच असम में मुसलमानों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढ़कर 30.92 प्रतिशत हो गया। इस दशक में असम के अनेक इलाकों में मुसलमानों की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह तेजी से बढ़ रही है। बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए वर्ष 1979 में असम में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। इसी कारण 1983 के चुनावों का बहिष्कार भी किया गया, क्योंकि बिना किसी पहचान के लाखों बांग्लादेशियों का नाम मतदाता सूची में दर्ज कर लिया गया था। चुनाव बहिष्कार के कारण केवल 10 प्रतिशत मतदान ही दर्ज हो सका। विडंबना यह है कि शुचिता की नसीहत देने वाली कांग्रेस पार्टी ने इसे ही पूर्ण जनादेश माना और राज्य में चुनी हुई सरकार का गठन कर लिया गया। यह अनुमान करना कठिन नहीं कि 10 प्रतिशत मतदान करने वाले इन्हीं अवैध घुसपैठिओं के संरक्षण के लिए कांग्रेस सरकार ने जो कानून बनाया वह असम के बहुलतावादी स्वरूप के लिए अब नासूर बन चुका है। 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस द्वारा 1983 में लागू किए गए अवैध आव्रजन अधिनियम को निरस्त कर अवैध बांग्लादेशियों को राज्य से निकाल बाहर करने का आदेश पारित किया था, किंतु कांग्रेसी सरकार इस कानून को लागू रखने पर आमादा है। इस अधिनियम में अवैध घुसपैठिया उसे माना गया जो 25 दिसंबर, 1971 (बांग्लादेश के सृजन की तिथि) को या उसके बाद भारत आया हो। इससे स्वत: उन लाखों मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता मिल गई जो पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। तब से सेक्युलरवाद की आड़ में अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ जारी है और उन्हें देश से बाहर निकालने की राष्ट्रवादी मांग को फौरन सांप्रदायिक रंग देने की कुत्सित राजनीति भी अपने चरम पर है। बोडो आदिवासियों के साथ हिंसा एक सुनियोजित साजिश है। जिस तरह कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को हिंसा के बल पर खदेड़ भगाया गया, हिंदू बोडो आदिवासियों के साथ भी पिछले कुछ सालों से इस्लामी जिहादी यही प्रयोग कर रहे हैं। 2008 में भी पांच सौ से अधिक बोडो आदिवासियों के घर जलाए गए थे, करीब सौ लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए थे। तब असम के उदलगिरी जिले के सोनारीपाड़ा और बाखलपुरा गांवों में बोडो आदिवासियों के घरों को जलाने के बाद बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा पाकिस्तानी झंडे लहराए गए थे। इससे पूर्व कोकराझाड़ जिले के भंडारचारा गांव में अलगाववादियों ने स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगे की जगह काला झंडा लहराने की कोशिश की थी। सेक्युलर मीडिया और राजनीतिक दल वर्तमान हिंसा को जातीय संघर्ष के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कटु सत्य यह है कि यह हिंसा जिहादी इस्लाम से प्रेरित है, जिसमें गैर मुस्लिमों के लिए कोई स्थान नहीं है। बोडो आदिवासी पहले मेघालय की सीमा से सटे ग्वालपाड़ा और कामरूप जिले तक फैले थे। अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की भारी बसावट के कारण वे तेजी से सिमटते गए। अब तो संकट उनकी पहचान और अस्तित्व बचाए रखने का है। दूसरी ओर इस्लामी चरमपंथी इस बात पर तुले हैं कि बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के इलाके के जिन गांवों में बोडो समुदाय की आबादी आधी से कम है उन्हें बीटीसी से बाहर किया जाए। सच यह है कि असम के जिन क्षेत्रों में मुस्लिम धर्मावलंबी बहुमत प्राप्त कर चुके हैं वहां से इस्लामी कट्टरपंथी अब गैर मुस्लिमों को पलायन के लिए विवश कर रहे हैं। [लेखक: बलबीर पुंज, राज्यसभा सदस्य हैं]
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-9523930.html

असम में हिंसा के लिए आडवाणी ने अवैध प्रवास को दोषी बताया

गुवाहाटी।। निचले असम में टकराव के लिए बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन पर दोष मढ़ते हुए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि घुसपैठियों की समस्या को लेकर सरकार के उदासीन रवैये की वजह से मूल निवासी समुदाय खुद को खतरे में महसूस कर रहे हैं।
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/15291774.cms

सुभाष पार्क में अवैध मस्जिद गिरवाए एएसआइ: हाई को

नई दिल्ली [जासं]। दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग [एएसआइ] को लाल किले के पास सुभाष पार्क में अवैध रूप से बनाई गई मस्जिद को गिरवाने की अनुमति दे दी है। कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस संजय किशन कौल की खंडपीठ ने पुलिस को निर्देश दिया कि अदालत के आदेश के बावजूद अवैध मस्जिद का निर्माण करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करे।
http://www.jagran.com/news/national-subhash-park-caseillegal-construction-remove-order-9520655.html

बलूचिस्तान में तीन हिंदू व्यवसायियों का अपहरण

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में एक रियलिटी शो के दौरान हिंदू लड़के को इस्लाम धर्म कबूलते हुए दिखाया गया था। अब दक्षिण पश्चिम पाकिस्तान के हिंसा प्रभावित बलूचिस्तान प्रांत से तीन हिंदू व्यापारियों को अपहरण कर लिया गया है। हिंदुओं के खिलाफ अपराध का यह ताजा मामला है।
http://www.jagran.com/news/world-businessmen-kidnepped-in-pak-9517708.html

असम सरकार को जिम्मेदार मान रहीं सुरक्षा एजेंसियां

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भले ही कोकराझाड़ में ताजा जातीय दंगों के लिए केंद्रीय बलों के समय पर नहीं पहुंचने को जिम्मेदार ठहरा रहे हों, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां इसके लिए सीधे तौर पर राज्य सरकार को जिम्मेदार मान रही हैं।
http://www.jagran.com/news/national-assam-government-responsible-for-riots-9519104.html