Thursday, August 7, 2008

सिमी पर प्रतिबंध जारी रहेगा

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया [सिमी] पर फिलहाल रोक जारी रहेगी। बुधवार को सुप्रीमकोर्ट ने सिमी से प्रतिबंध हटाने के अनलाफुल एक्टीविटीज [प्रिवेंशन] ट्रिब्युनल के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।

मंगलवार को ट्रिब्युनल ने सिमी पर प्रतिबंध लगाने वाली सात फरवरी की अधिसूचना रद कर दी थी केंद्र सरकार ने ट्रिब्युनल के इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।

मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम रोक आदेश पारित किया। पीठ ने सिमी को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में जवाब देने को कहा है। तब तक कोर्ट का रोक आदेश जारी रहेगा। इसके पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालीसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने ट्रिब्यूनल के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि ट्रिब्युनल ने अनलाफुल एक्टीविटीज [प्रिवेंशन] एक्ट के उपबंधों के खिलाफ जाकर आदेश दिया है। उसने सरकार द्वारा पेश दस्तावेज व 77 अधिकारियों की गवाही पर विचार नहीं किया। विभिन्न राज्यों के डीजीपी की गवाही हुई, इंटेलिजेंस रिपोर्ट थी, लेकिन ट्रिब्युनल ने किसी पर विचार नहीं किया। यहां तक कि 267 पेज के फैसले में से 251 पेज तक कोई निष्कर्ष नही है। कोई निश्चित राय व्यक्त नहीं की गई है। अचानक आदेश के अंत में आकर ट्रिब्युनल ने कह दिया कि प्रतिबंध जारी रखने का कोई पर्याप्त कारण नहीं बताया गया है और अधिसूचना रद कर दी।

सुब्रमण्यम ने कहा कि ट्रिब्युनल के आदेश के गंभीर परिणाम होंगे, अत: कोर्ट याचिका पर सुनवाई करने तक ट्रिब्युनल के प्रतिबंध हटाने के आदेश पर रोक लगा दे। याचिका में कहा गया है कि ट्रिब्युनल ने अधिसूचना निरस्त करते समय केंद्र सरकार की ओर से दाखिल किए गए बैकग्राउंड नोट पर ध्यान नहीं दिया। ट्रिब्युनल को यह बताया गया था कि प्रतिबंध की अधिसूचना जारी करने से पहले कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिली थी और इसके बाद गृह मंत्रालय ने विधि मंत्रालय के साथ उच्च स्तर पर विचार विमर्श के बाद प्रतिबंध का आदेश पारित किया था। ट्रिब्युनल के सामने सील कवर में कैबिनेट नोट पेश किया गया था। उस पर विचार किया जाना चाहिए था। ट्रिब्युनल का यह मानना गलत है कि प्रतिबंध जारी करने के संबंध में जारी बैकग्राउंड नोट बाद में अधिसूचना की खामी पूरी करने के लिए जारी किया गया था।

सिमी पर 27 सितंबर 2001 को प्रतिबंध जारी किया गया था, जिसे सही ठहराया गया था। उसके बाद 26 सितंबर 2006 को प्रतिबंध की अधिसूचना जारी हुई और इसे भी सही ठहराया गया। अधिसूचना रद करने से पहले ट्रिब्युनल ने यह ध्यान नहीं दिया कि केंद्र सरकार की राय में सिमी कार्यकर्ता अभी भी सांप्रदायिक व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध को जायज ठहराने और ट्रिब्युनल का आदेश रद किए जाने के लिए और भी कई तर्क दिए हैं। (दैनिक जागरण, ७ august २००८)

सम्बंधित : सिमी के तीन और संदिग्ध गिरफ्तार

राजस्थान में सिमी की गुपचुप दस्तक

सिमी का नया नाम ‘सिम’

म.प्र.- सिमी प्रशिक्षण कैंप का पता चला


जम्मू: सेना की फायरिंग में एक की मौत

जम्मू। अमरनाथ भूमि स्थानांतरण मुद्दे पर जम्मू क्षेत्र में अशांति बुधवार को और बढ़ गई तथा प्रदर्शनकारियों द्वार सेना के काफिले को निशाना बनाने के कारण सुरक्षा बलों की गोलीबारी में एक व्यक्ति मारा गया जबकि तहसीलदार के कार्यालय को फूंक दिया गया।

जम्मू में भूमि स्थानांतरण मुद्दे पर जारी विवाद के बीच अमरनाथ श्राइन बोर्ड के आठ सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया ताकि बोर्ड को पुनगर्ठित कर गतिरोध का समाधान निकालने में मदद की जा सके। प्रदर्शनकारियों ने जम्मू क्षेत्र की विभिन्न जगहों पर र्फ्यू का उल्लंघन किया जबकि कई प्रदर्शनकारी तवी नदी को पार कर जम्मू के उन संवेदनशील इलाकों में पहुंच गए जहां सेना को तैनात किया गया है।

जम्मू और कठुआ जिलों में हिंसा की ताजा घटनाओं में 18 लोग घायल हो गए। मौजूदा आंदोलन का नेतृत्व कर रही अमरनाथ संघर्ष समिति ने अपने रुख से हटने से इनकार करते हुए हुए कहा कि श्राइन बोर्ड को करीब 100 एकड़ जमीन का स्थानांतरण रोकने के सरकार के आदेश वापस लिए जाने तक वह किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है।

एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि जम्मू पठानकोट राजमार्ग पर कठुआ कस्बे से करीब दस किलोमीटर दूर पाली मोड़ पर प्रदर्शनकारियों ने घाटी के लिए जा रहे सामान की आपूर्ति की सुरक्षा कर रहे सेना के काफिले को रोका। प्रदर्शनकारियों ने वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया जिसके बाद सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी। सेना की गोलियों से एक व्यक्ति मारा गया और कई अन्य घायल हो गए।

सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में 12 लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है। प्रदर्शनकारियों ने आज जम्मू क्षेत्र के खोउर, बिस्नाह, गंज्ञाल, मुथी और उधमपुर में र्फ्यू का उल्लंघन किया और अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन वापस दिलवाने की मांग की। उधमपुर नगर में चार सौ आंदोलनकारियों ने र्फ्यू में दी गई तीन घंटे की ढील के दौरान रैली निकाली। प्रदर्शनकारियों ने कल रात नगर में मशाल जुलूस निकाला था।

सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में दर्जनों लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है।(दैनिक जागरण, ७ अगस्त २००८)

Wednesday, August 6, 2008

जम्मू: युवक आत्मघाती दस्ते बनाएंगे

जम्मू। दक्षिणी कश्मीर में ‘श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड’ को जमीन वापस किए जाने के मुद्दे पर प्रदर्शनकारी युवकों की हत्या का बदला लेने के लिए सांबा के करीब 24 युवकों ने आत्मघाती दस्तों के गठन का निर्णय लिया है।

पुलिस फायरिंग में अपने दो साथियों के मारे पर गुस्से का इजहार करते हुए करीब 24 स्थानीय युवकों ने तिरंगा झंडा थामे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बरता का बदला लेने का संकल्प व्यक्त किया।

सांबा में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी में दो स्थानीय युवक संजीव सिंह तथा सन्नी पाधा मारे गए थे तथा करीब चौबीस लोग घायल हो गए थे। (IBN7, 6 August 2008)

‘पूर्वोत्तर में मस्जिदें-मदरसे आतंकवादी अड्डे’

तेजपुर। ‘जनरल ऑफिसर-इन-कमांडिंग फोर्थ कोर’ के लेफ्टिनेंट जनरल बीएस. जायसवाल ने आज दावा किया कि असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में मस्जिदें और मदरसे कट्टरपंथी एवं आतंकवादी संगठनों के अड्डे बन गए हैं। लेफ्टिनेंट जनरल जायसवाल ने यहां पत्रकारों से कहा कि असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में कट्टरपंथी और आतंकवादी मजिस्दों एवं मदरसों की सुरक्षित शरणस्थली से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। उन्होंने पश्चिमी असम से ‘मुस्लिम यूनाइटेड लिबरेशन टाइगर्स ऑफ असम’ की गतिविधियों के साक्ष्य मिलने के भी दावे किए। हालांकि बंग्लादेशी घुसपैठ को उन्होंने राजनीतिक मुद्दा बताते हुए कहा कि सेना केवल सुरक्षा कायम रखने के लिए जिम्मेदार है। उधर, अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल और पूर्व सेना प्रमुख जेजे. सिंह ने तेजपुर में आज भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मौजूदा स्थिति की समीक्षा की। जनरल सिंह ने कहा कि सीमा के समीप कहीं कोई तनाव या उकसावे की स्थिति नहीं है। उन्होंने कहा कि सेना किसी भी घुसपैठ से निपटने में सक्षम हैं और संवेदनशील स्थानों पर कड़ी सतर्कता बरती जा रही है। (IBN7, 5 August 2008)

आंध्र प्रदेश: मुसलमानों को आरक्षण मिला

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आंध्र प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण देने के सरकार की आज सशर्त अनुमति दे दी।
मुख्य न्यायधीश के. जी. बालकृष्णन, न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति जे. एम. पांचाल की खण्डपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि आंध्र प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों में मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण की सुविधा तब तक दी जा सकती है जब तक इस मामले पर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का अंतिम फैसला नहीं आ जाता। आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ इस मामले पर गौर कर रही है।
इस साल मई में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को काउंसिलिंग जारी रखने की अनुमति दी थी लेकिन कॉलेजों में प्रवेश में धर्म अधारित आरक्षण पर रोक लगायी थी।
याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि इस तरह का आरक्षण संविधान के खिलाफ है इसलिए राज्य सरकार का मुसलमानों को आरक्षण देने का फैसला असंवैधानिक और गैरकानूनी है।सरकारी वकील ने अपने जबाव में कहा कि सरकार के आदेश में कुछ भी गैरकानूनी नहीं है और अगर प्रवेश प्रक्रिया को अनुमति नहीं दी गयी तो समूची प्रवेश प्रक्रिया बाधित होने की आशंका है। क्योंकि काउंसिलिंग का काम पूरा हो चुका है।
इस पर उच्चतम न्यायालय ने सशर्त प्रवेश की अनुमति देते हुए कहा कि इन प्रवेशों की वैधता उच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ के निर्णय पर निर्भर करेगी। (IBN७, 05 अगस्त २००८)

सिमी पर से प्रतिबंध हटा

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले विशेष न्यायाधिकरण ने मंगलवार को स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया [सिमी] पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। केंद्र सरकार न्यायाधिकरण के इस फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती देगा। भाजपा ने प्रतिबंध हटने के लिए केंद्र सरकार की अक्षमता को दोषी ठहराया है।

एक शीर्ष कानून अधिकारी के मुताबिक न्यायाधिकरण की अध्यक्षता कर रहीं न्यायाधीश गीता मित्तल ने कहा कि सरकार ने सिमी के खिलाफ ऐसे कोई नए साक्ष्य पेश नहीं किए हैं जिससे प्रतिबंध बढ़ाने को न्यायोचित ठहराया जा सके। सरकार ने संगठन की गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्तता दिखाने के लिए सिर्फ वर्ष 2006 में मालेगांव में हुए विस्फोटों का सबूत दिया जो इस पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना जारी करने के लिए पर्याप्त नहीं था।

गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि प्रतिबंध हटाने के न्यायाधिकरण के फैसले को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले फैसले का गहन अध्ययन किया जाएगा और इसके बाद प्राथमिकता के आधार पर आगे की प्रक्रिया तय की जाएगी।

भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि संप्रग सिमी पर लगे प्रतिबंध को जारी रखने में अक्षम रहा है। इससे सरकार का वास्तविक चेहरा और आतंकवाद के प्रति इसका नरम रवैया दिखता है। उन्होंने कहा कि भाजपा इस फैसले का विरोध करेगी क्योंकि वह इस मुद्दे को देश की सुरक्षा और नागरिकों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मानती है। उन्होंने कहा कि सिमी आतंकवाद है और आतंकवाद सिमी। इस सह संबंध का सबको पता है। सरकार हकीकत से मुंह मोड़ रही है और आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपना कर नागरिक समाज को खतरे में डाल रही है। (दैनिक जागरण, ६ अगस्त २००८)

सिमी के तीन और संदिग्ध गिरफ्तार

बेलगाम। कर्नाटक के बेलगाम में धरपकड़ अभियान के तहत पुलिस ने मंगलवार को सिमी के तीन और संदिग्ध कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया।

पुलिस के अनुसार इसके साथ ही गिरफ्तार संदिग्ध आतंकवादियों की संख्या बढ़कर 11 हो गई। हाल ही में सिमी के प्रमुख सदस्य मुनरोज की मध्य प्रदेश के इंदौर में गिरफ्तारी के बाद मुंबई पुलिस ने इकबाल जकाती को गिरफ्तार किया।(दैनिक जागरण, ६ अगस्त २००८)

जम्मू को हल्के में लेना हलक में फंसा

नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाले हालात में फंस गई है। पहले राज्यपाल व खुफिया रिपोर्टो पर भरोसा कर जम्मू के आंदोलन को हल्के में लेना अब उसके हलक में अटक गया है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुला तो ली है, लेकिन मंगलवार तक सरकार के पास कोई पुख्ता फार्मूला नहीं था। जम्मू-कश्मीर से लौटकर गृह सचिव मधुकर गुप्ता और रक्षा सचिव विजय सिंह ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल के साथ प्रधानमंत्री को हालात का पूरा ब्यौरा दिया।

सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बीच बढ़ती जा रही खाई से तो केंद्र सरकार चिंतित है ही साथ में उसे आशंका है कि इन हालात का फायदा उठाकर आईएसआई अपने मंसूबों को अंजाम न दे जाए। सीमा सुरक्षा बल के पुलिस महानिदेशक एके मित्रा ने अभी सोमवार को ही आशंका जताई थी कि आईएसआई भारतीय सीमा में 800 लोगों की घुसपैठ कराने की कोशिश कर रही है। वैसे भी यही समय है जबकि घुसपैठ में बढ़ोत्तरी होती है।

जम्मू में भड़के आंदोलन पर राज्यपाल एनएन वोहरा, उनके प्रशासन और राज्य में मौजूद खुफिया तंत्र की रिपोर्टो से केंद्र का भरोसा अब पूरी तरह उठ चुका है। यही कारण है कि सर्वदलीय बैठक में समस्या के निदान पर चर्चा से पहले प्रधानमंत्री बिल्कुल सटीक हालात से वाकिफ रहना चाहते हैं। इसके मद्देनजर ही उन्होंने दो शीर्ष अधिकारियों गृह सचिव और रक्षा सचिव को जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने भेजा।

मंगलवार को दोनों अधिकारियों ने लौटकर गृह मंत्री की मौजूदगी में प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। दरअसल, राज्यपाल वोहरा व उनके प्रशासन ने जो रिपोर्ट दी थी कि जम्मू में आंदोलन राजनीतिक है और ज्यादा नहीं खिंच सकेगा।

अब जम्मू और उसके बाहर तो हालात न सिर्फ उग्र हो गए हैं, बल्कि आंच पंजाब के कुछ हिस्सों में भी पहुंच रही है। केंद्र की चिंता है कि जम्मू में रास्ता बंद होने के साथ-साथ अगर पंजाब से भी उन्हें सहयोग मिला तो हालात और खराब होंगे। उधर कश्मीर क्षेत्र में भी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है। इन पूरे हालात में सेना से लेकर अ‌र्द्धसैनिक बलों का ध्यान आंदोलन से निपटने में लगा है। केंद्र को चिंता है कि इन हालात का फायदा उठाकर पाकिस्तान घुसपैठ बढ़ा सकता है जो और भी ज्यादा घातक होगी। सरकार की चिंता यह भी है कि घाटी में हालात सामान्य करने की उसकी सालों की कमाई एक महीने के आंदोलन में कहीं वह गंवा न बैठे।

उधर जम्मू में तात्कालिक तौर पर शांति के लिए राज्यपाल एनएन वोहरा को हटाना एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है, लेकिन केंद्र दूसरी चिंता में घुला जा रहा है। घाटी में अलगाववादियों के बीच वोहरा की अच्छी छवि है और वह उन्हें पसंद भी करते हैं। सूत्रों के अनुसार पूर्व राज्यपाल एसके सिन्हा के बाद वोहरा को राज्यपाल बनाने की पैरवी तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और पीडीपी प्रमुख मुफ्ती मुहम्मद सईद समेत कश्मीर के कई अलगाववादी नेताओं ने भी की थी। ऐसे में केंद्र को चिंता है कि जम्मू को शांत करने के चक्कर में कहीं घाटी में गड़बड़ न हो जाए। हालांकि, केंद्र भी मान रहा है कि जम्मू में हालात काबू करने का सबसे आसान तरीका वोहरा की विदाई ही है।(दैनिक जागरण , ६ अगस्त २००८)

जम्मू में केंद्र की तटस्थता

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड जमीन मामले के प्रति केंद्र की उदासीनता को घातक मान रहे हैं निशिकान्त ठाकुर

श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अस्थायी निर्माण के लिए भूमि के आवंटन और फिर अलगाववादी एवं सांप्रदायिक ताकतों के दबाव में उसके निरस्तीकरण के मसले पर जम्मू में अब हालात विस्फोटक हो चुके है। आने वाले दिनों में क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। ध्यान रहे, इसी मसले पर इंदौर में उग्र प्रदर्शन हो चुके है। यहां तक कि क‌र्फ्यू लगाने की नौबत भी वहां आ चुकी है। देश के दूसरे शहरों में भी इस पर शांतिपूर्ण तरीके से असंतोष जताया जा चुका है। यह अलग बात है कि शांतिपूर्ण ढंग से विरोध जताने का अब किसी सरकार के लिए कोई मतलब नहीं रह गया है। शायद यही वजह है कि जम्मू में इस मामले ने इतना तूल पकड़ा और आखिरकार यह भयावह रूप लिया। हालांकि शुरुआती दौर में वहां भी जनता शांतिपूर्ण ढंग से ही विरोध प्रदर्शन कर रही थी, पर जब पुलिस ने बल प्रयोग किया और श्री अमरनाथ संघर्ष समिति के शहीद कार्यकर्ता कुलदीप वर्मा के शव के साथ बदसलूकी की तो जनता इसे बर्दाश्त नहीं कर सकी। अब अगर लोग यह सवाल उठा रहे है कि क्या बार-बार और हर तरह से अपमानित किए जाना ही जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं की नियति है, तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता है।

एक मामूली भूखंड, जो साल में नौ-दस महीने तो बर्फ से ढके रहने के कारण किसी काम लायक नहीं रहता, को लेकर शुरू हुआ यह मसला अब जम्मू के लोगों की अस्मिता का सवाल बन चुका है। इस पूरे मामले और जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक-सामाजिक इतिहास पर नजर डालें तो जाहिर हो जाता है कि श्राइन बोर्ड को भूमि आवंटन व निरस्तीकरण तथा कुलदीप के शव के अपमान के मसले ने इसमें सिर्फ घी या पेट्रोल का काम किया है। असल आग बहुत पहले से सुलगती आ रही है। तबसे जबसे जम्मू संभाग ने यह महसूस किया कि राजनीतिक तौर पर उसके साथ लगातार पक्षपात होता चला आ रहा है। यह पक्षपात उसके साथ केवल इसलिए हो रहा है कि जम्मू संभाग हिंदू बहुल है और वहां की सरकार को वहां हिंदुओं का होना ही खटक रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि दो राजनीतिक दलों द्वारा वहां के संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द बाकायदा अभियान चला कर हटवाया गया। राज्य में शरीयत कानून लागू करने संबंधी विधेयक को मंजूरी भी इन्हीं राजनीतिक दलों के कारण मिली थी। हद तो यह है कि ये दोनों दल इसके बाद भी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते है।

आज जम्मू की जनता बार-बार सवाल उठा रही है कि श्राइन बोर्ड को अस्थायी तौर पर भूमि आवंटन को लेकर कश्मीर में अलगाववादियों ने तोड़फोड़ से लेकर आगजनी तक सब कुछ कर डाला और तब भी वहां क‌र्फ्यू नहीं लगाया गया। जबकि यहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन को उग्र होने के लिए मजबूर पुलिस ने किया और क‌र्फ्यू भी लगा दिया। इंसाफ का यह कौन सा तरीका है? क्या इससे अलग-अलग संभागों के बीच फर्क करने की सरकारी नीति उजागर नहीं होती है? जम्मू के लोगों का आरोप है कि आवंटित जमीन सिर्फ इसलिए वापस ली गई ताकि कश्मीर के अलगाववादी और पाकिस्तानपरस्त ताकतों को संतुष्ट किया जा सके। जम्मू के प्रदर्शनकारियों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार भी इसीलिए किया गया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पुलिस ऐसा बर्बरतापूर्ण दमन तब तक कर ही नहीं सकती जब तक कि उसे सरकार की ओर से इसके लिए शह न मिली हो। अब यह बात सिर्फ जम्मू ही नहीं, पूरे देश के लोग कह रहे है और यह घटना पूरे देश में असंतोष का कारण बन रही है। इस मामले में राज्यपाल एन.एन. वोहरा की भूमिका को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है और इसीलिए जनता में उनके खिलाफ बेहद आक्रोश है।

सच तो यह है कि जायज मांगों को लेकर उठे जनाक्रोश को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकता है। अभी भले ही वहां गईं उमा भारती व ऋतंभरा जैसी नेताओं को बोलने भी नहीं दिया गया, पर जनता को बहुत दिनों तक दबाया नहीं जा सकेगा। इसके लिए संघर्ष में रोज कई लोग घायल भी हो रहे है। लोगों के आक्रोश का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तक सात लोग इस आंदोलन में शहीद हो चुके हैं, फिर भी लोग क‌र्फ्यू तोड़ कर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस किस हद तक जा रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पत्रकारों को भी काम के लिए आने-जाने नहीं दिया जा रहा है और प्रेस फोटोग्राफरों के कैमरे तक तोड़ दिए जा रहे है। कुल मिलाकर इमरजेंसी जैसे हालात बना दिए गए है। इसके बावजूद जनता की शक्ति और जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऐसे समय में जबकि दुकानें नहीं खुल रहीं है और लोगों को खाने-पीने की चीजें भी नहीं मिल पा रही है, तो भी भारी भीड़ प्रदर्शन के लिए निकल रही है और इसमें बच्चे-बूढ़े व स्त्रियां सभी बेधड़क शामिल हो रहे है। आम जनता की दृढ़ इच्छाशक्ति का अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य काफी है। हैरत की बात है कि इस पर भी केंद्र सरकार इसे राजनीतिक शिगूफेबाजी मान रही है और ऐसा सोच रही है कि थोड़े दिन चल कर यह आंदोलन अपने आप थम जाएगा।

दरअसल जम्मू की जनता यह बात लंबे अरसे से महसूस करती आ रही है कि कश्मीर के लोग अपनी मांगें मनवाने के मामले में हमेशा उन पर भारी पड़ते रहे है। इसका कारण कुछ और नहीं, केवल वहां अलगाववादियों की बहुलता और उनका उग्र होना है। उग्र न होने के ही कारण कश्मीर संभाग से अधिकतम हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। अपने घर-खेत छोड़ कर अब वे दर-दर की ठोकरे खा रहे है और शरणार्थी बनने को विवश है। अब दूसरे राज्यों से आए मजदूर भी वहां से खदेड़े जा रहे है। हिंदू तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर भी अब वहां हमले किए जा रहे है। यह सब सोची-समझी साजिश के तहत किया जा रहा है।

जम्मू की जनता यह मानती है यह साजिश राजनीतिक स्तर पर भी की गई है। आखिर क्या कारण है कि क्षेत्रफल और आबादी में कश्मीर से काफी बड़ा होने के बावजूद जम्मू संभाग को लोकसभा में सिर्फ दो और विधानसभा में 37 सीटे मिली हुई है। जबकि छोटे होने के बावजूद कश्मीर संभाग को लोकसभा की तीन और विधानसभा की 46 सीटे प्राप्त है। उस पर तुर्रा यह कि यहां 2026 तक परिसीमन पर भी रोक लगा दी गई है। जम्मूवासी इसे अपने साथ राजनीतिक अन्याय का ज्वलंत उदाहरण ही नहीं, किसी बड़ी साजिश का हिस्सा भी मानते है।

सच तो यह है कि जम्मूवासियों का यह असंतोष अब बहुत गंभीर रूप लेता जा रहा है। यह स्थिति ज्यादा गंभीर इसलिए भी है कि इसी राज्य के एक और संभाग लद्दाख की जनता की सहानुभूति भी जम्मू के लोगों के साथ है। देश के बाकी हिस्सों के लोगों की भी पूरी सहानुभूति जम्मू की आम जनता के साथ है। यह और ज्यादा उग्र हो, इसके पहले बेहतर यह होगा कि केंद्र इस मामले में हस्तक्षेप करे और पूरे मामले को नए सिरे से देखते हुए सही फैसला करे। वोटबैंक और तुष्टीकरण की चिंता छोड़कर इसे भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप और राष्ट्रीय अस्मिता के सवाल के रूप में देखने की कोशिश करे। अन्यथा इसमें कोई दो राय नहीं है कि आने वाले दिनों में केंद्र की इस भयावह तटस्थता को पक्षपात से ज्यादा खतरनाक माना जाएगा।(दैनिक जागरण, ५ अगस्त २००८)

उपेक्षित और असहाय जम्मू

जम्मू के साथ नीतिगत स्तर पर किए जाने वाले भेदभाव को रेखांकित कर रहे हैं तरुण विजय

एक माह से जम्मू दहक रहा है। सेना की गश्त, गोलीबारी, क‌र्फ्य के बीच गूंजते असंतोष के स्वर। आखिर भारत में देशभक्ति की कीमत घर से उजड़ना या जान देना क्यों हैं? पहले कश्मीरी पंडितों को सिर्फ इसलिए घर से निकाल बाहर किया गया, क्योंकि वे तिरंगे के प्रति निष्ठावान थे। इससे पहले जून 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर शासन के अंतर्गत रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु घोषित कर दी गई, क्योंकि वे कश्मीर में देशभक्ति का जज्बा बुलंद कर रहे थे। वे कहते थे कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ तिरंगा रहेगा और कोई झंडा नहीं। इस साल 23 जुलाई को 35 वर्र्षीय कुलदीप कुमार डोगरा ने देशभक्ति की आवाज बुलंद करते हुए अपनी जान दे दी। इस तरह जान देना अस्वीकार्य है, लेकिन कुलदीप के आत्मोसर्ग ने हिंदू हनन में सेक्युलर भूमिका को उजागर किया और जम्मू में एक अभूतपूर्व विरोध की लहर पैदा कर दी।

कुलदीप डोगरा की देह जम्मू कश्मीर पुलिस जबरदस्ती उठा ले गई और सुबह ढाई बजे शराब तथा टायर डालकर जलाने का प्रयास किया तो उसके गांव के लोग आ गए। आखिरकार कुलदीप की देह घरवालों को सौंपी गई। क्या मानवाधिकार वाले सिर्फ आतंकियों के अधिकारों पर बोलने का ठेका लिए हैं? जम्मू कश्मीर सरकार भारत की है या अन्य देश की? आखिर शेष देश में इसकी क्या प्रतिध्वनि हुई? ऐसा लगता है हमारी भारतीयता का समग्र फलक ही चटकने लगा है। कश्मीर के पांच लाख शरणार्थी अभी भी अपने देश में बेघर और अनाथ जैसे घूम रहे हैं। जम्मू का दृश्य बयान करना बहुत कठिन है। जो सड़कें तीर्थ यात्रियों और स्थानीय नागरिकों के आवागमन और काम-काज से भरी हुआ करती थीं आज वहां मीलों दूर तक भांय-भांय करता दहशत भरा सन्नाटा पसरा हुआ है। सैनिकों के बूटों की खट-खट आवाज कहीं-कहीं सन्नाटे को तोड़ती है। घरों में आटा नहीं है, चावल नहीं है, पानी नहीं है। खाना बनाना तक मुश्किल हो गया है। रोजमर्रा का सामान नहीं मिल रहा है। मुहल्लों के भीतर जाने पर सिर्फ फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं। जम्मू के नागरिक अब घर में भी जोर से बोलना मानो भूल गए हैं। बाजार बंद हैं, दिलों में मातम है। सब एक सवाल पूछ रहे हैं कि जम्मू कश्मीर हिंदुस्तान का है या नहीं? अगर है तो वहां आज भी दो झंडे क्यों लहराए जाते हैं? आखिर क्यों भारतीय तीर्थ यात्रियों के लिए वह जमीन नहीं दी गई जो बंजर थी और जहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता। इसे स्वयं जम्मू कश्मीर सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर अमरनाथ श्राइन बोर्ड को स्थानांतरित किया था। इस जमीन पर कोई स्थायी रूप से रहने वाला नहीं था। इस जमीन का उपयोग वर्ष में सिर्फ दो महीने के लिए होने वाला था और इसका लाभ स्थानीय कश्मीरी नागरिकों को मिलने वाला था? जम्मू कश्मीर में हिंदुओं के दो बड़े तीर्थ स्थान हैं-माता वैष्णो देवी और अमरनाथजी। इन दोनों यात्राओं पर हर वर्ष करीब 70 लाख से अधिक तीर्थ यात्री जाते हैं। वे रास्ते में करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। इसका पूरा लाभ जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को होता है। जिहादियों के कारण जम्मू कश्मीर में पर्यटक आने वैसे ही कम हो गए हैं। अगर हिंदू तीर्थ यात्री जम्मू कश्मीर न आएं तो वहां की सारी अर्थव्यवस्था ठप्प हो सकती है। अभी भी जम्मू-कश्मीर को शेष देश को मिलने वाले अनुदानों से औसतन दस गुना ज्यादा अनुदान और सहायता मिलती है। अपनी हर गलती का दोष वह भारत सरकार पर थोपते हैं यानी खाना भी हमारा और गुर्राना भी हम पर। पूरी रियासत के तीन हिस्से हैं-जम्मू, घाटी और लद्दाख। श्रीनगर के राजनेता न केवल अनुदान का अधिकांश हिस्सा सबसे छोटे भाग और सबसे कम जनसंख्या पर खर्च करते हैं,बल्कि जम्मू और लद्दाख के नागरिकों के साथ भेदभाव भी करते हैं। जम्मू कश्मीर का कुल वैधानिक क्षेत्रफल 222236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 78114 वर्ग किमी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है और 37555 वर्ग किमी चीन ने कब्जाया हुआ है। लद्दाख का क्षेत्रफल 59211 वर्ग किमी और जम्मू का 26293 वर्ग किमी है। घाटी का क्षेत्रफल है 15833 वर्ग किमी। 1963 में पाकिस्तान ने अवैध कब्जे के कश्मीर में से 5180 वर्ग किमी चीन को भेंट दे दिया था। क्या आपने कभी सुना है कि कश्मीर के उन जाबांज नेताओं ने जो हिंदू तीर्थ यात्रियों को एक इंच जमीन भी न देने के लिए अराजकता फैला देते हैं, पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेने के लिए धरना या प्रदर्शन दिया हो? हजारों वर्ग किमी जमीन पाकिस्तान के कब्जे में चली जाए तो उस पर खामोश रहना और हिंदू तीर्थ यात्रियों के लिए जमीन देने पर जान की बाजी लगाने की धमकियां देना किस मानसिकता का द्योतक है?

जम्मू और कश्मीर घाटी में लगभग बराबर की संख्या में मतदाता हैं, लेकिन जम्मू को सिर्फ दो लोकसभा सीट दी गई हैं और घाटी को तीन। पूरे राज्य की आय का 70 प्रतिशत से अधिक जम्मू से मिलने वाले राजस्व से प्राप्त होता है और घाटी से लगभग 30 प्रतिशत, लेकिन खर्च करते समय जम्मू पर कुल राजस्व का 30 प्रतिशत खर्च किया जाता है और घाटी पर 70 प्रतिशत। लद्दाख के साथ श्रीनगर के शासकों का भेदभाव सीमातिक्रमण कर गया है। लद्दाख बौद्ध संघ ने केंद्र को ऐसे दर्जनों ज्ञापन दिए जिनमें लद्दाख के बौद्ध युवकों को परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी कश्मीरी प्रशासनिक सेवा में न लेने, मेडिकल, इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला न देने जैसे भेदभाव के अनेक आरोप लगाए। सच यह है कि योजनाबद्ध तरीके से लेह के बौद्ध समाज को अल्पमत में किए जाने का षड्यंत्र चल रहा है। वास्तव में पूरे प्रदेश में ही भारत लगातार सिकुड़ता गया है। यह परिस्थिति दिल्ली के रीढ़हीन शासकों द्वारा पनपाई और बढ़ाई गई है। जम्मू कश्मीर भारत मा का भाल है। वहां का दर्द भारत का दर्द है। यदि हम वहां का दर्द नहींमहसूस करेंगे तो शेष भारत में भी बंटवारे के बीज फैलेंगे।(दैनिक जागरण ६ अगस्त २००८)