Wednesday, August 6, 2008

जम्मू को हल्के में लेना हलक में फंसा

नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाले हालात में फंस गई है। पहले राज्यपाल व खुफिया रिपोर्टो पर भरोसा कर जम्मू के आंदोलन को हल्के में लेना अब उसके हलक में अटक गया है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुला तो ली है, लेकिन मंगलवार तक सरकार के पास कोई पुख्ता फार्मूला नहीं था। जम्मू-कश्मीर से लौटकर गृह सचिव मधुकर गुप्ता और रक्षा सचिव विजय सिंह ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल के साथ प्रधानमंत्री को हालात का पूरा ब्यौरा दिया।

सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बीच बढ़ती जा रही खाई से तो केंद्र सरकार चिंतित है ही साथ में उसे आशंका है कि इन हालात का फायदा उठाकर आईएसआई अपने मंसूबों को अंजाम न दे जाए। सीमा सुरक्षा बल के पुलिस महानिदेशक एके मित्रा ने अभी सोमवार को ही आशंका जताई थी कि आईएसआई भारतीय सीमा में 800 लोगों की घुसपैठ कराने की कोशिश कर रही है। वैसे भी यही समय है जबकि घुसपैठ में बढ़ोत्तरी होती है।

जम्मू में भड़के आंदोलन पर राज्यपाल एनएन वोहरा, उनके प्रशासन और राज्य में मौजूद खुफिया तंत्र की रिपोर्टो से केंद्र का भरोसा अब पूरी तरह उठ चुका है। यही कारण है कि सर्वदलीय बैठक में समस्या के निदान पर चर्चा से पहले प्रधानमंत्री बिल्कुल सटीक हालात से वाकिफ रहना चाहते हैं। इसके मद्देनजर ही उन्होंने दो शीर्ष अधिकारियों गृह सचिव और रक्षा सचिव को जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने भेजा।

मंगलवार को दोनों अधिकारियों ने लौटकर गृह मंत्री की मौजूदगी में प्रधानमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। दरअसल, राज्यपाल वोहरा व उनके प्रशासन ने जो रिपोर्ट दी थी कि जम्मू में आंदोलन राजनीतिक है और ज्यादा नहीं खिंच सकेगा।

अब जम्मू और उसके बाहर तो हालात न सिर्फ उग्र हो गए हैं, बल्कि आंच पंजाब के कुछ हिस्सों में भी पहुंच रही है। केंद्र की चिंता है कि जम्मू में रास्ता बंद होने के साथ-साथ अगर पंजाब से भी उन्हें सहयोग मिला तो हालात और खराब होंगे। उधर कश्मीर क्षेत्र में भी प्रतिक्रिया शुरू हो गई है। इन पूरे हालात में सेना से लेकर अ‌र्द्धसैनिक बलों का ध्यान आंदोलन से निपटने में लगा है। केंद्र को चिंता है कि इन हालात का फायदा उठाकर पाकिस्तान घुसपैठ बढ़ा सकता है जो और भी ज्यादा घातक होगी। सरकार की चिंता यह भी है कि घाटी में हालात सामान्य करने की उसकी सालों की कमाई एक महीने के आंदोलन में कहीं वह गंवा न बैठे।

उधर जम्मू में तात्कालिक तौर पर शांति के लिए राज्यपाल एनएन वोहरा को हटाना एकमात्र विकल्प नजर आ रहा है, लेकिन केंद्र दूसरी चिंता में घुला जा रहा है। घाटी में अलगाववादियों के बीच वोहरा की अच्छी छवि है और वह उन्हें पसंद भी करते हैं। सूत्रों के अनुसार पूर्व राज्यपाल एसके सिन्हा के बाद वोहरा को राज्यपाल बनाने की पैरवी तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और पीडीपी प्रमुख मुफ्ती मुहम्मद सईद समेत कश्मीर के कई अलगाववादी नेताओं ने भी की थी। ऐसे में केंद्र को चिंता है कि जम्मू को शांत करने के चक्कर में कहीं घाटी में गड़बड़ न हो जाए। हालांकि, केंद्र भी मान रहा है कि जम्मू में हालात काबू करने का सबसे आसान तरीका वोहरा की विदाई ही है।(दैनिक जागरण , ६ अगस्त २००८)

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