Monday, September 8, 2008

योगी आदित्यनाथ पर हमला, एक की मौत

दैनिक जागरण, ८ september २००८, आजमगढ़/लखनऊ। उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में रविवार को भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले के बाद यहां हिंसा भड़क उठी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और 12 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रशासन ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अतिरिक्त सुरक्षाबल बुला लिए हैं। इस बीच, भाजपा ने आदित्यनाथ के काफिले पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ पर हमला उस वक्त हुआ जब वे तकिया इलाके से गुजर रहे थे। इसके बाद योगी आदित्यनाथ के समर्थकों व विरोधियों में जमकर फायरिंग शुरू हो गई और 12 गाड़ियों को जला दिया गया। फायरिंग की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत हो गई। हमले में योगी सुरक्षित बच गए हैं।

वहीं, पुलिस के अनुसार पथराव में भाजपा सांसद के कुछ वाहन क्षतिग्रस्त हुए हैं तथा कुछ लोगों को मामूली चोटें आई हैं। सांसद के साथ चल रहे पुलिसकर्मियों ने उग्र भीड़ को काबू में करने के लिए हवाई फायरिंग की, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है। भाजपा सांसद आतंकवाद के विरोध में आयोजित एक रैली को संबोधित करने वहां गए थे। मौके पर अतिरिक्त पुलिस बल भेज दिया गया है। वरिष्ठ अधिकारी स्थिति पर नजर रख रहे हैं।

इस बीच, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि हिंदू नेता विघटनकारी शक्तियो के निशाने पर हैं। कंधमाल की घटना से देश चिंतित ही था कि आज योगी आदित्यनाथ पर भी कातिलाना हमला हो गया। दीक्षित ने कहा कि यह मायावती सरकार के कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होने संबंधी दावे को खोखला साबित करती है। उन्होंने कहा कि भाजपा इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग की।

Friday, August 22, 2008

बशर बेगुनाह, हिन्दू संगठन दोषी: बुखारी

21 अगस्त 2008 ,वार्ता ,आजमगढ़। दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने आज कहा कि देश में बढ़ते आतंकवाद के लिए ‘सिमी’ जैसे संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा शिवसेना जिम्मेदार हैं।

उन्होंने अहमदाबाद विस्फोटकाण्ड के गिरफ्तार आरोपी अबुल बशर को बेगुनाह बताते हुए कहा कि उसे शीघ्र रिहा नहीं किया गया तो देश के मुसलमान देशव्यापी आन्दोलन करने के लिए बाध्य होंगे, जो 1947 की क्रान्ति से बड़ा होगा। उन्होंने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की। इमाम बुखारी आज यहां सरायमीर के बीनापारा गांव में अबुल बशर के घर उनके परिजनों की कुशलक्षेम लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि केन्द्र और प्रदेश की सरकारें मुसलमानों को अनावश्यक परेशान कर रही है और उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है। उन्होंने अहमदाबाद में हुए विस्फोटों के पीछे हिन्दूवादी संगठन का हाथ बताया।उन्होंने कहा कि आतंकवाद के नाम पर आज उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य प्रान्तों में भी मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है। असली आतंकवादी खुलेआम घूम रहे हैं। उन्होंने कहा कि अहमदाबाद विस्फोट के मामले में अमेरिकी ई-मेल की जांच होनी चाहिए, लेकिन सरकार नाइंसाफी कर रही है। उन्होंने कहा कि सिमी आतंकवादी संगठन नहीं है।

उन्होंने कहा कि आजमगढ़ के डॉ. तारिक कासमी तथा अबुल बशर की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर अब मुस्लिम संगठन सड़क पर उतरेंगे तथा सरकारों के चेहरे को बेनकाब करेंगे। बुखारी ने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की जिसमें सच्चर कमेटी के लोग हों।

जम्मू के जज्बे को सलाम

अमरनाथ श्राइन बोर्ड मामले में कश्मीरी अलगाववादियों का असली चेहरा बेनकाब होता देख रहे है ए. सूर्यप्रकाश

दैनिक जागरण , अगस्त २१, २००८। कुछ समय पहले तीखे तेवर वाले सज्जाद लोन जैसे कश्मीरी अलगाववादी नेता अपने आंदोलन के दौरान बार-बार घोषणा कर रहे थे कि वे अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। भारत के उन अनेक नौजवानों को कश्मीर के अलगाववादियों के इस चुनौतीपूर्ण अंदाज से जबरदस्त धक्का लगा है जो अब तक उनसे अपरिचित रहे हैं। उन्हें नहीं पता था कि हुर्रियत कांफ्रेंस और ऐसे ही अन्य संगठनों के नेताओं के मन में भारत के स्वतंत्र, पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे के प्रति नफरत भरी है। लोग उस स्तब्धकारी भेदभाव से भी पहली बार परिचित हो रहे हैं जो राष्ट्रवादी बहुल जम्मू क्षेत्र और अलगाववादी एवं सांप्रदायिक कश्मीर क्षेत्र में दिखाई पड़ रहा है। जम्मू के हिंदू, सिख और मुस्लिम प्रदर्शनकारी तिरंगा हाथ में लेकर प्रदर्शन करते हैं और भारत माता की जय जैसे नारे लगाते हैं, जबकि कश्मीर के प्रदर्शनकारी हुर्रियत या पाकिस्तान का हरा झंडा लेकर भारत विरोधी नारे लगाते हुए प्रदर्शन में भाग लेते हैं। पिछले साठ साल से भारतीय गणतंत्र का अंग होने के बावजूद कश्मीरी मुसलमानों का बड़ा वर्ग पंथनिरपेक्ष लोकतंत्र के दायरे से बाहर है। मीडिया में सामने आई विरोध प्रदर्शन की तस्वीरों से यह साफ हो जाता है कि घाटी के अधिकांश मुसलमानों पर भारतीय पंथनिरपेक्षता का रंग नहीं चढ़ा है। दूसरी तरफ वहां छह सौ साल पहले का वही माहौल नजर आता है, जिसमें सुल्तान सिकंदर ने हिंदुओं पर कुठाराघात करते हुए उन्हें कश्मीर छोड़ने या मुसलमान बनने को मजबूर कर दिया था। हिंदू समुदाय पर दूसरा बड़ा कुठाराघात 1989-90 में मुस्लिम आतंकवादियों ने किया, जिन्हें स्थानीय मुसलमानों का समर्थन हासिल था। उन्होंने हिंदुओं की हत्याएं शुरू कर दीं। इस नरसंहार के कारण तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने पलायन कर जम्मू और दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में शरण ली।

हाल के वर्र्षो में आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाया और अस्थायी शिविरों में निवास करने वाले यात्रियों को मौत के घाट उतारा। इसके बावजूद सज्जाद लोन कहते हैं कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि मुसलमान हिंदू तीर्थयात्रियों का 'ध्यान' रख रहे हैं। इससे भी हास्यास्पद बयान हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीर वाइज फारुख का है। उनका दावा है कि वह पंथनिरपेक्षता में यकीन रखते हैं। सांप्रदायिक तो हिंदू हैं, जो श्राइन बोर्ड की जमीन के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि घाटी से हिंदुत्व की विशिष्ट संस्कृति के सफाए पर कोई भी अलगाववादी नेता शर्रि्मदगी महसूस नहीं करता। यह इस क्षेत्र में किसी भी पंथिक अल्पसंख्यक समुदाय पर सबसे बड़ा हमला है। हालिया वर्र्षो में टीवी शो में अनेक कश्मीरी अलगाववादी नेता हाजिर हुए हैं। ये विद्रोही, अड़ियल, सांप्रदायिक और भारत विरोधी थे, फिर भी कुछ अंग्रेजी समाचार चैनलों ने उन्हें पर्याप्त समय दिया। भारतीय मीडिया का एक वर्ग यह मानता है कि अलगाववाद की भाषा बोलने वाले कश्मीरी मुसलमानों से संजीदगी और पंथनिरपेक्षता की उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए। सज्जाद लोन, बिलाल लोन और मीर वाइज फारुख जैसे लोगों के जहर उगलने वाले बयान और उनके दावों में बेइमानी के निशान इन मीडिया संगठनों के लचर रवैये से साफ झलकते हैं। ये उन्मत्त कश्मीरी मुस्लिम सांप्रदायिकता के प्रति रुझान रखते हैं। इनमें कश्मीरी मुस्लिम दृष्टिकोण की तरफदारी की इच्छा इतनी तीव्र है कि साफ-साफ सांप्रदायिक नारेबाजी और प्रदर्शनों के बावजूद वे इसे सांप्रदायिक बताने से गुरेज करते हैं। मूर्खतावश अलगाववादियों को मंच प्रदान करके कुछ मीडिया संगठन भारत की एकता व अखंडता तथा संवैधानिक मूल्यों को छिन्न-भिन्न करने के खतरनाक अंजाम के करीब पहुंच गए हैं। यह नि:संदेह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।

सज्जाद लोन कहते हैं कि 'हम' हिंदुओं को एक इंच जमीन भी नहीं देंगे। एक चैनल पर एक कश्मीरी पंडित ने लोन से पूछा कि 'हम' से क्या मतलब है? क्या इसमें कश्मीरी पंडित शामिल नहीं हैं, जो कश्मीर के मूल निवासी हैं? इस सवाल पर लोन और वहां मौजूद अन्य लोगों की बोलती बंद हो गई। जाहिर है कि लोन ने जिस 'हम' का उल्लेख किया था उसमें केवल मुस्लिम समुदाय शामिल है। लोन को बताना चाहिए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा और अगर सीमा पार के आकाओं से आपका इतना ही लगाव है तो मुजफ्फराबाद पुल पार करके वहां जाओ और वहीं जाकर बस जाओ। कश्मीर नाम के भौगोलिक टुकड़े से हम भावनात्मक बंधन में बंधे हैं और यह बंधन हमेशा कायम रहेगा। लोन के पूर्ववर्ती भी नियंत्रण रेखा के पार ऐसा ही झुकाव रखते थे। कश्मीरी मुसलमानों की सांप्रदायिकता सबसे पहले 1947 में खुलकर सामने आई थी। तब कश्मीर सेना में तैनात मुसलमान सैनिकों ने फौजी अफसरों की हुक्मअदूली करते हुए बगावत कर दी थी और हमलावर पाकिस्तान सेना में शामिल हो गए थे। उन्होंने अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह, बिग्रेडियर राजिंदर सिंह और अन्य अधिकारियों को मौत के घाट उतारने के बाद श्रीनगर की तरफ कूच किया।

इस धोखे की गूंज आज जम्मू-कश्मीर राज्य में सुनाई पड़ रही है। कश्मीरी मुस्लिम समुदाय सीमा पार से पड़े प्रभाव के कारण घाटी में हिंदुओं के अधिकारों को रौंदना अपना अधिकार समझ बैठा है। अगर हम जम्मू-कश्मीर को भारत के अभिन्न अंग के रूप में कायम रखना चाहते हैं तो देश की एकता, अखंडता, आजादी, पंथनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध भारत के प्रत्येक नागरिक को ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट कर्नल नारायण सिंह जैसे बलिदान के लिए तैयार रहना चाहिए। जम्मू की जुझारू जनता हमारे सामने उदाहरण पेश कर रही है। आइए हम सब उन्हें सलाम करें।


आतंक की घरेलू जड़ें

सिमी की देशव्यापी गतिविधियों को एक बड़ा खतरा बता रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित
दैनिक जागरण, अगस्त २१,२००८। सिमी देशी आतंकवाद का ब्रांड है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 1977 में जन्मी सिमी अब धुर दक्षिण तक केरल में है। पूर्वोत्तर में असम में है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में है। गुजरात का ताजा रक्तपात उसी का खेल है। राजनीति में सिमी को पाक-साफ बताने वाले राजनेता और राजनीतिक दल हैं तो सिमी को आतंकी संगठन बताने वाले भी हैं। सिमी की निगाह में भारत का संविधान इस्लाम विरोधी है। राष्ट्र-राज्य बकवास है, पंथनिरपेक्षता और हिंदू-मुस्लिम भाईचारा बेकार और इस्लाम विरोधी है। उसकी दृष्टि में सभी गैर-इस्लामी जन 'काफिर' हैं, दुनिया के सभी गैर-इस्लामी विचार, सभ्यता और संस्कृतियां बेहूदा हैं। कुरान उसका संविधान है। जेहाद के जरिए भारत को इस्लामी मुल्क बनाना उसका मकसद है। सिमी भारत से युद्धरत है। वह एक मुकम्मल हमलावर विचारधारा है। इस विचार में मजहब की बारूद है। सिमी इस्लाम का बेजा इस्तेमाल कर रही है, लेकिन मौलवी, उलेमा, इमाम आदि चुप हैं। सिमी भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा है, वह भारतीय राष्ट्र-राज्य की दुश्मन है। आतंकवाद और सिमी पर मुलायम रुख वाले सेकुलर दल दया के पात्र हैं।

सिमी ने अपने मुखपत्र 'इस्लामिक मूवमेंट' में साफ किया था,''कोई भी राजनीतिक दल अपनी सेकुलरवादी घटिया विचारधारा के जरिए ठोस और सकारात्मक बदलाव नहीं ला सकता। असली बदलाव का एकमात्र रास्ता इस्लामी जीवन पद्धति है।'' सिमी के महामंत्री सफदर नागौरी गुजरात रक्तपात के जरिये दोबारा चर्चा में हैं। नागौरी ने ओसामा बिन लादेन को आतंकवादी नहीं, 'सच्चा मुसलमान' बताया था। उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है। सिमी ने 2004 में भारत के लिए एक और महमूद गजनी की जरूरत बताई थी। महमूद गजनी ने भारत पर 17 हमले किए, सिमी भी उसी तर्ज पर हमलावर है। उतवी हमलावर महमूद गजनी का सहायक और इतिहासकार था। उतवी ने 'तारीखे यामिनी' में सन 1000 से लेकर ज्यादातर हमलों का आंखों देखा वर्णन किया है,''..नदी का रंग काफिरों के खून से लाल हो गया, सुल्तान बेहिसाब दौलत लाया। अल्लाह इस्लाम और मुसलमानों को सम्मान देता है। गुलामों की तादाद के कारण बाजार भाव गिर गया।'' गजनी जोरजबर से गुलाम ले गया था, सो बाजारभाव गिरा। आज सिमी की खिदमत में खुशी-बखुशी गुलाम हाजिर हैं। यहां गुलामों की बहुतायत है, सिमी समर्थक दल नेता घटे दर पर गुलाम हैं। अबुल बशर और प्रतिभाशाली युवकों का सिमी में होना खतरे की घंटी है। अहमदाबाद बमकांड के आरोपी तथा आजमगढ़ के निवासी बशर को अपने किए पर कोई मलाल नहीं। उसने अहमदाबाद, वाराणसी, फैजाबाद और जयपुर की आतंकी कार्रवाई को 'इस्लामिक काम' ठहराया है।

सिमी प्रमुख शहिद बद्र पर बहराइच में राष्ट्रद्रोह सहित कई जघन्य आरोपों के मुकदमे दर्ज हुए। बद्र गुजरात रक्तपात में हुई गिरफ्तारियों को सिमी की बदनामी की साजिश बताते हैं। उनकी मानें तो सिमी पाक-साफ है। साबरमती एक्सप्रेस बम कांड के आरोप सिमी पर हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने जलगांव कोर्ट में अक्टूबर 2001 में 11 सिमी कार्यकर्ताओं के खिलाफ आतंकवादी आरोप-पत्र दाखिल किया था। 2001 में ही मध्य प्रदेश पुलिस ने 9 और दिल्ली पुलिस ने भी कई सिमी कार्यकर्ता पकड़े। हावड़ा ब्रिज उड़ाने की तैयारी में आरडीएक्स सहित सिमी के नेता हासिब रजा गिरफ्तार हुए। पश्चिम बंगाल में सिमी के कार्यकर्ता रेलवे लाइन उड़ाने के आरोप में पकड़े गए। मुंबई पुलिस ने आधुनिक शस्त्रों और रसायनों से लैस सिमी के आधा दर्जन कार्यकर्ता मई 2003 में पकड़े। 2005 के श्रीराम जन्मभूमि परिसर हमले में भी सिमी के लोग गिरतार हुए। सिमी के रक्तपात, राज्यद्रोह और राष्ट्रद्रोह की कथा लंबी है। बावजूद इसके ट्रिब्यूनल में केंद्र सिमी को खतरनाक संगठन घोषित करने लायक साक्ष्य भी नहीं जुटा पाया। सर्वोच्च न्यायालय स्टे न देता तो देश की छाती पर सवार सिमी के लोग देश की गर्दन दबोच लेते। गुजरात पुलिस ने केरल के जंगल में सिमी ट्रेनिंग कैंप का ताजा खुलासा किया है। केरल सरकार ने जून 2006 में ही सिमी पर प्रतिबंध की वैधता जांच रहे ट्रिब्यूनल के समक्ष तमाम खतरनाक सूचनाएं दी थीं। केरल राज्य की विशेष पुलिस शाखा ने कई स्थानीय मजहबी संगठनों/केंद्रों को भी सिमी सहायक पाया था। केरल के नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, इस्लामिक यूथ सेंटर और तमिलनाडु के तमिल मुस्लिम मुनेत्र कजगम जैसे संगठन सिमी से संबंधित बताए जाते हैं। सिमी देश के तमाम विश्वविद्यालयों में भी सक्रिय है।

सिमी और बांग्लादेशी संगठन हरकत-उल जेहाद अल इस्लाम (हुजी) मिलकर काम करते आए हैं। सिमी ने हुजी के लिए उत्तर प्रदेश के जौनपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, अंबेडकरनगर, अलीगढ़, सोनौली, फिरोजाबाद, हाथरस और आजमगढ़ में नवयुवक प्रशिक्षित किए हैं। मध्य प्रदेश में प्रतिबंध के पहले ही विभिन्न जिलों में सांप्रदायिक शत्रुता बढ़ाने वाले 35 मुकदमे सिमी कार्यकर्ताओं पर दर्ज हुए थे। उसके बाद से 2006 तक 180 से ज्यादा सिमी कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए। संप्रति मध्य प्रदेश भी सिमी का गढ़ है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद, मालेगांव, जलगांव और थाणे सिमी के सघन कार्यक्षेत्र हैं। नासिक, शोलापुर, कोल्हापुर, गड़चिरौली, नांदेड़, औरंगाबाद, जलगांव और पुणे खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द हैं। राज्य में 3000 से ज्यादा मदरसे हैं और सिमी गतिविधियों के के लिए अच्छा-खासा कच्चा माल हैं। पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में 2003 के अगस्त-सितंबर में दो दिवसीय प्रशिक्षण हुआ। सिमी ने 2004 के चुनाव में 'इंडियन नेशनल लीग' के 6 उम्मीदवारों को जंगीपुर, मुर्शिदाबाद, डायमंड हार्बर, बशीरहाट, जादवपुर और पश्चिमोत्तर कोलकाता सीटों पर समर्थन भी दिया। तमाम नेता स्वाभाविक ही सिमी का प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष समर्थन करते हैं।

जिस प्रकार सिमी का घोषित मकसद भारत विरोध और जेहादी आतंकवाद है उसी प्रकार सिमी समर्थक राजनीतिक दलों का घोषित मकसद चुनावी जीत है। दोनों परस्पर सहयोगी हैं। भारत आंतरिक सुरक्षा के संकट से जूझ रहा है। माओवादी नक्सलपंथी हिंसा है, राष्ट्रव्यापी जेहादी आतंकवाद है, कश्मीर घाटी में अलगाववाद है, पूर्वोत्तर अशांत है, नेपाल और बांग्लादेशी सीमाएं असुरक्षित हैं। सिमी के देशी आतंकवाद से पूरे देश में थरथराहट है। आतंकवाद के खिलाफ पड़ोसी बांग्लादेश में भी कड़े कानून हैं और मृत्युदंड का प्रावधान है। ब्रिटेन के आतंक विरोधी कानून में संदिग्ध को 42 दिन तक पुलिस हिरासत में रखने की व्यवस्था है। फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, फिलीपींस में भी कड़े कानून हैं, लेकिन भारत आतंकवाद पर मुलायम है। यहां रक्तपात, हमला और बमबारी नहीं, बल्कि हमलावर का मजहब देखा जाता है। सिमी ने 'सागा आफ स्ट्रगल' (वार्षिक रिपोर्ट 1998-2000) में कहा था,''दीन के लिए उठो, खड़े हो, मुस्लिम युवक इस्लाम की श्रेष्ठता की पुनस्र्थापना के लिए जेहाद करें।'' अर्थात अपने ही देशवासियों, भाई-बंधुओं का कत्ल करें। अचरज है कि सवा अरब भारतवासियों को 4-5 हजार उन्मादी मार रहे हैं और राष्ट्र-राज्य की सारी संस्थाएं चुप हैं।


Thursday, August 21, 2008

जम्मूः प्रदर्शन जारी, ताजा हिंसा में 50 घायल

20 अगस्त 2008 CNN IBN, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर और इसके आस-पास के कई इलाकों में आज बेकाबू भीड़ ने उपद्रव मचाते हुए पुलिस पोस्ट के साथ ही कुछ सरकारी इमारतों को आग के हवाले कर दिया। आज जम्मू में अंतिम दिन गिरफ्तारियां देते हुए ये प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों से भी जा भिड़ें, जिसमें 50 लोग घायल हो गए।प्रदर्शनकारियों ने सरवाल पुलिस पोस्ट के एक हिस्से और जम्मू में गांधी नगर पुलिस थाने के ठीक विपरीत बने सरकारी आवासीय इमारत में आग लगा दी। साथ ही उन्होंने जानीपुरा इलाके में जेएंडके बैंक के एटीएम को भी जला डाला। कई इलाकों में तो अभिभावक अपने बच्चों के साथ गिरफ्तारियां देने के लिए जबरन पुलिस थाने में घुस आए।दूसरी तरफ, ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ राज्यपाल एन.एन.वोहरा के साथ दूसरे दौर की बातचीत के लिए सहमत हो गई है। ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ ने चार सदस्यों की एक टीम गठित की है जो अपने पांच-सूत्रीय एजेंडे पर आगे बातचीत करेगी। इस एजेंडे में श्राइन बोर्ड के पुर्नगठन और ऐसी व्यवस्था की मांग है कि जिसके द्वारा बोर्ड संबंधित भूमि से जुड़े नहरों को अस्थाई तौर पर इस्तेमाल कर सके। इस बीच, श्रीनगर में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम।के.नारायण ने हालात का जायजा लेने के लिए एक उच्च-स्तरीय बैठक भी बुलाई। हालांकि, प्रशासन ने कल ही लोगों को चेतावनी दी थी कि वे गिरफ्तारियां देने के लिए बच्चों को अपने साथ नहीं लाए। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन की इस चेतावनी को अनसुना कर दिया। कुछ जगहों पर तो प्रदर्शनकारी खुलेआम घूमते नजर आए, और कई जगह उन्हें रोकने के लिए पुलिस को आंसूगैस छोड़ने पड़े। ‘श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष समिति’ के प्रवक्ता ने दावा किया है कि लगभग 3,50,000 लोग गिरफ्तारी के लिए सामने आए, जबकि अधिकारियों के मुताबिक, ये तादाद करीब 100,000 तक गई। इसके साथ ही, समिति ने 25अगस्त तक जम्मू बंद बढ़ा दिया है।

पूरब से आतंकी और पश्चिम से बारूद

दैनिक जागरण, अगस्त २१, २००८। हम हिंदुस्तान में सबका स्वागत करते हैं! आतंकियों का, उनके हथियारों का और विस्फोटकों का भी! क्योंकि हमारी सीमाएं इतनी खोखली जो हैं। लेकिन नई बात यह है कि आतंकी अब उत्तर की पहाड़ी या पश्चिम की रेगिस्तानी से कम, बल्कि पूरब की जंगली और मैदानी सीमाओं से ज्यादा आ रहे हैं। जबकि देश में तबाही मचाने का सामान यानी विस्फोटक पश्चिम में समुद्र के रास्ते भारत पहुंच रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर की सीमा तो अब सिर्फ आतंकियों के लिए ध्यान बंटाने का जरिया भर है। सीमा पर बाड़ और चौकसी के मद्देनजर यहां से भारत में घुस कर आतंकी अपनी जान जोखिम में भला क्यों डालेंगे, जब उनके लिए बांग्लादेश और नेपाल के निरापद रास्ते खुले हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के प्रयासों की संख्या 2001 के 2417 से घट कर पिछले साल 600 पर आ गई है और इस साल मई तक केवल 72 मामले सामने आए हैं। आतंकियों ने अब राजस्थान सीमा पर भी जोखिम लेना बंद कर दिया है। पर खुद गृह मंत्रालय मानता है कि यह आंकड़ा दरअसल ध्यान बंटाने वाला है, क्योंकि अब आतंकियों के आने का रास्ता दूसरा है।
खुफिया रिपोर्टो के मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रशिक्षित गुर्गे अब पूरब की तरफ से नेपाल और उत्तर-पूर्व से जुड़ी बांग्लादेश सीमा को घुसपैठ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां के सुरक्षा इंतजाम कतई नाकाफी हैं और यहां की जनसांख्यिक परिस्थिति घुसपैठियों के हक में जाती है। असम के पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह स्वीकार कर चुके हैं कि रोजाना छह हजार बांग्लादेशी इस राज्य में घुसपैठ करते हैं।
खुफिया सूत्र मानते हैं कि बांग्लादेशी लोगों के साथ ही आईएसआई के प्रशिक्षित 'जिहादी' भी आते हैं और उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों-नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा आदि-में ठिकाना बना कर आसानी से घुल-मिल जाते हैं। खुफिया अधिकारी यह मानते हैं कि भारी संख्या में बांग्लादेशियों के घुसपैठ और उन्हें इस इलाके में बसने में मदद करना भी आईएसआई की योजना का अहम हिस्सा है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि आईएसआई के उत्तर पूर्व में सक्रिय अलगाववादी संगठनों से भी बेहद नजदीकी संबंध हैं।
आतंकियों की शातिराना रणनीति का आलम यह है कि उनकी आमद पूरब से होती है, लेकिन तबाही का सामान अरब सागर के रास्ते पश्चिम के तटों पर उतरता है। कच्छ से केरल तक फैला पश्चिमी समुद्री क्षेत्र अचानक विस्फोटक या हथियार लाने का सबसे बड़ा मार्ग बन गया है। देश में विस्फोटकों के सबसे बड़े जखीरे पहले भी गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों से ही मिले। इन इलाकों में व्यापारिक समुद्री परिवहन की अधिकता उनके लिए सहजता पैदा करती है।
खुफिया सूत्र यह भी मानते हैं कि आतंकी दमन-दीव, लक्षद्वीप और बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भी आतंकी अपना अड्डा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि लक्षद्वीप, अंडमान और दमन-दीव और पुद्दुचेरि में अचानक सुरक्षा चौकियों की संख्या बढ़ा दी गई है।
खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर, गृह मंत्रालय बांग्लादेश व नेपाल सीमा पर चौकसी बढ़ा रहा है और समुद्र की लहरों की पहरेदारी सख्त की जा रही है। लेकिन महाद्वीपीय आकार के इस देश में सीमाओं पर हर जगह सिपाहियों की तैनाती नामुमकिन है। दरअसल आतंकी मंसूबों को नाकाम करने के लिए बेहद सजग व चाक चौबंद खुफिया तंत्र और प्रभावी व त्वरित पुलिस तंत्र चाहिए। आधुनिक आतंक से लड़ाई का यही सबसे बड़ा हथियार है, मगर अफसोस! भारत में यह हथियार जंग खाकर भोथरा हो चुका है।

Wednesday, August 20, 2008

जम्मू में महिलाओं ने दी गिरफ्तारियां

19 अगस्त २००८, इंडो-एशियन न्यूज सर्विस जम्मू । में आठ दिनों के प्रदर्शनों के बाद हालात भले ही सामान्य हो गए हों, लेकिन अभी जम्मू में शांत नहीं हुआ है और जेल भरो आंदोलन के दूसरे मंगलवार को हजारों महिलाओं ने गिरफ्तारियां दी।जम्मू के सभी हिस्सों में महिलाओं ने सैंकड़ों के जत्थों में गिरफ्तारियां । पक्का डांगा और गांधी नगर पुलिस स्टेशनों में महिलाएं जबरन दाखिल हो गईं, जबकि वहां तैनात कर्मी उनके सामने बेबस दिखे।तालियां बजाती और जयकारे लगाती इन महिलाओं ने कहा कि जब तक श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन लौटा नहीं दी जाती, तबतक वे आंदोलन जारी रखेंगी। गौरतलब है कि सोमवार को हजारों पुरूषों ने गिरफ्तारियां दी थीं। सरकारी अनुमान के मुताबिक 75 हजार लोगों ने गिरफ्तारियां दी हैं, जबकि श्री अमरनाथ यात्रा संघर्ष संघर्ष समिति ने यह संख्या तीन लाख बताई है।

अहमदाबाद धमाके: बशर ने जुर्म कबूला

२० अगस्त २००८, दैनिक जागरण , अहमदाबाद। सीरियल बम धमाकों के सूत्रधार अबुल बशर कासमी ने हमले में शामिल होने की बात कबूल कर ली है। इन धमाकों में सिमी सरगना सफदर नागौरी का भी हाथ था।
गुजरात पुलिस के मुताबिक जयपुर और हैदराबाद धमाकों की साजिश भी नागौरी ने ही रची थी। नागौरी को ट्राजिट रिमाड पर अहमदाबाद लाने के लिए गुजरात पुलिस की टीम मध्यप्रदेश रवाना हो चुकी है।
बीते हफ्ते उत्तार प्रदेश से गिरफ्तार किया गया मुफ्ती अबुल बशर कासमी उर्फ अबू बशीर फिलहाल 14 दिन की पुलिस रिमांड में है। शहर की क्राइम ब्रांच उससे पूछताछ कर रही है।
अधिकारियों ने मंगलवार को बताया कि उसने धमाकों में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली है। 26 जुलाई को अहमदाबाद में हुए धमाकों में 55 लोगों की मौत हो गई थी। बशर हालांकि पुलिस को सहयोग कर रहा है लेकिन ज्यादा बोल नहीं रहा। ज्यादातर सवालों का जवाब वह हां या ना में दे रहा है। अधिकारियों के मुताबिक हो सकता है उसे पुलिस पूछताछ से निपटने की ट्रेनिंग भी दी गई हो।
पुलिस ने जयपुर धमाकों में साजिद मंसूरी का हाथ होने की आशंका भी जताई है। पुलिस उपायुक्त [क्राइम ब्रांच] अभय चूड़ास्मा ने बताया कि धमाकों से दो महीने पहले वह कई बार अहमदाबाद आया था। हमले में दूसरे राज्यों के युवकों को भी शामिल किया गया था जिसमें डाक्टर और कंप्यूटर इजीनियर जैसे प्रोफेशनल भी हैं। इसमें सिमी के नेटवर्क का भी खूब इस्तेमाल किया गया।
पुलिस ने बताया कि हमले में नागौरी का हाथ भी था। पूछताछ के लिए उसे गुजरात लाया जाएगा। अभी वह इदौर की रीवा जेल में बंद है। 2007 में केरल में और जनवरी 2008 में गुजरात के हलोल में लगाए गए सिमी के ट्रेनिंग कैंप में नागौैरी और उसका भाई करीमुद्दीन मुख्य ट्रेनर थे।
बम धमाकों के मामले में गिरफ्तार इमरान शेख का घर सील कर दिया गया है। उसके बाहर राज्य रिजर्व पुलिस [एसआरपी] तैनात है। धमाकों में इस्तेमाल किए गए बमों को रखने के लिए मुंबई के कंप्यूटर इंजीनियर अब्दुल सुभान उर्फ तौफीक बिलाल ने शेख का घर इस्तेमाल किया था। हमले के लिए जरूरी तकनीकी सहायता भी उसी ने मुहैया कराई थी। तौफीक अभी फरार चल रहा है। पुलिस ने बताया कि वडोदरा के साजिद मंसूरी ने जयपुर धमाकों में हाथ होने की बात स्वीकार की है।

Tuesday, August 19, 2008

तुष्टिकरण की देशघाती होड़

राजनेताओं के बीच मची तुष्टिकरण की होड़ को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं बलबीर पुंज

दैनिक जागरण, अगस्त १९, २००८। अहमदाबाद और सूरत में तबाही मचाने की साजिश रचने वाले मास्टर माइंड और उसके गुर्गों को गुजरात पुलिस ने अंतत: दबोच लिया। गुजरात सरकार ने साबित कर दिया कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो आतंकवाद का खात्मा संभव है। पकड़े गए ज्यादातर आरोपी प्रतिबंधित संगठन सिमी के कार्यकर्ता हैं, जिन पर मालेगांव, मुंबई, पानीपत, हैदराबाद, वाराणसी, बेंगलूर और जयपुर में आतंकी हमला करने का शक जताया जाता रहा है। तुष्टिकरण की कुत्सित राजनीति के कारण सेकुलर दल सिमी को महज एक छात्र संगठन बता कर उसका बचाव कर रहे हैं। पिछले दो सालों में करीब दर्जन भर बडे़ आतंकी हमले हुए। इनमें से किसी भी हमले के असली सूत्रधार को पकड़ा नहीं गया। यह पहला अवसर है जब गुनहगारों को ढूंढ़ निकाला गया। पिछले तीन सालों में 494 बेकसूर भारतीय आतंकवाद के शिकार हुए हैं। आतंकी हमलों में मारे जाने वालों में इराकियों के बाद सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन का कहना है कि देश में करीब 800 आतंकी संगठन सक्रिय हैं, किंतु उन पर काबू पाने के लिए किसी ठोस नीति का कहीं संकेत नहीं मिलता। संप्रग सरकार आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून बनाने में संकोच करती है। कुछ राज्य सरकारों ने आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए कानून पारित भी किया, किंतु उन पर केंद्र सरकार कुंडली मारे बैठी है। आतंकी घटना होने पर गृहमंत्री राज्य सरकारों पर दोष डाल अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। यदि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है तो राज्यों द्वारा बनाए गए काूननों को हरी झंडी क्यों नहीं? यूपीए सरकार ने आते ही पोटा को निरस्त कर डाला। आतंकवाद के प्रति उसके लचर रुख के कारण आज जिहादियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे पूर्व चेतावनी देकर तबाही मचा रहे हैं तो दूसरी ओर कथित सेकुलरिस्टों में मची तुष्टिकरण की होड़ देखकर कट्टरपंथी ताकतें अपनी शर्तों पर सरकार को नचा रही हैं। राजग सरकार के समय में जब सिमी पर प्रतिबंध लगाया गया था तब सेकुलर दलों ने आसमान सिर पर उठा लिया था। प्रतिबंधित होने के बावजूद सिमी भूमिगत होकर देश विरोधी गतिविधियों में संलग्न रहा। जांच एजेंसियों का मानना है कि हाल के आतंकी हमलों में जिस इंडियन मुजाहिदीन नामक संगठन का नाम सामने आ रहा है वह सिमी का ही छद्म नाम है। पुख्ता सबूत नहीं होने के कारण अभी हाल में सिमी को क्लिनचिट मिल गई थी, जिस पर बाद में सर्वाेच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। केंद्र सरकार को सिमी के खिलाफ सबूत देना शेष है, किंतु संप्रग सरकार के घटक दल जिस तरह सिमी का बचाव करते रहे हैं उससे लगता नहीं कि सरकार सिमी के खिलाफ कड़े कदम उठा पाएगी। राजद सुप्रीमो लालू यादव तो सिमी पर प्रतिबंध लगाने की दशा में संघ परिवार को भी प्रतिबंधित करने की मांग करते हैं। अपने साथ लादेन का हमशक्ल लेकर चुनाव प्रचार करने वाले रामविलास पासवान सिमी के बड़े पैरोकार हैं। मुलायम सिंह समेत अधिकांश सेकुलरिस्ट भी सिमी के शुभचिंतक हैं। आतंकवाद को अपने कुतर्कों की ढाल देना आसान है। आवश्यकता वोटबैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सभ्य समाज की रक्षा के लिए एकजुट होने की है, जहां किसी भी वर्ग, समुदाय या पंथ के प्रति कोई पूर्वाग्रह न हो। कटु सत्य यह है कि सेकुलरवाद इस्लामी कट्टरपंथ के तुष्टिकरण का पर्याय बन कर रह गया है। जम्मू-कश्मीर में जो संघर्ष चल रहा है वह इसी कुत्सित नीति का परिणाम है। घाटी के कट्टरपंथियों ने केवल चार दिन हंगामा खड़ा किया और सरकार ने घुटने टेक दिए। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दी गई जमीन वापस ले ली गई। अमरनाथ संघर्ष समिति जमीन वापस पाने के लिए दो महीने से आंदोलन कर रही है, किंतु सरकार गूंगी-बहरी बनी हुई है। क्यों? स्वतंत्रता दिवस पर घाटी में काला दिवस मनाया गया, तिरंगा जलाया गया। अलगाववादियों ने पाकिस्तानी झंडा लहराया और 'भारत तेरी मौत आए, मिल्लत आए' का नारा लगाया। मस्जिदों से लाउडस्पीकर्स पर 'हमको चाहिए आजादी' गूंजता रहा। श्रीनगर के लाल चौक पर ध्वजारोहण के बाद तिरंगा उतार लिया गया। सरेआम पाकिस्तानी झंडे लहराए गए और पुलिस मौन बनी रही। इस रीढ़विहीन सरकार में देश की अस्मिता, उसकी संप्रभुता के लिए कोई चिंता नजर नहीं आती। 15 अगस्त को राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ''मजहब के नाम पर लोगों को बांटने से समस्या जटिल होगी.इससे भारत की एकता व अखंडता को खतरा पैदा होगा।'' किंतु अमरनाथ मामले में सरकार के घुटने टेकने से उत्साहित जिहादियों द्वारा इस देश की जमीन पर ही पाकिस्तान जिदंाबाद के जो नारे लगाए गए, उससे भारत की संप्रभुता को जो चुनौती मिली है उसका प्रतिकार कैसे संभव है?

जम्मू का आंदोलन जमीन के टुकड़े के लिए नहीं चल रहा। वह भारत की संप्रभुता, बहुलतावादी संस्कृति और सनातनी परंपराओं को बनाए रखने के लिए है। पाकिस्तान की शह पर अलगाववादियों ने घाटी को 'काफिरों' यानी हिंदुओं से मुक्त करा लिया है। घाटी दारुल इस्लाम बन चुकी है। अब उनकी निगाह जम्मू पर है। बोर्ड से जमीन वापस लेने से उन्हें लगता है कि वह शेष भारत में भी अपनी हांकने में सफल होंगे। यदि सेकुलरिस्टों को ऐसा ही रवैया रहा तो निकट भविष्य में यह संभव भी है। जम्मू का जनाक्रोश कश्मीर मसले पर बरती गई भूलों की तार्किक परिणति है। पहली भूल अक्टूबर 1947 में नेहरू ने की, जब पाकिस्तानी कबायलियों को जवाब देने की बजाय वह संयुक्त राष्ट्र चले गए। अनुच्छेद 370 दूसरी बड़ी भूल थी, जिसके द्वारा जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से विलग कर दिया गया। यदि सेकुलरिस्टों की प्रतिबद्वता सच्ची पंथनिरपेक्षता के साथ है तो उन्हें जम्मू के राष्ट्रभक्त भारतीयों का साथ देना चाहिए, अन्यथा इस तीसरी भूल की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।


अहमदाबाद: दो गुटों में झड़प के बाद तनाव

१८ अगस्त २००८, इंडो-एशियन न्यूज सर्विस, अहमदाबाद। दो सांप्रदायिक गुटों के बीच रात भर हुई झड़प के बाद हुए पथराव के कारण अहमदाबाद की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। यद्यपि, पुलिस का कहना है कि वह स्थिति पर नजर रखी हुई है। शहर के दरियापुर, शाहपुर और दिल्ली दरवाजा क्षेत्र में दो गुटों ने सोमवार सुबह भारी पथराव किया।इससे पहले रविवार रात एक छोटी सी सड़क दुर्घटना के बाद दिल्ली दरवाजा क्षेत्र में दो गुट के लोग घरों से बाहर निकल गए और पुलिस स्थिति पर काबू पाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और हवाई फायरिंग करनी पड़ी। सोमवार सुबह शाहपुर क्षेत्र में दोनों गुटों के लोग एक दूसरे पर पत्थर, शीशे के बोतल फेंकने लगे। क्षेत्र में दहशत फैल गया और लोग भागने लगे।पुलिस ने बताया कि दरियापुर से एक आदमी को गिरफ्तार किया गया है जबकि एक पुलिसकर्मी घायल हुआ है। गुजरात पुलिस प्रमुख पी। सी. पांडे ने आईएएनएस से कहा कि स्थिति पर नजर रखी जा रही है और उत्पात मचाने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा।