Thursday, August 21, 2008

पूरब से आतंकी और पश्चिम से बारूद

दैनिक जागरण, अगस्त २१, २००८। हम हिंदुस्तान में सबका स्वागत करते हैं! आतंकियों का, उनके हथियारों का और विस्फोटकों का भी! क्योंकि हमारी सीमाएं इतनी खोखली जो हैं। लेकिन नई बात यह है कि आतंकी अब उत्तर की पहाड़ी या पश्चिम की रेगिस्तानी से कम, बल्कि पूरब की जंगली और मैदानी सीमाओं से ज्यादा आ रहे हैं। जबकि देश में तबाही मचाने का सामान यानी विस्फोटक पश्चिम में समुद्र के रास्ते भारत पहुंच रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर की सीमा तो अब सिर्फ आतंकियों के लिए ध्यान बंटाने का जरिया भर है। सीमा पर बाड़ और चौकसी के मद्देनजर यहां से भारत में घुस कर आतंकी अपनी जान जोखिम में भला क्यों डालेंगे, जब उनके लिए बांग्लादेश और नेपाल के निरापद रास्ते खुले हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ के प्रयासों की संख्या 2001 के 2417 से घट कर पिछले साल 600 पर आ गई है और इस साल मई तक केवल 72 मामले सामने आए हैं। आतंकियों ने अब राजस्थान सीमा पर भी जोखिम लेना बंद कर दिया है। पर खुद गृह मंत्रालय मानता है कि यह आंकड़ा दरअसल ध्यान बंटाने वाला है, क्योंकि अब आतंकियों के आने का रास्ता दूसरा है।
खुफिया रिपोर्टो के मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रशिक्षित गुर्गे अब पूरब की तरफ से नेपाल और उत्तर-पूर्व से जुड़ी बांग्लादेश सीमा को घुसपैठ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां के सुरक्षा इंतजाम कतई नाकाफी हैं और यहां की जनसांख्यिक परिस्थिति घुसपैठियों के हक में जाती है। असम के पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल अजय सिंह स्वीकार कर चुके हैं कि रोजाना छह हजार बांग्लादेशी इस राज्य में घुसपैठ करते हैं।
खुफिया सूत्र मानते हैं कि बांग्लादेशी लोगों के साथ ही आईएसआई के प्रशिक्षित 'जिहादी' भी आते हैं और उत्तर पूर्व के अन्य राज्यों-नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा आदि-में ठिकाना बना कर आसानी से घुल-मिल जाते हैं। खुफिया अधिकारी यह मानते हैं कि भारी संख्या में बांग्लादेशियों के घुसपैठ और उन्हें इस इलाके में बसने में मदद करना भी आईएसआई की योजना का अहम हिस्सा है। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि आईएसआई के उत्तर पूर्व में सक्रिय अलगाववादी संगठनों से भी बेहद नजदीकी संबंध हैं।
आतंकियों की शातिराना रणनीति का आलम यह है कि उनकी आमद पूरब से होती है, लेकिन तबाही का सामान अरब सागर के रास्ते पश्चिम के तटों पर उतरता है। कच्छ से केरल तक फैला पश्चिमी समुद्री क्षेत्र अचानक विस्फोटक या हथियार लाने का सबसे बड़ा मार्ग बन गया है। देश में विस्फोटकों के सबसे बड़े जखीरे पहले भी गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों से ही मिले। इन इलाकों में व्यापारिक समुद्री परिवहन की अधिकता उनके लिए सहजता पैदा करती है।
खुफिया सूत्र यह भी मानते हैं कि आतंकी दमन-दीव, लक्षद्वीप और बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह को भी आतंकी अपना अड्डा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि लक्षद्वीप, अंडमान और दमन-दीव और पुद्दुचेरि में अचानक सुरक्षा चौकियों की संख्या बढ़ा दी गई है।
खुफिया सूचनाओं के मद्देनजर, गृह मंत्रालय बांग्लादेश व नेपाल सीमा पर चौकसी बढ़ा रहा है और समुद्र की लहरों की पहरेदारी सख्त की जा रही है। लेकिन महाद्वीपीय आकार के इस देश में सीमाओं पर हर जगह सिपाहियों की तैनाती नामुमकिन है। दरअसल आतंकी मंसूबों को नाकाम करने के लिए बेहद सजग व चाक चौबंद खुफिया तंत्र और प्रभावी व त्वरित पुलिस तंत्र चाहिए। आधुनिक आतंक से लड़ाई का यही सबसे बड़ा हथियार है, मगर अफसोस! भारत में यह हथियार जंग खाकर भोथरा हो चुका है।

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