Monday, November 3, 2008

अखंडता के अद्भुत शिल्पी

सरदार पटेल के जन्म दिन पर राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में उनके अतुलनीय योगदान का स्मरण कर रहे हैं जगमोहन
दैनिक जागरण, ३१ अक्टूबर २००८, पिछले दिनों एक राष्ट्रीय दैनिक में खबर छपी कि आजमगढ़ में मुस्लिम पोलिटिकल काउंसिल ने सरदार पटेल को आतंकवादी बताया। इससे बेतुकी बात और कोई हो ही नहीं सकती। यह शायद केवल हमारे देश में संभव है कि स्वतंत्रता संग्राम के महानतम नेताओं और आधुनिक भारत के महानतम निर्माताओं में से एक के खिलाफ इस तरह के वाहियात और बेसिरपैर के आरोप मढ़े जा सकते हैं। अकसर भुला दिया जाता है कि पटेल संविधान सभा की अल्पसंख्यक उप समिति के अध्यक्ष थे। हमारे संविधान में अल्पसंख्यकों को प्राप्त भाषाई और सांस्कृतिक अधिकार संबंधी उदार प्रावधान उनकी सर्वग्राह्यं स्वीकार्यता को दर्शाते हैं। पटेल की पंथनिरपेक्षता में गांधीजी का अटूट विश्वास 24 अक्टूबर, 1924 को लिखे गए पत्र से स्पष्ट हो जाता है। यह पत्र महादेव देसाई ने सरदार पटेल के नाम तब लिखा था जब गांधीजी हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए 21 दिन के उपवास पर थे। महादेव लिखते हैं, ''गुजरात में हिंदू-मुस्लिम मोर्चे पर जो भी हो, जब तक आप वहां हैं, गांधीजी निश्चिंत हैं। अगर आपकी उपस्थिति के बाद भी वहां तूफान आता है तो बापू मान लेंगे कि उसे रोक पाना संभव नहीं था।'' आजाद भारत में ऐसा कोई नहीं है जिसने इतने कम समय में इतने अधिक क्षेत्रों में इतनी उपलब्धियां हासिल की हों, जितनी सरदार पटेल ने की। उनकी मृत्यु पर मैनचेस्टर गार्जियन ने लिखा, ''पटेल के बिना गांधी के विचार इतने प्रभावशाली नहीं होते तथा नेहरू के आदर्शवाद का इतना विस्तार नहीं होता। वह न केवल स्वतंत्रता संग्राम के संगठनकर्ता, बल्कि नए राष्ट्र के निर्माता भी थे। कोई व्यक्ति एक साथ विद्रोही और राष्ट्र निर्माता के रूप में शायद ही सफल होता है। सरदार पटेल इसके अपवाद थे।'' सरदार पटेल द्वारा 561 रियासतों को एक राष्ट्र में मिलाना यथार्थवाद और उत्तारदायित्व बोध की विजय है। इस महती कार्य के कारण उनकी तुलना चांसलर बिस्मार्क से की जाती है, जिन्होंने 19वीं सदी में जर्मनी को एकता के सूत्र में बांधा था, किंतु पटेल की उपलब्धियां बिस्मार्क से बढ़कर हैं।
बिस्मार्क को कुल दर्जनभर राज्यों से निपटना पड़ा था, जबकि पटेल ने 561 रियासतों का मसला सुलझाया। बिस्मार्क ने खून-खराबे के बल पर कार्य को अंजाम दिया, पटेल ने रक्तरहित क्रांति की। उन्होंने लोगों और अवसरों से निपटने में गजब की कार्य कुशलता का परिचय दिया। जब लोहा गरम था तभी चोट की। उन्होंने आठ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल तथा 8.6 करोड़ लोगों को भारतीय संघ में मिलाया। गांधीजी और लार्ड माउंटबेटन दोनों ने पटेल के महान योगदान की भूरि-भूरि सराहना की। गांधीजी ने कहा था कि रियासतों से निपटने का कार्य वास्तव में बहुत बड़ा था। मुझे पक्का विश्वास है कि पटेल के अलावा कोई अन्य इस काम को अंजाम नहीं दे सकता था। पटेल को 19 जून, 1948 को लिखे पत्र में लार्ड माउंटबेटन ने कहा था, ''इसमें शक नहीं है कि वर्तमान सरकार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रियासतों को भारतीय भूभाग में मिलाना था। अगर आप इसमें विफल हो जाते तो इसके भयावह परिणाम निकलते.सरकार की प्रतिष्ठा बढ़ाने में कोई अन्य इतना अहम योगदान नहीं दे सकता था, जितना योगदान राज्यों के संबंध में आपकी शानदार नीतियों ने दिया।'' पटेल ने पहले भारत को एक सूत्र में बांधने की शानदार योजना बनाई और फिर वह इसे मूर्त रूप देने की दिशा में दृढ़ता से आगे बढ़े। उन्होंने रियासतों में देशभक्ति का जज्बा पैदा किया और उन्हें याद दिलाया, ''हम भारत के इतिहास के महत्वपूर्ण दौर में हैं। एक सामूहिक प्रयास से हम देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं। जबकि एकता के अभाव में हमें नई विपदाओं का सामना करना पड़ेगा।'' उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि विद्रोह की सुगबुगाहट न होने पाए। उन्होंने भोपाल के नवाब की यह सलाह अस्वीकार कर दी कि कुछ राज्यों का समूह बनाकर उन्हें स्वतंत्र उपनिवेश के रूप में मान्यता दे दी जाए।
जब भारत के निंदक विंस्टन चर्चिल ने हैदराबाद के निजाम के विभाजनकारी खेल को यह कहकर बढ़ावा दिया कि यह साम्राज्य का पुराना और विश्वासपात्र सहयोगी है तो पटेल ने कहा, ''चर्चिल की दुर्भावना और विषभुजी जबान से नहीं, बल्कि सद्भाव से ही भारत के ब्रिटेन और राष्ट्रमंडल के अन्य सदस्यों से चिरस्थायी संबंध बनेंगे।'' उनका संदेश काम कर गया और भारत के मामलों में नुक्ताचीनी बंद हो गई। अलग-अलग तरह की रियासतों को भारत में मिलाने के बेहद जटिल मुद्दे पर पटेल के नजरिये में दृष्टि, चातुर्य, उदारता, दृढ़निश्चय और परिपक्व व्यावहार्यता का समावेश था। जब 1956 में निकिता ºुश्चेव भारत के दौरे पर आए तो उन्होंने खास तौर पर कहा, ''आपने रजवाड़ों को मिटाए बिना ही रियासतों को मिटा दिया।'' अगर जम्मू-कश्मीर भी पटेल को सौंप दिया जाता तो भ्रम और अंतर्विरोध पैदा नहीं होते और हम आज जिस क्रूरता के शिकार बन रहे हैं उससे बच जाते। पटेल ने शेख अब्दुल्ला का धौंसपट्टी का रुझान भांप लिया था और उन पर सही ढंग से काबू पाया। उन्हें कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का पछतावा था। उन्होंने 28 अक्टूबर, 1947 को पंडित नेहरू के रेडियो पर प्रसारित भाषण से 'संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में जनमत संग्रह' शब्द हटाने का पुरजोर प्रयास किया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इंडियन सिविल सर्विस दूसरे पक्ष के साथ थी। इस कारण यह कांग्रेसी नेताओं का कोपभाजन बनी हुई थी। नेहरू इसे न भारतीय, न नागरिक, न सेवा कहकर फटकारते थे। एक बार फिर पटेल की रचनात्मक प्रतिभा काम आई और उन्होंने मामले को संतोषजनक तरीके से निपटा दिया। पटेल सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का पर्याय थे। मरणोपरांत उनके पास जो संपत्तिमिली उसमें धोती, कुर्ता और एक सूटकेस था। आज भारत में हालात काबू से बाहर हो रहे हैं और भारतीय संघ लड़खड़ा रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय नेतृत्व को पटेल की रचनात्मक दृष्टि और दृढ़ता को अपनाना चाहिए, जो उन्होंने इतिहास के नाजुक मोड़ पर दिखाई थी।

देश पर भारी बांग्लादेश

बांग्लादेश के आतंकियों-घुसपैठियों की अनदेखी को देशघाती मान रहे हैं संजय गुप्त
दैनिक जागरण, १ नवम्बर २००८, असम में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने एक बार फिर आंतरिक सुरक्षा की पोल खोल कर रख दी। आतंकवाद दिन-प्रतिदिन वहशी होता जा रहा है, लेकिन हमारे राजनेता उस पर काबू पाने में पहले से अधिक नाकाम है। अब आतंकी देश के किसी भी हिस्से में बिना किसी भय के विस्फोट करने में कामयाब है। बेलगाम आतंकवाद को देखते हुए पुलिस और खुफिया विभाग की कार्यप्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता एक लंबे अर्से से महसूस की जा रही है, लेकिन कहीं कोई बदलाव होता नहीं दिखता। आंतरिक सुरक्षा का मौजूदा ढांचा इतना गया-बीता है कि उसके बल पर आतंकवाद को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। रही-सही कसर पुलिस और खुफिया एजेंसियों के कामकाज में राजनेताओं के हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी है। आज जब पुलिस को समाज की सुरक्षा के लिए कमर कस कर खड़ा होना चाहिए तब वह नेताओं के इशारों पर काम करने के लिए मजबूर है। बड़ी संख्या में पुलिस अधिकारी अच्छी तैनाती पाने के लिए नेताओं के चक्कर काटते देखे जा सकते है। जब उनका अधिकांश समय नेताओं की जी-हुजूरी करने में बीतेगा तब फिर वे कानून एवं व्यवस्था की ओर ध्यान कैसे दे सकते है?
असम के बम विस्फोटों के लिए पुलिस और खुफिया एजेंसियों की चूक से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यदि अतीत में जाया जाए तो पता चलेगा कि यह पूरा क्षेत्र हमेशा से अशात रहा है। राजनीतिज्ञों ने समाज को सही दिशा नहीं दी और उसके चलते अलगाववादी संगठन सक्रिय बने रहे, जिनमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ असम यानी उल्फा प्रमुख है। यहां उल्फा के अलावा कई अन्य अलगाववादी एवं उग्रवादी संगठन सक्रिय है। असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अवैध रूप से असम में आ बसे इन नागरिकों ने ऐसे संगठन भी बना लिए है जो शांति व्यवस्था के लिए खतरा है। असम में बांग्लादेश आधारित संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल इस्लामी अर्थात हुजी भी सक्रिय है। यह वही संगठन है जिसने कुछ समय पहले बांग्लादेश में एक ही दिन सैकड़ोंविस्फोट किए थे। भारत में अनेक आतंकी वारदातों में इसी संगठन का हाथ माना गया है। असम में बम विस्फोटों के लिए हुजी और उल्फा को जिम्मेदार माना जा रहा है। यद्यपि इन बम विस्फोटों की जिम्मेदारी एक गुमनाम से संगठन इस्लामिक सिक्योरिटी फोर्स-इंडियन मुजाहिदीन ने ली है, लेकिन उसका दावा गुमराह करने वाला भी हो सकता है। उल्फा ने इन बम विस्फोटों में अपना हाथ होने से इनकार किया है, लेकिन उस पर भरोसा करने का कोई कारण नहीं। जब तक बम विस्फोटों की जांच रपट सामने नहीं आ जाती तब तक किसी के दावे पर यकीन नहीं किया जा सकता।
पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेशी नागरिकों ने असम के सामाजिक चरित्र को इतना बदल दिया है कि राज्य के मूल निवासी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे है। मूल निवासियों और बांग्लादेशियों में रह रहकर टकराव भी होता है। पिछले माह बोडो आदिवासियों व बांग्लादेशियों के बीच हुए टकराव में करीब 50 लोग मारे गए थे और दो लाख लोगों को पलायन करना पड़ा था। एक समय असम गण परिषद ने बांग्लादेशियों को निकालने का आंदोलन छेड़ा था, लेकिन सत्ता में आने के बाद उसने उन्हे अपना वोट बैंक बनाना बेहतर समझा। कांग्रेस और वाम दल पहले से ही उन्हें अपना वोट बैंक बनाने की राजनीति कर रहे है। इसी कारण बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ पर लगाम नहीं लग रही। बांग्लादेशी असम के साथ-साथ पूर्वोत्तार के अन्य राज्यों और प.बंगाल में भी अच्छी खासी संख्या में है। उन्होंने मतदाता पहचान पत्र भी हासिल कर लिए है। वे कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक स्थिति में भी आ गए है। बांग्लादेशियों के प्रति राजनीतिक दलों के नरम रवैये का परिणाम यह है कि वे अन्य राज्यों और राजधानी दिल्ली में भी बढ़ते जा रहे है। वे सामान्य अपराधों से लेकर आतंकी घटनाओं में शामिल पाए गए है, पर उन्हे वोट बैंक बनाने की राजनीति जारी है। अब तो कुछ दल उनकी खुली वकालत करने लगे है।
भले ही बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर चौकसी बरतने का दावा किया जाता हो, लेकिन सीमा सुरक्षा बल उस पर पूरी तौर पर लगाम लगाने में सक्षम नहीं। यह स्वीकारोक्ति और किसी ने नहीं, हाल में सीमा सुरक्षा सुरक्षा बल के सेवानिवृत्ता महानिदेशक ने की थी। यह आश्चर्य की बात है कि चाहे पाकिस्तान से लगी सीमा हो या बांग्लादेश से-सीमा सुरक्षा बल घुसपैठ रोकने में समर्थ नहीं। सीमावर्ती राज्य सरकारे और केंद्रीय सत्ता ऐसे उपाय करने के लिए तैयार नहीं जिनसे सीमाओं को वास्तव में अभेद्य बनाया जा सके। घुसपैठ और विशेष रूप से बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ पर राजनीतिक दलों के शुतुरमुर्गी रवैये ने हुजी सरीखे आतंकी संगठनों और उन्हे बढ़ावा देने वाली आईएसआई जैसी संस्थाओं का काम आसान कर दिया है। चाहे बांग्लादेश के आतंकी संगठन हों अथवा पाकिस्तान के, वे भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने देने के लिए तैयार नहीं। अब तो सीमा पार के आतंकी संगठन देश के युवकों को गुमराह करने में जुट गए है। राजनीतिक दलों का रवैया उनके लिए मददगार साबित हो रहा है। हमारे ज्यादातर राजनीतिक दल जिसमें कांग्रेस से लेकर अनेक क्षेत्रीय दल शामिल है, आतंकवाद से लड़ने के लिए किसी भी स्तर पर तत्पर नहीं दिखते। इन दलों को यह भय सताता रहता है कि यदि आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए कोई कठोर कदम उठाए गए तो उनके वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। ऐसे दल मुस्लिम समाज को अपना सबसे बड़ा वोट बैंक समझते है। समस्या यह है कि मुस्लिम समाज यह समझने के लिए तैयार नहीं कि उसके कथित हितैषी राजनीतिक दल उसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
आज जब राजनीतिक दल हुजी, सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों के प्रति नरमी बरत रहे है तब कुछ हिंदू संगठनों के भी आतंकी रास्ते पर चलने की बात सामने आ रही है। यदि यह सिद्ध हो जाता है कि मालेगांव विस्फोट के लिए कथित हिंदू संगठन ही जिम्मेदार है तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं होगा। हिंदू युवकों का आतंक के रास्ते पर चलना यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि आतंकवाद को किसी पंथ या समुदाय विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता। यदि राजनीतिक-सामाजिक कारणों से समाज का एक वर्ग दूसरे वर्ग को चोट पहुंचाने की कोशिश करेगा तो इससे देश में अराजकता बढ़ेगी। यह सही समय है जब वोट बैंक की परवाह किए बगैर आतंकवाद को नियंत्रित करने के ठोस कदम उठाए जाएं। ऐसा न करने का अर्थ होगा विघटन और अराजकता को बढ़ावा देने की स्थितियां पैदा करना तथा समाज में दहशत का माहौल कायम होने देना। ध्यान रहे कि जो समाज भय और आतंक के साये में जीता है वह कभी प्रगति नहीं कर पाता। आज जो देश आतंकवाद पर काबू पाने में समर्थ नहीं और जहां आतंकी संगठन दहशत फैलाने में कामयाब है वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नरम अथवा विफल राष्ट्र समझे जा रहे है। बेहतर होगा कि देश के सभी राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के साथ-साथ कोरी बयानबाजी से ऊपर उठें और आतंकवाद को सबसे बड़े खतरे के रूप में देखकर उसके सफाए के लिए वास्तव में कमर कसें।

हाथ जोड़कर माफी मांगना गैर इस्लामिक

दैनिक जागरण, ३ नवम्बर २००८, देवबंद-सहारनपुर। इंसान चाहे किसी मजहब से ताल्लूक रखता हो लेकिन वह माफी मांगते वक्त अमूमन हाथ जोड़ लेता है। लेकिन दारुल उलूम हाथ जोड़कर माफी मांगने को एक सिरे से खारिज करता है। एक फतवे में साफ तौर पर उल्लेख किया गया है कि हाथ जोड़कर माफी नहीं मांगनी चाहिए क्योंकि इस्लाम धर्म में हाथ जोड़कर माफी मांगने का तरीका साबित नहीं।
दारुल उलूम के आन लाइन फतवा विभाग से सात अक्टूबर 2008 को एक व्यक्ति ने फतवा मांगा कि क्या किसी से हाथ जोड़कर माफी मांगी जा सकती है? संख्या 1616-1382/ब के माध्यम से फतवा विभाग के मुफ्ती-ए-कराम ने शरीयत की रोशनी में फतवा दिया है कि हाथ जोड़कर माफी मांगना इस्लाम का तरीका नहीं है। इस्लाम में यह तरीका साबित नहीं। इसलिए मुसलमानों को ऐसा नहीं करना चाहिए। फतवे का समर्थन करते हुए अन्य मुफ्ती-ए-कराम का कहना है कि माफी मांगने के अन्य तरीके भी हैं। जबान से भी अपने किये पर शर्मिन्दगी का एहसास करते हुए माफी मांग सकते हैं जरूरी नहीं कि हाथ जोड़कर ही माफी मांगी जाए। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि इस्लाम धर्म के मुताबिक हाथ जोड़कर माफी नहीं मांगनी चाहिए।

मुस्लिमों का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं : बुखारी

दैनिक जागरण, २ नवम्बर २००८, चांदपुर (बिजनौर)। आतंकवादी का कोई धर्म नही होता, उसका उद्देश्य सिर्फ मात्र तबाही मचाना होता है। आतंकवादियों की आड़ में मुस्लिमों का उत्पीड़न बर्दाश्त नही किया जायेगा। यह बात दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने रविवार को एक विवाह समारोह में बातचीत के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां हर बार सीरियल बम ब्लास्ट के मास्टर माइंड को पकड़ का दावा करती है, लेकिन देश में हो रही बम ब्लास्ट की वारदातों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रही। हर विस्फोट की घटना के बाद सुरक्षा एजेंसियां मुस्लिमों का उत्पीड़न शुरू कर देती हैं, किंतु अब मुस्लिमों का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने ने कहा की यदि आवश्यकता पड़ी, तो मुस्लिम समाज अपने शोषण के विरोध में जेल भरने से भी पीछे नही हटेगा। लड़ाई हथियारों से नही, बल्कि हौंसले से लड़ी जाती है। उन्होंने कांग्रेस, बसपा एवं सपा को मुस्लिम विरोधी करार देते हुए कहा की तीनों राजनीतिक पार्टी के शासन में मुस्लिमों के ऊपर अत्याचार बढ़े है। उन्होंने मुस्लिम समाज के लोगों से राजनीतिक पार्टियों पर विश्वास करने के स्थान पर अपनी सियासत व ताकत दिखाने का आह्वान किया।

योगी आदित्यनाथ पर मुकदमा

दैनिक जागरण,०२ नवम्बर 2008, गोरखपुर। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और सदर सांसद योगी आदित्यनाथ, एमएलसी वाईडी सिंह, नगर विधायक डा। राधामोहन दास अग्रवाल, महापौर अंजू चौधरी तथा पूर्व मंत्री शिव प्रताप शुक्ल के खिलाफ कैंट पुलिस ने रविवार को हत्या, डकैती तथा भड़काऊ भाषण देने का मुकदमा दर्ज किया।
आरोपियों में हिंदू युवा वाहिनी, भारतीय जनता पार्टी, व्यापार मण्डल गोरखपुर के पदाधिकारी और हजारों कार्यकर्ता भी शामिल हैं। पुलिस ने यह कार्रवाई दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 के अंतर्गत न्यायालय के आदेश पर किया है।
कैंट थाने में मुकदमा शाम साढ़े चार बजे अपराध संख्या 2776/08 पर दर्ज किया गया। इस मामले में योगी सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ धारा 153ए, 153बी, 143, 147, 435, 436, 427, 395, 302, 295, 295बी, 452 आईपीसी आदि के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है।
बता दें कि राजघाट थाना क्षेत्र के तुर्कमानपुर निवासी परवेज परवाज ने सीजेएम की अदालत में प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया था कि 27 जनवरी 07 को रात आठ बजे सदर सांसद योगी आदित्यनाथ, नगर विधायक डा. राधामोहन दास अग्रवाल, एमएलसी डा. वाईडी सिंह, महापौर अंजु चौधरी, पूर्व मंत्री शिव प्रताप शुक्ल और हियुवा, भाजपा व व्यापार मंडल गोरखपुर के पदाधिकारी तथा कार्यकर्ता रेलवे स्टेशन के सामने महाराणा प्रताप की प्रतिमा के समक्ष 'चेतावनी सभा' नाम से सभा कर रहे थे।
सभा को संबोधित करते हुए भड़काऊ भाषण दे रहे थे। वे ताजियों और मुसलिम धर्मस्थलों को जला डालने के लिए भीड़ को ललकार रहे थे। वह भी तब जबकि उस दिन शहर के तीन थाना क्षेत्रों में क‌र्फ्यू लगा था और शेष हिस्से में धारा 144 के तहत सभा वगैरह करने पर रोक लगी हुई थी। सभा के बाद पुलिस की मौजूदगी में मशाल जुलूस निकाला गया। इस दौरान योगी समर्थक आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे।
योगी के उकसावे पर उनके समर्थकों ने जगह-जगह मुसलमानों के मकानों, वहां खड़े वाहनों पर हमला किया और आगजनी की, जिससे भारी क्षति हुई। इसी दौरान राजघाट थाना क्षेत्र में हावर्ट बंधे पर राशिद नामक युवक की हत्या कर दी गई थी।
प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करने के बाद अदालत ने सदर सांसद व अन्य लोगों के खिलाफ उक्त धाराओं में मुकदमा दर्ज कर आख्या प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। आदेश के कई दिन बाद भी रपट दर्ज न होने पर वादी ने शनिवार को अदालत में एक प्रार्थना पत्र देकर रपट दर्ज करने की गुहार लगाई थी जिस पर अदालत के कड़े रुख के बाद पुलिस ने रपट दर्ज करने की कार्रवाई की है।
न डरेंगे न भागेंगे: योगी

मुकदमा दर्ज किए जाने के संबंध में पूछे जाने पर सदर सांसद योगी आदित्य नाथ ने जागरण से कहा कि इस्लामिक आतंकवाद हमसे घबराया हुआ है। कुछ लोग हमें परेशान करने के लिए गलत तथ्यों के आधार पर हमारे खिलाफ यह मुकदमा दर्ज कराने में सफल हो गए हैं लेकिन इससे न तो हम डरेंगे और न ही भागेंगे। हमें कोर्ट और कानून पर पूरा भरोसा है।
कोर्ट के समक्ष सही तथ्यों को प्रस्तुत किया जाएगा। अपने आप दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। सत्य और असत्य की लड़ाई में हमारी विजय सुनिश्चित है।

Saturday, November 1, 2008

साध्वी के साथ शिवसेना, देगी कानूनी मदद

नवभारतटाइम्स।कॉम ,1 Nov 2008,मुंबईः शिवसेना महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर को हुए बम ब्लास्ट में मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के समर्थन में खुलकर आ गई है। शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में कहा गया है कि पार्टी प्रज्ञा को कानूनी मदद मुहैया करवाएगी। शिवसेना प्रज्ञा के साथ इस मामले के अन्य आरोपियों की भी मदद करेगी।
'सामना' में कहा गया है कि जब तक प्रज्ञा पर आरोप साबित नहीं हो जाते, तब तक उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। शिवसेना ने इसके लिए प्रज्ञा की कानूनी मदद करने की बात कही है। गौरतलब है कि पुलिस प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत तीन आरोपियों का शुक्रवार को ब्रेन मैपिंग, नार्को आदि टेस्ट करवा चुकी है।

Friday, October 31, 2008

हसनपुर में पशुओं की खाल, मांस समेत दो धरे

दैनिक जागरण, २५ अक्टूबर २००८, हसनपुर(ज्योतिबाफूलेनगर) : तहसील क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक गोवंशीय पशुओं की खाल, मांस व छह जानवरों समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मुखबिर की सूचना पर हसनपुर कोतवाली प्रभारी ने ग्राम जयतौली में अशरफ के घर पर पुलिस बल के साथ छापा मारा। इसमें एक दर्जन से अधिक गोवंशीय पशुओं की खाल तथा दो पशुओं का मांस बरामद हुआ। पुलिस को देख कारोबारी भाग निकले। पुलिस ने दो जीवित बछड़े़ भी आरोपियों के घर से बरामद किए हैं।
उधर रहरा चौकी पुलिस ने भी क्षेत्र के ग्राम बुरावली में हसीन के घर पर छापा मारकर गोवंशीय पशु का मांस, एक छुरी, कुल्हाड़ी, दाव सहित रशीद निवासी बांसका खुर्द को मौके से गिरफ्तार किया है। हसीन निवासी बुरावली, मुस्तकीम व जमील निवासी मोहल्ला कोर्ट पूर्वी हसनपुर घर की दीवार फांदकर भाग निकले।
आदमपुर : पुलिस ने चार गोवंशीय पशुओं सहित ग्रामीण को गिरफ्तार कर जेल भेजा है। गिरफ्तार आरोपी ग्राम खरपड़ी का रफीक है।

यूपीडेस्क::बिना नंबर की बुलेरो से बारह कुंतल मांस पकड़ा

दैनिक जागरण , २५ अक्टूबर २००८, अमरोहा(ज्योतिबाफूलेनगर):गांव अम्बरपुर तिराहे पर पुलिस ने घेराबंदी कर बगैर नंबर की बुलेरो पर सवार तीन तस्करों को गाय के बारह कुंतल मांस के साथ धर दबोचा। मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को पुलिस ने जेल भेज दिया है।
मुखबिर की सूचना पर देहात थाना पुलिस ने अमरोहा-पाकबड़ा मार्ग पर बगैर नंबर की बुलेरो पकड़ कर वाहन चालक डिडौली कोतवाली क्षेत्र के गांव पायंतीकलां निवासी बादशाह पुत्र शब्बीर ,साजिद पुत्र शाहिद एवं भूरा पुत्र मोहम्मद उमर को हिरासत में ले लिया। तलाशी में वाहन में बोरों में भरा बारह कुंतल गाय का मांस तथा दो छुरी भी मिलीं।
पुलिस उपाधीक्षक संजय रॉय ने बताया कि तस्करों ने अपने घर ही गाय काटीं थीं व थाना क्षेत्र के गांव अम्बरपुर मांस लेकर जा रहे थे कि इस बीच हत्थे चढ़ गए। उन्होंने बताया कि वाहन के संबंध में कोई जानकारी आरोपी नहीं दे पाए। उसके असली मालिक तक पहुंचने के लिए टीम लगा दी गई है। आरोपियों के खिलाफ गौ वध अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत कर उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें सुनवाई के बाद जेल भेज दिया।

नजीबुद्दौला के किले पर थले की झोपड़ी फूंकी, तनाव

दैनिक जागरण,३१ अक्टूबर २००८, नजीबाबाद(बिजनौर)। नजीबाबाद गांव महावतपुर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की नापाक कोशिश की गई। नवाब नजीबुद्दौला के किले की एक छोर की दीवार पर बने थले की झोपड़ी फूंकने से गांव में तनाव पैदा हो गया। महावतपुर के ग्रामीणों ने झोपड़ी फूंकने के एक आरोपी को रंगे हाथों धर दबोचा। जूते-चप्पल से पिटाई के बाद ग्रामीणों ने आरोपी को पुलिस को सौंप दिया। ग्रामीणों ने बताया कि झोपड़ी फूंकने के महिला सहित तीन अन्य आरोपी फरार हो गए। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई।

गुरुवार की शाम को नवाब नजीबुद्दौला के किले के एक छोर पर बने थले की झोपड़ी धू-धू कर जल उठी, जिससे उसमें रखा सामान जल गया। किले में खेल रहे समीपवर्ती गांव महावतपुर के कुछ युवक झोपड़ी को जलता देख दौड़कर मौके पर पहुंचे। युवकों को आते देख झोपड़ी के पास मौजूद एक व्यक्ति भागने लगा, जिसे युवकों ने पकड़ लिया। युवक आरोपी को महावपतपुर गांव में ले गए। गुस्साए ग्रामीणों ने उक्त आरोपी की जमकर धुनाई की। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि उक्त व्यक्ति ने झोपड़ी में आग लगाई है। ग्रामीणों के अनुसार उसके साथ महिला सहित तीन अन्य लोग भी थे, जो मौके से फरार हो गए।

ग्रामीणों ने बताया कि बालकिशनपुर शेरकोट निवासी थम्मनदास ने उक्त स्थान पर चालीस दिनों तक तपस्या की थी। जहां ग्रामीणों की मदद से झोपड़ी डाली गयी थी। थम्मन दास दीपावली से पहले कुछ दिनों के लिए वे घर चले गए हैं। घटना को लेकर गांव में तनाव व्याप्त है। झोपड़ी फूंकने की सूचना मिलते ही कोतवाल एमपी अशोक पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए। पुलिस ने सबसे पहले आरोपी को हिरासत में ले लिया। पुलिस पूछताछ में आरोपी ने अपना नाम जाफर अली निवासी सब्नीग्रान बताया। पुलिस के सामने उसने झोपड़ी फूंकने की बात स्वीकार की। उसने बताया कि वह किले में बनी मजार पर दुआ मांगने गया था।

कोतवाल एमपी अशोक ने बताया कि उक्त आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। कोतवाल ने घटना में अन्य लोगों के शामिल होने से इनकार किया।

मलेशिया: योग पर बैन को लेकर बहस

दैनिक जागरण, ३१ अक्टूबर २००८, कुआलालंपुर। मलेशिया में योग पर प्रतिबंध को लेकर विभिन्न धर्मो के विद्वानों में बहस छिड़ गई है। इस बहस में चिकित्सक और योगकर्मी भी शामिल हो चुके है।
संभावना इस बात की है मलेशिया की 'नेशनल फतवा काउंसिल' मुसलमानों के योग करने पर प्रतिबंध लगा सकती है। हालांकि इस संबंध में अब तक कोई ऐलान नहीं हुआ है।
केबांगसान विश्वविद्यालय में इस्लामिक अध्ययन केंद्र के प्राध्यापक जकारिया स्तपा के मुताबिक योग का मूल संबंध हिंदू धर्म से है इसलिए इसका अभ्यास करने से मुसलमान इस्लाम की शिक्षा से विमुख हो सकते हैं।
हिंदू विद्वानों का कहना है कि योग को धर्म से नहीं जोड़ना चाहिए। इसके साथ ही चिकित्सक और योगकर्मी भी योग को धर्म से जोड़े जाने को उचित नहीं मानते।
'मलेशियन मुस्लिम सोलिडेरिटी मूवमेंट' के अध्यक्ष जुल्किफली मोहम्मद का कहना है कि योग एक व्यायाम है और इससे दिमाग को शांति मिलती है। इसमें इस्लाम से विमुख करने वाली कोई बात नहीं है।
समाचार पत्र 'न्यू स्ट्रेट्स टाइम्स' में सुलेहा मेरिकवन नामक एक मुस्लिम महिला ने कहा है कि जब उनका इस्लाम में गहरा यकीन है तो वह योग से कैसे खत्म हो सकता है। वह कई वर्षो से योगाभ्यास कर रही है। 'मलेशिया हिंदू संगम' के अध्यक्ष ए. वैथलिंगम का कहना है कि योग को कई देशों में धर्म और संस्कृति से अलग स्वीकार किया गया है।