Saturday, March 15, 2008

आस्था पर अनगिनत हमले

श्रीराम और भारतीय संस्कृति के अपमान के पीछे सोची-समझी रणनीति देख रहे हैं हृदयनारायण दीक्षित

राष्ट्रीय आपदा की घड़ी है। भारतीय संस्कृति, इतिहास और आस्था पर हमलों की बाढ़ है। हिंदू आहत हैं। कांग्रेस और मा‌र्क्सवादी समूह श्रीराम को काव्य कल्पना मानते हैं। केंद्र ने रामसेतु मसले पर अपने हलफनामे में उन्हें कल्पना बताया था। गजब का राष्ट्रीय प्रतिकार हुआ। हलफनामा वापसी का ऐलान हुआ। केंद्र ने नया हलफनामा बनाया। नए हलफनामे में भी श्रीराम के अस्तित्व पर प्रश्नवाचक चिह्न है। केंद्र सरकार के खास घटक द्रमुक के प्रमुख श्रीराम को गाली दे चुके हैं। श्रीराम इतिहास हैं, सच्चाई हैं, राष्ट्र-जीवन की श्रद्धा हैं। चीन के लिऊ ताओत्स किंग में श्रीराम हैं। थाई देश की रामकियेन, इंडोनेशिया की ककविन,लाओस की फालाम और पोम्मचाक जैसी प्रतिष्ठित रचनाएं श्रीराम की अंतरराष्ट्रीय साक्ष्य हैं। बावजूद इसके दिल्ली विश्वविद्यालय की बीए द्वितीय वर्ष की किताब कल्चर इन एंशिऐंट इंडिया में राम, सीता और हनुमान पर असभ्य टिप्पणियां हैं। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से एक संस्था द्वारा जारी भड़काऊ सीडी में श्रीराम को हत्यारा दिखाया जा रहा है। आस्था के धारावाहिक अपमानों से हिंदू गुस्से में हैं। असुरक्षा बोध भी बढ़ा है। संस्कृति ही राष्ट्र की प्राण ऊर्जा होती है। डा.अंबेडकर ने संस्कृति को ही भारतीय एकता का प्रमुख तत्व बताया था। राममनोहर लोहिया ने श्रीराम को उत्तर-दक्षिण एकता का देवता बताया। उन्होंने कहा कि राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है। उन जैसा मर्यादित व्यक्तित्व कहीं और नहीं-न इतिहास में, न कल्पना में। लोहिया ने चित्रकूट में रामायण मेला लगवाया और कहा कि राम, रामायण और तुलसी का महत्व हमारे सांस्कृतिक जीवन में सर्वोपरि है। महात्मा गांधी ने भारत के लिए राम राज्य का प्रतीक चुना था। दुनिया में ढेर सारी राजनीतिक प्रणालियां हैं। तमाम तरह के संविधान हैं, लेकिन राम राज्य तो बस एक ही था। राम भारत के मन की अभीप्सा हैं। वाल्मीकि ने रामायण में श्रीराम के गुण बताए, वे नित्य प्रशांत हैं, स्थितप्रज्ञ हैं, मृदुभाषी-प्रियंवद हैं। क्रोध पर विजयी हैं। दिक्-काल के ज्ञाता हैं। वे अर्थशास्त्री हैं। वे लोकसंग्रही हैं, दुष्टों के निग्रही भी हैं। वे सर्वलोकप्रिय हैं। काल उनके पीछे चलता था। दिल्ली विश्वविद्यालय की किताब को लेकर जबर्दस्त प्रदर्शन हुए। सरकारी हलफनामे और रामसेतु को लेकर भी राष्ट्रीय उत्ताप है। सच्ची रामायण के प्रश्न पर उत्तर प्रदेश विधानसभा में संपूर्ण विपक्ष ने एक स्वर से विरोध किया। राम विरोधी ऐसी सभी घटनाओं के पीछे वोट की राजनीति है। सच्ची रामायण के लेखक रामास्वामी नायकर पहले कांग्रेसी थे। कांग्रेस में मनचाही प्रतिष्ठा नहीं मिली। उन्होंने द्रविण कड़गम का रास्ता पकड़ा। निशाना बने श्रीराम। श्रीराम की मूर्तियों को अपमानित किया गया। करुणानिधि ने श्रीराम को पियक्कड़ कहा। संप्रग ने उनसे पूछताछ नहीं की। श्रीराम का चित्र संविधान की मूल प्रति पर भी है। भारत का लोकजीवन सीता को माता कहता है। दिल्ली विश्वविद्यालय की किताब के अनुसार रावण और लक्ष्मण ने सीता से दु‌र्व्यवहार किया। सीडी में भी श्रीराम का अपमानजनक चित्रण है। सहिष्णुता की भी एक मर्यादा रेखा होती है। डेनमार्क में छपे कार्टून पर भारत में आग लग गई। तसलीमा नसरीन के सहज लेखन पर हिंसा हो गई। अल्पसंख्यक संप्रदाय की आस्था ही यहां की सरकारों के लिए आस्था है। बहुसंख्यक संप्रदाय की आस्था के साथ खिलवाड़ जारी है। श्रीराम और भारतीय संस्कृति के अपमान के पीछे एक सोची-समझी अंतरराष्ट्रीय रणनीति है। ईसाई साम्राज्यवाद और इस्लामी विस्तारवाद भारत की हिंदू संख्या घटाना चाहते हैं। ईसाई मिशनरियां लंबे अर्से से हिंदुत्व को कमतर और ईसाइयत को श्रेष्ठतम बता रही हैं। इस्लामी विस्तारवाद भारत की हिंदू बहुसंख्या से निबटने में असफल रहा। भारत को इस्लामी मुल्क बनाना उनका पुराना ख्वाब है, लेकिन भारतीय संस्कृति, राम, कृष्ण और शिव जैसे सम्मोहक चरित्र और प्रखर हिंदुत्ववादी चेतना दोनों के मार्ग में बाधा है। संप्रग सरकार के चार बरस ऐसी अंतरराष्ट्रीय ताकतों के लिए मुफीद रहे। अंतरराष्ट्रीय ईसाई-इस्लामी ताकतों ने भारत को विशेष सहूलियत वाला क्षेत्र पाया। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में पहली दफा बजट भी सांप्रदायिक हो गया। मुस्लिम बहुल इलाकों में बिजली, हिंदू बहुल गांव में अंधाकुप। क्या राम के अपमान वाली किताब का संयोजन प्रधानमंत्री की पुत्री डा. उपदिंर सिंह ने यों ही किया? यह सब कुछ भारत विरोधी अंतरराष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है। भारत सारी दुनिया की आंख की किरकिरी है। भारतीय राष्ट्र भाव का मूल स्त्रोत सतत जिज्ञासा, विज्ञान और दर्शन है। आस्था और विज्ञान का ऐसा समन्वय दुनिया के किसी दर्शन में नहीं पाया जाता। भारतीय संस्कृति और आस्था को हिलाकर ही ईसाइयत/इस्लाम का वर्चस्व बढ़ाया जा सकता है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन ने भारतीय राष्ट्र-भाव को आसमान तक पहुंचाया था। राम भारत का मन हैं, सत्य हैं, सौंदर्य हैं और लोककल्याण का बिंब, प्रतिबिंब हैं। राम और राष्ट्रीयत्व तथा राष्ट्रीयत्व और हिंदुत्व पर्यायवाची हैं। सो श्रीराम ही सबका निशाना हैं। भारत प्राचीन काल से जनतंत्री है, पंथनिरपेक्ष भी है। भारत की छद्म सेकुलर राजनीति घोर सांप्रदायिक है। हिंदू आस्थाओं का अपमान और ईसाई, इस्लामी आस्थाओं का सम्मान सभी गैर भाजपा दलों का मुख्य एजेंडा है। हिंदुत्व को सांप्रदायिक और कट्टरपंथी अलगाववाद को राष्ट्रीयत्व बताया जा रहा है। श्रीराम को गाली देकर क्या मिलेगा? श्रीराम से प्रेरित होना, प्रेरणा लेना, तद्नुसार संयम और मर्यादा वाला राष्ट्रजीवन गढ़ना आधुनिक भारत का कर्तव्य है। आस्था का सम्मान विश्व सभ्यता की न्यूनतम शर्त है। ध्यान रहे कि आस्था तर्क से नहीं चलती। आस्था की जड़ें इतिहास में हैं। आस्था जांचती है, परखती है। द्वंद्व, प्रतिद्वंद्व चलते हैं। करोड़ों तर्क चलते हैं, तब कोई व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम बनता है। (लेखक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री हैं), दैनिक जागरण , March 14, Friday , 2008



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