मलेशिया में हिंदुओं के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ भारत सरकार की चुप्पी पर निराशा जता रहे हैं प्रकाश सिंह
मलेशिया में भारतीय मूल के हिंदुओं का जिस तरह दमन हो रहा है वह बड़े खेद का विषय है। उससे भी अधिक शर्म की बात यह है कि भारत की करीब सभी पार्टियों ने इस विषय पर मौन साध रखा है। भारत सरकार तक ने मलेशिया में भारतीय मूल के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के सामने आंख पर जैसे पट्टी बांध ली है। लगता है कि भारतीयों और विशेष तौर पर बहुसंख्यक समुदाय को कहीं भी अपमानित किया जा सकता है। अतीत में तालिबान ने अफगानिस्तान से हिंदुओं को खदेड़ा। बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हुए। इससे पहले युगांडा और फिजी में भारतीय मूल के लोगों के साथ अन्याय की कहानी इतिहास के पन्नों में लिखी जा चुकी है। उसी क्रम में अब मलेशिया का नाम जोड़ा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि मलेशिया में भारतीय मूल के लोगों में काफी समय से असंतोष की चिंगारी भड़क रही थी। ये भारतीय ब्रिटिश हूकूमत के दौरान वहां काम के लिए भेजे गए थे। इनमें लगभग 70 प्रतिशत तमिल श्रमिक थे। बाद में कुछ संपन्न तमिल भी गए, जिन्होंने व्यापार में अपनी पहचान बनाई। फिर भी आर्थिक दृष्टि से भारतीय मूल के लोगों के साथ मलेशिया में भेदभाव किया जाता रहा है। राजनीतिक दृष्टि से भी उनका कोई वजन नहीं है। 1957 में राजकीय सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व करीब 40 प्रतिशत था। यह 2005 तक गिरकर मात्र 2 प्रतिशत रह गया। 1980 के बाद मलेशिया में कट्टरपंथियों की पकड़ बराबर बढ़ती गई। मलेशिया में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया कई वर्षो से चली आ रही थी। दलील यह दी जाती है कि ये मंदिर सरकारी या प्राइवेट जमीन पर बने हैं, इसलिए इनका गिराया जाना आवश्यक है, पर तथ्य यह है कि जो मंदिर गिराए गए वे वर्षों से बने थे। कुछ तो सौ वर्षो से भी अधिक पुराने थे। करीब 150 मंदिर अब तक धराशायी किए जा चुके हैं। यह नीति मस्जिदों पर नहीं लागू की जाती। पिछली 30 अक्टूबर को जावा के पुराने महामरीअम्मन मंदिर को ध्वस्त किया गया। इससे स्थानीय हिंदुओं में भयंकर रोष हुआ। तत्पश्चात हिंदू राइट्स एक्शन फोर्स (हिंड्राफ), जो मलेशिया के हिंदू संगठनों का एक समूह है, ने तय किया कि एक रैली निकाली जाएगी। पुलिस ने प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी, फिर भी करीब बीस हजार व्यक्ति क्वालालंपुर में पेट्रोनास टावर के पास एकत्र हुए। वे महात्मा गांधी का पोस्टर लेकर चल रहे थे-यह दिखाने के लिए कि वे अहिंसा में विश्वास करते हैं। पुलिस सख्ती से पेश आई। आंसू गैस व पानी की धार से उन्हें तितर-बितर किया गया। प्रदर्शनकारियों के नेताओं को हिरासत में लिया गया। हिंड्राफ के पांच प्रमुख नेताओं को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार किया जा चुका है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में रखा जा सकता है। इन नेताओं के विरुद्ध देशद्रोह का आरोप है। पुलिस कार्रवाई का समर्थन करते हुए मलेशिया के प्रधानमंत्री ने कहा कि वह स्वतंत्रता को अहमियत देते हैं, पर शांति व्यवस्था बनाए रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है। मलेशिया की पुलिस ने हिंदू नेताओं पर श्रीलंका के लिट्टे से भी गठबंधन का आरोप लगाया है। इसका हिंदू नेताओं ने कड़े शब्दों में खंडन किया है। स्पष्ट है कि पुलिस ने हिंदू प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध आतंकवाद का झूठा आरोप इसलिए लगाया है ताकि उनकी करने कार्रवाई को बल मिल सके। सच यह है कि मलेशिया में भारतीयों ने राजनीतिक, आर्थिक, मजहबी भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई थी। मंदिरों के लगातार तोड़े जाने से उनकी भावनाओं को बहुत ठेस पहुंची थी, कई मंदिरों से तो उन्हें मूर्तियां भी नहींउठाने दिया और उन्हें तोड़ दिया गया। भारतीयों के पास सड़क पर उतरकर अपना विरोध प्रकट करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, परंतु मलेशिया सरकार ने इस लोकतांत्रिक विरोध का दमन किया। मानवाधिकारों के उल्लंघन का नंगा नाच हुआ। भारत सरकार ने शुरू में तो कुछ ऐसे बयान दिए जिससे लगा कि वह भारतीय मूल के लोगों के हितों की रक्षा करेगी, पर जब मलेशिया सरकार ने कहा कि यह उनका आंतरिक मामला है और खासतौर पर जब भारतीयों पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया तब हमारे नेता पीछे हट गए। सरकार में बैठे लोगों ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि भारतीयों पर लगे आरोपों में कितनी सच्चाई है? अन्य पार्टियों का मौन भी समझ से बाहर है। भाजपा अपनी अंर्तकलह से शायद इतनी परेशान है कि उसे इस विषय पर सोचने का समय ही नहीं मिला। विश्व हिंदू परिषद को तो जैसे लकवा मार गया है। शंकराचार्य सोए हुए हैं। धर्मगुरुओं ने भी इस मुद्दे पर कुछ कहना आवश्यक नहीं समझा। मानवाधिकार संगठन तो तभी उत्तेजित होते हैं जब अल्पसंख्यकों या आतंकवादियों के मानवाधिकारों की बात आती है। यह संतोषजनक होने के साथ-साथ भारत के लिए शर्म की बात है कि ब्रिटेन और अमेरिका में भारतीय मूल के हिंदुओं ने मलेशिया में हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई है। ब्रिटेन में लेबर फ्रेंड्स आफ इंडिया के चेयरमैन स्टीफेन पाउंड और विभिन्न पार्टियों के सांसदों ने ब्रिटिश सरकार से अनुरोध किया है कि वह मलेशिया सरकार पर मंदिरों को न तोड़ने के लिए दबाव डाले। अमेरिका के इंटरनेशनल रिलिजस फ्रीडम से संबंधित कमीशन ने राष्ट्रपति बुश को लिखकर कहा है कि वह मलेशिया सरकार से तुरंत कहें कि मंदिरों की पवित्रता बनाए रखी जाए। गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी कहा कि अमेरिकी सरकार यह अपेक्षा करती है कि जिन लोगों के विरुद्ध मलेशियाई सरकार कार्रवाई कर रही है उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान किया जाए, लेकिन हमारे अपने देश में भारतीय मूल के लोगों के पक्ष में कोई सशक्त आवाज नहीं उठ रही है और उनके पक्ष में केवल पश्चिम में लोग बोल रहे हैं। यह स्थिति अपने आत्मसम्मान के प्रति हमारी प्रतिबद्घता पर सवाल उठाती है। (लेखक उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं) , दैनिक जागरण, January 1, Tuesday, 2008
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