हिंदू हितों (सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक) को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाली घटनाओं से सम्बंधित प्रमाणिक सोत्रों ( राष्ट्रिय समाचार पत्र, पत्रिका) में प्रकाशित संवादों का संकलन।
Friday, August 8, 2008
Lalu & Mulayam bats for SIMI
देश को झकझोरता जम्मू
जम्मू जल रहा है। जम्मू आग की आंच से दिल्ली में दहशत है। प्रधानमंत्री ने सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक की। तय हुआ कि सर्वदलीय टीम जम्मू जाएगी, जायजा लेगी, लेकिन इससे होगा क्या? हिंदू भावना के अपमान का लावा अर्से से पूरे देश में सुलग रहा है। पहले प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय संपदा पर मुसलमानों का पहला अधिकार बताया, हिंदू आहत हुए। फिर केंद्र ने श्रीराम को कल्पना बताया, पूरा देश भभक उठा। सरकारें आस्था प्रतीकों का इतिहास बताने का अधिकार नहीं रखतीं। मनमोहन सरकार ने अनाधिकार चेष्टा की। उसने रामसेतु को तोड़ने का आरोप भी राम पर मढ़ दिया गया। हिंदू मन की आग फिर भभकी। हज यात्रियों को ढेर सारी सुविधांए हैं, लेकिन अमरनाथ यात्रियों के विश्राम के लिए दी गई 40 हेक्टेयर जमीन भी अलगाववादियों के बर्दास्त के बाहर हो गई। वे आंदोलन पर उतारू हुए। उनकी बेजा मांग और आंदोलन के विरूद्ध सेना नहीं बुलाई गई। उल्टे केंद्र और राज्य ने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन जायज मांग वाले जनआंदोलन को कुचलने के लिए सेना भी बुलाई गई। पुलिस बल टूट पड़ा है। कर्फ्यू है, देखते ही गोली मारने के आदेश हैं, पुलिस और सेना की फायरिंग है। मीडिया पर पाबंदी है। मौलिक अधिकार रसातल में हैं। अघोषित आपातकाल है बावजूद इसके जनसंघर्ष जारी है।
सर्वदलीय बैठक ने समस्या का सांप्रदायिकीकरण न करने की अपेक्षा की है। सांप्रदायिक तुष्टीकरण की राजनीति ही सारे फसाद की जड़ है। बुनियादी सवाल यह है कि पंथनिरपेक्ष संविधान की पंथनिरपेक्ष सरकारें हज जैसी मजहबी यात्रा पर राजकोष लुटाती हैं तो अमरनाथ यात्रियों को मात्र 40 हेक्टेयर जमीन भी अस्थाई रूप से देने में अलगाववादियों के साथ क्यों खड़ी हो जाती हैं? जम्मू कश्मीर मंत्रिपरिषद ने ही सर्वसम्मति से जमीन देने का निर्णय लिया था। बैठक में कांग्रेस और पीडीपी के मंत्री भी शामिल थे। जमीन का एलाटमेंट अस्थाई था। यात्रा के बाद जमीन वन विभाग को लौट जानी थी। श्राइन बोर्ड वहां अस्थाई विश्राम ढांचा ही बना सकता था, लेकिन अलगाववादियों, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस आदि ने दुष्प्रचार किया कि बोर्ड कश्मीर के बाहरी 'भारतीयों' के लिए आवास बना रहा है। यह भी कि कश्मीरी लोगों को खत्म करने के लिए यहां इसराइल बनाया जा रहा है। जम्मू कश्मीर विधानसभा में तद्विषयक विधेयक पर कोई विरोध नहीं हुआ। इसलिए सरकारी आदेश की वापसी आसान नहीं थी। केंद्र ने नए राज्यपाल वोहरा को मोहरा बनाया। उन्होंने बोर्ड के अध्यक्ष की हैसियत से जमीन वापस की। उन्होंने बोर्ड का संविधान नहीं माना। संविधान के मुताबिक किसी निर्णय के लिए 5 सदस्यों के कोरम की जरूरत थी। वोहरा ने सारा फैसला अकेले लिया।
भाजपा और आंदोलनकारी राज्यपाल वोहरा की वापसी चाहते हैं। केंद्र ने वोहरा को हटाने की मांग ठुकरा दी है। उसने जमीन वापसी का कोई वादा नहीं किया। केंद्र तुष्टीकरण नीति पर अडिग है। प्रधानमंत्री ने दलीय संवाद बढ़ाया है,लेकिन यह मसला दलीय असहमति या सहमति का राजनीतिक मुद्दा नहीं है। राजनाथ सिंह ने अमरनाथ जनसंघर्ष समिति से सीधी वार्ता का आग्रह किया। उन्होंने इसी मुद्दे पर 11 अगस्त से प्रस्तावित पार्टी के आंदोलन को रोकने की मांग ठुकरा दी। यह मसला समूचे विश्व के हिंदुओं, एशिया महाद्वीप और यूरोप में फैले शिव श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है। शिव विश्व आस्था हैं। लंदन विश्वविद्यालय के इतिहासविद् एएल बाशम ने दि वंडर दैट वाज इंडिया में शिव को शांति, संहार और नृत्य का देवता बताया है। गांधार से प्राप्त सिक्कों में शिव प्रतीक वृषभ पाया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी शिव परंपरा की चर्चा की है। सीरिया के शिल्प में वे विद्युत-देवता है। इस सबके हजारों वर्ष पहले वे ऋग्वेद में हैं, यजुर्वेद में हैं, अथर्ववेद में भी हैं।
केंद्र समग्रता में नहीं सोचता। वोट बैंक बाधा है। जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन अस्थाई अनुच्छेद 370 के जरिये कश्मीरी अलगाववाद को संवैधानिक मान्यता है। नेहरू ने इस राज्य का अलग प्रधान अलग निशान (ध्वज) और अलग विधान भी माना था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसी के खिलाफ शहीद हो गये। इसके पहले आजादी (15 अगस्त 1947) के ढाई माह बाद ही पाकिस्तानी कबाइली आक्रमण हुआ। जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ। पाकिस्तानी फौजें भीतर तक घुस आर्इं। भारतीय फौजों ने दौड़ाया, पीटा। नेहरू ने युद्धविराम माना। संयुक्त राष्ट्र को मिमियाती अर्जी दी गई। तबसे ही जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय समस्या है। पाप कांग्रेस ने किया, सजा पूरे राष्ट्र को मिली। घाटी रक्त रंजित रहती है। पाकिस्तानी सिक्के चलाने के प्रस्ताव आते हैं। पाकिस्तान जिंदाबाद होता है। बावजूद इसके फौज को हुक्म नहीं मिलता, लेकिन अमरनाथ मसले पर आंदोलित हिंदुओं के खिलाफ फौज लगी है। जम्मू का सुख और दुख भारत का सुखदुख है। जम्मू में वैष्णव देवी हैं, अमरनाथ हैं। जम्मू कश्मीर में ही पिप्पलाद हुए। विश्वविख्यात दर्शन ग्रंथ प्रश्नोपनिषद इन्हीं के आश्रम में हुई अखिल भारतीय बहस से पैदा हुआ। जम्मू का संघर्ष राष्ट्रीय उत्ताप है। समस्या को समग्रता में विचार करने की जरूरत है। यही समय है कि अलगाववादी अनुच्छेद 370 के खात्मे पर भी विचार होना चाहिए। जम्मू जनसंघर्ष को व्यापक राष्ट्रीय समर्थन मिला है। सेना और पुलिस की गोलियों से निहत्थों का टकराना ऐतिहासिक कार्रवाई है। बार-बार के अपमान से आहत हिंदू इस दफा टकरा गए हैं। जम्मू निवासी बहुत पहले से उपेक्षित और सरकार पीड़ित हैं। घाटी के अलगाववादी सरकार और प्रशासन पर भारी पड़ते हैं। सरकार उनकी हर बात मान लेती है। जम्मू और लेह के निवासी दोयम दर्जे के नागरिक हैं। निर्वासित कश्मीरी पंडित बिलख रहे हैं। इसलिए इस दफा 'लड़ो और मरो' जैसी स्थिति है। निहत्थे आंदोलनकारी लगभग एक माह से लड़ रहे हैं। आंसूगैस, सरकारी बर्बरता, गोलीबारी, कर्फ्यू और सेना की गोली उनमें खौफ नहीं पैदा करते। यहां मनोविज्ञान और वैज्ञानिक भौतिकवाद काम नहीं करता। सबका मन अमरनाथ हो गया है। केंद्र तुष्टिकरण के रास्ते पर है। हिंसक दमन के बावजूद निर्भीक पत्रकार मोर्चे पर हैं। केंद्र दुस्सह दमन और हिंसा को राष्ट्रीय सत्य बनने से रोक रहा है।
मुसलमान भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं। उनके ईद, अजान और कुरान हिंदुओं में सम्मानित हैं लेकिन हिंदुओं की अयोध्या, काशी, मथुरा और वैष्णो देवी तथा अमरनाथ कट्टरपंथियों को अखरते हैं। अमरनाथ यात्रियों पर राकेट तनते हैं? हिंदू बुतपरस्त ही सही, लेकिन अपने सीने में कुरान और पुराण का सम्मान एक साथ लेकर चलते हैं। मलाल है कि मनमोहन सिंह औरंगजेब हो रहे हैं। हिंदू मानस की प्रकृति कुचालक है। समाज के एक हिस्से का संवेदन दूसरे हिस्से तक आसानी से नहीं पहुंचता। यहां राष्ट्रवाद की करेंट है, लेकिन छद्म सेकुलरवाद की बाधाएं हैं। दुनिया के मुसलमान डेनमार्क के कार्टूनिस्ट से खफा थे, भारत के भी हुए। अमरनाथ मामले को लेकर राष्ट्र खफा है, लेकिन गुस्सा यहां फुटकर और वैयक्तिक रहता है। चूंकि बर्दाश्त की हद होती है इसीलिए इस दफा का आंदोलन ऐतिहासिक है और पूरे देश में रोष है। बहुसंख्यक वोटों के धु्रवीकरण के खतरे हैं, पर यह आंदोलन वोटवादी नहीं है। आंदोलनकारियों ने राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने का काम पूरा किया है। (दैनिक जागरण, ८ अगस्त २००८)
Thursday, August 7, 2008
उत्तरप्रदेश में पैर पसार रहा है सिमी
तिलखाना। आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर उत्तरप्रदेश में हाई अलर्ट जारी है लेकिन यहां प्रतिबंधित संगठन सिमी की गतिविधियां जारी है। सिमी लगातार राज्य में अपने पैर प्रसार रहा हैं। सिमी पर आतंकवादी संगठनों को मदद किए जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। सिमी राज्य में अपना प्रसार कर रहा है जिसका जीता जागता उदाहरण नेपाल सीमा के पास तिलखाना में देखने को मिला। यहां की दीवारों पर पेंट से लिख कर सिमी खुले आम निमंत्रण दे रहा है कि ‘सिमी से जुड़ें’। सिमी से जुड़ने का यह निमंत्रण हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में आसानी से देखने को मिल रहा है। इन इश्तहारों से साफ है कि सिमी अपने संगठन में भर्ती का अभियान चला रहा है।
सीएनएन-आईबीएन के जांच दल ने नेपाल सीमा के पास सिद्धार्थनगर जिले में अल-जामईतुल-इस्लामिया मदरसे का दौरा किया। यहीं से वर्ष 2001 में सिमी से सांठगांठ रखने वाले चार लोगों को पकड़ा गया था। यहां के नए मैनेजर मुश्ताक अहमद और अरबी के अध्यापक अख्तर फलाही से बातचीत की गई। यह एक प्रकार की जांच थी जो छुप कर की जा रही थी। वर्ष 2001 में जिन्हें यहां से गिरफ्तार किया गया था उनमें फलाही और उसका एक साथी अब्दुल अवाल भी शामिल थे। फलाही ने देखते ही कहा कि आशा है कि आप लोग तहलका से तो नहीं है, जैसा गुजरात में हुआ था। फलाही ने बताया कि पुलिस ने हमें फर्जी मामले में गिरफ्तार किया और कहा कि हम सिमी से जुड़े हैं। आज फलाही औऱ अवाल इस मदरसे में फिर से पढ़ा रहे हैं और उनकी वापसी के साथ ही यहां पर सिमी के नारों की वापसी भी हो गई है। भले ही वे अपने आप को गुनहगार नहीं बताए लेकिन सिमी के नारों की वापसी उनके साथ ही हुई है।
तिलखाना के एक निवासी ने बताया कि सिमी के नारे मदरसे के दरवाजों पर, दीवारों पर और यहां तक की गांव के चौराहों पर भी लिखे हुए हैं। जिन अध्यापकों को यहां से गिरफ्तार किया गया था वे आज भी यहां पढ़ा रहे है। कुछ यहां के अध्यापक हिरासत में भी हैं। मदरसे के पूर्व मैनेजर मोहम्मद रउफ ने सिमी की गतिविधियों की चलते यहां से इस्तीफा दे दिया था। सीएनएन-आईबीएन के उनसे बात भी की।
सीएनएन-आईबीएन- कौन- कौन मास्टर शामिल थे?
रउफ- एक मास्टर अब्दुल अवाल है, बताया गया है कि वहीं इसका मुख्य कर्ताधर्ता है और कुछ लड़के शामिल हैं। गांव के अनेक लोग मदरसे के बारे में कुछ भी कहने से डरते है। तिलखाना के एक निवासी अकरम (बदला हुआ नाम) ने बताया कि हम भी मुस्लिम है, लेकिन उन्हें रोकने की ताकत हममें नहीं है क्योंकि हम जानते है कि वे अच्छे लोग नहीं है। भारत नेपाल सीमा पर लगभग 600 मदरसे और मस्जिदें हैं। खुफिया विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से कई मदरसों को पाकिस्तान और पश्चिमी एशिया से आर्थिक सहायता मिल रही है। संघर्ष प्रबंधन संस्थान के निदेशक अजय सहानी का कहना है कि पाकिस्तान के हबीब बैंक, सउदी अरब के इस्लामिक बैंक, कराची के अल-फलाह बैंक जैसे कई इस्लामिक संस्थानों और बैंकों से इन मदरसों को आर्थिक सहायता मिलती है। (सीएनएन-आईबीएन,12 जनवरी २००८)
नाम बदलकर नेटवर्क चलाएगा सिमी
खबरे अब ऐसी आ रही है कि सिमी दूसरा नाम रखने की तैयारी में है। सितंबर 2001 में प्रतिबंधित किए जाने से लेकर अब तक सिमी बुरहानपुर, गुना, नीमच और शाजापुर जैसे जिलों में अपना नेटवर्क फैला चुका है। प्रतिबंध से पहले इस संगठन की गतिविधियां इंदौर, उज्जैन, खंडवा और भोपाल तक ही सीमित थीं। सिमी का राज्य मुख्यालय इंदौर में है।( इंडो-एशियन न्यूज सर्विस, 07 नवम्बर २००६)
हैदराबाद विस्फोट का शक सिमी पर
खुफिया एजेंसियों का कहना है कि इस विस्फोट को करने की तरीका वैसा ही था जैसा मालेगांव विस्फोट का था। इसलिए सिमी का हाथ इस विस्फोट के पीछे होने का संकेत मिलता है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि प्रतिबंधित दीनदार अंजुमन संगठन विस्फोट में सहायता दे सकता है। यह एक प्रतिबंधित संगठन है जिसका संबंध सिमी से था और अब हैदराबाद के आस पास सक्रिय है। आश्चर्य है कि मस्जिद की जिम्मेदारी त्वरित कार्यबल (आरएएफ) की निगरानी में थी। लेकिन दो दिन पहले ही आरएएफ के जवानों के यहां से कहीं और स्थानांतरित किया गया था। इससे भी इस एतेहासिक मस्जिद की सुरक्षा व्यवस्था में छेद होने और लापरवाही बरतने का संकेत मिलता है।
इधर आंध्रप्रदेश पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने खुफिया विभाग की जानकारी के बाद मस्जिद प्रशासन के चेतावनी दी थी कि यहां भी मालेगांव विस्फोट जैसी घटना होने की सम्भावना है। साथ ही पुलिस ने यह भी कहा कि इस चेतावनी पर मस्जिद प्रशासन ने उनकी कोई सहायता नहीं की। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई. एस राजशेखर रेड्डी ने कहा कि प्रयोग किया गया बम अत्याधुनिक था और इसे बनाने में आरडीएक्स औऱ टीएनटी का इस्तमाल किया गया था। वे शुक्रवार को घटना स्थल का दौरा करने गए थे। उन्होंने कहा कि हमले के पीछे साम्प्रदायिक लोगों का हाथ था जिसका उद्देश्य शांति और सौहार्द को नुकसान पहुंचाना था।
गृहराज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कहा अभी तक किसी भी संगठन ने इस विस्फोट की जिम्मेदारी नहीं ली है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से इतना तय है कि विस्फोट का उद्देश्य साम्प्रदायिक सदभाव को हानि पहुंचाने का था। हैदराबाद में सुरक्षा को देखते हुए रेड अलर्ट घोषित कर दिया गया है। शहर धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। (19 मई २००७, ibnlive.com)
भारतीयों ने मलेशियाई स्कूल को घेरा
कुआलालंपुर। मलेशिया में करीब 500 भारतीयों ने एक स्कूल के बाहर प्रदर्शन कर अपने बच्चों के साथ हो रहे कथित नस्लभेदी व्यवहार पर आक्रोश व्यक्त किया है। यह घटना मलेशिया के सेलनगोर राज्य के कुआला लंगात के बेंतिंग कस्बे में सोमवार को हुई। भारतीय अभिभावकों ने एसएमके तेलक पेंगलीमा गारेंग के मुख्य द्वार पर एकत्र होकर अपना विरोध प्रकट किया। दो छात्रों ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई है। इसमें एक शिक्षक द्वारा कुछ बच्चों की पिटाई किए जाने का आरोप भी लगाया गया है। समाचार-पत्र ‘स्टार’ ने मंगलवार को यह खबर प्रकाशित की है। स्कूल के प्रधानचार्य की गैरमौजूदगी में उसके शिक्षिकों ने पुलिस रिपोर्ट की प्रति ली।
प्रवासी भारतीयों के काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन ‘कोएलिशन ऑफ मलेशियन इंडियन’ के सचिव गुनराज जॉर्ज ने कहा कि बच्चों से इस तरह का सुलूक जातीय वैमनस्य और गुटबाजी का नतीजा है। मलेशिया के शिक्षा उपमंत्री वी. सियोंग ने कहा कि आरोप सही मिलने पर उक्त शिक्षक को बर्खास्त कर दिया जाएगा। मलेशिया की कुल आबादी में से आठ प्रतिशत भारतीय हैं। (05 अगस्त 2008 , इंडो-एशियन न्यूज सर्विस)
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जम्मू: महिलाओं-बच्चों ने भी कर्फ्यू तोड़ा,अबतक 8 मृत
जम्मू। जम्मू-कश्मीर में ‘श्री अमरनाथ श्राईन बोर्ड’ (एसएएसबी) को आवंटित भूमि पुन: दिए जाने की मांग को लेकर जारी प्रदर्शनों के दौरान कठुआ जिले में कल भी प्रदर्शनकारियों पर सेना द्वारा चलाई गई गोली से एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसी के साथ इस विवाद में मारे गए लोगों की संख्या बढ़कर अब आठ हो गई है।
सूत्रों ने बताया कि सेना की गोलीबारी से नाराज प्रदर्शनकारियों ने मृतक का शव सड़क पर रखकर जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर जाम लगा दिया और वहां धरना देकर बैठ गए जिससे सेना के 50 वाहन वहां फंस गए।
रक्षा प्रवक्ता एसडी. गोस्वामी ने सेना की ओर से की गई गोलीबारी की पुष्टि करते हुए कहा कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात किए गए कार्यकारी मजिस्ट्रेट के आदेश पर सेना ने गैर कानूनी रुप से पल्ली मोर्च पर एकत्र हुए लोगों पर गोली चलाई, जिससे एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गया।
गोस्वामी ने कहा कि बेकाबू भीड़ ने जम्मू-पठानकोट मार्ग को जाम कर दिया था और पथराव शुर कर दिया, जिससे मजबूर होकर सेना को गोली चलानी पड़ी। मृतक नरेन्द्र सिंह पास के ही गांव का निवासी था तथा उसके पेट में गोली लगी।
इस बीच श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि पुन: देने की मांग को लेकर प्रदर्शनकारियों द्वारा जम्मू के कई स्थानों पर कर्फ्यू के उल्लंघन का सिलसिला कल भी जारी रहा। यहां से 13 किलोमीटर दूर नगरोठा में सरकारी कार्यालय को आग लगा रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई के दौरान घायल हुए एक युवक को भी गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
सांबा से प्राप्त रिपोर्टों में कहा गया कि प्रदर्शनकारियों ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पूर्व विधायक मंजीत सिंह के आवास पर भी हमला किया। जबकि रायपुर सतवारी क्षेत्र में कर्फ्यू की अवहेलना करते हुए हजारों लोगों ने पुल पर से होकर शहर की तरफ बढ़ने की कोशिश की और जब उन्हें रोका गया तो वे तवी नदी को पार करके शहर में जाने लगे।
इसी तरह महिलाओं और बच्चों सहित हजारों लोगों के अलग-अलग समूहों ने कर्फ्यू का उल्लंघन कर शहर के गांधीनगर, त्रिकुटा नगर, गंगयाल, डिगयाना, बंतलाब और मुठी क्षेत्रों में जुलूस निकाले और बम-बम भोले के नारे लगाए। (वार्ता, ७ अगस्त २००८)
सिमी पर प्रतिबंध जारी रहेगा
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया [सिमी] पर फिलहाल रोक जारी रहेगी। बुधवार को सुप्रीमकोर्ट ने सिमी से प्रतिबंध हटाने के अनलाफुल एक्टीविटीज [प्रिवेंशन] ट्रिब्युनल के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है।
मंगलवार को ट्रिब्युनल ने सिमी पर प्रतिबंध लगाने वाली सात फरवरी की अधिसूचना रद कर दी थी। केंद्र सरकार ने ट्रिब्युनल के इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम रोक आदेश पारित किया। पीठ ने सिमी को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में जवाब देने को कहा है। तब तक कोर्ट का रोक आदेश जारी रहेगा। इसके पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालीसीटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने ट्रिब्यूनल के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि ट्रिब्युनल ने अनलाफुल एक्टीविटीज [प्रिवेंशन] एक्ट के उपबंधों के खिलाफ जाकर आदेश दिया है। उसने सरकार द्वारा पेश दस्तावेज व 77 अधिकारियों की गवाही पर विचार नहीं किया। विभिन्न राज्यों के डीजीपी की गवाही हुई, इंटेलिजेंस रिपोर्ट थी, लेकिन ट्रिब्युनल ने किसी पर विचार नहीं किया। यहां तक कि 267 पेज के फैसले में से 251 पेज तक कोई निष्कर्ष नही है। कोई निश्चित राय व्यक्त नहीं की गई है। अचानक आदेश के अंत में आकर ट्रिब्युनल ने कह दिया कि प्रतिबंध जारी रखने का कोई पर्याप्त कारण नहीं बताया गया है और अधिसूचना रद कर दी।
सुब्रमण्यम ने कहा कि ट्रिब्युनल के आदेश के गंभीर परिणाम होंगे, अत: कोर्ट याचिका पर सुनवाई करने तक ट्रिब्युनल के प्रतिबंध हटाने के आदेश पर रोक लगा दे। याचिका में कहा गया है कि ट्रिब्युनल ने अधिसूचना निरस्त करते समय केंद्र सरकार की ओर से दाखिल किए गए बैकग्राउंड नोट पर ध्यान नहीं दिया। ट्रिब्युनल को यह बताया गया था कि प्रतिबंध की अधिसूचना जारी करने से पहले कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिली थी और इसके बाद गृह मंत्रालय ने विधि मंत्रालय के साथ उच्च स्तर पर विचार विमर्श के बाद प्रतिबंध का आदेश पारित किया था। ट्रिब्युनल के सामने सील कवर में कैबिनेट नोट पेश किया गया था। उस पर विचार किया जाना चाहिए था। ट्रिब्युनल का यह मानना गलत है कि प्रतिबंध जारी करने के संबंध में जारी बैकग्राउंड नोट बाद में अधिसूचना की खामी पूरी करने के लिए जारी किया गया था।
सिमी पर 27 सितंबर 2001 को प्रतिबंध जारी किया गया था, जिसे सही ठहराया गया था। उसके बाद 26 सितंबर 2006 को प्रतिबंध की अधिसूचना जारी हुई और इसे भी सही ठहराया गया। अधिसूचना रद करने से पहले ट्रिब्युनल ने यह ध्यान नहीं दिया कि केंद्र सरकार की राय में सिमी कार्यकर्ता अभी भी सांप्रदायिक व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। केंद्र सरकार ने सिमी पर प्रतिबंध को जायज ठहराने और ट्रिब्युनल का आदेश रद किए जाने के लिए और भी कई तर्क दिए हैं। (दैनिक जागरण, ७ august २००८)
सम्बंधित : सिमी के तीन और संदिग्ध गिरफ्तार
राजस्थान में सिमी की गुपचुप दस्तक
म.प्र.- सिमी प्रशिक्षण कैंप का पता चला
जम्मू: सेना की फायरिंग में एक की मौत
जम्मू में भूमि स्थानांतरण मुद्दे पर जारी विवाद के बीच अमरनाथ श्राइन बोर्ड के आठ सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया ताकि बोर्ड को पुनगर्ठित कर गतिरोध का समाधान निकालने में मदद की जा सके। प्रदर्शनकारियों ने जम्मू क्षेत्र की विभिन्न जगहों पर कर्फ्यू का उल्लंघन किया जबकि कई प्रदर्शनकारी तवी नदी को पार कर जम्मू के उन संवेदनशील इलाकों में पहुंच गए जहां सेना को तैनात किया गया है।
जम्मू और कठुआ जिलों में हिंसा की ताजा घटनाओं में 18 लोग घायल हो गए। मौजूदा आंदोलन का नेतृत्व कर रही अमरनाथ संघर्ष समिति ने अपने रुख से हटने से इनकार करते हुए हुए कहा कि श्राइन बोर्ड को करीब 100 एकड़ जमीन का स्थानांतरण रोकने के सरकार के आदेश वापस लिए जाने तक वह किसी भी बात को सुनने को तैयार नहीं है।
एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि जम्मू पठानकोट राजमार्ग पर कठुआ कस्बे से करीब दस किलोमीटर दूर पाली मोड़ पर प्रदर्शनकारियों ने घाटी के लिए जा रहे सामान की आपूर्ति की सुरक्षा कर रहे सेना के काफिले को रोका। प्रदर्शनकारियों ने वाहनों पर पथराव शुरू कर दिया जिसके बाद सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी। सेना की गोलियों से एक व्यक्ति मारा गया और कई अन्य घायल हो गए।
सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में 12 लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है। प्रदर्शनकारियों ने आज जम्मू क्षेत्र के खोउर, बिस्नाह, गंज्ञाल, मुथी और उधमपुर में कर्फ्यू का उल्लंघन किया और अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन वापस दिलवाने की मांग की। उधमपुर नगर में चार सौ आंदोलनकारियों ने कर्फ्यू में दी गई तीन घंटे की ढील के दौरान रैली निकाली। प्रदर्शनकारियों ने कल रात नगर में मशाल जुलूस निकाला था।
सूत्रों ने बताया कि कल रात कठुआ नगर में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में दर्जनों लोग घायल हो गए। नगर में सात लोगों को हिरासत में लिया गया है।(दैनिक जागरण, ७ अगस्त २००८)
Wednesday, August 6, 2008
जम्मू: युवक आत्मघाती दस्ते बनाएंगे
पुलिस फायरिंग में अपने दो साथियों के मारे पर गुस्से का इजहार करते हुए करीब 24 स्थानीय युवकों ने तिरंगा झंडा थामे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बरता का बदला लेने का संकल्प व्यक्त किया।
सांबा में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी में दो स्थानीय युवक संजीव सिंह तथा सन्नी पाधा मारे गए थे तथा करीब चौबीस लोग घायल हो गए थे। (IBN7, 6 August 2008)