Monday, July 28, 2008

विदेशी दिमाग, देशी मोहरे और देशी बारूद

देशी बारूद, देशी लोग और दिमाग विदेशी! बेंगलूर फिर 24 घंटे के अंदर अहमदाबाद के अंदर हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के बाद आतंक की नई कार्यपद्धति सामने आ रही है। मजहब के नाम पर गुमराह युवक, बाजार में आसानी से उपलब्ध देशी विस्फोटक और कमजोर खुफिया तंत्र। इसके बाद तो आतंकियों के लिए सत्रह क्या एक साथ सत्तर विस्फोट भी करना भी कोई मुश्किल काम नहीं है।
क्या हुआ, अगर धमाके आरडीएक्स जितने शक्तिशाली नहीं हैं। क्या हुआ कि एक धमाके से उतनी जानें नहीं गई! धमाकों की संख्या बढ़ाकर आतंक और मौत का मकसद आसानी हासिल किया जा सकता है। सिलसिलेवार धमाकों की संख्या एक दो से बढ़कर अब दर्जनों में जा पहुंची है। एक साथ दर्जनों धमाके कुछ देर के लिए पूरे सुरक्षा तंत्र को सुन्न कर देते हैं और इस दौरान गुनाहगारों के लिए भागने व पनाह का इंतजाम हो जाता है।
खुफिया तंत्र और गृह मंत्रालय दोनों ही आतंक के इस नए रूप को देखकर जितने परेशान हैं उससे ज्यादा भौचक्के। रविवार को बुलाई गई गृह मंत्रालय की आपात बैठक में भी अधिकारियों ने माना कि आतंकी जड़े गहरी होती जा रही हैं और आतंक फैलाने वाले बेखौफ। आतंकी गतिविधियों के संचालन में उनकी दक्षता, सहजता और सटीकता लगातार बढ़ रही व खुफिया एजेंसियां किसी अदना से प्यादे को पकड़ने के आगे नहीं जा पातीं।
जयपुर विस्फोट के बाद सुने गए आतंकी संगठन अलगुरु हिंदी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठन दरअसल सिमी के प्रभाव वाले इलाकों में बेधड़क गतिविधियां संचालित करते हैं। गृह मंत्रालय यह भी मान रहा है कि नाम भले ही बदल लिए हों, लेकिन फिलहाल सारे आतंकी संगठन चाहे हुजी हो या फिर इंडियन मुजाहिदीन सभी का संबंध लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद व अलकायदा से ही है।
खुफिया तंत्र यह बात पहले ही जान चुका था कि अब आतंकी संगठन कई स्तरों पर गतिविधियां संचालित करते हैं। अंजाम देने वाले लोग पूरी तरह स्थानीय होते हैं जिन्हें ऊपर के तंत्र का कोई पता नहीं होता। लेकिन बेंगलूर और अहमदाबाद के धमाकों के बाद इसमें जो एक नया पहलू जुड़ा है वह है देशी विस्फोटकों का इस्तेमाल।
इस नई रणनीति ने जांच एजेंसियों को और मुश्किल में डाल दिया है। आरडीएक्स को बाहर से लाने में जोखिम को देखते हुए आतंकियों ने देशी विस्फोटकों से बड़े धमाके करने में महारथ हासिल कर ली है। इन विस्फोटकों का कच्चा माल बाजार में आसानी से उपलब्ध है और इनके इस्तेमाल में पकड़े जाने का जोखिम बेहद कम है। यानी अब आतंकियों ने देशी लोगों के हाथ में देशी विस्फोटक भी पकड़ा दिए हैं जिन्हें वे अपने ही लोगों पर इस्तेमाल कर रहे हैं।
अपनी कार्रवाइयों में आतंकियों की दक्षता और सहजता भी बढ़ रही है। कारों और बाइकों की पहचान के खतरे व सुराग की संभावनाओं को खत्म करने के लिए आतंकी साइकिल जैसे आसान कैरियर पर लौट आए हैं। साइकिल की पहचान और उससे कोई सूत्र निकालना असंभव है। अहमदाबाद, बंगलूर और इससे पहले उत्तर प्रदेश के कुछ विस्फोटों में गरीबों की इस सवारी का जमकर इस्तेमाल हुआ है।
आतंकियों की इस बढ़ती दक्षता के बीच खुफिया नाकामी उन्हें निडर बना रही है। खुफिया एजेंसियों के सूत्र यह मानते हैं पहले विस्फोटों का निशाना बन चुके शहरों में दोबारा विस्फोट होना यह साबित करता है कि स्थानीय सतर्कता तंत्र ने कोई सबक नहीं सीखा है। कुछ वक्त बीत जाने के बाद आतंकी पुन: अपने काम में जुट जाते हैं और दहशत व तबाही के बाद खुफिया तंत्र उसी तरह लकीर पीटता नजर आता है, जैसा कि अहमदाबाद और बेंगलूर में नजर आ रहा है। (दैनिक जागरण , २८ जुलाई २००८)

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