जम्मू-कश्मीर के हालात के लिए कांग्रेस के अपराध बोध को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं यशवंत सिन्हा
यह इतिहास की विडंबनाओं में से एक है कि पाकिस्तान की मांग करने, उसे हासिल करने और इस तरह देश का बंटवारा करने वाले मुस्लिम लीग के नेताओं को इस सबका तनिक भी अफसोस नहीं, जबकि लीग की मांग के सामने समर्पण करने वाली कांग्रेस चाहकर भी अपराध बोध से मुक्त नहीं हो पा रही है। पाकिस्तान के निर्माण ने यह मिथक पूरी तरह तोड़ दिया था कि कांग्रेस समस्त भारतीयों की पार्टी है और यह सभी जातियों और पंथों का प्रतिनिधित्व करती है। इस सदमे से कांग्रेस अब तक उबर नहीं पाई है। हालिया घटनाएं, जिनमें अमरनाथ श्राइन बोर्ड को भूमि का आवंटन और बाद में इस फैसले को पलटना शामिल है, इसी अपराध बोध से सीधे-सीधे संबंधित है। कांग्रेस नेतृत्व यह साबित करने पर आमादा था कि उसका दो देशों के सिद्धांत में विश्वास नहीं, वे भारत के विभाजन और पाकिस्तान के गठन के लिए जिम्मेदार नहीं और देश के अन्य भागों से मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की जरूरत नहीं, भारत में उनका स्वागत है। भारत ने पंथनिरपेक्ष राष्ट्र का निर्माण किया और संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित किया। जम्मू-कश्मीर मामले में हम एक कदम आगे बढ़ गए और अनुच्छेद 370 लागू कर उसे विशेष दर्जा दे दिया। विदेश मामलों में हमने इजरायल के बजाय हमेशा मुस्लिम देशों का पक्ष लिया और कई दशकों तक इसरायल को मान्यता प्रदान नहीं की। हम हर कीमत पर बाहरी मुसलमानों के हक में खड़े नजर आए।
अगर हम आजाद भारत के संवैधानिक प्रावधानों तक सीमित रहते तो कोई समस्या नहीं थी। समस्या तब खड़ी हुई जब मुसलमानों को रिझाने के लिए कांग्रेस झुक गई। ऐसा कर कांग्रेस 1947 के अपराध बोध से मुक्त होना और खुद को पंथनिरपेक्ष भी साबित करना चाहती थी। इसलिए शुरुआत में उसने मुस्लिम समर्थित रुख अपनाया जो धीरे-धीरे हिंदू विरोधी रवैये में बदल गया। चुनावी राजनीति की मजबूरियों से यह परिवर्तन न केवल कांग्रेस के आचार-विचार पर छा गया, बल्कि उसने मुलायम सिंह, लालू यादव और करुणानिधि जैसे नेताओं को भी जन्म दिया जो हिंदू विरोध में मस्त रहते हैं। यह ऐसा अमृत है जो सिमी जैसी मुस्लिम कट्टरवादी शक्तियों को जिंदा रखता है। इससे मुस्लिम राजनेता भड़काने वाले भाषण देने को प्रोत्साहित होते हैं, जैसा कि उमर अब्दुल्ला ने 22 जुलाई को संसद में विश्वास मत के दौरान किया। कुछ स्थानों में यह भावना घर कर गई है कि आप हिंदू विश्वास को गाली दे सकते हैं, उसे बेकार कह सकते हैं और उसका अपमान कर सकते हैं। इसके बाद भी आप न केवल साफ बच जाते हैं बल्कि तारीफ के हकदार भी हो जाते हैं। भारत में पंथनिरपेक्षता की नई परिभाषा है हिंदू विरोधी।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि को निरस्त करके देश के पंथनिरपेक्ष ताने-बाने में दुष्टतापूर्ण अन्याय बुन दिया गया, किंतु इसने जम्मू-कश्मीर के बाहर शायद ही किसी की आत्मा को झकझोरा हो। जम्मू-कश्मीर सरकार में वन विभाग से संबद्ध मंत्रालय के मंत्री ने श्राइन बोर्ड को भूमि दान देने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल की बैठक में रखा था। यह मंत्री पीडीपी पार्टी से था। भूमि आवंटन का उद्देश्य जुलाई और अगस्त में अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए अस्थाई आवास उपलब्ध कराना था। जैसे ही कश्मीर घाटी में भारत विरोधी, राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी तत्वों को इस फैसले के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे निरस्त करने के लिए हिंसक प्रदर्शक शुरू कर दिया। आगामी चुनाव देखते हुए पीडीपी समेत अधिकांश राजनीतिक दल भी उनके समर्थन में आ खड़े हुए। पीडीपी को अपना ही फैसला बदलने तथा राष्ट्र विरोधी शक्तियों के साथ खड़े होने में जरा भी शर्म नहीं आई। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जैसे व्यक्ति द्वारा लगाए गए आरोप को गंभीरता से लेना चाहिए कि पीडीपी राष्ट्रविरोधी शक्तियों के साथ मिली हुई है। नेशनल कांफ्रेंस ने भी यही रास्ता अख्तियार किया और लोकसभा में घोषणा कर दी कि हम जमीन का एक इंच टुकड़ा भी नहीं देंगे। उक्त जमीन वन विभाग की है और बंजर है। यहां से किसी को भी बेदखल नहीं किया जा रहा है। आवंटन श्रद्धालुओं के लिए अस्थाई आवास बनाने के लिए हुआ था, न कि स्थाई भवन बनाने के लिए। श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष बाहर का कोई व्यक्ति न होकर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं। कल्पना के कितने भी घोड़े दौड़ा लिए जाएं, इसे राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव के रूप में नहीं देखा जा सकता। अन्य सामान्य पर्यटकों की तरह अमरनाथ यात्री राज्य में अस्थाई आगंतुक हैं। क्या पर्यटकों के आने से राज्य की जनसांख्यिकी बदल जाती है? होटल और हाउसबोट स्थायी ढांचा हैं। क्या जम्मू-कश्मीर के राजनेता यह कहेंगे कि पर्यटकों के लिए होटलों का निर्माण भी नहीं होगा।
पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की जनसांख्यिकी को स्थाई रूप से बदल दिया है। हमारे तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनेता और कश्मीरी हितों की स्वयंभू अलंबरदार हुर्रियत कांफ्रेंस ने इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठाई। वह कश्मीर के केवल एक भाग को लेकर ही इतना संवेदनशील क्यों है? क्या इसलिए क्योंकि यह हिंदू तीर्थस्थल है? क्या इसलिए कि हमने संविधान में अनुच्छेद 370 लागू करने की हिमाकत की? एक बार फिर घाटी में सांप्रदायिक और राष्ट्रविरोधी शक्तियों की जीत हुई है। इस मसले को हिंदू-मुस्लिम संकीर्ण नजरिये से देखना भारी भूल होगी। भूमि के आवंटन से किसी भी मुसलमान को कोई नुकसान नहीं हो रहा है। यह भारतीय राष्ट्रवादियों और भारत विरोधियों के बीच संघर्ष है। यह असली पंथनिरपेक्षतावादियों और छद्म पंथनिरपेक्षतावादियों के बीच सीधी लड़ाई है। आवंटन रद्द करने में राज्यपाल ने हड़बड़ी दिखाई। सरकार ने घाटी में राष्ट्रविरोधियों और अलगाववादी शक्तियों के सामने इस उम्मीद में आत्मसमर्पण कर दिया कि जम्मू और अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रवादी शक्तियां इसे चुपचाप सहन कर लेंगी। यह आकलन बिल्कुल गलत था। इस अन्याय के खिलाफ राष्ट्रवादी उठ खड़े हुए। भारत सरकार ने हालात बद से बदतर बना दिए। अनावश्यक रूप से अनेक लोगों को जान गंवानी पड़ी। काल्पनिक आर्थिक नाकेबंदी के विरोध में अलगाववादी अब कश्मीर के सेबों को नियंत्रण रेखा पार करके मुजफ्फराबाद में बेचना चाहते हैं। किसी भी हाल में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सरकार के सामने बस एक ही विकल्प रह जाता है कि जमीन श्राइन बोर्ड को सौंपी जाए। इसके लिए उसे कश्मीर घाटी में राष्ट्रविरोधी शक्तियों से टकराना होगा और जोरदार तरीके से यह बात दोहरानी होगी कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उसे आतंकियों, अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थकों के खेल का मैदान बनने नहीं दिया जाएगा। भारत के राष्ट्रवादी मुसलमानों ने तब अच्छा उदाहरण पेश किया जब 7 अगस्त को उन्होंने दिल्ली में लालकिला से श्रीनगर के लाल चौक के लिए कूच किया। यह अलग बात है कि तनावपूर्ण माहौल में उन्हें जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने नहीं दिया। यह एक उल्लेखनीय बात होगी कि भारत के मुसलमान उनके उदाहरण का अनुसरण करते हुए श्राइन बोर्ड को जमीन सौंपने के पक्ष में बोलें। 1947 में कांग्रेस की भयावह भूल का खामियाजा देश को अब भुगतने नहीं दिया जाएगा। मुलायम, लालू और करुणानिधि जैसे लोगों को इतिहास के कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाना चाहिए। वे इसी लायक हैं। (दैनिक जागरण, १३ जुलाई २००८)
अगर हम आजाद भारत के संवैधानिक प्रावधानों तक सीमित रहते तो कोई समस्या नहीं थी। समस्या तब खड़ी हुई जब मुसलमानों को रिझाने के लिए कांग्रेस झुक गई। ऐसा कर कांग्रेस 1947 के अपराध बोध से मुक्त होना और खुद को पंथनिरपेक्ष भी साबित करना चाहती थी। इसलिए शुरुआत में उसने मुस्लिम समर्थित रुख अपनाया जो धीरे-धीरे हिंदू विरोधी रवैये में बदल गया। चुनावी राजनीति की मजबूरियों से यह परिवर्तन न केवल कांग्रेस के आचार-विचार पर छा गया, बल्कि उसने मुलायम सिंह, लालू यादव और करुणानिधि जैसे नेताओं को भी जन्म दिया जो हिंदू विरोध में मस्त रहते हैं। यह ऐसा अमृत है जो सिमी जैसी मुस्लिम कट्टरवादी शक्तियों को जिंदा रखता है। इससे मुस्लिम राजनेता भड़काने वाले भाषण देने को प्रोत्साहित होते हैं, जैसा कि उमर अब्दुल्ला ने 22 जुलाई को संसद में विश्वास मत के दौरान किया। कुछ स्थानों में यह भावना घर कर गई है कि आप हिंदू विश्वास को गाली दे सकते हैं, उसे बेकार कह सकते हैं और उसका अपमान कर सकते हैं। इसके बाद भी आप न केवल साफ बच जाते हैं बल्कि तारीफ के हकदार भी हो जाते हैं। भारत में पंथनिरपेक्षता की नई परिभाषा है हिंदू विरोधी।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि को निरस्त करके देश के पंथनिरपेक्ष ताने-बाने में दुष्टतापूर्ण अन्याय बुन दिया गया, किंतु इसने जम्मू-कश्मीर के बाहर शायद ही किसी की आत्मा को झकझोरा हो। जम्मू-कश्मीर सरकार में वन विभाग से संबद्ध मंत्रालय के मंत्री ने श्राइन बोर्ड को भूमि दान देने का प्रस्ताव मंत्रिमंडल की बैठक में रखा था। यह मंत्री पीडीपी पार्टी से था। भूमि आवंटन का उद्देश्य जुलाई और अगस्त में अमरनाथ यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को ठहरने के लिए अस्थाई आवास उपलब्ध कराना था। जैसे ही कश्मीर घाटी में भारत विरोधी, राष्ट्र विरोधी और हिंदू विरोधी तत्वों को इस फैसले के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे निरस्त करने के लिए हिंसक प्रदर्शक शुरू कर दिया। आगामी चुनाव देखते हुए पीडीपी समेत अधिकांश राजनीतिक दल भी उनके समर्थन में आ खड़े हुए। पीडीपी को अपना ही फैसला बदलने तथा राष्ट्र विरोधी शक्तियों के साथ खड़े होने में जरा भी शर्म नहीं आई। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जैसे व्यक्ति द्वारा लगाए गए आरोप को गंभीरता से लेना चाहिए कि पीडीपी राष्ट्रविरोधी शक्तियों के साथ मिली हुई है। नेशनल कांफ्रेंस ने भी यही रास्ता अख्तियार किया और लोकसभा में घोषणा कर दी कि हम जमीन का एक इंच टुकड़ा भी नहीं देंगे। उक्त जमीन वन विभाग की है और बंजर है। यहां से किसी को भी बेदखल नहीं किया जा रहा है। आवंटन श्रद्धालुओं के लिए अस्थाई आवास बनाने के लिए हुआ था, न कि स्थाई भवन बनाने के लिए। श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष बाहर का कोई व्यक्ति न होकर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं। कल्पना के कितने भी घोड़े दौड़ा लिए जाएं, इसे राज्य की जनसांख्यिकी में बदलाव के रूप में नहीं देखा जा सकता। अन्य सामान्य पर्यटकों की तरह अमरनाथ यात्री राज्य में अस्थाई आगंतुक हैं। क्या पर्यटकों के आने से राज्य की जनसांख्यिकी बदल जाती है? होटल और हाउसबोट स्थायी ढांचा हैं। क्या जम्मू-कश्मीर के राजनेता यह कहेंगे कि पर्यटकों के लिए होटलों का निर्माण भी नहीं होगा।
पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर की जनसांख्यिकी को स्थाई रूप से बदल दिया है। हमारे तथाकथित पंथनिरपेक्ष राजनेता और कश्मीरी हितों की स्वयंभू अलंबरदार हुर्रियत कांफ्रेंस ने इसके खिलाफ आवाज तक नहीं उठाई। वह कश्मीर के केवल एक भाग को लेकर ही इतना संवेदनशील क्यों है? क्या इसलिए क्योंकि यह हिंदू तीर्थस्थल है? क्या इसलिए कि हमने संविधान में अनुच्छेद 370 लागू करने की हिमाकत की? एक बार फिर घाटी में सांप्रदायिक और राष्ट्रविरोधी शक्तियों की जीत हुई है। इस मसले को हिंदू-मुस्लिम संकीर्ण नजरिये से देखना भारी भूल होगी। भूमि के आवंटन से किसी भी मुसलमान को कोई नुकसान नहीं हो रहा है। यह भारतीय राष्ट्रवादियों और भारत विरोधियों के बीच संघर्ष है। यह असली पंथनिरपेक्षतावादियों और छद्म पंथनिरपेक्षतावादियों के बीच सीधी लड़ाई है। आवंटन रद्द करने में राज्यपाल ने हड़बड़ी दिखाई। सरकार ने घाटी में राष्ट्रविरोधियों और अलगाववादी शक्तियों के सामने इस उम्मीद में आत्मसमर्पण कर दिया कि जम्मू और अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रवादी शक्तियां इसे चुपचाप सहन कर लेंगी। यह आकलन बिल्कुल गलत था। इस अन्याय के खिलाफ राष्ट्रवादी उठ खड़े हुए। भारत सरकार ने हालात बद से बदतर बना दिए। अनावश्यक रूप से अनेक लोगों को जान गंवानी पड़ी। काल्पनिक आर्थिक नाकेबंदी के विरोध में अलगाववादी अब कश्मीर के सेबों को नियंत्रण रेखा पार करके मुजफ्फराबाद में बेचना चाहते हैं। किसी भी हाल में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सरकार के सामने बस एक ही विकल्प रह जाता है कि जमीन श्राइन बोर्ड को सौंपी जाए। इसके लिए उसे कश्मीर घाटी में राष्ट्रविरोधी शक्तियों से टकराना होगा और जोरदार तरीके से यह बात दोहरानी होगी कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। उसे आतंकियों, अलगाववादियों और पाकिस्तान समर्थकों के खेल का मैदान बनने नहीं दिया जाएगा। भारत के राष्ट्रवादी मुसलमानों ने तब अच्छा उदाहरण पेश किया जब 7 अगस्त को उन्होंने दिल्ली में लालकिला से श्रीनगर के लाल चौक के लिए कूच किया। यह अलग बात है कि तनावपूर्ण माहौल में उन्हें जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने नहीं दिया। यह एक उल्लेखनीय बात होगी कि भारत के मुसलमान उनके उदाहरण का अनुसरण करते हुए श्राइन बोर्ड को जमीन सौंपने के पक्ष में बोलें। 1947 में कांग्रेस की भयावह भूल का खामियाजा देश को अब भुगतने नहीं दिया जाएगा। मुलायम, लालू और करुणानिधि जैसे लोगों को इतिहास के कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाना चाहिए। वे इसी लायक हैं। (दैनिक जागरण, १३ जुलाई २००८)
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